विदेशी मूल के अमेरिकन नागरिकों की भूमिका और ट्रंप टैरिफ
Updated: August 15, 2025
विवेक रंजन श्रीवास्तव मूल अमेरिकी नागरिक संख्या में सीमित हैं। वहां बड़ी संख्या में विदेशों से आकर बस गए लोगों की जनसंख्या है। अपनी मूल…
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स्वाधीनता संघर्ष के कुछ महत्वपूर्ण नारे
Updated: August 23, 2025
इस लेख में हम ऐसी कुछ पंक्तियों या नारों का उल्लेख करना चाहते हैं जो हमारे स्वातंत्रय समर की रीढ़ बन गये थे, और जिन्होंने…
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तू दयानंद का वीर सिपाही ….
Updated: August 13, 2025
यदि रगों में तेरे लहू नहींतो जीने का क्या अर्थ हुआ ?यदि देशहित कुछ किया नहींतो जीवन तेरा व्यर्थ हुआ।है मातृभूमि का ऋण तुझ परउसको…
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धराली की घटना के निहित – अर्थ
Updated: August 13, 2025
उत्तराखंड के धराली में ऊपर पहाड़ियों पर बादल फटा और उसके साथ जिस प्रकार बड़ा भारी मलबा पहाड़ से नीचे की ओर आया तो उसने…
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क्या हैं आरएसएस के पंच परिवर्तन
Updated: August 13, 2025
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक शताब्दी पुराना एक ऐसा संगठन है जिसे देश सेवा, आपात स्थितियों में नागरिक-सहायता और सांस्कृतिक उत्थान के अगुआ के रूप में…
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आर्थिक व सैन्य मोर्चे पर अमेरिका-चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम हुआ भारत, अब बराबरी से ही करेगा बातचीत
Updated: August 12, 2025
कमलेश पांडेय दुनिया के आर्थिक और सैन्य मंच पर तेजी से कद्दावर बन चुके गुटनिरपेक्ष देश भारत ने रूस को साधकर नम्बर वन अमेरिका और…
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फट रहे अविश्वास और आरोपों के बम- ख़तरनाक मोड़ पर राजनीति
Updated: August 12, 2025
डॉ घनश्याम बादल कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस करके जिस तरह के आरोप चुनाव आयोग पर लगाए हैं, वे काफी सनसनीखेज…
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विवादों में फंसी सौम्या टंडन की फिल्म ‘फाइल नंबर 323’
Updated: August 12, 2025
सुभाष शिरढोनकर 03 नवंबर, 1984 को भोपाल में पैदा हुईं एक्ट्रेस सौम्या टंडन के जीवन के शुरूआती दिन उज्जैन में बीते। उनके पिता बी जी टंडन, उज्जैन…
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टूटी छतों और दीवारों के बीच कैसे पलेगी शिक्षा की नींव?
Updated: August 12, 2025
जर्जर स्कूल, खतरे में भविष्य भारत में लाखों सरकारी विद्यालय जर्जर हालत में हैं। टूटी छतें, दरारों वाली दीवारें, पानी व शौचालय का अभाव—ये बच्चों…
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स्वतंत्रता का अधूरा आलाप
Updated: August 12, 2025
“आज़ादी केवल तिथि नहीं, एक निरंतर संघर्ष है। यह सिर्फ़ झंडा फहराने का अधिकार नहीं, बल्कि हर नागरिक को समान अवसर और सम्मान देने की…
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प्रकृति से खिलवाड़ की चेतावनी
Updated: August 12, 2025
संदर्भः उत्तराखंड में बादल फटने से हुई ताबाहीप्रमोद भार्गवभारतीय दर्शन के अनुसार मानव सभ्यता का विकास हिमालय और उसकी नदी-घाटियों से माना जाता है। ऋषि…
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भारत के साहसिक कदम से अमेरिका की दादागिरी पर लग सकता है ‘ग्रहण’।
Updated: August 12, 2025
संतोष कुमार तिवारी अमेरिका की तरफ से भारत पर टैरिफ लगाने का सिर्फ रूस से तेल खरीदना ही एक कारण नहीं है बल्कि इसके पीछे कई और भी कारण हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगा दिया है, जो 7 अगस्त से प्रभावी है और वहीं इस टैरिफ को बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने की चेतावनी दे चुके हैं, जिसके पीछे की वजह भारत द्वारा रूसी तेल खरीदना बताया जा रहा है जबकि भारत का रूस सबसे बड़ा दोस्त है जो हमेशा भारत के साथ बड़े भाई की तरह खड़ा रहता है। इधर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड टंप ने गीदड़भभकी दिखाते हुए भारत के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि जब तक टैरिफ को लेकर मसला नहीं सुलझ जाता है, तब तक कोई बातचीत नहीं होगी जबकि अमेरिका के राष्ट्रपति को ज्ञात है कि भारत में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री है जो अपने देश के हित के आगे अमेरिका क्या दुनिया की किसी ताकत के साथ नहीं झुक सकते है। ट्रम्प के टैरिफ़ बढ़ाने की गीदड़भभकी के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ-साफ कह दिया कि देश के किसानों, पशुपालकों और मछुवारों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन मैं इसके लिए तैयार हूं।प्रधानमंत्री का यह बयान अमेरिका को और चुभ गया और ट्रम्प को समझ में आ गया कि भारत को झुकाना अब सरल नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद देश के किसान, पशुपालक और मछुवारा व्यवसाय से जुड़े लोग काफ़ी खुश है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों और हिम्मत की सराहना कर रहे है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप यह चाहते हैं कि भारत अमेरिकी कृषि उत्पाद और डेयरी प्रोडक्ट्स पर टैरिफ कम करे ताकि भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के इन उत्पादों को बेचा जा सके लेकिन भारत इन क्षेत्रों को देश में ज्यादा प्राथमिकता देता है. अगर भारत इन क्षेत्रों को अमेरिका के लिए खोलता है तो भारत के किसानों की आय पर असर होगा जिसे लेकर भारत कभी भी समझौता नहीं करना चाहेगा जबकि अमेरिका कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए शत प्रतिशत टैरिफ़ कम करने की मांग कर रहा है। इसके अलावा अमेरिका यह भी चाहता है कि भारत रूसी तेल का आयात कम करे और अमेरिका से ज्यादा तेल का आयात करे जबकि भारत को अमेरिका की तुलना में सस्ता तेल रूस से मिल रहा है तो अमेरिका से भारत तेल क्यों ख़रीदे। भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के मुंह खाने के बाद अमेरिका के दादागिरी पर ग्रहण लगने की आशंका बन रही है क्योंकि अमेरिकी डॉलर दुनिया भर में इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है। वर्ष 1944 से ही अमेरिकी डॉलर का इस्तेमाल सभी देश व्यापार के लिए कर रहे हैं। दुनिया भर के सेंट्रल बैंक अपने यहां डॉलर का रिजर्व रखते हैं। करीब 90 फीसदी विदेशी मुद्रा लेन-देन डॉलर में ही होती है लेकिन ब्रिक्स देशों ने इस पर निर्भरता कम करने के लिए कदम उठाये जिसे लेकर ट्रंप बौखलाए हुए हैं क्योंकि ब्रिक्स संगठन के देश मिलकर वर्ल्ड इकोनॉमी में कुल 35 प्रतिशत का योगदान देते हैं। ऐसे में अगर इन देशों ने अमेरिका और डॉलर का विरोध किया तो अमेरिका के सुपर पॉवर बने रहने का स्थिति छिन सकती है। साथ ही डॉलर वर्ल्ड करेंसी से हट भी सकता है और अमेरिकी दादागिरी में ग्रहण लग सकता है। भारत और रूस के तेल व्यापार की बात की जाये तो भारत रूस से 2022 से तेल का आयात बढ़ाया है। भारत अभी रूस से हर दिन 1.7 से 2.2 मिलियन बैरल तक का रूसी तेल आयात करता है। भारत रूसी तेल का करीब 37 फीसदी हिस्सा आयात कर रहा है। वहीं सबसे ज्यादा चीन रूस से तेल खरीद रहा है। साल 2024 में भारत ने रूस से 4.1 लाख करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात किया है। जो अमेरिका को पच नहीं रहा है और अपनी दादागिरी के दम पर अपने देश के कृषि और दुग्ध उत्पाद को भारत जैसे बड़े बाजार में बिना टैरिफ़ के बेचने के लिए बेताब है और भारत द्वारा अमेरिका की बात न मामने पर 50 प्रतिशत टैरिफ़ बढ़ाने की बात कहीं जा रही है। जबकि अमेरिका के इस फैसले से भारत के विरोध में रहने वाला चीन भी अमेरिका के इस कदम को गलत बताया है। अब अमेरिका के लिए एक चिंता और हो रही है कि भारत,रूस और चीन जैसे महाशक्ति यदि एक हो जाएगी तो अमेरिका की दादागिरी भी खतरे में पड़ सकती है। अमेरिका के इस मनमानी टैरिफ़ पर न चीन बल्कि विश्व के कई देशों ने सही नहीं करार दिया है। भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने का विरोध तो अमेरिका का बहाना है, अमेरिका का मुख्य दर्द भारत जैसे बड़े बाजार में अमेरिका के कृषि और दुग्ध उत्पाद को बेचने का मौका न मिलना प्रमुख है। अमेरिका चाहता है कि उसके कृषि और दुग्ध उत्पाद जैसे दूध, पनीर, घी आदि को भारत में आयात की अनुमति मिले। अमेरिका का तर्क हैं कि उनका दूध स्वच्छ और गुणवत्ता वाला है और भारतीय बाजार में सस्ता भी पड़ सकता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है और इस क्षेत्र में करोड़ों छोटे किसान लगे हुए हैं। भारत सरकार को डर है कि अगर अमेरिकी दुग्ध उत्पाद भारत में आएंगे तो वे स्थानीय किसानों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। भारत में ज्यादातर लोग शुद्ध शाकाहारी दूध उत्पाद चाहते हैं जबकि अमेरिका में कुछ दुग्ध उत्पादों में जानवरों की हड्डियों से बने एंजाइम का इस्तेमाल होता है। इसके साथ ही अमेरिका चाहता है कि गेहूं, चावल, सोयाबीन, मक्का और फलों जैसे सेब, अंगूर आदि को भारत के बाजार में कम टैक्स पर बेचा जा सके और भारत अपनी इम्पोर्ट ड्यूटी को कम करे। इसके अलावा, अमेरिका जैव-प्रौद्योगिकी फसलों को भी भारत में बेचने की कोशिश करता रहा है लेकिन भारत की सरकार और किसान संगठन इसका कड़ा विरोध करते हैं। इसको लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि देश के किसानों, पशुपालकों और मछुवारों के हितों के साथ समझौता नहीं हो सकता है। प्रधानमंत्री के इस बयान से अमेरिका समेत पूरे विश्व ने भारत के रुख को समझ लिया और सभी ने मान लिया कि भारत अमेरिका के आगे झुकने वाला देश नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रहित सर्वोपरि है, इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े उसके लिए वह तैयार रहते है। इसलिए इस समय पुरे देश के पक्ष और विपक्ष दलों के नेताओं, किसानों, पत्रकारों, बुद्धजीवियों और आम लोगो को अमेरिका के इस कड़े कदम का विरोध करते हुए सरकार के साथ खड़े होने की जरूरत है। संतोष कुमार तिवारी
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