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राहुल गांधी के आपरेशन उत्तर प्रदेश की शुरूआत हुई महिलाओं के अपमान से

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

राहुल गांधी ने अपना ऑपरेशन उत्तर प्रदेश, भट्टा-पारसौल से प्रारंभ किया है। भट्टा-पारसौल में सरकार द्वारा अपनी जमीन के अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों पर भीषण अत्याचार किए। गोलीवारी में कुछ लोग मारे भी गए। दरअसल, जब से वैश्विकरण की बिमारी भारतीय पूंजीवाद में घुसी है तब से केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों ने किसानों की भूमि का अधिग्रहण करके उसे निजी कंपनियों को सप्लाई करना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि निजी कंपनियां इस पूरे चक्कर में खुद भी मालामाल हो रही है और किसानों की जमीन का अधिग्रहण करके जो लोग यह जमीन निजी कंपनियों को सप्लाई कर रहे हैं वे भी मालामाल हो रहे हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि किसानों की जमीनों का जबरदस्ती अधिग्रहण सरकारें कानून के नाम पर कर रही है। इस हमाम में सभी नंगे हैं। कोई किसी को दोष नहीं दे सकता। केंद्र सरकार भी निजी कंपनियों के दलाल के रूप में कार्य कर रही है और राज्य सरकारें भी। इसलिए एक चोर दूसरे को चोर कह रहा है ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है।

उत्तर प्रदेश में यह कांड भट्टा-पारसौल में हुआ है, कॉमरेडों ने यही किस्सा नंदीग्राम और सिंगुर में कर दिखाया था। हरियाणा में सोनियां कांग्रेस के आंखों के तारे भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रोहतक और महम में यह जलवा कर दिखाया था। और जहां तक सोनियां कांग्रेस का प्रश्न है उसकी हुंडी तो सारे देश में ही चल रही है। इस सबके बावजूद इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भट्टा-पारसौल में हुई घटना का विरोध करने का और दुःख की इस घड़ी में किसानों के पास जाने का राहूल गांधी को पुरा अधिकार है। लेकिन राहुल गांधी ने क्योंकि कभी जमीनी आंदोलन में शिरकत नहीं की। जैसा कि एक मंत्री ने कहा भी कि उन्हें शायद भैंस और गाय का फर्क भी न मालूम हो। भैस और गाय का क्या फर्क होता है यह तो राहुल गांधी किताबों से भी समझ सकते हैं लेकिन गांव का जीवन कैसा होता है और किसान का दर्द क्या होता है? इसे समझने के लिए न तो राहुल के पास समय है और न ही जरूरत। यह भी कहा जा सकता है कि न ही इसकी समझ। शायद यही कारण था कि राहुल गांधी भट्टा-पारसौल में किसानों के जख्मों पर मरहम लगाने गए थे लेकिन उनका अपमान करके वापस लौटे। गांव में कुछ घंटे बिताने के बाद दिल्ली में आकर उन्होंने भट्टा-पारसौल की किसान महिलाओं का अपने ढंग से अपमान करने का अभियान छेड़ दिया। उन्होंने कहा कि गांव की महिलाओं के साथ पुलिसवालों ने बलात्कार किया है। भट्टा-पारसौल की महिलाएं इससे आहत ही नहीं हुई बल्कि अपमानित भी। राहुल गांधी ने एक ही झटके से उस गांव की महिलाओं को शेष समाज के आगे संदिग्ध बना दिया। राहुल शायद नहीं जानते कि शहर और गांव में बहुत बड़ा फर्क होता है। शहरों में इस प्रकार की राजनीतिक गप्पें चल जाती है क्योंकि शहरों का विस्तार भी बड़ा होता है और जनसंख्या भी बहुत ज्यादा। लोग भी एक दूसरे को नहीं जानते। यदि राहुल गांधी ऐसी बात किसी शहर के बारे में कहते तो शायद उसपर कुछ लोग विश्वास भी कर लेते। परंतु दुर्भाग्य से छोटे गांवों में सभी एक दूसरे से परिचित होते हैं और गांव में क्या हो रहा है? यह सभी जानते हैं। भट्टा-पारसौल की महिलाओं का कहना है कि पुलिस ने मार-पिटाई तो की लेकिन बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई। पर अब राहुल गांधी तो कोई छोटे-मोटे व्यक्ति तो है नही। सोनियां कांग्रेस के महासचिव हैं और दिग्विजय सिंह से लेकर मनीष तिवारी तक बरास्ता मनमोहन सिंह जल्दी हीं इस देश के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। इसलिए जब राहुल गांधी कह रहे हैं कि भट्टा-पारसौल की महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ है तो झुठ कैसे हो सकता है? हर हालत में हुआ ही है। खतरा यह भी बढ़ता जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में सोनियां का झंडा उठाये घुम रही रीता बहुगुणा जोशी, जो पहले भी बलात्कार और वैश्या जैसे विषयों पर अपनी एक्सपर्ट राय दे चुकी हैं, भट्टा-पारसौल की महिलाओं से बलात्कार के मामले को लेकर अड़ियल रवैया न अपना लें। भट्टा-पारसौल में राहुल गांधी की महिलाओं को अपमानित करने वाली इस हरक त से गुस्सा बढ़ता जा रहा है और उधर सोनिया क ांग्रेस के सैनिकों को अपने सेनापति राहुल गांधी के हर बयान की हर हालत में सुरक्षा करना हीं है। जब तक सुरज चांद रहेगा-राहुल गांधी का यह बयान कायम रहेगा।

लेकिन राहुल गांधी भट्टा-पारसौल में केवल महिलाओं के बलात्कार तक ही सीमित नहीं रहे उन्होंने चलते-चलते यह भी जड़ दिया की पुलिस ने गांव के 74 किसानों की हत्या करके उनकी लाशों को आग लगाकर जला दिया। राहुल गांधी का कहना है कि इन किसानों की जी हुई हडि्डयों का ढेर उन्होंने स्वयं देखा। अब गांव के किसान खुद हीं हैरान हैं क्योंकि गांव के 74 किसान उन्हीं के गांव में जला दिए जाएं और उन्हें पता तक न चले यह कैसे संभव हो सकता है? गांव में किसानों की संख्या लाखों में नहीं होती, कुछ हजार ही होती है और उसमें 74 किसान गायब हो जाएं और किसी को पता न चले यह संभव नहीं हो सकता। लेकिन दुर्भाग्य से राहुल गांधी ने गांव के बारे में न कभी सुना है और न हीं उन्हें कभी देखा है। यह तो अच्छा हुआ कि जल्दी से उनके मुख से 74 ही निकला, वे यदि 100 या 200 भी कह देते तो कोई उनका क्या बिगाड़ सकता था?

यह किस्सा यहीं खत्म नहीं हुआ। वे कुछ किसानों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास भी पहुंच गए। उन्हें भी भट्टा-पारसौल की महिलाओं के साथ बलात्कार और 74 किसानों की हत्या की कहानियां सुनाने लगे। स्वाभाविक हीं गांव वापस जाने पर इन किसानों से गांव वालों ने पुछा कि जब राहुल गांधी गांव की महिलाओं के साथ बलात्कार की अफवाहें फैलाकर गांव को बदनाम कर रहे थे तो आप चुप क्यों थे? तो राहुल गांधी के साथ प्रधानमंत्री को मिलने गई एक महिला ने कहा-राहुल बबुआ अंग्रेजी में बतिया रहे थे। हमें क्या पता ऐसे अंट-संट बोल रहे हैं? नहीं तो क्या हम चुप रहते? राहुल गांधी किसानों की लड़ाई लड़ें इसमें किसी को ऐतराज नहीं हो सकता लेकिन वे गांव की महिलाओं को कम से कम बदनाम तो न करें।

राष्ट्र को समर्पित व्यक्तित्व : श्री गुरूजी

मृत्युंजय दीक्षित

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर जिन्हें सब प्रेम से श्री गुरूजी कहकर पुकारते हैं ऐसे महान व्यक्तित्व का जन्म 19 फरवरी, 1906 को नागपुर में अपने मामा के घर पर हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि0मी0 दूर रामटेक में अध्यापक थे। माधव बचपन से ही मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएं सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। वे अपनी कक्षा मे हर प्रश्न का उत्तर देते थे अतः उन पर उत्तर देने के लिए तब तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया जब तक कि कक्षा का कोई अन्य छात्र उन प्रश्नों का उत्तर न दे दे। वे अपने पाठयक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी खूब पढ़ते थे। अध्ययन के अतिरिक्त उन्हें हॉकी, टेनिस, सितार एवं बांसुरी वादन भी अत्यंत प्रिय थे। उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका संपर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा जाने लगे। जब डा. हेडगेवार काशी आये तो उनसे वार्तालाप में माधव का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। कुछ समय काशी में रहकर वे नागपुर लौट आये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की।इसी समय उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहां उन्होंने स्वामी अखण्डानंद जी से दीक्षा ली और तत्पश्चात पूरी शक्ति से संघ कार्य में जुट गये। पूरे देश में उनका प्रवास होने लग गया। उनकी योग्यता को देखकर डा. हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया। 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरूजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति प्रदान करने के लिए पूरी शक्ति लगा दी। गुरूजी ने संघ को अखिल भारतीय सुदृढ़ अनुशासित संगठन का रूप दिया। पूरे देश में संघ कार्य बढ़ने लगा। परम पूज्य श्री गुरूजी को अपने जीवन में संघ कार्य के विरूध्द दुष्प्रचार का शिकार होना पड़ा। 1947 में देश विभाजन हुआ और 1948 में गांधी जी की हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया और श्री गुरूजी को जेल में डाल दिया गया। आक्षेप को भी श्री गुरूजी ने झेला लेकिन वे विचलित नहीं हुए जो भी जहर उगला गया उसे कण्ठ में धारण कर पीते गये और वे अमृत वर्षा करते गये। श्री गुरूजी का अध्ययन व चिंतन इतना सर्वश्रेष्ठ था कि वे देश भर के युवाओं के लिए ही प्रेरक पुंज नहीं बने अपितु पूरे राष्ट्र के प्रेरक पुंज व दिशा निर्देशक हो गये थे। वे युवाओं को ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करते रहते थे। वे विदेशों में ज्ञान प्राप्त करने वाले युवाओं से कहा करते थे कि युवकों को विदेशों में वह ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिसका स्वदेश में विकास नहीें हुआ है। वह ज्ञान सम्पादन कर उन्हें शीघ्र स्वदेश लौट आना चाहिए। वे कहा करते थे कि युवा शक्ति अपनी क्षमता का एक एक क्षण दांव पर लगाती हैं। अतः मैं आग्रह करता हूं कि स्वयं प्रसिध्दि संपत्ति एवं अधिकार की अभिलाषा देश की वेदी पर न्योछावर कर दें। वे युवाओं से अपनी पढ़ाई की ओर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा करते थे। वे युवाओं को विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण न करने के लिए भी प्रेरित करते थे। श्री गुरूजी को प्रारम्भ से ही आध्यात्मिक स्वभाव होने के कारण सन्तों के श्री चरणों में बैठना, ध्यान लगाना, प्रभु स्मरण करना ,संस्कृत व अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करने में उनकी गहरी रूचि थी। उनका धर्मग्रन्थों एवं विराट हिन्दूु दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था जिसे उन्होंने सहर्ष अस्वीकार कर दिया। श्री गुरूजी को अनेकों आध्यात्मिक विभूतियों का प्यार व सानिघ्य प्राप्त था। श्री गुरूजी का राष्ट्रजीवन में भी अप्रतिम योगदान था। संघ कार्य करते हुए वे निरंतर राष्ट्रचिंतन किया करते थे। जब कभी भारत की एकता, अखण्डता की बात होगी तब-तब गुरूजी की राष्ट्रजीवन में किये गये योगदान की चर्चा अवश्य होगी। चाहे स्वतंत्रता के बाद कश्मीर विलय हो या फिर अन्य कोई महत्वपूर्ण प्रकरण। श्री गुरूजी को राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा की भारी चिंता लगी रहती थी। उनके अनुसार भारत कर्मभूमि, धर्मभूमि और पुण्यभूमि है। यहां का जीवन विश्व के लिए आदर्श है। भारत राज्य नहीं राष्ट्र है। राष्ट्र्र बनाया नहीं गया अपितु यह तो सनातन राष्ट्र है। श्री गुरूजी द्वारा प्रदत्त महान विचार पुंज तेजस्वी भारत राष्ट्र की परिकल्पना की सृष्टि करता है। श्री गुरूजी की आध्यात्मिक शक्ति इतनी प्रबल थी कि ध्यान इत्यादि के माध्यम से उन्हें आने वाले संकटों का आभास भी हो जाता था। श्री गुरूजी निरंतर राष्ट्र श्रध्दा के प्रतीकों का मान, रक्षण करते रहे। वे सदैव देशहित में स्वदेशी चेतना स्वदेशी व्रत स्वदेशी जीवन पध्दति, भारतीय वेशभूषा तथा सुसंस्कार की भावना का समाज के समक्ष प्रकटीकरण करते रहे। वे अंग्रेजी तिथि के स्थान पर हिंदी तिथि के प्रयोग को स्वदेशीकरण का आवश्यक अंग मानते थे। गौरक्षा के प्रति चिंतित व क्रियाशील रहते थे। श्री गुरूजी की प्रेरणा से ही गोरक्षा का आंदोलन संघ ने प्रारम्भ किया। विश्व भर के हिंदुओं को संगठित करने के उददेश्य से विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की गयी। विद्या भारती के नेतृत्व में अनेकानेक शिक्षण संस्थाओं का श्री गणेश हुआ। उनकी प्रेरणा से सम्भवतः सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ऐसा ही कोई क्षेत्र छूटा हो जहां संघ के आनुषांगिक संगठनों का प्रादुर्भाव न हुआ हो। श्रीगुरूजी अपने उदबोधनों में प्रायः यह कहा करते थे कि यदि देश के मात्र तीन प्रतिशत लोग भी समर्पित होकर देश की सेवा करें तो देश की बहुत सी समस्यायें स्वतः समाप्त हो जायेंगी। श्री गुरूजी ने लगभग 33 वर्षों तक संघ कार्य किया और पूरे देश भर में फैला दिया उनकी ख्याति पूरे देश में ही नहीं अपितु विश्व में भी फैल चुकी थी। 1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गये। शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ पर पूरी तरह नहीं। इसके बाद भी वे प्रवास करते रहे । अपने समस्त कार्यों का सम्पादन करते हुएश्री गुरूजी ने 5 जून, 1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

हृदयघात और योग

हरिकृष्‍ण निगम

आज यह सर्वविदित है कि लगभग 20 प्रतिशत हृदयघात के उदाहरण हमारे देश में उन लोगों को हो रहे हैं जिनकी आयु 40 वर्ष से कम है। एक सर्वेक्षण में यह अनुमान भी लगाया गया है की जीवन शैली में आमूल-चूल बदलाव के कारण शीघ्र ही वह समय आ सकता है जब अपनी आयु के 30वें वर्ष के बाद ही यह संभावना यथार्थ बन जाएगी। नई खोजों से यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि आज के युवा वर्ग द्वारा तनाव से युक्त होने के लिए दिन प्रतिदिन जिन दवाओं को उपयोग में लाया जा रहा है वह उनकी रूधिर शिराओं को इतना कड़ा बना देता है जहां हृदयघात की संभावना बढ़ जाती है।

वहीं कान्सास स्थित एक अमेरिकी अस्पताल की शोध रिपोर्ट के अनुसार प्रयोगों ने सिध्द कर दिया है कि योग क्रियाओं के द्वारा हृदयघात के अनियमित स्पंदन के प्रकरणों को घटाया जा सकता है। कान्सास विद्यालय के व्याख्याता डॉ. धनंजय लक्कीरेड्डी ने हाल के प्रकशित अध्ययन में प्रयोगों द्वारा सिध्द किया है कि उंचे रक्तचाप और कोलेस्टेरॉल स्तरों के आधे से अधिक कम करने का अचूक योग में हीं है। अध्ययन के अनुसार आट्रियल फिब्रीलेशन, जो अधिक आयु के लोगों में दिल का दौरा पड़ने का मूलकारण है, उसे योग से नियंत्रित किया जा सकता है। तनावमुक्त, मानसिक शांति द्वारा जो मनोस्थिति पैदा की जा सकती है वह इस संभावित खतरे से जुझने की पहली सीढ़ी है। संयमित जीवन और ध्यान पध्दति के केंद्रीभूत करने से आज के जीवन की गलाकाट प्रतिद्वंद्विता, जटिलता तथा अवांछनीय कोलाहल में फंसे लोगों को राह दिखाई जा सकती। अब परिचय में भी इस अनूठे मनोचिकित्सीय सत्रों को हृदयरोग से जुझने की पहली सीढ़ी माना जा रहा है।

ओबामा के सलाहकार ने चेताया अलकायदा पाकिस्तान को हाइजैक कर सकता है

लालकृष्ण आडवाणी

इस वर्ष के फरवरी मास में एम.जे. अकबर ने हारपर कॉलिन्स इण्डिया द्वारा प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘टिंडरबॉक्स‘ लोकार्पित की थी। इसका उप-शीर्षक था ‘दि पास्ट एण्ड फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान‘। मैंने इस पुस्तक को उत्तम पुस्तक निरुपित किया था। इसकी प्रस्तावना में अकबर लिखते हैं:

पिछले सप्ताह एक मित्र ने हारपर कॉलिन्स इण्डिया द्वारा पाकिस्तान पर एक और उत्तम पुस्तक मुझे भेंट दी, लेकिन यह एक अमेरिकी लेखक द्वारा लिखी गई है। लेखक हैं ब्रुश राइडेल, जो सीआईए के पूर्व अधिकारी हैं और चार अमेरिकी राष्ट्रपतियों के मध्य-पूर्व तथा दक्षिण एशियाई मामलों पर सलाहकार भी रहे हैं। राष्ट्रपति ओबामा की तरफ से राइडेल ने व्हाईट हाउस के लिए अफगानिस्तान और पाकिस्तान संबंधी नीति की समीक्षा के लिए एजेंसियों की बैठक की अध्यक्षता भी की जो मार्च 2009 में पूरी हुई। इस पुस्तक का शीर्षक है डेडली एम्बरेस (Deadly Embrace) और यह सन् 2011 में भारत में प्रकाशित हुई है और इसका उप-शीर्षक है पाकिस्तान, अमेरिका और वैश्विक जिहाद का भविष्य (Pakistan, America and the Future of the Global Jihad) ”

इस पुस्तक के एक अध्याय में राइडेल पाठकों को व्हाईट हाउस में भूतल के एक कमरे के बारे में बताते हैं जिसे ‘मैप रुप‘ कहा जाता है। इसका यह नाम द्वितीय विश्व युध्द के समय राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डिलानो रुजवेल्ट द्वारा युध्द के समय फासीवाद से लड़ाई के विरुध्द नक्शों की मॉनिटरिंग करने के चलते पड़ा। लेखक लिखते हैं: नाम अभी भी चल रहा है, और रुजवेल्ट का एक नक्शा भी कक्ष में है।

अब, हमें बताया गया है कि ‘मैप रुम‘ का उपयोग अक्सर राष्ट्रपति अथवा प्रथम महिला द्वारा महत्वपूर्ण बैठकों के लिए किया जाता है। यह भवन के सर्वाधिक ऐतिहासिक कक्षों में से एक के भीतर होने की अंतरंगता के साथ-साथ पर्याप्त निजता भी उपलब्ध कराता है।‘ राइडेल स्मरण करते हैं कि मई, 1998 की शुरुआत में प्रथम महिला हिलेरी क्लिंटन, इस ‘मैप रुम‘ में बेनजीर भुट्टो के साथ निजी बातचीत और चाय के लिए मिलीं। ब्रुश राइडेल को इसमें आमंत्रित किया गया था।

बाद में जो पाकिस्तान में घट रहा है और जो महत्वपूर्ण है जिसे लेखक ने उस दिन के बेनजीर के वार्तालाप का सर्वाधिक ध्यानाकर्षित करने वाला हिस्सा वर्णित किया है।

बेनजीर ने पाकिस्तान में उग्रवाद के बारे में बताया और इसकी शुरुआत के लिए जिया को दोषी ठहराया तथा आईएसआई को इसका पोषण करने के लिए। उन्होंने कहा ओसमा बिन लादेन जैसे उग्रवादी उन्हें मारने पर आमदा है और आईएसआई के भीतर से उन्हें शक्तिशाली संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने वर्णन किया:

”आतंकवादियों को सर्वाधिक डर यह है कि मेरे जैसी महिला राजनीतिक नेता पाकिस्तान में आधुनिकता लाने के लिए लड़ रही है।”

राइडेल लिखते हैं कि बेनजीर भुट्टो का मानना था कि दिसम्बर, 2007 तक अलकायदा ‘दो या चार वर्षों में इस्लामाबाद में मार्च‘ कर रहा हो सकता है।

यह अपशकुनी शब्द मैंने कराची के मेहरान नौसैनिक अड्डे पर तालिबानी हमले के एक दिन पहले पढ़े जिसमें दो ओरियन विमान नष्ट हो गए तथा दस पाकिस्तानी जवान मारे गए।

कुछ समय पूर्व तक, सुरक्षा विशेषज्ञों ने पाकिस्तान को लेकर सर्वाधिक बुरी आशंकाएं (1998 में राइडेल ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के लिए एक नोट ‘पाकिस्तान : दि मोस्ट डेंजरयस कण्ट्री इन दि वर्ल्ड‘ शीर्षक से लिखा था) यह व्यक्त की गई थीं कि उस देश में सक्रिय कोई भी आतंकी संगठन, या तालिबान, या अलकायदा पाकिस्तान द्वारा बनाए गए परमाणु हथियारों पर कब्जा कर किसी अन्य आतंकवादी संगठन की तुलना में ज्यादा खतरनाक बन जाएगा।

लेकिन बु्रश राइडेल की पुस्तक द्वारा प्रस्तुत किया गया दृश्य कहीं ज्यादा भयावह है। वास्तव में, बेनजीर द्वारा प्रकट की गई आशंकाओं को पढ़कर तथा मेहरान हमले की जानकारी मिलने के बाद मेरी तत्काल प्रतिक्रिया थी ‘डेडली एम्बरेस‘ के भारतीय संस्करण की प्रस्तावना के पन्नों को पलटना और राइडेल ने इसके बारे में हमें जो सावधान किया है, उसे मैं, ब्लॉग के अपने पाठकों के साथ बांटना चाहूंगा। वह लिखते हैं :

”अलकायदा ने पाकिस्तान को अपनी उच्च प्राथमिकता पर रखा है, इसके नेता पाकिस्तान को ऐसा सर्वाधिक अनुकूल इस्लामी देश मानते हैं जिसे हाइजैक किया जा सकता है। यह पहले से ही उनका सुरक्षित अड्डा बना हुआ है। उन्होंने समान विचारों वाले पाकिस्तानी तालिबान और लश्करे-तोयबा जैसे जिहादी संगठनाें से हाथ मिलाया हुआ है जो उन्हें समर्थन और उनके काम में सहयोग कर अलकायदा के लिए अनेक बाहुशक्ति बन रहे हैं…….

एक दशक के भीतर या दशक में पाकिस्तान इण्डोनेशिया की तुलना में भी सर्वाधिक बड़ा मुस्लिम देश होगा। इससे पूर्व ही यह दुनिया का पांचवां सर्वाधिक बड़ा परमाणु हथियारों के जखीरे वाला देश बन चुका होगा। पाकिस्तान में, दुनिया के जिहाद को बदलने की संभावनाएं हैं जितनी कि किसी अन्य देश में नहीं है। जैसाकि दुनिया के जिहाद की ताकतों ने पाकिस्तान को डरा दिया है, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच का घातक मिलन और घातक होगा।”

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मैं जानता हूं कि प्रधानमंत्री इथोपिया के लिए जा चुके हैं। अत: जब मुझे – भारतीय, अमेरिकी और बी.बी.सी. जैसे चैनलों से मेहरान हमले की भयावहता की रिपोटें मिलीं तो मैंने श्री प्रणव मुखर्जी, श्री ए.के.एंटोनी और श्री शिवशंकर मेनन (मुझे बताया गया कि वह प्रधानमंत्री के साथ गए हैं)से सम्पर्क साधा और कराची की घटनाओं को गंभीरता से लेने का आग्रह किया। मैंने उन्हें कहा कि पाकिस्तान में स्थिति अत्यन्त चिंताजनक है। यह खतरा असली बन रहा है कि अल-कायदा और तालिबान मिलकर पाकिस्तान का नियंत्रण अपने हाथों में ले लेंगे और इसे एक जिहादी देश के रुप में परिवर्तित कर देंगे।

जिस अध्याय में बेनजीर भुट्टो को उद्दृत किया गया है, उसमें राइडेल सावधान करते हैं :

”पाकिस्तान में जिहादी जीत का अर्थ होगा सेना के उग्रवादी गुट या तालिबान के नेतृत्व वाले उग्रवादी सुन्नी इस्लामिक आदोलन द्वारा एक राष्ट्र को हथिया लेना, के नतीजे न केवल पाकिस्तान अपितु दक्षिण एशिया, वृहद मध्य – पूर्व, यूरोप, चीन और अमेरिका-एक शब्द में कहा जाए तो समूची दुनिया के लिए घातक हाेंगे। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए अमेरिका के विकल्प सीमित और मंहगे पड़ेंगे । यद्यपि यह भयावह परिदृश्य न तो सन्निकट और न ही अपरिहार्य है, अपितु यह एक सच्ची संभावना है जिसका आंकलन करने की जरुरत है।”

कराची के नौसैनिक हवाई अड्डे पर हमले से समाचारपत्राें तथा टेलीविजन चैनलों में स्वाभाविक रुप से यह चर्चा छिड़ गई है कि पाकिस्तान के महत्वपूर्ण अड्डे विशेषकर इसके परमाणु संयंत्र कितने सुरक्षित हैं।

इस सम्बन्ध में भारतीय मीडिया में सर्वाधिक अच्छा आलेख दि टेलीग्राफ के वाशिंगटन संवाददाता के.पी.नायर ने लिखा है:

नायर के लेख के शुरुआती तीन पैराग्राफ महत्वपूर्ण और स्तब्ध कर देने वाले है: वे निम्न हैं:

कराची के नौसैनिक वायु अड्डे पर दुस्साहसी हमले ने उस भुला दिए गये दावे को फिर से स्मरण करा दिया है जो वेस्ट प्वाइंट जर्नल में किया गया था कि पाकिस्तान के परमाणु संयंत्रो को आतंकवादियों द्वारा तीन बार लक्षित किया गया था। दो वर्ष पूर्व किए गये इस दावे में उन हमलों की विशेष तिथियां, स्थान व अन्य विवरण थे। ऐसा पहला हमला 1 नवम्बर, 2007 को सरगोधा में परमाणु प्रक्षेपास्त्र भण्डारण सुविधा केन्द्र पर हुआ, दूसरा 10 दिसम्बर, 2007 को कामरा के पाकिस्तानी परमाणु हवाई अड्डे पर जबकि तीसरा और ज्यादा गंभीर हमला हुआ जब उग्रवादियों ने 20 अगस्त , 2008 को वाह के कैंटोनमेंट क्षेत्र में शस्त्रागार परिसर के प्रवेश द्वारों को उड़ा दिया था जहां के बारे में पहले से माना जाता है कि यह पाकिस्तानी परमाणु बमों का सम्मिलन केन्द्र है।

यह एक ऐसा दावा है जो वस्तुत: उस भयावह स्थिति को दर्शाता है जिसे काफी पहले कुछ मुल्लाओं द्वारा बताया गया था-तालिबान के मोहम्म्द ओमर जैसों के हाथ इस्लामाबाद की परमाणु संपदा तक पहुंचना। तब भी, 2009 में हम विस्तृत दावों – एक ऐसी पत्रिका में किए गए जो सर्वाधिक विशेषीकृत है और इसलिए इसकी पाठक संख्या भी सीमित है- ने थोड़ा चौंकाया क्योंकि ये अधिकतर नजर में ही नहीं आए। पत्रिका का नाम सीटीसी सेंटीनल है। सीटीसी से तात्पर्य है ‘कॉम्बेटिंग टैरोरिज्म सेंटर एट बैस्ट प्वाइंट।‘

लेकिन यही विशेष कारण है इस दावे को अत्यन्त गंभीरता से लेने का कि मेहरान नौसैनिक हवाई अड्डे की सुरक्षा परिधि को भेद दिया गया। ‘वेस्ट प्वाइंट‘ दुनिया की सर्वाधिक प्रसिध्द सैन्य अकादमियों में से एक है। इसकी सर्वोत्तामता का सर्वाधिक अच्छा उदाहरण इस लोकप्रिय वाक्य में है जो ‘वेस्ट प्वाइंट‘ में सुनाया जाता है कि ”हम जो अधिकतर इतिहास पढ़ाते हैं वह उन लोगों द्वारा बनाया जाता है जिन्हें हम सिखाते हैं।”

समाचार पत्रों पर हावी होती राजनीतिक पत्रकारिता

भारत सेन

भारतीय विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता और जनसंचार के पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले ज्यादातर छात्रों की बुनियादी शिक्षा कला संकाय की होने के कारण राजनीतिक पत्रकार तैयार हो रहे हैं। पत्रकारिता के क्षेत्र में चिकित्सा, इंजिनियरिंग, वाणिज्य, कृषि, विज्ञान और विधि के छात्रों को जोडऩे की दिशा में सकारात्मक कदम उठाया जाना अभी बाकी हैं। पत्रकारिता में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने वाले छात्रों को चिकित्सा, इंजिनियरिंग, वाणिज्य, कृषि, विज्ञान, ग्रामीण विकास, लोक प्रशासन और विधि में विशेषज्ञता की उपाधि प्रदान करने एवं इन्ही शाखाओं में पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने की व्यवस्था भारतीय विश्वविद्यालयों में नहीं हैं। इसका असर भारतीय समाचार पत्रों में स्पष्ट रूप से दिखता हैं। राष्ट्रीय, प्रादेशिक, जिला, तहसील, विकास खण्ड और ग्रामीण स्तर के राजनीतिक समाचारों से समाचर पत्र भरे पड़े रहते हैं। समाचर पत्र के अंतिम पृष्ठ तक राजनीतिक समाचारों का प्रतिशत ज्यादा होता हैं और शेष अन्य समाचारों का बहुत कम। राजनीति प्रथम और राजनेता प्रथम पृष्ठ पर होते हैं। भ्रष्टाचार के आरोप पर जेल भेजे जाने वाले राजनेता भी समाचार पत्र के पृथम पृष्ठ पर होते हैं। कारागार में उनकी सुख सुविधाए समाचार पत्र के समाचार बनते रहते हैं। भारतीय जनमानस पर इसका प्रभाव पड़ा हैं। आम आदमी अपने नेता और अभिनेता दोनो का ही अनुकरण करते हैं। आम आदमी को लगता हैं कि भ्रष्टाचार, अपराध, जातीवाद, क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता यही जीवन का प्रमुख आधार हैं। इस भ्रष्ट जीवन शैली को आम आदमी अपनाता चला जा रहा हैं। राजनीति में नेता करोडपति बन रहे हैं तो सरपंच और सचिव भी पीछे नही हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों ने राजनीतिक पत्रकार बड़ी संख्या में दिए हैं जिन्होने राजनीति और राजनेता को महत्वपूर्ण बना दिया हैं। समाचर पत्रों मे राजनीतिक पत्रकारों ने यह साबित कर दिया हैं कि राजनीति से बढ़कर कुछ भी नही हैं। राजनीतिक पत्रकारिता ने कानून और न्याय, प्रशासन, विकास, समाज और आर्थिक न्याय सभी कुछ को बौना साबित कर दिया हैं।

भारतीय जनमानस को प्रभावित करने वाले समाचार पत्रों ने राजनीतिक पत्रकारिता के जरिये बड़ी ताकत प्राप्त कर ली हैं। नवसमाचार पत्रों के शुभारंभ पर सत्तासीन राजनेताओं की भरमार देखी जा सकती हैं। समाचार पत्र राजनीतिक दलों को साधते भी हैं। राजनेताओं की छवी भी बनाते हैं। सरकार गिरा सकने का भय दिखाकर भरपूर दोहन भी करते हैं। राजनीतिक पत्रकारिता ने पत्रकारों को भस्मासुर बना दिया हैं। समाचार पत्र मालिको के अपने कई कारोबार होते हैं। समाचार पत्र साप्ताहिक हो या पाक्षिक हो या फिर दैनिक अखबार मालिकों का दूसरा कारोबार बढ़ाने में मद्दगार होता हैं। शासन और सत्ता तक पहुँच बनाने का जरिया बन जाने के बाद तो समाचार पत्र मालिक दिन दुगनी और रात चौगुनी तरक्की करता हैं। अखबार मालिक कम समय में करोड़पति से अरबपति बन जाते हैं। समाचार पत्र मालिकों पर कभी आयकर, विक्रयकर तो कभी प्रवर्तन निदेशालय के छापे पड़ते हुए सुने भी नही गए हैं। अखबार मालिकों को आय से अधिक सम्पत्ति के मामलों मे जेलजाते हुए कभी सुना और देखा नही गया हैं। इसके ठीक विपरीत अखबार मालिक को एक के बाद दूसरा अखबार अन्य भाषाओं में अन्य राज्यों शुरू करते हुए देखा और सुना जरूर गया हैं। यह सतसंग का लाभ हैं। हमारे वेदो पुराणों और शास्त्रों में भी यही लिखा हैं कि सत्संग का लाभ तो मिलता ही हैं और यह लाभ स्वर्ग के सुख से भी बढ़कर हैं।

भारत में औद्योगिक घरानों की तर्ज पर समाचार पत्र समूह बन गए हैं। इन व्यापारियों के समूह के अपने अपने कारोबार हैं जिन्हे समाचार पत्र के पाठक तक नही जानते हैं। पाठक तो केवल विज्ञापन देखता हैं और समाचार पत्र पढ़ता हैं। समाचार पत्र की संख्या समाचार पत्र की सबसे बड़ी ताकत हैं। यह ताकत विज्ञापन जगत से ज्यादा राजनीति में महत्व रखती हैं। मसलन एक व्यक्ति एक वोट राजनीतिक समानता हैं। हर व्यक्ति की आर्थिक परिस्थिति वोट की संख्या को प्रभावित करती हैं। एक आम आदमी का वोट और बाबा रामदेव के पास भी उसका अपना एक वोट राजनीतिक समानता हैं। आम आदमी के पीछे उसका अपना एक मात्र वोट हैं लेकिन बाबा रामदेव के वोट के पीछे हजारों और लाखों निर्णायक वोट हैं। बाबा रामदेव किसी उद्योगपति की तरह ही एक आर्थिक शक्ति हैं। यही स्थिति समाचार पत्र मालिकों की हैं वे भी बड़ी संख्या में जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। इस स्थिति का वे चुनाव के दौरान पूरा दोहन करते हैं। भारत चुनाव आयोग चुनाव के दौरान समाचार पत्र की नकेल कभी कस नही सका हैं? इसका परिणाम आम जनता को भोगना पड़ता हैं। वकील और समाजसेवी चुनाव हार जाते हैं और अपराधी पार्टी के टिकिट पर चुनाव जीत जाते हैं।

समाचार पत्रों में पिछले कुछ समय से देश के समाज सेवकों ने आर्थिक न्याय की बात करना शुरू कर दिया हैं। भारत आर्थिक विषमता का शिकार हैं। भारत में आर्थिक असमानता पहले भी थी और आज भी हैं। प्राचीन धर्म ग्रंथों में दान का महत्व और अपरिग्रह का सुझाव बताता हैं कि भगवान बुद्ध और महावीर के काल की सामाजिक और आर्थिक दशा भला क्या रही होगी? बुद्ध, महावीर जैसी प्रतिभा ने आर्थिक विकास के सूत्र भारत की गरीब जनता को नहीं दिया। भारत में केवल हिन्दू वर्ण व्यवस्था थी और बहुसंख्यक समाज के पास आर्थिक चिंतन या कोई अर्थशास्त्र नहीं था। अगर होता तो आज हम विश्व की प्रमुख आर्थिक शक्ति जरूर होते। बुद्ध और महावीर के समय पत्रकारिता नही होती थी और पत्रकार नहीं थें। इसलिए उस काल के बारे में हमारी जानकारी बहुत सीमित हैं। पत्रकारिता आज के युग की बिलकुल नई चीज हैं। पत्रकारिता को क्रांति का पर्याय समझना कोई गलती नही होगी। पत्रकारिता से सबकुछ किया जा सकता हैं। दो देशों के बीच युद्ध भी करवाए जा कसते हैं तो विश्व में शांति की स्थापना भी संभव हैं। भारत में अब गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक विकास की बात की जा रही हैं। हमारे कुछ महापुरूष भ्रष्टाचार और विदेशी बैंको में जमा काला धन जो करीब बीस लाख करोड़ रूपए का हैं को भारत की बदहाली, गरीबी का प्रमुख कारण बता रहे हैं। भारत कोई गरीब देश नही हैं। भारत की समृद्धि काले धन के रूप में दफन हैं जिसे बाहर लाना होगा। भारत में काला धन वापस लाकर आम आदमी की रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार की समस्या का समाधान किया जा सकता हैं। हमारे विश्वविद्यालयों ने आर्थिक पत्रकार तैयार तो नही करे हैं जो गरबी, बेरोजगारी, महँगाई और ग्रामीण विकास जैसे आर्थिक विषयों पर पत्रकारिता करके जनमत तैयार कर पाते। इसलिए यह काम हमारे समाज सेवकों को करना पड़ा और देश की सबसे बड़ी अदालत अपनी न्यायिक शक्ति के जरिए आथर््िाक न्याय की जिम्मेदारी को पूरा कर रही हैं। समाचार पत्र के पाठकों को समझना होगा कि विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र पढ़ाया जरूर जाता हैं लेकिन यह विषय आज भी पत्रकारिता से बहुत दूर हैं। आर्थिक मसलों पर जितनी अधिक पत्रकारिता होगी हमारी व्यवस्था में उतना ही सुधार होगा। बिना आर्थिक पत्रकारिता के हम गरीबी और बेरोजगारी को कभी इस देश से मिटा नही पाऐंगे और भ्रष्टाचार को कभी समाप्त नही कर पाऐंगें। आथर््िाक पत्रकारिता के अभाव में हम भ्रष्टाचार से होने वाले नुक्सान का आंकलन तक नही कर पाते हैं। भारत, कुछ लोगो के लिए सोने की चिडिय़ा था, कुछ लोगों के लिए आज भी हैं। भारत की आम जनता को एक एैसा अर्थशास्त्र चाहिए जिसमें उसमें उसकी आर्थिक समस्या का समाधान हो।

भारत की जनता के खिलाफ समाचार पत्र कही कोई षडयंत्र तो नही करता हैं। राजनेता, नौकरशाह और अपराध का गठजोड़ की बात तो सुनी थी, कही इस गठजोड़ में सबसे बड़े समाचार पत्र समूह शामिल तो नही हैं। इस गंभीर आरोप को सीरे से नकारा तो नही जा सकता हैं। समाचार पत्र के पाठक इसकी स्वयं भी पड़ताल कर सकते हैं। समाचार पत्र कुछ समाचारों को दबाते हैं तो कुछ को बड़ी खबर बना देते हैं। जनता के बीच में आधा सच ही पेश किया जाता हैं। आधा सच, झूठ से ज्यादा खतरनाक होता हैं। इसका मतलब झूठ बोलने से जो नुक्सान होता हैं उससे ज्यादा नुक्सान आधा सच बोलने से होता हैं। हमारे समाचार पत्र पाठको को क्या पूरा सच बताते हैं? समाचार पत्रों मालिकों की नीति लाभ कमाने वाली होती हैं और अपने लाभ के लिए वे सब कुछ करते रहे हैं। समाचार पत्र संगठन खड़ा ही इस तरह से किया जाता हैं जिसमें विधिक, लोकप्रशासन इत्यादि विषयों के पत्रकार कभी न रहें। आम आदमी के सामने समस्याएँ तो पेश होती हैं लेकिन समाधान गायब रहते हैं। लोक तंत्र में विधिक पत्रकारिता और लोकप्रशासन का सबसे ज्यादा महत्व हैं लेकिन समाचार पत्र संगठन में इन विषयों के पत्रकार कभी नही मिलेगें। समाचार पत्र का ब्यूरो चीफ कानून और न्याय का जानकार अधिवक्ता नही होगा लेकिन राजनीति विषय का जानकार जरूर होगा। पत्रकारिता के स्वरूप का असर हमारी व्यवस्था पर पड़ता हैं। अखबार मालिक कह सकते हैं कि हम जनता की रूची पर चलते हैं, जनता जो पसंद करती हैं हम वही प्रकाशित करते हैं। लेकिन यह कहना गलत हैं। आज से कुछ सौ साल पहले तक हमने मोटर कार या रेल गाड़ी के बारे में सोचा और देखा भी नही होगा। लेकिन मोटर कार और रेलगाड़ी को जनता के बीच में लाया गया और जनता कार खरीदने लगी और रेल मे यात्रा होने लगी। लोक तंत्र में असली ताकत जनता के हाथ में हैं तो समाचार पत्र की असली ताकत पाठकों के हाथ में हैं। समाचार पत्र के पाठक संगठित होकर फोरम बना सकते हैं या फिर समाचार पत्र, सम्पादक को अपनी पसंद बार बार अपनी प्राथमिकता जाहिर करके परिवर्तन ला सकतें हैं? समाचार पत्र को नकार भी सकते हैं। समाचार पत्र, पाठको से बंधे हैं या फिर पाठक समाचार पत्र से बंधे हैं। इस तथ्य को समाचार पत्र पाठकों को समझाना होगा। भारतीय विश्वविद्यालयों को पत्रकारिता एवं जनसंचार के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन लाकर समाचार जगत को विशिष्ट पत्रकार उपलब्ध करवाना होगा

वर्ग संघर्ष के नाम पर नारी देह का शोषण

शोषण से पूरी तरह मुक्त समाज के सुनहरे सपने दिखाने वाले माओवादी अपने साथ के कार्य कर रहे महिलाओं के साथ यौन उत्पीडन हैं , इस बारे में बीच बीच में समाचार आते रहते हैं । देश के किसी भी हिस्से में किसी महिला माओवादी जब आत्मसमर्पण करती है तो आत्मसमर्पण करने के कारणों के बारे में बताते समय वह निश्चित रुप से बताती है कि पुरुष कैडर उनके साथ यौन शोषण करते हैं ।

आम तौर पर आत्मसमर्पण करने वाले महिलाएं जो आपबीती बताती हैं, उनमें किसी विशेष व्यक्ति पर आरोप लगाने के बजाए किसी के नाम लिये बिना कैडरों द्वारा यौन शोषण किये जाने की बात कहती हैं । लेकिन हाल ही में ओडिशा में एक महिला माओवादी ने पुरी पुलिस के समक्ष आत्म समर्पण करते समय जो बात कही है उससे लाल गलियारे की अंदरुनी कहानी स्पष्ट हो जाती है । राजलक्ष्मी नाम की इस महिला माओवादी ने मीडिया से बातचीत के दौरान जो खुलासा किया है उससे लोगों की भलाई के लिए काम करने का दावा करने वाली माओवादियों के चेहरे पर नकाब हट गया है । उसने कहा है कि ओडिशा का टाप माओवादी नेता उनका यौन शोषण करता था ।

राजलक्ष्मी ने आत्मसमर्पण करने के बाद कहा कि उन्हें बहला फूसला कर माओवादी संगठन में शामिल किया गया था । उन्होंने वहां देखा कि महिला माओवादियों का संगठन में शोषण किया जा रहा है । सैकडों की संख्या में महिला माओवादियों के साथ अनाचार किया जा रहा है ।

उन्होंने बताया कि वहां कई साल तक कार्य किया । इसी बीच उन्होंने एक और माओवादी अनिरुद्ध बेहेरा उर्फ प्रकाश के साथ प्रेम विवाह करना चाहा । लेकिन माओवादियों द्वारा इसका विरोध काफी किया गया और विवाह की अनुमति नहीं दी । विरोध के बावजूद उन्होंने प्रकाश से प्रेम विवाह किया । उनको लगता था कि विवाह के पश्चात उन्हें शारीरिक व मानसिक उत्पीडन नहीं किया जाएगा । लेकिन यह हुआ नहीं । माओवादियों के ओडिशा में सर्वोच्च नेता सव्यसाची उर्फ सुनील ने भी उनका शोषण किया ।

राजलक्ष्मी ने बताया कि उन्हें अपने पति से दूर रखा जाता था । इसके अलावा माओवादियों के नेता सव्यसाची उनके पति को दूसरे क्षेत्र में कार्य करने के लिए भेज देता थे ताकि उनका शोषण किया जा सके । इस कारण वह एक तरह से माओवादियों के बीच उनका दम घुटने लगा था । इस घुटन से बाहर निकलने के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण किया ।

राजलक्ष्मी का यह बयान कई अर्थों में महत्वपूर्ण है । आम तौर पर माओवादियों द्वारा बताया जाता है कि वे एक वैचारिक लडाई लड रहे हैं । वैचारिक लडाई के जरिए वे शोषणमुक्त समाज की स्थापना उनका उद्देश्य है । वैचारिक लडाई वही लड सकता है जिसे वैचारिक स्पष्टता हो । जिस व्यक्ति को वैचारिक स्पष्टता न हो, वह क्या वैचारिक लडाई लडेगा । माओवादियों के पास जो फौज है, उनमें अधिकतर अनपढ हैं या फिर पोस्टर भर लिखना ही जानते हैं । इसलिए उनसे किसी प्रकार वैचारिक स्पष्टता की उम्मीद करना ही बेमानी है । लेकिन राजलक्ष्मी ने अन्य महिला माओवादियों की तरह आम कैडरों पर आरोप नहीं लगाया है बल्कि उन्होंने ओडिशा में माओवादियों के सर्वोच्च नेता पर आरोप लगाया है । स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या की जिम्मेदारी लेने वाला सव्यसाची उर्फ सुनील को वैचारिक स्पष्टता नहीं है. यह मानना शायद गलत होगा । क्योंकि सव्यसाची कोई सामान्य माओवादी कार्यकर्ता नहीं है और वह एक प्रमुख पद पर है तथा ओडिशा के माओवादियों के बीच उनका बर्चस्व काफी है । ऐसे में सव्यसाची पंडा द्वारा महिलाओं का यौन शोषण किया जाना माओवादियों के विचारधारा पर ही चोट करता है । माओवादिय़ों के बीच काम करने वाली महिला कैडरों का यौन शोषण होता है यह सर्वविदित था। महिलाओं का शोषण वहां कोई अपवाद नहीं है । लेकिन यह घटना स्पष्ट करता है कि महिलाओं का यौन शोषण करना माओवादी चरित्र का ही हिस्सा है ।

यह कहानी सिर्फ राजलक्ष्मी की नहीं है । लाल संगठन में और जंगलों में कार्य कर रहे अनेक जनजातीय महिलाएं इस तरह के शारीरिक शोषण का शीकार हो रहे हैं । कोई एक राजलक्ष्मी इसके खिलाफ विद्रोह करती है और लोगों को बताती है । शोषण का शिकार हुए अनेक राजलक्ष्मी चुपचाप अपने हाल पर पडे रहने को मजबूर हैं ।

 

शुरु शुरु में लगता है कि मार्क्सवादी चेतना को लेकर लोग वर्ग संघर्ष और सशस्त्र क्रांति के माध्यम से एक नये तंत्र की स्थापना करना चाहते हैं । लेकिन बाद में धीरे धीरे स्पष्ट होने लगा कि कुछ लोगों का गिरोह भोले भाले लोगों को भडका कर उनकी आड में अपने लिए धन संपत्ति का संग्रह कर रहा है और भौतिक सुविधाओं के पीछे भाग रहा है । । लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि धनसंपत्ति के आगे य़ह लोग अनाचार के क्षेत्र में भी प्रवेश कर गये हैं और जनजातीय क्षेत्र की महिलाओं को बंदूक के बल पर शारीरिक शोषण कर रहे हैं । दुर्भाग्य से विनायक सेन, अरुंधती राय व तीस्ता सितलवाडों को अभी भी इन अनाचारियों के इस गिरोह से क्रांति के दर्शन हो रहे हैं ।

 

सुजलाम-सुफलाम-मलयज़-शीतलाम -भाग-[एक]

’धरती अपनी धुरी से आधा फुट दूर हटी’’और तेज हुई धरती के घूर्णन की गति’’दिन छोटे और रात बड़ी होने लगी
” धरती खिसकी, धरती खतरे में,बचा सको तो बचा लो इस धरती को. ”
इस तरह के अन्य अनेक डरावने और भयानक शीर्षकों वाले आलेखों और विभिन्न सूचना माध्यमों की और से तार्किक-अतार्किक,पुष्ट-अपुष्ट,वैज्ञानिक-अवैज्ञानिक समाचारों के शोरगुल में ततसम्बन्धी मूलगामी समष्टिगत चिंता विना किसी सर्वमान्य समाधान के यथावत और सनातन रूप से विद्यमान है.
उपरोक्त विश्यन्तार्गत मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही सार्वदेशिक-सर्वकालिक चिंतन और तत्संबंधी भविष्यवाणियाँ की जाने लगी थीं.संसार की विभिन्न मानव सभ्यताओं के विकाश क्रम और इतिहास के अनुशीलन से यह स्पष्ट होता है की मनुष्य ने सभ्यताओं के शैशवकाल में ही इस धरती को निश्चय ही स्वयम अपने जैसा ही नश्वर मानकर उसकी हिफाजत का विचार अवश्य किया होगा.
विवेकशील और प्रकृति के प्रति कृतग्य मानव ने निश्चय ही अपने वैयक्तिक सुखमय जीवन के लिए वांछित तत्कालीन सभ्यता के उपलब्ध संसाधनों के प्रचुर मात्रा में निरंतर उपभोग से उनके क्षरण का अनुभव किया होगा.प्राकृतिक संसाधनों की सीमित उपलब्धी और मानव सहित तमाम जीवों के निरंतर असीमित उपभोग ने कतिपय उन्नत सभ्यताओं के पुरोधाओं को सोचने पर मजबूर किया होगा कि प्राणीमात्र के रहने लायक यदि इस धरती को दीर्घ काल तक के लिए सुरक्षित रखना है तो उसका दोहन नियंत्रित करना होगा,साथ ही उसकी सेहत का ख्य्याल रखना होगा. जिन सभ्यताओं ने ऐसा चिंतन किया,धरा को माता का सम्मान दिया,प्राणीमात्र कोअबाध्य माना और अहिंसा का अमरगीत गाया उनमें भारत की प्राचीन आदिम साम्यवादी {राजा विहीन उप्निशाद्कालीन गणतांत्रिक व्यवस्था}का स्थान सारे संसार में सर्वोपरि है. जिन्होंने सिर्फ मनुष्य के येहिक सुखों की खातिर विज्ञान के आविष्कार किये और धरती के ह्र्य्दय को चीर डाला ,जिन्होंने धर्मान्धता या धन लोलुपता के वशीभूत होकर अतीत में सारे संसार को रौंदा है वे आज भी इस धरती पर कोहराम मचाने के लिए परमाणु बम के जखीरे तैयार कर रहे हैं.इन अ-सभ्यताओं ने पश्चिम गोलार्ध में और दक्षिण एशिया में धरती को रक्त रंजित करने का अपना सदियों पुराना आदमखोर स्वभाव इस २१ वीं सड़ी में भी नहीं छोड़ा है. इन्ही खुदगर्जों ने धरती को जगह जगह छेदकर लहू -लुहान कर दिया है.ऊपर से तुर्रा ये है कि विकसित कहे जाने वाले राष्ट्रों द्वारा अपनी लिप्साओं का ठीकरा दुनिया की उस अकिंचन-अनिकेत आवादी के सिर फोड़ा जा रहा जिसने धरती पर जन्म तो लिया है किन्तु उसका रंचमात्र अहित या शोषण नहीं किया बल्कि भूंख-प्यास ,सर्दी-गर्मी और जीवन -मरण में इस वसुंधरा के प्रति अपना कृतज्ञता भाव कदापि नहीं छोड़ा.
भारतीय और चीनी चिंतन परम्परा को बौद्ध दर्शन ने निसंदेह पंचशील सिद्धांतों के तहत सदियों तक अविकसित और दुर्भिक्ष का शिकार बनवाया किन्तु यह भी अकाट्य सत्य है कि यह बौद्ध दर्शन और उसका जनक वेदान्त दर्शन इस महान तम आप्त वाक्य के उद्घोषक रहे हैं कि ”धरती सबकी है””अहिंसा परम धर्म है”तृष्णा दुःख का कारण है”
इसी चिंतन परम्परा को जर्मन दार्शनिकों ने प्रोफेषर मेक्समूलर तथा कतिपय इंडो-यूरोपियन विद्वानों के मार्फ़त जाना.जर्मनी के सभी विश्विद्यालयों की यह मध्ययुगीन खाशियत थी की जहां एक ओर वहाँ दनादन संहारक अनुसंधान हो रहे थे वहीं दूसरी ओर प्राच्य मानवीय दर्शन पर निरंतर न केवल अनुसन्धान अपितु उस पुरातन भारतीय ज्ञान को अपडेट भी किया जा रहा था.महान जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने भ ारतीय दर्शन -चाणक्य,चार्वाक,कपिल,कणाद,भवभूति,वैशेषिक ,न्याय और उत्तर मीमांसा का गहन अध्यन करते हुए यूनानी दर्शन और भारतीय दर्शन के सत्व को मिलकर ओवेन और दुह्रिंग के सिद्धांतों को जो की सर के बल खड़े थे ,उसे पैरों पर पर खड़ा कर दिया और दुनिया ने जिसे’ मार्क्सवाद ’का नाम दिया. जिन भारतीय स्थापनाओं को मार्क्स ने स्वतंत्र रूप से वैश्विक आर्थिक और सामाजिक कसौटी पर विज्ञान सम्मत � �िद्ध किया उनमें धरती को भोगने और बर्वाद करने वाले वर्ग को पूंजीपति वर्ग और धरती के अनगढ़ प्राकृतिक स्वरूप को संवारने ,सौन्दर्य प्रदान करने वाले वर्ग को सर्वहारा वर्ग कहते हैं.
आज यही पूंजीपति वर्ग और उसका दासीपुत्र मीडिया धरती के विनाश की,धुरी से खिसकने की ,पर्यावरण प्रदूषण की,तापमान बढ़ने की,ग्लेश्यर पिघलने की ज्वलामुखी फटने की और सुनामियों के आक्रमणों की सच्ची -झूंठी कहानियों को टी वी चेनलों पर दिखाने और टी आर पी बढाने तक का उपक्रम करते रहते हैं ,यदि दुनिया के शोषक शशक वर्ग अपने स्वार्थों,मुनाफों,और राष्ट्रीय सीमाओं के अतिक्रमण को रक्त रंजित कर ने के लिए विश्व सर्वहारा को बलि का बकरा बनाते रहेंगे तो निसंदेह धरती जिसका विनाश अपने तयशुदा काल चक्र के अनुसार भले ही सूरज चाँद और सितारों की गति से निर्धारित हो किन्तु वर्तमान दौर के पूंजीवादी भौतिकवादी वैज्ञानिक अन्धानुकरण से धरती अपने योवन काल में ही अप्रसूता हो जायेगी.

जंतर मंतर पर बैठे कुछ सवाल –

वो सब जो अपने अपने काम छोड़ कर अन्ना को समर्थन देने आये थे और अन्ना हजारे, सभी वापस चले गये। सत्ताओं मे मची हलचल अभी शांत नही है, सत्तायें अभी व्यस्त हैं , इस अचानक आई स्वाभाविक आपदा और चुनौति का सामना करने के लिये साधनो की खोज जारी है. कुछ ने हथियार डाल दिये हैं और स्वीकार कर लिया है कि वो अन्ना के बिल को समर्थन देने को तैयार हैं और कुछ प्रतीक्षा करो और देखो की नीति पर चल रहे हैं।

अन्ना हजारे के उठने के बाद भी एक प्रश्न जंतर मंतर पर अभी तक बैठा हुआ है, कि आखिर कब तक आम आदमी को अपने काम छोड़कर सत्ताओं को समझाने के लिये जंतर मंतर पर आना पड़ेगा? आखिर सत्तायें उन प्रणालियों का ठीक से प्रयोग क्यों नही करती हैं जिसके गुणगान वो पूरे विश्व के सामने करती रहती हैं कि हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, किंतु ये तथ्य किसी को नही बताती कि हमने इस लोकतंत्र को चौथे नंबर का भ्रष्ट तंत्र भी बनाया है। एक आम आदमी सत्ताओं से सिर्फ यही अपेक्षा रखता है कि उसके जीवन स्तर का सुधार हो, और उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आवश्यक साधन उचित दामो पर उपलब्ध हों, उच्च वर्ग की भूख कुछ अलग प्रकार की है, उसे शक्ति और विलासिता की भूख होती है। सत्ताओं ने उच्च वर्ग की लिप्साओं का लाभ उठाते हुए उनके साथ गठजोड़ स्थापित किये ताकि दोनो को आर्थिक सम्पन्नता के साथ साथ शक्ति केन्द्र मे स्थान भी मिल सके, स्वयं को चुनौति देने वाले सभी कारकों को अपने पक्ष मे करने के लिये उन्होने लोकतंत्र के सभी स्तंभों को अपने जैसी विलासिता देने का लोभ दे कर उन्हे उनके दायित्वों से विमुख किया। लोकतंत्र के चारों खंबे आज लोकतंत्र की छत को मजबूत करने के स्थान पर स्वयं की विलासिता के साधनों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। वो ये भूल रहे हैं कि उनका कार्य लोकतंत्र की उस छत को संभालना है जिसके नीचे सामान्य व्यक्ति रहता है। यदि कोई भी एक स्तंभ अपने दायित्व से मुँह मोड़ता है तो अन्य स्तंभो की ये जिम्मेदारी और बढ जाती है। किंतु वर्तमान परिस्थिति मे स्तंभो मे अहं का भाव और विलासिता की इच्छा जागी हुई है। छत जर्जर है और उसके नीचे रहने वाले सामान्य व्यक्ति को उसकी चिंता है, और यही वो कारण है कि चार दिनों तक वो सामान्य आदमी इस छत को संभालने की चेतावनी देने के लिये जंतर मंतर पर आ डटा था।

देश के विभिन्न नगरों मे बनाये गये इन जंतर मंतरों पर एकत्र लोगो का क्रोध मात्र सत्ताओं के प्रति नही था, उन अन्य संस्थाओं के प्रति रोष भी था जो सत्ताओं को उनके दायित्व का बोध नही करा सके, और बोध कराना तो बहुत दूर वो स्वयं इस शक्ति को प्राप्त करने की भूख मे शामिल हो गये। इंडिया गेट पर हुई नारेबाजी एक स्पष्ट संकेत था कि विभिन्न समाचार चैनलों पर समाचारों को विज्ञापन की तरह दिखाना और पीठ पीछे सत्ता की बिछी हुई दरी पर अपना स्थान बनाये रखने के लिये षडयंत्र रचना, ये स्वीकार नही किया जा सकता।

सत्ताधारी समझदार (घाघ) हो जाते हैं। समय को अनुकूल ना पा कर, समय को अनुकूल होने तक के लिये उन्होने जंतर मंतर पर आ कर अपने लिये समय मांग लिया, और भीड़ के हटते ही अपना चेहरा दिखाना शुरु कर दिया। वो जानते हैं कि लोगो को एकत्र करना बहुत दुरूह कार्य है, और स्वाभाविक रूप से लोग किसी सत्ता के विरोध मे एकत्र हो जायें ये तो दुर्लभ ही होता है। इसी विश्वास को ध्यान मे रखते हुए शायद सत्ताओं ने समय की मांग की। लोकतंत्र की समस्या ये है कि यहाँ हर एक को स्वयं को बचाने के लिये दूसरे को उत्तरदायी ठहराने का मौका मिलता है। सत्ता कहती है हमें जनता ने चुना है, जनता कहती है कि सत्ता ठीक नही है, अधिकारी कहता है कि उसे ऊपर से आदेश है, ऊपर वाला कहता है कि जनकल्याण का पैसा भेजता हूँ, पैसा बीच मे गायब हो जाता है। इस लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतिम छोर पर आम आदमी और प्रथम सिरे पर सत्ताओं की उपस्थिति है, और ये बीच क्या है जहॉ पर सब कुछ विलुप्त हो जाता है इसका उत्तर ब्रह्मा भी नही दे सकेंगे। समस्या निगरानी की है? दायित्व को निभाने की है? लोभी प्रवृत्ति की है? सिस्टम के गलत होने की है? इसका पता किसी के पास नही है। सभी को बरगलाया जाता है कि हमारा तंत्र मजबूत है, दुर्ग के समान मजबूत है, किंतु बहुत चतुराई से दुर्ग के उन चोर दरवाजों का जिक्र हटा दिया जाता है जिसका उपयोग कर के क्वात्रोची, एंडरसन जैसे लोग निकल भागते हैं या फिर राजा, कलमाडी जैसे लोग उन चोर दरवाजो से जनता के धन को ठिकाने लगा देते हैं।

एक सामान्य व्यक्ति के आपाधापी वाले जीवन मे इतना समय निकलने की संभावना नही है कि वो प्रत्येक ६ महिने या साल के बाद सत्ताओं के कार्य का पुनर्वालोकन करे और संतुष्ट ना होने या व्यवस्था के भ्रष्ट होने की स्थिति मे बार बार जंतर मंतरों का निर्माण कर सके और ना ही उसके पास ऐसे टूल हैं जिनका प्रयोग कर के वो चोर दरवाजों को बंद कर सके। जिन्हें राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का बोध है वो आमरण अनशन पर बैठ जाते हैं या फिर सत्ताओं के प्रति उदासीन भाव रखते हुए समाज के बीच मे काम करते रहते हैं।

सामान्य व्यक्ति के अंदर विरोध करने का साहस नही होता, विरोध करने के लिये व्यक्ति का प्रसिद्ध होना या फिर पारिवारिक दायित्व का ना होना आवश्यक है। यदि कोई सामान्य व्यक्ति आमरण अनशन करता तो अब तक सत्ताधारियों की भृकुटि उस पर टेढी हो चुकी होती और कई आर.टी.आई कार्यकर्त्ताओं की तरह वो भी मृत्यु को प्राप्त हो चुका होता। सामान्य व्यक्ति का परिवार के प्रति दायित्व का बोध एक ऐसी भावना है जो उसके राष्ट्र के प्रति दायित्व के बोध को कम कर देती है, और नेताओं की विलासिता और शक्ति केंद्र मे बने रहने की इच्छा एक ऐसी लिप्सा है जो राष्ट्र के प्रति उनके बोध को खत्म कर देती है। सत्ता केंद्रो को उनके दायित्वों का बोध बनाये और जगाये रखने के लिये ये आवश्यक है कि अन्ना जैसे व्यक्तियों को अपनी सामाजिक स्वीकृति को हथियार बना कर इस गलत राह मे जाते हुए देश की दिशा को बदलने का प्रयास करना होगा और इस देश को गलत राह पर ले जाने के लिये जिम्मेदार चालकों और परिचालकों को बाहर फैंकना होगा। अन्यथा यदि ये व्यवस्था नही बदली तो आने वाली संताने पूछेंगी कि जब राष्ट्र का पतन हो रहा था उस समय आप लोग क्या कर रहे थे, तो चाहे कितना ही तर्क संगत उत्तर दिया जायेगा, वो स्वीकार्य नही होगा, क्योंकि आखिर स्थिति को सुधारने का दायित्व तो सभी का होता है, और आने वाली पीढी हमें ही दोषी ठहरायेगी।

यदि निकाह के बाद अग्रि के फेरे लिए तो फिर धर्मान्तर हो गया

यदि निकाह के बाद अग्रि के फेरे लिए तो फिर धर्मान्तर हो गया ,अब क्या करे सातो वचन निभाने के संकल्प के साथ जब भरवा ली गई मांग

बैतूल, (रामकिशोर पंवार) जबसे मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत एक मुस्लीम युवक एवं युवती के हिन्दू रीति – रिवाज से विवाह करवा लेने का मामला तूल पकडऩे लगा हैं तबसे चौतरफा विवादो एवं आरोपो से घिरे सरकारी मोहकमे द्वारा यह प्रचारित किया जा रहा हैं कि उसका तो पहले ही निकाह हो चुका हैं। यदि निकाह हो जाने के बाद पुन: दोनो का अग्रि के समक्ष फेरे लगाना , सातो वचन निभाने का संकल्प लेना , सिंदुर से मांग भरना , मंगलसूत्र का पहनना तथा पूरा विवाह ही हिन्दु रीति – रिवाजो से करना या करवाना धर्मान्तरण की श्रेणी में आता हैं। भाजपा सरकार के खिलाफ अब गैर हिन्दू संगठनो का खुल कर मोर्चा खोलना सरकार को किसी बड़ी मुसीबत में डाल सकता हैं। इधर उस मुस्लीम परिवार के खिलाफ भी चंद रूपयो एवं लालच के चलते निकाह के बाद करवाये गए विवाह को लेकर फतवा तक जारी किए जाने की अटकले लगाई जा रही हैं। बैतूल जिले में बीते दो- तीन जिलो से पड़ौसी अमरावति जिले से कटट्रपंथी मुस्लीम संगठन और उससे जुड़े लोग चिचोली एवं भैसदेही में डेरा डाले हुए हैं। बैतूल के ही एक मुस्लीम टीवी चैनल के रिर्पोटर से पूरे वैवाहिक कार्यक्रम की वीडियो फूटेज पाने के बाद संगठन के लोग भाजपा सरकार के खिलाफ लोगो की धार्मिक भावना के साथ छेड़छाड़ को लेकर जन आन्दोलन को भी मूर्त रूप देने की तैयारी में लगे हुए हैं। बैतूल जिला मुख्यालय पर कांग्रेस संगठन से जुड़े कुछ अल्पसंख्यक नेताओं से भीदो दौर की चर्चा होने के बाद अब पूरे मामले को लेकर मौलवी एवं काजियों की सलाह ली जा रही हैं। बताया जाता हैं कि चिचोली के हरदू ग्राम में सम्पन्न हुए मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सम्पन्न हुए सामुहिक विवाह कार्यक्रम में अजाक मंत्री कुंवर विजय शाह को निपटाने के लिए पूर्व राजस्व मंत्री कमल पटेल के समर्थक बैतूल में अपनी घुसपैठ बनाए हुए हैं। मंत्री पद से वचिंत हुए बैतूल जिले के पूर्व प्रभारी मंत्री कमल पटेल को अपनी बैतूल जिले के प्रभारी मंत्री पद से छुटट्ी एवं राज्य मंत्रीमंडल से बाहर किये जाने के पीछे रची गई साजिश में अजाक मंत्री विजय शाह की बिछाई चाल का जवाब देने का मौका मिल गया हैं।

पूरा मामला कुछ इस प्रकार का हैं कि बैतूल जिले में सरकारी मंशा और जल्दबाजी कई बार घातक परिणाम लेकर आ धमकी हैं। ऐसे मामलो में तब ज्यादा बवाल पैदा हो जाता है जब लोगो की धार्मिक भावना के साथ खिलवाड़ हो जाता हैं। प्रदेश की भगवा भाजपाई सरकार ने राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय के दो परिवारो को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा। बताया जाता हैं कि धार्मिक रीति – रिवाजो एवं अपनी कटट्र पंथी छबि के कारण जाना पहचाना जाने वाला मुस्लीम सम्प्रदाय इस बात से बेहद खफा हैं कि सरकारी मंशा के ठीक विपरीत बैतूल जिले के मुख्यमंत्री कन्यदान योजना के सूत्रधार अधिकारियों ने जबरिया चिचोली ब्लॉक के ग्राम हरदू में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में एक मुस्लिम जोड़े का विवाह गायत्री रीति रिवाज से हिंदू पद्धति से विवाह करवा दिया। इस विवाह को निकाह में बदलने का कोई तरीका न देख कर अब युवक और युवती के माता – पिता पर प्रशानिक दबाव और लालच देकर उन्हे मनाया जा रहा हैं कि वे इस मामले को तूल न दे। मध्यप्रदेश शासन के केबिनेट मंत्री कुंवर विजय शाह की मौजूदगी में सम्पन्न करवाये गए जबरिया हिन्दु रीति रिवाज के उक्त विवाह के बाद मुस्लीम संगठनो एवं संस्थाओं के द्वारा उक्त विवाह को अस्वीकार करने के बाद अब मामला तूल पकड़ता नजर आ रहा है। बताया गया कि भैंसदेही निवासी रूबीना परवीन का विवाह परतवाड़ा धूतरखेड़ा निवासी कदीर खान से तय हुआ। जिसमें दोनों पक्षों ने 19 मई को सामूहिक विवाह में विवाह कराने के लिए चिचोली जनपद में पंजीयन कराया। दोनों पक्ष विवाह के लिए कार्यक्रम स्थल हरदू पहुंचे तो वहां पर मुस्लिम पद्धति से विवाह कराने के लिए कोई मौलवी मौजूद नहीं था। ऐसी परिस्थिति में गायत्री मंत्रोच्चार के साथ उक्त दोनो मुस्लीम युवक – युवती का हिंदू रीति रिवाज से विवाह संपन्न कराया गया। जिसमें दूल्हे ने बकायदा दुल्हन को वरमाला पहनाई, मांग में सिंदूर भरा और मंगलसूत्र पहनाकर अग्नि के सात फेरे भी लिए। इस बारे में इस्लाम के जानकारो का कहना हैं कि इस्लाम ऐसे किसी भी प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं देता हैं। ऐसा करके एक प्रकार से दोनो ने धर्म परिवर्तन कर लिया हैं। मुस्लीम सम्प्रदाय की युवती के पालक मामा हबीब खान का कहना था कि हमने 19 मई को पंजीयन करा लिया था तो इन्हें समय पर निकाह के लिए मौलवी की व्यवस्था करना चाहिए थी, जो नहीं की गई। ऐसी स्थिति में आयोजकों ने कहा कि मुख्यमंत्री कन्यादान योजना की इसी पद्धति से विवाह करा लो तो हमारे पास कोई दुसरा विकल्प नहीं था और अधिकारी कर्मचारी लगातार दबाव बना रहे थे इसलिए हमे उक्त विधि से विवश होकर विवाह करना पड़ा। हमारी मजबुरी का एक प्रकार से प्रशासन ने फायदा उठा लिया। हालाकि हमने उन्हें कुछ देर प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया था, जिससे कि मौलवी की व्यवस्था की जा सके। लेकिन किसी ने हमारी बात नहीं सुनी और विवाह हो गया। कुछ समय बाद में जब मौलवी आया तो भी इन्होंने हिन्दु रीति से हो चुके विवाह को निकाह में बदलने से साफ इंकार कर निकाह करने से मना कर दिया। मध्यप्रदेश मुस्लीम त्यौहार कमेटी के प्रांतीय सचिव एवं अंजुमन कमेटी सारनी के महासचिव अब्दुल रहमान खान के अनुसार शरीयत यह कहती है कि दो गवाह और एक वकील की मौजदूगी में तय किया मेहर और उसके कबुलनामे के बिना कोई भी विवाह हराम हैं। निकाह में मौलवी का मौजूद होना और खुदबा पढऩा भी जरूरी हैं। कोई भी निकाह शरीयत के अनुसार बिना काजी या मौलवी की मौजूदगी के करना या करवाना भी इस्लाम विरोधी कृत्य है जिसके लिए दोनो को सजा तक देने का प्रावधान हैं। बैतूल जिले में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बहुचर्चित कन्यादान योजना के ऊपर लगे सवाल ने दोनो सम्प्रदायो के बीच वैमनस्ता की भले ही लकीर न खीची हो लेकिन महज सरकारी लक्ष्यपूर्ति या सरकारी फायदे की मंशा से हुए इस विवाह को इस्लाम मान्यता नहीं देता है। इधर मामले को जोर पकड़ता देख कांग्रेस ने भी भाजपा सरकार पर लोगो की धार्मिक भावना के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगा डाला हैं। बैतूल जिले के इस बहुचर्चित विवाह कार्यक्रम का आयोजन चिचोली जनपद के द्वारा करवाया गया था। चिचोली ब्लॉक के ग्राम हरदू में आयोजित सामूहिक विवाह में प्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह ने पूरे मामले में अपनी पार्टी एवं सरकार का बचाव करते हुए सारा ठिकरा उन लोगो पर छोड़ दिया जो विवाद को जन्म दे रहे थे। श्री शाह का कहना हैं कि हिन्दू धर्म न होकर एक जीवन शैली हैं इसलिए अलग – अलग जाति के रिवाजो के अनुसार विवाह कराना संभव नहीं हैं। हरदू में जो कुछ भी हुआ है वह सोलह आने सही हैं। मंत्री की मौजूदगी में गैर अल्पसंख्यक 249 जोड़े विवाह सूत्र में बंधे। इन जोड़ो में के अलावा एक मात्र ही ऐसा जोड़ा था जो अल्पसंख्यक समुदाय से था। भाजपा सरकार के भगवा रंग में रंगीन इस कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक गीता उइके, पूर्व सांसद हेमंत खंडेलवाल, पूर्व संसदीय सचिव रामजीलाल उइके और राजा ठाकुर उपस्थित थे।

मकड़ाई के राजकुमारो द्वारा खेड़ला किले को जीतने के लिए राजनैतिक घेराबंदी

बैतूल, (रामकिशोर पंवार) इतिहास इस बात का गवाह हैं कि पारसमणी के चक्कर में जिस खेड़ला किले को जीतने के लिए मुगल सेनापति रहमान शाह दुल्हा को अपनी जान गंवानी पड़ी थी अब उस खेड़ला किले को जीतने के लिए पड़ौसी मकड़ाई रियासत के राजकुमारो की राजनैतिक घेराबंदी शुरू हो गई हैं। बैतूल जिले में राजा ईल का खेड़ला ही एक मात्र ऐसा राज्य था जो कि पड़ौसी महाराष्ट्र तक फैला हुआ था। आज का अचलपुर दरअसल में उस समय का एलिजपुर था जो राजा ईल की राजधानी थी। वैसे तो बैतूल जिले में चार पहाड़ी तथा एक मैदानी किला हैं। राजा ईल का खेड़ला किला पूरे किलो का मुख्य केन्द्र था। पड़ौस की मकड़ाई रियासत की कुलदेवी बैतूल जिले के ग्राम हरदू में होने के कारण मकड़ाई के राजकुमारो एवं उनकी रानियों का बैतूल जिले की सीमा क्षेत्र में आना – जाना बना हुआ था। अब टिमरनी , हरसुद की विधानसभा सीट जीतने के बाद कुंवर विजय शाह एवं संजय शाह के बाद रियासत के सबसे बड़े राजकुमार अजय शाह की ताजपोशी की रणनीति बनाई जा रही हैं। बैतूल में शाह बंधुओ का सामुहिक स्नेह भोज को लेकर भाजपा का एक धड़ा सबसे ज्यादा नाराज हैं। सरकारी परिसर में अपने बड़े भाई अजय शाह के लिए भूमि तलाशने आए अजाक मंत्री कुंवर विजय शाह का वन विद्यालय परिसर में कांग्रेस एवं भाजपा के नेताओं के साथ जिले के प्रमुख धन्नासेठो को दिया गया उक्त स्नेह भोज बैतूल जिले की एक मात्र आदिवासी सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे की राजनैतिक नींव को धराशही करने की सोझी समझाी रणनीति का एक हिस्सा थी। इस मिलन समारोह में प्रमुख विपक्षी दलो के नेताओं एवं जनप्रतिनिधियों के साथ – साथ बहुचर्चित – विवादास्पद लोगो से मंत्री जी एवं उसके बड़े भाई का मेल मिलाप लोगो को हजम नहीं हो रहा हैं। बैतूल जिले में कुंवर विजय शाह एवं अजय शाह के बाद संजय शाह एवं भावना शाह की राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने बैतूल जिले में राजनैतिक हलवल पैदा कर दी हैं। मकड़ाई के राजकुमारो की बैतूल जिले में घुसपैठ जिले के काग्रेंसी एवं गैर कांग्रेसी नेताओं की भी नींव हिलने लगी हैं। जिले की सासंद ने अपने क्षेत्र में इस तरह की राजनैतिक दंखलदाजी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हैं। श्रीमति ज्योति धुर्वे के लोकसभा चुनाव को लेकर दायर जनहित याचिका के तथाकथित फैसले की पूर्व संभावना को लेकर शाह परिवार हरदा , खंडवा के बाद अब बैतूल जिले में भी अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए कांग्रेस एवं भाजपा के असंतुष्ठ नेताओं को अपने पक्ष में करके एक नई राजनैतिक चाल खेलने जा रहे हैं। इस राजनैतिक शतरंज की चाल में राजा बनाया है भाजपा के ही असंतुष्ठ नेता राजा ठाकुर को जिसके कंधे पर अपनी तोप रख कर अब किसी बड़े धमाके की योजना को मूर्त रूप दिया जा रहा हैं। खेड़ला का किला जिला मुख्यालय से लगा हुआ है और किला बिना किलेदार के जीत पाना शायद मकड़ाई के राजकुमारो के लिए आसान नहीं हैं इसलिए पूरे किलेदार परिवार को अपने स्नेह भोज में अगली पंक्ति में रख कर कुंवर विजय शाह ने एक तीर से दो निशाने साधने का प्रयास तो किया लेकिन भाजपा संगठन की ओर से इसका भी मुंह तोड़ जवाब दिया गया हैं जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती हैं। मध्यप्रदेश से भाजपा की एक मात्र आदिवासी महिला सासंद श्रीमति ज्योति बेवा प्रेम धुर्वे को आगे करके ज्योति को ज्वाला बना कर पूरा संगठन मकड़ाई के राजकुमार एवं संगठन विरोधियों की महत्वाकांक्षा को ही जला कर राख कर देने के लिए अपनी ओर से निशाना साध चुके हैं। बैतूल जिले से कांग्रेस संगठन की आपसी फूटवैल का फायदा उठाने की शाह बंधुओ की महत्वाकांक्षा पर उस समय भी कुठाराघात लग गया जब भाजपा और कांग्रेस की ओर से जानबुझ कर अल्पसंख्यक युवक – युवती के हिन्दू पद्धति से सामुहिक विवाह करवा देने के मामले को जबदस्त तूल देकर मंत्री के खिलाफ जबदस्त माहौल तैयार किया गया हैं। बैतूल के पूर्व सासंद भले ही शाह बंधुओं के कार्यक्रम में उपस्थित रहे लेकिन सासंद ने स्नेह भोज का बहिष्कार करके नहले पर दहला दे मारा हैं। बैतूल जिले में कुंवर विजय शाह की सेंघ लगाने की सोची समझी साजिश का उस समय खुलासा हो गया जब पूर्व वनमंत्री कुंवर विजय शाह ने जिले के प्रभारी मंत्री को हटा कर स्वंय की ताजपोशी करवाने का शिगुफा छोड़ दिया। विजय शाह यह तक कह गए कि वे बैतूल जिले के प्रभारी मंत्री बन गए तो संभव हैं कि शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पी सकेगें। बरहाल जो भी आने वाला भविष्य ही बता पाएगा कि खेड़ला के किले का रहमान शाह के बाद क्या विजय शाह भी अपनी गर्दन कटवा कर शहीद बन जाएगें या फिर अभिशप्त उस किले को जीत पाएगें जिसकी किसी वस्तु को छुने या लाने के बाद तबाही और बर्बादी का ऐसा सैलाब आ जाता हैं कि सब कुछ चला जाता हैं।

मनोरंजन-सिनेमा-बदलती फिल्मी दुनिया

जीवन की घटनाओं को पर्दें पर जीवित करने की जो पहल दादा साहब फलके ने की थी, उसके पीछे एक मकशद हुआ करता था। लेकिन जैसे वक्त बदलता गया, सिनेमा के मायने भी बदलते गये। कभी सिनेमा का इस्तेमाल जागरूकता के लिए किया गया तो कभी इसका उद्देश्य केवल मनोरंजन करने तक ही सीमित रहा।

दरअसरल हिन्दी सिनेमा हमेशा से उन दर्शकों के लिए बना था जो अपनी जिंदगी के कुछ पलों की छलक सिनेमा में देखना चाहते थे। कुछ पल के लिए ही सही सिनेमा देखकर दर्शक अपने ख्याबों की दुनिया में गोते लगा लिया करते थे। यही कारण रहा है कि हिन्दी सिनेमा में हर मुद्दे पर फिल्मों का निर्माण हुआ और दर्शकों का फिल्मों के प्रति रूझान बड़ता गया।

19वीं सदी की बनने वाली फिल्में एक मकशद को लेकर बनायी जाती थी, जो समाज में एक संदेश छोड़ती थी। जब दर्शक सिनेमा घर से बाहर निकलता था तो उसका पूरा ध्यान उन तत्वों पर होता था फिल्मों मंे डायरेक्टर द्वार दिखाये गये होते थे। वहीं उस डायरेक्टर का मकशद पूरा होता था।

पर अब मसौदा कुछ और ही है हिन्दी सिनेमा का दौर बदलता जा रहा है। जहां पहले सामाजिक और मनोरंजक फिल्में बनती थी वहीं अब समाज कुछ इस तरह की फिल्में परोसी जा रही है जिनका न तो कोई मकशद है और ना कोई संदेश।

बीते माह में रिलीज होने वाली कई फिल्में ऐसी हैं जो केवल सैक्स अपीलिंग से जुड़ी हुई है। जो केवल युवा वर्ग की जेबों से पैसा खिचने का एक उद्देश्य लिए हैं। फिल्मों के टाईटल कुछ इस तरह के बनाये गये हैं कि युवा वर्ग इन फिल्मों को देखने के प्रेरित होता है। हाल ही में रिलीज इसी तरह के कुछ ‘‘लव का दी एण्ड’’, ‘‘लव का पंचनामा’’, ‘‘कुछ लव जैसा’’ सभी एक जैसे टाईटल हैं। और सभी में लव जैसा कुछ भी नहं दिखाया गया। कहने का मतलब केवल इतना है जो 19वीं सदी में प्रेम हुआ करता था, आज उस शब्द का मतलब लव में बदल गया है। और लव का मतलब सैक्स और अफेयर से लगाया जाने लगा है। शायद यह सही भी है।

इसके अलावा युवा दर्शकों की भीड़ को बड़ने के लिए सिनेमा जगत का एक और पेंतरा देखिए कि फिल्में अब टूडी, थ्रीडी और फोरडी फोरमेट में बनने लगी है। फिर वो चाहे जैसी भी हो। फिल्मों में न तो स्टोरी रह गयी है और ना ही क्रलाईमेक्स रहा है। अगर कुछ रहा है तो वो है केवल सैक्स अपीलिंग।

अभिनेत्री सुषमिता सेन की ‘‘7 खून माफ’’ को सेंसर वोर्ड ने ए ग्रेट दिया तो अभिनेत्री को इस बात से खुशी हुई कि वो युवा वर्ग को आकर्षित कर सकेगी। वहीं अभी थ्रीडी इफेक्ट में बनी, हाॅरर विथ सैक्स से भरपूर फिल्में ‘‘हाॅनटिंड’’ व ‘‘रागनी एमएमएस’’ को भी सेंसर वोर्ड ने ए ग्रेट दिया है।

युवा वर्ग सोचता है इन फिल्मों में लव स्टोरी देखने को मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं होता। इन फिल्मों में केवल अश्लीलता और भद्दापन ही परोसा गया है। इस अश्लीलता और भद्देपन की बजह से फिल्मों की वास्विक शाक खतरे में आती नजर आ रही है। भले ही डायरेक्टर इस बात को कह कर अपना पल्ला झाड़ ले कि वो वहीं परोसते है जो आज का दौर चाहता है। लेकिन इससे दादा साहब फालके की आत्मा में कितनी ठेस पहंुचती होगी ये तो वही……..

भारतीय परम्‍परागत ज्ञान और वेद पुराण गुरूकुलम

श्रीश देवपुजारी

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत की शिक्षा पद्धति को लेकर विचार-विमर्श चलता आ रहा है। हमने जो भी पाठ्यक्रम बनाएँ उनके परिणामों की समीक्षा से यह बात उभरकर आती है कि पश्चिमी देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप हमने अपने युवाओं को ढाला है । परिणामस्परूप, भारतीय युवा अमेरिका और यूरोपीय देशों में भारतीय प्रतिभाओं का परचम फहरा रहे हैं। विभिन्न देशों में वे महत्वपूर्ण स्थानों पर आसीन होकर भारत का नाम चमका रहे हैं।

किन्तु विचारणीय प्रश्न हैं कि प्रतिभा प्रदर्शन करने वाले भारतीय युवा क्या सच में भारतीय हैं? मैं नागिरकता के संदर्भ मे प्रश्न नहीं उठा रहा हूँ। मैं भारतीयता को पिछड़ते देख चिन्तित हूँ। भारतीयता के कई मायने हैं। उनमें से प्रसंगवश अत्यल्प बातों की अोर ध्यान दिलाना चाहता हूँ।

भारत कहते ही हमें अपने मनीषियों का स्मरण होता हैं। ग़ोत्र का उच्चारण करते ही एक ऋषिकुल से हम अपने-आप को जोडते हैं। ऋषि का अर्थ है ज्ञान की गवेषणा, अनुसंधान एवं शोध में निमग्न व्यक्ति संपादित ज्ञान को नयी पीढ़ी को दान करने और ज्ञान परम्परा को अक्षुण्ण रखने वाला नाम तथा इस एकान्तिक ज्ञान साधना के लिए मन एवं इंद्रियाें को एकाग्र रखने का प्रयास करनेवाला आचार्य। प्रकृति पर विजय प्राप्त कर मनुष्यों के उपभोग के लिए साधनाें का अंबार खड़ा करनेवाला सृष्टि विनाशक वैज्ञानिक नहीं, तो प्रकृति के साथ सह अस्तित्व मन विश्वास रखने वाला और पृथ्वी पर संचालित जीवनधारा को पुष्ट करने वाला ब्रह्मज्ञानी।

किन्तु, क्या आजका भारत इस प्रकार के ऋषियों का भारत हैं। अपवाद रुप में निश्चित कुछ की गणना की जा सकती हैं। किन्तु कीर्ति, सत्ता, धनाकांक्षा के बिना केवल मानव कल्याण की प्रेरणा से अज्ञेय रहकर कार्यमग्न लोग यह अब भारत की पहचान नहीं रही है । अतः हमें पुनः ऋषियों का निर्माण करना होगा। यह साधने का अभिनन्दनीय उपक्रम है चेत्रन्नहल्ली नामक ग्राम में चलने वाला ”वेद विज्ञान गुरूकुलम्”।

1997 में उध्दाटित यह प्रकल्प वेद, शास्त्र, संस्कृत भाषा, आधुनिक विज्ञान, सङ्गणक, आङ्ग्ल भाषा इत्यादी की पढ़ाई कराता है । प्राचीन एवं अर्वाचीन का यह सुहावना संगम है। यहाँ वेदों में कृष्ण यजुर्वेद और शास्त्रों में न्याय वेदान्त, योग एवं व्याकरण पढ़ाया जाता है । प्रवेश हेतु अर्हता है मेट्रिक की परीक्षा उतीर्ण मेधावी छात्र, जो मेट्रिक तक संस्कृत विषय पढ़ा हो। वर्षों के इस पाठयक्रम के समय वह 20 वर्षों तक विद्यार्थी के रुप में विश्वविद्यालय की परीक्षा देकर स्नाकोतर की उपाधि प्राप्त करता है । यदि इच्छा है तो आगे 3-4 वर्ष वह गुरुकुल में रहकर पी.एच.डी. कर सकता है । शोध की व्यवस्था गुरुकुल का ही एक हिस्सा है । गुरुकुल से निकले छात्र नौकरी की याचना करने वाले छात्र न बनें अपितु आचार्य बनें यह घुट्टी उन्हें पिलाई जाती है ।

वेदविज्ञान गुरुकुल में अब तक कनार्टक राज्य के छात्रों को ही प्रमुख रूप से प्रवेश दिया जाता था। किन्तु अब गुरुकुल में अधिकाधिक राज्यों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए ऐसा निर्णय न्यास ने लिया है। अपने पुत्रों को ऋषि परम्परा से जोड़ने और सत्यार्थ मन वशिष्ठ, कौडिन्य, अत्री इत्यादिऋषियों का गोत्र रुप में उच्चारण कर सकने की चाह रखने वाले अभिभावकों को चाहिए कि वे शीघ्रातिशीघ्र स्वयं पाल्य के साथ इस प्रकल्प का प्रत्यक्ष दर्शन करने और संतुष्ठ होने पर प्रवेश के लिए आवेदन करें। 20 मई के पश्चात् आवेदनकारी विद्याथियों का साक्षात्कार होगा। चयनित विद्यार्थियों का शिक्षा सत्र जून से प्रारम्भ होगा । सभी जाति के विद्यार्थी आवेदन कर सकते हैं। केवल बालकों का हीं प्रवेश सम्भव है। शिक्षा पूर्णरूपेण निःशुल्क है।

उपरोक्त शिक्षा पूर्ण रूपेण गुरूकुल पध्दति द्वारा दी जाती है। सुंदर उपवन में स्थित इस गुरुकुल में सादगी, स्वच्छता एवं अनुशासन पर जोर दिया जाता है, जैसा कि प्राचीन काल में था । गुरुकुल परिसर में एक मंदिर एवं एक साधना केंद्र भी है जो पिरामिड के आकार का है । उसे ‘शिखिरणी’ कहते हैं। प्रातः 5 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक अध्ययन चलता रहता है ।

यद्यपि दूरदर्शन, इंटरनेट इत्यादी उपकरण गुरुकुल में उपलब्ध हैं, दशेंद्रियों की सारी शक्तियाँ केवल अध्ययन पर केंद्रित होने के कारण विचिलत करने वाले ये आधुनिक आकर्षण बाधा नही पहुँचाते । विद्याथियों को पढ़ाने के लिए आचार्यों की संख्या पर्याप्त हैं। गुरुकुल में पढ़ाने एवं संवाद का माध्यम संस्कृत है । वर्ष में दो बार गुरुकुल में अवकाश रहता है। एक बार दीपावली के समय एवं दूसरी बार ग्रीष्मकाल में।

(लेखक संस्‍कृत भारती से जुड़े हैं)

पत्रकारिता के आदि पुरूष देवर्षि नारद

मृत्‍युंजय दीक्षित

सृष्टिकर्ता प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र नारद। त्रिकालदर्शी पुरूष नारद देव, दानव और मानव सभी के कार्यों में सहायक देवर्षि नारद। देवर्षि नारद एक ऐसे महान व्यक्तित्व के स्वामी व सांसारिक घटनाओं के ज्ञाता थे कि उनके परिणामों तक से भी वे भली भांति परिचित होते थे। वे शत्रु तथा मित्र दोनों में ही लोकप्रिय थे। आनन्द, भक्ति, विनम्रता, ज्ञान, कौशल के कारण उन्हें देवर्षि की पद्वि प्राप्त थी। ईश्वर भक्ति की स्थापना तथा प्रचार-प्रसार के लिए ही नारद जी का अवतार हुआ। देवर्षि नारद व्यास वाल्मीकि और शुकदेव जी के गुरू रहे। श्रीमद्भागवत एवं रामायण जैसे अत्यंत पवित्र व अदभुत ग्रन्थ हमें नारद जी की कृपा से ही प्राप्त हुए हैं। प्रहलाद, ध्रुव और राजा अम्बरीश जैसे महान व्यक्तित्वों को नारद जी ने ही भक्ति मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। देव नारद ब्रहमा, शंकर, सनत कुमार, महर्षि कपिल, स्वायम्भुव मनु आदि 12 आचार्यों में अन्यतम हैं। वराह पुराण में देवर्षि नारद को पूर्व जन्म में सारस्वत् नामक एक ब्राह्मण बताया गया है। जिन्होंने ‘ओं नमो नारायणाय’ इस मंत्र के जप से भगवान नारायण का साक्षात्कार किया और पुनः ब्रह्मा जी के 10 मानस पुत्रों के रूप में अवतरित हुए। देवर्षि नारद तीनों लोको में बिना बाधा के विचरण करने वाले परम तपस्वी तथा ब्रह्म तेज से संपन्न हैं। उन्हें धर्म बल से परात्पर परमात्मा का ज्ञान है। उनका वर्ण गौर शिर पर सुंदर शिखा सुशोभित है। उनके शरीर में एक प्रकार की दिव्य क्रांति उज्जवल ज्योति निकलती रहती है। वे देवराज इंद्र द्वारा प्राप्त श्वेत, महीन तथा दो दिव्य वस्त्रों को धारण किये रहते हैं। ईश्वरीय प्रेरणा से लगातार कार्य किये रहते हैं। वे संपूर्ण वेदान्त शास्त्र के ज्ञाता परम तेजस्वी तपस्वी और ब्रह्म तेज से सम्पन्न हैं। वे आनुशांगिक धर्मों के भी ज्ञाता हैं। उनके हृदय में संशय लेशमात्र भी नहीं है। वे धर्म निपुण तथा नाना धर्मों के विशेषज्ञ हैं। लोप, आगम धर्म तथा वृत्ति संक्रमण के द्वारा प्रयोग में आए हुए एक शब्द की अनेक अर्थों में विवेचना करते में सक्षम हैं। कृष्ण युग में वे गोपियों के सबसे बड़े हित साधक बने। नारद जी ने ही कृष्ण युग में गोपियों का वर्चस्व स्थापित किया। प्रथम पूज्य देव गणेश जी को नारद जी का ही मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ था।

देवर्षि नारद भारतीय जीवन दर्शन में अत्यंत श्रेष्ठ हैं। उन्हें हनुमान जी का मन कहा गया है अर्थात् उन्हें इस बात का पता रहता था कि लोगों के मन में क्या चल रहा है। वे आदि संवाहक और आदि पत्रकार थे। देश के प्रथम समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ के प्रथम पृष्ठ पर भी नारद जी का उल्लेख हुआ है। सत्य नारायण जी की कथा के प्रथम श्लोक से पता चलता है कि देवर्षि नारद का सब कुछ समाज के लिए अर्पित था। देवर्षि नारद जी के द्वारा रचित अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है ः- जिसमें प्रमुख हैं नारद पंचरात्र, नारद महापुराण, वृहन्नारदीय उपपुराण, नारद स्मृति ,नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजकोपनिषद् आदि।

उनके समय में संचार के इतने साधन नहीं थे फिर भी उन्हें हर घटना के विषय में जानकारी रहती थी तथा वे हर घटना को कल्याणकारी मार्ग पर ले जाते थे। देवर्षि नारद जिसे प्रेरणा लेकर आज के पत्रकार भी नये आयाम स्थापित कर सकते हैं।

* लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।