मनोरंजन ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा

‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा

– लोकेंद्र सिंह (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।) स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन फिल्म बनाई है। सच…

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समाज रीति रिवाजों के नाम पर लैंगिक भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ समाज

रीति रिवाजों के नाम पर लैंगिक भेदभाव से मुक्त नहीं हुआ समाज

महिमा जोशीउत्तराखंड हमारे समाज में अक्सर ऐसे कई रीति रिवाज देखने को मिलते हैं जिससे लैंगिक भेदभाव स्पष्ट रूप से नज़र आता है. लड़का और लड़की…

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राजनीति क्या कारण है कांग्रेस की मंद होती रोशनी के

क्या कारण है कांग्रेस की मंद होती रोशनी के

-ललित गर्ग- देश की सबसे पुरानी एवं मजबूत कांग्रेस पार्टी बिखर चुकी है, पार्टी के कद्दावर, निष्ठाशील एवं मजबूत जमीनी नेता पार्टी छोड़कर अपनी सबसे…

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महत्वपूर्ण लेख स्वदेशी के महत्व को बताता है छत्रपति का जीवन

स्वदेशी के महत्व को बताता है छत्रपति का जीवन

छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर विशेष – लोकेन्द्र सिंह छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन मास (अमावस्यांत) कृष्ण पक्ष तृतीया / चैत्र (पूर्णिमांत) कृष्ण पक्ष…

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व्यंग्य “महिमा अमित न जाई बखानी”

“महिमा अमित न जाई बखानी”

 चाय की दुकान पर सिगरेट का कश फूंकते हुये इतवार का अखबार मैंने इस उम्मीद में खोला कि अगर मेरा व्यंग्य छप गया होगा तो…

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राजनीति नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर राजनैतिक हंगामा

नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर राजनैतिक हंगामा

– डा॰ कुलदीप चन्द अग्निहोत्री भारत की संसद ने 1947 में हुए भारत विभाजन के कष्टकारी नतीजों को ध्यान में रखते हुए 2019 में अपने…

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कविता मैं उम्र की उस दहलीज पर हूँ

मैं उम्र की उस दहलीज पर हूँ

—विनय कुमार विनायकमैं उम्र की उस दहलीज पर हूँजब चाह नहीं होती है नई दोस्ती करने कीकिसी अमीर ओहदेदार के पास सटकर बैठने कीकिसी पद…

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राजनीति श्रीअयोध्याधाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराममंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

श्रीअयोध्याधाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराममंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।     सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया गया है। इस भव्य मंदिर को त्रिभुवन का मंदिर भी कहा जा रहा है। तमिलनाडु के एक बड़े अधिकारी, जो कला के जानकार हैं, का तो यह भी कहना है कि इस प्रकार की नक्काशी से सज्जित मंदिर शायद पिछले 1000 वर्षों में तो बनता हुआ नहीं दिखाई दिया है। इस मंदिर में प्रभु श्रीराम के विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा के समय लगभग समस्त समाज के लोग पूजा सम्पन्न कराने के उद्देश्य से बिठाए गए थे। पूजा सम्पन्न कराने के लिए माननीय पंडितों को देश के लगभग समस्त राज्यों से लाया गया था। देश में लगभग 150 संत महात्माओं की परम्पराएं हैं जैसे गुरु परम्परा, दार्शनिक परम्परा आदि। ऐसी समस्त परम्पराओं के संत महात्माओं की भागीदारी प्राण प्रतिष्ठा समारोह में रही। साथ ही, सामाजिक जीवन के कई क्षेत्रों के प्रमुख नागरिकों की भी इस समारोह में भागीदारी रही, जैसे खेल, साहित्य, लेख, कला, मीडिया, प्रशासन, आदि। कुल 18 श्रेणियों के नागरिकों को इस समारोह में भाग लेने हेतु आमंत्रित किया गया था। जिन लगभग 4000 श्रमिकों ने इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था उनमें से 600 श्रमिकों, इंजीनीयरों एवं सुपर्वायजर आदि की भी इस कार्यक्रम में भागीदारी करवाई गई। 22 जनवरी 2024 के पवित्र दिन श्रीअयोध्या धाम के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 60 चार्टर हवाई जहाज आए थे। कुल मिलाकर व्यवस्थाएं इतनी अच्छी थीं कि किसी भी नागरिक को श्री अयोध्या धाम में प्रवेश करने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं हुई थी। मंदिर परिसर में भी समस्त नागरिकों को अपनत्व लगा था। ऐसा लगा कि स्वर्ग में पहुंच गए हैं एवं मंदिर परिसर में दैवीय अनुभूति हुई। आज भारत एवं अन्य देशों से लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रभु श्रीरामलला के दर्शन हेतु श्री अयोध्या धाम प्रतिदिन पहुंच रहे हैं। दिनांक 15 से 17 मार्च 2024 को नागपुर में सम्पन्न हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में प्रभु श्रीराम मंदिर के निर्माण पर एक प्रस्ताव पास किया गया है। इस प्रस्ताव में यह कहा गया है कि भारत में सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने “स्व” को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। अब जब प्रभु श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है अतः अब भारत के समस्त नागरिकों के संदर्भ में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का यह सुविचरित मत है कि सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले, इससे राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य सार्थक होगा। प्रभु श्रीराम के जीवन में परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही प्रभु श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी। इसी दृष्टि से, अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा समस्त भारतीयों का आह्वान करती है कि बंधुत्व भाव से युक्त, कर्तव्य निष्ठ, मूल्य आधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करने वाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्व कल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा। यदि भारतीय समाज एक होगा तो भारत को पुनः एक बार विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में आसानी होगी।  श्री अयोध्या धाम में नव निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने न केवल भारतीय समाज को एक किया है बल्कि इससे भारत की आर्थिक प्रगति में चार चांद लग रहे हैं। देश में धार्मिक पर्यटन की जैसे बाढ़ ही आ गई है। न केवल भारतीय नागरिक बल्कि अन्य देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग भी प्रभु श्री राम के दर्शन करने हेतु श्री अयोध्या धाम पहुंच रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के लाखों नए अवसर विकसित हो रहे हैं। भारतीय समाज में एकरसता आने से भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्यौहारों को भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जा रहा है जिससे आपस में भाईचारा बढ़ता दिखाई दे रहा है। यदि मां भारती को विश्व गुरु बनाना है तो भारत में निवास कर रहे समस्त नागरिकों में एकजुटता स्थापित करनी ही होगी। भारत में मजबूत राजनैतिक स्थिति, मजबूत लोकतंत्र, मजबूत सामाजिक स्थिति, मजबूत सांस्कृतिक धरोहर होने के चलते विश्व के अन्य देशों का  भारतीय सनातन संस्कृति पर विश्वास बढ़ रहा है जिसे भारत के वैश्विक स्तर पर पुनरुत्थान के रूप में देखा जा सकता है।    राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी भी अपने एक उदबोधन में कहते हैं कि राम राज्य के सामान्य नागरिकों का जो वर्णन शास्त्रों में मिलता है, उसी का आचरण आज हमें करना चाहिए क्योंकि हम भी इस गौरवमय भारतवर्ष की संताने हैं। आज हमें राम राज्य के समय नागरिकों द्वारा किए जाने वाले आचरण को अपनाने हेतु तप करना पड़ेगा, हमको समस्त प्रकार के कलह को विदाई देनी पड़ेगी। समाज में आपस में अलग अलग मत हो सकते हैं, छोटे छोटे विवाद हो सकते हैं, इन्हें लेकर आपस में लड़ाई करने की आदत छोड़ देनी पड़ेगी। राम राज्य के समय नागरिकों में अहंकार नहीं हुआ करता था वे बगैर अहंकार के आपस में मिलजुलकर काम करते थे। श्रीमद् भागवत में बताया गया है कि जिन चार मूल्यों की चौखट पर धर्म का निवास रहता है, वे चार मूल्य हैं – सत्य, करुणा, सुचिता और तपस। राम राज्य में इन मूल्यों का अनुपालन नागरिकों द्वारा किया जाता था।   श्री भागवत जी आगे कहते हैं कि आज की परिस्थितियों के बीच नागरिकों द्वारा आपस में समन्वय रखकर व्यवहार करना यह धर्म का ही प्रथम पायदान है। दूसरा कदम माना जाता है धर्म का आचरण अर्थात सेवा और परोपकार करना। केंद्र सरकार एवं अन्य कई राज्य सरकारों द्वारा चलाई जा रही कई योजनाएं गरीबों को राहत दे रही है। आज इस संदर्भ में सब कुछ हो रहा है लेकिन भारत के नागरिक होने के नाते हमारा भी तो कुछ कर्तव्य है। इस समाज में जहां दुःख दिखाई दे, पीड़ा दिखाई दे, वहां हम दौड़ कर सेवा करने पहुंचे, यह सभी हमारे अपने बंधू ही तो हैं। हमारे शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि दोनों हाथों से कमाएं जरूर, परंतु अपने लिए न्यूनतम आवश्यक राशि रखकर शेष सारा पैसा सेवा और परोपकार के माध्यम से समाज को वापिस कर दें। सुचेता पर चलना यानी पवित्रता होनी चाहिए और पवित्रता के लिए संयम होना चाहिए। लोभ नहीं करना, संयम में रहना और शासन द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना, अपने जीवन में अनुशासित रहना, अपने कुटुंब को अनुशासन में रखना, अपने समाज में अनुशासन में रहना तथा सामाजिक जीवन में नागरिक अनुशासन का पालन करना आदि कुछ ऐसे नियम हैं जिनके अनुपालन से भारत को वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दिलाई जा सकती है।

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राजनीति चुनाव में भाषा का संयम एवं वचनों की मर्यादा जरूरी

चुनाव में भाषा का संयम एवं वचनों की मर्यादा जरूरी

 ललित गर्ग  लोकसभा चुनावों जैसे-जैसे नजदीक आते जा रहे हैं, कई नेताओं की ज़ुबान फिसलती जा रही है, वे राजनीति से इतर नेताओं…

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पर्व - त्यौहार होली पर्व सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है 

होली पर्व सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है 

होली पर्व सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है  होली पर्व भारत में धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाने वाला प्राचीन पर्व है। होली पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली पर्व भारत में परंपरागत रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूजा की होली मनाई जाती है। इस दिन होलिका दहन होता है। इस दिन गोबर के उपलों या लकड़ियों से भारत में जगह-जगह होली रखी जाती है। सभी लोग प्राचीन परंपराओं के अनुसार होली को पूजते हैं, और रात में होलिका दहन होता है। जलती हुई होली के चारों और लोग परिक्रमा करते हैं और अपने लिये और अपनों के लिए मनौतियां मांगते हैं। उत्तर भारत में होलिका दहन के दिन जलती हुई होली में गेहूं की बाल को भूनकर खाने की परम्परा है। होली के दूसरे दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपद़ा को धुलेंडी यानी कि खेलने वाली होली मनाई जाती है। धुलेंडी के दिन लोग एक दूसरे को सुबह उठकर गुलाल लगाने जाते हैं। इस दिन छोटे अपने बड़ों से गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, और पारम्परिक रूप से होली मनाते हैं। इस दिन घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। धुलेंडी के दिन भारत देश के गली मोहल्लों में ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और नाच-कूद किये जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि होली के दिन लोग अपने गले-शिकवे और आपसी कटुता भूल कर एक दूसरे से गले मिलते हैं और पुनः दोस्त बन जाते हैं। रंगों से होली खेलने और नाचने-गाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग नहा-धोकर थोड़ा विश्राम करने के पश्चात् नए कपडे पहनकर सांझ में एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। लोग अपनी कटुता भुलाकर गले मिलते हैं और एक दूसरे को होली पर पारम्परिक रूप से बनायी जाने वाली गुजिया और अन्य मिठाइयां खिलाते हैं। अगर ब्रज की बात की जाए तो ब्रज में होली पर्व की शुरुआत वसंत पंचमी के दिन से हो जाती है। वसंत पंचमी के दिन ब्रज के सभी मंदिरों और चैक-चैराहों पर होलिका दहन के स्थान पर होली का प्रतीक एक लकड़ी का टुकड़ा गाड़ दिया जाता है और लगातार 45 दिनों तक ब्रज के सभी प्राचीन मंदिरों में प्रतिदिन होली के प्राचीन गीत गए जाते हैं। ब्रज की महारानी राधा जी के गांव बरसाने में होली से आठ दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन लड्डू मार होली से इस प्राचीन पर्व की शुरुआत होती है। इसके बाद फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन से लठमार होली की शुरुआत होती है जो कि होली का त्यौहार खत्म होने तक लगातार चलती है।  पूरे विश्व भर में मशहूर बरसाना की लठमार होली में (हुरियारिनें) महिलाएं पुरुषों (हुरियारों) के पीछे अपनी लाठी लेकर भागती हैं और लाठी से मारती हैं। हुरियारे खुद को ढाल से बचाते हैं। इस लठमार होली को दुनियाभर से लोग देखने को आते हैं। यह होली राधा रानी के गाँव बरसाने और श्रीकृष्ण जी के गांव नंदगांव के लोगों के बीच में होती है। बरसाने और नंदगांव गांवों के बीच लठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है।   होली पर्व पूरे देश में परंपरा, हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला त्यौहार है। होली पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली पर्व हमारे देश में उपस्थित बहुसांस्कृतिक समाज के जीवंत रंगों का प्रतीक है। होली पर्व देश में हमारी संस्कृति और सभ्यता के मूल सहिष्णुता और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देने वाला पर्व है। इस पर्व को सभी लोगों को शांति, सौहार्द और भाईचारे की भावना से मनाना चाहिए। देश के सभी नागरिकों को इस दिन साम्प्रदायिक भावना से ऊपर उठकर अपने गले-शिकवे और कटुता का परित्याग कर बहुलवाद की भावना से अपने आप को रंगना चाहिये, जिससे कि देश में शांति, सौहार्द, समृद्धि और खुशहाली कायम हो सके। 

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होली दिलों से जुड़ी प्रेरक भावनाओं का पर्व

-ललित गर्ग –होली एक ऐसा त्योहार है, जिसका धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक-आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। बदलती युग-सोच एवं जीवनशैली से होली त्यौहार…

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लेख हिंदी साहित्य में होली के रंग

हिंदी साहित्य में होली के रंग

-डॉ. सौरभ मालवीय होली कवियों का प्रिय त्योहार है। यह त्योहार उस समय आता है जब चारों दिशाओं में प्रकृति अपने सौन्दर्य के चरम पर…

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