मानव के संरक्षण एवं अधिकारों के लिए कौन लड़ेगा?
Updated: December 9, 2024
मानव अधिकार दिवस-10 दिसम्बर, 2024– ललित गर्ग- संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा घोषित दिवसों में एक महत्वपूर्ण दिवस है विश्व मानवाधिकार दिवस। प्रत्येक वर्ष…
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मानव का नैसर्गिक अधिकार है मानवाधिकार
Updated: December 9, 2024
अशोक प्रवृद्ध आदि सृष्टि काल में मानव सभ्यता के अस्तित्व में आने के साथ ही मनुष्य अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहता आ रहा है।…
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चिंताजनक बनती कूड़े की समस्या
Updated: December 9, 2024
डॉ.वेदप्रकाश राजधानी दिल्ली में कई स्थानों पर कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। नदी,नालों व सड़कों पर कूड़ा सहज ही देखा जा सकता है।…
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आखिर ‘सम्राट चौधरी’ के सियासी उभार से हाशिए पर क्यों चले गए ‘तेजस्वी यादव’?
Updated: December 9, 2024
कमलेश पांडेय बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के लुढ़कते जनाधार से ‘सेक्यूलर सियासतदान’ परेशान हैं। उनकी चिंता है कि भाजपा ने बिहार के युवा नेता और मौजूदा उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर दांव क्या लगाया, तेजस्वी यादव जितनी तेजी से उभरे थे, उससे भी तेज गति से हाशिए पर जाते प्रतीत हो रहे हैं ! कोई इसे कांग्रेस नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और भाकपा माले की सियासी सोहबत का साइड इफेक्ट करार दे रहा है तो कोई इसे यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेताओं से जारी सियासी लुकाछिपी का असर करार दे रहा है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि लालू प्रसाद की तरह ही तेजस्वी यादव की मुस्लिम परस्त वाली राजनीतिक छवि एक ओर जहां मुस्लिम-यादव (एमवाई) समीकरण को उनसे जोड़े हुए है, इसकी प्रतिक्रिया में वो सवर्ण वोट भी उनसे छिटक गया जो कभी मुख्यमंत्री और जदयू नेता नीतीश कुमार को राजनीतिक सबक सिखाने के लिए राजद और तेजस्वी यादव से जुड़ने की कोशिश किया था लेकिन जैसे ही तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार के आशीर्वाद से एक नहीं बल्कि दो-दो बार बिहार के उपमुख्यमंत्री बने तो वो युवा जनाधार भी उनसे छिटक गया। इस बात का खुलासा तब हुआ जब लोकसभा चुनाव 2024 और बिहार विधानसभा उपचुनाव 2024 में ‘इंडिया गठबंधन’ का बिहार में सूबाई इंजन बने रहने के बावजूद राजद प्रमुख तेजस्वी यादव अपनी वह राजनीतिक सफलता नहीं दोहरा पाए जैसा कि उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में या उससे पहले प्रदर्शित किया था। बता दें कि बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से महज 9 सीट ही इंडिया गठबंधन जीत सकी जिसमें राजद को 4, कांग्रेस को तीन और भाकपा माले को दो सीटें मिलीं थीं। यह लोकसभा चुनाव 2019 के मुकाबले राजद का बेहतर परफॉर्मेंस है लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के मुकाबले काफी निराशाजनक, क्योंकि तब राजद राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभरी थी। वहीं, बिहार विधानसभा उपचुनाव 2024 में 4 सीटों में से एक भी सीट राजद या उसके इंडिया गठबंधन को नहीं मिली जबकि पड़ोसी राज्य यूपी में इंडिया गठबंधन की सूबाई इंजन सपा ने 80 में से 43 (सपा- 37 और कांग्रेस- 6) सीटें जीतकर बीजेपी को 50 प्रतिशत से अधिक सीटों पर जबरदस्त मात दी थी और यूपी विधानसभा उपचुनाव 2024 में भी 9 में से 2 सीटें जीतने में कामयाब रही। इससे तेजस्वी यादव का बिहार में चिंतित होना स्वाभाविक है क्योंकि अब इंडिया गठबंधन की हवा निकल चुकी है और उसमें कांग्रेस के नेतृत्व पर भी सवाल उठ रहे हैं। इसलिए बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान तेजस्वी यादव को अपनी सियासी साख बचाने के लिए न केवल कड़ी राजनीतिक मशक्कत करनी पड़ेगी बल्कि सियासी सूझबूझ भी नए सिरे से दिखानी होगी जिसके आसार बहुत कम हैं। इसलिए अब यह कहा जाने लगा है कि भाजपा के सम्राट चौधरी दांव पर तेजस्वी यादव चारो खाने चित्त हो गए हैं। जहां लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी वाले ‘इंडिया गठबंधन’ यानी समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठजोड़ को हासिल उपलब्धि की तरह बिहार में कुछ खास नहीं कर पाए, वहीं बिहार विधानसभा उपचुनाव 2024 में उससे भी बुरा सियासी प्रदर्शन किया जिससे अब उनके नेतृत्व पर ही सवाल उठने लगे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि लालू प्रसाद यादव जैसे रघुवंश प्रसाद सिंह या जगतानंद सिंह जैसे कद्दावर नेताओं की दूसरी कतार की तरह राजद में अपने मुकाबले कोई दूसरी कतार बनने ही नहीं दिया, जिसका अब उन्हें राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। इतना ही नहीं, लालू प्रसाद जैसे भाजपा में सुशील मोदी जैसा बैकडोर शुभचिंतक रखते थे, कोई वैसा दूसरा हमउम्र शुभचिंतक पैदा करने में भी तेजस्वी यादव सर्वथा विफल रहे हैं! कहना न होगा कि आज ‘तेजस्वी यादव’ और ‘सम्राट चौधरी’ महज व्यक्ति नहीं बल्कि विचार बन चुके हैं। तेजस्वी यादव जहां ‘सेक्यूलर जमात’ की तरफदारी कर रहे हैं, वहीं सम्राट चौधरी अपने धर्मनिरपेक्ष मिजाज के बावजूद ‘प्रबल हिंदुत्व’ के समर्थकों की एकमात्र उम्मीद बनकर उभरे हैं और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह की तरह दबंगई पूर्वक अपनी बात रखते हैं। यही वजह है कि पहले उन्हें बीजेपी ने मंत्री बनाया, फिर प्रदेश अध्यक्ष बनने का मौका दिया और उसके बाद सीधे उपमुख्यमंत्री बना दिया। वहीं, सम्राट चौधरी के बढ़ते सियासी ग्राफ का सेंसेक्स इस बात का संकेत दे रहा है कि भविष्य में तीसरी पीढ़ी के भाजपा नेताओं से जब प्रदेश में ओबीसी मुख्यमंत्री या फिर देश में ओबीसी प्रधानमंत्री बनाने की बात छिड़ेगी तो सम्राट चौधरी के नाम को खारिज करना इसलिए भी कठिन हो जाएगा, क्योंकि पूर्वी भारत में वो एकमात्र ऐसे भाजपा नेता हैं जिन्हें न केवल पीएम नरेंद्र मोदी और एचएम अमित शाह पसंद करते हैं बल्कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी उनके सियासी अंदाज को तवज्जो देते हैं। यह बात मैं इसलिए बता रहा हूँ ताकि बिहारवासी यह समझ सकें कि सियासत एक चक्रव्यूह है जिसे अमूमन किसी अभिमन्यु की तलाश रहती है लेकिन समकालीन अर्जुन वह गलतियां नहीं दुहराता, जो महाभारत काल में दुहराई जा चुकी हैं। आज लालू प्रसाद और शकुनी चौधरी जैसे सियासी धुरंधर पग-पग पर अपने पुत्रों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। आपको पता होगा कि बिहार की राजनीति को लगभग 15 वर्षों तक (1990-2005) अपने हिसाब से हांकने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के तेजस्वी पुत्र तेजस्वी यादव हैं जबकि उस दौर में भी लालू प्रसाद को कड़ी सियासी चुनौती देने वाले उनकी ही सरकार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री शकुनी चौधरी के यशस्वी पुत्र सम्राट चौधरी हैं, जो बिहार के सबसे कम उम्र के मंत्री बनने का रिकॉर्ड स्थापित कर चुके हैं। यह उनके राजनीतिक सूझबूझ का ही तकाजा है कि आज वो कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाहा को काफी पीछे छोड़ चुके हैं जो उनके पिता शकुनी चौधरी के प्रबल राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी समझे जाते थे। बिहार की राजनीति में सम्राट चौधरी जितना फूंक-फूंक कर सियासी कदम उठा रहे हैं. उससे साफ पता चलता है कि अपने स्वर्णिम राजनीतिक भविष्य के लिए वह कोई जोखिम मोल लेना नहीं चाहते हैं । वहीं, पटना से लेकर दिल्ली तक जिस तरह से अपने शुभचिंतकों से जुड़े दिखाई प्रतीत होते हैं, उससे उनके प्रतिस्पर्धी नेता भी खुन्नस खा रहे हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनकी असरदार मौजूदगी भी दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में चर्चा का विषय बनी हुई है। राजनीतिक लोग बता रहे हैं कि कभी नीतीश कुमार को सियासी आईना दिखाने वाले सम्राट चौधरी अब परिस्थितिवश जितना बेहतर तालमेल प्रदर्शित कर रहे हैं, उसका इशारा भी साफ है कि नीतीश कुमार का राजनीतिक सूर्य अस्त होते ही सम्राट चौधरी उस सियासी शून्य को भरकर बिहार भाजपा को वह राजनीतिक ऊर्जा प्रदान करेंगे जो उसे इन दिनों यूपी से महाराष्ट्र तक मिल रही है। ऐसा तभी संभव होगा, जब तेजस्वी यादव को बिहार विधान सभा चुनाव 2025 में एक और शिकस्त मिलेगी। टीम भाजपा अभी अपने इसी मिशन में जुटी हुई है। उधर, बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पूरी तरह से सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। हाल ही में अपनी शेखपुरा यात्रा के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता देवेंद्र कुशवाहा से मुलाकात कर सियासी पारा हाई कर दिया है। इस मुलाकात के बाद जिले की सियासत गर्म हो गई है, क्योंकि कुशवाहा ने कहा कि उन्होंने पंचायत की समस्याओं को लेकर तेजस्वी से मुलाकात की जबकि सियासी हल्के में यह चर्चा है कि राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा अपनी लोकसभा चुनाव 2024 की हार से भाजपा से भीतर ही भीतर चिढ़े हुए हैं और अपने नेताओं को तेजस्वी यादव के पीछे लगा दिया है, ताकि समय आने पर अपने साथ हुए सियासी छल का बदला ले सकें। आपको पता होगा कि जब-जब भाजपा नीतीश कुमार के करीब जाती है तो लाचारीवश उसे उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी से दूरी बनानी पड़ती है। वहीं, लोजपा नेता चिराग पासवान और हम नेता जीतनराम मांझी जैसे नीतीश विरोधी नेताओं की पूछ भी घट जाती है हालांकि, दलित नेता होने के चलते चिराग को उपेंद्र से ज्यादा तवज्जो मिलती है। नीतीश कुमार के ही चक्कर में कभी भाजपा जॉइन किये आरसीपी सिंह भी आज सियासी नेपथ्य में चले गए हैं। ऐसे में नीतीश के धुर विरोधी रहे सम्राट चौधरी जिन्होंने कभी उन्हें पद से हटाने के लिए पगड़ी तक बांध रखी थी, को यदि भाजपा तवज्जो दे रही है तो यह उनके नेतृत्व कौशल, राजनीतिक प्रबंधन और व्यक्तिगत सम्पर्क का ही तकाजा है। इससे नीतीश व तेजस्वी दोनों परेशान हैं और खुद को उस सियासी चक्रव्यूह में घिरा महसूस कर रहे हैं, जहां सम्राट के महीन सियासी वार की कोई राजनीतिक काट तक उन्हें नहीं सूझ रही है। वहीं, बिहार की राजनीति के चाणक्य समझे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (2005-से अब तक बीच में अपने शागिर्द जीतनराम मांझी के संक्षिप्त कार्यकाल को छोड़कर) ने बिहार के अधिकांश रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए जिस तरह से अपनी सूबाई बादशाहत बनाए हुए हैं, उसे भी यदि सम्राट चौधरी निकट भविष्य में विनम्रता पूर्वक तोड़ दें तो किसी को हैरत नहीं होगी क्योंकि भले ही वह आरएसएस बैकग्राउंड से नहीं हैं लेकिन संघ और भाजपा की एक-एक राजनीतिक कड़ी को बखूबी…
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वैश्विक दक्षिण में भारत का नेतृत्व
Updated: December 9, 2024
डॉ .सुधाकर कुमार मिश्रा वैश्विक दक्षिण, जिसे ” तीसरी दुनिया”(3A) के नाम से जाना जाता है, विकासशील नवोदित राष्ट्र – राज्यों जो वित्त, शासकीय तकनीकी विशेषज्ञता,…
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इंडिया गठबंधन में बढ़ती दरारें एवं मुश्किलें
Updated: December 9, 2024
– ललित गर्ग – विपक्षी गठबंधन इंडिया की उलटी गिनती का क्रम रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से…
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बांग्लादेश की धरती पर भारत के खिलाफ साजिशें।
Updated: December 9, 2024
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के जुलाई में हुए तख्तापलट के बाद से ही भारत विरोधी लहर चल रही है। हिंदुओं के खिलाफ हिंसा भी…
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ए. आई. बेस्ड सिस्टम से ही संभव भारतीय रेल का तकनीकि विकास
Updated: December 9, 2024
● रेल एक्सीडेंट होते है,जिसमें प्रमुख है ट्रैक का अनियमित मेंटेनेंस जिसके कारण ट्रैक पर आए क्रैक,फ्रैक्चर,वियर जैसी समस्या आती है और अंत में यही…
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क्या नये आपराधिक कानूनों से त्वरित न्याय मिल सकेगा?
Updated: December 9, 2024
इंडियन ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड के अनुसार भारत में अदालती मामलों का लंबित होने का मतलब है सभी न्यायालयों में पीड़ित व्यक्ति या संगठन को न्याय…
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गिरहकट
Updated: December 9, 2024
पन्ना, मैक, लंबू,हीरा, छोटू इनके असली नाम नहीं थे लेकिन दुनिया अब इसे ही इनका असली नाम मानती थी। मंगल प्रसाद गुप्ता ही पन्ना था,…
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दिल्ली चुनावी जंग में कौन सत्ता का ताज पहनेगा?
Updated: December 9, 2024
-ललित गर्ग- दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के लिए फरवरी 2025 या उससे पहले चुनाव होने की संभावनाओं को देखते हुए राजनीतिक हलचलें एवं सरगर्मियां…
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ब्याज दरों में अब कमी होनी ही चाहिए
Updated: December 9, 2024
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास ने अपने वर्तमान कार्यकाल का अंतिम मुद्रा नीति वक्तव्य (मोनेटरी पॉलिसी स्टेट्मेंट) दिनांक 06 दिसम्बर 2024 को प्रातः 10 बजे जारी किया है। इस मुद्रा नीति वक्तव्य में रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं करते हुए इसे पिछले 22 माह से (अर्थात 11 मुद्रा नीति वक्तव्यों से) 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया है। यह संभवत: भारतीय रिजर्व बैंक के इतिहास में सबसे अधिक समय तक स्थिर रहने वाली रेपो दर है। इस बढ़ी हुई रेपो दर का भारत के आर्थिक विकास पर अब विपरीत प्रभाव होता हुआ दिखाई दे रहा है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में भारत में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर घटकर 5.4 प्रतिशत तक नीचे आ गई है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रत्येक दो माह के अंतराल पर मुद्रा नीति वक्तव्य जारी किया जाता है, परंतु पिछले 11 मुद्रा नीति वक्तव्यों में रेपो दर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया है। जबकि, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति की दर कुछ समय तक तो लगातार 6 प्रतिशत के सहनीय स्तर से नीचे बनी रही है। भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित औसत मुद्रा स्फीति के अनुमान को 4.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है। इसका आश्य यह है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रा स्फीति की दर संभवत: वित्तीय वर्ष 2024-25 की तृतीय तिमाही में भी अधिक बनी रह सकती है। इसके पीछे खाद्य पदार्थों (विशेष रूप से फल एवं सब्जियों) की कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि, एक मुख्य कारण जिम्मेदार हो सकता है। परंतु, क्या ब्याज दरों में वृद्धि कर खाद्य पदार्थों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है? उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रा स्फीति की दर को आंकने में खाद्य पदार्थों का भार लगभग 40 प्रतिशत है। यदि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रा स्फीति में से खाद्य पदार्थों के भार को अलग कर दिया जाय तो यह आंकलन बनता है कि कोर पदार्थों की मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में बनी हुई है। खाद्य पदार्थों की कीमतों को बाजार में फलों एवं सब्जियों की आपूर्ति बढ़ाकर ही नियंत्रित किया जा सकता है, न कि ब्याज दरों में वृद्धि कर। इस वर्ष मानसून का पूरे देश में विस्तार ठीक तरह से नहीं रहा है, कुछ क्षेत्रों में बारिश की मात्रा अत्यधिक रही है एवं कुछ क्षेत्रों बारिश की मात्रा बहुत कम रही है, जिसका प्रभाव खाद्य पदार्थों की उत्पादकता पर भी विपरीत रूप से पड़ा है, जिससे अंततः खाद्य पदार्थों की कीमतों में उच्छाल देखा गया है। बाद के समय में, अच्छे मानसून के पश्चात भारत में आने वाली रबी मौसम की फसल बहुत अच्छी मात्रा में आने की सम्भावना है क्योंकि न केवल फसल के कुल रकबे में वृद्धि दर्ज हुई है बल्कि पानी की पर्याप्त उपलब्धता के चलते फसल की उत्पादकता में भी वृद्धि होने की पर्याप्त सम्भावना है। इन कारकों के चलते आगे आने वाले समय में खाद्य पदार्थों की एवं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रा स्फीति की दर निश्चित ही नियंत्रण के रहने की सम्भावना है। इससे, निश्चित ही रेपो दर को कम करने की स्थिति निर्मित होती हुई दिखाई दे रही है। साथ ही, अमेरिका सहित यूरोप के विभिन्न देशों में भी ब्याज दरों को लगातार कम करने का चक्र प्रारम्भ हो चुका है, जिसका प्रभाव विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा। दूसरी ओर, भारतीय रिजर्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया है। क्योंकि, यह वृद्धि दर द्वितीय तिमाही में घटकर 5.4 प्रतिशत की रही है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर के कम रहने के कई विशेष कारण रहे हैं। देश में लोकसभा चुनाव के चलते केंद्र सरकार को अपने पूंजीगत खर्चों एवं सामान्य खर्चों में भारी कमी करना पड़ी थी। इसके बाद विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनावों के चलते इन राज्यों द्वारा किए जाने वाले सामान्य खर्चों में अतुलनीय कमी की गई थी। जिससे अंततः नागरिकों के हाथों में खर्च करने लायक राशि में भारी कमी हो गई। दूसरे, इस वर्ष भारत में मानसून भी अनियंत्रित सा रहा है जिससे कृषि क्षेत्र में उत्पादन प्रभावित हुआ एवं ग्रामीण इलाकों में नागरिकों की आय में कमी हो गई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों में अस्थिरता बनी रही, जिसके कारण भारत से विभिन्न उत्पादों के निर्यात प्रभावित हुए। इस अवधि में विनिर्माण के क्षेत्र एवं माइनिंग के क्षेत्र में उत्पादन भी तुलनात्मक रूप से कम रहा। उक्त कारकों के चलते भारत में वित्तीय वर्ष 2024-25 की द्वितीय तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर बहुत कम रही है। इस द्वितीय तिमाही में विभिन्न कम्पनियों के वित्तीय परिणाम भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहे हैं। इनकी लाभप्रदता में आच्छानुरूप वृद्धि दर्ज नहीं हुई है। कम्पनियों के वित्तीय परिणाम उत्साहजनक नहीं रहने के चलते विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से सितम्बर, अक्टोबर एवं नवम्बर माह में 1.50 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि निकाली है। जिससे भारतीय शेयर बाजार के निफ्टी सूचकांक में 3000 से अधिक अंकों की गिरावट दर्ज हुई है, निफ्टी सूचकांक अपने उच्चत्तम स्तर 26,400 से गिरकर 23,200 अंकों तक नीचे आ गया था। हालांकि अब यह पुनः बढ़कर 24,700 अंकों पर आ गया है और विदेशी संस्थागत निवेशकों ने एक बार पुनः भारतीय शेयर बाजार पर अपना भरोसा जताते हुए अपने निवेश में वृद्धि करना शुरू कर दिया है। अब देश में कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में विधान सभा चुनावों एवं लोक सभा चुनाव के सम्पन्न होने के बाद केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपने पूंजीगत खर्चों एवं सामान्य खर्चों में वृद्धि की जाएगी। साथ ही, भारत में त्यौहारी मौसम एवं शादियों के मौसम में भारतीय नागरिकों के खर्चों में अपार वृद्धि होने की सम्भावना है। त्यौहारी एवं शादियों का मौसम भी नवम्बर एवं दिसम्बर 2024 माह में प्रारम्भ हो चुका है। एक अनुमान के अनुसार नवम्बर माह में मनाए गए दीपावली एवं अन्य त्यौहारों पर भारतीय नागरिकों ने लगभग 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का व्यय किया है। वित्तीय वर्ष 2024-25 के जनवरी 2025 माह (13 जनवरी) में प्रयागराज में कुंभ मेला भी प्रारम्भ होने जा रहा है जो फरवरी 2025 माह (26 फरवरी) तक चलेगा। यह कुम्भ मेला प्रत्येक 12 वर्षों में एक बार प्रयागराज में लगता है। एक अनुमान के अनुसार इस कुम्भ मेले में प्रतिदिन एक करोड़ नागरिक पहुंच सकते हैं। इससे देश में धार्मिक पर्यटन में भी अपार वृद्धि होगी। उक्त सभी कारणों के चलते, भारत में उपभोक्ता खर्च में भारी भरकम वृद्धि दर्ज होगी जो अंततः सकल घरेलू उत्पाद में पर्याप्त वृद्धि को दर्ज करने के सहायक होगी। साथ ही, अक्टोबर 2024 माह में भारत से विविध उत्पादों एवं सेवा क्षेत्र के निर्यात में भी बहुत अच्छी वृद्धि दर दर्ज हुई है। इससे अंततः भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर 7 प्रतिशत से ऊपर बने रहने की प्रबल सम्भावना बनती नजर आ रही है। साथ ही, भारतीय रिजर्व बैंक ने नकदी रिजर्व अनुपात में 50 आधार बिंदुओं की कमी करते हुए इसे 4.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दिया है। इससे 1.16 लाख करोड़ रुपए की राशि भारतीय रिजर्व बैंक से बैकों को प्राप्त होगी एवं इस राशि से बैंकिंग क्षेत्र में तरलता में सुधार होगा एवं बैंकों की कर्ज देने की क्षमता में भी वृद्धि होगी। अधिक ऋणराशि की उपलब्धता से व्यापार एवं उद्योग की गतिविधियों को बल मिलेगा जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करने में सहायक होगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी डॉलर के लगातार मजबूत होने से बाजार में रुपए की कीमत लगातार गिर रही है और रुपए की कीमतों को नियंत्रण में रखने के उद्देश्य से भारतीय रिजर्व बैंक को बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करने हेतु अमेरिकी डॉलर को बेचना पड़ रहा है। जिससे, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 70,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के उच्चत्तम स्तर से नीचे गिरकर 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निचले स्तर पर आ गए हैं। साथ ही, रुपए की कीमत गिरकर 84.63 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर आ गई है। अतः यदि देश में व्यापारिक गतिविधियों में सुधार होता है एवं सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर्ज होती है तो विदेशी निवेश भी भारत में पुनः वृद्धि दर्ज करेगा एवं विदेशी मुद्रा भंडार भी अपने पुराने उच्चत्तम स्तर को प्राप्त कर सकेंगे। कुल मिलाकर भारत में अब ब्याज दरों में कमी करने का समय आ गया है। प्रहलाद सबनानी
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