ब्रिक्स समूह देशों के सम्मेलन में बढ़ा है भारत का कद
Updated: November 13, 2024
हाल ही में ब्रिक्स समूह के देशों का सम्मेलन रूस के कजान शहर में सम्पन्न हुआ। इस सम्मेलन में रूस ने भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का गर्मजोशी से स्वागत तो किया ही, साथ ही, चीन के राष्ट्रपति के साथ भी भारत के प्रधानमंत्री की द्विपक्षीय वार्ता सम्पन्न हुई। इस वार्ता में चीन ने भारत की सीमा के पास जमा कर रक्खे अपने सैनिकों को पीछे हटाकर, सीमा पर वर्ष 2020 की स्थिति बहाल करने की घोषणा की है। भारत को भी अपने सैनिकों को सीमा पर पीछे की ओर ले जाना होगा। इससे भारत एवं चीन की सीमा पर पिछले कुछ वर्षों से लगातार बढ़ रहे तनाव को कम करने में सफलता हासिल होगी। इस संदर्भ में विभिन्न समाचार पत्रों में छपी जानकारी के अनुसार चीन एवं भारत ने अपने 80 से 90 प्रतिशत सैनिकों को वापिस पीछे की ओर हटा लिया है। चीन और भारत के आपस में सम्बंध सुधरने का असर केवल इन दोनों देशों के आपसी तनाव को ही कम नहीं करेगा बल्कि इन सम्बन्धों में सुधार का असर आर्थिक क्षेत्र में भी देखने को मिलेगा। दरअसल चीन आज आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है, चीन में आर्थिक विकास की दर तिमाही दर तिमाही कम हो रही है। चीन के अमेरिका के साथ सम्बंध बहुत अच्छे नहीं रहे है। अमेरिका एवं कई यूरोपीयन देशों ने चीन से विभिन्न वस्तुओं के आयात पर करों को बढ़ा दिया है ताकि चीन से आयात को कम किया जा सके। चीन की आंतरिक अर्थव्यवस्था में भी उत्पादों की मांग लगातार कम हो रही हैं। साथ ही, चीन के भवन निर्माण क्षेत्र एवं बैकिंग क्षेत्र में भी कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो गई हैं। चीन के अपने पड़ौसी देशों, ताईवान, फिलिपींस, जापान, भारत आदि के साथ भी सम्बंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। इस सबका असर यह रहा है कि चीन ने भारत के साथ अपने सम्बन्धों को सुधारने की पहल शुरू की है ताकि वह भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ा सके एवं अपनी आर्थिक स्थिति को कुछ हद्द तक सुधार सके। हालांकि चीन के विस्तरवादी नीतियों पर चलने के कारण चीन पर तुरंत विश्वास करना बहुत कठिन है। इस संदर्भ में चीन का इतिहास भी इस बात का साक्षी नहीं रहा है कि चीन के सम्बंध किसी भी देश के साथ स्थायी रूप से बहुत अच्छे रहे हों। ब्रिक्स देशों में विश्व की 45 प्रतिशत आबादी निवास करती है, पूरे विश्व की 33 प्रतिशत भूमि इन देशों के पास है एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था में 28 प्रतिशत हिस्सेदारी ब्रिक्स के सदस्य देशों की है। ब्रिक्स समूह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह गैर पश्चिमी देशों का एक समूह जरूर है, परंतु वह पश्चिमी देशों के विरुद्ध नहीं है। ब्रिक्स समूह को स्थापित करने वाले देशों में ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन (BRIC) थे एवं वर्ष 2009 में दक्षिणी अफ्रीका को भी इस समूह में शामिल कर इस BRICS का नाम दिया गया। आगे चलकर मिश्र (ईजिप्ट), ईथीयोपिया, ईरान, सऊदी अरब एवं यूनाइटेड अरब अमीरात को भी ब्रिक्स समूह में शामिल कर इस समूह का विस्तार किया गया। आज विश्व के कई अन्य देश भी ब्रिक्स समूह के सदस्य बनकर ग्लोबल साउथ की आवाज बनना चाहते हैं। हाल ही में रूस के कजान शहर में सम्पन्न ब्रिक्स समूह के सम्मेलन में स्थायी, अस्थाई एवं आमंत्रित 36 देशों ने भाग लिया। ब्रिक्स के इस सम्मेलन में इस विषय पर भी विचार किया गया कि ब्रिक्स देशों के पास एक अपना पेमेंट सिस्टम होना चाहिए एवं वैश्विक स्तर पर हो रहे व्यापार में अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहिए। पश्चिमी देश वर्तमान में पूरे विश्व में लागू स्विफ्ट सिस्टम का दुरुपयोग कर रहे हैं एवं इसके माध्यम से अन्य देशों पर अपनी चौधराहट स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। स्विफ्ट सिस्टम के माध्यम से पूरे विश्व के देशों के बीच धन सम्बंधी व्यवहारों को सम्पन्न किया जाता है। यदि किसी देश को इसकी सदस्यता से हटा लिया जाता है तो वह देश विश्व के अन्य देशों के साथ आर्थिक (धन सम्बंधी) व्यवहार नहीं कर सकता है। रूस यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने जब रूस पर सैंक्शन लगाए थे तब रूस को स्विफ्ट सिस्टम से हटा दिया गया था जिससे रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने व्यापार के लेनदेनों का निपटान करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इस संदर्भ में, भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत में लागू यूनिफाईड पेयमेंट सिस्टम (यूपीएस), जिसे भारत में ही विकसित किया गया है, को भी ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों में लागू करने पर विचार करने हेतु समस्त सदस्य देशों से आग्रह किया है। अभी तक भारत के यूनीफाईड पेयमेंट सिस्टम को 7 देशों ने अपना लिया है एवं 30 से अधिक देश इसे अपनाने के लिए विचार कर रहे हैं। भारत में यह सिस्टम बहुत ही सफलता पूर्वक कार्य कर रहा है। दूसरे, पूरे विश्व में डॉलर के प्रभाव को कम करने हेतु भी ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच चर्चा हुई है। डॉलर के स्थान पर ब्रिक्स करेन्सी को अपनाने अथवा ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों की बीच हो रहे व्यापार सम्बंधी व्यवहारों के निपटान हेतु ये देश आपस में अपनी करेन्सी के उपयोग पर जोर देने पर भी सहमत होते दिखे हैं। ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ही भारत एवं चीन के बीच हाल ही में सम्पन्न हुए बॉर्डर समझौते के बावजूद भारत को चीन से भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर अपनी गहरी नजर बनाए रखना चाहिए। भविष्य में भी भारत को चीन से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति सोच समझकर ही देना चाहिए। क्योंकि, चीन के इतिहास को देखते हुए उस पर आज भी विश्वास नहीं किया जा सकता है। भारत ने हालांकि वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को निर्धारित किया है। चीन के साथ भारत के सम्बंध सुधरने के पश्चात इस लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी हो सकती है। परंतु, यह कार्य फिर भी बहुत सोच समझकर ही करना होगा। चीन के साथ भारत का विदेशी व्यापार अत्यधिक मात्रा में ऋणात्मक ही है। भारत ने केलेंडर वर्ष 2023 में चीन से 12,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि के उत्पादों का आयात किया था, परंतु भारत से चीन को निर्यात बहुत ही कम मात्रा में हो रहे हैं तथा चीन द्वारा भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी बहुत कम मात्रा में ही किए जा रहे हैं। चीन, भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने वाले देशों की सूची में 22वें स्थान पर है और भारत में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में चीन की हिस्सेदारी केवल 0.37 प्रतिशत की ही है। यह सही है कि चीन के साथ बॉर्डर समझौते के बाद चीन से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ सकता है परंतु भारत को चीन के इतिहास को देखते हुए अभी भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच आज भारत का कद तो बढ़ ही रहा है, साथ ही, आज विश्व के कई देशों द्वारा यूरोप एवं अमेरिका के प्रभाव से बाहर निकलने के प्रयास भी लगातार किए जा रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति ने ब्रिक्स समूह की बैठक में बताया है कि विश्व के कई देश आज ब्रिक्स समूह की सदस्यता ग्रहण करना चाहते हैं। इस प्रकार, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिणी अफ्रीका) एवं शंघाई समूह आदि संगठन बहुत तेजी से अपने प्रभाव को वैश्विक स्तर पर बढ़ा रहे हैं। दरअसल, आज अमेरिका सहित यूरोपीयन देशों (फ्रान्स, जर्मनी, ब्रिटेन आदि) की आर्थिक परिस्थितियां लगातार बिगड़ती जा रही हैं और इन देशों की आर्थिक प्रगति धीमे धीमे कम हो रही है और ये देश मंदी की चपेट में आने की ओर आगे बढ़ रहे हैं जबकि आर्थिक विकास की दृष्टि से यह सदी अब भारत की होने जा रही है। आने वाले समय में, वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वार्धिक वृद्धि में भारत का योगदान लगभग 16 प्रतिशत तक होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अतः विश्व के कई शक्तिशाली देश आज भारत के साथ अपने सम्बन्धों को मजबूती देना चाहते हैं, इसी के चलते ब्रिक्स समूह के सदस्य देशों के बीच भी भारत का कद अब बढ़ता दिखाई दे रहा है। प्रहलाद सबनानी
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लड़कियों को भी खेलने के अवसर मिलने चाहिए
Updated: November 13, 2024
सरिता नायकलूणकरणसर, राजस्थान हाल ही में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व स्पिनर नीतू डेविड को अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने अपने हॉल ऑफ़ फेम…
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पाकिस्तान का नया दांव है डिजिटल घुसपैठ
Updated: November 13, 2024
सुनील कुमार महला भारत एक ऐसा देश है जो सदियों से पंचशील के सिद्धांतों का पालन करता आया है। एशिया और अफ्रीका के विभिन्न देशों…
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बढ़ते मधुमेह को नियंत्रित करने की वैश्विक चुनौती
Updated: November 13, 2024
विश्व मधुमेह दिवस- 14 नवम्बर, 2024-ललित गर्ग- डायबिटीज यानी मधुमेह दुनियाभर में तेजी से बढ़ती ऐसी बीमारी है जो अन्य अनेक बीमारियों एवं शरीर की…
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बाल प्रज्ञान: बालमन का सुन्दर विश्लेषण
Updated: November 13, 2024
सन् 1989 में हरियाणा में जन्मे डॉ. सत्यवान सौरभ बालसाहित्य के एक सुपरिचित हस्ताक्षर हैं। साहित्यकार, पत्रकार और अनुवादक डॉ. सत्यवान सौरभ ने बच्चों के…
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भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज का रहा है विशेष योगदान
Updated: November 13, 2024
15 नवम्बर: भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिवस एवं जनजातीय गौरव दिवस पर लेख मां भारती को अंग्रेजी शासनकाल की दासता की यन्त्रणा से मुक्त कराने हेतु जनजातीय समाज ने अंग्रेजों को नाको चने चबवा दिए थे। दरअसल, जनजातीय समाज चूंकि बहुत घने जंगलों में निवास करता था अतः वह अंग्रेजों की पकड़ से कुछ दूर ही रहा, हालांकि समय समय पर अंग्रेजी शासन को परेशान करने में सफल जरूर रहा। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कई प्रकार के आंदोलन जनजातीय समाज द्वारा चलाए गए थे। इन आंदोलनों को चलाने में आदिवासीयों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है, इन आदिवासी समुदायों में तामार, सन्थाल, खासी, भील, मिजो और कोल विशेष रूप से शामिल रहे हैं। भारत में इतिहास को बहुत तोड़ मरोड़कर लिखा गया है। वर्तमान भारतीय इतिहास का अधय्यन करने पर ध्यान में आता है कि भारत के इतिहास को केवल लगभग 800 वर्षों के मुगल शासकों के इर्द गिर्द समेट दिया गया है और भारत में मुगल शासकों का कालखंड जैसे स्वर्णकाल रहा है तथा भारत के इतिहास में इस कालखंड को विशेष स्थान दिया गया है। मुगल शासकों के पश्चात भारत में अंग्रेजी शासनकाल के दौरान जनजातीय समाज द्वारा मां भारती को स्वतंत्रता दिलाने के दिए गए महान योगदान का तो भारत के वर्तमान इतिहास में कहीं वर्णन ही नहीं मिलता है। जनजातीय समाज के कई युवा योद्धा जिन्होंने अंग्रेजों के क्रूर शासन के विरुद्ध युद्ध का बिगुल बजाने में सफलता हासिल की थी, की सूची पर यदि ध्यान दें, तो इस सूची में हम मुख्य रूप से शामिल पाएंगे भगवान बिरसा मुंडा, शहीद वीर नारायण सिंह, श्री अल्लूरी सीताराम राजू, रानी गौडिल्यू और सिद्धू एवं कान्हूं मुर्मू को। भगवान बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 को हुआ था, आप मुंडा जनजाति के सदस्य थे एवं आपने 19वीं शताब्दी के अंत में आधुनिक झारखंड एवं बिहार के आदिवासी क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के दौरान एक भारतीय आदिवासी धार्मिक सहस्त्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया था। बिरसा मुंडा ने भारत की आजादी में अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने शोषक ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी। भगवान बिरसा मुंडा की तरह ही देश के अन्य राज्यों में भी जनजातीय समाज के कई रणबांकुरों द्वारा अपने प्राणों की आहुति देकर भारत को अंग्रेजों के क्रूर शासन से मुक्त कराने में अपना योगदान दिया गया था। भगवान बिरसा मुंडा को “धरती आबा” भी कहा जाता है। इसी प्रकार, शहीद वीर नारायण सिंह को छत्तीसगढ़ में सोनाखान का गौरव माना जाता है, आपने वर्ष 1856 के अकाल के बाद व्यापारियों के अनाज के गोदामों को लूटकर गरीब नागरिकों के बीच बांट दिया था। आपके बलिदान ने आपको आदिवासी नेता बना दिया एवं आप 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ के पहले शहीद बने थे। श्री अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897 को आन्ध्रप्रदेश में भीमावरम के पास मोगल्लु गांव में हुआ था। श्री अल्लूरी को अंग्रेजों के खिलाफ “रम्पा विद्रोह” का नेतृत्व करने के लिए सबसे अधिक याद किया जाता है, जिसमें आपने विशाखापत्तनम और पूर्वी गोदावरी जिलों के आदिवासी नागरिकों को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए संगठित किया था। आपका अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन उस खंडकाल में बंगाल के क्रांतिकारियों से प्रेरणा प्राप्त करता था। रानी गौडिल्यू नागा समुदाय की आध्यात्मिक एवं राजनैतिक नेता थीं। आपने भारत में अंग्रेजी शासनकाल के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। केवल 13 वर्ष की आयु में आप अपने चचेरे भाई हाईपौ जादोनांग के हेराका धार्मिक आंदोलन में शामिल हो गईं थी। आपके लिए नागा लोगों की स्वतंत्रता के लिए भारत के व्यापक आंदोलन का हिस्सा थीं। आपने मणिपुर क्षेत्र में गांधी जी के संदेश का प्रचार प्रसार भी किया था। 30 जून 1855 को 1857 के विद्रोह से दो वर्ष पूर्व दो सन्थाल भाईयों सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने 10,000 संथालों को एकत्रित किया एवं अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की घोषणा कर दी थी। आपके साथ एकत्रित हुए समस्त आदिवासियों ने अंग्रेजों को अपनी मातृभूमि से भगाने की शपथ ली थी। मुर्मू भाईयों की बहनों, फूलो एवं झानो, ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में सक्रिय भूमिका निभाई थी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों ने देश को स्वतंत्रता दिलाने में अतुलनीय योगदान करने वाले रणबांकुरों के योगदान को न केवल पहचाना है बल्कि इस योगदान को भारतीय नागरिकों के बीच रखने के प्रयास भी किया है। वर्ष 2021 में स्वतंत्रता दिवस के 75वें समारोह के उपलक्ष में केंद्र सरकार द्वारा बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मानित करने हेतु “15 नवम्बर” को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाए जाने का निर्णय लिया गया था। इसके बाद से प्रत्येक वर्ष 15 नवम्बर के दिन को सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण और राष्ट्रीय गौरव, वीरता एवं आतिथ्य के भारतीय मूल्यों को बढ़ावा देने में आदिवासियों के प्रयासों को मान्यता देने हेतु भारत में “जनजातीय गौरव दिवस” का आयोजन किया जा रहा है। 15 नवम्बर को ही बिरसा मुंडा की जयंती भी रहती है, जिन्हें भारत में जनजातीय समाज में भगवान के रूप में सम्मानित किया जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समाज के योगदान को याद करते हुए अगस्त 2016 में दिल्ली के लाल किले से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आह्वान पर, रांची स्थित 150 वर्षों से अधिक पुरानी विरासत इमारत को केंद्र एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय के रूप में संरक्षित एवं पुनः स्थापित किया गया है। यह इमारत पहले एक जेल के रूप में इस्तेमाल हो चुकी है, जहां भगवान बिरसा मुंडा को कैद किया गया था। 25 एकड़ में फैले इस संग्रहालय में कई पर्यटक आकर्षण हैं, जिनमें अंडमान जेल की तर्ज पर मनमोहक लाइट और साउंड शो का आयोजन किया जाता है तथा भगवान बिरसा मुंडा के जन्म से मृत्यु तक के जीवन के विभिन्न चरणों को दिखाने वाली तीन दीर्घाओं (चलचित्र कक्ष) में लगभग 20 मिनट की एक आडियो विजुअल फिल्म दिखाई जाती है। संग्रहालय के बाहरी लॉन में उलीहातू गांव को फिर से बनाया गया है। संग्रहालय में भगवान बिरसा मुंडा की 25 फीट की मूर्ति भी है। इसके साथ ही, संग्रहालय में विभिन्न आंदोलनों से जुड़े अन्य स्वतंत्रता सेनानियों जैसे शहीद बुधू भगत, सिद्धू-कान्हू, नीलाम्बर-पीताम्बर, दिवा-किसुन, तेलंगा खाड़िया, गया मुंडा, जात्रा भगत, पोटो एच, भागीरथ मांझी, गंगा नारायण सिंह की नौ फीट की मूर्तियां भी शामिल हैं। बगल के 25 एकड़ रकबे में स्मृति उद्यान को विकसित किया गया है और इसमें संगीतमय फव्वारा, फूड कोर्ट, चिल्ड्रन पार्क, इन्फिनिटी पूल, उद्यान और अन्य मनोरंजन सुविधाएं मौजूद हैं। इस संग्रहालय का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा 15 जवंबर 2021 को पहिले जनजातीय गौरव दिवस के शुभ अवसर पर किया गया था। इसी प्रकार, आज केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा विशेष रूप से जनजातीय समाज के हितार्थ आर्थिक क्षेत्र, शिक्षा के क्षेत्र, चिकित्सा के क्षेत्र, आदि में कई प्रकार की योजनाएं पूरे देश में चलाई जा रही हैं। प्रहलाद सबनानी
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सरना धर्म कोड से सुलगती सियासत कहीं स्वाहा न कर दे हिन्दू सोच को, ऐसी क्षुद्र सियासत से सचेत हो जाइए
Updated: November 12, 2024
कमलेश पांडेय आखिर हिंदुओं की मुख्यधारा से पहले सिख, फिर बौद्ध और जैन को तोड़ने के बाद अब जिस तरह से सरना की आड़ में…
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गंगा का मैल सख्ती व जवाबदेही से ही दूर होगा
Updated: November 12, 2024
-ललित गर्ग-गंगा की सफाई, उसे प्रदूषण मुक्त करने एवं नदियों के माध्यम से आर्थिक विकास, धार्मिक आस्था एवं पर्यटन की संभावनाओं को तलाशने की दृष्टि…
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कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाती नमो ड्रोन दीदी योजना
Updated: November 12, 2024
नमो ड्रोन दीदी योजना, पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान क्षेत्रों में ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने का एक अग्रणी प्रयास है। यह पहल महिलाओं को प्रशिक्षण…
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बाकू सम्मेलन अमीर देशों की उदासीनता दूर कर पायेगा
Updated: November 12, 2024
-ललित गर्ग –संयुक्त राष्ट्र का दो सप्ताह का जलवायु सम्मेलन कॉप-29 सोमवार से अजरबैजान की राजधानी बाकू में शुरू हो गया है। पर्यावरण से जुड़े…
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स्वदेशी एवं वैश्वीकरण के बीच सामंजस्य चाहते थे श्रीदत्तोपंतजी ठेंगड़ी
Updated: November 11, 2024
युगदृष्टा एवं राष्ट्रऋषि श्रीदत्तोपंत ठेंगड़ी के जन्मदिवस (10 नवम्बर) श्री दत्तोपंत जी ठेंगड़ी का जन्म 10 नवम्बर, 1920 को, दीपावली के दिन, महाराष्ट्र के वर्धा जिले के आर्वी नामक ग्राम में हुआ था। श्री दत्तोपंत जी के पित्ताजी श्री बापूराव दाजीबा ठेंगड़ी, सुप्रसिद्ध अधिवक्ता थे, तथा माताजी, श्रीमती जानकी देवी, गंभीर आध्यात्मिक अभिरूची से सम्पन्न थी। उन्होंने बचपन में ही अपनी नेतृत्व क्षमता का आभास करा दिया था क्योंकि मात्र 15 वर्ष की अल्पायु में ही, आप आर्वी तालुका की ‘वानर सेना’ के अध्यक्ष बने तथा अगले वर्ष, म्यूनिसिपल हाई स्कूल आर्वी के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गये थे। आपने बाल्यकाल से ही अपने आप को संघ के साथ जोड़ लिया था और आपने अपने एक सहपाठी और मुख्य शिक्षक श्री मोरोपंत जी पिंगले के सानिध्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ शिक्षा वर्गों का तृतीय वर्ष तक का प्रशिक्षण कार्य पूर्ण कर लिया। आपके वर्ष 1936 से नागपुर में अध्यनरत रहने तथा श्री मोरोपंत जी से मित्रता के कारण आपको परम पूजनीय डॉक्टर जी को प्रत्यक्ष देखने एवं सुनने का अनेक बार सौभाग्य प्राप्त हुआ और आगे चलकर आपको परम पूजनीय श्री गुरूजी का भी अगाध स्नेह और सतत मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। दिनांक 22 मार्च 1942 को संघ के प्रचारक का चुनौती भरा दायित्व स्वीकार कर आप सुदूर केरल प्रान्त में संघ का विस्तार करने के लिए कालीकट पहुंच गए थे। श्री दत्तोपंत जी बचपन में ही संघ के साथ जुड़ गए थे अतः आपके व्यक्तित्व में राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से झलकती थी। आपके व्यक्तित्व का चित्रण करते हुए श्री भानुप्रताप शुक्ल जी लिखते हैं कि “रहन–सहन की सरलता, अध्ययन की व्यापकता, चिन्तन की गहराई, ध्येय के प्रति समर्पण, लक्ष्य की स्पष्टता, साधना का सातत्य और कार्य की सफलता का विश्वास, श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी का व्यक्तित्व रूपायित करते हैं।” चूंकि श्री दत्तोपंत जी मजदूर क्षेत्र से सम्बंधित रहे थे अतः आपको वर्ष 1969 में भारत के एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य के रूप में रूस एवं हंगरी जाने का मौका मिला। यह यात्रा आपके लिए साम्यवाद के वास्तविक स्वरूप का बारीकी से अध्ययन करने का एक अच्छा अवसर साबित हुई। इस यात्रा के बाद आपने अनुभव किया कि साम्यवादी विचारधारा में खोखलापन है एवं यह कई अन्तर्विरोधों से घिरी हुई है। हालांकि उस समय दुनिया के कई देशों में साम्यवाद अपनी बुलंदियों को छू रहा था, परंतु श्री दत्तोपंत जी ने उसी समय पर बहुत आत्मविश्वास के साथ कहा था कि आगे आने वाले समय में साम्यवाद अपने अन्तर्विरोधों के कारण स्वतः ही समाप्त हो जाएगा इसके लिए किसी को किसी प्रकार के प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। आज परिणाम हम सभी के सामने है। इसी प्रकार आपकी आर्थिक दृष्टि भी बहुत स्पष्ट थी। आर्थिक क्षेत्र के संदर्भ में साम्यवाद एवं पूंजीवाद दोनों ही विचारधाराएं भौतिकवादी हैं और इन दोनों ही विचारधाराओं में आज तक श्रम एवं पूंजी के बीच सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाया है। इस प्रकार, श्रम एवं पूंजी के बीच की इस लड़ाई ने विभिन्न देशों में श्रमिकों का तो नुकसान किया ही है साथ ही विभिन्न देशों में विकास की गति को भी बाधित किया है। आज पश्चिमी देशों में उपभोक्तावाद के धरातल पर टिकी पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं पर भी स्पष्टतः खतरा मंडरा रहा है। 20वीं सदी में साम्यवाद के धराशायी होने के बाद एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि साम्यवाद का हल पूंजीवाद में खोज लिया गया है। परंतु, पूंजीवाद भी एक दिवास्वप्न ही साबित हुआ है और कुछ समय से तो पूंजीवाद में छिपी अर्थ सम्बंधी कमियां धरातल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगी है। पूंजीवाद के कट्टर पैरोकार भी आज मानने लगे हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था के दिन अब कुछ ही वर्षों तक के लिए सीमित हो गए हैं और चूंकि साम्यवाद तो पहिले ही पूरे विश्व में समाप्त हो चुका है अतः अब अर्थव्यवस्था सम्बंधी एक नई प्रणाली की तलाश की जा रही है जो पूंजीवाद का स्थान ले सके। वैसे भी, तीसरी दुनियां के देशों में तो अभी तक पूंजीवाद सफल रूप में स्थापित भी नहीं हो पाया है। धरातल पर अर्थ के क्षेत्र में हम आज जो उक्त वास्तविकता देख रहे हैं, यह श्री दत्तोपंत जी की दृष्टि ने अपने जीवनकाल में बहुत पहिले ही देख ली थी। इसी कारण से आपने निम्न तीन विषयों पर डंकेल प्रस्तावों का गहराई से अध्ययन करने के पश्चात इनका न केवल डटकर विरोध किया था बल्कि आपने इसके विरुद्ध देश में एक सफल जन आंदोलन भी खड़ा किया। आपका स्पष्ट मत था कि बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का व्यापार, निवेश सम्बन्धी उपक्रमों का व्यापार एवं कृषि पर करार सबंधित डंकेल प्रस्ताव भविष्य में विकासशील देशों के लिए गुलामी का दस्तावेज साबित होंगे क्योंकि यह विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के लिए आर्थिक साम्राज्यवाद ला सकते हैं एवं इससे विकासशील देशों की संप्रभुता संकट में पड़ जाएगी। दरअसल वर्ष 1980 से ही श्री दत्तोपंत जी ने विकसित देशों के साम्राज्यवादी षड्यंत्रों से भारत को आगाह करना प्रारम्भ किया था। आपका स्पष्ट मत था कि विश्व बैंक, अर्न्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष एवं इसी प्रकार की अन्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के माध्यम से विकसित देशों द्वारा विकासशील एवं अविकसित देशों का शोषण किया जा सकता है क्योंकि इस प्रकार के संस्थानों पर विकसित देशों का पूर्ण कब्जा रहता है। श्री दत्तोपंत जी का उक्त चिंतन भी सत्य होता दिखाई दे रहा है क्योंकि अभी हाल ही में चीन द्वारा श्रीलंका, पाकिस्तान एवं अन्य कई देशों को ऋण के जाल में फंसाकर इन देशों के सामरिक महत्व वाले बंदरगाहों आदि पर कब्जा करने का प्रयास किया गया है। इन्ही कारणों के चलते श्री दत्तोपंत जी ने आर्थिक क्षेत्र में साम्यवाद एवं पूंजीवाद के स्थान पर राष्ट्रीयता से ओतप्रोत एक तीसरे मॉडल का सुझाव दिया था। साम्यवाद और पूंजीवाद दोनों विचारधाराओं को, भौतिकवादी विचार दर्शन पर आधारित होने के चलते, आपने अस्वीकार कर दिया था एवं आपने हिन्दू विचार दर्शन के आधार पर “थर्ड वे” का रास्ता सुझाया। अर्थात, हिन्दू जीवन मूल्यों के आधार पर ही आर्थिक व्यवस्था के लिए तीसरा रास्ता निकाला था। पाश्चात्य आर्थिक प्रणाली भारतीय परम्पराओं के मानकों पर खरी नहीं उतरती है। भारत में तो हिंदू अर्थव्यवस्था ही सफल हो सकती है। आप अपने उद्भोधनों में कहते थे कि कि समावेशी और वांछनीय प्रगति और विकास के लिए एकात्म दृष्टिकोण बहुत जरूरी है। वर्तमान में दुनियाभर में उपभोक्तावाद जिस आक्रामकता से बढ़ रहा है, उससे आर्थिक असमानता चरम पर है। इसके समाधान के लिए आपने हिंदू जीवन शैली और स्वदेशी को विकल्प बताया। आपका मत था कि हमें अपनी संस्कृति, वर्तमान आवश्यकताओं और भविष्य के लिए आकांक्षाओं के आलोक में प्रगति और विकास के अपने माडल की कल्पना करनी चाहिए। विकास का कोई भी विकल्प जो समाज के सांस्कृतिक मूल को ध्यान में रखते हुए नहीं बनाया गया हो, वह समाज के लिए लाभप्रद नहीं होगा। श्री दत्तोपंत जी ने ‘स्वदेशी’ को देशभक्ति की व्यावहारिक अभिव्यक्ति के रूप में परिभाषित किया था। यह ‘स्वदेशी’ की एक बहुत ही आकर्षक और सभी के लिए स्वीकार्य परिभाषा है जो राष्ट्रीयता की भावना और कार्य की इच्छा को सामने लाती है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया था कि देशभक्ति का अर्थ दूसरे देशों की ओर से मुंह मोड़ना नहीं है बल्कि एकात्म मानव दर्शन के सिद्धांत का पालन करना है। हम समानता और आपसी सम्मान के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए हमेशा तैयार हैं।उन्होंने लिखा था कि “यह पूर्वाग्रह रखना गलत है कि ‘स्वदेशी’ केवल वस्तुओं या सेवाओं से संबंधित है बल्कि इसके उससे भी अधिक प्रासंगिक पहलू है। मूलतः यह राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्रता के संरक्षण, और समान स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने के लिए निर्धारित भावना से संबंधित है…। ‘स्वदेशी’ केवल भौतिक वस्तुओं तक ही सीमित आर्थिक मामला नहीं है बल्कि राष्ट्रीय जीवन के सभी आयामों को अंगीकृत करने वाली व्यापक विचारधारा है। हर समाज की अपनी संस्कृति होती है और हर देश की प्रगति और विकास के माडल का उस देश के सांस्कृतिक मूल्यों के साथ तारतम्य होना चाहिए। आधुनिक बनने का मतलब पश्चिमीकरण नहीं है। आधुनिकीकरण के क्रम में राष्ट्रीय पहचानों को समाप्त करने की कोशिशों का विरोध करते हैं। इसी प्रकार, श्री दत्तोपंत जी ने वैश्वीकरण के सम्बंध में अपने स्पष्ट विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि वास्तविक वैश्वीकरण हिंदू विरासत का एक अभिन्न अंग है। प्राचीन काल से ही हम सदैव अपने आप को पूरी मानवता का अभिन्न अंग मानते रहे हैं। हमने कभी भी अपने लिए एक अलग पहचान बनाने की चिंता नहीं की। हमने सम्पूर्ण मनुष्य जाति से अपनी पहचान जोड़ी है। ‘पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है’ अर्थात ‘वसुधैव कुटुंबकम’ हमारा आदर्श वाक्य रहा है।… लेकिन अब भूमिकाएं उलट गई हैं। वैश्वीकरण का ज्ञान हमें उन लोगों द्वारा दिया जा रहा है जो अपने साम्राज्यवादी शोषण और यहां तक कि नरसंहार के इतिहास के लिए जाने जाते हैं। शैतान बाइबल का संदर्भ दे रहे हैं। आधिपत्य वैश्वीकरण के रूप में अपनी शोभा यात्रा निकाल रहे है! आपने वैश्वीकरण की आड़ में साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा विकासशील एवं छोटे छोटे अविकसित देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के प्रयासों का पुरजोर विरोध किया था एवं स्वदेशी एवं वैश्वीकरण के बीच सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया था। प्रहलाद सबनानी
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