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मुखर्जी ने पेश किया घाटे वाला अंतरिम बजट

pranab_mukharjeeप्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की ओर से विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को वर्ष 2009-10 का अंतरिम बजट लोकसभा में पेश किया। पी. चिदंबरम के केंद्रीय गृह मंत्री बनाए जाने के बाद से वे वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे हैं। सत्ता पक्ष ने इसे आम आदमी का बजट करार दिया है, जबकि विपक्ष ने इसे जन-विरोधी बताया।

लोकसभा में मुखर्जी द्वारा पेश किए गए 9,52,231 करोड़ रुपये के अंतरिम बजट में सामाजिक क्षेत्र की परियोजनाओं पर खर्च में भारी बढ़ोतरी की गई है। लेकिन कर दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने और समाज के कमजोर वर्गो को लाभ पहुंचाने के इरादे से बजट में कई जरूरी उपायों की घोषणा की गई है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अनुपस्थिति में मुखर्जी ने करीब 69 मिनट का अंतरिम बजट भाषण दिया, जिसमें उन्होंने संप्रग सरकार की उपलब्धियां ही गिनाई। भाषण के दौरान उन्होंने कहा कि नई सरकार की ओर से पेश किए जाने वाले नियमित बजट में अतिरिक्त कदम उठाए जाने की जरूरत होगी। मुखर्जी ने कहा कि देश की विकास की गाड़ी सही दिशा और सही गति के साथ आगे बढ़ रही है। सरकार द्वारा उठाए गए कदम अर्थव्यवस्था पर वैश्विक आर्थिक मंदी के प्रभाव को बेअसर करने में सक्षम साबित हो रहे हैं।

मुखर्जी अगली सरकार द्वारा सदन में नियमित बजट पेश किए जाने तथा उसे पास किए जाने तक सरकारी खर्च के लिए लेखानुदान मांगे पेश की। उन्होंने कहा कि असाधारण आर्थिक परिदृश्य असाधारण कदमों की मांग करते हैं। और अभी ऐसे ही कदमों की जरूरत है।

अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा, “यह कठिन समय है, जब अधिकतर अर्थव्यवस्थाएं अपने को स्थिर बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। ऐसे में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 7.1 फीसदी होने से देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की दूसरी सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन गई है।”

मुखर्जी ने साफ कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, उच्च शिक्षा और स्कूली छात्रों के लिए मिड-डे मील योजना जैसे सामाजिक क्षेत्रों पर खर्च बढ़ाने के कारण वित्तीय घाटा बढ़कर 5.5 फीसदी हो जाएगा। फरवरी 2006 में आरंभ की गई राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना देश के 100 जिलों में क्रियान्वित की जा रही है। वर्ष 2009-10 में इस योजना के लिए 30,100 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव रखा गया है।

मुखर्जी ने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा सुलभ कराने और इसके ढांचागत विकास में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम के अंतर्गत 2009-10 के लिए 13,100 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही युवा कार्य व खेल मंत्रालय तथा संस्कृति मंत्रालय के लिए वर्धित आयोजना आवंटनों का प्रावधान किया गया है, ताकि अगले वर्ष राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी के लिए पर्याप्त संसासधन सुलभ हो सकें।

उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा बढ़कर छह फीसदी हो जाएगा, जबकि अनुमान 2.5 फीसदी का लगाया गया था। इसी तरह राजस्व घाटा अनुमानित एक फीसदी से बढ़कर 4.4 फीसदी हो जाने की संभावना है। आर्थिक मंदी के इस दौर में राजस्व संग्रह में कमी को देखते हुए योजनागत खर्च में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से वित्तीय घाटा बढ़ेगा।

 

अंतरिम बजट भाषण में नई योजनाओं की चर्चा करते हुए उन्होंने 18 से 40 वर्ष की विधवाओं और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना और इंदिरा गांधी विकलांगता पेंशन योजना की घोषणा की। मुखर्जी ने कहा कि विकसित देश जिस स्तर पर आर्थिक संकट की मार झेल रहे हैं उसका असर दुनिया के अन्य देशों पर पड़ना आश्चर्य की बात नहीं है। भारत भी इससे प्रभावित हुआ है।

उन्होंने कहा, “हमारी सरकार ने अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान बेहतरीन काम किया है और हमें लोक-लुभावन बजट की जरूरत नहीं है। हमने अंतरिम बजट की संवैधानिक मर्यादा का ध्यान रखा है।”

उत्तरप्रदेश के मुसलिम मतदाता – ब्रजेश झा

CORRECTION-THAILAND-POLITICS-REFERENDUMइन दिनों देश में 15वीं लोकसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। इस बाबत भाजपा के पूर्व नेता कल्याण सिंह और सपा के बीच हुए राजनीतिक गठजोड़ ने उत्तर भारत की मुसलिम राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। उत्तरप्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। दिल्ली की सत्ता में किस पार्टी की कितनी हैसियत होगी ! इसे तय करने में यह प्रदेश बड़ी भूमिका अदा करता है।

 

वर्ष 2001 में हुई जनगणना के मुताबिक राज्य में मुसलमानों की जनसंख्या राज्य की कुल आबादी का 17.33 प्रतिशत है। ऐसे में मुसलिम मतदाताओं का सभी पार्टियों के लिए खास महत्व है। हालांकि उनका महत्व पहले भी रहा है, जिसका मुसलिम ठेकेदारों व धर्मनिरपेक्षता का बांग देने वाली पार्टियां सत्ता पाने के लिए मनमाफिक इस्तेमाल करती रही हैं। राम मंदिर आंदोलन (1991) से जो स्थितियां बनी उसने इन पार्टियों का काम और भी आसान कर दिया।

 

खैर, यह अलग मसला है। मूल बात यह है कि वर्ष 1980 को छोड़कर राज्य में संख्या के औसत के हिसाब से मुसलिम प्रतिनिधि नहीं चुने जा सके हैं। यहां मुसलिम बहुल इलाकों से मुसलिमों को टिकट देने का चलन भर सभी पार्टियों ने अख्तियार कर रखा है।

 

राज्य में कांग्रेस पार्टी का आधार कमजोर होने और राममंदिर आंदोलन के बाद मुसलिम वोटर समाजवादी पार्टी के लिए एक लाटरी के रूप में सामने आए। हालांकि, इससे पहले सातवें (1980) और आठवें (1984) लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से 11-11 उम्मीदवार मुसलिम समुदाय के चुनकर आए थे।

 

अब जब राम मंदिर आंदोलन का असर कम हो गया है तो प्रदेश में सांप्रदायिकता की आंच पर वोट पाना किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल हो गया है। ऐसे में पिछड़े वोटरों को एक साथ करने के इरादे से कल्याण सिंह और सपा ने साथ-साथ चुनाव में उतरने का फैसला किया है। मायावती इस गठबंधन के बहाने मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में लगी हैं, जबकि कांग्रेस नए रास्ते तलाश रही है।

 

दूसरी तरफ इस गठबंधन से प्रदेश के कई मुसलिम नेता खासे नाराज हैं। ऐसी संभावना बन रही है कि इस दफा उनका वोट बैंक दूसरी करवट ले सकता है। यदि ऐसा होता है तो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ठगे जा रहे इस समुदाय के पास अपने सही नुमाइंदों को चुनने का मौका मिल सकता है। अब देखना है कि प्रदेश का मुसलिम मतदाता एक बार फिर किसी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का शिकार बनता है या अपनी मर्जी का उम्मीदवार चुनता है। आखिर फैसला तो उन्हें ही करना है।
 

लोकसभा में चुनकर आए मुसलिम प्रतिनिधियों के आंकड़े

 

लोकसभा चुनाव

वर्ष

सीट

राज्य में मुसलिम समुदाय का प्रतिशत

मुसलिम नुमाइंदों की चुने जाने की आदर्श संख्या

चुनाव में खड़े हुए मुसलिम प्रतिनिधि

चुनाव जीत कर आए मुसलिम प्रतिनिधि

चुनाव जीते निर्दलीय मुसलिम उम्मीदवार

 

 

1 चुनाव

1952

86

   14.28

     12

   11

  7

 कोई नहीं

 

 

दूसरा

1957

86

   14.28

     12

   12

  6

 कोई नहीं

 

 

तीसरा

1962

86

   14.63

     12

   21

  5

 कोई नहीं

 

 

चौथा

1967

85

   14.63

     12

   23

  5

 कोई नहीं

 

 

पांचवां

1971

85

   15.48

     13

   15

  6

 कोई नहीं

 

 

छठा

1977

85

   15.48

     13

   24

  10

 कोई नहीं

 

 

सातवां

1980

85

   15.48

    13

  46

  18

 कोई नहीं

 

 

आठवां

1984

85

  15.93

    13

  34

  12

कोई नहीं

 

 

नौवां

1989

85

  15.93

    13

  48

  8

   1

 

 

दसवीं

1991

85

  17.33

    14

  55

  3

कोई नहीं

 

 

11वीं

1996

85

  17.33

    14

  59

  6

कोई नहीं

 

 

12वीं

1998

85

  17.33

    14

  65

  6

कोई नहीं

 

13वीं

1999

85

  17.33

    14

  68

  8

कोई नहीं

 

14वीं

2004

80

  17.33

    14

  85

  11

कोई नहीं

कुल

 

1108

 

   183

  566

  111

 01

 

 

          
 अब तक उत्तरप्रदेश से लोकसभा में 112 मुसलिम सांसद चुनकर आए हैं। नौवीं लोकसभा (1989) चुनाव में प्रदेश के बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से एफ. रहमान निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुने जाने वाले एक मात्र उम्मीदवार रहे हैं। फिलहाल इस सीट का प्रतिनिधित्व भाजपा के ब्रजभूषण शरण सिंह कर रहे हैं।
 
 

पहले लोकसभा (1952) चुनाव में उत्तरप्रदेश से चुनकर आने वाले प्रतिनिधि-

लोकसभा क्षेत्र का नाम       चुने गए उम्मीदवार            पार्टी

मुरादाबाद                  हफिजुर रहमान               इंडियन नेशनल कांग्रेस

रामपुर-बरेली               अबुल कलाम आजाद               ,,

मेरठ (उत्तर पूर्व)            शाह नवाज खान                   ,,

फर्रुखाबाद                 बशिर हुसैन जैदी                        ,,

सुल्तानपुर                 एम. ए. काजमी                            ,,

बहराइच (पूर्व)              रफि अहमद किदवई              ,,

गोंडा (उत्तर)                चौधरी एच. हुसैन                       ,,

 

 

 

  

सातवें लोकसभा चुनाव (1980) में राज्य के 85 लोकसभा सीटों में 18 सीटों मुस्लिम प्रतिनिधियों को जीत हासिल हुई थी। राज्य में पहली बार मुस्लिम आबादी के औसत के हिसाब से पांच अधिक उम्मीदवार चुनकर लोकसभा पहुंचे। आठवें लोकसभा चुनाव (1984) में 12 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे, जो संख्या की आदर्श स्थिति के हिसाब से एक कम है।

 

 

 

वर्ष 2004 में हुए 14वें लोकसभा चुनाव में 11 मुस्लिम मतदात चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे।

लोकसभा क्षेत्र का नाम       चुने गए उम्मीदवार                          पार्टी

मुरादाबाद                               डा. शफीकुर्रहमान बर्क                               सपा

बदायूं                                         सलीम इकबाल शेरवानी                         सपा

शाहबाद                                          इलियास आजमी                               बसपा

सुल्तानपुर                                    मो. ताहिर                                                 ,,

बहराइच                                        रूबाब सैयद                                          सपा

डुमरियागंज                                  मो. मुकीम                                           बसपा

गाजीपुर                                   अफजाल अंसारी                                        सपा

फुलपुर                                   अतीक अहमद                                            सपा

मेरठ                                      मोहम्मद शाहिद                                         बसपा

मुजफ्फरनगर                         चौ. मुनव्वर हसन                                      सपा

सहारनपुर                               रशीद मसूद                                                 सपा

रेल मंत्री, लालू यादव घटना की जिम्मेदारी लें

lalu_yadavरेल मंत्री एक तरफ अपनी पीठ थपथपा रहे थे। कुछ ही समय बाद उड़ीसा में जाजपुर रेलवे स्टेशन के पास शुक्रवार को रेल हादसा हो गया। हादसे में मरने वालों की संख्या 16 हो गई है, जबकि पचास से ज़्यादा लोग घायल बताए गए हैं।

रात लगभग आठ बजे कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के 13 डब्बे जाजपुर रेलवे स्टेशन के पास पटरी से उतर गए। केंद्रीय रेल राज्य मंत्री आर वेलु ने आज सुबह दुर्घटनास्थल का दौरा कर स्थिति की समीक्षा की है। साथ ही दुर्घटना की उच्चस्तरीय जाँच कराने के आदेश दिए हैं।

जानकर ताज्जुब होगा कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के महज 12 घंटों के भीतर एक अन्य दुर्घटना में बिहार में पैसेंजर ट्रेन और इंजन के बीच टक्कर में 15 लोग घायल हो गए हैं। दुर्घटना मोतिहारी के पास शनिवार सुबह साढ़े पांच बजे एक इंजन के गोरखपुर-मुज़फ्फ़रपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस ट्रेन से टकरा जाने से हुई।

इस हादसे में लगभग 15 लोग घायल हो गए हैं। घायलों को नज़दीक के अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है।

हावड़ा-चेन्नई कोरोमंडल सुपरफास्ट एक्सप्रेस ट्रेन जिस समय दुर्घटनाग्रस्त हुई, उस समय ट्रेन की रफ़्तार ज़्यादा थी और यह जाजपुर रोड रेलवे स्टेशन से आगे बढ़ी ही थी। दुर्घटना में रेल इंजन समेत 13 डब्बे पटरी से उतर गए. इनमें 11 डब्बे सामान्य शयनयान श्रेणी (स्लीपर) के और दो सामान्य श्रेणी के डब्बे थे।

ट्रेन में सवार यात्रियों के मुताबिक दुर्घटना से पहले कई बार तेज़ झटके महसूस किए गए। दुर्घटना होने के तत्काल बाद आस-पास के स्थानीय लोग भारी संख्या में वहां पहुँच गए और घायलों को डब्बे से बाहर निकालने का काम शुरू कर दिया।

शनिवार सुबह तक सभी घायलों को अस्पताल पहुँचाया जा चुका था और रेल लाइन पर यातायात सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही है। यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि रेल मंत्री अपने मंत्रालय को जमीन से आसमान पर उठाने की बात कर रहे हैं, लेकिन उन्हें एक सामान्य यात्रियों की जान की परवाह है, ऐसा कम ही नजर आता है।

क्या मृतकों के परिजनों को बतौर मुआवजा रूपये देने या नौकरी देने का वादा करने मात्र से पीड़ित लोगों का दर्द कम हो जाएगा ?

हालांकि, उन्होंने घटना पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए मृतकों और घायलों के परिजनों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की है। लेकिन यदि रेल मंत्रालय के लाभ में चलने का मुख्य कारण मंत्री महोदय खुद को बताते हैं तो घटना की जिम्मेदारी उन्हें लेनी चाहिए।*

बापू की वस्तुओं की नीलामी की तैयारी से निराश गांधीवादी

gandhiमहात्मा गांधी द्वारा इस्तेमाल की गई चप्पलों चश्मों की नीलामी की तैयारी न्यूयार्क में चल रही है। इससे देश भर के गांधीवादी खासे नाराज हैं।

दुनिया भर के समाचार पत्रों ने  नीलामी को ऐतिहासिक करार दिया है, जबकि इस खबर से कई लोग आहत हुए हैं। गांधीवादियों का कहना है कि हमारे विचारों, रिश्तों, सोच और संस्कृति का अमेरिका में बाजारीकरण हो रहा है। यह सोच-सोचकर बड़ा दुख होता है।

वे लोग मानते है कि गांधी जी द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तु नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का माध्यम बन सकती हैं अतः उनसे जुड़ी सभी वस्तुओं को किसी सुरक्षित जगह पर जनता के दर्शन के लिए रखा जाना चाहिए इससे कि आने वाली पीढ़ी उन्हें देखकर ही कम से कम कुछ प्रेरणा हासिल कर सके।

ब्रिटेन के एक समाचार पत्र के मुताबिक एंटिकोरम आक्सनर्स द्वारा 4 5 मार्च को आयोजित की जाने वाली इस नीलामी में गांधी की पॉकेट घड़ी, एक कटोरा एक प्लेट को भी शामिल किया जाएगा। गांधी ने अपने चश्मों को भारतीय सेना के एक कर्नल यह कहते हुए दिया था कि इसने आजाद भारत की मुझे दृष्टि दी।

अपनी चप्पलों को उन्होंने वर्ष 1931 में लंदन में आयोजित गोलमेज बैठक के पहले एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी को दे दिया था। इसी तरह पॉकेट घड़ी आभा गांधी को दे दी थी। आभा हमेशा महात्मा के साथ रहती थीं और वर्ष 1948 में गोली लगने बाद गांधी आभा की बाहों में ही गिरे थे।

गौरतलब है कि गांधी अपनी हर चित्रों में वर्ष 1910 के आसपास निर्मित इसी पॉकेट घड़ी को लटकाए हुए दिखाई देते थे।

वैलेंटाइन का जादू – ब्रजेश कुमार झा

rose-flowerहिन्दी सिनेमा में मजाज़ी इश्क़ (सांसारिक प्रेम) पर लिखे गीतों के रुतबे को तो सभी महसूस करते ही होंगे ! इधर मैं कुछ दिनों से इश्क़-विश्क के उन गीतों को ढूंढ रहा था जो खासकर वैलेंटाइन डे पर लिखे गए हैं। अभी सफर जारी है। इस दौरान तत्काल जो गीत मुझे याद आया वह फिल्म बागवान का है। बोल है- चली इश्क की हवा चली।

 

यकीनन यह गीत मजेदार व ऒडीटोरियम-फोडू है। लेकिन बालीवुड में गीत का जो इतिहास है, उसमें बहुत बाद का है। थोड़ा पहले का मिले तो मजा आ जाए। और आप सब का सहयोग मिले तो फिर क्या कहने हैं !

 

खैर ! यह वैलेंटाइन डे जितना सिर चढ़कर बोल रहा है, गीत ढूंढते वक्त ऐसा लगता नहीं कि इसकी जड़ उतनी गहरी है। इसपर बातचीत पूरी खोज के बाद। लेकिन, इसमें शक नहीं कि यदि वैलेंटाइन डे से ज्यादा बिंदास डे कोई आ गया तो इस डे के मुरीद उधर ही सरक जाएंगे। ठीक है। इश्क के इजहार का वे जो भी तरीका अख्तियार करें यह तो उनका निजी मसला है।

 

 लेकिन कई बार यह भी सच मालूम पड़ता है कि इस कूचे की सैर करने वाले इश्क की नजाकत भूला बैठते हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह बालीवुड- चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो, हम हैं तैयार चलो…। जैसे रूहानी गीत कम ही तैयार करने लगा है। अब के गीतों में तो केवल सुबह तक प्यार करने की बात होती है। याद करें- सुबह तक मैं करुं प्यार…। ये दोनों ही गीत अपने-अपने दौर में खूब सुने गए।

 

कई लोग मानते हैं कि तमाम अच्छाइयों के बावजूद अब इश्क कई जगह टाइम-पास यानी सफर में चिनियाबादाम जैसी चीज बनकर रह गया है। यहां रूहानियत गायब है और कल्पना का भी कोई मतलब नहीं रहा। संभवतः इसमें कुछ सच्चाई हो तभी तो कई लोग वैलेंटाइन डे को लेकर हवावाजी कर रहे हैं और ठाठ से अपनी दुकान चमका रहे हैं।*

वैलन्टाइन डे के लिये चाहिये एक बड़ा दिल

vadayमैं एक सम्भ्रान्त परिवार से सम्बन्ध रखता हूं। हम दकियानूसी नहीं है। उदारवादिता और आधुनिकता हमारी पहचान है।

 

हम वैलेन्टाइन डे को बुरा नहीं मानते । कुछ मूढ़ रूढ़िवादी व्यक्तियों व संगठनों की तरह। वस्तुत: मैं तो समझता हूं कि हम एक हज़ार वर्ष से अधिक समय तक ग़ुलाम रहे उसका एक मात्र कारण था अपनी परम्पराओं तथा थोथी नैतिकता के साथ बन्धे रहना।

 

हर वर्ष की तरह इस बार भी हमने वैलटाइन डे बड़ी धूमधाम से मनाने का निश्चय किया। सारा परिवार रोमान्चित था। परिवार के सारे सदस्य अपने-अपने तौर पर अपनी तैयारी में लगे थे। सभी इस आयोजन को आनन्दमय बनाने के लिये सब कुछ कर रहे थे पर एक-दूसरे को कुछ नहीं बता रहे थे। बताते भी क्यों? प्यार का, दिल का मामला जो ठहरा। यदि इसका सब कुछ सब को पता लग जाये तो फिर मज़ा ही क्या है?

 

उस दिन मैं घर में सब से पहले उठा। तैयार होकर सब से पहले घर से निकल गया। मेरी एक पड़ोसन बड़ी सुन्दर थी। वह मुझे बहुत अच्छी लगती थी। सोचा अपना प्यार जताने का वैलन्टाइन डे से बढ़िया मौका नहीं है। सो हाथ में प्यार का चिर परिचित चिन्ह गुलाब लेकर मैंने उसका दरवाज़ा खड़का दिया।धत्त तेरे की। दरवाज़ा खुला तो दर्शन हुये उसके पतिदेव के। मेरे हाथ में गुलाब देखकर खुश होने की बजाये वह तो लगता है जल-भुन सा गया। बड़े बड़े दु:खी व कड़े भाव में बोला, ”क्या है?”

हैप्पी वैलन्टाइन डे”, मैंने बुझे मन से कहा।

 

कुछ बड़ा धूर्त दकियानूस लगा। ज़ोर से दरवाज़ा बन्द करते हुये गुर्राया, ”थैंक यू। लगा जैसे दिल में लगी आग की तपस बाहर निकाल रहा हो।

 

पर मुझे तो विश करनी थी उसकी सुन्दर पत्नि को, उसे नहीं। इसलिये फिर घंटी बजा दी। सोचा इस बार शायद वह स्वयं ही दर्शन देंगी। पर कहां? वही महाशय फिर आ धमके। और भी कठोर भाव से बोले, ”अब क्या है?”

 

उसके इस अभद्र भाव के बावजूद मैंने पूरी मुस्कान देते हुये पूछा टरीनाजी हैं?”

 

उसका भाव कुछ और भी सख्त हो गया। बोला, ”क्यों?”

 

वस्तुत:”, मैंने बड़े शालीन भाव से कहा, ”मुझे उनको हैपी वैलन्टाइन डे  कहना है।

 

उसका पारा कुछ और भी चढ़ गया लगा। गुस्से में बोला, ”अपनी बीवी को बोलो हैप्पी वलन्टाइन डे। पर मैंने गुस्सा नहीं किया। मैं सहल भाव से बोला, ”भइया, तुम लगता है इस दिन का महत्व नहीं समझते यह दिन अपनी पत्नी को विश करने का नहीं आप दूसरे को जिसे आप प्यार करते हैं। बीवी तो कर्वाचौथ का व्रत रखती है। उसे तो तब आशीर्वाद देते है, विश थोड़े करते है

 

वह और भी उत्तोजित हो उठा बोला, ”तुम मेरे पड़ोसी हो और तुम्हारी उम्र का मैं लिहाज़ कर रहा हूं वरन् मैं पता नहीं तुम से क्या व्यवहार कर बैठता। उसने मेरे मुंह पर दरवाज़ा इतने ज़ोर से दे मारा कि मुझे लगा कि वह टूट ही गया हो।

 

मैंने सोचा यह तो मुहूर्त ही खराब हो गया। वैलन्टाइन डे पर किस जाहिल से पाला पड़ गया। खैर मैंना अपना मूड खराब नहीं किया । यहां नहीं तो और घर सही। मैं तो दिन मनाने के लिये निकला हूं। चलो कहीं और सही।

 

अभी सोचता सड़क पर जा ही रहा था कि अब कहां जाऊं कि गुझे एक महिला अकेली आती दिख गई। वैलन्टाइन डे पर महिला अकेली और वह भी सुन्दर? मैंने देर नहीं की। उसके पास जाकर मुस्कराते हुये जड़ दिया, ”हैप्पी वैलन्टाइन डे। उसने कुछ नहीं कहा और थैंक यू कह कर आगे बढ़ गई।

 

मैंने अपना प्यारा सा गुलाब आगे बढ़ाते हुये कहा, ”आप आज मेरे साथ वैलेन्टाईन डे मनायेंगी?”

 

तुमने अपनी शक्ल देखी है?” महिला ने मेरी भावनाओं की तरह मेरे मुलायम गुलाब को अपने हाथ से परे कर दिया। गुलाब नीचे गिर गया। वह तेज़ी से आगे बढ़ गई।

 

मेरे पास शीशा नहीं था कि मैं दुबारा अपना मुंह देख लेता। मैंने कहा, ”अभी थोड़ी देर पहले घर से देख कर निकला था। बिल्कुल ठीक था

 

घर जाकर दुबारा देख लो”, यह कहकर वह तेज़ी से आगे बढ़ गई।

 

मेरा मनोबल कुछ गड़बड़ा गया। पहले तो सोचा घर जाकर अपना चेहरा एक बार फिर देख ही लूं। पर तभी एक नाई की दुकान दिख गई। उसके पास शीशे में मुस्कराते हुये अपना चेहरा देखा। मुझे बहुत आकर्षक लगा। मुझे मूर्ख बना गई”, मन ही मन सोचा और अपने लक्ष्य की ओर आगे प्रस्थान कर गया।

 

तब तक सायं भी ढलने लगी थी। एक पार्क में पहुंचा। बहुत से जोड़े एक दूसरे की बगल में हाथ डाल कर झूम रहे थे। हंस-खेल रहे थे। कई किलकारियां मार रहे थे। मुझे अपना अकेलापन अखर रहा था।

 

इधर-उधर घूमते मैंने देखा एक महिला एक वृक्ष के नीचे अकेली बैठी थी। मुझे लगा जैसे वह किसी का इन्तज़ार कर रही हो। अब साथी की तलाश तो मुझे भी थी। पास जाकर मैंने उसे वैलेन्टाईन डे की मुबारकबाद दी। वह मुस्कराई। मैंने सोचा काम बन गया। मुझे अपनी मन्ज़िल मिल गई।

 

मैंने पूछा, ”किसी का इन्तज़ार कर रही हो?”

 

वह मुस्कराई और बोली, ”आप बैठ सकते हैं।और उसने एक ओर खिसक कर मेरे लिये जगह बना दी। भूखे का क्या चाहिये? दो रोटी। और वह मुझे मिल गई।

 

मैं उसके साथ बैठ गया। पहले तो मैंने उसे वह गुलाब थमा दिया जो अब तक तिरस्कृत मेरे हाथ में ही मुर्झाने लगा था। उसने सहर्ष स्वीकार कर थैंक यू कहा। मैंने सोचा मेरी मुराद तो पूरी हो गई। मैंने अपनी जेब से एक चाकलेट निकाली और उसे बड़े प्यार से भेंट कर दी। उसने ली और उसके दो हिस्से कर एक मुझे दे दिया और एक अपने मुंह में डाल लिया। बहुत स्वीट है तुम्हारी तरह – यह कहकर उसने अपनी आंखें मटका दीं। मुझ पर वैलेन्टाईन डे का सरूर चढ़ता लग रहा था।

 

मैंने कहा, ”कुछ चाट-पापड़ी का स्वाद लें?”

 

वह एक दम उठकर तैयार हो गई। बड़े चटकारे लेकर हमने चाट-पापड़ी का मज़ा उठाया। थोड़ा सा और घूमे। अनेक जोड़े एक-दूसरे की बगलों में हाथ डाल कर झूम रहे थे। मैंने सोचा मैं क्यों पीछे रहूं और अलग से दिखूं। मैंने भी उसकी बगल में हाथ डाल दिया। उसने मेरी ओर एक मोहक नज़र फैलाई और मेरी बगल में हाथ डाल दिया। उस दिन के खुमार में हम थोड़ा इधर-उधर घूमे।

 

 

अब भोजन का समय भी होने वाला था। भूख भी लग रही थी। मैंने पूछा, ”डिन्नर कर लें?”

 

क्यों नहीं?” उसने फिर एक मोहक मुस्कान फैंकी। आपके साथ सौभाग्य रोज़ तो मिलेगा नहीं।

 

मैं उसे एक बढ़िया रैस्तरां की ओर ले गया। रैस्तरां पहली मन्ज़िल पर था। ज्यों ही उसे पहली सीढ़ी पर पांव रखने केलिये आशिकाना अन्दाज़ में मैंने हाथ फैला कर इशारा किया, वह बोली, ”कोठे पर ले जाने से पहले कुछ पैसे तो मेरे पर्स में डाल दो।

 

पहली मंज़िल पर जाने को कोठे पर जाने की संज्ञा देने की ठिठोली मेरे मन को भा गई। मैंने तपाक से एक एक हज़ार का नोट उसके पर्स में थमा दिया। थैंक यू कह कर उसने सीढ़ियां चढ़नी शुरू कर दी।

 

खाना बड़ा बढ़िया था। उसका बड़ा आनन्द उठाया। बाद में इस ठण्ड में भी हमने बड़ी स्वादिष्ट आइसक्रीम ही खाई। पर उससे भी वैलन्टाइन डे की गर्मजोशी में किसी प्रकार की ठण्डक न आई।

 

अब मेरा डे तो सफल हो गया था। मैंने सोचा पहली मुलाकात तो इतनी नज़दीकी तक ही सीमित रखी जाये। पहली ही मुलाकात में ज्यादा बढ़ जाना ठीक नहीं। आगे के लिये स्कोप रख लेते हैं। पहल मैंने ही की, ”अब चलें। आपके साथ बड़ा आनन्द आया। मेरा तो वैलन्टाई डे सफल हो गया।

 

मैंने बिल दिया। बिल मोटा था। उस पर प्रभाव जमाने के लिये टिप भी मैंने दिल खोल कर दिया।

 

हम नीचे उतरे। उसकी बगल में हाथ डालकर मैंने कहा, ”थैंक यू। आपने तो मेरी शाम रंगीन कर दी। फिर मिलते रहना।मैंने उसे अपना विज़िटिंग कार्ड थमा दिया। कहो तो कहीं छोड़ दूं?”

 

नो, थैंक्सकह कर प्यार भरे रोब से बोली, ”बस दो हज़ार रूपये और दे दो

 

अवाक्, मैंने पूछा, ”किस लिये?”

 

मैं जब किसी को शाम को कम्पनी देती हूं तो यही चार्ज करती हूं

 

पर आज तो मैडम वैलन्टाइन डे है?”

 

तभी तो कम रेट लगा रही हूं, वरन् तो ज्यादा मांगती

 

मैं थोड़ा झुंझला गया। मैंने कहा, ”मैडम, मैं पैसे देकर वैलन्टाइन डे नही मनाता।

 

पर मैं मनाती हूं।उसने थोड़ा तलखी से बोला। आप जल्दी से रूपसे निकाल दो वरन्ण्ण्ण्ण्

 

मैं अकलमन्द निकला। इशारा समझ गया। मैं तो मौज-मस्ती मनाने आया था, तमाशा बनाने या बनने नहीं। आखिर मैं इज्ज़तदार आदमाी था। मुझे याद आया कल ही तो हमें अपनी बेटी के रिश्ते की बात करनी है। मैंने चुपचाप बुझे मन से एक-एक हज़ार के दो नोट उसके हाथ थमा दिये। एक प्यारी सी मुस्कान देकर उसने एक बार फिर थैंक यू कहा और चलती बनी।

 

मन बुझ सा गया। अब और घूमने का मन भी न रहा। रात के ग्यारह भी बज चुके थे।

 

घर पुहुचा तो ताला बन्द। घर में कोई नहीं। सामने मैदान में चहलकदमी करने लगा। थोड़ी देर बाद मेरे घर के सामने एक कार रूकी। मेरी धर्मपत्नी बाहर निकली। कार चलाने वाले का बड़े प्यार से बाई-बाई की और बिना दायें-बाये देखते घर का ताला खोलने लगी। मैं भी पीछे से आ गया। मैंने पूछा, ”रिंकी और विंकू नहीं आये?”

 

वह भी वैलन्टाइन डे मना रहे होंगे। दोनों इकट्ठे हैं न?” मैंने पूछा।

 

तुम भी मूर्ख के मूर्ख ही रहे”, वह भड़क कर बोली। कभी बहन और भाई भी साथ वैलन्टाई डे मनाते हैं? रिंकी अलग होगी, विंकू अलग

 

सॉरी, मैं तो भूल ही गया। पर तुम्हें याद है कि प्रात: रिंकी को उसके ससुराल वाले और लड़का आ रहा है? मैं तो इसलिये चिन्तित हूं।

 

तो क्या हुआ?” वह मुझे आश्वस्त करते हुये बोली। लड़का भी तो आज कहीं वैलन्टाई डे मना रहा होगा।

 

मेरी चिन्ता दूर हो गई। हमने भी तो अपनी प्यारी बेटी केलिये एक सभ्य, सम्भ्रान्त और उदार मन परिवार ही तो चुना है।

 

 

अम्बा चरण वशिष्ठ

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जारी है हिन्दी की सहजता को नष्ट करने की साजिश – चिन्मय मिश्र

hindi_divasनई दिल्ली, 13 सितम्बर (आईएएनएस)। मुक्तिबोध के एक लेख का शीर्षक है अंग्रेजी जूते में हिंदी को फिट करने वाले ये भाषाई रहनुमा।यह लेख उस प्रवृत्ति पर चोट है जो कि हिंदी को एक दोयम दर्जे की नई भाषा मानती है और हिंदी की शब्दावली विकसित करने के लिए अंग्रेजी को आधार बनाना चाहती है।


भाषा विज्ञानियों का एक बड़ा वैश्विक वर्ग जिसमें नोम चॉमस्की भी शामिल हैं हिंदी की प्रशंसा में कहते हैं कि यह इस भाषा का कमाल है कि इसमें उद्गम के मात्र एक सौ वर्ष के भीतर कविता रची जाने लगी, परंतु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि पिछले एक हजार वर्षो से अधिक से भारत में हिंदी का व्यापक उपयोग होता रहा है। अपभ्रंश से प्रारंभ हुआ यह रचना संसार आज परिपक्वता के चरम पर है।अंग्रेजों के भारत आगमन के पूर्व ही हिंदी की उपयोगिता सिद्ध हो चुकी थी। तत्कालीन भारत विश्व व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण भागीदार था अतएव यह आवश्यक था कि इस देश के साथ व्यवहार करने के लिए यहां की भाषा का ज्ञान हो। गौरतलब है कि अंग्रेजी को विश्वभाषा के रूप में मान्यता भारत पर इंग्लैंड द्वारा कब्जे के बाद ही मिल पाई थी।दिनेशचंद्र सेन ने हिस्ट्री ऑफ बेंगाली लेंगवेज एंड लिटरेचर (बंगाली भाषा और साहित्य का इतिहास)नामक पुस्तक में लिखा है अंग्रेजी राज के पहले बांग्ला के कवि हिंदुस्तानी सीखते थे।इसी क्रम में वे आगे लिखते हैं दिल्ली के मुसलमान शहंशाह के एकछत्र शासन के नीचे हिंदी सारे भारत की सामान्य भाषा (लिंगुआ फ्रांका) हो गई थी।हिंदी की व्यापकता के लिए एक और उदाहरण का सहारा लेते हैं। इलाहाबाद स्थित संत पौलुस प्रकाशन ने 1976 मेंहिंदी के तीन आरम्भिक व्याकरणनामक ग्रंथ का प्रकाशन किया। ये तीनों व्याकरण हिंदी भाषा के हैं और सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में विदेशियों द्वारा लिखे गए थे। इन व्याकरणों से खड़ी बोली हिंदी के प्रसार और उसके रूपों के बारे में बहुत दिलचस्प तथ्य हमारे सामने आते हैं। इनमें पहला व्याकरण जौन जोशुआ केटलर ने डच में 17वीं के उत्तरार्ध का है।केटलर पादरी थे और उनका संबंध डच (हालैंड) ईस्ट इंडिया कंपनी से था। इसमें भाषा की जिस अवस्था का वर्णन है वह16 वीं सदी के उत्तरार्ध की है। दूसरा व्याकरण बेंजामिन शुल्ज का है जो 1745 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसका विशेष संबंध हैदराबाद से था, इसलिए उनकी पुस्तक को दक्खिनी हिंदी का व्याकरण भी कह सकते हैं। तीसरा व्याकरण कासियानो बेलागात्ती का है और इसका संबंध बिहार से विशेष था।यहां पर एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य पर गौर करना आवश्यक है कि तीनों व्यक्ति पादरी थे। वे यूरोप के विभिन्न देशों से यहां आए थे और ईसाई धर्म का प्रचार ही उनका मुख्य उद्देश्य भी था। इसमें से दो व्याकरण लेटिन में लिखे गए और तीसरे का लेटिन में अनुवाद हुआ। तब तक अंग्रेजी धर्मप्रचार की भाषा नहीं थी न ही वह अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त कर पाई थी।ध्यान देने योग्य बात यह है कि ये तीनों पादरी नागरी लिपि का भी परिचय देते हैं और बेलागात्ती ने अपनी पुस्तक केवल इस लिपि का परिचय देने को ही लिखी है। अपनी बात को और विस्तार देते हुए डा. रामविलास शर्मा लिखते है पादरी चाहे हैदराबाद में काम करे, चाहे पटना में और चाहे आगरा में, उसे नागरी लिपि का ज्ञान अवश्य होना चाहिए।यह बात 17 वीं व 18 वीं शताब्दी की है।बेलागात्ती हिंदुस्तानी भाषा और नागरी लिपि के व्यवहार क्षेत्र के बारे में लिखते है, ‘हिंदुस्तानी भाषा जो नागरी लिपियों में लिखी जाती है पटना के आस-पास ही नहीं बोली जाती है अपितु विदेशी यात्रियों द्वारा भी जो या तो व्यापार या तीर्थाटन के लिए भारत आते हैं प्रयुक्त होती है।‘ 1745 ई.में हिंदी का दूसरा व्याकरण रचने वाले शुल्ज ने लिखा है ’18 वीं सदी में फारसी भाषा और फारसी लिपि का प्रचार पहले की अपेक्षा बढ़ गया था।पर इससे पहले क्या स्थिति थी? इस पर शुल्ज का मत है समय की प्रगति से यह प्रथा इतनी प्रबल हो गई कि पुरानी देवनागरी लिपि को यहां के मुसलमान भूल गए।इसका अर्थ यह हुआ कि इससे पहले हिंदी प्रदेश के मुसलमान नागरी लिपि का व्यवहार करते थे। जायसी ने अखरावट में जो वर्ण क्रम दिया है, उससे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। मुगल साम्राज्य के विघटन काल में यह स्थिति बदल गई। हम सभी इस बात को समझें कि हिंदी एक समय विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषाओं में रही है और उसका प्रमाण है भारत का विशाल व्यापारिक कारोबार। जैसे-जैसे मुगल शासन शक्ति संपन्न होते गए वैसे-वैसे भारत का व्यापार भी बढ़ा और हिंदी की व्यापकता में भी वृद्धि हुई थी।क्या इसका यह अर्थ निकाला जाए कि किसी देश की समृद्धि ही उसकी भाषा को सर्वज्ञता प्रदान करती है। भारत व इंग्लैंड के संदर्भ में तो यह बात कुछ हद तक ठीक उतरती है। हिंदी जहां व्यापार की भाषा रही, वहीं उसका दूसरा स्वरूप आजादी के संघर्ष में भी हमारे सामने आता है। महात्मा गांधी ने जिस तरह हिंदी को देश की भाषा बनाने का उपक्रम किया उसने एक बार पुन: हिंदी को वैश्विक परिदृश्य पर ला दिया था । गांधी की भारत वापसी के पश्चात का काल हिंदी की पुनर्स्थापना का काल भी रहा है। वैसे इसका श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को दिया जाना चाहिए, जिन्होंने लिखा था –निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल।बिनु निजभाषा ज्ञान के, मिटै न हिय कौ शूल।इस पर पं.हजारी प्रसाद द्विवेदी की बहुत ही सागरर्भित टिप्पणी है। वे लिखते हैं, ‘उन्होंने निज भाषा शब्द का व्यवहार किया है, ‘मिली-जुली‘, ‘आम फहम‘, ‘राष्ट्रभाषाआदि शब्दों को नहीं। प्रत्येक जाति की अपनी भाषा है और वह निज भाषा की उन्नति के साथ उन्नत होती है।इसी परम्परा के विस्तार को वे हिंदी का जन आंदोलन की संज्ञा भी देते हैं।आजादी के संघर्ष के दौरान ही पढ़े-खिले समुदाय का एक वर्ग अंग्रेजी कोआभिजात्यभाषा के रूप में स्वीकार कर चुका था। भारत की आजादी के पश्चात यह आभिजात्य वर्ग एक तरह के पारम्परिक कुलीन वर्गमें परिवर्तित हो गया और उसने अपनी कुलीनता को ही इस देश की नियति निर्धारण का पैमाना बना दिया। इस दौरान षड़यंत्र के तहत हिंदी-उर्दू और हिंदी बनाम भारत की अन्य भाषाओं का मुद्दा अनावश्यक रूप से उछाला गया। ध्यान देने योग्य है कि मुगलकाल तक, जब हिंदी पूरे देश में व्यवहार में आ रही थी तब भी बंगला, तमिल, उड़िया तेलुगु जैसी भाषाएं अपने अंचलों में पूरे परिष्कार से न केवल स्वयं को संवार रही थीं बल्कि अपनी संस्कृति का निर्माण भी कर रही थीं।इस संदर्भ में हिंदी पर यह आरोप भी लगता है कि हिंदी की सबसे बड़ी विफलता यह है कि वह अपनी संस्कृति विकसित नहीं कर पाई, परंतु ध्यानपूर्वक अध्ययन से ऐसा भी भान होता है कि संभवत: हिंदी को कभी भी अपनी पृथक संस्कृति निर्मित करने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई होगी। अवधी, भोजपुरी, ब्रज जैसी संस्कृतियों ने सम्मिलित रूप से व्यापक स्तर पर हिंदी संस्कृति के निर्माण में कहीं न कहीं योगदान दिया है।कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी अगर अपनी पृथक संस्कृति के निर्माण के प्रति सचेत होती तो संभवत: भारत में इतनी विविधता भी नहीं होती और वह भी एकरसता वाला देश बन कर रह जाता। भारत के पूरे व्यापार का माध्यम होने के बावजूद एकाधिकारी प्रवृत्ति से बचे रहने से बढ़ा कार्य कोई समाज नहीं कर सकता था। हिंदी समाज ने इस असंभव को संभव कर दिखाया है।आज जब हिंदी पुन: बाजार की भाषा बन गई है तब विदेशी व्यापारिक हथकंडों से लैस एक वर्ग इसमें अनावश्यक रूप से हस्तक्षेप कर इसकी सहजता को नष्ट कर देना चाहता है। दु:ख इस बात का है कि हिंदी को समझने व व्यवहार में लाने वाला प्रबुद्धतम वर्ग भी इसमें षड़यंत्रपूर्वक सम्मिलित हो गया है। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि इसके लोकव्यापी स्वरूप को बचाए रखा जाए। पिछले एक हजार साल हिंदी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्वयं को भारतीय संस्कृति का पर्याय बनाए हुए है और यहां पर निवास करने वाला समाज इसका यह स्वरूप हमेशा बनाए भी रखेगा।

बापू से प्रभावित थे मार्टिन लूथर

gandhi_jiबापू अब अमेरिकियों को खूब भा रहा है। अमेरिकी हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स ने एक ऐसा प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें इस बात का जिक्र है कि आम नागरिकों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले मार्टिन लूथर किंग जूनियर पर महात्मा गांधी का प्रभाव था। प्रस्ताव में कहा गया है कि गांधी की विचारधारा से प्रेरित होकर ही मार्टिन लूथर ने अहिंसा को अपना हथियार बनाया था।

मार्टिन लूथर वर्ष 1959 में भारत की यात्रा की थी। उनकी इस यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष के मौके पर बुधवार को इस प्रस्ताव को पारित किया गया है। इस प्रस्ताव में साफ-साफ कहा गया है कि लूथर ने गांधीवादी विचारधारा का गहरा अध्ययन किया था।

प्राप्त खबर के मुताबिक प्रस्ताव में कहा गया कि लूथर पर उनकी भारत यात्रा का गहरा असर रहा। इस यात्रा से उन्हें सामाजिक बदलाव के लिए बतौर हथियार अहिंसा का इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली। इससे उनके नागरिक अधिकारवादी आंदोलन को खास दिशा मिली।

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन एक सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल को भारत रवाना करने वाली हैं। इस सांस्कृतिक दल को लूथर की भारत यात्रा की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में रवाना किया जा रहा है। यह प्रतिनिधिमंडल सबसे पहले दिल्ली पहुंचेगा और फिर गांधी की विरासत से जुड़े कुछ स्थलों का दौरा करेगा।*

भोपाल की फिजा में वेलेंटाइन डे का तड़का

ca6bepwlभोपाल, 14 फरवरी (आईएएनएस) भोपाल में वेलेंटाइन डे की गरमाहट आने लगी है। एक तरफ कुछ लोग 14 फरवरी को विशेष आयोजनों की तैयारी में जुटे हैं, जबकि दूसरी तरफ बजरंग दल जैसे कुछ संगठन इसके खिलाफ अभियान चलाने को तैयार हैं। पुलिस भी इन स्थितियों से निपटने को तैयार दिख रही है।

वेलेंटाइन डे को लेकर पिछले कुछ वर्षों से इसके समर्थन और विरोध में आवाजें उठती रही हैं। बजरंग दल ने इस दिन को भारतीय संस्कृति के खिलाफ करार देते हुए इसका विरोध किया है। इस दल ने घोषणा की है कि वह हर पार्क और चौराहे पर कड़ी नजर रखेगा। साथ ही उसे प्यार के कसीदे कड़ते जो भी जोड़े नजर आएंगे उनकी वह शादी कराएगा।

दूसरी ओर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने भोपाल में सदबुद्घि यज्ञ किया। संगठन के कार्यकर्ताओं ने यज्ञ में आहुतियां देकर ईश्वर से प्रार्थना की कि वह वेलेंटाइन डे का विरोध करने वालों को सदबुद्घि दें, जिससे वे समाज में अशांति फैलाने की मंशा त्याग दें।

भोपाल पुलिस के अधिकारी ने बताया कि वेलेन्टाइन डे पर किसी भी तरह का हुड़दंग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गड़बड़ी फैलाने वालों से पुलिस सख्ती से निपटेगी।

बाल अधिकार आयोग ने माना बच्चों की हालत ठीक नहीं

hungry-child-in-india-small1 राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष शान्ता सिन्हा ने कहा है कि वर्तमान व्यवस्था बच्चों के जीवन के अधिकार को संरक्षित कर पाने में नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि जो भी बच्चा जन्म ले उसे हर हाल में जीवित रखा जाए।

मध्य प्रदेश के सतना जिले के मझगवां विकास खंड में जन सुनवाई में हिस्सा लेने आईं सिन्हा का मानना है कि बच्चों की मौत चाहे कुपोषण से हुई हो अथवा किसी अन्य वजह से। लेकिन, ऐसी मौतें तो हमारी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने वाली हैं। उन्हें यह मानने में जरा भी हिचक नहीं है कि कुपोषण की स्थिति गंभीर है और इससे बच्चों की असमय मौत हो रही है।

 उन्होंने यहां जन सुनवाई के दौरान अपने से मिलने आए विभिन्न जन संगठनों से चर्चा करते हुए कहा कि हमें बच्चों की मौत के सच को स्वीकारना होगा। वर्तमान स्थिति में सरकारी अमले को एक दूसरे पर दोषारोपण करने से अलग सच को स्वीकार कर इस समस्या से निपटना चाहिए।

आयोग की कुपोषण विशेषज्ञ डा. वंदना प्रसाद ने किरहाई पुखरी गांव का दौरा करने के बाद बताया कि कुपोषण को समझने के लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत नहीं है। बच्चों की शारीरिक हालत देखकर ही हकीकत का अंदाजा लग जाता है।

एसएमएस से भावनाओं का इजहार करने में आगे हैं महिलाएं

t-mobile-mda महिलाएं बेशक प्रत्यक्ष रूप से अपनी भावना का इजहार करने में पुरुषों की अपेक्षा अधिक सकुचाती हैं। लेकिन, संचार के नए माध्यमों के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में वे पुरुषों से आगे हैं। यहां उनका वैचारिक खुलापन भी अधिक झलकता है।

तकनीकी ने महिलाओं की सोच में खुलेपन और उदारता का पुट दिया है। अमेरिका के एक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब महिलाओं को किसी मेलजोल कार्यक्रम के दौरान मोबाइल के जरिए भावना का इजहार करने की छूट दी गई तो वे इस मामले में पुरुषों से आगे निकल गईं। महिलाएं दिल की गहराइयों में छिपी भावना, चाहे वह रोमांस हो या कोई और  इसके लिए भाषाई अनुशासन को तोड़ने से वे परहेज नहीं करती।

 शोधकर्ताओं ने पाया कि महिलाओं ने एसएमएस के जरिए अपनी भावना का खुले मन से इजहार किया, जबकि पुरुषों के एसएमएस में झिझक का पुट दिखा। इस शोधकार्य के दौरान करीब 1164 एमएमएस का अध्ययन किया गया।

शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रत्यक्ष इजहार के मामले में महिलाएं शिष्टाचार का भरपूर ख्याल रखती हैं, लेकिन मोबाइल के जरिए भेजे गए अपने संदेश में वे रोमांस आदि मसलों पर अधिक मुखर हो जाती हैं। वे संक्षिप्त शब्दों का इस्तेमाल कर इजहार को नाटकीय और असरदार बनाने में ज्यादा दिलचस्पी लेती हैं।

बांग्लादेश में मिला रवींद्रनाथ का लिखा खत

ravindra-nath-tagoreबीसवीं सदी के प्रारंभ में नोबल पुरस्कार से सम्मानित विश्व विख्यात बांग्ला भाषी कवि रवींद्रनाथ ठाकुर का लिखा एक खत बांग्लादेश के बज्र देहाद में मिला है। ठाकुर के निधन के ठीक 66 वर्षों बाद मिला यह पत्र उनसे जुड़ी एक अमूल्य निशानी है।

पूरे छह पन्नों का यह पत्र बांग्लादेश के नवगांव जिले के पातीसार गांव से प्राप्त हुआ है। सिराजगंज जिले में रवींद्रनाथ कच्चरीबारी संग्रहालय की कर्ताधर्ता ने इस बाबत जानकारी दी है। जानकारी के मुताबिक पत्र में पश्चिम बंगाल के बोलापुर के किसी व्यक्ति का पता दर्ज है। पत्र में खास बात यह है कि इसमें ठाकुर की जन्मतिथि छह मई, 1861 बताई गई है। एक स्थानीय समाचार पत्र डेली स्टारके मुताबिक पत्र पर भद्र 28, बंगाली वर्ष 1317 की तारीख दर्ज है।बांग्लादेश पुरातत्व विभाग का मानना है कि ठाकुर द्वारा लिखे गए किसी पत्र की पांडुलिपि देश के किसी भी संग्रहालय में नहीं है।