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भजन: शिव शंकर

तर्ज: छम छम नाचै वीर हनुमाना

मु: झूम झूम नाचै भोला हमारा।
कहते हैं इसको पारवती का प्यारा।।
झूम झूम नाचे _

अंत १: कैलाश पर डमरू बजा कर नाचै।
राम जी की मस्ती में मस्त हो कर नाचै।।
मि : भांग के नशे में, लागै है सबसे न्यारा।
झूम झूम नाचे _

अंत २ : अंग अंग पर भस्मी, गले मुंड माला।
माथे पर चाँद सोहे, तन पर मृग छाला।।
मि: शीश पर शोभित है गंगा की धारा।
झूम झूम नाचे __

अंत ३: संग जग जननी, गोदी गणपति लाला।
जगत का है स्वामी, ये त्रिशूल वाला।।
मि: दुःख दूर करेगा, जो भी हो तुम्हारा।
झूम झूम नाचे __

अंत ४: भूत प्रेत संग रहे, शमशान वासी।
ऋषिमुनि समझ न पावें, अजब सन्यासी।।
मि: पापियों का कर दे ये तो संघारा।।
झूम झूम नाचे __

अंत ५: ब्रह्मा विष्णु भी पार नहीं पाते हैं।
नेति नेति बोलकर ध्यान सब लगाते हैं।।
मि: नन्दो का इष्ट यह, सबको ही तारा।
(राकेश का इष्ट, शिव डमरू वारा)
झूम झूम नाचे __

राज्यों में होगा परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का विस्तार

संदर्भः- ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल का कथन-

प्रमोद भार्गव

केंद्र सरकार अब देष में परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने की दृश्टि से ज्यादातर राज्यों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करेगी। ये संयंत्र केवल उन राज्यों में नहीं लगाए जाएंगे, जो भूकंप प्रभावित राज्य हैं। ऐसा इसलिए जरूरी है, क्योंकि भविश्य में जब कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए ताप बिजली संयंत्रों पर निर्भरता खत्म की जाए तो परमाणु ऊर्जा जैसे विष्वसनीय व पर्यावरण को न्यूनतम हानि पहुंचाने वाले ऊर्जा स्रोतों को विद्युत आपूर्ति के लिए प्रयोग में लाया जा सके। सरकार ने इस साल के आम बजट में वर्श 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 8000 मेगावाट से बढ़ाकर एक लाख मेगावाट करने का लक्ष्य रखा है। इस उद्देष्य की पूर्ति के लिए देष में अनेक छोटे छोटे परमाणु ऊर्जा रिएक्टर आधारित संयंत्र लगाए जाने की तैयारी में केंद्र सरकार हैं।
ऊर्जा मंत्री मनोहरलाल ने कहा है कि ‘वर्श 2037 के बाद ताप विद्युत बिजली उत्पादन संयंत्र नहीं लगाए जाएंगे।‘ यह वर्श 2070 तक षून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को हासिल करने की दिषा में बड़ी पहल है। इस बदली स्थिति में जिन राज्यों में ताप बिजली संयंत्र बंद किए जाएंगे, वहां परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से बिजली का उत्पादन होगा। निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी इन संयंत्रों के लगाने का दायित्व सौंपा जाएगा। जम्मू-कश्मीर, गुजरात का कुछ भू-भाग, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भूकंप की संभावना हमेशा ही बनी रहती है। इसलिए इन क्षेत्रों में ये संयंत्र नहीं लगाए जाएंगे। भारत के अभी महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान और उप्र में ही परमाणु ऊर्जा संयंत्र बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। इनकी संयुक्त बिजली उत्पादन क्षमता 8000 मेगावाट से कुछ कम हैं। जबकि सरकार द्वारा 12,000 मेगावाट क्षमता की बिजली उत्पादन की मंजूरी इन संयंत्रों को मिली हुई है। हालांकि भारत सरकार के उपक्रम परमाणु ऊर्जा निगम ने मध्यप्रदेश में चार नए परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की मंजूरी हाल ही में दी है। जल्दी ही ये संयंत्र नीमच, देवास, सिवनी और शिवपुरी में लगेंगे। सब कुछ सही रहा तो जल्दी ही इन परियोजनाओं पर काम शुरू हो जाएगा। इन संयंत्रों के षुरू हो जाने पर 1200 मेगावाट की अतिरिक्त बिजली पैदा होगी। भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता पिछले 10 साल में करीब दोगुनी हो चुकी है। 2031 तक इसके तीन गुना होने की उम्मीद है। बिजली मंत्री ने यह भी बताया कि फिलहाल देश में बिजली उत्पादन की कुल स्थापित क्षमता 4.72 लाख मेगावाट हैं, जिसमें 2.40 लाख मेगावाट कोयला आधारित ताप विद्युत है। वहीं 2.22 लाख मेगावाट उत्पादन क्षमता नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से है। दिसंबर 2025 तक इस नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन 2.50 लाख मेगावाट हो जाने की उम्मीद है, इस लक्ष्य की पूर्ति हो जाने पर भारत उन देषों में षामिल हो जाएगा, जिनमें ताप संयंत्रों से ज्यादा बिजली का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों से होता है।
भारत की जिस तेजी से आबादी और अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, उसके प्रबंधन और सुचारू सुविधा के लिए षहरीकरण के साथ ऊर्जा की उपलब्धता आवष्यक है। इसी नजरिये से परमाणु ऊर्जा का उत्सर्जन बढ़ाने की दिषा में तेजी से प्रगति के उपाय षुरू हो गए हैं। भीशण गर्मी के चलते इस साल बिजली की मांग 2.41 लाख मेगावाट के चरम पर पहुंच चुकी है। ऊर्जा मंत्री मनोहरलाल का दावा है कि वर्तमान समय में देष में बिजली की आपूर्ति और मांग के बीच महज 0.1 प्रतिषत का अंतर है। जबकि 12 साल पहले 2013 में आपूर्ति की तुलना में मांग 4.2 प्रतिशत अधिक रहती थी। किसी विशेष स्थिति में यह मांग 2.70 लाख मेगावाट भी हो जाती है।   ऐसे में विद्युत की कमी पूरी हो और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी न हो, इस मकसद पूर्ति के लिए परमाणु ऊर्जा उपयुक्त मानी जाती है। एक बार यदि कोई परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित हो जाता है तो लंबे समय तक ऊर्जा की आपूर्ति बनी रहती है। ताप विद्युत परियोजनाओं में कोयला जलाया जाता है। इस कारण बड़ी मात्रा में वायु प्रदूशित होती है। जो अनेक बीमारियों का कारण बनती है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया में एक साल में करीब 15 लाख मौतें वायु प्रदूषण से होती हैं। अतएव जीवाश्म ईंधन से बिजली पैदा करना मानव आबादी को बीमार बनाए रखना है। जबकि परमाणु ऊर्जा से पैदा बिजली कार्बन मुक्त होने के साथ सस्ती भी होती है। भारत में कुल ऊर्जा के उत्पादन में 80 प्रतिषत बिजली केवल जीवाष्म ईंधन के रूप में कोयला को ताप विद्युत घरों में जलाने से प्राप्त होती है। हालांकि देष में पानी, सौर्य और वायु ऊर्जा भी बड़ी मात्रा में उपलब्ध होने लगी है। जीवाष्म ईंधन के ये बड़े विकल्प बनकर सामने आए हैं। लेकिन सौर्य और पवन ऊर्जा के उत्सर्जन में मौसम की बड़ी भूमिका रहती है। अतएव तेज हवाएं नहीं चलने पर पवन ऊर्जा का निर्माण धीमा पड़ जाता है। इसी तरह बारिष और ठंड के मौसम में सूरज का ताप मंदा हो जाने से सौर्य ऊर्जा का उत्पादन कम हो जाता है। परमाणु ऊर्जा के लिए थोरियम की उपलब्धता जरूरी है। ये अच्छी बात है कि भारत में थोरियम केरल और बिहार में बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। थोरियम धातु को वायु में गरम करने पर इससे चिंगारियां फूटती हैं, जो ऊर्जा मुक्त होती हैं। भारत में भविष्य के ईंधन के रूप में थोरियम को परमाणु ऊर्जा में बदलने के उपायों पर काम तेजी से चल रहा है। देश में फिलहाल 8 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 23 परमाणु रिएक्टर चालू हैं।  
परमाणु ऊर्जा को बढ़ाने की दृश्टि से 2024-25 के आम बजट में लघु परमाणु संयंत्रों के लिए सरकार ने बड़े बजट का प्रावधान किया है। परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में यह नया प्रयोग है। पहली बार निजी कंपनियों को लघु परमाणु संयंत्र समूचे देष में स्थापित करने का अवसर दिया गया है। साथ ही मॉड्यूलर (प्रतिरूपक) रिएक्टर के आधुनिकीकरण के लिए शोध और विकास पर भी धनराशि खर्च की जा रही है। जिससे परमाणु ऊर्जा में नई प्रौद्योगिकी का विकास हो। इसे पीपीपी मॉडल पर क्रियान्वित किया जा रहा है। इसका उद्देष्य देष में स्वच्छ एवं वैकल्पिक बिजली को बढ़ावा देना है। साथ ही प्रधानमंत्री सूर्य घर निषुल्क बिजली योजना के तहत छतों पर जो सौर संयंत्र लगाए जा रहे हैं, इन पर भारत सरकार द्वारा दी जाने वाली छूट जारी रहेगी। अभी तक इस योजना के लाभ के लिए 1.28 करोड़ परिवार पंजीयन करा चुके हैं और 14 लाख आवेदन विचाराधीन हैं। छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) उन्नत परमाणु संयंत्र माने जाते हैं। इनकी बिजली उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट प्रति इकाई है, जो पारंपरिक परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की बिजली उत्पादन क्षमता की तुलना में एक तिहाई है। ये संयंत्र न्यूनतम कार्बन बिजली का उत्पादन करते हैं।
विकसित भारत के लिए ऊर्जा की उपलब्धता एक बड़ी जरूरत है। इसलिए सरकार सिर्फ पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना चाहती है। इसीलिए सौर और पवन ऊर्जा पर सरकार पहले ही काफी कुछ कर चुकी है। अतएव अब फोकस परमाणु ऊर्जा पर है। क्योंकि इसमें संभावनाएं अधिक है। लेकिन परमाणु ऊर्जा उत्पादन में सुरक्षा के सवाल आड़े आते रहे हैं। ऊर्जा सुरक्षा को सरकार सचेत है।  ऊर्जा बदलाव के संबंध में एक नीतिगत उपाय किए जा रहे है।  इनसे तय होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में किस तरह से पारंपरिक ऊर्जा की जगह धीरे-धीरे अपारंपरिक ऊर्जा के स्रोत का महत्व बढ़ रहा है। इस नीतिगत उपाय के तहत रोजगार, विकास और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का भी समाधान होगा। अतएव इसी परिप्रेक्ष्य में निकेल, कोबाल्ट, तांबा और लिथियम जैसी धातुओं के उत्पादों के आयात पर षुल्क क्रमषः घटाया जा रहा है। इन उत्पादों का प्रयोग परमाणु और सौर ऊर्जा के साथ दूसरे ऊर्जा उत्सर्जन उपायों में भी होता है। आयात सस्ता होने से इनका निर्माण भारत में करने में आसानी होगी। यही नहीं परमाणु ऊर्जा, नवीनीकरण ऊर्जा और अंतरिक्ष एवं रक्षा क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाली 25 धातुओं पर सीमा शुल्क को पूरी तरह खत्म कर दिया है। हाल ही के वर्षों में कुछ देशों ने छोटे परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने में सफलता मिली है। इसी का अनुकरण भारत कर रहा है।  
भारत में एक ओर अर्से से अटकी परमाणु बिजली परियोजनाओं में विद्युत का उत्पादन षुरू हो रहा है, वहीं निजी निवेष से परमाणु ऊर्जा बढ़ाने के प्रयास हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के सूरत जिले के तापी काकरापार में 22,500 करोड़ रुपए की लागत से बने 700-700 मेगावाट बिजली उत्पादन के दो परमाणु ऊर्जा संयंत्र 22 फरवरी 2024 को राश्ट्र को समर्पित कर दिए हैं। ये देश के पहले स्वदेशी परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं। ये उन्नत सुरक्षा सुविधाओं से युक्त हैं। ये संयंत्र प्रतिवर्ष लगभग 10.4 अरब यूनिट स्वच्छ बिजली का उत्पादन करेंगे, जो गुजरात में बिजली की आपूर्ति के साथ अन्य प्रांतों को भी बिजली देंगे। ये संयंत्र षून्य कार्बन उत्सर्जन की दिषा में आगे बढ़ने की दृश्टि से मील का पत्थर साबित होंगे।
दूसरी तरफ भारत सरकार ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों से 26 अरब डॉलर का निवेष आमंत्रित किया है। यह पहल ऐसे स्रोतों से बिजली बनाने की मात्रा बढ़ाने की दिषा में उठाया गया कदम है, जो वायुमंडल में प्रदुशण और तापमान बढ़ाने वाले कार्बनडाड ऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करते हैं। यह पहली बार है जब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सरकार निजी कंपनियों से पूंजी निवेष की मांग कर रही है। फिलहाल भारत में परमाणु ऊर्जा कुल बिजली उत्पादन की तुलना में महज दो प्रतिषत भी नहीं है। यदि यह निवेष बढ़ता है तो 2030 तक अपनी स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 50 प्रतिषत गैर जीवाष्म ईंधन के उपयोग से प्राप्त लक्ष्य को हासिल करने में सहायता मिलेगी।

प्रमोद भार्गव

डिजिटल होगी जातिवार जनगणना

संदर्भः- 2021 की जनगणना की अधिसूचना जारी
 जनगणना में स्व-गणना की सुविधा
प्रमोद भार्गव
        दुनिया की सबसे बड़ी आबादी की जनगणना की अधिसूचना जारी हो गई है। कोविड महामारी के कारण 2021 में होने वाली यह जनगणना अब षुरू होगी। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष जातिवार जनगणना कराने की मांग कर रहा था। अचानक मोदी सरकार ने जातिवार जनगणना कराने का फैसला लेकर पूरे विपक्ष को चौंका दिया। क्योंकि अब यह मुद्दा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। साथ ही सभी वर्गों की प्रमुख जातियों के साथ उपजातियों की जनगणना के आंकड़े जब सामने आएंगे, तब यह स्पश्ट हो जाएगा कि सैद्धांतिक रूप से जातिगत गणना कराना उचित था या नहीं ? ई-बाजार, ई-आवेदन, ई-रेल व बस में आरक्षण ई-भुगतान के बाद अब ई-जनगणन यानी डिजिटल गिनती होगी। इस गिनती में जाति की गिनती भी साथ-साथ होगी। इसमें जन्म और मृत्यु दोनों ही डिजिटल जनगणना से जुड़े होंगे। हर जन्म के बाद डिजिटल जनगणना खुद ही अद्यतन हो जाएगी और जब किसी की मृत्यु होगी तो उसका नाम खुद ही डाटा से डिलीट हो जाएगा। सेंसर रजिस्टर यानी जनगणना में बच्चे के जन्म माता-पिता ,जाति और जन्म स्थान की जानकारी समेत 16 भाशाओं में 36 प्रष्नों के उत्तर दर्ज हो जाएंगे। बालक जब 18 साल का होगा तो खुद ही उसका नाम चुनाव आयोग के पास चला जाएगा, नतीजतन उसका मतदाता पहचान पत्र बनने के साथ मतदाता सूची में भी नाम स्वमेव दर्ज हो जाएगा। फिर जब किसी की मौत हो जाएगी तो ऑनलाइन जनगणना के डाटा से उस शख्स का नाम खुद ही डिलीट भी हो जाएगा। इस तरह से जनगणना का डाटा हमेशा खुद अद्यतन होता रहेगा। राश्ट्रीय जनसंख्या रजिस्ट्रर (एनपीआर) की प्रक्रिया पर करीब 12000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। डिजिटल जनगणना की घोशणा 1 फरवरी 2021 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने की थी।
जनगणना-2021 में नागरिकों को गणना में षामिल होने की एक बेहतर और अनूठी ऑनलाइन सुविधा दी गई है। भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को ऑनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए नियमों में परिवर्तन किए हैं। जनगणना (संषोधन)-2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से तो जनगणना घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी करेंगे ही, लेकिन अब नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकता है। इसके लिए पूर्व नियमों में ‘इलेक्ट्रॉनिक फार्म‘ षब्द जोड़ा गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा दो की उप धारा (एक) के खंड आर में दिया गया है। इसके अंतर्गत मीडिया, मैग्नेटिक, कंप्यूटर जनित माइक्रोचिप या इसी तरह के अन्य उपकरण में तैयार कर भेजी या संग्रहित की गई जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक फार्म में दी गई जानकारी माना जाएगा। यानी एनरायड मोबाइल से भी अपनी गिनती दर्ज की जा सकेगी, जो कि आजकल घर-घर में उपलब्ध है। इस ऑनलाइन प्रविष्टि के अलावा घर-घर जाकर भी जनगणना की जाएगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑनलाइन प्रयोग अद्वितीय है। लेकिन देश की जनता के स्थायी और निंरतर गतिशील पंजीकरण के दृष्टिगत अब जरूरी है कि ग्राम पंचायत स्तर पर जनगणना की जवाबदेही सौंप दी जाए। गिनती के विकेर्द्रीकरण का यह नवाचार जहां 10 साला जनगणना की बोझिल परंपरा से मुक्त होगा, वहीं देश के पास प्रतिमाह प्रत्येक पंचायत स्तर से जीवन और मृत्यु की गणना के सटीक व विश्वसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे। इस लेख में प्रस्तुत की जाने वाली जनगणना की यह तरकीब अपनाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तेज भागती यांत्रिक व कंप्यूटरीकृत जिदंगी में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक बदलाव के लिए सर्वमान्य जनसंख्या के आकार व संरचना का दस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता ? वैसे भी भारतीय समाज में जिस तेजी से लैगिंक, रोजगारमूलक और जीवन स्तर मे परिवर्तन आ रहे हैं, उसकी बराबरी के प्रयासों के लिए भी जरूरी है कि हम जनगणना की परंपरा में आमूलचूल परिपर्तन लाएं ?
जनसंख्या के आकार, लिंग और उसकी आयु के अनुसार उसकी जटिल संरचना का कुछ ज्ञान न हो तो आमतौर पर अर्थव्यवस्था के विकास की कालांतर में प्रगति, आमदनी में वृद्धि, खाद्य पदार्थों व पेयजल की उपलब्धता, आवास, परिवहन, संचार, रोजगार के संसाधन,  शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा के पर्याप्त उपायों के इजाफे के पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में ही लोकसभा और विधानसभा सीटों को परिसीमन के जरिए बढ़ाया जाता है। 2028 में होने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं के लिए भी 33 प्रतिषत सीटें आरक्षित रहेंगी। जनगणना में निरंतरता इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश व दुनिया में जनसंख्या वृद्धि विस्फोटक बताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की जनसंख्या लगभग सात सौ करोड़ हो चुकी है। 2050 में यह आंकड़ा 10 करोड़ तक पहुंच सकता है। इस आबादी का पचास प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा महज नौ देशों चीन, भारत, अमेरिका, पकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, कांगो, इथोपिया और तंजानिया में होगा। परिवार नियोजन के तमाम उपायों के बावजूद दुनिया में प्रति महिला सकल प्रजनन दर 2.5 शिशु है, 2050 में यह दर घटकर 2.1 प्रति महिला प्रति शिशु रह जाने की उम्मीद है।
धरती पर जितनी तेजी से मानव समुदायों की आबादी उन्नसवीं सदी में बढ़ी है, उतनी तेजी से बढ़ोतरी पहले कभी दर्ज नहीं हुई। एक अनुमान के मुताबिक ईसवी सन एक में धरती पर कुल आबादी लगभग तीस करोड़ थी। अठारहवीं शताब्दी के अंत में दुनिया की जनसंख्या एक अरब के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई थी। इन शताब्दियों में जन्म दर की मात्रा अधिक होने के बावजूद जनसंख्या वि्द्ध दर बेहद मंदी थी। प्रकृति पर निर्भर गर्भ निरोधकों से दूर और उपचार की आसान व सुलभ पद्धतियों से अनजान स्त्री-पुरूष बच्चे तो खूब पैदा करते थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर मर जाया करते थे। बीमारियों की पहचान और उपचार से नियंत्रण के चलते बीसवीं शताब्दी के पहले ही तीन दशको में यह आबादी दोगुनी होकर करीब पौने दो अरब के आंकड़े को छू गई थी।
भारत की जनसंख्या 1901 में 23,83,96,327 थी। आजादी के साल 1947 में यह आबादी 34.2 करोड़ हो गई थी। 1947 से 1981 के बीच भारतीय आबादी की दर में ढाई गुना वृद्धि दर्ज की गई और आबादी 68.4 करोड़ हो गई थी। जनसंख्या व्ृद्धि् दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञो का मानना है कि भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ 60 लाख आबादी बड़ जाती हैं। इस दर के अनुसार हमें अपने देश की करीब एक अरब 40 करोड़ लोगों की एक निशचित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है, ताकि व्यक्तियों और संसाधनों के समतुल्य आर्थिक व रोजगारमूलक विकास का खाका खींचा जा सके । जनसंख्या का यह आंकड़ा अज्ञात भविष्य के विकास की कसौटी पर खरा उतरे उसका मूलाधार वैज्ञानिक तरीके से की गई सटीक जनगणना ही है।
हरेक दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब 34 लाख कर्मचारी जुटते हैं। डिजिटल डिवाइस से लैस 1.3 लाख जनगणना अधिकारी भी रहेंगे। छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है। यह काम तब और बोझिल हो जाता  है जब किसी कर्मचारी-दल को उसके स्थनीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूरांचल गांव में भेज दिया जाता हैं। ऐसे  हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर जाते हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर अनुसूचित जाति व अनुसूचित  जनजातियों के लोग होते हैं। बीते कुछ सालों में आधुनिक व आर्थिक विकास की अवधारणा के चलते इन्हीं जाति समूह के करीब चार करोड़ लोग विस्थापन के दायरे में हैं।  इनसे रोशन गांव तो अब बेचिराग हैं, लेकिन इन विस्थापितों का जनगणना के समय स्थायी ठिकाना कहां है, जनगणना करने आए दल को यह पता लगाना मुशकिल होता है ?


जनगणना की विधि का हो विकेंद्रीकरण
       जनगणना की प्रक्रिया के वर्तमान स्वरूप को बदला जाकर एक ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए न भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है और न ही सरकारी अमले की। केवल गिनती की केन्द्रीयकृत जटिल पद्धति को विकेन्द्रीकृत करके सरल करना है। गिनती की यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी। देश की सबसे छोटी राजनीतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है। जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खण्ड व जिला स्तर तक है। हमें करना सिर्फ इतना है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी  पंचायत कार्यालय में रखनी है। इसी पंजी की प्रतिलिपि कंप्युटर में फीड जनसंख्या प्रारूप पर भी दर्ज हो। जिन ग्राम पंचायतों में इसे जनसंख्या संबंधी वेबसाइट से जोड़कर इन आंकड़ो का पंजीयन सीधे अखिल भारतीय स्तर पर हो सकता है। जैसा कि अब ऑनलाइन माध्यमों से अपनी गिनती दर्ज करा सकेंगे।
परिवार को इकाई मानकर सरपंच, सचिव ओर पटवारी को यह जवाबदेही सौंपी जाए कि वे परिवार के प्रत्येक सदस्य का नामकरण व अन्य जानकारियां जनसंख्या प्रारूप के अनुसार इन पंजियों में दर्ज करें। इस गिनती को सचित्र भी किया जा सकता है। चूंकि ग्राम पंचायत स्तर का प्रत्येक व्यक्ति एक दुसरे को बखूबी जानते हैं इसलिए इस गिनती में चित्र व नाम के स्तर पर भ्रम की स्थिति निर्मित नहीं होगी। जैसा कि मतदाता सूचियों और मतदाता परिचय-पत्र में हो जाती हैं। गिनती की इस प्रक्रिया से कोई वंचित भी नहीं रहेगा। क्योंकि जनगणना किए जाने वाले जन और जनगणना करने वाले लोग स्थानीय हैं। गांव में किसी भी शिशु के पैदा होने की जानकारी और किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की जानकारी तुरंत पूरे गांव में फैल जाती है, अतः इस जानकारी को अविलंब पंजी में दर्ज किया जा सकेगा।
     ग्राम पंचायत पर एकत्रित होने वाली यह जानकारी प्रत्येक माह की एक निश्चित तारीख को विकासखण्ड स्तर पर पहुंचाई जाकर पंजी की एक प्रति विकासखण्ड कार्यालय में रखी जाए और इसे आधार बनाकर इसका तत्काल कंप्यूटरीकरण किया जाए। जिले के सभी विकास खंडों की यह जानकारी जिला स्तर पर बुलाई जाए और यहां इसका एकीकरण किया जाकर इस गिनती को कंप्यूटर में फीड किया जाए। इस तरह से सभी विकासखण्डो के आंकड़ों की गणना कर जिले की जनगणना प्रत्येक माह होती रहेगी। जिलाबार गणना के डाटा को प्रदेश स्तर पर सांख्यकीय कार्यालय में इकट्ठा कर प्रदेश की जनगणना का आंकड़ा भी प्रत्येक माह सामने आता रहेगा। प्रदेशवार जनसंख्या के आंकडो को देश की राजधानी में जनसंख्या कार्यालय में संग्रहीत कर प्रत्येक माह देश की जनगणना का वैज्ञानिक व प्रामाणिक आंकड़ा मिलता रहेगा। देश के नगर व महानगर वार्डो में  विभक्त हैंं। अतः वार्डवार जनगणना के लिए गिनती की उपरोक्त प्रणाली ही अपनाई जाए। इस गिनती में जितनी पारदर्शिता और शुद्धता रहेगी उतनी किसी अन्य पद्धति से संभव नहीं है।
प्रमोद भार्गव

अमेरिकी सेना की वापसी से सीरिया फिर अराजकता की ओर

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राजेश जैन


जिस देश ने बीते दशक में क्रूरता का सबसे भयावह चेहरा देखा, वहां एक बार फिर अशांति की परछाइयां  गहराने की आशंका हैं। अमेरिकी सेना की वापसी से सीरिया में अराजकता फिर से बढ़ने के आसार है। सेना के सीरिया से हटने के बाद इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूहों के फिर से मजबूत होंगे। इसके अलावा, तुर्की और सीरियाई सरकार के बीच संघर्ष बढ़ सकता है क्योंकि तुर्की सीरियाई कुर्दों के खिलाफ कार्रवाई कर सकता है।

गत दिसंबर की शुरुआत में जैसे ही बशर अल-असद की सत्ता का अंत हुआ तो उम्मीद जगी थी कि देश में लोकतंत्र और स्थायित्व आएगा। एक नए दौर की शुरुआत होगी लेकिन अब साफ होता जा रहा है कि यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं था बल्कि एक और भयंकर संक्रमण काल का प्रवेश द्वार था। असद के जाने के बाद सीरिया में जो सत्ता का शून्य पैदा हुआ, वह तेजी से अराजकता में बदलता जा रहा है और इसी अराजकता की दरारों से झांक रहा है वही पुराना डरावना चेहरा — इस्लामिक स्टेट यानी आईएसआईएस।

अमेरिका की वापसी से बना खालीपन

सीरिया में अमेरिका की सैन्य मौजूदगी अब नाम मात्र की रह गई है। उत्तर-पूर्वी सीरिया में अमेरिका ने अपने दो प्रमुख सैन्य अड्डों—अल-ओमर और ताल बायदर—से सैनिकों को हटा लिया है। अब इन ठिकानों पर न निगरानी कैमरे हैं, न गश्ती दस्ते। बस बची हैं सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेस (एसडीएफ ) की कुछ छोटी टुकड़ियां जो खुद को निहत्था और असहाय पा रही हैं। इन अड्डों पर कभी अमेरिका का स्पष्ट दबदबा था। इन्हीं से आईएसआईएस  की कमर तोड़ी गई थी। अब जब ये लगभग खाली पड़े हैं तो सवाल उठता है—क्या आईएसआईएस की वापसी का रास्ता खुद अमेरिका ने खोल दिया है?

बीच रास्ते में छोड़ दिया एसडीएफ को

यह सवाल अब और तीव्रता से पूछा जा रहा है — क्या अमेरिका ने एसडीएफ को बीच रास्ते में छोड़ दिया? वही एसडीएफ जिसे अमेरिका ने खड़ा किया था, प्रशिक्षित किया था और आईएसआईएस के खिलाफ सबसे आगे रखा था।  एसडीएफ आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। इसके कमांडर मजलूम अब्दी का कहना है – हमने अमेरिका पर विश्वास किया, उनके निर्देशों पर युद्ध लड़ा लेकिन अब वही अमेरिका हमें अधर में छोड़कर जा रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका पर ऐसा आरोप लगा हो। अफगानिस्तान, यूक्रेन और अब सीरिया—तीनों ही उदाहरण हैं जहां अमेरिका ने रणनीतिक जरूरत के समय साथ निभाया और फिर अपने हित सधते ही कदम पीछे खींच लिए। दुनिया अब सवाल कर रही है कि क्या अमेरिका सिर्फ तब तक साथ देता है जब तक उसे राजनीतिक और सैन्य लाभ मिलता है?

रूस, ईरान और तुर्की की नई भूमिका

सीरिया में अमेरिका की वापसी से जो खालीपन पैदा हुआ है उसे भरने के लिए अब रूस, ईरान और तुर्की जैसे देश तैयार बैठे हैं। रूस असद शासन का पुराना समर्थक रहा है और अब वहां की स्थिति पर अपनी पकड़ और मजबूत कर रहा है। ईरान समर्थित मिलिशिया समूह भी अब फिर से उत्तर-पूर्वी सीरिया में सक्रिय होने लगे हैं।


वहीं तुर्की शुरू से एसडीएफ को कुर्द विद्रोहियों के रूप में देखता है और  लगातार उनकी गतिविधियों को सीमित करने की कोशिश में जुटा है। बहरहाल एसडीएफ तीन दिशाओं से प्रेशर में है—आईएसआईएस की वापसी, तुर्की का सैन्य दबाव और अमेरिका का साथ छोड़ना। ऐसे में यह सवाल लाजमी है कि क्या एसडीएफ इस सबके बीच अकेले टिक पाएगा?

हो रही आईएसआईएस की वापसी

इतिहास गवाह है कि जब-जब सुरक्षा बल किसी संकटग्रस्त क्षेत्र से हटे हैं, वहां चरमपंथी संगठनों ने अपनी जड़ें और मजबूत की हैं। सीरिया की वर्तमान स्थिति उसी दोहराव की ओर इशारा कर रही है। इस्लामिक स्टेट जो कभी ख़त्म मान लिया गया था, अब फिर से दमिश्क, रक्का, हामा और डेर-एज़-ज़ोर जैसे शहरों में सक्रिय होता दिख रहा है। उसने सीरियाई शासन के पतन के बाद सरकारी हथियार डिपो से गोला-बारूद लूट लिए थे। एसडीएफ कमांडर अब्दी ने चेताया है कि आईएसआईएस अब फिर से हथियारों से लैस है और आतंक के पुराने नेटवर्क दोबारा सक्रिय किए जा रहे हैं।

केवल चिंता ही जता पा रहा संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र ने सीरिया की स्थिति पर चिंता तो जताई है लेकिन ठोस कदम उठाने की दिशा में कोई पहल नहीं हुई  है। जब यूक्रेन पर हमला होता है, तब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी सक्रिय हो जाती है लेकिन सीरिया जैसे देशों में जब मानवीय संकट लौटता है, तो सिर्फ ‘चिंता’ जताई जाती है, कार्रवाई नहीं होती। वहां के आम नागरिक इसकी कीमत चुकाते हैं। बीते दो महीनों में ही सीरिया में 1 लाख से ज्यादा लोग फिर से विस्थापित हुए हैं। स्कूल बंद हैं, अस्पतालों में दवा नहीं है, बिजली और पानी की आपूर्ति ठप पड़ी है।

राजेश जैन

22 साल बाद बड़े पर्दे पर लौटी राखी गुलजार  

सुभाष शिरढोनकर

मशहूर एक्ट्रेस राखी गुलजार मां-बेटे के रिश्ते और कामकाजी जीवन के तनाव को दिखाती 9 मई को सिनेमाघरों में रिलीज बांगाली फिल्म ‘आमार बॉस’ के जरिए 22 साल बाद बड़े पर्दे पर लौटी हैं।

फिल्‍म का निर्देशन नंदिता रॉय और शिबोप्रसाद मुखर्जी ने किया है। फिल्‍म में राखी गुलजार शुभ्रा गोस्वामी और शिबोप्रसाद मुखर्जी उनके बेटे अनीमेष की भूमिका में है। यह एक ऐसी कहानी है जो दिल से निकलकर दर्शकों के दिल तक पहुंचने में कामयाब रही है।  

15 अगस्त 1947 को पश्चिम बंगाल के रानाघाट में जन्मी एक्ट्रेस राखी ने अपनी अदाकारी के जरिए तमाम फैंस के दिल जीते हैं। ‘मेरे करन-अर्जुन आएंगे कहकर’, ‘राणा जी’ की नींद उड़ाने वाली राखी ने अपने अभिनय से उन बुलंदियों को छुआ जिसकी चाहत हर एक्ट्रेस के दिल में होती है।

वैवाहिक रिश्ता  खत्‍म होने के बाद राखी ने 1967 की फिल्म ‘बोधु बोरॉन’ से बंगाली सिनेमा से एक्टिंग करियर की शुरुआत की। इसके तीन साल बाद राखी राजश्री प्रॉडक्शन की फिल्म ‘जीवन मृत्यु’ (1970) में नजर आईं। यह उनकी बॉलीवुड डेब्‍यू फिल्‍म थी।  

फिल्‍म ‘जीवन मृत्यु’ (1970) के बाद शशि कपूर के साथ उनकी फिल्म शर्मिली सुपरहिट रही। राजकुमार के साथ फिल्‍म ‘लाल पत्थर’ और संजीव कुमार के साथ फिल्‍म  ‘पारस’ के बाद वह इंडस्ट्री की नई लीड एक्ट्रेस बनकर छा गईं। इसके बाद राखी गुलजार ने बतौर लीड एक्ट्रेस कई हिट फिल्मों में काम किया।

हिंदी सिनेमा में जब जाना-माना नाम बन जाने के बाद राखी की मुलाकात मशहूर गीतकार गुलजार से हुई। दोनों धीरे-धीरे करीब आते चले गए और दोनों ने 1973 में शादी कर ली। शादी के समय गुलजार व्‍दारा रखी शर्त के अनुसार राखी ने फिल्‍मों में काम करना छोड़ दिया। इस शादी से वे बेटी मेघना के माता-पिता बने।

हालांकि, इसके बाद गुलजार और राखी के रिश्ते में दरार पड़ने लगी. दोनों हमेशा-हमेशा के लिए एक-दूसरे से अलग हो गए लेकिन उन्होंने एक-दूसरे से तलाक नहीं लिया। 

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1975 के दौरान गुलजार फिल्म ‘आंधी’ के दौरान कश्मीर की लोकेशन पर सुचित्रा सेन और गुलजार को लेकर राखी को कुछ कन्‍फयूजन हो गया था। उस दौरान गुलजार ने राखी को थप्पड़ भी जड़ दिया था।

इसके बाद राखी ने गुलजार की शर्त को तोड़ते हुए यश चोपड़ा  की फिल्म ‘कभी-कभी’ साइन कर ली। उनके इस निर्णय के बाद गुलजार के साथ उनके रिश्ते में दरार आ गई।

पिछले काफी वक्‍त से राखी गुलजार पब्लिक लाइफ और मीडिया से दूर मुंबई के पास पनवेल में अपने फार्म हाउस पर रह रही हैं और फिल्मी दुनिया से बिल्कुल दूर हैं।

एक्टिंग के साथ प्रोडक्‍शन में हाथ आजमाएंगी गीता बसरा

अपनी एक्टिंग से फैंस को इंप्रेस करने के बाद एक्ट्रेस गीता बसरा ने विगत 24 अप्रैल 2025 को अपने पति मशहूर क्रिकेटर हरभजन सिंह से साथ अपने प्रोडक्शन हाउस ‘पर्पल रोज एंटरटेनमेंट’ की शुरुआत करते हुए अपनी जिंदगी का एक नया चैप्टर शुरू किया।

पिछले काफी समय से एक्‍ट्रेस गीता बसरा पति हरभजन सिंह के साथ अपनी फैमिली को पूरा समय दे रही थीं। अब उनका दूसरा बच्‍चा जोवन एक साल का हो गया है। ऐसे में अब उन्‍होंने दोबारा अपने करियर पर फोकस करने की ठान ली है। 

छह साल के लंबे अंतराल के बाद गीता ने करण जौहर के साथ मिलकर सिद्धार्थ मल्‍होत्रा और कियारा आडवाणी की फिल्‍म ‘शेरशाह’ बनाने वाले प्रोड्यूसर शब्‍बीर बॉक्‍सवाला की फिल्‍म ‘नोटरी’ भी साइन की है।

इस फिल्‍म में वह एक ऐसी कॉलेज गर्ल बनी हैं जिसकी शादी होने वाली होती है लेकिन उसकी जिंदगी में एक के बाद एक ऐसी कई घटनाएं घटित होती हैं जिनकी वजह से लगातार उसे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।  

पवन वाडेयर निर्देशित फिल्‍म ‘नोटरी’ में ‘कहानी’ फेम परमब्रत चटर्जी गीता बसरा के अपोजिट नजर आएंगे। उम्‍मीद की जा रही है कि इस साल के आखिर तक फिल्‍म सेट पर आ जाएगी।

इसके अलावा गीता बसरा फिल्म ‘अवस्थी वर्सेस अवस्थी’ में भी नजर आने वाली है।

आखिरी बार साल 2016 में फिल्‍म ‘लॉक’ में नजर आने वाली एक्‍ट्रेस गीता बसरा के फैंस एक लंबे वक्‍त से उन्‍हें फिर से पर्दे पर देखने के लिए एक्‍साइटेड हैं। 

कॉमेडियन ही नहीं, एक अच्‍छे विलेन भी हैं रितेश देशमुख

एक्‍टर रितेश देशमुख इन दिनों हाल ही में रिलीज फिल्म ‘रेड 2’ को लेकर चर्चा में हैं। फिल्‍म में जहां अजय देवगन अमय पटनायक के लीड रोल में हैं, वहीं रितेश देशमुख का विलेन वाला अवतार नजर आ रहा है।  

महाराष्ट्र के दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के बेटे रितेश दरअसल एक आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन किस्मत उन्हें बॉलीवुड खींच लाई।

रितेश ने मुंबई के कमला रहेजा कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर से डिग्री ली है. लेकिन फिर अचानक रितेश का दिलचस्पी एक्टिंग की तरफ बढ़ने लगी और उन्होंने बॉलीवुड में हाथ आजमाया।

खबरों की मानें तो एक बार जब रितेश फिल्‍म मेकर सुभाष घई के साथ लंदन में छुट्टी मना रहे थे, तभी सिनेमैटोग्राफर कबीर लाल की नजर रितेश पर पड़ी और उन्होंने रितेश को एक्टिंग का सुझाव दिया।

इस सुझाव पर अमल करते हुए रितेश ने फिल्‍म ‘तुझे मेरी कसम’ से बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की हालांकि ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई।  

लेकिन इन्‍द्र कुमार व्‍दारा निर्देशित फिल्‍म ‘मस्ती’ से रितेश को पहचान मिली। इस फिल्‍म के जरिए वो पर्दे पर छा गए औऱ आज फैंस के फेवरेट स्टार्स में से एक हैं।

एक्टिंग के साथ रितेश देशमुख ने फिल्म निर्माण से जुड़ते हुए साल 2013 में ‘मुंबई फिल्म कंपनी’ नाम से अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस शुरू किया।  इस प्रोडक्शन हाउस के जरिए अभी तक रितेश कई खास फिल्में बना चुके हैं।  

रितेश देशमुख की मराठी फिल्म ‘वेड’ ने सिनेमाघरों में जमकर धूम मचाई। बतौर एक्टर और डायरेक्टर रितेश देशमुख ने इस फिल्म में शानदार काम किया करते हुए हर किसी का दिल जीत लिया। अब एक बार फिर फिल्‍म ‘रेड 2’ में बतौर विलेन उनके नाम का डंका बज रहा है।   

रितेश देशमुख बॉलीवुड इंडस्ट्री के बेहतरीन एक्टर में से एक हैं। अपनी दमदार अदाकारी से उन्‍होंने लाखों लोगों का दिल जीता है। खासकर अपनी शानदार कॉमिक टाइमिंग से लोगों को गुदगुदाने वाले रितेश हिंदी से लेकर मराठी सिनेमा में अपनी वर्सेटाइल एक्टिंग के लिए मशहूर रहे है।

सुभाष शिरढोनकर

राम जन्म के हेतु अनेका

डॉ. नीरज भारद्वाज

राम शब्द सुनते ही मन मस्तिष्क में रामचरितमानस का जाप शुरू हो जाता है। राम नाम एक मंत्र है, जिसने भी इसे जपा, भजा और गाया वह इस आवागमन के चक्कर से मुक्त हो गया। इस चराचर जगत में श्रीराम की ही महिमा है। भगवान श्रीराम के प्रकट होने से लेकर उनके राजा बनने की कथा हम सभी ने सुनी है। इसी कथा का देश-विदेश में रामलीला के माध्यम से मंचन भी होता है। साधु-संत-महात्मा संगीतमय श्रीराम कथा लोगों को सुनते हैं, स्वयं भी इसका जाप करते हैं। श्रीरामचरितमानस की कोई एक चौपाई भारतवर्ष में रहने वाला बच्चा-बच्चा गा सकता है।

 अवध प्रदेश के रहने वाले मेरे प्रोफेसर मित्र बताते हैं कि हमारे हर एक मंगल कार्य में चौबीस घंटे का श्रीरामकथा पाठ या सुंदरकांड का पाठ जरूर होता है। अवध प्रांत के साथ-साथ अनेक स्थानों पर भी लोग ऐसा सुमंगल कार्य करते हैं। हमारे तीर्थ स्थलों पर श्रीराम कथा का जाप चलता ही रहता है। श्रीराम जय राम, जय जय राम। श्रीराम कथा और श्रीराम का चरित्र युगों-युगों से संतो के मुख से सुनते आ रहे हैं। रामलीला के माध्यम से देखते भी आ रहे हैं।

बचपन में जब हम रामलीला करते थे तो इतनी व्यापक समझ नहीं थी। दस दिन रामलीला का हर्षोल्लास हम सभी में बना रहता था। रामलीला में छोटा-बड़ा पात्र बन कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते रहते। जब प्रभु श्रीराम मंच पर आते तो सभी हाथ जोड़कर बैठ जाते, जय श्रीराम की आवाज मंच पर और दर्शकों के बीच होने लगती। लोगों में एक अलग ही रोमांच भर जाता। जब साहित्य का छात्र बना और उसमें रामचरितमानस का कुछ हिस्सा साहित्यिक दृष्टि से पढ़ा तो उसके प्रति भाव अपने आप ही भक्तिमय होता चला गया। यह सभी कुछ प्रभु श्रीराम की कृपा से ही हुआ। फिर श्रीराम कथाओं को सुनने में आनंद आने लगा। अब जब भी कक्षा में पढ़ाते हैं तो प्रभु श्रीराम की चर्चा जरूर हो जाती है। जब लिखने बैठता हूं तो श्रीरामचरितमानस की चौपाई स्वयं ही अपना स्थान बनाकर लेख में आकर बैठ जाती हैं, यह सब प्रभु की कृपा ही है। आदरणीय डॉ. वेदप्रकाश जी ने रास्ता दिखाया और मां गंगा के किनारे से संतों से मिलने की राह खुल गई। मां गंगा और प्रभु श्रीराम की कृपा से ऋषिकेश की पावन भूमि पर पावन कुटी में रह रहे रामकथा के मर्मज्ञ परम पूज्य स्वामी श्री मैथिलीशरण भाई जी के दर्शन हुए और उनका आशीर्वाद मिला। मां गंगा के पावन तट पर ही परम पूज्य श्री चिदानंद मुनि जी महाराज जी के दर्शन हुए और आशीर्वाद मिला।

प्रभु श्रीराम के इस धरा धाम पर प्रकट होने के कितने ही सुयोग्य तत्व रहे हैं, इसका अंदाजा साधु-संत-महात्मा आदि ही लगा पाते हैं। इसकी व्याख्या भी वही कर पाते हैं। प्रभु श्रीराम भक्त को भक्ति, सेवक को सेवकाई, मित्र को मित्रता, भाई को प्रेम, शत्रु को दंड़, जन-जन को आशीर्वाद और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए ही इस धरा धाम पर आए। इसके साथ ही इस चराचर जगत को सुंदर, सुयोग्य और साथ मिलकर रहने का संदेश देने आए। भगवान ने असुरों को मार कर पृथ्वी को पावन-पुनीत, शुद्ध, पवित्र बनाया। प्रभु श्रीराम पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी, पर्वत, लता, पत्ता, पुष्प, पत्थर आदि सभी का उद्धार करते चले गए। साधु, संत, महात्मा, ऋषियों आदि से प्रभु ने ज्ञान लिया और उनके दर्शन किए, साथ ही उन्हें अपने दर्शन भी दिए। भक्तों को भक्ति दी, धर्म की स्थापना की। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- राम जन्म के हेतु अनेका। परम विचित्र एक तें एका।। भगवान श्रीराम का चिंतन-मनन जितना करते हैं, हम उतने ही गहरे उतरते चले जाते हैं, प्रभु की लीला अपरम पार है।

कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते के वैश्विक मायने

कमलेश पांडेय

कनाडा-भारत के बीच सुधरते रिश्ते दोनों देशों के लिए परस्पर लाभदायी हो सकते हैं, क्योंकि दोनों देश अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय महाशक्ति के निशाने पर हैं। एक ओर जहां कनाडा को अमेरिका अपने राज्य में मिलाना चाहता है, वहीं दूसरी ओर भारत को अमेरिका विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नीचा दिखाना चाहता है ताकि उसकी वैश्विक दादागिरी बरकरार रहे। चूंकि भारत और कनाडा के रिश्तों में एक नया मोड़ आ गया है और लगभग दो साल की तनातनी के बाद, कनाडा ने एक बड़ा खुलासा किया है। 

कनाडा की खुफिया एजेंसी सीएसआईएस ने स्वीकार किया है कि कनाडा में बैठे खालिस्तानी चरमपंथी (आतंकवादी) भारत के खिलाफ हिंसा, प्रचार और फंड इकट्ठा करने के लिए उसकी धरती का इस्तेमाल कर रहे हैं। खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि खालिस्तानी चरमपंथी (अलगाववादी) कनाडा से भारत के खिलाफ गतिविधियां चला रहे हैं। साल 1980 के दशक से ही कनाडा स्थित खालिस्तानी चरमपंथियों (CBKE) ने हिंसक तरीके से पंजाब में एक स्वतंत्र सिख राज्य बनाने के लिए अभियान चलाया है। 

इस रिपोर्ट में 1985 के एयर इंडिया बम धमाके का भी जिक्र है जिससे भारत के उस दावे को बल मिला है जिसमें वह कहता रहा है कि कनाडा आतंकवादियों को पनाह दे रहा है। CSIS ने यह खुलासा किया कि पाकिस्तान, कनाडा में भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रहा है। यह भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत है। इससे यह साफ होता है कि भारत के विरोधी देश, दूसरे देशों की जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

दरअसल, यह बात तब सामने आई है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कनाडा के पीएम मार्क कार्नी की गत दिनों कनाडा में आयोजित जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई और आपसी द्विपक्षीय रिश्तों को पुनः पटरी पर लाने के लिए बहुत ही सकारात्मक माहौल में बात हुई। 

इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री कार्नी ने मोदी के साथ मुलाकात को ‘आधारभूत’ बताया था। इसका मतलब है कि दोनों देश पिछली बातों को भूलकर आगे बढ़ना चाहते हैं हालांकि, भारत पिछली बातों को भूलने वाला नहीं है। यही वजह है कि दोनों देशों के बीच में कई रणनीतिक करार भी किये गए हैं ताकि आपसी भरोसा और कारोबार दोनों बढ़े। इस हेतु राजदूतों की भी नियुक्ति कर दी गई है।

उल्लेखनीय है कि भारत लंबे समय से कनाडा पर खालिस्तानी अलगाववादियों को लेकर नरम रवैया अपनाने का आरोप लगाता रहा है लेकिन अब कनाडा सरकार की इस आधिकारिक रिपोर्ट ने भारत की शिकायत को सही ठहराया है। बहरहाल, सीएसआईएस ने भी यह मान लिया है कि पाकिस्तान, कनाडा की धरती से भारत के खिलाफ जारी गतिविधियों को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। बता दें कि पीएम मोदी की कनाडा यात्रा के दौरान खालिस्तानी समूहों ने उनको लेकर धमकियां देने तक की हिमाकत की थी। 

ऐसे में सीधा सवाल उठता है कि क्या बिना कनाडा में उनसे सहानुभूति रखने वालों के शह और पाकिस्तान की बैकिंग के वह इतनी हिम्मत कभी जुटा पाते? इसलिए पूरक प्रश्न यही है कि जब कनाडा ने मान लिया कि पाकिस्तान-खालिस्तानियों की जुगलबंदी से उसकी धरती से भारत के खिलाफ हिंसक साजिशों को अंजाम दिया जा रहा है तो फिर उससे भारत क्या उम्मीदें कर सकता है? यही न कि कनाडा आतंकवादियों को भारत के हवाले करे, खालिस्तानी नेटवर्क को पूरी तरह से खत्म करे और अलगाववाद को आतंकवाद माने।

वहीं, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि, “भारतीय अधिकारी जिनमें उनके कनाडा स्थित प्रॉक्सी एजेंट भी शामिल हैं, वे कई तरह की गतिविधियों में शामिल हैं। उनका उद्देश्य कनाडाई समुदायों और राजनेताओं को प्रभावित करना है। इसमें दावा किया गया है कि जब ये गतिविधियां भ्रामक, गुप्त या धमकी देने वाली होती हैं तो उन्हें विदेशी हस्तक्षेप माना जाता है। हालांकि, भारत पहले से ही कनाडाई अधिकारियों की ओर से लगाए जाने वाले इस तरह के आरोपों को खारिज करता रहा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कनाडा के लिए सबसे बड़ा खुफिया खतरा चीन है। रिपोर्ट में इसके अलावा पाकिस्तान, रूस और ईरान का भी नाम लिया गया है।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हरदीप सिंह निज्जर मामले से भारत सरकार और आपराधिक नेटवर्क के बीच संबंधों का पता चला है। इसमें कहा गया कि खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा में भारतीय विदेशी हस्तक्षेप गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। भारत ने निज्जर की मौत में अपनी संलिप्तता से साफ इनकार किया है और कनाडा की ओर से लगाए गए हस्तक्षेप के आरोपों को भी खारिज किया है।

बता दें कि साल 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के संबंधों में तीखी तनातनी देखी गई थी। कनाडाई अधिकारियों ने इस हत्या को भारतीय सरकार के हस्तक्षेप से जोड़ा, जिसका भारत ने खंडन करते हुए इन आरोपों को बेतुका और निराधार बताया था। भारत ने इसके जवाब में कनाडा पर खालिस्तानी चरमपंथियों को पनाह देने और उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया।

यक्ष प्रश्न है कि अब पाकिस्तान के साथ खालिस्तानियों की जुगलबंदी का क्या होगा, क्योंकि आतंकवाद पर कनाडा के कबूलनामे को भारत की एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि भारत और कनाडा के रिश्तों में बदलाव आया है, इससे खालिस्तानियों की बेचैनी बढ़ जाएगी क्योंकि भारत ने कनाडा से साफ कहा है कि वह आतंकवादियों को सौंपे और खालिस्तानी नेटवर्क को खत्म करे। भारत ने 26 आतंकवादियों को सौंपने के लिए कहा है, जिनमें से सिर्फ 5 पर ही कार्रवाई हुई है। 

उम्मीद है कि इस मामले में कनाडा अब कार्रवाई करके दिखाएगा। इनमें अर्श डल्ला का मामला भी शामिल है जिस पर भारत में 50 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं। डल्ला को कनाडा की अदालत ने जमानत भी दे दी थी। भारत ने कनाडा से यह भी कहा है कि वह भगोड़ों को गिरफ्तार करे और रेड कॉर्नर नोटिस पर कार्रवाई करे लेकिन कई मामलों में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इससे भारत नाराज है।

हालांकि, कार्नी के लिए यह मुश्किल है कि वह कनाडा में खालिस्तान समर्थक सिखों को नाराज किए बगैर आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करें। कारण कि वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन (WSO) जैसे संगठन कनाडा में काफी प्रभावशाली हैं। इसलिए, कनाडा के लिए आतंकवादियों पर कार्रवाई करना उतना आसान भी नहीं है। जस्टिन ट्रुडो की सरकार में तो इसीलिए ऐसे भारत-विरोधी संगठन पूरी तरह से हावी हो चुके थे। हालांकि, राजनीतिक रूप से कार्नी उनको लेकर इतने मोहताज भी नहीं हैं लेकिन यह भी उतना ही सच है कि भारतीय मूल के कनाडाई अलगाववादी वहां बहुत बड़े वोट बैंक बन चुके हैं। फिर भी, उम्मीद की किरण बची हुई है क्योंकि दोनों देश आतंकवाद और संगठित अपराध से निपटने के लिए एक संयुक्त कार्य समूह बनाने पर बात कर रहे हैं। 

दरअसल, बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत का संदेश साफ है, ‘अब और ज्यादा दोहरा रवैया किसी भी देश का नहीं चलेगा।’ भले ही कनाडा उदारवाद और बोलने की आजादी की बात करता है, लेकिन भारत के खिलाफ हिंसा करने वालों पर आंखें भी मूंदे नहीं रह सकता। यही वजह है कि कार्नी ने मोदी के साथ मुलाकात खत्म होते ही कहा, ‘अभी बहुत काम करना बाकी है।’ भारत के लिए यह एक बड़ी जीत है कि दोनों नेताओं की सीधी मुलाकात के बाद ही कनाडा की खुफिया एजेंसी भी अब भारत के दावों को स्वीकारने लगी है। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि यह खालिस्तान समस्या का अंत तो नहीं है, लेकिन कनाडा की धरती पर इसकी शुरुआत हो चुकी है।

स्पष्ट है कि यदि आप अमेरिका को कमजोर करना चाहते हैं तो कनाडा में आपकी स्थिति स्वाभाविक रूप से मजबूत होनी चाहिए। इससे आप अमेरिका की विभिन्न गतिविधियों पर नजर रख सकेंगे, लेकिन ऐसा आप खुल्लमखुल्ला नहीं कर सकते! बल्कि छिपे रुस्तम के तौर पर ही कर सकते हैं। प्रायः ऐसी घाती-प्रतिघाती रणनीति दुनिया के परस्पर प्रतिस्पर्धी देश अपने जासूसों और उनके नेटवर्क में शामिल लोगों के मार्फ़त बनाते-बनवाते ही रहते हैं। कुछ यही वजह है कि अमेरिका के प्रबल प्रतिद्वंद्वी देशों यथा- चीन, रूस, भारत, ईरान आदि देशों की अभिरुचि कनाडा में बढ़ चुकी है। हालांकि, कनाडा सरकार इससे सावधान भी है। 

स्पष्ट है कि भारत और कनाडा के बीच बदलते रिश्तों से निम्नलिखित पांच बातें स्पष्ट होती दिखाई दे रही हैं, जिनके अपने वैश्विक मायने हैं। पहला, कनाडा की खुफिया एजेंसी (CSIS) ने माना है कि खालिस्तानी चरमपंथी कनाडा की धरती का इस्तेमाल भारत के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए कर रहे हैं। दूसरा, सिख अलगाववादी समूहों की धमकियों के बावजूद, पीएम नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा शांतिपूर्वक संपन्न हो गई, जो धमकियों पर कूटनीति की जीत करार दी जा सकती है। तीसरा, कनाडा की खुफिया रिपोर्ट में पाकिस्तान पर भी भारत-विरोधी एजेंडे में शामिल होने का आरोप लगाया गया है, जिससे पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है। चतुर्थ, मोदी (भारत) और कार्नी (कनाडा) की मुलाकात को रिश्तों में सुधार के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन भारत को सिर्फ बातों से नहीं बल्कि ठोस कार्रवाई से मतलब है। इससे साफ है कि दोनों देशों के रिश्ते में एक नई शुरुआत हुई है लेकिन अनुभवजन्य शर्तों के साथ, यह बहुत बड़ी बात है।

कमलेश पांडेय

संकीर्ण जलमार्ग, गहरी चिंता: होर्मुज पर ईरानी शिकंजा

जयसिंह रावत

होर्मुज जलडमरूमध्य, फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ने वाला एक संकरा समुद्री मार्ग, वैश्विक तेल और गैस व्यापार का सबसे महत्वपूर्ण चोक पॉइंट है। हाल ही में अमेरिका द्वारा ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हवाई हमलों के बाद, ईरान की संसद ने 22 जून 2025 को होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी हालांकि, अंतिम निर्णय ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के पास है जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई करते हैं। ईरान की इस धमकी ने वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल मचा दी है और भारत जैसे तेल-आयातक देशों के लिए गंभीर चिंताएं पैदा की हैं।

होर्मुज जलडमरूमध्य का महत्व

होर्मुज जलडमरूमध्य ईरान और ओमान के बीच स्थित है जिसकी सबसे संकरी चौड़ाई मात्र 33 किलोमीटर है और नौवहन के लिए उपयोगी शिपिंग लेन केवल 3 किलोमीटर चौड़ा है। यह जलमार्ग विश्व का लगभग 20-21% कच्चा तेल (प्रतिदिन 20-22 मिलियन बैरल) और 25-30% तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का परिवहन करता है। सऊदी अरब, इराक, कुवैत, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) अपने तेल और गैस निर्यात के लिए इस पर निर्भर हैं। 2024 में, इस मार्ग से गुजरने वाले 74% कच्चे तेल और 73% LNG का गंतव्य एशियाई देश जैसे भारत, चीन, जापान, और दक्षिण कोरिया थे। जलडमरूमध्य की संकरी चौड़ाई और ईरान के नियंत्रण वाले टापू (जैसे क्वेशम और हेंगम) इसे सैन्य दृष्टि से संवेदनशील बनाते हैं।

ईरान की धमकी का संदर्भ

2025 में अमेरिका ने ईरान के परमाणु केंद्रों (फोर्डो, नतांज, और इस्फहान) पर हवाई हमले किए जिसे ईरान के परमाणु हथियार विकास को रोकने के लिए इजरायल और अमेरिका की संयुक्त रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। जवाब में ईरान की संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने का प्रस्ताव पारित किया। ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के कमांडर अलीरेजा तांग्सीरी ने दावा किया कि जलडमरूमध्य को कुछ ही घंटों में बंद किया जा सकता है। ईरान ने पहले भी 1980 के ईरान-इराक युद्ध के दौरान इस जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी थी लेकिन इसे कभी पूरी तरह बंद नहीं किया।

ईरान की संभावित सैन्य रणनीतियां

ईरान असममित युद्ध रणनीतियों पर निर्भर करता है जो उसे पारंपरिक रूप से मजबूत विरोधियों के खिलाफ प्रभावी बनाती हैं। संभावित रणनीतियों में तेज गति वाली छोटी नौकाओं द्वारा स्वार्म टैक्टिक्स, नूर, कादिर, और खलीज-ए-फार्स जैसी एंटी-शिप मिसाइलें (120-300 किमी रेंज), सस्ती और प्रभावी समुद्री माइंस, शाहेद-136 जैसे ड्रोन, गदिर-क्लास पनडुब्बियों द्वारा टॉरपीडो या माइंस की तैनाती, और नेविगेशन सिस्टम या तेल टर्मिनलों को बाधित करने के लिए साइबर हमले शामिल हैं। हालांकि, अमेरिका की फिफ्थ फ्लीट बहरीन में तैनात है जो माइंस साफ करने, मिसाइल रक्षा, और गश्ती के लिए तैयार है जिससे जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करना ईरान के लिए चुनौतीपूर्ण है।

वैश्विक आर्थिक प्रभाव

होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से तेल की कीमतें $120-150 प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं जो वर्तमान में $90 (ब्रेंट क्रूड) के स्तर पर हैं। एशियाई देश (भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया) सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि उनका 70-74% तेल आयात इस मार्ग से होता है। ईंधन की बढ़ती लागत से परिवहन, विनिर्माण, और रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी। सऊदी अरब और UAE की पाइपलाइनें (2.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन की क्षमता) जलडमरूमध्य को बायपास कर सकती हैं, लेकिन यह पूरी कमी की पूर्ति नहीं कर सकती। ईरान स्वयं अपने तेल निर्यात के लिए इस मार्ग पर निर्भर है, इसलिए इसे बंद करने से उसकी अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से चीन जैसे सहयोगियों को नुकसान होगा।

भारत पर प्रभाव

भारत अपनी 80-90% तेल और 50% LNG आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 40% और LNG का 50% होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से आयात करता है। तेल की कीमतें $120-150 प्रति बैरल तक पहुंचने से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ेंगी जिससे महंगाई बढ़ेगी। जलडमरूमध्य बंद होने से रिफाइनरियों का संचालन प्रभावित हो सकता है जिससे ईंधन की कमी हो सकती है। ईंधन की बढ़ती लागत से परिवहन और विनिर्माण की लागत बढ़ेगी जिसका असर रोजमर्रा की वस्तुओं पर पड़ेगा। तेल आयात की लागत बढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ सकता है जिससे रुपये और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ेगा। लाल सागर मार्ग पहले से ही हूती हमलों के कारण बाधित है, जिससे भारत के यूरोप और मध्य पूर्व के निर्यात प्रभावित होंगे। ईंधन और वस्तुओं की बढ़ती कीमतें मध्यम और निम्न वर्ग पर आर्थिक दबाव डालेंगी, और सरकार को ईंधन पर उत्पाद शुल्क कम करने या सब्सिडी बढ़ाने जैसे कदम उठाने पड़ सकते हैं, जिससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा।

भारत की जवाबी रणनीतियां

भारत ने रूस, अमेरिका, ब्राजील और अफ्रीका से तेल आयात बढ़ाकर आयात स्रोतों का विविधीकरण किया है। रूसी तेल, जो स्वेज नहर या केप ऑफ गुड होप के माध्यम से आता है, होर्मुज पर निर्भर नहीं है। भारत के पास 74 दिनों का तेल भंडार है, जो अल्पकालिक संकट को संभाल सकता है। कतर भारत का प्रमुख LNG आपूर्तिकर्ता है लेकिन ऑस्ट्रेलिया, रूस, और अमेरिका से LNG आयात जलडमरूमध्य पर निर्भर नहीं है। भारत नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन) और परमाणु ऊर्जा में निवेश बढ़ा रहा है, जो दीर्घकाल में तेल निर्भरता कम करेगा। भारत मध्य पूर्व में तनाव कम करने के लिए कूटनीतिक चैनलों का उपयोग कर सकता है। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि भारत स्थिति पर नजर रख रहा है और आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तैयार है।

चुनौतियां और सीमाएं

रूस और अमेरिका से तेल आयात महंगा हो सकता है और लॉजिस्टिक्स जटिल हैं। यदि जलडमरूमध्य एक सप्ताह से अधिक बंद रहता है तो भारत के भंडार अपर्याप्त हो सकते हैं। चीन, ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार, जलडमरूमध्य खुला रखने के लिए ईरान पर दबाव डाल सकता है लेकिन यह भारत के लिए अप्रत्यक्ष लाभ होगा।

ईरान की होर्मुज जलडमरूमध्य बंद करने की धमकी वैश्विक ऊर्जा बाजारों और भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। यह धमकी अमेरिका और इजरायल के साथ बढ़ते तनाव का परिणाम है, और ईरान की असममित सैन्य रणनीतियां इसे अल्पकालिक रूप से बाधित कर सकती हैं। भारत, जो अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए इस मार्ग पर काफी हद तक निर्भर है, को तेल और गैस की कीमतों में उछाल, महंगाई, और व्यापार घाटे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि, भारत के विविधीकृत आयात स्रोत, रणनीतिक भंडार, और कूटनीतिक प्रयास इस संकट को कम करने में मदद कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस तनाव को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए ताकि वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित रहे।

जयसिंह रावत

चिंताजनक है पर्यावरणीय असंतुलन

डॉ. वेदप्रकाश


     विगत दिनों परमार्थ निकेतन ऋषिकेश जाना हुआ। वहां मां गंगा आरती के समय परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी ने प्रतिदिन की भांति अपने उद्बोधन में कहा कि- आज नदियां और विभिन्न जल स्रोत प्रदूषण के शिकार हैं। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और इनके साथ-साथ मानसिक प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। यह भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रदूषण जहां एक ओर प्रकृति-पर्यावरण, संतति और संस्कृति के लिए खतरा है वहीं दूसरी ओर मनुष्य जीवन के लिए भी घातक है।
      आज जन-जन के बीच पर्यावरण को विश्लेषित करने एवं चर्चा का मुद्दा बनाने की आवश्यकता है। अनेक लोग पर्यावरण का अर्थ केवल पेड़-पौधे समझते हैं जबकि पर्यावरण तो पेड़-पौधे, झरने, नदी, पर्वत, धरती, आकाश एवं वायुमंडल में भिन्न-भिन्न प्रकार की गैसों से बनी एक ऐसी संकल्पना है जो प्रत्येक जीवधारी के लिए जीवन को संभव बनाती है अथवा उसके जीवन को अनुकूलन प्रदान करती है। ध्यान रहे पर्यावरण में उपर्युक्त वर्णित प्रत्येक घटक का अपना विशिष्ट महत्व है। इन घटकों में संतुलन का बिगड़ना ही पर्यावरणीय असंतुलन है, जो चिंताजनक है।
     भारतीय ज्ञान परंपरा में अग्नि, जल, वायु ,धरती ,आकाश, सूर्य, चंद्रमा और वनस्पतियों आदि की भिन्न-भिन्न रूपों में उपासना का विधान करते हुए उनके महत्व का विश्लेषण है। हमारे वेद, उपनिषद एवं ज्ञान परंपरा हमें प्रकृति के साथ जीने की ऐसी व्यापक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिससे पर्यावरण में संतुलन बना रह सके। वहां अंतरिक्ष, पृथ्वी, जल, वायु और वनस्पति आदि सभी शांत और संतुलन में रहें, उसके लिए प्रार्थना मिलती है – द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति पृथिवी…। वहां तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा… अर्थात् त्यागपूर्ण और आवश्यकतानुसार उपयोग की बात कही गई है। वहां वट, तुलसी, रुद्राक्ष, कदंब, पीपल, अशोक, दूर्वा, आम आदि में देवत्व की स्थापना करते हुए उनके संरक्षण- संवर्धन की बात कही गई है। कुएं, नदी और पर्वतों की पूजा हेतु पर्वों का विधान है तो गाय, बैल, हाथी, चूहे और चीटियों के पूजन का भी महत्व बताया गया है लेकिन दूसरे श्रेष्ठ हैं, स्वयं के प्रति हीनता बोध और आधुनिक बनने की होड़ में हम अपनी श्रेष्ठ परंपराओं से दूर हटने लगे। औद्योगिकरण और अधिकाधिक उत्पादन की इच्छा में मनुष्य की भोग और लालच की वृत्ति भी बढ़ती चली गई। परिणाम स्वरूप प्रकृति और पर्यावरणीय संरचनाओं का अधिकाधिक दोहन शुरू हुआ, जिसने पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म दिया।

हाल ही में क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि हमारे शहरों में फैले वायु प्रदूषण का असर सिर्फ गांव-शहरों तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि अब वह हिमालय की ऊंचाई तक भी जा पहुंचा है। हिमालय क्षेत्र में ब्लैक कार्बन का स्तर लगातार बढ़ा है। रिपोर्ट बताती है कि हिमालय के बर्फीले शिखर पर बर्फ की सतह का औसत तापमान पिछले दो दशकों में चार डिग्री सेल्सियस से भी अधिक बढ़ा है। इसके प्रभाव स्वरूप यहां बर्फ तेजी से पिघल रही है। हाल ही की वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन, क्लाइमेट सेंट्रल और द रेड क्रास के विश्लेषण के अनुसार अत्यधिक गर्मी के दिनों की संख्या बढ़ने की वजह से एक बड़ी आबादी को बीमारी, मौत और फसलों के नुकसान के साथ जीना पड़ रहा है। इसी प्रकार दिल्ली स्थित थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वॉटर द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया है कि भारत के लगभग 57 प्रतिशत जिले जिनमें देश की लगभग 76 प्रतिशत आबादी रहती है, उनमें इस समय अधिक से बहुत अधिक गर्मी का जोखिम है। क्या यह चिंताजनक नहीं है?

नगरों व महानगरों में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। सीवरेज और  भिन्न भिन्न प्रकार के कूड़े के शोधन हेतु पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। जगह जगह कूड़े के पहाड़ बनते जा रहे हैं। जल स्रोत प्लास्टिक और अशोधित सीवेज, औद्योगिक कचरे एवं रसायनों के कारण भयंकर प्रदूषण के गिरफ्त में हैं तो वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन एवं अन्य गैसों की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। सिंगल यूज प्लास्टिक उत्पाद न केवल मानवता के लिए अपितु समूचे प्रकृति- पर्यावरण के लिए एक बड़े खतरे के रूप में उभर रहे हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देश के 25 राज्यों में 13000 वर्ग किलोमीटर से अधिक वन क्षेत्र पर अतिक्रमण है। मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई जारी है। बढ़ती जनसंख्या, आवास सुविधाओं और विकास योजनाओं के नाम पर खेती की जमीन और जंगल घटते जा रहे हैं। भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में कहीं न कहीं वनों की आग फैली ही रहती है, जिससे वन क्षेत्र तो नष्ट होता ही है ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है। आंकड़ों में तो प्रतिवर्ष लाखों पेड़ लगाए जाते हैं लेकिन उनमें से कितने जीवित रहते हैं, यह भी एक बड़ा प्रश्न है?

पर्यावरणीय असंतुलन के कारण कुदरत का कहर लगातार बढ़ रहा है। आंधी, तूफान, बे मौसम और अधिक बारिश, बाढ़ सूखा और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं प्रतिवर्ष आर्थिक नुकसान के साथ-साथ हजारों लोगों की मौत का कारण भी बन रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन होने से विश्व की अनेक भाषाएं व संस्कृति लुप्त हो रही हैं। हिमालय क्षेत्र के विभिन्न ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिनमें से कई तो बेहद संवेदनशील स्थिति में पहुंच चुके हैं। विभिन्न अध्ययनों से लगातार यह सामने आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान बढ़ने से कैंसर, हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, गुर्दे, श्वास एवं त्वचा रोगों में बढ़ोतरी हो रही है और यह मौत और विकलांगता का कारण भी बन रहा है। पर्यावरणीय असंतुलन के कारण अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक सर्दी नवजात शिशुओं के लिए भी बड़ा खतरा बनती जा रही है। दिसंबर 2023 के द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बाहरी वायु प्रदूषण भारत में प्रतिवर्ष 21 लाख 80 हजार लोगों की जिंदगी छीन लेता है, क्या ये सब बातें पर्यावरणीय असंतुलन की दृष्टि से चिंताजनक नहीं हैं?

 सकारात्मक यह है कि भारत सरकार के विभिन्न प्रयासों से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है। पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा व सीएनजी जैसे महत्वपूर्ण विकल्प तेजी से बढ़ाए जा रहे हैं। प्रतिवर्ष पौधारोपण और वनीकरण के माध्यम से हरित क्षेत्र भी बढ़ाने के प्रयास जारी हैं। जलवायु परिवर्तन और अधिक सर्दी व गर्मी बढ़ने से बड़ा खतरा गेहूं, चावल एवं अन्य खाद्यान्न फसलों के साथ-साथ जल की कमी का भी है। भूजल प्रदूषित है, वह घट भी रहा है। नदियां भी प्रदूषण की गिरफ्त में हैं तो वे निरंतर सूख भी रही हैं। इन सब विषयों पर राष्ट्रीय और वैश्विक फलक पर व्यापक चिंतन और योजनाओं की आवश्यकता है।

आज गांधीजी की चेतावनी को भी हमें ध्यान में रखना होगा। उन्होंने कहा था- ऐसा समय आएगा जब अपनी जरूरतों को कई गुना बढ़ाने की अंधी दौड़ में लगे लोग अपने किए को देखेंगे और कहेंगे, ये हमने क्या किया? निश्चित रूप से आज भारत सहित समूचे विश्व को विकास और उत्पादन के नए मानक बनाने की आवश्यकता है। ऐसे मानक जो प्रकृति-पर्यावरण के अनुकूल हों। यदि पर्यावरणीय असंतुलन के मुद्दे पर भारत सहित समूचा विश्व यथाशीघ्र गंभीरता से विचार नहीं करेगा तो प्रकृति- पर्यावरण के साथ-साथ मनुष्य और समस्त जीवों का अस्तित्व बचना असंभव है। अभी भी समय है स्वयं भी जागें और दूसरों को भी जगाएं। प्रकृति-पर्यावरण को प्रदूषित न करें। नीड कल्चर से ग्रीड कल्चर की ओर न जाएं

। क्योंकि प्रकृति-पर्यावरण संतुलित और सुरक्षित है तो संस्कृति और संतति सुरक्षित हैं, जीवन सुरक्षित है।


डॉ.वेदप्रकाश

ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के वैश्विक मायने 

कमलेश पांडेय

आखिरकार दुनिया का थानेदार समझे जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने मित्र यहूदी देश इजरायल की शांति के लिए चुनौती बन चुके कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र ईरान के तीन प्रमुख परमाणु स्थलों पर हवाई हमले करके जहां विगत 10 दिनों से चल रहे इजरायल-ईरान युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया, वहीं अपनी इस अप्रत्याशित कार्रवाई से उनकी थानेदारी को महज बयानी चुनौती देने वाले चीन-रूस-उत्तर कोरिया आदि देशों को भी एक स्पष्ट संदेश दे दिया कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अपनी हद में रहो अन्यथा अंजाम और भी बुरे हो सकते हैं। इस प्रकार ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के वैश्विक मायने स्पष्ट हैं जो एक ध्रुवीय विश्व को बहुध्रुवीय बनाने के प्रयासों की विफलता को उजागर करते हैं। वहीं, ये कुछ अन्य महत्वपूर्ण वैश्विक पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं जो अग्रलिखित हैं।

पहला, ईरान पर हुए अमेरिकी हमले से एक बार फिर यह स्पष्ट हो चुका है कि मौजूदा एक ध्रुवीय विश्व में अमेरिका के सजग और शातिर नेतृत्व को ऑन द स्पॉट चुनौती देने का दमखम अभी रूस-चीन-उत्तर कोरिया गुट के पास के पास नहीं है, खासकर अपने ऊपर आश्रित राष्ट्रों के लिए भी। ऐसा इसलिए कि जहां अमेरिका अपने मित्र नाटो देशों- इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि को विश्वास में लेकर अपने इजरायल व यूक्रेन जैसे सहयोगियों के पक्ष निर्णायक फैसला करता रहता है, वहीं रूस-चीन-उत्तर कोरिया जैसे सीटो देश ऐन मौके पर सीरिया व ईरान जैसे अपने सहयोगियों पर आए आफत को दूर करने के लिए त्वरित एकजुटता प्रदर्शित करने और अपेक्षित सैन्य पलटवार शुरू करने के मुद्दे पर घबरा जाते हैं। 

दूसरा, चीन-रूस-उत्तर कोरिया की कथनी व करनी में बहुत अंतर पाया जाता है। वहीं ये आपसी दांवपेंच में भी सटीक निर्णय नहीं ले पाते हैं। यही वजह है कि कभी अफगानिस्तान, कभी सीरिया और कभी ईरान जैसे मुल्क इनके हाथों से निकल जाते हैं और वहां पर पुनः अमेरिका का दबदबा बढ़ जाता है। अपने देखा होगा कि जब इजरायल-ईरान युद्ध में मिसाइल हमलों में ईरान ने इजरायल पर बढ़त ले ली और इजरायल के एयर डिफेंस सिस्टम में भी सुराग लगा दिया तो अचानक अमेरिका उसके पक्ष में उतरा और ईरान के फोर्दो, नतांज और इस्फहान स्थित न्यूकलियर साइटों को निशाना बना लिया। 

तीसरा, इस अमेरिकी हमले का एक खास मकसद था जिसे उसके अलावा कोई अन्य नाटो देश इसे कदापि पूरा नहीं कर सकता था। उल्लेखनीय है कि फोर्दो न्यूकलियर साइट इसमें बेहद महत्वपूर्ण है जो तेहरान के दक्षिण में एक पहाड़ के नीचे स्थित है और बेहद गहराई पर बना है। इसे इंग्लिश चैनल टनल से भी गहरा माना जाता है। यही वजह है कि अमेरिका ने अपने हमले में  जीबीयू (GBU)-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर (MOP) नामक भारी बम का इस्तेमाल किया जो 13,000 किलोग्राम वजनी होता है और 61 मीटर मिट्टी या 18 मीटर कंक्रीट को भेद सकता है, लेकिन इससे इस केंद्र को कितना नुकसान पहुंचा, कुछ समय बाद पता चलेगा जब सही आंकड़े व फोटो ईरान सरकार द्वारा जारी किए जाएंगे।

चतुर्थ, अमेरिकी हमले के प्रभाव की पूरी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि निश्चित तौर पर ईरान को पिछले कई सालों से अपने न्यूकलियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की आशंका थी जो इस बार पूरी हो गई। इसलिए ईऱान ने अपनी गुप्त रणनीति के अनुरूप कोई वैकल्पिक व्यवस्था जरूर की होगी जैसा कि एक अन्य इस्लामिक देश पाकिस्तान ने अपने न्यूक्लियर  प्रोग्राम के अधीन पाकिस्तानी हुक्मरानों के इशारे पर कर रखा है। यही वजह है कि खुद ईऱानी अधिकारियों ने दावा किया है कि न्यूकलियर साइटों को पहले ही खाली कर दिया गया था और जरूरी परमाणु रिसर्च उपकरण को हटा दिया गया था। यदि ऐसा है तो यह अमेरिका-इजरायल के लिए किसी दुःस्वप्न जैसा है।

पंचम, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि परमाणु साइटें पूरी तरह से नष्ट कर दी गई हैं लेकिन कई पूर्व अमेरिकी राजनयिकों का मानना है कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा कि इरानी न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर पूरी तरह से नष्ट या खत्म हो गए हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने इजरायल को संतुष्ट करने के लिए या महज दिखावे के लिए न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमला किया हो, क्योंकि ट्रंप व्यापारी है, व्यापार उनकी प्राथमिकता है, और अमेरिका को पूर्ण युद्ध में वो शायद नहीं शामिल करना चाहते है। यही वजह है कि ईरान प्रशासन को उन्होंने पहले ही आगाह कर दिया था कि वह उनके परमाणु ठिकाने पर हमला करेंगे लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति पर इजरायल पब्लिक अफेयर्स कमेटी औऱ यहूदी काउंसिल फॉर पब्लिक अफेर्यस का दबाव है, जो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों को फंड करती है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था वहां के 2 प्रतिशत यहूदियों के इशारे पर ही कुलांचें मारती फिरती है।

छठा, वैसे तो ईरान को न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की संभावना लंबे समय से व्यक्त की जा रही थी, इसलिए जरूरी न्यूक्लियर रिसर्च उपकरणों को बचाने का वैकल्पिक इंतजाम ईऱान ने पहले ही कर रखा होगा। बता दें कि ईऱान की तरह पाकिस्तान भी अपने न्यूक्लियर सेंटर्स पर हमले की आशंका व्यक्त करता रहा है। पाकिस्तान का स्ट्रैटजिक प्लान डिविजन जो नेशनल कमांड अथॉरिटी का सचिवालय है, ने अपने जरूरी न्यूक्लियर रिसर्च उपकरणों के लिए लगभग 15 गोपनीय स्थान बना रखे हैं जहां समय-समय पर इसे रखा जाता है। 

सातवां, यूँ तो पाकिस्तान ने भी लगातार यही आशंका प्रकट की है कि अमेरिका, भारत या इज़राइल उसकी परमाणु क्षमताओं को नष्ट करने की कोशिश कर सकते हैं। बता दें कि 1980 और 1990 के दशक में पाकिस्तान ने कई बार अपने परमाणु रिसर्च केंद्रों पर हमले की संभावना जतायी जबकि मौजूदा दौर में ईरान भी वैसी ही मनोदशा से गुजर रहा है। गौरतलब है कि 1982 में इज़राइल द्वारा इराक के ओसिराक रिएक्टर पर हमले के बाद, पाकिस्तान को आशंका हुई कि भारत भी पाकिस्तान के परमाणु केंद्रों पर हमला कर सकता है। पाकिस्तान के तत्कालीन शासक जनरल जिया उल हक ने खुले तौर पर स्वीकार किया था कि भारत पाकिस्तान पर ओसिराक रिएक्टर पर हुए इजरायली अटैक की तरह हमला कर सकता है। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी। 

आठवां, वर्ष 1984 में पाकिस्तानी अधिकारियों ने कनैडियन और यूरोपियन इंटेजिलेंस एजेंसियों की रिपोर्ट के हवाले से यह आशंका व्यक्त की थी कि इज़राइल पाकिस्तान के काहुटा न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर पर हमले की योजना बना रहा है। इसके लिए इजरायल, भारत और तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) की मदद ले सकता है। वहीं, 1985 में फिर से पाकिस्तान ने काहुटा पर भारत द्वारा संभावित हमले की आशंका जताई। उस समय भी जिया पाकिस्तान के शासक थे जबकि मिस्टर क्लीन के नाम से मशहूर राजीव गाँधी भारत के प्रधानमंत्री थे। वहीं, साल 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तो पाकिस्तान ने फिर कहा कि उसके परमाणु केंद्रों पर हमला हो सकता है। उस समय नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी भारत के प्रधानमंत्री थे।

नवम, ईरान पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्र को संबोधित किया और ईरान और इजरायल के युद्ध पर खुलकर बात की। इस दौरान ट्रंप ने ईरान को दो टूक शब्दों में चेतावनी दी है कि अगर ईरान में शांति नहीं हुई तो फिर विनाश तय है। इससे साफ है कि गत 13 जून 2025 को शुरू हुए इजरायल और ईरान के तनाव में अब अमेरिका की एंट्री हो गई है क्योंकि अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर बम बसराए हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने व्यथा पूर्वक बताया कि ईरान पिछले 40 साल से अमेरिका के खिलाफ है और कई अमेरिकी इस नफरत की भेंट चढ़ चुके हैं। अब यह और नहीं होगा। ईरान की वजह से हजारों अमेरिकियों और इजरायली नागरिकों की जान गई है मगर बस, अब यह और नहीं होगा। ईरान पर अमेरिका के हमले का उद्देश्य परमाणु खतरे को हमेशा के लिए खत्म करना था। इसीलिए अमेरिका ने ईरान की परमाणु साइट्स को निशाना बनाया है। 

दशम, ट्रंप ने साफ शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर ईरान में शांति स्थापित नहीं हुई तो फिर विनाश होगा। ईरान आगे और भी हमलों के लिए तैयार रहे। भविष्य के हमले इससे कहीं ज्यादा भयानक होंगे। ट्रंप ने आगे कहा कि बीती रात अमेरिका ने ईरान के जिन परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया था, वो बेहद कठिन थे मगर अमेरिकी सेना ने यह कर दिखाया। अब तेहरान का सबसे महत्वपूर्ण परमाणु प्रोग्राम साइट फोर्डो तबाह हो चुकी है।

ग्यारह, ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन (AEOI) ने भी फोर्डो, नतांज और इस्फहान परमाणु ठिकानों पर हमलों की पुष्टि की है। AEOI का कहना है कि अमेरिका की यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन है। इसमें अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) ने भी अमेरिका का साथ दिया है। वैश्विक समुदाय को इस हमले की कड़ी निंदा करनी चाहिए। ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखेगा, यह किसी भी कीमत पर नहीं रुकेगा।

बारह, तेहरान में शरियातमदारी के हवाले से कहा गया है, “अब बिना देरी किए कार्रवाई करने की हमारी बारी है। पहले कदम के तौर पर हमें बहरीन में अमेरिकी नौसेना के बेड़े पर मिसाइल हमला करना चाहिए और साथ ही अमेरिकी, ब्रिटिश, जर्मन और फ्रांसीसी जहाजों के लिए होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना चाहिए।” बता दें कि होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी और ओमान की खाड़ी के बीच एक जलडमरूमध्य है। यह फारस की खाड़ी से खुले समुद्र तक एकमात्र समुद्री मार्ग प्रदान करता है और दुनिया के सबसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चोक पॉइंट्स में से एक है। यदि ऐसा हुआ तो यह पूरी दुनिया में ऊर्जा संकट पैदा कर देगा।

तेरह, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी अमेरिका के इस कदम को साहसिक करार दिया है। उन्होंने कहा कि, मैं और ट्रंप यही मानते हैं कि शक्ति से ही शांति स्थापित होती है। पहले शक्ति दिखाई जाती है और फिर शांति होती है। अमेरिका ने ईरान पर पूरी ताकत के साथ कार्रवाई की है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने ईरान के तीन सबसे महत्वपूर्ण परमाणु स्थल फोर्डो, नतांज और इस्फहान पर कुल 6 जीबीयू (GBU)-57 बंकर बस्टर बम गिराए हैं। बी (B)-2 स्टील्थ बॉम्बर्स से इन महा विशालकाय बमों को गिराए हैं और उन्हें नेस्तनाबूद कर दिया है। 

चौदह, सवाल है कि अगर अमेरिका खुलकर युद्ध में कूदता है तो क्या ईरान की सरकार का युद्ध में टिकना मुश्किल हो जाएगा। तो जवाब होगा- हां। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अमेरिका विजेता होगा। बल्कि अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लीबिया, सीरिया, हर जगह पश्चिमी हस्तक्षेप के बाद जैसे स्थिति बदतर हुई और कट्टरपंथी ताक़तें सत्ता में आ गईं और आतंकवाद बढ़ा। लिहाजा, ईरान की हार से पश्चिमी एशिया में फिर से वही चक्र शुरू हो सकता है, शरणार्थी संकट, अस्थिरता और आतंकवाद का बढ़ना।

पंद्रह, ईरानी दूतावास ने कहा है कि वो इस हमले से रूकने वाला नहीं है। यह हमला उस समय हुआ जब कूटनीतिक बातचीत चल रही थी। वह इजराइल जैसे आक्रामक देश का साथ देकर एक खतरनाक जंग की शुरुआत कर रहा है। ईरान ने साफ कहा कि वह अपने देश की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी ताकत से जवाब देगा। ईरान ने अमेरिका को एक गैर-जिम्मेदार देश बताया जो किसी भी नियम का पालन नहीं करता।

सोलह, पश्चिमी एशिया व यूरोपीय देशों का मानना है कि अगर इसराइल और ईरान के बीच संघर्ष और बढ़ा, तो इसका असर केवल क्षेत्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा। इसलिए अब हर किसी की नज़र इस बात पर टिकी है कि अमेरिका के ईरान पर हमलों के बाद इस्लामिक देशों का रुख़ क्या होगा? जबकि ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था ने एक तीखा और भावनात्मक बयान जारी किया है। भारत स्थित ईरानी दूतावास ने इस बयान को जारी करते हुए अमेरिका की सख्त शब्दों में निंदा की गई है और फिर से परमाणु कार्यक्रम शुरू करने की कसम खाई गई है। 

सत्रह, ईरानी बयान में अमेरिका के इस हमले को ‘जंगल का कानून’ बताया गया है। इसके अलावा ईरान ने IAEA की चुप्पी की निंदा करते हुए देश के ‘परमाणु शहीदों’ के नाम पर शपथ ली है और फिर से अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखने की कसम खाई है। परमाणु सुविधाओं पर हमले के बाद ईरान के परमाणु ऊर्जा संगठन की तरफ से जारी बयान में अमेरिका की निंदा की गई है। ईरानी दूतावास ने अपने बयान में कहा है कि “हाल के दिनों में जायोनी दुश्मन द्वारा किए गए क्रूर हमलों के बाद, आज सुबह देश के कई परमाणु स्थलों पर बर्बर हमला किया गया, जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों, विशेष रूप से एनपीटी का उल्लंघन है। 

अठारह, ईरान ने दो टूक कहा है कि अमेरिकी कार्रवाई, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करती है, वो दुर्भाग्य से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की उदासीनता, और यहां तक कि मिलीभगत से हुई है। अमेरिकी दुश्मन ने वर्चुअल सैटेलाइट तस्वीरों के माध्यम से और अपने राष्ट्रपति की घोषणा के द्वारा साइटों पर हमलों की जिम्मेदारी ली है जो सुरक्षा समझौते और एनपीटी के मुताबिक लगातार IAEA निगरानी के अधीन हैं। यह उम्मीद की जाती है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय “जंगल के नियमों” में निहित इस अराजकता की निंदा करेगा और ईरान को उसके वैध अधिकारों का दावा करने में समर्थन देगा।”

उन्नीस, ईरानी दूतावास ने कहा है कि “ईरान का परमाणु ऊर्जा संगठन ईरान के महान राष्ट्र को आश्वस्त करता है कि अपने दुश्मनों की दुर्भावनापूर्ण साजिशों के बावजूद, हजारों क्रांतिकारी और प्रेरित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के समर्पण के साथ, यह परमाणु शहीदों के खून पर बने इस राष्ट्रीय उद्योग के डेवलपमेंट को रुकने नहीं देगा। यह संगठन कानूनी कार्रवाइयों सहित महान ईरानी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा रहा है।” ईरान ने यह आरोप लगाया कि यह हमला उन ठिकानों पर किया गया है जो पहले से ही अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण और निगरानी में थे और इसलिए यह कदम पूरी तरह अवैध और उकसावे की कार्यवाही है।

बीस, निष्कर्षत:, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमेरिका के इस कदम को साहसिक करार दिया और  कहा कि, “मैं और ट्रंप यही मानते हैं कि शक्ति से ही शांति स्थापित होती है। पहले शक्ति दिखाई जाती है और फिर शांति होती है। अमेरिका ने ईरान पर पूरी ताकत के साथ कार्रवाई की है। नेतन्याहू ने ट्रम्प को स्वतंत्र दुनिया का साहसी नेता और इजराइल का सबसे बड़ा दोस्त बताया।” उन्होंने कहा कि, ‘‘पूरे यहूदी समुदाय और इजराइली नागरिकों की ओर से मैं उनका आभार प्रकट करता हूं।’’

कमलेश पांडेय

बॉलीवुड में पहचान बना रहीं साउथ एक्‍ट्रेस

सुभाष शिरढोनकर

पिछले कुछ वक्‍त से साउथ सिनेमा की अनेक एक्ट्रेसेस हिंदी फिल्मों में नजर आने लगी हैं। यहां के दर्शक न केवल उन्हें   पहचान रहे हैं बल्कि हिंदी बेल्‍ट में उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी है। ऐसी एक्‍ट्रेसों का सिलसिलेवार ब्‍योरा पेश है।

रश्मिका मंदाना

एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना इस लिस्ट में सबसे ऊपर हैं। रश्मिका मंदाना तमिल फिल्‍म इंडस्‍ट्री की एक लोकप्रिय एक्‍ट्रेस हैं। अपने छोटे से करियर में रश्मिका मंदाना ने इतनी ब्लॉकबस्टर दी हैं जितनी कई एक्टर मिलकर भी नहीं कर पाते।  

अपनी पेन इंडिया फिल्‍मों के जरिए उन्‍होंने काफी कम समय में जबर्दस्‍त लोकप्रियता हासिल की है।  रनबीर कपूर की ‘एनिमल’, अल्लू अर्जुन के साथ ‘पुष्‍पा’ और ‘पुष्प 2’, विक्की कौशल के साथ  ‘छावा’ और सलमान के साथ ‘सिकंदर’ जिस किसी फिल्म के साथ रश्मिका का नाम जुड़ता है, उस फिल्म की किस्मत ही बदल जाती है।

हालांकि सलमान के साथ वाली उनकी फिल्‍म ‘सिकंदर’ उतनी नहीं चली। लेकिन उस फिल्‍म के न चलने की अपनी कुछ अलग ही वजहें थीं।  

नयनतारा

साउथ की फीमेल सुपरस्टार कही जाने वाली नयनतारा इस लिस्ट में दूसरे नंबर हैं। नयनतारा ने 2023 में रिलीज शाहरुख खान की फिल्म ‘जवान’ से बॉलीवुड में कदम रखा। फिल्म में दोनों की केमिस्ट्री फैंस को काफी पसंद आई।

नयनतारा न केवल खूबसूरती के मामले में बल्कि पढ़ाई-लिखाई के मामले में भी बहुत आगे हैं। उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर में डिग्री ली है।

सामंथा रूथ प्रभु

एक्ट्रेस सामंथा रूथ प्रभु साउथ फिल्‍म इंडस्ट्री की हाईपेड एक्ट्रेसेस में से एक हैं। इस लिस्ट में वे तीसरे नंबर पर है। सामंथा ने ना सिर्फ साउथ बल्कि हिंदी फिल्में और वेब सीरीज भी की हैं।

वह आखिरी बार वरुण धवन के साथ ‘सिटाडेल: हनी बनी’ में नजर आई थीं। ये वेब सीरीज अमेरिकन सीरीज ‘सिटाडेल’ का हिंदी वर्जन थी। इस एक्शन थ्रिलर वेब सीरीज में अपने हिस्‍से के सारे स्‍टंट खुद उन्‍होंने ही किए थे।

साई पल्लवी

एक्ट्रेस साई पल्लवी इस लिस्ट में चौथे नंबर पर है। इन्होंने साउथ की कई हिट फिल्में की हैं. फिलहाल वे नीतेश तिवारी की फिल्म ‘रामायण’ में माता सीता का रोल प्ले कर रही हैं। फिल्‍म में एक्टर रनबीर कपूर उनके अपोजिट भगवान श्रीराम के किरदार में नजर आएंगे।

तमन्ना भाटिया

साउथ में मिल्‍क ब्‍यूटी के नाम से मशहूर एक्‍ट्रेस तमन्ना भाटिया इस लिस्ट में पांचवे नंबर पर है। तमन्ना ने ना सिर्फ साउथ बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपनी परियों जैसी खूबसूरती और एक्टिंग टेलेंट का जलवा दिखाया है।

प्रियंका मोहन

एक्ट्रेस प्रियंका मोहन इस लिस्ट में छठवें नंबर पर है। प्रियंका ने कुछ समय पहले ही साउथ फिल्मों में डेब्यू किया है और उन्हें  उनके पहले ही कदम पर जोरदार कामयाबी मिली।

तृष्णा कृष्णन

तृष्णा कृष्णन तमिल फिल्‍म इंडस्‍ट्री की एक फेमस एक्ट्रेस हैं। लोग उन्हें  काफी पसंद करते हैं। इन्होंने कुछ हिंदी फिल्मों में भी काम किया है। इस लिस्ट में इनकी पोजीशन सातवें नंबर पर है।

कीर्ति सुरेश

साउथ एक्ट्रेस कीर्ति सुरेश भी साउथ की सबसे ज्‍यादा कामयाब एक्‍ट्रेस में से एक हैं। उनका नाम अब तक तमिल के अलावा साउथ की अन्‍य भाषाओं की अनेक कामयाब फिल्‍मों के साथ जुड़ चुका है।

ज्योतिका

एक्ट्रेस ज्योतिका साउथ की पॉपुलर एक्ट्रेसेस में से एक हैं। हाल ही में इन्होंने ‘शैतान’ और ‘श्रीकांत’ जैसी फिल्में की हैं जो हिट रहीं। ज्योतिका साउथ के साथ कुछ हिंदी फिल्मों में भी नजर आ चुकी है।

श्रुति हासन

साउथ सुपरस्टार कमल हासन की बेटी एक्ट्रेस श्रुति हासन को इस लिस्ट में 10वें नंबर पर है। श्रुति ना सिर्फ साउथ फिल्मों में एक्टिव हैं बल्कि कई हिंदी  फिल्में भी कर चुकी हैं।

सुभाष शिरढोनकर

अजेय बाजीराव पेशवा प्रथम के संघर्ष का अंतिम दस्तावेज़ ‘रावेरखेड़ी’

डॉअर्पण जैन ‘अविचल

निमाड़ अंचल न केवल नीम के वृक्षों से भरा हुआ है बल्कि माँ रेवा के अतिरिक्त लाड़ से लबरेज़ भी है और ऐतिहासिकता को अपने भीतर सजाए हुए नज़र आता है। पूर्वी निमाड़ में रेवा का लाड़ कुछ इस तरह बहता है कि यहाँ प्राणदायिनी के रूप में नर्मदा का स्थान है। इसी नर्मदा के आँचल में एक स्थान ऐसा भी है, जहाँ 40 वर्षीय, वीर भारतीय सेना नायक, चतुर्थ मराठा छत्रपति शाहू जी के पेशवा बाजीराव प्रथम ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था।

बाजीराव का जन्म 18 अगस्त 1700 को महाराष्ट्र के नासिक के पास सिन्नर में भट्ट परिवार में हुआ था। उनके पिता बालाजी विश्वनाथ तो शाहू प्रथम के पेशवा थे और उनकी माँ राधाबाई बर्वे थीं। बाजीराव का एक छोटा भाई चिमाजी अप्पा और दो छोटी बहनें अनुबाई और भिउबाई थीं। शिक्षित चितपावन ब्राह्मण परिवार में पैदा होने के कारण उनकी शिक्षा में पढ़ना, लिखना और संस्कृत सीखना शामिल था। हालाँकि वे अपनी किताबों तक ही सीमित नहीं रहे।बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरन्दाज़ी, तलवार-भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक़ था। 13-14 वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते हुए युद्धनीति, दरबारी चाल-चलन व रीतिरिवाज़ों को आत्मसात करते रहते थे। बचपन से ही सेना और राष्ट्र के लिए अपने हौंसलों से उन्होंने पिता के साथ सेना में कार्य करना आरम्भ कर दिया था।

उनके दो विवाह हुए, उनकी पहली पत्नी काशीबाई थीं। उनका विवाह 1720 में हुआ था। उनके चार पुत्र थे, जिनमें से बालाजी बाजीराव और रघुनाथराव, जो आगे चल कर पेशवा बने। बाजीराव की दूसरी पत्नी मस्तानी थीं, जो कि बुंदेलखंड के हिंदू राजा छत्रसाल और उनकी एक फ़ारसी मुस्लिम पत्नी रुहानी बाई की बेटी थीं। पेशवा परिवार ने इस शादी को स्वीकार नहीं किया। कुछ लोगों का मानना है कि बाजीराव ने मस्तानी से विवाह किया था, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि वह उनकी उपपत्नी थीं। बाजीराव और मस्तानी का एक बेटा था, जिसका नाम कृष्ण राव रखा गया था, बाद में उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया।

बाजीराव 1719 में अपने पिता के साथ दिल्ली के अभियान पर गए थे और उन्हें विश्वास था कि मुग़ल साम्राज्य बिखर रहा है और उत्तर की ओर मराठा विस्तार का विरोध करने में असमर्थ होगा। उसी संघर्ष के दौरान जब 1720 में बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हो गई, तो शाहू ने अन्य सरदारों के विरोध के बावजूद 20 वर्षीय बाजीराव के सैन्य कौशल को देखकर उन पर विश्वास करते हुए उन्हें 17 अप्रैल 1720 को पेशवा (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया।

भाट (भट्ट) वंश के नौ पेशवाओं में सबसे अधिक प्रभावशाली पेशवा बाजीराव ही माने जाते हैं। उनके अनथक श्रम और अभूतपूर्व युद्ध कौशल के कारण मराठा राज्य के विस्तार में महत्ती भूमिका रही। उन्होंने मालवा, निमाड़, गुजरात, निज़ाम, पुर्तगालियों तथा दिल्ली के सुल्तान की सेनाओं को परास्त किया। गुजरात के गायकवाड़, ग्वालियर के शिंदे, जिन्हें सिंधिया कहा जाता है, इन्दौर के होलकर, धार के पँवार, नागपुर के भोंसले को मराठा साम्राज्य के अधीन कर मराठा संघ बनाया।

कुल 40 वर्षों के जीवन में अधिकांशतः बाजीराव ने युद्ध ही किए। उत्तर भारत के युद्ध अभियान के दौरान अपने एक लाख से अधिक सैनिकों के साथ बाजीराव निमाड़ में नर्मदा तट पर डेरा डाले हुए थे। लगातार युद्धों और सैन्य अभियानों के कारण बाजीराव का शरीर कमज़ोर हो गया था।  वैसे निमाड़ में गर्मी और लपट बहुत तेज़ होती है। इस दौरान 23 अप्रैल को बाजीराव को पहली बार ग्रीष्माघात यानी लू लग गई, तब लक्षण हल्के थे। 26 अप्रैल को बुखार इतना बढ़ गया कि बाजीराव बेसुध हो गए। रविवार यानी 28 अप्रैल 1740 को उनकी मृत्यु हो गई। उसी दिन नर्मदा नदी के तट पर रावेरखेड़ी में उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।

अमेरिकी इतिहासकार बर्नार्ड माण्टोगोमेरी ने बाजीराव पेशवा को ‘भारत के इतिहास का सबसे महानतम सेनापति’ कहा है। उन्होंने विशेष रूप से बाजीराव प्रथम की पालखेड़ युद्ध में निज़ाम को हराने की क्षमता की प्रशंसा भी की है। इतिहासकार वी.एस. स्मिथ ने बाजीराव पेशवा की युद्ध कला और रणनीतिक कौशल को देखते हुए उन्हें “भारत का नेपोलियन” कहा था। जबकि क्या स्मिथ को यह ज्ञात नहीं कि बाजीराव का जन्म 1700 ई. में हुआ और निधन 28 अप्रैल 1740 ई. में हो गया। और नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म 1769ई. में हुआ। इस मायने से तो नेपोलियन ने बाजीराव के शौर्य का अनुसरण किया होगा और इस कारण से तो नेपोलियन को विश्व का बाजीराव कहा जाना चाहिए।

बालाजी बाजीराव ने राणोजी शिंदे को स्मारक के रूप में एक छतरी बनाने का आदेश दिया। स्मारक एक धर्मशाला से घिरा हुआ है। परिसर में दो मंदिर हैं, जो नीलकंठेश्वर महादेव (शिव) और रामेश्वर (राम) को समर्पित हैं। यह स्मारक बाजीराव के सबसे वफ़ादार सरदार माने जाने वाले ग्वालियर के शिंदे यानी सिंधिया ने रावेरखेड़ी में उनकी समाधि बनवाई। श्रीमन्त पेशवा बाजीराव बल्लाळ भट्ट को ‘बाजीराव बल्लाळ’ तथा ‘थोरले बाजीराव’ के नाम से भी जाना जाता है।

इतिहास और प्राकृतिक आह्लाद से परिपूर्ण रावेरखेड़ी निमाड़ में इंदौर से लगभग 106 किमी दूर है। ओंकारेश्वर-सनावद से क़रीब 27 किमी दूर रावेर गाँव से पास 5 किमी दूर खेड़ी गाँव आता है। मध्यप्रदेश के दक्षिणी पश्चिमी हिस्से में बसे निमाड़ अंचल के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के दक्षिण तट पर यह बसा है। यह सिद्धक्षेत्र ओंकारेश्वर से पश्चिम में 40 किलोमीटर एवं महेश्वर से पूर्व में 45 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है। मुख्य नर्मदा परिक्रमा मार्ग पर होने एवं पेशवा बाजीराव प्रथम की समाधि स्थल के कारण देश भर में प्रसिद्ध है।

इस छोटे से गाँव में एक परकोटा बना है, जिसके बीचो-बीच एक छोटी-सी समाधि बनी हुई है। बलुआ पत्थर से बनी इस समाधि और परकोटे की बनावट सादगीपूर्ण है और इसके पास बहने वाली नर्मदा नदी इसकी ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देती है। यूँ तो इसका ज़्यादातर हिस्सा पूरी तरह से छिन्न-भिन्न हो चुका है लेकिन जितना भी भाग बचा है, वह इसकी ख़ूबसूरती, भव्यता और मज़बूती की दास्तां सुनाता है। इस समाधि स्थल के पास ही नर्मदा नदी बहती है, जो बरसात में और भी ख़ूबसूरत नज़र आती है।

रावेरखेड़ी में स्थित यह समाधि शांत वातावरण में है, नर्मदा का सहज भाव में बहना इसके शांतिपूर्ण और राजसी माहौल को और भी बढ़ा देता है। समाधि की वास्तुकला मराठा और मुग़ल शैलियों का एक शानदार मिश्रण है, जो इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। रावेर गाँव में एक विशाल प्रवेश द्वार मिलेगा, जो जटिल नक़्क़ाशीदार आकृतियों और रूपांकनों से सुसज्जित है। प्रवेश द्वार एक विशाल प्रांगण की ओर जाता है, जिसमें सुंदर ढंग से बनाए गए बग़ीचे हैं, जो शांत एवं सुखद वातावरण की अनुभूति करवाते हैं।

वर्तमान में समाधि स्थल पर एक बग़ीचा भी तैयार करवाया गया है। वैसे इस गाँव के पास में ही बेड़िया मंडी, डूडगाँव इत्यादि गाँव हैं, जो कृषि उपज, मंडी क्षेत्र के लिए पूरे निमाड़ में प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में देखभाल के अभाव में समाधि स्थल के आस-पास बिखरे कचरे के ढेर और अंदर से जीर्ण-शीर्ण होती इमारत एक भय को पैदा करने वाली रही कि भविष्य में शौर्य सम्राट के वृहद् इतिहास को आने वाली पीढ़ी कैसे जानेगी! समाधि स्थल पर लगे बोर्ड केवल बाजीराव के रावेरखेड़ी में रुकने और निधन की गाथा को बताते है किन्तु बाजीराव के शौर्य की दास्तां वह भी नहीं कह पाते।

मध्यप्रदेश सरकार चाहे तो समाधि स्थल पर शिलालेखों के माध्यम से अथवा पुस्तकालय के माध्यम से पेशवा बाजीराव प्रथम के जीवन वृत की प्रदर्शनी भी बनवा सकती है और आने वाले पर्यटकों की सुविधा के लिए भी कार्य कर सकती है। एक अच्छे ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के रूप में रावेरखेड़ी को तैयार किया जा सकता है।

बाजीराव पेशवा की समाधि स्थल रावेरखेड़ी में अन्य महत्त्वपूर्ण स्थान

1. समाधि स्थल

2. अंत्येष्टि ओटला (जहाँ पेशवा बाजीराव की अंत्येष्टि की गई)

3. सराय (धर्मशाला)

4. रामेश्वरम मंदिर (बाजीराव द्वारा स्थापित शिवलिंग, जिसकी पूजा बाजीराव ने सपत्नी की)

5. वृंदा द्वार

पेशवा बाजीराव प्रथम की समाधि

अफ़गान के शासक नादिरशाह ने 1739 में दिल्ली पर आक्रमण किया और लूट पाट मचाना शुरू कर दिया, इसके बाद मुग़ल बादशाह को तख़्त से हटाकर ख़ुद उस पर क़ाबिज़ हो गया। जब इस बात की ख़बर पेशवा के पास पुणे पहुँची तो पेशवा बाजीराव ने 1 लाख सैनिकों के साथ पुणे से दिल्ली की ओर युद्ध के लिए कूच किया, जब पेशवा बाजीराव अपनी सैनिक छावनी सहित रावेरखेड़ी में 20 अप्रैल 1740 के लगभग पहुँचे। उन्होंने विश्राम किया, नर्मदा स्नान के और निमाड़ की भीषण गर्मी के कारण पेशवा बाजीराव को लू लग गई एवं तेज़ दिमाग़ी बुखार आने के कारण 28 अप्रैल 1740 को सैनिक छावनी रावेरखेडी में ही पेशवा बाजीराव का निधन हो गया।

पेशवा के ख़ास, मराठा सूबेदार राणो जी शिंदे ग्वालियर ने, अपने पेशवा की स्मृति में इस समाधि का निर्माण कराया था। समाधि सराय के मध्य में बनी हुई है, जो चार तल में निर्मित है। नीचे का भाग आयताकार, उसके ऊपर अष्टकोण एवं उसके ऊपर षटकोण आकार में पूर्ण रूप से पत्थर की बनी है, जिसके ऊपर शिवलिंग की स्थापना की गई है। समाधि पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। समाधि के पत्थरों को तराश कर फूल जाली एवं नक़्क़ाशी से सुशोभित किया गया है। इतिहासकारों का मानना है कि पेशवा के अस्थि कलश रखकर समाधि का निर्माण कराया गया है। इसे 18 अप्रैल 1930 को भारतीय  पुरातत्व सर्वेक्षण रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया था।

अंत्येष्टि ओटला

28 अप्रैल 1740 को बाजीराव पेशवा के जीवन की अंतिम यात्रा  जिस स्थान पर पहुँची, उस अंत्येष्टि स्थान से ही बाजीराव की देह पंचतत्व में विलीन हो गई, यह चबूतरा अंत्येष्टि स्थल के नाम से जाना जाता है, जो खेड़ी ग्राम में ही नर्मदा तट पर बना हुआ है। समाधि के झरोखों से उत्तर दिशा में नर्मदा के बीच में पत्थर का ओटला दिखाई देता है, जिस पर शिवलिंग स्थापित है। इतिहासकारों का यह मानना है कि इसी स्थान पर पेशवा बाजीराव का अंतिम क्रियाकर्म किया गया था। कुछ लोगों का मानना है कि यह बाजीराव के घोड़े की समाधि है किन्तु किसी घोड़े की समाधि पर शिवलिंग की स्थापना सहज स्वीकार नहीं होता क्योंकि मराठा साम्राज्य के जिन योद्धाओं की समाधियाँ बनी हैं, उन योद्धाओं की प्रत्येक समाधि पर शिवलिंग स्थापित है, जिसकी पूजा नहीं होती। ऐसे में घोड़े की समाधि गले नहीं उतरती।

सराय (धर्मशाला)

सराय का अर्थ धर्मशाला होता है। बाजीराव पेशवा प्रथम की समाधि सराय के मध्य में बनी हुई है। चारों ओर धर्मशालानुमा स्थान पर यात्रियों के लिए रहने का खुला स्थान है। सराय और समाधि के पत्थरों को तराशकर नक़्क़ाशीदार खिड़कियाँ बनाई हैं, जिससे रहने वाले लोग नर्मदा दर्शन कर सकें।

रामेश्वरम मन्दिर

पेशवा की समाधि की पूर्व दिशा में एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है। इतिहासकार बताते हैं कि पेशवा बाजीराव ने पत्नी काशीबाई के कहने पर 1731 में इस मंदिर का निर्माण कराया था, जिसमें पेशवा बाजीराव सपत्नी पूजा-पाठ करते थे। दस्तावेज़ों के अनुसार बाजीराव के जीवन के अंतिम दिनों में बाजीराव के स्वास्थ्य और जीवन की अनुकूलता के लिए लाखों महामृत्युंजय महामंत्र के जाप इसी मंदिर में कराए गए थे। वर्तमान में मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इसके संरक्षण की आवश्यकता है। शिवरात्रि के पर्व पर विशेष दर्शन के लिए क्षेत्र के श्रद्धालु आते हैं।

‘वृन्दा द्वार’ या ‘चुंगी नाका’

रावेरखेड़ी ग्राम में प्रवेश करते वक्त एक नाका मिलता है। इतिहासकारों द्वारा इस स्मारक को चुंगी नाका, कचहरी के नाम से उल्लेखित किया गया है। वहीं पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार इसे वृन्दा द्वार कहा जाता है जो कि 18 जनवरी 1930 से पुरातत्व विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज है। इस स्थान पर एक तुलसी का पौधा होने से इसे वृन्दा द्वार कहा जाता है। मालवा प्रांत पेशवा के सूबेदार के अधीन होने के कारण जो लोग नर्मदा पार कर मालगुज़ारी करते थे, उन्हें इस स्थान पर ‘कर’ देना होता था। उस काल में वृन्दा द्वार पर कुछ सैनिक स्थाई रूप से इसमें निवास करते थे। यहाँ रसोईघर और कुछ कमरे बने हुए थे। आज यह स्थान खंडहर में बदल चुका है, केवल द्वार शेष रह गया है।

डॉअर्पण जैन ‘अविचल