गजल भजन : श्री राधा कृष्णा प्रेम

भजन : श्री राधा कृष्णा प्रेम

तर्ज: ब्रज रसिया दोहा : मैया को समझाए रहे, प्यारे नन्द कुमार ।राधा संग ब्याह की, कर रहे प्रभु गुहार।। मु: मेरे मन को गई…

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कला-संस्कृति समृद्ध राष्ट्र की कहानी कहते भारत के लक्ष्मी मंदिर

समृद्ध राष्ट्र की कहानी कहते भारत के लक्ष्मी मंदिर

भारत के विभिन्न कोनों में फैले ये मंदिर, दक्षिण से उत्तर तक, द्रविड़, नागर और चालुक्य शैलियों का प्रदर्शन करते हैं। इनकी स्थापना प्राचीन काल से चली आ…

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समाज सुशिक्षित केरल ‘ड्रग्स की दलदल में कैसे जकड़ा गया?

सुशिक्षित केरल ‘ड्रग्स की दलदल में कैसे जकड़ा गया?

अब तक पंजाब को भारत का ‘ड्रग्स का गढ़’ माना जाता था लेकिन ताजा रिपोर्ट्स केरल की एक भयावह तस्वीर पेश करती हैं। सिर्फ साल 2024 में…

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राजनीति नये युग में भारत — अफगानिस्तान – तालिबान -संबंध

नये युग में भारत — अफगानिस्तान – तालिबान -संबंध

मृत्युंजय दीक्षितअंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों में कोई स्थाई मित्र या शत्रु नहीं होता, सभी राष्ट्र समय और परिस्थितियों के अनुसार पारस्परिक व्यवहार करते हैं। इस समय भारत…

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धर्म-अध्यात्म भगवान धन्वंतरि की महिमा और आयुर्वेद का अमृत पर्व धनतेरस

भगवान धन्वंतरि की महिमा और आयुर्वेद का अमृत पर्व धनतेरस

धनतेरस (18 अक्तूबर) पर विशेषधनतेरस: अमृत कलश से आरंभ होता दीपोत्सव

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धर्म-अध्यात्म धनतेरस: समृद्धि का नहीं, संवेदना का उत्सव

धनतेरस: समृद्धि का नहीं, संवेदना का उत्सव

(आभूषणों से ज़्यादा मन का सौंदर्य जरूरी, मन की गरीबी है सबसे बड़ी दरिद्रता।)  धनतेरस का अर्थ केवल ‘धन’ नहीं बल्कि ‘ध्यान’ भी है —…

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धर्म-अध्यात्म भारत में पहली दीपावली कब और कैसे मनाई गई ?

भारत में पहली दीपावली कब और कैसे मनाई गई ?

             आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार                दीपोत्सव पर्व प्रथम बार कब,कैसे और कंहा प्रारम्भ हुआ ? इसका उल्लेख किसी पुराण या शास्त्र…

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राजनीति जाग रहा है जनगणमन, निश्चित होगा परिवर्तन…

जाग रहा है जनगणमन, निश्चित होगा परिवर्तन…

समझ से परे कर्नाटक पर संघ गतिविधियों पर रोक सुशील कुमार ‘नवीन’ सन 2000 में अभिषेक बच्चन और करीना कपूर स्टारर रिफ्यूजी फिल्म आई थी। फिल्म के एक गीत की पंक्तियां जब जब भी सुनाई पड़ती है तो एक अलग ही अनुभव होता है। गीत है – पंछी, नदिया, पवन के झोंके, सरहद न कोई इन्हें रोके। यह गीत केवल प्रकृति की आज़ादी की नहीं, बल्कि विचारों की स्वतंत्रता की भी बात करता है। गीत से इतर अब सीधे मुद्दे पर आते हैं। गुरुवार को कर्नाटक मंत्रिमंडल ने सरकारी स्कूलों और कॉलेज परिसरों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों पर रोके लगाने के उद्देश्य को लेकर नियम लाने का फैसला किया है। कैबिनेट द्वारा आरएसएस पर रोक लगाने की इस कार्रवाई ने देशभर में बहस छेड़ दी है। शाखा या संघ की अन्य गतिविधि संचलन आदि में ऐसा क्या होता है, जिसके लिए कर्नाटक सरकार को इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा। इस पर भी विचार करना जरूरी है।  संघ स्वयंसेवकों की मानें तो आरएसएस की शाखा और संचलन अनुशासन और सेवा के विद्यालय हैं। आमतौर पर लगने वाली एक घंटे की नियमित शाखाओं के लिए किसी को निमंत्रण नहीं दिया जाता। न ही कोई दबाव डाला जाता है। राष्ट्र हित की सोच रखने वाले स्वयंसेवक शाखा में समय पर उपस्थित होते हैं और प्रार्थना, योग, खेल और राष्ट्रवंदना के साथ दिन की शुरुआत करते हैं। शाखा में जो प्रार्थना गाई जाती है कि उसकी प्रथम पंक्ति ही सार स्वरूप राष्ट्र के प्रति स्वंयसेवकों की भावना को प्रकट करने के लिए पर्याप्त है। नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखवं वर्धितोऽहम्, महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते। इसका अर्थ है कि हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। विरोध का सुर रखने वाले इसमें कोई मीन मेंख निकालकर तो देखें। शाखा का दूसरा नियमित कार्यक्रम सुभाषित तो राष्ट्र समभाव को और भी स्पष्ट कर देता है। यह सभी के अंदर एकत्व की भावना को मजबूती देने का कार्य करता है। हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्, मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता।  इसका अर्थ है कि सभी हिंदू एक दूसरे के भाई-बहन (सहोदर) हैं, कोई भी हिंदू पतित नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म की रक्षा मेरा धर्म है और समानता मेरा मंत्र है।    सामूहिक गीतों की बात हो तो सामाजिक सद्भाव, सामाजिक समरसता, सामाजिक एकता से ये ओतप्रोत होते हैं। सुनने मात्र से राष्ट्र के प्रति नतमस्तक होने को सब मजबूर हो जाते हैं। हम करें राष्ट्र आराधना,तन से, मन से, धन से, तन–मन–धन जीवन से, हम करें राष्ट्र आराधना। संघ की आम बैठकों या विशेष कार्यक्रम में गाते जाने वाले एकल गीत भी इससे इत्तर नहीं है। श्रद्धामय विश्वास बढ़ाकर, सामाजिक सद्भाव जगायें। अपने प्रेम परिश्रम के बल, भारत में नव सूर्य उगायें।     बात खेलकूद व्यायाम की हो तो उसमें में भी कोई ऐसी बात दिखाई नहीं देती जिस पर उंगली उठाई जा सके। एक घंटे की शाखा में पांच मिनट सूक्ष्म व्यायाम जिसे हम वार्मअप भी कह सकते हैं। इसके बाद व्यायाम योग, सूर्य नमस्कार शरीर को बलिष्ठ ही बनाने का कार्य करते हैं। मनोरंजन के लिए करवाये जाने वाले बौद्धिक और शारीरिक खेल भी इसे और आगे बढ़ाते है। अंत में दिन विशेष के किसी महापुरुष या घटना पर चर्चा के बाद प्रार्थना के बाद शाखा का समापन। इसी तरह अन्य गतिविधियों में संचलन या अन्य कोई सभा आदि। स्वयंसेवकों के अनुसार कहीं पर भी ऐसी कोई गतिविधि होती ही नहीं, जिस पर आपत्ति हो सके। एक बार किसी कार्यक्रम में शामिल होकर देखें, अब स्पष्ट हो जायेगा। संघ के कार्यक्रम लोगों को जोड़ने का काम करते हैं तोड़ने का नहीं। राजनीति इसमें ठीक नहीं है।  आलोचकों के अनुसार इस एक घंटे के कार्यक्रम में शाखाओं के माध्यम से एक विशेष वैचारिक दिशा दी जाती है, जो हिंदू राष्ट्रवाद की अवधारणा से जुड़ी है। उन्हें इस बात की भी ज्यादा चिंता रहती है कि विद्यालयों या सार्वजनिक परिसरों में शाखा चलाने से धर्मनिरपेक्षता प्रभावित हो सकती है।    यहां यह भी गौर करना बहुत जरूरी है कि लोकतंत्र की खूबसूरती विविध विचारों के सह-अस्तित्व में है। विचार से असहमति, प्रतिबंध का औचित्य नहीं बन सकती। शाखाओं पर रोक लगाने से विचारों का प्रसार नहीं रुकता, बल्कि संवाद और संतुलन की संस्कृति कमजोर होती है। यदि शाखा कानून तोड़ती है तो कार्रवाई उचित है, पर यदि शाखा केवल विचार का प्रसार कर रही है, तो इस तरह की रोक की भावना लोकतंत्र की आत्मा पर आघात से कमतर नहीं है। कर्नाटक सरकार की ये कार्रवाई समझ से परे है। आरएसएस की शाखा कोई राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि अनुशासन और चरित्र निर्माण का स्थान है, समय तय करेगा कि कर्नाटक में आरएसएस की शाखाओं या अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने की कारवाई क्या किसी सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन की गतिविधियों पर प्रशासनिक हस्तक्षेप लोकतंत्र के अनुरूप है। संघ गीत की ये पंक्तियां इसे और भी संबल प्रदान करने का कार्य करेंगी। विश्व मंच पर भारत माँ के, यश की हो अनुगूंज सघन निश्चित होगा परिवर्तन, जाग रहा है जन गण मन। लेखक: सुशील कुमार ‘नवीन’

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धर्म-अध्यात्म धनतेरस धन के भौतिक एवं आध्यात्मिक समन्वय का पर्व

धनतेरस धन के भौतिक एवं आध्यात्मिक समन्वय का पर्व

धनतेरस- 18 अक्टूबर, 2025-ललित गर्ग-धनतेरस का पर्व पंच दिवसीय दीपोत्सव की पवित्र श्रृंखला का आरंभिक द्वार है। यह केवल सोना-चांदी, वस्त्र या बर्तन खरीदने का…

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कला-संस्कृति रंगोली बिना सुनी है हर घर की दीपावली

रंगोली बिना सुनी है हर घर की दीपावली

 आत्माराम यादव पीव       दीपावली पर रंगोली के बिना घर आँगन सुना समझा जाता है। जब रंगोली सज जाती है तब उस रंगोली के बीच तेल-…

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धर्म-अध्यात्म रूप चतुर्दशी : आंतरिक सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का महापर्व

रूप चतुर्दशी : आंतरिक सुंदरता और सकारात्मक ऊर्जा का महापर्व

 दीपोत्सव विशेष : रूप चतुर्दशी 2025 ( दीपावली से एक दिन पहले ) उमेश कुमार साहू दीपावली से ठीक एक दिन पहले आने वाला रूप चतुर्दशी या नरक…

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धर्म-अध्यात्म यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती ? 

यहाँ दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती ? 

  चंद्र मोहन  दिल्ली से 30-35 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश, ग्रेटर नॉएडा का एक गांव है बिसरख जलालपुर जहाँ के लोग दिवाली नहीं मनाते क्योंकि वे खुद को रावण के वंशज मानते हैं. उनका मानना है कि उनका गांव रावण के पिता ‘विश्रवा’ से आया है और रावण का जन्म यहीं हुआ था, इसलिए वे उसकी हार का जश्न नहीं मना सकते. इसके बजाय वे दशहरा जैसे त्योहारों में रावण की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उसकी आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं.   वंशावली का दावा – गांव के लोगों का मानना है कि यह स्थान रावण के पिता विश्रवा से जुड़ा है, और रावण का जन्म भी यहीं हुआ था. रावण के प्रति सम्मान: क्योंकि वे रावण को अपना पूर्वज मानते हैं, वे उसके पुतले जलाने का विरोध करते हैं और इसके बजाय उसके पतन का जश्न मनाने के बजाय उसके लिए प्रार्थना करते हैं. परंपरागत उत्सवों से दूरी – इस वजह से वे दीवाली और दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान परंपरागत उत्सवों में भाग नहीं लेते हैं. अनहोनी का डर – कुछ ग्रामीणों का यह भी मानना है कि अगर कोई त्योहार मनाने की कोशिश करता है तो अनहोनी हो सकती है जैसे कि लोग बीमार पड़ जाते हैं. गांव के बुजुर्ग बताते है कि बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है. कहा जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था. इसी गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी. उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था. अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं. एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है. ये सभी अष्टभुजा के हैं. गांव के लोगों का कहना है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित और क्षत्रिय गुणों से युक्त थे. जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है. दशहरे के त्योहार को लेकर यहां के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है. इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है. गांव बिसरख में न रामलीला होती है और न ही रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है. इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है. रावण के मंदिर को देखने के लिए लोगो यहां आते रहते है. बिसरख गांव के मध्य स्थित इस शिव मंदिर को गांव वाले रावण का मंदिर के नाम से जाना जाता है. नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं. गजट के अनुसार बिसरख रावण का पैतृक गांव है और लंका का सम्राट बनने से पहले रावण का जीवन यहीं गुजरा था. इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्वेशरा के नाम पर पड़ा है. कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा. बिसरख गांव में दशहरे की अलग परंपरा है, जो अन्य गांवों और शहरों से भिन्न है. यहां रावण की पूजा और सम्मान किया जाता है, न कि उनकी निंदा। गांव के लोग इस अनोखी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रावण की महानता और उनके विद्वता को याद करते हैं, साथ ही उनकी आत्मा की शांति के लिए यज्ञ करते हैं. भारत में कई स्थानों पर दीपावली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. इन स्थानों पर दिवाली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा भी नहीं होती है और लोग पटाखे भी नहीं जलाते हैं. आपको यह जानकर हैरानी हो रही होगी लेकिन यह बिल्कुल सच है. आइए जानते हैं कि आखिर भारत के इन जगहों पर रोशनी का त्योहार दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है, इसकी क्या मान्यता रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, जब 14 वर्ष बाद भगवान श्री राम वनवास से लौटकर अयोध्या वापस आए थे, तो लोगों ने घी के दीपक जलाए थे.तभी से ही दिवाली मनाई जाती है. हिंदू धर्म में दीपावली के त्योहार का बेहद खास महत्व है. इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा होती है.इसके साथ ही लोग अपने घर और मंदिरों में दीपक जलाते हैं.भारत के अलावा दुनिया के अलग-अलग देशों में भी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. भारत के केरल राज्य में दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. राज्य के सिर्फ कोच्चि शहर में धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. आपके मन में सवाल खड़ा हो रहा होगा कि आखिर इस राज्य में दिवाली क्यों नहीं मनाई जाती है? यहां पर दिवाली नहीं मनाए जाने के पीछे की कुछ वजह हैं. मान्यता है कि केरल के राजा महाबली की दिवाली के दिन मौत हुई थी.इसके कारण तब से यहां पर दिवाली का त्योहार नहीं मनाया जाता है. केरल में दिवाली न मनाने की पीछे दूसरी वजह यह भी है कि हिंदू धर्म के लोग बहुत कम हैं. यह भी बताया जाता है कि राज्य में इस समय बारिश होती है जिसकी वजह से पटाखे और दीये नहीं जलते. तमिलनाडु राज्य में भी कुछ जगहों पर दिवाली नहीं मनाई जाती है.  वहां पर लोग नरक चतुदर्शी का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं. मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर राक्षस का वध किया था. भारत के कुछ स्थानों पर राम और रावण दोनों की पूजा एक साथ की जाती है जैसे कि इंदौर (मध्य प्रदेश) का एक मंदिर जहाँ राम के साथ रावण की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है, और मंदसौर (मध्य प्रदेश) जहाँ रावण को दामाद के रूप में पूजा जाता है. कुछ जगहों पर रावण को पूजा जाता है क्योंकि उन्हें विद्वान और भगवान शिव का भक्त माना जाता है, जैसे कि कानपुर (उत्तर प्रदेश) में दशहरा के दिन पूजा जाने वाला मंदिर, या आंध्र प्रदेश के काकिनाडा में जहाँ मछुआरे शिव और रावण दोनों की पूजा करते हैं. मुख्य स्थान जहाँ राम और रावण दोनों की पूजा होती है. मंदसौर, मध्य प्रदेश – यहाँ रावण को उनकी पत्नी मंदोदरी के मायके के कारण पूजा जाता है. इंदौर, मध्य प्रदेश – एक विशेष मंदिर में राम के साथ रावण, मेघनाद, कुंभकर्ण और अन्य पात्रों की भी पूजा होती है क्योंकि उन्हें ज्ञानी माना जाता है. कानपुर, उत्तर प्रदेश: यहाँ एक ऐसा मंदिर है जो केवल दशहरा पर खुलता है, जहाँ रावण की पूजा की जाती है. काकीनाडा, आंध्र प्रदेश: यहाँ के मछुआरे समाज के लोग शिव के साथ रावण की भी पूजा करते हैं.…

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