लेख जवानी कायम रखने को रानी ने किया लगातार रक्त स्नान

जवानी कायम रखने को रानी ने किया लगातार रक्त स्नान

अयोध्या प्रसाद भारती उस दिन महल की दासी नेरोनिका को अर्धरात्रि का बेसब्री से इंतजार था। जैसे-जैसे समय व्यतीत हो रहा था वैसे-वैसे उसके दिल…

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लेख डग-डग डायबिटीज का खतरा !

डग-डग डायबिटीज का खतरा !

सुनील कुमार महला आज हमारी जीवनशैली में आमूल-चूल परिवर्तन आ गये हैं और ये परिवर्तन कहीं न कहीं अनेक लाइफ़ स्टाइल डिज़ीज़ यथा- उच्च रक्तचाप(हाई बीपी), हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह(डाइबिटीज), पुरानी फेफड़ों की बीमारियाँ, कैंसर, अल्जाइमर रोग और अन्य बीमारियों को जन्म दे रहें हैं। वैसे तो ये सभी डिज़ीज़ अपने आप में बहुत ही चिंताजनक हैं लेकिन खान-पान, मोटापे, गरीब तबके की अज्ञानता, मधुमेह के प्रति जागरूकता का अभाव देश में डायबिटीज़ के पेशेंट्स बढ़ा रहा है। भारत में आज डग-डग पर डायबिटीज के पेशेंट्स हैं।  उपलब्ध जानकारी के अनुसार वैश्विक स्तर पर 828 मिलियन में से भारत में अनुमानित 212 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। दुनिया में मधुमेह से पीड़ित हर चार में से एक व्यक्ति (26%) भारत से है, जिससे यह दुनिया में सबसे अधिक प्रभावित देश बन गया है।पिछले साल यानी कि वर्ष 2023 में आई द लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज के मरीज हैं। स्टडी में कहा गया है कि पिछले चार सालों में ही डायबिटीज के मामलों में 44% की बढ़ोतरी हुई है।इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज की इस स्टडी में यह कहा गया था कि वर्ष 2019 में भारत में डायबिटीज के सात करोड़ मरीज थे। इसके अनुसार भारत की 15.3% आबादी (कम से कम 13.6 करोड़ लोग) प्री-डायबिटीज हैं। गौरतलब है कि डायबिटीज ऐसा रोग है जिससे शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन का निर्माण नहीं कर पाता है जिससे व्यक्ति में बार-बार पेशाब आने,नींद पूरी होने के बाद भी थकान के महसूस होने, बार-बार भूख लगने, वजन कम होने, आंखों की रोशनी कम होने, धुंधला दिखाई देने तथा घाव के जल्दी न भरने जैसी समस्याएं पैदा होने लगतीं हैं। डायबिटिक फुट(मधुमेह के अनियंत्रित होने पर पैरों में होने वाले घाव) भी जन्म लेता है और मरीज धीरे धीरे रिस्क जोन में चला जाता है। इस संदर्भ में हाल ही में राजस्थान के बीकानेर में सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के डायबिटिक एंड रिसर्च सेंटर में डायबिटिक फुट पर वर्ष 2021 से जुलाई 2022 तक 900 मरीजों पर किए गए एक शोध में यह सामने आया है कि 180 के पैरों में घाव था। शोध में 20 से 79 वर्ष के 70 प्रतिशत पुरूषों में डायबिटिक फुट पाया गया। सच तो यह है कि आज अनियंत्रित शुगर लेवल शरीर के शरीर खोखले तो बना ही रही है, मधुमेह(डाइबिटीज)अनेक खतरनाक जख्म भी दे रहा है। डायबिटीज़ लाइफस्टाइल से जुड़ी हुई बीमारी है। हमारी अनहेल्दी लाइफस्टाइल, मोटापा तनाव और अवसाद के कारण ही यह बीमारी बढ़ती है। लाइफस्टाइल, संतुलित व हेल्दी डाइट और नियमित एक्सरसाइज से हम डायबिटीज के साथ ही साथ कई अन्य खतरनाक बीमारियों के खतरे को भी कम कर सकते हैं। हालांकि, बहुत बार डायबिटीज आनुवांशिक कारणों से भी होता है, इसलिए कई बार इसे रोकना मुश्किल व अत्यंत कठिन हो सकता है लेकिन इस संबंध में विभिन्न एहतियात व सावधानियां बरतकर हम इसके खतरे को कम कर सकते हैं। रोजाना आधे घंटे टहलकर भी डायबिटीज के खतरे को कम किया जा सकता है। डायबिटीज को प्रभावी ढंग से कंट्रोल करने के लिए नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच करना जरूरी है। डायबिटीज़ से बचने के लिए रोजाना फिजीकल एक्टिविटी, पर्याप्त नींद और शरीर को हाइड्रेट रखना बहुत ही जरूरी है। सुनील कुमार महला

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पर्यावरण पर्यावरण को लेकर विकसित देशों की दोहरी नीति पर भारत की खरी खरी

पर्यावरण को लेकर विकसित देशों की दोहरी नीति पर भारत की खरी खरी

                       रामस्वरूप रावतसरे      अजरबैजान की राजधानी बाकू में हाल ही में एक समझौता हुआ है। यह समझौता संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन वाली शाखा…

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राजनीति महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 

महाराष्ट्र में भाजपा के अव्वल होने के निहितार्थ 

डॉ रमेश ठाकुर   संगठन सर्वोपरि  होता है। संगठन की एकता किसी भी सियासी दल को शून्य से शिखर तक पहुंचा सकती है। महाराष्ट्र में भाजपा…

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सिनेमा अच्‍छे एक्‍टर हैं सिद्धांत चतुर्वेदी 

अच्‍छे एक्‍टर हैं सिद्धांत चतुर्वेदी 

सुभाष शिरढोनकर  29 अप्रेल, 1993 को उत्तर प्रदेश के बलिया जैसे छोटे शहर में पैदा हुए सिद्धांत चतुर्वेदी के पिता एक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। 1998 में…

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राजनीति समतावादी समाज के पक्षधर थे महात्मा ज्योतिबा फूले

समतावादी समाज के पक्षधर थे महात्मा ज्योतिबा फूले

डा.वीरेन्द्र भाटी मंगल महात्मा ज्योतिबा फुले भारत के महान व्यक्तित्वों में से एक थे। ये एक समाज सुधारक, लेखक, दार्शनिक, विचारक, क्रान्तिकारी के साथ साथ…

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राजनीति डॉ आंबेडकर के जातिप्रथा विरोधी विचार को चरितार्थ करने में सहयोगी हो सकती है सनातन हिंदू एकता पदयात्रा

डॉ आंबेडकर के जातिप्रथा विरोधी विचार को चरितार्थ करने में सहयोगी हो सकती है सनातन हिंदू एकता पदयात्रा

 सौरभ तामेश्वरी कटेंगे तो बटेंगे हो या जात-पात की करो विदाई हम सब हिन्दू भाई-भाई का नारा। बीते दिनों में यह खूब चर्चा में हैं।…

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लेख जरूरत है अवसाद के प्रति जागरूक होने की

जरूरत है अवसाद के प्रति जागरूक होने की

“पहला सुख निरोगी काया” जिस समय यह कहावत बनी थी तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि मन भी कभी रोगी हो सकता है। लेकिन…

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महिला-जगत बाल विवाह मुक्ति बेटियों को खुला आसमान देगा

बाल विवाह मुक्ति बेटियों को खुला आसमान देगा

– ललित गर्ग – देश में बाल विवाह की प्रथा को रोकने, बढ़ते बाल-विवाह से प्रभावित बच्चों के जीवन को इन त्रासद परम्परागत रूढ़ियों की…

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लेख भारतीय समाज में लोन लीजिए,घी पीजिए की बढ़ती प्रवृत्ति।

भारतीय समाज में लोन लीजिए,घी पीजिए की बढ़ती प्रवृत्ति।

भारत में खर्च के लिए क्रेडिट कार्ड पर निर्भरता की प्रवृत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है। क्रेडिट कार्ड कंपनियां भी आज उपभोक्ताओं को क्रेडिट कार्ड जारी करने के एवज में फ्री गिफ्ट्स यथा स्मार्ट वाच, स्पीकर, इयर बड्स व अन्य गिफ्ट आइटम्स आदि बांटकर उन्हें अपने चंगुल में फंसा रहीं हैं।

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राजनीति संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ नहीं, महज एक कानूनी ग्रंथ है जो भेदभाव से परे नहीं है!

संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ नहीं, महज एक कानूनी ग्रंथ है जो भेदभाव से परे नहीं है!

@ कमलेश पाण्डेय भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस पर संसद के केंद्रीय कक्ष में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान सबसे…

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राजनीति भारतीय लोकतंत्र और इस्लामी मूल्यों के खिलाफ है वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा 

भारतीय लोकतंत्र और इस्लामी मूल्यों के खिलाफ है वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा 

गौतम चौधरी  वैश्विक खिलाफत की काल्पनिक अवधारणा उसी प्रकार गैरवाजिब है जैसे पुरातनपंथी हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा। यह दोनों अवधारणा काल्पनिक है और आधुनिक लोकतांत्रिक विश्व में इसका कोई स्थान नहीं है। दरअसल, आज इस बात की चर्चा इसलिए जरूरी है कि दुनिया के कुछ इस्लामिक चरमपंथियों ने एक बार फिर से वैश्विक खिलाफत की बात प्रारंभ की है। विगत कुछ वर्षों में भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में इस विचार के प्रेरित युवकों को असामाजिक व गैरराष्ट्रवादी गतिविधियों में संलिप्त देखा गया है।  हाल के वर्षों में हिज्ब उत-तहरीर की गतिविधियों को लेकर भारत में चिंता बढ़ी है। पहले तो हमें हिज्ब उत-तहरीर को समझना होगा। यह एक अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन है, जिसका उद्देश्य इस्लामी खिलाफत को पुनः स्थापित करना है। इसका नाम अरबी में ‘‘हिज्ब-उत-तहरीर’’ है जिसका अर्थ, ‘‘मुक्ति की पार्टी’’ है। वर्ष 1953 में एक फिलिस्तीनी इस्लामिक चरमपंथी, उकीउद्दीन नबहानी ने जेरूसलम में इसकी स्थापना की थी। हिज्ब-उत-तहरीर का दावा है कि वह राजनीतिक, बौद्धिक और वैचारिक तरीकों से काम करता है और हिंसा में कोई विश्वास नहीं करता लेकिन इसके कार्यकर्ता दुनिया के लगभग 50 देशों में हिंसक गतिविधियों में संलिप्त पाए गए हैं। यहां तक कि कई इस्लामिक देशों में भी यह संगठन वहां की सत्ता के चुनौती बना हुआ है। संगठन का मानना है कि मुसलमानों को एक खलीफा के नेतृत्व में एकजुट होना चाहिए जो शरियत कानून के अनुसार शासन करे। इसका मुख्य उद्देश्य एक वैश्विक इस्लामी खिलाफत की स्थापना है जो मुसलमानों की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन को इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार नियंत्रित करे।  वस्तुतः इस संगठन का दावा और हकीकत दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। यूरोपियन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस के मुताबिक, ये संगठन गैर-सैन्य तरीकों से खिलाफत की पुनः स्थापना पर काम करता है। इसलिए कई देश, संगठन पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। हिज्ब-उत-तहरीर पर प्रतिबंध लगाने वाले देशों में बांग्लादेश और चीन के अलावा जर्मनी, रूस, इंडोनेशिया, लेबनान, यमन, तुर्की और संयुक्‍त अरब अमीरात शामिल हैं। दुनिया के अन्य कई देश हिज्ब-उत-तहरीर इस संगठन पर निगरानी कर रहे हैं क्योंकि वहां की राजनीतिक व्यवस्था के लिए भी यह चुनौती पैदा करने लगा है। इसके बावजूद यह संगठन दुनिया के 50 से अधिक देशों में सक्रिय है। 10 लाख से अधिक इसके सक्रिय सदस्यों की संख्या बतायी जाती है। हिज्ब-उत-तहरीर का भारत में बहुत व्यापक आधार नहीं नहीं है लेकिन हाल के वर्षों में इसके प्रभाव और गतिविधियों पर ध्यान दिया गया है।  हिज्ब-उत-तहरीर का मुख्य उद्देश्य एक इस्लामिक खिलाफत स्थापित करना है जो भारत के संविधान और धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के विपरीत है। हिज्ब-उत-तहरीर ने भारत में बहुत अधिक खुले तौर पर गतिविधियां नहीं की है लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट और सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, यह गुप्त रूप से भारत में सक्रिय है। संगठन के सदस्यों पर भारत के विभिन्न हिस्सों में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और खिलाफत की विचारधारा का आरोप लगा है। भारत में सुरक्षा एजेंसियां इस संगठन पर नजर रख रही है और इसकी संभावित नेटवर्क को रोकने के प्रयास करती है। इस क्रम में भारत सरकार ने हाल ही में इस कट्टरपंथी समूह को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया है। इसपर प्रतिबंध के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा है कि हिज्ब-उत-तहरीर का लक्ष्य लोकतांत्रिक सरकार को जिहाद के माध्यम से हटाकर भारत सहित विश्व स्तर पर इस्लामिक देश और खिलाफत स्थापित करना है। मंत्रालय ने अपने आदेश में कहा है कि हिज्ब-उत-तहरीर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।  सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर हिज्ब-उत-तहरीर को एक आतंकवादी संगठन के रूप में सूचीबद्ध करने के साथ, यह समझना महत्वपूर्ण है कि न केवल इसकी गतिविधियां भारतीय कानून के तहत अवैध हैं बल्कि यह मूल इस्लामिक सिद्धांतों के खिलाफ भी है। इससे भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए दोहरी दुविधा पैदा होती है। भारत का संविधान धर्म और राज्य के मामलों के बीच स्पष्ट अंतर बनाए रखते हुए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करना है। यह अपने सभी नागरिकों के लिए लोकतंत्र, मतदान और मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। हिज्ब-उत-तहरीर के सदस्यों की हरकतें, जिनमें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी के खिलाफ प्रचार करना, संविधान को चुनौती देना और शरिया कानून द्वारा शासित वैकल्पिक राज्यों को बढ़ावा देना शामिल है जो अंतातोगत्वा देश के धर्मनिर्पेक्ष ताने-बाने को खतरे में डालेगा। लोकतंत्र के प्रति हिज्ब-उत-तहरीर का वैचारिक विरोध खुद को उन मूल सिद्धांतों के खिलाफ खड़ा करता है, जिन्होंने मुसलमानों सहित विभिन्न समुदायों को भारत में शांतिपूर्वक सहअस्तित्व की अनुमति दी है। संविधान विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देकर संगठन न केवल मुसलमानों और बहुसंख्यक समाज के बीच दरार पैदा करता है बल्कि एक अलगाववादी रवैये को भी बढ़ावा देता है जो इस्लाम के सामाजिक सामंजस्य सिद्धांत के खिलाफ है।   हिज्ब-उत-तहरीर की गतिविधियां इस्लामिक शिक्षाओं का भी खंडन करती है।  इस्लामिक चिंतकों के अनुसार, इस्लाम एक आस्था के तौर पर अराजकता से बचने को महत्व देता है। इस्लामिक राजनीतिक विचार में एक प्रमुख सिद्धांत यह है कि किसी भी वैध इस्लामिक शासन को एक वैध प्रक्रिया के माध्यम से बदला जा सकता है, विशेष रूप से व्यापक सामुदायिक समर्थन वाले मुस्लिम शासक के नेतृत्व में ही यह संभव है। अराजकता के माध्यम से शासन बदला जाना इस्लामिक राजनीतिक सिद्धांत के खिलाफ है। इस्लाम के पवित्र ग्रोंथ में इसके बारे में साफ चेतावनी दी गयी है। साफ तौर पर कहा गया है कि इस्लामी राज्य के लिए अनाधिकृत आह्वान के जरिए फूट को बढ़ावा देने के बजाए स्थापित प्राधिकरण के जरिए एकता और न्याय को बनाए रखना ही बेहतर है।  वास्तव में दुनिया भर के इस्लामी विद्वानों ने नेतृत्वहीन आन्दोलन के खिलाफ चेतावनी दी है जो अशांति भड़का कर व्यवस्था बदलने की कोशिश करते हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की तरह ये आन्दोलन न केवल समुदाय के हितों को नुकशान पहुंचाते हैं बल्कि समाजिक शांति और सदभाव प्राप्त करने के व्यापक इस्लामिक उद्देश्य के भी विपरीत हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की वकालत के सबसे चिंताजनक पहलुओं में से एक मुस्लिम युवाओं पर इसका प्रभाव है, जो अक्सर अपने कार्यों के परिणामों को पूरी तरह से समझे बिना एक काल्पनिक इस्लामिक राज्य के वादे से बहक जाते हैं। हिज्ब-उत-तहरीर की विचारधारा से प्रभावित कई युवा मुस्लिम ऐसी गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं जो भारतीय कानून के तहत अवैध हैं, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया जाता है और लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है। ये युवा, समाज के योगदानकर्ता सदस्य बनने के बजाय घोषित अपराधी बन जाते हैं। इस्लामी शासन के तहत बेहतर जीवन के हिज्ब-उत-तहरीर के वादे खोखले हैं, क्योंकि वे युवाओं को ऐसे रास्तों पर ढकेलते हैं, जो उन्हें अपराधी बना देता है।  मुस्लिम युवाओं को यह एहसास कराने की जरूरत है कि इस्लाम सामाजिक शांति को बाधित करने वाले कार्यों की वकालत नहीं करता है और हिंसक विरोध या संवैधानिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकने का आह्वान उन्हें गुमराह कर रहा है। मौजूदा लोकतांत्रिक ढ़ांचे के भीतर सामाजिक आर्थिक विकास, शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी की ज्यादा जरूरत है, बजाए इसके कि एक अप्राप्य और विभाजनकारी लक्ष्य के लिए फालतू का प्रयास किया जाए, जो भारतीय कानून और इस्लामी सिद्धांतों दोनों के विपरीत हैं। इस मामले में यह जरूरी है कि मुस्लिम विद्वान, नेता और सामुदायिक संगठन हिज्ब-उत-तहरीर जैसे संगठनों द्वारा बताए गए आख्यानों का खंडन करे, जो न केवल अवैध है बल्कि धार्मिक रूप से भी गलत है। इस्लामिक शिक्षाएं मुसलमानों को अपने समाज में न्यायपूर्ण और सक्रिय भागीदार बनने, कानून के दायरे में अच्छाई को बढ़ावा देने और नुकशान को रोकने के लिए प्रोत्साहित करती है।  विभाजनकारी विचारधाराओं का शिकार होने के बजाए, मुस्लिम समुदाय को भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ रचनात्मक जुड़ाव पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। इसमें मतदान, राजनीतिक भागीदारी और समान अधिकारों की वकालत शामिल है। विद्रोह या कट्टरपंथ के विनाशकारी परिणामों के बिना समुदाय का उत्थान हो सकता है। मुस्लिम युवाओं को यह समझना चाहिए कि सच्चा इस्लामी शासन न्याय, व्यवस्था और शांति पर आरूढ होता है। ये ऐसे मूल्य हैं जिन्हें भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के भीतर बरकरार रखा गया है। उथल-पुथल के इस दौर में कट्टरपंथी आह्वानों को अस्वीकार करके, मुसलमान एक ऐसे भविष्य की दिशा में काम कर सकते हैं, जहां वे अपने विश्वास या अपनी स्वतंत्रता से समझौता किए बिना समाज में सकारात्मक योगदान दे सकें।  गौतम चौधरी 

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