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अमर के हालात जेल जाने जैसे

संजय सक्सेना

वर्ष 2003 में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह के साथ रहकर उन्हें सत्ता की सीयिं च़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और उनसे दूर होने के बाद उनको नेस्तानाबूत कर देने की कसम खाने वाले पूर्व दिग्गज सपा नेता(अब लोकमंच के संयोजक) अमर सिंह आज स्वयः उस मुकाम पर पहंुच गए हैं जहां वह अपने पूर्व समाजवादी दोस्त को देखना चाहते थे।वह लगातार चारों तरफ से घिरते जा रहे हैं। हकीकत सामने आने के बाद दोस्तों ने उनसे दूरी बना ली है तो अदालत का शिकंजा कसता जा रहा है।किडनी की बीमारी। फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन से संबंध बिगड़ना। कथित सीडी मामले में प्रसिद्ध अधिवक्ता और जन लोकपाल बिल की ड्राफ्टिंग समिति के सदस्य शांति भूषण और प्रशांत भूषण पर बेवजह आरोप। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पांच साल से उनकी विवादित सीडी पर लगी रोक को हटाना।पहले कांगे्रस पर सीडी के दुरूपयोग का आरोप। और उसके बाद इस बात से मुकरने पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार। प्रशांत भूषण का अमर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दर्ज करना। मुलायम को सपा का ‘डान’ बताना। यह ऐसे मुद्दे हैं जिन्होने अमर सिंह का दिन का चैन और रात की नींद हराम कर रखी है। रही सही कसर विवादित सीडी के प्रसारण में उनका किसी बिपाशा नाम की युवती (जिसे फिल्म अभिनेत्री समझा जा रहा है)से ओछी हरकत में बातचीत करने ने पूरी कर दी, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 20 मई 11 को एक अहम फैसले में प्रवर्तन निदेशालय को राज्यसभा सदस्य अमर सिंह के खिलाफ लगे धन शोधन के आरोपों की जांच करने का आदेश देकर उनको कहीं का नहीं छोड़ा। उच्च न्यायालय ने यह आदेश समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह की एक याचिका को खारिज करते हुए दिया। इस याचिका में अमर ने दो साल पहले अपने खिलाफ कानपुर में दर्ज कराई गई एक प्राथमिकी को चुनौती दी थी। प्राथमिकी में उन पर आरोप लगाया गया था कि जब उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी तब वह कथित तौर पर कई वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त थे। न्यायमूर्ति इम्तियाज मुर्तजा और न्यायमूर्ति एसएस तिवारी की पीठ ने प्रवर्तन निदेशालय को जांच का आदेश तो दिया ही, जांच शुरू होने के एक माह के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया।स्थिति रिपोर्ट पेश होने के बाद अमर सिंह के बुरे नक्षत्र अपना असर दिखा सकते हैं। अमर सिंह की गिरफ्तारी पर रोक की याचिका भी इलाहाबाद हाइकोर्ट से खारिज हो चुकी थी।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को जो जांच के आदेश दिए हैं, वह मामला कानपुर से जुड़ा है। अमर सिंह के खिलाफ कानपुर स्थित बाबूपुरवा पुलिस थाने में 15 अक्तूबर 2009 को एक स्थानीय निवासी शिवकांत त्रिपाठी ने भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और धन शोधन अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसी प्राथमिकी को सिंह ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। त्रिपाठी ने भी अदालत से संपर्क किया था और अनुरोध किया था कि मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय से कराई जाए। सिंह और त्रिपाठी की याचिकाओं को नत्थी कर दिया गया और पीठ ने सुनवाई की। इसके बाद 28 मार्च को पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पूर्व सपा नेता अमर सिंह की ओर से दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने अमर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को ॔जालसाजी और दुर्भावना से की गई कार्रवाई॔ करार देते हुए कहा कि इसकी वजह केवल राजनीतिक शत्रुता थी। उन्होंने कहा कि इसलिए यह प्राथमिकी खारिज करने लायक है।इस पर अदालत ने कहा कि दस्तावेजों में ऐसा कुछ भी नहीं है कि कार्रवाई को दुर्भावनावश और राजनीतिक शत्रुता के आधार पर खारिज कर दिया जाए। अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से अमर पर लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लिया। याचिका में कहा गया था कि जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब सिंह उप्र विकास परिषद के अध्यक्ष थे। यह पद कैबिनेट मंत्री के समकक्ष होता है। त्रिपाठी ने आरोप लगाया था कि इस पद पर रहते हुए सिंह ने कई कागजी कंपनियां खड़ी कीं और धन शोधन में लिप्त रहे। पीठ ने कहा कि धन शोधन वित्तीय प्रणाली के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। यह देश में ऐसी समानान्तर वित्त प्रणाली के तौर पर उभर सकता है जिसका नियंत्रण गिने चुने लोगों के पास होता है। इससे अच्छी खासी अर्थव्यवस्था अस्थिर और ठप हो सकती है। अदालत ने कहा ”हमारी यह दृ़ राय है कि यह अतिविशिष्ट अधिकार के दुरुपयोग का मामला है और स्पेशल सेल से इसकी गहन जांच कराने की जरूरत है।” पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि जो कंपनियां कथित तौर पर कागजी कंपनियां थीं, वे विभिन्न राज्यों में पंजीकृत थीं। पीठ ने कहा कि एक केंद्रीय एजेंसी होने के नाते प्रवर्तन निदेशालय इस मामले की गहन जांच करने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। अदालत ने कहा ”इसलिए, यह आदेश दिया जाता है कि इस मामले से संबंधित समस्त दस्तावेज दो सप्ताह में प्रवर्तन निदेशालय को सौंप दिए जाएं और दस्तावेज मिलने के तत्काल बाद प्रवर्तन निदेशालय को जांच शुरू कर देना चाहिए। दस्तावेज मिलने के एक माह के भीतर प्रवर्तन निदेशालय पीठ के सामने एक स्थिति पत्र पेश कर दे।”अदालत के आदेशनुसार इस मामले को जुलाई के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है और तब अधिकारी स्वयं अदालत में पेश हो कर पहला स्थिति पत्र सौंपें।

अमर सिंह के खिलाफ कानपुर के बाबू पुरवा थाने में दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि सपा सरकार के पांच साल के शासन में 16 से 168 कंपनियां बनाकर सपा के पूर्व महासचिव अमर सिंह और उनकी पत्नी पंकजा ने पांच सौ करोड़ का घोटाला किया। इन कंपिनयों में बिग बी अमिताभ बच्चन से लेकर घाटमपुर के किसान तक को निदेशक बनाया था। यही नहीं यूपी, दिल्ली और कोलकाता के दो दर्जन से अधिक ऐसे लोग हैं,जिन्हें मालूम ही नहीं कि वे किसी कंपनी के निदेशक भी हैं। बाबूपुरवा थाने में यह एफआईआर शिवाकांत त्रिपाठी ने अक्टूबर 2009 को दर्ज कराई थी। वर्ष 2003 से 2007 के बीच अमर ने जो कम्पनियां बनाई उनमें एनर्जी डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड, ईडीसीएल पॉवर लिमिटेड, पंकजा आर्ट एंड क्रेडिट लिमिटेड, सर्वोत्तम कैंप लिमिटेड, ईडीसीएल एंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड व ईस्टर्न इंडिया लिमिटेड प्रमुख हैं। बाकी कंपनियां काले धन को सफदे करने के लिए बनाई गई थीं।

याचिकाकर्ता का कहना था कि इन कंपनियों के अलगअलग निदेशक बनाए गये थे । एक कंपनी में अमिताभ बच्चन निदेशक थे। दो में सा़ घाटमपुर के अमौर गांव निवासी देवपाल सिंह राणा और गाजियाबाद निवासी उसका भाई निदेशक था। दिल्ली और कोलकाता के दो दर्जन लोगों के फर्जी हस्ताक्षर से कंपनियों का निदेशक बनाया गया। जब देवपाल सिंह राना से पूछा गया तो उन्होंने कंपनी के बारे में जानकारी से इंकार कर दिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि पहले कंपनियां बनाई गईं, फिर इन्हें घाटे में दिखाकर अमर और पंकजा की कंपनियों में विलय कर दिया गया। सर्वोत्तम कैंप लिमिटेड में 25 छोटी कंपनियों का विलय किया गया । अमर सिंह औेर पंकजा सहित कंपनी के निदेशक अमिताभ बच्चन व नोएडा की फ्लैक्स कंपनी के निदेशक अशोक चतुर्वेदी के खिलाफ धोखाधड़ी (420/467/471) 120 बी, भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 7/8/9/10/13 तथा मनी लांड्रिंग एक्ट 3/4 के तहत क्राइम नंबर 458/2009 पर एफआईआर दर्ज कराई थी।

माया राज के शुरूआती दौर में कानपुर में एफआईआर दर्ज होने पर काफी बवाल भी मचा था।सपा मुखिया मुलायम सिंह ने बसपा सरकार पर राजनीतिक विद्वेष के चलते अमर सिंह और अमिताभ बच्चन को फंसाने का आरोप लगाया। अधिकतर कंपनियां कोलकाता से रजिस्टर्ड हुई थी इसलिए शासन के निर्देश पर विवेचना के लिए मामला वहां स्थानांतरित कर दिया गया । बाबूपुरवा के तत्कालीन इंसपेक्टर दिनेश त्रिपाठी कागजात लेकर कोलकाता गये लेकिन वहां पुलिस ने विवेचना ग्रहण करने से इंकार कर दिया। बाद में विवेचना बाबूपुरवा थाना की पुलिस को ही सौंप दी गई थी। फिर यह मामला आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा को स्थानांतरित कर दिया गया था।

बहरहाल, जो हालात बन गए हैं उससे इतना तो तय ही है कि बीमारी से परेशान अमर सिंह को आने वाले दिनों में एक साथ कई मोर्चो पर लड़ना होगा।विवादित छवि और बडबोले पर के कारण ही उन्हें कोई भी राजनैतिक दल अपने साथ लेने को तैयार नहीं है।लोकमंच के सहारे वह अपनी राजनैतिक हैसियत बनाए रखना चाहते हैं लेकिन मंच को राजनैतिक जमीन ही नहीं मिल पा रही है। पूर्वांचल में वह अपनी ताकत ब़ाना चाहते थे, लेकिन उनसे बेहतर स्थिति में तो ॔पीस पार्टी ’ नजर आती है। छवि खराब होने के बाद उनके उद्योगपति, बॉलीबुड के फिल्मी और राजनैतिक दोस्त सभी किनारा करने लगे हैं।अब वह किसी मंच पर नहीं दिखाई देते हैं। उनसे जब इस संबंध में पूछा जाता है तो वह तबियत खराब होने के कारण ऐसे मंचों से दूर रहने की बात कहते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं।चारों तरफ से घिरे अमर आजकल सोनिया गांधी की याद में कसीदे पड़ने में लगे हैं।उनको अपनी राजनैतिक हैसियत बचाए रखने के लिए कांगे्रस के अलावा कोई प्लेटफार्म नजर नही आ रहा है।कांग्र्रेस का साथ मिलने पर अमर की कई परेशानियां कम हो सकती है,यह बात भी वह जानते हैं। पिछले दिनों तो यहां तक चर्चा चली थी कि अमर सिंह अपने लोकमंच का कांगे्रस में विलय करने वाले हैं,लेकिन कुछ कांगे्रसियों के चलते मामला लटक गया।

आखिर लोकतंत्र कहां है?

चैतन्य प्रकाश

मैक्स ईस्टमैन ने 1922 में कहा था ”मैं कभी ऐसा अनुभव करता हूं कि पूंजीवादी और साम्यवादी तथा प्रत्येक व्यवस्था एक दैत्याकार यंत्र बनती जा रही है, जिसमें जीवन मूल्यों की मृत्यु हो रही है”। लैंग के विचार में इस भौतिकवादी संसार में सफलता का मूल्य हमें स्वत्व के संकट के रूप में चुकाना पड़ता है।

जिसके कारण हम जीवन के सत्यात्मक मूल्यों एवं विभिन्न आयामों को नजरअंदाज कर देते हैं। लैंग ने कहा है, ”कितनी विचित्र बात है कि मनोव्याधि की शब्दावली में परोनोया का शब्द तो है जिसमें व्यक्ति इस वहम से ग्रस्त है कि उसे हर कोई यातना दे रहा है या उसका पीछा कर रहा है, लेकिन इस रोग के लिए कोई शब्द नहीं जिसमें व्यक्ति को वाकई ‘यंत्रणा’ (मानसिक एवं बौद्धिक) द्वारा संवेदनशून्य बनाया जा रहा है।

हम संवेदनहीन होते जा रहे हैं। एक दूसरे से अजनबी और बेगाने। यहां तक कि उत्कृष्ट दृश्य से भी बेगाने जिसको यदि हम प्राप्त नहीं कर सकते तो कम से कम उसकी एक झलक तो देख सकते हैं।” रेवलूशन नामक अपनी पुस्तक में आल्डयुस हक्सले लिखते हैं, ”सामाजिक संस्था के हर नए विस्तार के साथ व्यक्ति की मानवीयता का और अधिक अवमूल्यन हो रहा है और वह सामाजिक उपादेयता का पूर्जा मात्र बन कर रह गया है, तैयारशुदा, सृजनात्मकता से रिक्त मनोरंजन मनुष्य की उदासीनता को निरंतर नए-नए क्षेत्रों तक फैला रहा है। अब अस्तित्व सारहीन तथा असहनीय हो गया है”

बीती सदी में मनुष्यता के संकट को पहचानते हुए विचारकों, दार्शनिकों ने मौजूदा व्यवस्था को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। वास्तव में विश्व की विविध सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व्यवस्थाओं का परिप्रेक्ष्य तलाश किया जाये तो लगता है कि ये सब व्यवस्थाएं अंतत: सुविधा के बजाय असुविधा, समन्वय के बजाय संघर्ष और स्वतंत्रता के बजाय निर्भरता को ही प्रोत्साहित करती नजर आती हैं।

घर के घेरे से सड़क के किनारे तक, दफ्तर की फाइल से कचहरी की कवायद तक, बाजार की दुकान से खरीदे गये प्लाट या बनाये गये मकान तक, ट्रैफिक सिग्नल से थाने और हवालात तक, कहीं भी जाना और वापस लौट आना जिल्लत, जहालत और जहन्नुम के अनुभवों से गुजरने का खतरा उठाने जैसी बात हो गयी है। व्यवस्थाओं के बिना इंसान जाहिर तौर पर बेहाल है तो व्यवस्थाओं में फंसकर भी उसका जीना मुश्किल होता जा रहा है।

वह कहां जाये, और कैसे रहे? आखिर कौन उसको बतायेगा? भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले, दुनिया के सबसे बड़े ‘लोकतंत्र’ वाले देश में व्यवस्था का सवाल कटु यथार्थ बनकर खड़ा है। आखिर फटी-पुरानी, टूटी-फूटी, चिथड़े जैसी हो रही व्यवस्था को बदल डालने का सपना देखने की शुरूआत इस देश में नहीं होगी तो फिर कहां होगी? 1974 में देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री ने जब आपातकाल लगाया तो यह बहस मुखर हुई। बाबू जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का बिगुल फूंका तो देश का छात्र और युवा उनके बोल पर डोलने लगा। जल्द ही वह सपना टूट गया, व्यवस्थाएं पुराने खोल पहनकर इतराने लगीं।

बदलाव की बयार को ताकता देश फिर से ढर्रे पर चलने को तैयार हो गया। यों कुछ लोगों की समझ में आया कि सत्ता परिवर्तन सब कुछ नहीं होता, मगर बहुत सारे लोगों ने सत्ता को ‘सब कुछ’ मानना जारी रखा। फिर एक बार 1987 में बोफोर्स दलाली में देश के तत्कालीन कथित मि. क्लीन प्रधानमंत्री के शामिल होने की बातें होने लगी तो परिवर्तन की आहट का अहसास हुआ, लेकिन फिर वही हुआ। सत्ता तो बदल गई, व्यवस्था परिवर्तन का स्वप्न आंखों से ओझल होता दिखाई दिया। सवाल उठता है कि सत्ता में दलों की अदलाबदली जैसा आडंबर करते जाने से क्या लोकतंत्र मजबूत हो पायेगा?

क्या लोकतंत्र का अर्थ लोकाभिमुख व्यवस्थाओं के सृजन और विकास तक नहीं जाता है? यदि हां, तो फिर यह मानना जरूरी हो जाता है कि व्यवस्था परिवर्तन की बात एक वृहद लोकतांत्रिक उद्देश्य है। शायद यह कहना मुनासिब होगा कि व्यवस्था परिवर्तन के बिना सत्ता परिवर्तन की कवायद ‘छलनी से पानी भरने के समान है।’

मगर अगले पायदान पर व्यवस्था परिवर्तन की सच्चाई से भी रूबरू होना जरूरी है। पड़ताल करनी होगी कि मौजूदा व्यवस्था की नाकामी की वजहें क्या हैं और नई व्यवस्थाओं में किन तत्वों का होना जरूरी है? सिरे से खंगाल कर देखने से मौजूदा व्यवस्थाओं की नाकामी की तीन वजहें सामने आती हैं। पहली वजह यह है कि मौजूदा तमाम व्यवस्थाएं ‘शासन’ की प्रवृत्ति पर आधारित हैं अर्थात ‘कुछ लोगों के बहुत लोगों पर शासन’ की मूल इच्छा से ये व्यवस्थाएं निर्मित हुई हैं।

शायद यह मान लिया गया है कि बहुत सारे नासमझ, नादान लोगों को इन व्यवस्थाओं के जरिये चंद लोगों के काबू में रखना है। तमाम प्रशासनिक ढांचा इसी मूल प्रवृत्ति का पोषक है। दूसरी वजह यह है कि सारी व्यवस्थाएं आरोपित हैं, जाने-अनजाने आपको इन्हें मानना होगा, इनके प्रति अवमानना या असहमति का कोई हक तमाम लोकतांत्रिक वायदों की मृगमरीचिका के बावजूद आम आदमी के पास मुश्किल से आ पाता है, जब तक वह जनता बनकर वोटों के माध्यम से सत्ता की सौदेबाजी न करे।

तीसरी वहज यह है कि तमाम व्यवस्थाएं रूढ़िवादिता का पर्याय हैं। इनमें बदलाव की बातें या तो किताबों में होती हैं या आयोगों और समितियों की सिफारिशों में। न गर्म देश में वकील का काला कोट बदलता है और न ही अमानवीय हो चुकी पुलिस की कार्यशैली और पोशाक। सरकारें बदल जाती हैं, पर झूठे, पाखंडी प्रतीक अधिक बेईमानी को पोषित करते हुए जनता को चिढ़ाते रहते हैं।

अब बदलाव की बात पर आया जाए। वैकल्पिक व्यवस्था के आधार तत्व क्या हो सकते हैं? विचार करने से यह सूझता है कि पहला तत्व ‘स्वत्व’ है। सभी को अपने स्वत्व से जीने की स्वतंत्रता मिले। व्यवस्थाएं अपना व्यवहार बदलें, चोगा और चाल-चलन भी बदलें। वे मालिक और हुक्मरानों की तरह पेश आना बंद करें। किसी के स्वत्व पर आघात करने का अधिकार किसी को न हो। थाने, दफ्तर, कोर्ट, कचहरी सब जगह सम्मान एवं सौजन्य का वातावरण हो।

दूसरा तत्व है-’सरोकार’ व्यवस्थायें जन-सरोकारों को समझे, उनसे जुडें, स्वाभाविक पारस्परिक संपर्क-संवाद विकसित करते हुए व्यक्ति-व्यक्ति के भावों, विचारों को विश्वास प्रदान करते हुए आपसी समझ विकसित करें। इस तरह व्यवस्थाएं जन स्वीकार्यता की ओर बढ़ सकेंगी। तीसरा तत्व है ‘सहभाग’। वर्तमान व्यवस्थाएं जन-सहयोग की माला तो जपती हैं, मगर वह सिर्फ दिखावा है। व्यवस्थाओं के प्रबंध एवं निर्णयों में स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक जनसहभाग-शून्य वातावरण दिखाई देता है।

नयी व्यवस्थाओं में जन-सहभाग सुनिश्चित करना होगा। चौथा तत्व है ‘सहजता’। व्यवस्थाएं सहज हों, वे आरोपित, आदेशित एवं आक्रामक न हों। वैसे ऊपर की तीन बातें यदि क्रमश: आजमायी जायें तो अंतिम चौथी बात परिणाम बनकर स्वत: प्रकट होगी। कहने का आशय यह है कि यदि स्वत्व, सरोकार और सहभाग व्यवस्थाओं के केन्द्रीय तत्व होंगे तो व्यवस्थाएं स्वाभाविक रूप से सहज हो सकेंगीं। इस राह में कई सारी संरचनाएं समाप्त होंगीं, कुछ नई गढ़नी होंगीं, पर इन तत्वों की उपस्थिति में यह व्यवस्था न केवल अपने देश में बल्कि सारी दुनिया में मनुष्यता के संकट का निवारण कर सकेगी, यह विश्वास है।

बीसवीं सदीं के महान लेखक ‘फ्रांज काफ्का’ ने कहा था- ”हम उन आदर्शों को पाने की कोशिश करते हैं जो आदर्श हैं ही नहीं। और इस क्रम में उन मूलभूत चीजों को नष्ट कर रहे हैं जिन पर मनुष्य के रूप में हमारा अस्तित्व निर्भर है। हमारी अराजकता का यही कारण है जो हमें खत्म करने के लिए गहरी खाई की ओर ले जा रहा है।”

वास्तव में व्यवस्थाओं के सृजन एवं संचालन में हमने ‘शासन’ को आदर्श माना जो कि वास्तव में आदर्श हो ही नहीं सकता। अतएव हम लगातार पतनोन्मुखी समाज बनते जा रहे हैं। यदि हम सहयोग जैसी मूल प्रवृत्ति को केन्द्र में रखकर व्यवस्थाओं का सृजन एवं संचालन करें तो परस्पर विश्वासी, सजग एवं जीवंत व्यवस्थाओं का विकास संभव है। यदि ऐसा हुआ तो वैकल्पिक व्यवस्थाओं का सपना भारत से होकर समूचे विश्व की मनुष्यता का सार्वभौमिक सपना बन सकता है, जिसे साकार करना जीवन की बेहतरी के लिए एक अहम जरूरत की तरह महसूस होगा।

क्या हो गया है प्रधानमंत्री को…

अवनीश सिंह

जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार आई थी तब वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने पूर्ववर्ती वाजपेयी सरकार का आभार व्यक्त किया था कि उन्हें विरासत में एक मजबूत अर्थव्यवस्था मिली है। यह कथन इतना बड़ा सच था कि सिर पर चढ़कर बोलता था। वरना कांग्रेस के मंत्री किसी दूसरे को श्रेय दें, ऐसा कम ही होता है। लेकिन यही सरकार अब सुरसा की तरह बढ़ती महंगाई और उसे रोकने की नाकामी अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को नाकारा साबित कर रही है। क्या हो गया है हमारे देश के उत्कृष्ट प्रधानमंत्री को! क्या वे किसी अदृश्य ताकत के हाथों की कठपुतली तो नहीं बन गए हैं… ऐसे असहज सवाल शंका के आधार पर लोगों के जेहन में कुलबुला रहे हैं और सरकार अपनी दूसरी पारी का दो वर्ष पूरे करने की ख़ुशी में इतरा रही है।

वहीं दूसरी तरफ स्वच्छता का आवरण ओढ़े माननीय मनमोहन सिंह देश की जनता को अपनी साफ़-सुथरी पगड़ी (छवि) दिखाने में मशगूल हैं। लेकिन कहां-कहां सरकार बचेगी….लोग तो अब खुलकर कहने लगे हैं कि देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार सहित विपक्ष के कुछ नेताओं ने विदेशों में कालेधन जमा करा रखे हैं। ऐसी अवस्था में देश सच्चाई जानना चाहेगा। भ्रष्टाचार के शिष्टाचार में लाचार सत्ता की कमान संभाल रहे ये लोग लोकप्रतिनिधि हैं, वे जनता के प्रति जिम्मेदार हैं। फिर जनता को अंधकार में क्यों रखा जा रहा है… क्यों कभी अन्ना हजारे को तो कभी बाबा रामदेव को अनशन और आन्दोलन करने पड़ रहे हैं। पूरा तंत्र सिर्फ आम आदमी की कीमत पर अपनी जेब भरने में लगा है। फिर चाहे वो कांग्रेस की प्रयोगशाला के भ्रष्टाचार रूपी परखनली से निकले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे अशोक चव्हाण हों या फिर सुरेश कलमाडी। ए राजा हो या करुणानिधि की बेटी कनिमोड़ी।

भारत में जैसे जैसे भ्रष्टाचार का मुद्दा गर्माता जा रहा है, राजनेताओं की छिछालेदार सामने आ रही है, आश्चर्य तो तब होता है जब भारत की राजनीति के प्रेम चोपड़ा कांग्रेस महामंत्री दिग्विजय सिंह हर उस व्यक्ति के कपडे उतारने लग जाते हैं, जो भी भ्रष्टाचार के विरूद्ध अपनी आवाज उठाता है और पूरी कांग्रेस पार्टी में एक भी ऐसा नेता नहीं है जो उनसे कहे कि वे अपना अर्नगल प्रलाप बंद करें। तो क्या यह नहीं माना जाना चाहिये कि दिग्विजय सिंह 10 जनपथ के इशारे पर ये सब हरकतें कर रहे हैं। समझ में नहीं आता कि वे किसके सामने अपनी निष्ठां दिखाना चाहते हैं। सोनिया गाँधी के प्रति या भारत के प्रति।

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि आजादी के इतने बरसों के बाद भी देश में लंबे समय तक शासन का अनुभव रखने वाली कांग्रेस सरकार को अभी तक यह समझ में नहीं आया है कि भ्रष्टाचार से कैसे निपटा जाए। कॉमनवेल्थ घोटाला, आदर्श घोटाला, टेलीकॉम घोटाला और स्पैक्ट्रम घोटाला… एक के बाद एक महाघोटाले ने सरकार के सामने संकट खड़ा कर दिया है। वो तो भला हो इस देश की न्यायपालिका का जिसने थोड़ी ईमानदारी का परिचय देते हुए बेईमान कलमाड़ी और राजा-रानी (ए. राजा, कोनीमोझी) जैसे देश के दलालों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर स्थिति को थोडा संभाल लिया। इन मामलों में केंद्र सरकार को न तो कोई रास्ता सूझ रहा है और न ही कड़े फैसले करने की हिम्मत दिख रही है। ये अलग बात है की सरकार न्यायालय की इस करवाई का श्रेय अपने ऊपर लेकर अपनी पीठ अपने ही हाथ ठोंक ले।

कहने को तो केंद्र में कांग्रेसनीत त्रिगुट (सोनिया, राहुल और मनमोहन) सरकार ने अपनी दूसरी पारी के दो वर्ष पूरे कर लिए हैं लेकिन इन दो वर्षों में इन्होंने देश की लाचार जनता की भावनावों के साथ किस प्रकार बलात्कार किया यह बात किसी से छुपी नहीं है। मंहगाई के कारण पस्त जनता के ह्रदय से निकली अंतर्वेदना से भी इन सत्ताशीन नेताओं का ह्रदय द्रवित नहीं हुआ, और अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ये नेता दिल्ली में गठबंधन धर्म की दुहाई देते हुए जश्न मना रहे हैं। अच्छा तो यह होता कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले राजनेता भ्रष्टाचार पर देश भर में चल रही बहस को देखते हुए इस मुद्दे पर संसद में बात करते, और जनता को यह विश्वास दिलाते कि भारत के राजनीतिक दल भी भ्रष्टाचार को जड़मूल से समाप्त करने के लिए कृतसंकल्पित हैं।

आज जनता जब महंगाई, भ्रष्टाचार, लूट खसोट के सारे इतिहास पलट कर देखती हैं तो अपने आप को सबसे ज्यादा लुटा हुआ इसी सरकार के कार्यकाल में पाती हैं। दान में मिली सत्ता से मनमोहन सिंह जी को अगर जरा भी अपनी साख बचानी हैं तो इस्तीफ़ा दे देना चाहिए… वर्ना इतिहास कहेगा की “इस देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री था जिसे एक महिला ने कठपुतली की तरह नचाया…..” अब तो प्रधानमंत्री के बारे में यह अवधारणा बन चुकी है कि इस सरकार को कोई अदृश्य शक्ति चला रही है। वह संवैधानिक दृष्टि से संसद के प्रति जवाबदेह हैं, लेकिन वस्तुतः वह सोनिया गांधी के प्रति उत्तरदायी हैं। आजादी के बाद इतना कमजोर प्रधानमंत्री शायद किसी ने देखा हो, जिसका अपनी सरकार के काम-काज पर ही नियंत्रण नहीं है। यह भी तय है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में माननीय मनमोहन सिंह सबसे भ्रष्ट सरकार के अगुआ के ख़िताब से नवाज़े जायेंगे।

आप इस संदिग्ध सच्चाई को स्वीकरिए या धिक्कारिए…लेकिन नकार नहीं सकते।

पत्रकार रामबहादुर राय पर केंद्रित होगा मीडिया विमर्श का अगला अंक

भोपाल। जनसंचार के सरोकारों पर केंद्रित त्रैमासिक पत्रिका मीडिया विमर्श का आगामी अंक देश के चर्चित पत्रकार श्री रामबहादुर राय पर केंद्रित होगा। हमारे समय की पत्रकारिता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर श्री राय के योगदान, उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित यह अंक जुलाई माह में प्रकाशित होगा। एक छात्रनेता और जयप्रकाश आंदोलन के प्रमुख सेनानी के रूप में, बाद में एक पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में श्री राय की अनेक छवियां हैं। हमारे समय में जब मूल्यों और आदर्शों की पत्रकारिता का क्षरण हो रहा है, श्री राय जैसे लोग एक आस जगाते हैं कि सारा कुछ खत्म नहीं हुआ है। इस अंक हेतु लेख, विचार, विश्वलेषण, संस्मरण, फोटोग्राफ एवं आवश्यक पत्र 15 जुलाई,2011 तक भेजे जा सकते हैं। इससे इस अंक को महत्वपूर्ण बनाने में मदद मिलेगी।

लेख भेजने के लिए पता है- संजय द्विवेदी, कार्यकारी संपादकः मीडिया विमर्श, 428-रोहित नगर, फेज-1, भोपाल-462039 या अपनी सामग्री मेल भी कर सकते हैं-

123dwivedi@gmail.com , mediavimarsh@gmail.com

परदे के पीछे – अमेरिकी लोकतंत्र का अल्पज्ञात पक्ष

हरिकृष्ण निगम

आज के युग में शायद ऐसी कोई चीज नहीं है जिसे निष्पक्ष सत्य कहा जा सके और उसको किसी न किसी संदर्भ में व्याख्यायित करना अनिवार्य बन जाता है। दुनियां के समक्ष जो भी तथ्य प्रस्तुत होता है, चाहे वह किसी पत्रकार, लेखक या शिक्षक हो उसकी व्याख्या में उसके परिवेश द्वारा कि या गया निर्णय छिपा होता है। यह निर्णय ऐसा भी होता है कि हमारे निर्णय में कौन-सा तथ्य महत्वपूर्ण बन जाता है या कौन महत्वहीन यह हमारी दृष्टि पर निर्भर होता है। इसीलिए बहुधा यह भी कहा जाता है कि विजेताओं का इतिहास विभिन्न जातियों के इतिहास से भिन्न होता हैं। इसीलिए पिछले घटनाक्रमों को चाहे इतिहासकार हों या निष्पक्ष कहलाने वाले पत्रकार अपने समय के रूझानों या वर्ग के हितों के चश्में से संपादित करने का लोभ संवरण नहीं कर पाते हैं और यहां के समग्र दलानियोजन या ‘मैनीपुलेशन’ की कला भी शुरू होती है।

हम बचपन से अमेरिकी जनतंत्र की जड़ों व विकास की परंपराओं के बारे में पढ़ते रहते हैं पर यदि स्वयं अमेरिकी इतिहासकारों व टिप्पणीकारों द्वारा अपने वैकल्पक इतिवृत्त की कड़वी सच्चाइयों के बारे में नहीं पढ़ते तो वहां के समग्र चित्र को भलीभांति नहीं समझ सकते हैं। स्वयं हमारे देश के अनेक बुध्दिजीवी भी उन अल्पज्ञात तथ्यों से हमारे देशवासियों को अवगत कराने की आवश्यकता नहीं महसूस करते हैं। पर एक बात यह भी सिध्द होती है कि आज भी अमेरिकी प्रशासन सर्वोच्च स्तर पर पहले की तरही ही किन्हीं थोथे आदर्शों की दुहाई नहीं देते हैं और राष्ट्रीय हित व सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हैं जिसके लिए दूरगामी भू-राजनीति के मुद्दों को वे क्षण भर भी अनदेखा नहीं करते हैं। अमेरिका की धरती से दूर विश्व के किसी भी कोने में दशकों पहले भी वे किसी आक्रामक नीति के लिए कभी हीनता-ग्रंथि नहीं दिखाते रहे हैं। एक समय कोरिया में वूमेने ने सैनिक कार्यवाही में लाखों लोगों को मरवाया था। दूर-सुदूर इंडो-चायना या वियतनाम युध्द में लिंडन जॉनसन व रिचर्ड निक्सन ने कुल मिलाकर 3 मिलियन लोगों की बलि चढ़ा दी थी। रोनाल्ड रीगन ने ग्रेनाडा पर आक्रमण किया था। जार्ज बुश ने पले पनामा पर फिर इराक पर हमला करवाया था। क्विंटन ने ईराक पर बार-बार बमबारी करवाई थी।

अगर अमेरिका के पहले के इतिहास पर भी दृष्टिपात करें तो यही देखेंगे कि जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने नई दुनिया खोजी थी तभी से हिस्पोनियोला की स्थानीय जनसंख्या के नरसंहार का सिलसिला शुरू हो गया था। रेड इंडियन जो वहां के मूलवासी थे आज वे सिर्फ अजायब घर जैसे आरक्षित स्थानों पर ही देखे जा सकते हैं। उनका हशियेपर आना अमेरिकी इतिहास की बड़ी त्रासदी रही है। अमेरिका के अनेक प्रांत के ंद्रीय सत्ता के हाथ में कैसे आए, इसका अपना इतिहास है। लूसियाना प्रांत खरीद कर मिलाया गया था। यही हाल फ्लोरिडा के अमेरिकी राज्य में जुड़ने का था अलास्का रूस से खरीद कर जोड़ा गया था। मेक्सिको के बड़े हिस्से व कौलरेडो को बलात् जोड़ा गया था। लैटिनी जनसंख्या वाले विशाल समूह जो कैलीफोर्निया व दक्षिण-पूर्व में रहते थे उनको हिंसा, युध्द तथा लंबे समय की जातीय घृणा के बाद अमेरिका का हिस्सा बनाया गया।

आज तो निक्सन और किसिंजर के वे सैकड़ों कुकृत्य सामने आ चुके हैं जिसमें उन्होंने एक और धर्मतंत्र, तानाशाहों और क्षेत्रीय सुरक्षा के नाम पर राजतंत्रों के शह देखकर जनसंहार के अनेक प्रकरणों को शह दी और अनेक उदाहरण ऐसे भी हैं जब उन्होंने धर्मांध शासकों को ‘जनोसाइड’ की पूर्व अनुमति दी तथा प्रजातांत्रिक शासनों के विरूध्द खुलकर घृणा भी प्रकट की। इंडोचीन की गुप्त, अवैध और व्यापक बमबारी सिर्फ निक्सन और किसिंगर के अपने राजनीतिक करियर को बढ़ाने के लिए एक विशेष नियत समय पर लाभ के लिए की गई थी। 1971 में इन्हीं दोनों ने पाकिस्तानी सेना को बंग्लादेश में नरसंहार के लिए जनरल यहिया खां को उकसाया था। विश्वविख्यात लेखक क्रिस्टोफर हिचिंस द्वारा उध्दृत हेनरी फिसिंजर के उस समय के कुटिल वक्तव्य को दोहरायें तो उसने यही कहा था – ‘यहिया को हिंदू नरसंहार के लिए हुए कॉफी समय बीत गए हैं उसे फिर से इसका आनंद मिलना चाहिए। चिली और आर्जेंटाईना के कातिल तानाशाहों से भी किसिंजर की इतनी दोस्ती थी कि उनके सत्ता में बने रहने के लिए किए गए हर नरसंहार को अनदेखा कर देते थे। अपने इंडोनेशियाई सत्तारूढ़ मित्रों को अपने पूर्वी तिमोर के संघर्ष के समय नरसंहार वे किसिंजर ने अप्रत्यक्ष मदद भी की थी। जोराल्ड फोर्ड जब राष्ट्रपति थे जब किसिंजर की सलाह पर ही सदृाम हुसेन को कुर्द विद्राहियों के जनसंहार की अनुमति दे गई थी। फोर्ड के समय ही तुर्की को साईंप्रस द्वीप पर हमला करने का अनुमोदन दिया गया था। अमेरिका जैसे आदर्श प्रजातंत्र किसी स्वतंत्र देश को तोड़ने या उसके प्रमुख की हत्या के विकल्प को भी अपना सकता है यह विस्मयजनक हैं एक समय वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूंगो चावेज की हत्या करवाने के लिए अमेरिकी हाथ की बात ने अंतराष्ट्रीय राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया था।

प्रतिरोध की राजनीति अमेरिकी के आधुनिक इतिहास में काफी चर्चित रही है। लीबिया के राष्ट्रपति मुअम्मर गद्दाफी के त्रिपोली स्थित महल पर बमबारी भी उनको मारने की अमेरिकी साजिश कही जाती थी, जिसमें उनकी एक बच्ची की मृत्यु हुई थी। फिडेल कास्ट्रो की हत्या की अमेरिकी कोशिशें भी कई बार नाकाम रही थी। शीत युध्द के समय राष्ट्रसंघ के अध्यक्ष हैमरशोल्ड की वायु दुर्घटना में मृत्यु और चिल्ली के राष्ट्रपति आयडे की हत्या उनके अमेरिकी विरोध की अंतिम नियति कही जा सकती है।

जैसा ऊपर इंगित किया है साठ और सत्तर के दशक में तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट हेनरी किसिंजर भारत के हितैषी होना तो दूर एक बड़े खलनायक के रूप में प्रकट हुए थे। यह हम जानते हैं कि सन् 1971 के बंग्लादेशी के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अमेरिका का झुकाव उसकी सेना के वहां पर दमन के बावजून पाकिस्तान की ओर ही था। वाशिंगटन स्थित जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार संबंधी वेबसाइट पर यह रहस्य उजागर किया गया है कि जुलाई, 1971 में चीनी और अमेरिकी अधिकारियों की एक गुप्त मीटिंग में भारत के विरूध्द एक नया मोर्चा खोलने की साजिश हो रही थी। उसके बाद 10 सितंबर, 1971 में राष्ट्रसंघ स्थिति चीनी राजदूत हुआंग हुआ के साथ हुई एक अत्यंत गोपनीय मीटिंग में हेनरी किसिंजर उन्हें सुझाव दे रहे थे कि यदि चीन भारत के विरूध्द सैनिक कार्यवाही प्रारंभ करेगा तो अमेरिका बंग्लादेश न बनने देने के लिए पाकिस्तानी सेना को वहां हर सहायता देने को तैयार था। यहां तक कि पाकिस्तान पर लागू किए गए प्रतिबंधों का स्वयं उल्लंघन कर उसने उसे 5 एफ. ए. लड़ाकू विमान और आवश्यक कलपूर्जे मुहैया कराए। ‘किसिंजर ट्रान्सिक्रिप्ट्स’ नामक ग्रंथ में भी जब किसिंजर चीनी राष्ट्रपति माओ से 1 नवंबर, 1973 में मिले भारत के खिलाफ अमेरिकी दांव पेंचों का खुलकर वर्णन किया गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि लोकतंत्र व खुले उदारवादी समाज की दुहाई के पीछे अमेरिका अपने देश के दूरगामी भूराजनीतिक स्वार्थों को ही सर्वोपरि मानता है और अपने आदर्शवादी ढोल को तभी पीता है जब वह उसके लिए सुविधाजनक होता है। इसके विपरीत या तो हमारे देश में बुध्दिजीवियों की स्मृति बहुत कच्ची है, हम सदैव अमेरिकी वर्चस्व से भयाक्रांत रहते है अथवा अपनी आदर्शवादी दुनियां में जीने के आदि हैं, नहीं तो इन अल्पज्ञात तथ्यों को जनसाधारण के समक्ष रखने में कभी नहीं हिचकिचाते।

* लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

सिकुड़ते पाकिस्तान का पुनर्रचित मानचित्र

हरिकृष्ण निगम

अंग्रेजी में एक लोकप्रिय कहावत है कि जो तलवार के बल पर जीवित रहता है वह तलवार के बार से ही मरता भी है। पाकिस्तान में कुछ अरसे से यह लोकोक्ति चरितार्थ हो रही है। हिंसा और आतंकवाद के पोषक एवं निर्यातक देश पिछले कुछ वर्षों से अतिरेकी हादसों व विस्फोटों का स्वयं शिकार बना हुआ है और जिसके कारण कराची और उत्तर-पश्चिम के कुछ शहरों को आज दुनियां के सर्वाधिक ज्वलनशील और खतरनाक स्थानों में गिना जा रहा है। इस स्थिति के कारण अमेरिकी सहित कुछ पश्चिमी देशों के सुरक्षा विशेषज्ञ एवं विश्लेषक उसके ढहते आस्तित्व पर ऐसी पटकथाएं भी खुल कर प्रचारित कर रहे हैं जैसे उसका विघटन या सीमाओं का पुनर्रचित मानचित्र भी अनेक नए दबावों के परिप्रेक्ष्य में जल्दी ही एक यथार्थ बन सकता है।

पहले यह समझा जाता था कि यह किसी संभावित स्थिति की भूराजनीतिक रूपरेखा या उसका मात्र सैध्दांतिक अभ्यास हो सकता है। पर आज यह वर्तमान सीमाओं के अध्ययन की भावी परिकल्पना मात्र रह गई है। ‘न्यूयार्क टाईम्स’ में हाल के प्रकाशित एक समाचार के अनुसार दक्षिण एशिया के एक नए प्रदर्शित मानचित्र में पाकिस्तान टुकड़ों में कटा हुआ दिखाया गया है जिसमें उसके भू-भाग की एक लंबी पट्टी ही बची हुई है। इस विघटित दीमक खाए जैसे पाकिस्तानी मानचित्र के प्रकाशन के बाद इस्लामाबाद के सैनिक संस्थानों में हड़कंप मच गई है। पहले यह मानचित्र मूल रूप से ‘आर्म्ड फोरसेज जनरल’ में राल्फ पीटर्स के एक लेखके साथ छपा था जिसका शीर्षक था ”ब्लड बार्डर्स : हाउ ए बेटर मिडिल ईस्ट वुड लुक”। विशेषज्ञों की इस तरह की टिप्पणियों से पाकिस्तान सैनिक संस्थान चिंतित है और इसमें षड़यंत्र की बू पाकर भारत और अफगानिस्तान के मंतव्यों पर भी संशय करने लगे हैं कि वे एक अमेरिकी साजिश एवं दुरभि संधि के माध्यम से उनके देश को, जो आणविक शक्ति-युक्त अकेला मुस्लिम देश है, नष्ट न कर दें।

पाकिस्तान के सिकुड़ते हुए भावी मानचित्र को लेकर कुछ दिनों पहले जब अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य बलों के प्रमुख जनरल डेविड मैककीरने ने इस्लामाबाद गए थे तब पाकिस्तान मेें संसद के 70 सदस्य अमेरिकी राजदूत एन. डब्लू. पैटर्सन के आवास पर उनसे मिलने गए और जानना चाहते थे कि कहीं क्षेत्रीय राजनीति में अमेरिकी दृष्टिकोण में अंतर तो नहीं आ गया है। लोग जानना चाहते हैं कि क्या अमेरिका भी पाक को खंडित करना चाहता था? पिछले पांच दशकों से अधिक अमेरिका का राजनीतिक सहयोग और उसका क्षेत्र की भूराजनीतिक गतिविधियों का विश्वसनीय केंद्र होने पर भी अमेरिका ऐसा क्यों चाहता है? इस पर तरह-तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। एक ओर ओबामा प्रशासन पाक से आतंकवाद विरोधी अभियान में अधिक सहयोग चाहता है दूसरी ओर अमेरिका के दूरगामी हितों पर भी उसकी दृष्टि बराबर है जहां सभी पाकिस्तानी प्रशासन को ‘अराजक’ राज्य या अंतर्राष्ट्रीय अपराधियों का उद्गम एवं उद्यम तक कह चुके हैं।

यह भी स्पष्ट है कि पाकिस्तान भारत अमेरिकी आणविक समझौते के साथ बढ़ते भारत-अफगान सहयोग पर बौखला रहा है। मानचित्र में उसका कुछ पूर्वी भाग भारत के साथ और पश्चिम में उसका एक बड़ा हिस्सा अफगानिस्तान में दिखाया गया है। पाकिस्तान के चारो प्रांतों में पंजाब के वर्चस्व और जनजातीय विभाजन में ‘फाल्टलाईन्स’ और सिंध के पुराने आंदोलन के कारण विभिन्न क्षेत्रों में देश को बांधने वाला कोई सूत्र नहीं हैं। उसकी एकता का सिर्फ एक कारण भारत विरोध व धर्मांधता को लगातार हवा देना रहा है। इसीलिए अलकायदा अथवा तालिबान पर अंकुश लगाने के प्रयासों का दावा मात्र छलावा रहा है।

सन् 2005 के प्रारंभ में भी अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सी.आई.ए. ने कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष और आकलन प्रकाशित किए थे जिसमें सन् 2015 तक पाकिस्तान के टुकड़े होने की बात थी। उसकी नींव हिलाने वाले कारणों के परमाणु आयुधों पर तालिबान के संभावित नियंत्रण और बलूचिस्तान, पख्तूनिस्तान एवं सिंध में चले आ रहे आंदोलन का तेज होना कहा जा गया था। यह रिपोर्ट जो राष्ट्रीय खुफिया परिषद्-नेशनल इंटेलीजेंस काउंसिल और सी. आई. ए. ने संयुक्त रूप से जारी की थी उसमें पाकिस्तान में अंतप्र्रांतीय प्रतिद्वंदिता, गृहयुध्द और कट्टरवादियों का अणु-आयुधों पर नियंत्रण दुनियां के लिए एक खतरे के रूप में चित्रित किया गया था। इसी रिपोर्ट में पाकिस्तान के इंगलैंड में रहे पूर्व उच्चायुक्त वाजिद शम्सुल हसन को उध्दृत करते हुए कहा गया था कि यह देश कब और कै से युगोस्लाविया जैसा बन जाएगा। सी.आई.ई. के पूर्व निदेशक जार्ज टेनेट ने भी यही बात काफी पहले कही थी। अमेरिकी नौसेना की गुप्तचर एजेंसी के निदेशक लोबेल जैकोबी ने भी अमेरिकी सीनेट की सुरक्षा संबंधी सेलेक्ट कॉमेटी में कहा था कि पाकिस्तान क्योंकि लीबिया, ईरान और उत्तरी कोरिया के आणविक कार्यक्रमों का सूत्रधार रहा है इसलिए उससे कोई सहानुभूति दिखाना अमेरिका को स्वयं धोखा देना होगा। कुछ भी हो आज लगता है पुरानी भविष्यवाणियां या विशेषज्ञों के निष्कर्ष पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ेंगे क्योंकि स्वात घाटी और पेशावर तक अतिरेकियों का असली कब्जा है, सरकार का नहीं।

* लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं।

ये है दिल्ली मेरी जान

लिमटी खरे

यूपी कांग्रेस से आहत हैं युवराज

भट्टा परसौल गांव में जाकर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को जगाने का अच्छा स्टेंड उठाया था, किन्तु उनके इस कदम का उत्तर प्रदेश में बसपा पर न के बराबर ही फर्क पड़ा है। साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भी सुसुप्तावस्था से जाग नहीं सकी है। उत्तर प्रदेश और केंद्र में कांग्रेस के प्यादों और नेताओं की निष्क्रियता से आहत राहुल गांधी ने खुद ही मोर्चा संभालने का मन बनाया और कुछ किसानों के प्रतिनिधिमण्डल के साथ प्रधानमंत्री से जा मिले। राहुल के मीडिया प्रबंधकों द्वारा मैनेज्ड न्यूज चैनल और प्रिंट मीडिया में यह खबर जोरदार तरीके से पेश की गई किन्तु जमीनी तौर पर कोई भूचाल नहीं आया। इससे आहत राहुल ने इस गांव में लगभग छः दर्जन किसानों के मारे जाने का सनसनीखेज आरोप भी जड़ दिया। अब देखना यह है कि किसानों के मरने की पुष्टि राख के परीक्षण के उपरांत कब होती है, यूपी के विधानसभा चुनावों के बाद या उससे पहले!

सत्तर के काका लगा रहे कुलाटी

कहते हैं बंदर कितना भी बूढ़ा हो जाए, कुलाटी मारना नहीं छोड़ता। कमोबेश यह फिकरा वालीवुड के शहंशाह रहे काका यानी सत्तर के दशक के सुपर स्टार जतिन उर्फ राजेश खन्ना पर एकदम फिट बैठ रहा है। 29 दिसंबर 1942 को जन्मे काका ने डिंपल कापडिया का साथ छोड़ने के बाद फिल्मों से लगभग किनारा ही कर लिया था। काका का जीवन एकाकी हो चला था, किन्तु पिछले एक दशक से काका के नीरस जीवन में एक बार फिर बहार आती दिख रही है। काका पिछले आठ सालों से फिलीपींस के पूर्व महामहिम राष्ट्रपति फर्निनांड मोर्कोज की भतीजी अनीता आड़वाणी के साथ ‘नयन मटक्का‘ कर रहे हैं। कांग्रेस के नई दिल्ली के पूर्व सासंद रहे काका का अफेयर बांद्रा में रहने वाली अनीता के साथ चल रहा है, दोनों ही एक दूसरे को पिछले 32 सालों से जानते हैं। गुजरे जमाने के सुपर स्टार राजेश खन्ना भले ही आज गुमनामी के अंधेरे में जीवन बिता रहे हों पर उनके चाहने वालों की कमी आज भी नहीं है। रोमांटिक हीरो की छवि बना चुके काका और अनीता का अफेयर कहां तक परवान चढ़ पाता है इस बात का इंतजार सभी को बेसब्री से है।

ममता का सोमनाथ प्रेम!

देश की सबसे निष्क्रिय रेल मंत्री रहीं ममता बनर्जी अब बंगाल की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। ममता बनर्जी कभी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सहयोगी सदस्य और मंत्री रही हैं, तब उनकी और राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी की खासी छना करती थी। हाल ही में चुनाव नतीजों के बाद ममता को सोमनाथ चटर्जी का बधाई हेतु फोन आया। ममता के करीबी सूत्रों का कहना है कि ममता ने दादा से घुटकर बात की और उनके पैर छूकर आर्शीवाद लेने की इच्छा भी जताई। वहीं दूसरी ओर कुछ देर बाद जब राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आड़वाणी ने फोन किया तो लाईन कुछ देर होल्ड कराई गई और बाद में टका सा जवाब मिला -‘‘मदाम अभी व्यस्त हैं, फुर्सत मिलते ही आपको फोन करेंगी।‘‘ राजनैतिक वीथिकाओं में इन दोनों ही बातों के मतलब तलाशे जा रहे हैं।

माननीयों के लिए लगता है इतना टेक्स!

सरकार ने पेट्रोल के दाम एक बार फिर बढ़ा दिए हैं, जिससे देशव्यापी बहस छिड़ गई है कि आखिर पेट्रोल के वास्तविक दाम क्या हैं? इस पर कितना टेक्स आहूत होता है, और टेक्स से प्राप्त रकम का उपयोग जनता के लिए किस मद में किया जाता है? दरअसल पेट्रोल का वास्तविक मूल्य 28 रूपए 38 पैसे है, इस पर एक्साईज ड्यूटी 14 रूपए 35 पैसे, एजूकेशन सेस 43 पैसे, वैट 10 रूपए 36 पैसे, डीलर कमीशन एक रूपए 21 पैसे, कस्टम ड्यूटी 2 रूपए 64 पैसे, ट्रांसपोर्टेशन चार्जेस छः रूपए लगता है इस तरह दिल्ली में पेट्रोल की कीमत63 रूपए 37 पैसे हो जाती है। इस तरह एक लीटर पर 34 रूपए 99 पैसे का करारोपड़ किया जाता है। रोजाना लाखों लीटर पेट्रोल की खपत है देश में। अब सवाल यह है कि इतनी अधिक तादाद में वसूले गए कर का उपयोग सरकार द्वारा किस मद में किया जाता है इसका खुलासा अवश्य ही होना चाहिए।

भ्रष्टाचार से आम आदमी की टूटी कमर!

भ्रष्टाचार पर होने वाले विरोधी जोरदार प्रदर्शनों से साफ हो गया है कि जनता किस कदर इससे आजिज आ चुकी है। अमेरिकी सर्वेक्षण एजेंसी ‘गैलप‘ के द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से साफ हो गया है कि देश की लगभग आधी आबादी ने इसके खिलाफ जंग छेड़ी है। 47 फीसदी लोगों का मानना है कि पांच साल मंे भ्रष्टाचार का स्तर देश में तेजी से बढ़ा है। गैलप के प्रतिवेदन के अनुसार भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन को मिले व्यापक जनसमर्थन से साफ हो गया है कि लोग मानने लगे हैं कि यह समाज में गहराई तक पैठ कर चुकी है। सरकार के प्रयासों को भी लोगों ने नाकाफी ही बताया है। गौरतलब है कि वर्तमान प्रधानमंत्री डाॅक्टर मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि के बाद भी भ्रष्टाचार रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है जिससे जनता बुरी तरह हताश हो चुकी है।

अमूल बेबी को पंप पर धरना देने का मशविरा!

कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने यूपी के भट्टा परसौल गांव जाकर वहां के किसानों के हितैषी होने का बेहतरीन काम किया है। यह उनका स्वांग था या फिर वे वाकई किसानों के हिमायती है, यह तो वे ही जाने पर लोगों ने राहुल को अब देश के लिए कुछ करने का मशविरा दे डाला है। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट ‘फेसबुक‘ पर लोगों ने चुनावों के तत्काल बाद ही बढ़े पेट्रोल के दाम पर तल्ख नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार और राहुल पर ताने मारे हैं। लोगों का कहना है कि कांग्रेस महासचिव को अब देश के किसी भी पेट्रोल पंप पर उसी तरह बैठ जाना चाहिए जैसा कि वे गे्रटर नोएडा के एक गांव में जाकर बैठे थे। इस पर एक टिप्पणी आई -‘‘कांग्रेस का हाथ गरीब के साथ, किन्तु गरीब पेट्रोल खरीदता ही नहीं!‘‘

मौत का पर्याय बन चुकी हैं दिल्ली की सड़कें

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की सड़कों पर सड़क हादसों में मरने वाली की तादाद देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबा लेता है। आए दिन यहां सड़क हादसों में लोगों के मरने की खबरों से अखबार और समाचार चेनल पटे पड़े होते हैं। अब तो इस मामले में न्यायालय ने भी अपनी तलख टिप्पणी कर दी है। दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायधीश एस.एस.राठी ने 11 साल पुराने एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान सजा सुनाते हुए कहा कि एसा लगता है मानो दिल्ली दुर्घटनओं की राजधानी बनकर रह गई है। आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली की सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की तादाद सबसे अधिक है, इसलिए एसे चालकों के खिलाफ किसी भी प्रकार की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए। यह सब देखने सुनने के बाद भी दिल्ली की सरकार हाथ पर हाथ रखे बैठी है और यातायात पुलिस वाले सिर्फ और सिर्फ चैथ वसूली पर ही अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।

मोस्ट वांटेड प्रकरण पर तूल न देने की अपील

देश के गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम का दुस्साहस तो देखिए, पाकिस्तान को सौंपी ‘मोस्ट वांटेड‘ अपराधियों की सूची में शामिल वजाहुल कमर खान जिसे पाकिस्तान में होने का संदेह जताया जा रहा था, वह भारत के मुंबई के ठाणे में ही वघोला स्टेट में अपनी मां और बीबी के साथ मजे से रह रहा है। भारत सरकार द्वारा की गई इतनी बड़ी गल्ति पर गृह मंत्री चिदम्बरम फरमा रहे हैं कि एक नाम गलत होने से क्या होता है, बाकी 49 तो सही हैं, साथ ही यह सूची उनके कार्यकाल में तैयार नहीं हुई थी। सवाल यह उठता है कि कार्यकाल किसी का भी रहा हो गल्ति तो गृह मंत्री की थी। बेहतर होता चिदम्बर इस बारे में अपने ही किसी अन्य साथी का दामन बचाने के बजाए इसकी जांच करने की बात कहते, वस्तुतः एसा हुआ नहीं। आतंकवाद की आग में सुलग रहे भारत के लिए यह एक बड़ी बात है, इससे गृह मंत्री की अक्षमता ही साबित होती है।

महिला निजाम बढ़ीं पर सदन में संख्या गिरी

पांच राज्योें मंे चुनाव के उपरांत तमिलनाडू में जयललिता और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही देश में मायावती और शीला दीक्षित को मिलाकर महिला मुख्यमंत्रियों की तादाद में इजाफा हुआ है। गौरतलब बात यह है कि मुख्यमंत्री पद पर तो महिलाओं ने अपनी जानदार और शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है किन्तु सदन में इनकी तादाद में खासी गिरावट दर्ज की गई है। महिला साक्षरता में 93.91 फीसदी और लिंगानुपात में 1084 के सकारात्मक आंकड़े के बावजूद भी केरल में महज पांच फीसदी महिलाएं ही सदन में पहुंची हैं। 1996 में यहां महिला विधायकों की तादाद 13 थी जो घटकर सात पर पहुंची है। इसी तरह तमिलनाडू में पिछली बार 22 के मुकाबले महज 14 ही सदन में प्रवेश पा सकीं हैं। पश्चिम बंगाल में यह संख्या दो बढ़कर 37 हो गई है।

बिना फिटनेस दौड़ रही सरकारी क्रेन!

निजी व्यवसायिक वाहनों के पास अगर फिटनेस प्रमाणपत्र न हो तो दिल्ली यातायात पुलिस द्वारा उनकी नाक में दम कर दी जाती है, किन्तु जब खुद की बारी आती है तो महकमे में खामोशी पसर जाती है। दिल्ली के सीताराम बाजार निवासी गणेश दत्त के सूचना के अधिकार आवेदन के जवाब में हैरत अंगेज जानकारी निकल कर आई है। जवाब में कहा गया है कि सरकारी वाहनों को हर साल फिटनेस प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य होता है, किन्तु सड़कों पर दौड़ रही 55 छोटी क्रेन में से महज 33 के पास ही फिटनेस प्रमाण पत्र है अर्थात शेष 22 बिना फिटनेस के ही दौड़ रही हैं। दस सरकारी क्रेन को खरीदी के वक्त फिटनेस दिया गया था दो साल के लिए पर वह भी दुबारा चेक नहीं किया गया है। सच ही कहा है किसी ने सरकार का गोल गोल, और निजी वाहन स्वामी का गोल हाॅफ साईड!

23 फीसदी अधिक टुल्ली हुए दिल्ली वाले

दिल्ली में शराब अब संस्कृति में रच बस गई है। दिल्ली में जाम छलकाने वालों की तो पौ बारह है। सेहत के लिए हानीकारक बताई जाने वाली शराब दरअसल दिल्ली सरकार की सेहत को काफी हद तक सुधार रही है। कम से कम आंकड़े तो यही बयां कर रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल शराब बेचकर दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग ने साढ़े तीन सौ करोड़ रूपए अधिक कमाए हैं। 01 अप्रेेल 2010 से 31 मार्च 2011 की आलोच्य अवधि में दिल्ली सरकार के आबकारी विभाग ने 2027 करोड़ रूपए कमाए थे, जबकि 01 अप्रेल 2009 से 31 मार्च 2010 तक की अवधि में यह आंकड़ा 1644 करोड़ रूपयों का था। चालू माली साल में यह लक्ष्य बढ़ाकर 2300 करोड़ रूपए कर दिया गया है। उधर मदर डेयरी दूध के दामों में इजाफा किए जा रही है, मतलब साफ है कि शीला सरकार की मंशा है कि दिल्ली वाले दूध की जगह शराब का सेवन कर सरकार की सेहत सुधारें।

बारिश के बाद करवाएंगे स्वीमिंग!

दिल्ली सरकार अजीब ही है भरी गर्मी से राहत दिलाने में उसकी पेशानी पर पसीने की बूंदे छलक रही हैं। पानी और बिजली की किल्लत चरम पर है। अमूमन मार्च माह से ही तरण ताल यानी स्वीमिंग पूल खोल दिए जाते हैं, पर इस बार मई बीतने को है पर दिल्ली में स्वीमिंग पूल में ताले ही चस्पा हैं। गौरतलब है कि दिल्ली में एक लाख से अधिक लोग गर्मी में स्वीमिंग पूल का उपयोग किया करते हैं। एमसीडी ने छः में से महज दो स्वीमिंग पूल ही खोलकर रखे हैं, डीडीए के 14 स्वीमिंग पूल लाईफ गार्ड के अभाव में बंद ही पड़े हुए हैं। सरकार की लालफीताशाही इस कदर सर चढ़कर बोल रही है कि लाईफ गार्ड के लिए विज्ञापन देना भी उसने मुनासिब नहीं समझा है। हालात देखकर लगने लगा है मानो दिल्ली में इस बार बारिश के उपरांत ही जाड़ों की हाड़ गलाने वाली ठंड में दिल्ली वासियों को स्वीमिंग पूल में तैरना नसीब हो पाएगा।

कानून की धज्जियां उड़ती शीला राज में

देश में 18 साल से कम उमर की महिलाओं का मां बनना अपराध माना जाता है किन्तु दिल्ली में इस कानून का सरेराह माखौल उड़ाया जा रहा है। एक निजी संस्था द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के नतीजे चैंकाने वाले हैं। सर्वे बताता है कि दिलली में 67 फीसदी महिलाएं अस्पतालों के बजाए घरों पर ही प्रसव के लिए मजबूर हैं। इतना ही नहीं 15 से 17 साल की उमर में मां बनने वाली महिलाओं की तादाद 51 फीसदी है। परिवार कल्याण विभाग भले ही परिवार नियोजित करने के उपयों के लिए ढिंढोरा पीटने में करोड़ों अरबों रूपए खर्च कर रहा हो पर 62 फीसदी महिलाओं को इस बात का इल्म नहीं है कि परिवार नियोजित करने के उपाय क्या हैं। तीसरी बार दिल्ली की गद्दी पर बैठी शीला दीक्षित के राज की यह एक भयावह तस्वीर से कम प्रतीत नहीं होता है।

पुच्छल तारा

कभी दिल्ली में दूध दही की नदियां बहती थीं, पर अब दिल्ली में शराब की नदियां बह रही हैं। दिल्ली से मध्य प्रदेश के कटनी लौटे महेश रावलानी ने इसी पर एक ईमेल भेजा है। महेश लिखते हैं कि जब मैने पहली बाद दारू को हाथ लगाया तब मैं अपनी नजरों में गिर गया। पर . . . . जब मैने उन तमाम दारू फेक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की बीवी बच्चों के बारे में सोचा तो मेरी आंख भर आई, और मैने फैसला कर लिया कि अब उनकी खातिर में रोजाना ही पिया करूंगा, ताकि उनके घरों में चूल्हा जल सके। अपने लिए तो सब जीते हैं, कभी दूसरों के लिए भी जीकर देखो मेरे दोस्त। ‘दारूप्रेमी समाजसेवियों के लिए जनहित में जारी।‘‘

आम आदमी के लिये मुसीबत भरे सरकार के दो वर्ष

यूपीए 2 सरकार के दो वर्ष पूरे हुए। पर इन दो सालो में भारत में जो कुछ घटित हुआ शायद भारत का इतिहास उसे कभी न भूला पाये और ऐसा भी हो सकता है कि आने वाले समय में ये दो वर्ष कांग्रेस के लिये कलंक बन जाये। कमर तोड मंहगाई, घोटाले, रोज रोज

बढ़ते  पेट्रोल के दाम। आम आदमी ने रो पीट कर ये दो वर्ष तो जैसे तैसे गुजार लिया पर अभी यूपीए2 सरकार के तीन वर्ष और बाकी है। यू तो आज की राजनीति वेश्या की तरह होती जा रही है। देश किस तरह चलाया जा रहा है देश किस तरह चलाना चाहिये हमारी राजनीतिक पार्टियो और प्रतिनिधियो को इस का जरा भी अहसास नही। दिन रात बढ़ती मंहगाई को देखकर ऐसा बिल्कुल भी नही लग रहा कि देश का प्रधानमंत्री एक मजा हुआ देश का एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री है। दिन रात बढ़ती मंहगाई और देश में रह रहे करोडो गरीब लोगो की किसी को कोई फिक्र नही अपनी जिम्मेदारी का किसी को अहसास नही उन में चाहे कृषि मंत्री, वित्तमंत्री या फिर प्रधानमंत्री। अब देखना ये है कि क्या इन तीन वर्ष में भारत में रह रहे गरीबो और मध्यमवर्ग को कुछ राहत मिल पायेगी सरकार की वो कौन सी नीतिया होगा जो गरीबो को सस्ता आनाज सर ापने को छत और उस के बच्चो को शिक्षा दे पायेगी।

आज कांग्रेस पार्टी ने जिस वोटर को खिनौना समझा हुआ है दरअसल वो खिनौना नही है न तो उसे संसद में सांसदो की तरह खरीदा या बेचा जा सकता है और न ही उसे बहुत देर तक झूठे वादो से बहलाया नही जा सकता है भट्टासौल के किसानो की तरह न ही इसे डरा धमका कर बंधक बनाया जा सकता है और न ही देश में कॉमनवैल्थ गेम्स कर के अब आसानी से उसे बेवकूफ नही बनाया जा सकता है। कांग्रेस पार्टी के 125 सालो के इतिहास में करीब 40 वर्ष से ज्यादा कांग्रेस पार्टी ने देश पर राज किया। पर कांग्रेस इन 40 सालो में ये क्यो नही समझ पाई के देश का वोटर न तो उसके हाथो का खिलौना है और न ही गुलाम बल्कि वो तो सही मायनो में राजा है हाकिम है जिसने कांग्रेस को पॉच साल देश की सेवा करने का अवसर प्रदान किया। अगर मुसलमानो के हितो की बात की जाये तो आजादी के बाद जितना शौषण काग्रेस ने मुसलमानो का किया है दूसरी किसी भी सरकार ने नही किया। काग्रेस ने कभी भी मुसलमानो की चिन्ता नही की। जब जब काग्रेस पाट्री को मुसलमानो के वोट की जरूरत हुई तो मुस्लिमो को रिझाने के लिये सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र या लिब्राहन आयोग का चारा डालकर मुसलमानो का शौषण किया गया। न्याय मूर्ति राजेन्द्र सच्चर आयोग हो या समय समय पर मुसलमानो के उत्थान के लिये गठित की गई समितिया सभी ने हर बार मुसलमानो की दयनीय स्थिति पर सुझाव दिये।कई आयोग गठित किये गये पर सिर्फ कागजो पर। पिछले दिनो मुस्लिम आरक्षण का झुनझुना भी मुस्लिमो के हाथो में चुनावो के आस पास दिया गया पर कितना आरक्षण मुसलमानो को मिला। आज आजादी के 64 साल बाद भी मुसलमान की समाजी, आर्थिक और तालीमी हैसियत में कोई खास बदलाव नही आया है। आजादी के बाद जो मुसलमान तालीम और सरकारी नौकरियो में आगे था वो मुसलमान आज कहा है रेलवे ,बैंको और प्रशासनिक नौकरियो में इन की हिस्सेदारी सिर्फ पॉच और 3 ़5 प्रतिशत क्यो रह गई। गृह मन्त्रालय के 40 बडे अफसरो में एक भी मुसलमान अफसर क्यो नही है।

देश में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगाई पर नियंत्रण का कोई ख्याल नही रहा उसे ख्याल है अपने सहयोगी दलो के भ्रष्ट नेताओ को कानूनी शिकंजे से बचाने का। कांग्रेसी लीडर आज सत्ता सुख में कुछ इस तरह से रच बस गये है की वो बिना लाल बत्ती की गाडी और राजसी सुख सुविधाओ के बगैर जी ही नही सकते। ये ही वजह है की कांग्रेस का पुराने से पुराना लीडर किसी न किसी प्रदेश का राज्यपाल बन जाता है। दरअसल उसे शुरू से राजसी जीवन जीने की आदत होती है जिसे वो मरते दम तक नही छोडना चाहता है। आज जरूरी है की अपने बचे हुए तीन सालो में हमारी सरकार घोटालो के मायाजाल से बाहर निकल कर देश और उस गरीब के लिये भी सोचे जिन गरीब लोगो ने अपनी रहनुमाई के लिये संसद भवन में उसे कुर्सी दी मान सम्मान दिया।

सरकार ने फिर से पेट्रोल के दामो में पॉच रूपये की वृद्वि कर बती हुई मंहगाई में और आग लगा दी। दरअसल ऐसा लगता है कि यें सब सरकार की आज मजबूरी बन गया है। या फिर सरकार खुद भ्रष्टाचार के दलदल में खुद जा फंसी है क्यो कि पिछले एक साल में प्रधानमंत्री को कई मोरचो पर लडना पडा। कभी सीवीसी की नियुक्ति गले की फांस बनी तो कभी सहयोगी दल के वरिष्ठ नेता और कृषि मंत्री शरद पवार की लापरवाही के कारण लाखो टन देश का अनाज खुले में पडा सडता रहा है। सुप्रीम की फटकार सरकार को सुननी पडी। आर्दश सोसायटी घोटाला तो कभी सेना या फिर न्यायपालिका में भ्रष्टचार का मामला प्रधानमंत्री और यूपीए सदस्यो को बगले झाकने पर मजबूर करता रहा। देश में स्वास्थ्य सेवाए आज ना कि बराबर है देश के कई ऐसे पिछडे इलाके है जहॉ बच्चो के पने के लिये दस दस किलो मीटर तक स्कूल नही बिजली पानी की समुचित व्यवस्था नही सडके नही पर यूपीए 2 को इस बात से जरा भी चिंता नही। आज देश की संसद और विधान सभाये लुटेरो का अड्डा बन चुकी है फिर भी कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेताओ को शर्म नही आ रही।

यूपीए 2 सरकार की विडंबना यह भी है कि राडिया टेप मामला हो या विकिलीक्स खुलासे सभी कांग्रेस और यूपीए सरकार की लाचारी जाहिर करते है। सुप्रीम कोर्ट और देश में अन्ना की भ्रष्टचार की चलाई आंधी के कारण कुछ देश के कुछ भ्रष्ट राजनेता राजा कलमाणी और कनिमोझी को जेल जाना पडा। ये तो हम सब जानते ही है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी पार्टी की साख और सरकार बचाने और खुद को निष्कलंक जग जाहिर करने के लिये मजबूरन सोनिया गांधी को अन्ना हजारे के सत्याग्रह पर भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होना पडा। आज यदि अतीत से सबक लेकर कांग्रेस ने अपने भविष्य को नही सुधारा तो आने वाले कल में ऐसा भी हो कि फिर कभी उसे सरकार की पहली या दूसरी वर्षगांठ मनाने का अवसर बुरी तरह मंहगाई और भ्रष्टाचार से दुखी जनता फिर शायद कभी ही न दे।

सारे जहॉ में अच्छा हिन्दोस्ता हमारा……..

मेरा भारत महान या मुझे भारतीय होने पर गर्व है ये बात अब हम वास्तव में गर्व से कह सकते है। क्यो कि पिछले दिनो अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया परिषद (एनआईसी) और यूरोपीय संघ सुरक्षा शिक्षा संस्थान (ईआईएसएस) ने ”ग्लोबल गवर्नस 2025’’ नामक रिर्पोट में ये दावा किया है कि भारत दुनिया के तीसरे सब से भाक्तिशाली देशो में है। ताकत के मामले में सिर्फ अमेरिका और चीन उस से आगे है। विभिन्न देशो के विशोषज्ञो की अंतरदृश्टि और काल्पनिक परिदृश्यो पर आधारित इस रिर्पोट में वैशिक प्रशासन में अगले 15 सालो में होने वाली तब्दीलियो का भी जिक्र किया गया है। इस रिर्पोट में इन विशोषशज्ञो ने ये भी आशा जताई है कि वशर 2025 में विश्व के सब से शक्तिशाली देशो की सूची में अमेरिका की बादशाहत भले ही बरकरार रहे पर इस दिशा में उसे चीन और भारत से कडी चुनौती मिलेगी। आने वाले 15 सालो में अंतरराश्ट्रीय स्तर पर भारत और चीन के रूतबे में भारी इजाफा होगा। रिर्पोट के मुताबिक अमेरिका 2010 में वैश्विक शक्ति में 22 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ दुनिया के सब से शक्तिशाली मुल्क की कुर्सी कब्जाने में तो कामयाब हो गया है और इस तरह उसने अपना पुराना वजूद भी कायम रखा। लेकिन चीन 12 प्रतिशत और भारत ने 8 प्रतिशत ताकत के साथ क्रमश दूसरे और तीसरे पायदान पर खडे होकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर जरूर किया है ताकत के मामले में यूरोपीय संघ के देशो की कुल हिस्सेदारी 16 प्रतिशत है। जापान, रूस, और ब्राजील भी लगभग 5 प्रतिशत ताकत के साथ टॉप टेन में शामिल है। ये पूरी की पूरी रिर्पोट भारत के हित में है क्यो कि इस रिर्पोट में यह भी कहा गया ह कि अगले 15 सालो में इस सूची में कोई बडा फेरबदल नही होगा। हा 2025 तक अमेरिका दुनिया का सब से शक्तिशाली देश बना रहेगा, लेकिन वैश्विक शक्ति में उस की हिस्सेदारी घटकर 18 प्रतिशत तक हो जायेगी। तथा यूरोपीय संघ की ताकत में भारी गिरावट दर्ज की जायेगी जब की भारत की शक्ति मौजूदा 8 प्रतिशत से बढ़कर 10 प्रतिशत हो जायेगी।

आज भारत यकीनन तरक्की कर रहा है अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की भारत यात्रा। ओबामा द्वारा भारत की प्रशंसा यू ही नही की गई पिछले दिनो अमेरिका के एक वरिष्ट रक्षा विभाग के अधिकारी का ये कहना कि पिछले पॉच साल में भारत और अमेरिका के रक्षा संबंधो में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। जिस में नागरिक परमाणु समझौते का विशोष योगदान है और अब इन संबंधो को और व्यापक परिद्वश्य में विस्तार दिया जा रहा है। आज अमेरिका सहित पूरा विश्व आर्थिक मंदी से जूझ रहा है ऐसे में मनमोहन सिॅह के कार्यकाल में भारत दुनिया में आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति के रूप में पेश किया जाने लगा है। आज जब पूरे पिश्चमी जगत के देश खुद को आर्थिक मंदी से निकालने की जद्दोजहद में लगे है। तब भारत की अर्थव्यवस्थाए हल्की गिरावट के बाद वापस अपनी तेजी पकड चुकी है। आर्थिक मंदी के बाद भी भारत ने कामनवेल्थ गेम्स का आयोजन जिस आन बान शान से किया उसे देख दुनिया ने अपने दॉतो तले ऊगली दबा ली।

जून 2010 में जी20 सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिॅह की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात काफी महत्वपूर्ण रही थी। हमारे देश के प्रधानमंत्री को यू तो बिना किसी प्रचार के चुपचाप काम करने का शौक है। किन्तु जब वो अर्न्तराष्ट्रीय मंचो पर बोलते है तो एक दम सटीक और मौके मतलब की बात करते है और ये भी सिद्व कर देते है कि एक परिपूर्ण अर्न्तराष्ट्रीय राजनेता और अर्थ शास्त्री बोल रहा है। जी20 सम्मेलन में ओबामा ने अपने भाषण के दौरान अगर ये कहा कि जब मनमोहन सिॅह जी बोलते है तो सारी दुनिया सुनती है, तो ये मात्र ओबामा द्वारा की गई मनमोहन सिॅह जी कि औपचारिक प्रशंसा नही थी। दरअसल मंदी से उबरने के उपायो पर भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा दी गई राय इस सम्मेलन में बडी महत्वपूर्ण रही। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा देशो को दिये जा रहे राहत पैकेज अभी न हटाने के संबंध में उन के द्वारा दिये गये तर्को ने जी20 की नीतियो को काफी प्रभावित किया। इस मुद्दे पर अमेरिका भी ये ही चाहता था कि अभी राहत पैकेज तेजी से कम न किये जाये। भारतीय प्रधानमंत्री ने अपनी सटीक राय, तर्को से पेश कर अमेरिका की हा में हा मिला कर भारत और अमेरिका के संबंधो को और मजबूती प्रदान की। दरअसल जब से भारत के साथ अमेरिकी परमाणु करार हुआ है और उसे अर्न्तराष्ट्रीय बिरादरी की मान्यता मिली है, कई देश भारत के साथ करार करने को आगे आये है इस की सब से बडी और खास वजह ये रही है कि आज भारत एक बडी आर्थिक ताकत की तरह उभर रहा है इस के साथ ही परमाणु उर्जा को लेकर भारत का रिकार्ड अभी तक बेदाग है इसी लिये दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशो को भारत के साथ परमाणु करार करने में किसी प्रकार की दिक्कत और विवाद का डर नही है।

भारत आज तरक्की कर रहा है वही हमारे पडौसी मुल्क पाकिस्तान का बहुत बुरा हाल है नवीनतम सन 2010 के आंकडो से अंदाजा लगता है कि पाकिस्तान साक्षरता, बाल मृत्यू दर, औसत आयु मामलो में भारत के मुकाबले काफी पिछल चुका है भारत में सन 2010 के आकडे कहते है कि विकास दर 7.4 प्रतिशत है जब कि पाकिस्तान में केवल 2 प्रतिशत है साक्षरता भारत में 66 प्रतिशत है जब कि पाकिस्तान में अच्छी पाई के सारे संसाधन होने के वावजूद 56.2 प्रतिशत ही लोग साक्षर है हिन्दुस्तान के पास सैन्य क्षमता 3,773,300 कुल सैन्य बल है जो कि विश्व की दूसरी सब से बडी सेना होने का गौरव भी रखता है। हिन्दुस्नान में बेरोजगारी 10.7 प्रतिशत है जब कि पाकिस्तान में 14 प्रतिशत है। भारत में यदि ये रोज रोज होने वाले घोटाले न हो तो आज भी भारत सोने की चिडिया बन सकता है और हम भारतवासी गर्व से कह सकते है कि सारे जहॉ में अच्छा हिन्दोस्ता हमारा।

आज कल पॉव जमी पर नही पड़ते इनके

बॉलीवुड की यह एक अच्छी पहल है कि वो गांवो की ओर लौट चला है वही दूसरी ओर ग्लैमर और स्टार इमेज व भागदौड भरी जिन्दगी के कारण बॉलीवुड स्टार कार को छोड अब हेलीकॉप्टर पर सवार हो गये है। पिछले दिनो ग्रामीण क्षेत्रो में किसानो की बढती आत्महत्या, अंतरजातीय विवाह या अन्य धर्म में शादी करने वाले जोडो को इज्जत की खातिर मौत देने (ऑनर किलिंग) और क्षेत्रीय समस्याओ जैसे विषयो को बॉलीवुड में प्रमुखता दी। छोटे बजट की इन फिल्मो में बडे बडे फिल्मी सितारे भले ही न हो लेकिन दशर्को ने इन फिल्मो को सराहा है। आमिर खान की पीपली लाइव इस का सब से बडा उदाहरण है नॉन फिल्मी कलाकारो ने वो रंग जमाया की फिल्म ऑस्कर तक पहुची भले ही इस फिल्म को ऑस्कर नही मिला पर जिस प्रकार किसानो की आत्महत्यो को इस फिल्म में व्यंग्यात्मक रूप में दिखाया गया उस का जादू दशर्को के सिर चढ़कर बोला।

सत्तर, बहत्तर के फिल्मी दौर को कौन भूल सकता है हिन्दी सिनेमा के इस दौर को अधिकतर लोग गोल्डन दौर कहते है क्यो की सत्तर, बहत्तर के दौर में बॉलीवुड ने हिन्दी सिनेमा को एक से बढ़कर एक खूबसूरत फिल्मे दी। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मद्र, जितेंद्र्र, शशी कपूर, ऋृषी कपूर, फिरोज खान, राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त, रारजकुमार आदि जैसे दिग्गज फिल्मी कलाकार हिन्दी सिनेमा के चित्रपट पर छाये हुए थे। पुराने दौर के फिल्मी सितारो में आज के फिल्मी सितारो की तरह बनावट नही थी और न ही इतना पैसा था इन में से ज्यादातर कलाकार पैदल, रिक्शा या फिर कार द्वारा शूटिंग पर चले जाते थे। पर आज जहॉ फिल्मी सितारो के पास अकूत सम्पत्ती है वही ग्लैमर भी भरपूर है। पैदल या रिक्शा में चलना तो दूर अब कार का इस्तेमाल ज्यादातर फिल्मी स्टारो की शान के खिलाफ हो गया है। शूटिंग पर जाने के लिये ये लोग अब सडक़ मार्ग के बजाये हवाई मार्ग का सहारा ले रहे है। दरअसल बालीवुड स्टार्स को हेलीकॉप्टर सेवा देने संबंधी परम्परा का आगाज सब से पहले जाने माने फिल्म निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने अपनी फिल्म ”जोधा अकबर’’ की शूटिंग के दौरान रितिक रोशन को मुम्बई से करजत पहुॅने के लिये ये सुविधा प्रदान कर रखी थी। आशुतोष गोवारिकर और रितिक के इस ट्रेड ने मानो सितारो की चाल ही बदल दी और अक्षय को भी फिल्म ”एक्शन रिप्ले’’ के लिये यह सुविधा प्रदान की गई और मुम्बई से 65 किलोमीटर दूर करजत में ”एक्शन रीप्ले’’ की शूटिंग के लिये अक्षय कुमार ने कभी भी कार का इस्तेमाल नही किया वो रोजाना हेलीकॉप्टर द्वारा शूटिंग के लिये सेट पर पहुॅचते थे जिस कारण बेचारे फिल्म निर्मोता 75,000 रूपये प्रतिदिन का अतिरिक्त बोझ सहते रहे।

फिल्मो सितारो और कुछ बडे फिल्म निर्मोताओ का इस हेलीकॉप्टर सेवा देने संबंधी परम्परा पर तर्क ये है कि आज मुम्बई में ट्रैफिक का जो हाल है उसे देखते हुए हेलीकॉप्टरो का इस्तेमाल स्टार्स के लिये गलत नही है। कार द्वारा सितारो के शूटिंग के लिये स्टूडियो आने जाने में ट्रैफिक जाम होने पर या अन्य वजह से जो वक्त बर्बाद होता है इस लिहाज से देखा जाये तो हेलीकॉप्टरो का इस्तेमाल स्टार्स के लिये गलत नही है। यह सौदा प्रोडयूसर के लिये घाटे का सौदा भी नही कहा जा सकता क्यो की आज ये वक्त की मॉग है। मुम्बई की भीड भाड और दूर दूर फिल्म स्टूडियो होने व एक एक कलाकार द्वारा एक दिन में तीन से चार फिल्मो की शूटिंग करने के कारण समय पर पहुॅचना बहुत मुश्किल हो गया है। गोरे गांव स्थित फिल्म सिटी स्टूडियो, कमालिस्तान स्टूडियो, नितिन देसाई स्टूडियो जैसे कई नामचीन स्टूडियोज ने अपना अपना हेलीपैड स्टूडियो में ही अना लिया है वही कुछ स्टूडियो मालिक हेलीपैड बनाने की तैयारी में लगे है। ये ही नही हेलीकॉप्टर सेवाए देने वाली कंपनियां भी फिल्मी सितारो के इस नये फंडे का फायदा उठाने के लिये फिल्म प्रोड्रसरो को नये नये आकर्षक आफॅर दे रही है। आज फिल्म स्टारो को लेकर हेलीकॉप्टर मुम्बई के विभिन्न इलाको समेत पुणे, लोनावाला, और करजत के लिये रोज इधर से उधर उडान भर रहे है। नतीजन कुछ फिल्म निर्मोताओ की अन्टी हल्की होने लगी है। अमूमन फिल्मी सितारो की इन हवाई यात्राओ पर प्रतिदिन 75000 से एक लाख रूपये तक का खर्च आ रहा है पर अमिताभ बच्चन, आमिर खान, शाहरूख खान, रितिक रोशन, और अक्षय कुमार जैसे दिग्गज अभिनेता इन खर्चा से बेखबर होकर फिल्म निर्मोताओ द्वारा स्टार्स को दी जा रही हेलीकॉप्टर सेवा का जमकर लाभ उठा रहे है।

केन्द्र सरकार का हिन्दुओं के प्रति घोर अन्याय

पाकिस्तान बनने के पश्चात भी भारत में हिन्दुओं की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है-

1. हिन्दुओं की जनसंख्या का प्रतिशत कम करने के लिए मुसलमानों को चार-चार शादीयां और अधिक बच्चे, जबकि माननीय उच्चतम न्यायालय कई बार देश के सभी नागरिकों के लिये Common Civil Code (समान नागरिक संहिता) बनाने का आदेश दे चुका है।

2. शिक्षा संस्थाओं में हिन्दुओं को धार्मिक शिक्षा देने पर पाबंदी किन्तु गैर हिन्दुओं को स्वतंत्रता, जिसकी व्यवस्था भारत के संविधान की धारा 28, 29 और 30 में ही कर दी गई और इतना ही नहीं सोनिया गांधी की यूपीए सरकार तो इस्लामी शिक्षा को अत्याधिक प्रसारित करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसे कट्टर इस्लामी शिक्षा संस्थान के भारत के अनेक भागों में चालू कर रही है जैसे केरल में मल्लापुरम, पश्चिम बंगाल में मुर्शीदाबाद, बिहार में किशनगंज, मध्य प्रदेश में भोपाल आदि जिसके परिणामस्वरूप इस्लामी आतंकवाद की ही बढ़ोतरी होगी। ये सब हिन्दू करदाताओं की गाढ़ी कमाई के पैसे से हो रहा है। गैर हिन्दू अर्थात् ईसाई, मुसलमानों आदि की शिक्षा संस्थाओं में अध्यापकों की नियुक्ति एवं विद्यार्थी के प्रवेश आदि विषयों में उनके विशेष अधिकार और स्वायत्तता दिये जाने पर भी इसके अतिरिक्त इस्लामी कट्टरवाद के कारखाने इस्लामी मदरसों को अत्याधिक धन का आवंटन भारत सरकार द्वारा किया जाता है।

3. गैर हिन्दुओं के लिए अल्पसंख्यक आयोग (Minority Commission), जो अनेक संवेदनशील मामलों पर हिन्दू विरोधी और अल्पसंख्यकों के प्रति पक्षपात करता हुआ अनेक प्रकार से काम करता है।

4. भारत में हिन्दुओं को नकारते हुए गैरहिन्दुओं (मुसलमान, ईसाई आदि) की आर्थिक शक्ति को अधिक बढ़ाने के लिए सरकारी खजाने से मुफ्त सब्सीडी और बहुत कम ब्याज दर 3 प्रतिशत पर ऋण दिया जाता है। इस प्रकार गैरहिन्दुओं के मुकाबले में हिन्दू उद्यमी उद्योग और व्यवसाय में पिछड़ जाते है। गैरहिन्दुओं की आर्थिक सहायता और उन्नति के लिए National Minorities Development & Finance Corporation (NMDFC) का निमार्ण किया गया।

5. संप्रग सरकार द्वारा केवल गैरहिन्दुओं के हित साधने के लिए एक अलग अल्पसंख्यक मंत्रालय (Ministry of Minority Affairs) भी बना दिया गया है, जिसने अनेक प्रकार से मात्र गैर हिन्दुओं को आर्थिक सहायता देने की योजना बनाई है। परन्तु पता नहीं हिन्दुओं ने क्या पाप किया है जो उन्हें इन सभी योजनाओं से वंचित रखा जाता है।

6. दक्षिण भारत के सभी विशाल हिन्दू मंदिरों का प्रबन्धन सरकार द्वारा अपने हाथों में लिया जा चुका है और इन मंदिरों की आय का लगभग आधा धन ईसाई और मुस्लिम संस्थाओं में बांटा जा रहा है, जोकि हिन्दू धर्म के प्रसार में लगाये जाने की बजाय हिन्दू धर्म के विरूध्द ही काम आ रहा है।

7. भारत सरकार द्वारा मुसलमानों को हज यात्रा के लिये करोड़ों रूपये सरकारी कोष से दिये जाते है जबकि संसार का अन्य कोई भी देश यहां तक की सऊदी अरब या पाकिस्तान भी हज यात्रा के लिये धन नहीं देता भारत में यह हिन्दू करदाता पर एक प्रकार से दंड ही है।

8. अल्पसंख्यक मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री की 15 सूत्री योजनाओं द्वारा गैर हिन्दू अर्थात् ईसाई, मुसलमान आदि के बच्चों को लाखों छात्रवृत्तियां दी जाती हैं, किन्तु हिन्दू बच्चों द्वारा उनसे अधिक अंक लाने पर भी उन्हें इनसे वंचित रखा जाता है, इस प्रकार के भेदभाव से बच्चों की मनोदशा पर कितना घातक प्रभाव पड़ता होगा इसकी तो मात्र कल्पना ही की जा सकती है।

9. यह सब इसीलिए हो रहा है कि हिन्दू अपने ऊपर हो रहे अन्याय और अत्याचार के विरूध्द आवाज नहीं उठाते। जबकि भारत सरकार को जो टैक्स प्राप्त होता है उसमें से 95 प्रतिशत टैक्स तो हिन्दुओं द्वारा ही दिया जाता है। फिर भी श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता में चलने वाली संप्रग सरकार (UPA) हिन्दुओं को ही कमजोर करने पर तुली हुई है।

यदि हिन्दुओं के प्रति हो रहा अन्याय बंद नहीं किया गया तो हिन्दू ऐसे नेताओं को वोट देना बंद कर देगें।

प्रो. जयदेव आर्य

डॉ. कैलाश चन्द्र

वशीर साहब आप से यह उम्मीद नहीं थी ।

मुझे याद नहीं है कि मैनें कहां पॄा था कि शहद से डूबें हुये हाथ में चिपके हुये तिलों के बराबर भी एक मुसलमान कसमें खाये तो उसका भरोसा नहीं करना चाहियें परन्तु मुझे लगता है कि किसी व्यक्ति के सम्बन्ध तो कोई भी जुमला सटीक हो सकता हो पर पूरी कौम को कैसे एक ही तराजू से तौला जा सकता है। पर जब मैनें यूटयूब पर वशीर बद्र साहब को कराची में एक मुशायरे में शिरकत करते हुये सुना तो सुन कर दंग रह गया जिनकी शायरी को में रहीम के दोहे की मानिन्द अता फरमाता था वही वशीर साहब पाकिस्तान में जाकर यह शब्द कहते हैं कि यहां में अपने लोगों के बीच में वह शेर पढने की हिम्मत कर पा रहा हूॅ जो में जहॉ रहता हॅू वहां पढ भी नहीं सकता। फिर उन्हौनें यह शेर पते हुये कहा कि मेरठ में उनका घर दो बार जलाया गया। उनके दुख में मैं भी शरीक हूॅ। घर किसी का भी जले उसे किसी भी प्रकार से जाया नहीं ठहराया जा सकता है पर पाकिस्तान में जाकर यह व्यक्त करना कि वह इस शेर को भारत में पढ नहीं सकतें अपने देश का मजाक बनाना नही तो क्या है ? शेर देखियें।

फाख्ता की मजबूरी है, ये कह भी नहीं सकता ।

कौन साँप रखता है उसके आशियानें में॥

बशीर साहब आपने इसी शेर को हिन्दुस्तान के तमाम मुशायरों में पॄा है पर पाकिस्तान में आपने इसे इस मुल्लमें के साथ पॄा कि वहां आप अपने लोगों के बीच में बेखौफ होकर अपने दिल की बात कह पा रहें हैं और यहां हिन्दुस्तान में आप दोयम दर्जे के नागरिक के रुप में जीवन जीते हैं। वशीर साहब दूसरा कोई और होता तो मुझे इतनी तकलीफ नहीं होती पर अपने देश में लोग आपको सुनने के लिये दूर दूर से इक्कठे होते हैं। मुझे याद है कि आज से कोई 15 साल पहले में कर्नाटका एक्सप्रेस से बंगलूरु जा रहा था और आप के अलावा तमाम नामचीन्ह शायर भी मुशायरे के सिलसिले में उसी गाडी से बंगलूरु जा रहे थे पर केवल आपकी झलक पाने के लिये रेल के अन्दर ही आपकी बोगी में प्रशंशकों की भीड जमा थी । इतने प्यार और इज्जत के बाद भी आप कराची मं” भारत के खिलाफ बोल कर आते हो तो फिर हमारी यह धारणा ही बलवती होती हैं कि मुसलमान जब तक अकेला होता है तब तक इश्क, मौहब्बत, अमन, वफा, दोस्ती, फर्ज की नफासत भरी जुबान में बातें करता है और जैसे ही वह स्वजाति के समूह में पहुंचता है उसकी भाषा जेहाद, काफिर और न जाने क्या क्या बोलने लगती है। वशीर भद्र साहब मेरे जैसे अनेकों आपके चाहने बाले आपके इस प्रकार के व्यबहार से दुखी हुये होगें। आपने भी अल्लामा इकबाल के रास्ते पर ही कदम बाया। जो भारत में रहते हुये गाते थे कि हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा और पाकिस्तान पहुचतें ही गाने लगें कि मुस्लिम हैं हम वतना है सारा जंहा हमारा।

बशीर साहब आप हिन्दुस्तान के नगीने के रुप में देश और दुनिया में जाते हो और आप भी जानते हैं पाकिस्तान समेत सारी दुनिया में मुसलमान भारत से ज्यादा सुकून और इज्जत से नहीं रहता है। आपको मध्यप्रदेश सरकार ने उर्दू अकादमी के अध्यक्ष पद पर सुशोभित किया है। भारत सरकार ने पदमश्री से नवाजा है। और आप अपने देश के खिलॉफ पाकिस्तान में जहर उगल कर आते हैं बडी कष्टदायक बात है यह।