राजनीति नये भारत के निर्माता हैं कर्मयोद्धा नरेन्द्र मोदी

नये भारत के निर्माता हैं कर्मयोद्धा नरेन्द्र मोदी

श्री नरेंद्र मोदी के 73वें जन्म दिवस- 17 सितम्बर 2023 पर विशेष– ललित गर्ग- एक महान् कर्मयोद्धा के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राजनैतिक, सामाजिक,…

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राजनीति कब तक अधूरा रहेगा अपराधमुक्त राजनीति का काम

कब तक अधूरा रहेगा अपराधमुक्त राजनीति का काम

– ललित गर्ग-आगामी पांच राज्यों में विधानसभा एवं अगले वर्ष लोकसभा चुनाव की आहट के साथ एक बार फिर अपराधी उम्मीदवारों को लेकर चिन्ता के…

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आर्थिकी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बढ़ती भारत की भागीदारी

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में बढ़ती भारत की भागीदारी

भारत, पूरे विश्व में, पहिला देश है जिसने चन्द्रयान-3 को चन्द्रमा के दक्षिणी पोल पर सलतापूर्वक उतार लिया है। अन्यथा, विश्व का कोई भी देश,…

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कला-संस्कृति गणेश हैं विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और उन्नत राष्ट्र-निर्माता

गणेश हैं विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता और उन्नत राष्ट्र-निर्माता

गणेश चतुर्थी- 19 सितम्बर 2023 पर विशेष -ललित गर्ग-गणेश भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, वे विघ्नहर्ता एवं मंगलकर्ता सात्विक देवता हैं और उन्नत राष्ट्र-निर्माता…

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राजनीति संसद का विशेष सत्र सार्थक बहस का माध्यम बने

संसद का विशेष सत्र सार्थक बहस का माध्यम बने

-ललित गर्ग- आज संसद में भारतीय संसदीय इतिहास का आठवां विशेष सत्र प्रारंभ हुआ, ऐतिहासिक रूप से देखें तो विशेष सत्र आमतौर पर महत्वपूर्ण विधायी…

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कविता माफी सभी से सभी को प्रणाम

माफी सभी से सभी को प्रणाम

प्रणाम प्रणाम प्रणाम, मेरा आखिरी प्रणाम अंतिम सांसे है, शेष जीवन को प्रणाम देह में बसी थी, एक अंजान सी आत्मा तलाशती रही वह, न…

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कविता तीन भाई सबसे जुदा

तीन भाई सबसे जुदा

अपने ही घर में, एक कमरे में है बूढ़े माता पिता एक बेटे ने, नौकरी लगते ही उन्हे छोड़ दिया एक बेटे ने, घर की मर्यादा के लिए…

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राजनीति इंडिया महागठबंधन की बड़ी बाधा न बन जाये ‘आप’

इंडिया महागठबंधन की बड़ी बाधा न बन जाये ‘आप’

– ललित गर्ग-आज की राजनीति सत्ताकांक्षी अधिक है, जबकि उसका मूल लक्ष्य राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्र उन्नति कहीं गुम हो गया है। हर राजनैतिक दल राष्ट्रहित…

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लेख हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है

हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है

 (14 सितंबर 2023 हिंदी दिवस पर विशेष आलेख) हिन्दी हमेशा से हिन्दुस्तान की पहचान रही है। कहा जाये तो हिन्दुस्तान एक देश है और इसकी सांस है हिन्दी, बिना सांस (हिंदी) के हिन्दुस्तान में निवास करना और यहां की संस्कृति को बनाये रखना मुश्किल है। इसलिये हिन्दुस्तान देश में हिन्दी की अपनी महत्वता है, जिसे हिन्दुस्तान देश से कभी नहीं मिटाया जा सकता। हिंदी हमेशा से ज्ञान और भाव की भाषा रही है, तभी दुनिया में बुध्दिमत्ता के मामले में हिन्दुस्तानियों का डंका पिटता रहा है। हिंदी सदा दुनियां में पे्रम के भाव से बोली जाने वाली भाषा है। हिंदी शब्द है हमारी आवाज का हमारे बोलने का जो कि हिन्दुस्तान में बोली जाती है। आज देश में जितनी भी क्षेत्रीय भाषाएँ हैं, उन सबकी जननी हिंदी है। और हिंदी को जन्म देने वाली भाषा का नाम संस्कृत है। जो कि आज देश में सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से हिंदी माध्यम के स्कूलों में एक विषय के रूप में पढाई जाती है। आज देश के लिए इससे बडी विडम्बना क्या हो सकती है कि जिस भाषा को हम अपनी राष्ट्रीय भाषा कहते हैं, आज उसका हाल भी संस्कृत की तरह हो गया है। जिस तरफ देखो उस तरफ अंग्रेजी से हिंदी और समस्त भारतीय भाषाओं को दबाया जा रहा है। चाहे आज देश में इंटरमीडिएट के बाद जितने भी व्यावसायिक पाठयक्रम हैं, सब अंग्रेजी में पढाये जाते हैं। अगर देश की शिक्षा ही देश की राष्ट्रीय भाषा में नहीं है तो हिंदी जिसे हम अपनी राष्ट्रीय भाषा मानते है। जिसे हम एक दूसरे का दुख दर्द बांटने की कडी मानते है। उसका प्रसार कैसे हो पायेगा। कहा जाये तो हिन्दी बिना हिन्दुस्तान अधूरा है। देश की एकता और अखण्डता को बनाये रखनें में हिन्दी का अहम योगदान है। आज हिन्दी सिनेमा विश्व में एक अहम स्थान रखता है। बाॅलीवुड की पहचान भी हिन्दी से ही है। हिन्दी की वजह से ही बाॅलीवुड में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। हिन्दी भाषा सिर्फ वार्तालाप और संचार का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह देश में रोजगार के सृजन का भी माध्यम है। आज हिन्दी सिनेमा से लेकर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, और सोशल मीडिया पर हिन्दी का बोलबाला है, जो कि देश में लाखों रोजगार पैदा करते हैं। आज इंटरनेट पर भीप करोड़ों लोग हिंदी का अनुसरण करते हैं, इसलिए आज हिन्दुस्तान में सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, गूगल प्लस) भी अपना रूपांतरण हिंदी में कर चुका है और करोड़ों लोग फेसबुक तय ट्विटर में अपने विचार हिंदी में साझा करते हैं। आज विदेशी वेबसाइटें भी अपना हिंदी संस्करण हिन्दुस्तान में प्रारंभ कर रहीं है क्योंकि उनको पता है कि हिन्दुस्तान में अगर उनको टिकना है तो हिंदी को बढ़ावा देना ही होगा। महात्मा गांधी हिन्दी भाषी नहीं थे लेकिन वे जानते थे कि हिन्दी ही देश की संपर्क भाषा बनने के लिए सर्वथा उपयुक्त है। उन्हीं की प्रेरणा से राजगोपालाचारी ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का गठन किया था। देशभर में हिन्दी पढ़ना गौरव की बात मानी जाती थी। महात्मा गांधी जी ने 1916 में क्रिश्चियन एसोसिएशन आफ मद्रास की एक सभा में स्पष्ट रूप से कहा था कि धर्मान्तरण राष्ट्रान्तरण है। उन्होंने हरिजन में लिखा था ‘‘यदि मैं तानाशाह होता तो अंग्रेजी की पुस्तकों को समुद्र में फेंक देता और अंग्रेजी के अध्यापकों को बर्खास्त कर देता।’’ सच तो यह है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी के मोहपाश में बुरी तरह से जकड़े हुए हैं। आज स्वाधीन भारत में अंग्रेज़ी में निजी पारिवारिक पत्र व्यवहार बढ़ता जा रहा है काफ़ी कुछ सरकारी व लगभग पूरा ग़ैर सरकारी काम अंग्रेज़ी में ही होता है, दुकानों वगैरह के बोर्ड अंग्रेज़ी में होते हैं, होटलों रेस्टारेंटों इत्यादि के मेनू अंग्रेज़ी में ही होते हैं। ज़्यादातर नियम कानून या अन्य काम की बातें, किताबें इत्यादि अंग्रेज़ी में ही होते हैं, उपकरणों या यंत्रों को प्रयोग करने की विधि अंग्रेज़ी में लिखी होती है, भले ही उसका प्रयोग किसी अंग्रेज़ी के ज्ञान से वंचित व्यक्ति को करना हो। अंग्रेज़ी भारतीय मानसिकता पर पूरी तरह से हावी हो गई है। हिंदी (या कोई और भारतीय भाषा) के नाम पर छलावे या ढोंग के सिवाय कुछ नहीं होता है। माना कि आज के युग में अंग्रेज़ी का ज्ञान ज़रूरी है, क्योकि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। कई सारे देश अपनी युवा पीढ़ी को अंग्रेज़ी सिखा रहे हैं जिसमे एक भारत देश भी है पर इसका अर्थ ये नहीं है कि उन देशों में वहाँ की भाषाओं को ताक पर रख दिया गया है और ऐसा भी नहीं है कि अंग्रेज़ी का ज्ञान हमको दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में ले आया है। सिवाय सूचना प्रौद्योगिकी के हम किसी और क्षेत्र में आगे नहीं हैं और सूचना प्रौद्योगिकी की इस अंधी दौड़ की वजह से बाकी के प्रौद्योगिक क्षेत्रों का क्या हाल हो रहा है वो किसी से छुपा नहीं है। सारे विद्यार्थी प्रोग्रामर ही बनना चाहते हैं, किसी और क्षेत्र में कोई जाना ही नहीं चाहता है। क्या इसी को चहुँमुखी विकास कहते हैं? दुनिया के लगभग सारे मुख्य विकसित व विकासशील देशों में वहाँ का काम उनकी भाषाओं में ही होता है। यहाँ तक कि कई सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ अंग्रेज़ी के अलावा और भाषाओं के ज्ञान को महत्व देती हैं। केवल हमारे यहाँ ही हमारी भाषाओं में काम करने को छोटा समझा जाता है। हिंदी भारत का मान है, कहा जाये तो हिन्दी के बिना हिन्दुस्तान की कल्पना करना निरर्थक है। आज हमारे देश में अंग्रेजी माध्यम के स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे हैं। बचपन में हम सुना करते थे कि सोवियत रूस में नियुक्त राजदूत विजय लक्ष्मी पंडित जो कि प्रधानमंत्री नेहरू की सगी बहन थीं, ने रूस के राजा स्टालिन को अपना पहचानपत्र अंग्रेजी में भेजा। उन्होंने स्वीकार करने से इंकार कर दिया और पूछा कि क्या भारत की अपनी कोई भाषा है या नहीं। उन्होंने फिर हिन्दी में परिचय पत्र भेजा तब उन्होंने मिलना स्वीकार किया। अंग्रेजी व्यापार की भाषा है जरूर लेकिन वह ज्ञान की भाषा नहीं। सबसे अधिक ज्ञान-विज्ञान तो संस्कृत में है जिसे भाषा का दर्जा दिया जाना महज औपचारिकता भर रह गया है। आज जरूरत है हमारी सरकार को हिंदी का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए।  जैसे कि चीन अपनी भाषा को प्रोत्साहन दे रहा है। वैसे ही भारत देश को अपनी भाषा को प्रोत्साहन देना होगा। और जितने भी देश में  सरकारी कामकाज होते है वो सब हिंदी में होने चाहिए। और हिंदी में उच्च स्तरीय शिक्षा के पाठयक्रम को क्रियान्वित करने की जरूरत है। सभी जानते हैं कि अंग्रेजी एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। मैं अपने विचार से कहना चाहूँगा की अग्रेजी सभी को सीखना चाहिए लेकिन उसे अपने ऊपर हमें कभी हावी नहीं होने देना है, अगर अंग्रेजी हमारी ऊपर हावी हो गयी तो हम अपनी भाषा और संस्कृति सब को नष्ट कर देंगे। इसलिए आज से ही सभी को हिंदी के लिए कोशिश जारी कर देनी चाहिए। अगर हमने शुरुआत नहीं की तो हमारी राजभाषा एक दिन संस्कृत की तरह प्रतीकात्मक हो जायेगी। जिसके जिम्मेदार और कोई नहीं हम लोग होंगे। अंग्रेजी भाषा की मानसिकता आज हम पर, खासकर हमारी युवा पीढ़ी पर इतनी हावी हो चुकी है कि हमारी अपनी भाषाओं की अस्मिता और भविष्य संकट में है। इसके लिए हमें प्रयास करने होंगे। और इसके लिए जरूरत है कि हमें अंग्रेजी को अपने दिलो-दिमाग पर राज करने से रोकना होगा, तभी हिंदी आगे बढ़ेगी और राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त की यह घोषणा साकार होगी – “है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी।”

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लेख वैश्विक परिपेक्ष्य में हिन्दी

वैश्विक परिपेक्ष्य में हिन्दी

हिन्दी भाषा का इतिहास साढ़े तीन हजार वर्षों पुराना है ,लेकिन आज जिस हिन्दी भाषा को हम लिखते बोलते है ये केवल 121 वर्ष पुरानीं…

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व्यंग्य कहने से नहीं, अपनाने से होगी हिंदी की सार्थकता

कहने से नहीं, अपनाने से होगी हिंदी की सार्थकता

सुशील कुमार ‘नवीन’ आप सभी जेंटलमैन को ‘ हिंदी दिवस’ की मैनी मैनी कांग्रेचुलेशन। यू नो वेरी वेल कि हिंदी हमारी मदरटेंग है। इसकी रिस्पेक्ट…

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राजनीति G20 बैठक संपन्न, दुनिया ने देखी भारत की कूटनीतिक जीत, जलवायु नेतृत्व

G20 बैठक संपन्न, दुनिया ने देखी भारत की कूटनीतिक जीत, जलवायु नेतृत्व

रविवार को दिल्ली में G20 शिखर सम्मेलन के आखिरी दिन प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा को G20 की गैवेल दिये जाने के…

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