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जल की बूंद-बूंद पर संकट: नीतियों के बावजूद क्यों प्यासी है भारत की धरती?  

  भारत दुनिया की 18% आबादी और मात्र 4% ताजे जल संसाधनों के साथ गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। भूजल का अत्यधिक दोहन, प्रदूषण, असंतुलित खेती, और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख कारण हैं। सरकारी योजनाओं और नीतियों के बावजूद कार्यान्वयन और जनभागीदारी की कमी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाना, सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा देना, जल की कीमत तय करना, और पुनर्चक्रण को अनिवार्य बनाना समय की मांग है। जब तक नीति, व्यवहार और चेतना एकसाथ नहीं बदलते, तब तक जल संकट भारत के भविष्य को चुनौती देता रहेगा।  

-डॉ. सत्यवान सौरभ

भारत की धरती पर जल का संकट एक ऐसी विडंबना बन चुका है, जिसे देखकर हैरानी होती है कि इतनी योजनाओं, घोषणाओं और नीतियों के बावजूद यह देश बूंद-बूंद के लिए क्यों तरस रहा है। जब कोई देश दुनिया की 18% जनसंख्या को समेटे हुए हो और उसके पास केवल 4% ताजे जल संसाधन हों, तो संकट की आशंका तो बनती है, पर यदि यही देश दशकों से जल संरक्षण और जल प्रबंधन की योजनाओं का ढोल पीटता हो और फिर भी सूखा, प्यास, और जलजनित बीमारियाँ उसके हिस्से में आएं — तो यह केवल प्राकृतिक संकट नहीं, यह नीति, प्रशासन और नागरिक चेतना की सामूहिक असफलता है।

भारत में पानी की स्थिति को अगर आंकड़ों की भाषा में समझें, तो भयावहता साफ़ दिखाई देती है। नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता है — लगभग 25% भूजल अकेले भारत निकालता है। 11% से अधिक भूजल खंड ‘अत्यधिक दोहित’ यानी over-exploited की स्थिति में हैं। दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे 21 प्रमुख शहरों के 2030 तक भूजल समाप्त होने की चेतावनी दी जा चुकी है। वहीं दूसरी ओर, 70% जल स्रोत प्रदूषित हैं। फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट और भारी धातुओं से दूषित यह जल 23 करोड़ से अधिक लोगों को प्रभावित कर रहा है। हर साल लगभग 2 लाख मौतें सिर्फ जलजनित बीमारियों से होती हैं — यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, यह हमारी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है।

पानी का यह संकट केवल ग्रामीण इलाकों या गरीबों तक सीमित नहीं है। 2019 में जब चेन्नई जैसे आधुनिक शहर को “Day Zero” का सामना करना पड़ा और जल ट्रेनें चलानी पड़ीं, तब यह साफ हो गया कि यह समस्या अब दरवाज़े पर नहीं, घर के भीतर आ चुकी है। और फिर भी हम इसे मौसमी समस्या मानकर हर बार भूल जाते हैं।

सवाल यह है कि नीतियाँ तो बनीं — राष्ट्रीय जल नीति (2012), जल जीवन मिशन, अटल भूजल योजना, नमामि गंगे, जल शक्ति अभियान — पर फिर भी पानी का स्तर क्यों गिरता जा रहा है? जवाब सरल है — हमारी नीतियाँ ज़मीन पर नहीं उतरतीं, और हमारे व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आता।

आज भी देश के अधिकांश किसान पानी की फिजूलखर्ची करने वाली फसलों की खेती करते हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे जल-संकटग्रस्त राज्य में धान और गन्ने की खेती केवल इसलिए होती है क्योंकि सरकार MSP और मुफ्त बिजली देती है। नतीजा — भूजल का तेज़ी से दोहन, खेतों का क्षरण, और जल स्रोतों का खत्म हो जाना। दूसरी ओर, ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकलर जैसे आधुनिक जल संरक्षण उपायों की पहुंच केवल 9% खेतों तक ही सीमित है। किसान जानते हैं, पर अपनाते नहीं — क्योंकि नीति और व्यवहार में दूरी है।

शहरों की बात करें तो पाइपलाइन से लेकर टंकी तक, हर जगह लीकेज और बर्बादी का आलम है। स्मार्ट मीटरिंग अभी भी अधिकांश नगरपालिकाओं के लिए नया शब्द है। पुनः उपयोग (recycling) और वर्षा जल संचयन (rainwater harvesting) जैसे उपाय कहीं-कहीं दिखते हैं, लेकिन सामूहिक रूप से अपनाए नहीं जाते।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि जल संकट को अब भी केवल ‘प्राकृतिक समस्या’ समझा जाता है। जबकि यह एक स्पष्ट रूप से ‘नीतिगत और नैतिक’ संकट है। जब तक यह दृष्टिकोण नहीं बदलेगा, तब तक कोई भी योजना सफल नहीं होगी।

अब समय आ गया है कि भारत पानी को “मुफ्त संसाधन” मानना बंद करे और उसे “जीवन मूल्य” की तरह देखे। इसके लिए कुछ गहन और ठोस सुधारों की आवश्यकता है। सबसे पहले, पानी की कीमत तय होनी चाहिए — चाहे वह पीने का हो, या सिंचाई का। मुफ्त पानी की संस्कृति ने उपभोग को बर्बादी में बदल दिया है। जल का मूल्य निर्धारण सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय विवेक के बीच संतुलन साध सकता है।

दूसरा, सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों को केवल योजना पत्रों से निकालकर ज़मीनी हकीकत बनाना होगा। इसके लिए तकनीकी प्रशिक्षण, सस्ती उपलब्धता, और स्थानीय स्तर पर सहायता तंत्र बनाना होगा। तीसरा, भूजल का प्रबंधन केवल सरकार का नहीं, ग्राम पंचायतों और स्थानीय समुदायों का भी कर्तव्य होना चाहिए। अटल भूजल योजना को इस दिशा में सफल मॉडल के रूप में बढ़ाया जा सकता है।

चौथा, किसानों को केवल फसल बीमा या सब्सिडी नहीं, जल आधारित फसल मार्गदर्शन की ज़रूरत है। यह तभी होगा जब MSP का ढांचा जल संरक्षण के अनुकूल फसलों को बढ़ावा देगा। देश को ऐसे नीतिगत हस्तक्षेपों की ज़रूरत है जो किसान की आय भी बढ़ाएं और पानी की बचत भी करें।

पाँचवां, शहरों में जल पुनर्चक्रण अनिवार्य किया जाए। जो नगर पालिकाएं wastewater को recycle नहीं करतीं, उन्हें दंड और प्रोत्साहन दोनों के माध्यम से बदला जाए। बड़े भवनों में वर्षा जल संचयन अनिवार्य हो, और इसके अनुपालन की निगरानी की जाए।

छठा, बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम में जल संरक्षण को केवल पर्यावरण अध्याय के रूप में न पढ़ाया जाए, बल्कि व्यवहार परिवर्तन के रूप में सिखाया जाए। यदि अगली पीढ़ी जल को ‘कीमती’ माने, तो आज की प्यास भविष्य की सूखी धरती को बचा सकती है।

सातवां, जल संरक्षण को ‘जन आंदोलन’ बनाना होगा — जैसा प्रधानमंत्री ने आह्वान किया था। लेकिन यह आह्वान केवल भाषणों में नहीं, बजट और प्रशासनिक प्रतिबद्धता में दिखना चाहिए। जल शक्ति मंत्रालय को केवल नल जोड़ने वाला मंत्रालय नहीं, जल नीति, जल शिक्षा और जल चेतना का नेतृत्व करना होगा।

साथ ही, निजी क्षेत्र की भूमिका को भी समझना और बढ़ाना होगा। जल एटीएम, पाइपलाइन प्रबंधन, स्मार्ट मीटरिंग, और जल पुनर्चक्रण जैसी सेवाओं में PPP मॉडल को बढ़ावा देकर न केवल निवेश लाया जा सकता है, बल्कि तकनीकी नवाचार भी हो सकते हैं।

और सबसे महत्वपूर्ण — हमें यह समझना होगा कि जल संकट केवल वैज्ञानिकों और नौकरशाहों का विषय नहीं है। यह आम नागरिक का संकट है। हर घर, हर हाथ को यह जिम्मेदारी लेनी होगी कि पानी को बर्बाद नहीं किया जाएगा, और हर बूंद का सम्मान होगा।

जलवायु परिवर्तन के इस युग में, जब बारिश की मात्रा अनिश्चित हो गई है, और हिमालयी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं — हमें जल को ‘अनंत’ नहीं, बल्कि ‘सीमित और नाजुक’ संसाधन मानना होगा। भारत की सांस्कृतिक परंपरा में जल को देवता का दर्जा मिला है — लेकिन विडंबना यह है कि आज वही जल नदियों में मल-मूत्र के रूप में बह रहा है, या गंदे नालों से होकर भूजल में जहर घोल रहा है।

इसलिए आज का भारत केवल ‘जल संकट’ नहीं झेल रहा, बल्कि वह अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है। जल संकट में डूबा भारत, विकास के हर मोर्चे पर कमजोर पड़ता जाएगा — चाहे वह स्वास्थ्य हो, कृषि, उद्योग या सामाजिक समरसता।

अंततः यही कहा जा सकता है कि जल संकट केवल पानी की समस्या नहीं है — यह व्यवस्था, संस्कृति, शिक्षा और नीयत की भी परीक्षा है। यदि हमने अब भी नहीं संभला, तो इतिहास गवाह रहेगा कि हमने एक ऐसे संसाधन को खो दिया, जो जीवन का मूल था, और जिसकी एक-एक बूंद सोने से भी महंगी थी।

अब वक्त आ गया है — नीतियों की बौछार से बाहर निकलकर बूंद-बूंद बचाने के व्यवहारिक आंदोलन को अपनाने का। क्योंकि आने वाले वर्षों में ‘जल’ ही ‘राजनीति’, ‘आर्थिक ताकत’ और ‘सामाजिक न्याय’ का सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है।

भारत की आर्थिक प्रगति में अब तो ईश्वर भी सहयोग कर रहा है

कुछ दिनों पूर्व भारत में दो विशेष घटनाएं हुईं, परंतु देश के मीडिया में उनका पर्याप्त वर्णन होता हुआ दिखाई नहीं दिया है। प्रथम, भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षेत्र में कच्चे तेल के अपार भंडार होने का पता लगा है, कहा जा रहा है कि कच्चे तेल का यह भंडार इतनी भारी मात्रा में है कि भारत, कच्चे तेल सम्बंधी, न केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाएगा बल्कि कच्चे तेल का निर्यात करने की स्थिति में भी आ जाएगा। यदि भारत को कच्चे तेल की उपलब्धि पर्याप्त मात्रा में हो जाती है तो इसका प्रसंस्करण कर, डीजल एवं पेट्रोल के रूप में, पूरी दुनिया की खपत को पूरा करने की क्षमता को भी भारत विकसित कर सकता है। भारत में विश्व की सबसे बड़ी रिफाइनरी गुजरात के जामनगर में पूर्व में ही स्थापित है। अतः कच्चे तेल के साथ साथ डीजल एवं पेट्रोल का भी भारत सबसे बड़ा निर्यातक देश बन सकता है। जैसा कि दावा किया जा रहा है, यदि यह दावा सच्चाई के धरातल पर खरा उतरता है तो आगे आने वाले समय में भारत का विश्व में पुनः “सोने की चिड़िया” बनना लगभग तय है। भारत आज पूरे विश्व में कच्चे तेल का चीन एवं अमेरिका के बाद सबसे बड़ा आयातक देश है और विदेशी व्यापार के अंतर्गत भी कच्चे तेल के आयात पर ही सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है। कच्चे तेल का उत्पादन यदि भारत में ही होने लगता है तो न केवल इसके आयात पर होने वाले भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा के खर्च को बचाया जा सकेगा बल्कि पेट्रोल एवं डीजल के निर्यात से विदेशी मुद्रा का भारी मात्रा में अर्जन भी किया जा सकेगा। जिसके कारण, भारत में विदेशी मुद्रा के भंडार में अतुलनीय बचत एवं संचय होता हुआ दिखाई देगा और इस प्रकार भारत विश्व में विदेशी मुद्रा का सबसे बड़ा संचयक देश बन सकता है। 

वर्तमान में भारत कच्चे तेल की अपनी कुल आवश्यकता का 85 प्रतिशत से अधिक हिस्सा लगभग 42 देशों से प्रतिवर्ष आयात करता है। भारत कच्चे तेल की अपनी कुल खरीद का 46 प्रतिशत हिस्सा पश्चिम एशिया के देशों से आयात करता है। वर्तमान में भारत द्वारा कच्चे तेल एवं गैस के आयात पर 10,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि खर्च प्रतिवर्ष किया जा रहा है।

भारत सरकार के पेट्रोलीयम मंत्री श्री हरदीपसिंह जी पुरी ने जानकारी प्रदान की है कि अंडमान एवं निकोबार के समुद्री क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस का बहुत बड़ा भंडार मिला है। एक अनुमान के अनुसार यह भंडार 12 अरब बैरल (2 लाख करोड़ लीटर) का हो सकता है जो हाल ही में गुयाना में मिले कच्चे तेल के भंडार जितना ही बड़ा है। गुयाना में 11.6 अरब बैरल कच्चे तेल एवं गैस के भंडार पाए गए है। इस भंडार के बाद गुयाना कच्चे तेल के उत्पादन के मामले में विश्व में शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है जबकि अभी ग़ुयाना का विश्व में 17वां स्थान है।  

वर्ष 1947 में प्राप्त हुई राजनैतिक स्वतंत्रता के बाद के लगभग 70 वर्षों तक भारत की समुद्री सीमा की  क्षमता का उपयोग करने का गम्भीर प्रयास किया ही नहीं गया था। हाल ही में भारत सरकार द्वारा इस संदर्भ में किए गए प्रयास सफल होते हुए दिखाई दे रहे हैं। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के समुद्री क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस के भारी मात्रा में जो भंडार मिले हैं उनका अन्वेषण का कार्य समाप्त हो चुका है एवं अब ड्रिलिंग का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। ड्रिलिंग का कार्य समाप्त होने के बाद कच्चे तेल एवं गैस के भंडारण का सही आंकलन पूर्ण कर लिया जाएगा। अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में आधारभूत संरचना का विकास भी बहुत तेज गति से किया जा रहा है। इंडोनेशिया के सुमात्रा क्षेत्र के समुद्रीय इलाकों से भी भारी मात्रा में कच्चा तेल निकाला जा रहा है तथा भारत का अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह भी इंडोनेशिया से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इसके कारण यह आंकलन किया जा रहा है कि अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के समुद्रीय क्षेत्र में भी कच्चे तेल एवं गैस के अपार भंडार मौजूद हो सकते है। हर्ष का विषय यह भी है कि इस क्षेत्र में कच्चे तेल एवं गैस के साथ साथ अन्य दुर्लभ भौतिक खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल/मेटल) के भारी मात्रा में मिलने की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही है। भारी मात्रा में मिलने जा रहे कच्चे तेल के चलते भारत अपनी परिष्करण क्षमता को बढ़ाने पर विचार कर रहा है। चूंकि चीन ने कुछ दुर्लभ भौतिक खनिज पदार्थों का भारत को निर्यात करना बंद कर दिया है अतः भारत के अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में इन पदार्थों का मिलना भारत के लिए बहुत बड़ी खुशखबर है। पूर्व में भी भारत में कच्चे तेल एवं गैस के भंडार का पता चला था, जैसे बॉम्बे हाई, काकीनाड़ा, बलिया एवं समस्तिपुर, आदि। इन समस्त स्थानों पर कच्चे तेल को निकालने के संबंच में आवश्यक कार्य प्रारम्भ हो चुका है। दरअसल, इस कार्य में पूंजीगत खर्च बहुत अधिक मात्रा में होता है। जापान, रूस एवं अमेरिका से तकनीकी सहायता प्राप्त करने के लिए इन देशों की बड़ी कम्पनियों के साथ करार करने के प्रयास भी भारत सरकार द्वारा किए जा रहे हैं। भारत का समुद्रीय क्षेत्र 5 लाख किलोमीटर का है। इसी प्रकार, पश्चिम बंगाल के समुद्रीय इलाके में भी खोज जारी है एवं इस क्षेत्र में भी कच्चे तेल एवं गैस के भंडार मिलने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। अंडमान एवं निकोबार क्षेत्र में कच्चे तेल का उत्पादन प्रारम्भ होने के पश्चात आगामी लगभग 70 वर्षों तक भारत को कच्चे तेल के आयात की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। 

द्वितीय शुभ समाचार यह प्राप्त हुआ है कि भारत के कर्नाटक राज्य में कोलार क्षेत्र में स्थित अपनी सोने की खदानों में भारत एक बार पुनः खनन की प्रक्रिया को प्रारम्भ करने के सम्बंध में विचार कर रहा है। कोलार गोल्ड फील्ड (KGF) को वर्ष 2001 में खनन की दृष्टि से बंद कर दिया गया था। परंतु, अब 25 वर्ष पश्चात स्वर्ण की इन खदानों में खनन की प्रक्रिया को पुनः प्रारम्भ किए जाने के प्रयास किए जा रहे है। इस संदर्भ में कर्नाटक सरकार ने भी अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। आज पूरे विश्व में सोने की कीमतें आसमान छूते हुए दिखाई दे रही है और विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार में वृद्धि करते हुए दिखाई दे रहे हैं क्योंकि अमेरिकी डॉलर पर इन देशों का विश्वास कुछ कम होता जा रहा है। बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में अमेरिकी डॉलर के बाद एक बार पुनः स्वर्ण मुद्राएं ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले व्यापार के भुगतान का माध्यम बनें। ऐसे समय में भारत के कोलार क्षेत्र में स्थित स्वर्ण की खदानों में एक बार पुनः खनन की प्रक्रिया को प्रारम्भ करना एक अति महत्वपूर्ण निर्णय कहा जा सकता है। कोलार स्थित स्वर्ण की इन खदानों में 750 किलोग्राम स्वर्ण की प्राप्ति की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। प्राचीन काल में कोलार गोल्ड फील्ड को गोल्डन सिटी आफ इंडिया कहा जाता था। 

प्राचीन काल में में भारत को “सोने की चिड़िया” कहा जाता था। एक अनुमान के अनुसार, भारतीय महिलाओं के पास 25,000 से 26,000 टन स्वर्ण का भंडार है। यह भी कहा जा रहा है कि भारत की महिलाओं के पास स्वर्ण का जितना भंडार है लगभग उतना ही भंडार पूरे विश्व में अन्य देशों के पास है। अर्थात, पूरे विश्व में उपलब्ध स्वर्ण का आधा भाग भारतीय महिलाओं के पास आज भी उपलब्ध है। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में स्थापित अपनी सत्ता के खंडकाल के दौरान लगभग 900 टन स्वर्ण, कोलार की खदानों से निकालकर, ब्रिटेन लेकर जाया गया था। भारत की केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक, के पास आज 880 टन स्वर्ण के भंडार हैं, जो कि भारत के 69,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर के विदेशी मुद्रा भंडार का 12 प्रतिशत हिस्सा है। हाल ही के समय में विदेशी निवेशकों का भारत पर विश्वास बढ़ा है अतः भारत का स्वर्णिम काल पुनः प्रारम्भ हो रहा है। विश्व के विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों के पास आज 36,000 टन स्वर्ण का भंडार हैं, जबकि इनमे से कई देशों के केंद्रीय बैंक अभी भी स्वर्ण की खरीदी करते जा रहे हैं। स्वर्ण भंडार की दृष्टि से भारत का आज विश्व में 8वां स्थान है। चीन एवं रूस स्वर्ण के सबसे बड़े उत्पादक देश हैं फिर भी ये दोनों देश स्वर्ण का आयात भी जारी रखे हुए हैं। लगातार, पिछले 3 वर्षों से विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक लगभग 1,000 टन स्वर्ण की खरीद प्रतिवर्ष कर रहे हैं। स्वर्ण की खरीदी का यह कार्य रुकने वाला नहीं है आगे भी ऐसे ही चलता रहेगा। अतः भारत सरकार द्वारा भी कोलार गोल्ड फील्ड में स्वर्ण के खनन का कार्य प्रारम्भ किया जा रहा है। स्वर्ण के भंडार बढ़ने के साथ भारत, रुपए का अंतरराष्ट्रीयकरण कर सकता है। साथ ही, स्वर्ण के भंडार बढ़ने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत भी बढ़ती जाएगी। 

कुल मिलाकर, अब यह कहा जा सकता है कि ईश्वरीय कृपा से एवं उक्त कारणों के चलते भारत को विश्व में एक बार पुनः “सोने की चिड़िया” बनाया जा सकता है।

प्रहलाद सबनानी 

आतंकवाद पर चीन और पाकिस्तान के दोहरे पैमाने

प्रमोद भार्गव

     आतंकवाद के मसले पर चीन के किंगदाओ नगर में हुई शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में एक बार फिर चोर-चोर मौसेरे भाई चीन और पाकिस्तान ने भारतीय हितों के परिप्रेक्ष्य में दोगलापन दिखाया है। इस बैठक में सदस्य देशों के रक्षा मंत्री उपस्थित थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आतंकवाद के खात्मे के लिए किए जा रहे आवाहन ने वैश्विक स्तर पर ऐसा माहौल बनाने का काम किया है कि इस समस्या को जड़ से उखाड़ दिया जाए। लेकिन एससीओ की बैठक में जिस दस्तावेज को साझा हस्ताक्षर के लिए सामने लाया गया तब उसमें पहलगाम में हुए आतंकी हमले को शामिल नहीं किया गया। जबकि इस हमले में 26 भारतीय नागरिक आतंकवादियों ने मार दिए थे। इस दस्तावेज में बलूचिस्तान का नाम हैं। जबकि बलूचिस्तान के नागरिक पाकिस्तान के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे हैं। अर्थात इस दस्तावेज को पढ़ने के बाद भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कड़ा रुख अपनाते हुए इस पर दस्तखत करने से साफ इंकार कर दिया। इस संगठन पर चीन का प्रभाव है और चीन ही इस बार संगठन का अध्यक्ष देश है। भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले को न केवल पक्षपातपूर्ण माना, बल्कि इसे पाकिस्तान और उसके हितचिंतक चीन की हरकत माना। अतएव राजनाथ सिंह ने दस्तखत नहीं किए। इस संगठन के दस्तावेज की उपयोगता तभी है, जब बैठक में उपस्थित सभी सदस्य देश मुद्दों पर सहमत होकर हस्ताक्षर करने के साथ साझा बयान भी जारी करें। तब कहीं इस दस्तावेज पर सहमति बन पाती है।

        इस संगठन में 10 देश परस्पर जुड़े हितों को मजबूत करने के लिए षामिल हैं। इन देशों में भा र त, चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, बेलारूस और तजाकिस्तान शामिल हैं। 2001 में इस संगठन का गठन हुआ था। आरंभ में चीन और रूस समेत पांच देश इसमें शामिल थे। 2001 में उज्बेस्तिन, 2017 में भारत और पाकिसतान, 2022 में ईरान एवं 2024 में बेलारुस इस संगठन में भागीदार हुए। इन देशों की कुल जीडीपी में 30 फीसदी और दुनिया की आबादी में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यानी इस संगठन की इन देशों की अर्थव्यवस्था के लिए परस्पर भागीदारी जरूरी है। लेकिन जब राजनाथ सिंह ने दस्तावेज की इबारत को पक्षपात पूर्ण पाया तो उन्होंने खुले शब्दों में कहा, ‘भारत आतंकवाद पर दोहरे मापदंड मंजूर नहीं करेगा। आतंक को बढ़ावा देने वाले देशों की खुली निंदा होनी चाहिए। कुछ देशों ने सीमा पार आतंकवाद को न केवल अपनी नीति ही मान लिया है, बल्कि अपने देश में उन्हें संरक्षण भी देते हैं। बावजूद इस हकीकत को नकारते हैं। ऐसे दोहरे मापदंडों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। उन्हें अब समझना होगा कि आतंकवाद के अधिकेंद्र (एपीसेंटर) अब सुरक्षित नहीं रह गए हैं।‘ नए भारत के इस कड़े संदेश ने उपस्थित रक्षा मंत्रियों को हैरानी में डाल दिया। अतएव न तो कोई सहमति बन पाई और न ही संयुक्त बयान जारी हो पाया। इस परिणाम ने समूची दुनिया को संदेश दे दिया है कि अब भारत अपने हितों से समझौता करने के लिए कतई तैयार नहीं है।

     दरअसल भारत चाहता था कि एससीओ पहलगाम हमले की निदां करे और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर स्पश्ट रुख अपनाए। लेकिन चीन की एक बार फिर दगा की दोगली नीति सामने आ गई। एक सदस्य देश ने इस पहलगाम मुद्दे को दस्तावेज में शामिल करने से असहमति जता दी। वस्तुतः राजनाथ सिंह ने कड़ा रुख अपना लिया और दस्तखत नहीं किए। इस साझा बयान पर हस्ताक्षर नहीं करने का बड़ा कारण दस्तावेज न तो निष्पक्ष था और न ही इसमें कोई पारदर्शिता थी। यह भी साफ नहीं किया कि आखिर इस अभिलेख को किन देशों ने तैयार किया है। यह दस्तावेज आतंकवाद से जुड़े तथ्यों के विपरीत था। भारत के जम्मू-कश्मीर प्रांत में 22 अप्रैल को पहलगाम में सैलानियों पर बड़ा हमला हुआ था। इसमें 26 निर्दोश लोग मारे गए थे। आतंकियों द्वारा किया यह हमला मानवता के लिए क्रूरता का चरम था। इसलिए भारत ने इस आतंकी हमले को दस्तावेज में षामिल करने की मांग भी की थी। परंतु इस मांग को नमंजुर कर दिया गया। अध्यक्षता कर रहे चीन का यह रुख पाकिस्तान के प्रति उदारता जताता है, जो सर्वथा पक्षपातपूर्ण है। जबकि बलूचिस्तान की आतंकी गतिविधियों से जुड़ी जफर एक्सप्रेस की घटना इसमें दर्ज थी। इस संगठन का लक्ष्य षामिल देशों की सुरक्षा, आर्थिक और राजनीतिक सहयोग को बढ़ाने के साथ आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर आपराध जैसे मसलों पर सटीक रणनीति बनाकर उस पर संयुक्त पहल करना भी है। लेकिन जिस तरह से पहलगाम हमले को नजरअंदाज किया गया उससे साफ है कि अध्यक्ष देश की नियत साफ नहीं है।

     इस तरह का दोहरा चरित्र इसलिए खतरनाक है कि इसने क्षेत्रीय सहयोग से जुड़े मुद्दों पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया। जिसके चलते आतंकवाद की समस्या से निपटना जटिल होगा। क्योंकि पाकिस्तान भारत के विरुद्ध लगातार आतंकी खेल, खेलता हुआ खून की इबारतें लिख रहा है। इस सच्चाई को समूची दुनिया भलीभांति जानती है। क्योंकि भारत आतंक से पिछले ढाई दशक से निरंतर लड़ाई लड़ रहा है। स्वयं चीन ने बीजिंग में कुछ वर्श पहले हुए ब्रिक्स देशों के सम्मेलन के घोशणा पत्र में इस तथ्य को षामिल किया था कि कई बड़े आतंकवादी संगठन पाकिस्तान के सुरक्षित ठिकानों से अपनी गतिविधियां चलाते हैं। पहलगाम में किए निरंकुश हमले में भी पाकिस्तान से आए आतंकियों का हाथ था। बावजूद एससीओ की बैठक के संयुक्त बयान में पहलगाम को नजरअंज करना दोगलापन नहीं तो और क्या है ? एससीओ में आतंकवाद पर शिकंजा नहीं कसना इसलिए और चिंताजनक है, क्योंकि पाकिस्तान परमाणु षक्ति संपन्न देश है और वहां अनेक आतंकी संगठन सक्रिय हैं। इन संगठनों में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिद्दीन और जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख हैं। अमेरिका पर आतंकी हमला करने वाले ओसामा बिन लादेन को ही पाकिस्तान ने षरण दी थी। उसका अंत अमेरिकी वायुसेना ने पाकिस्तान में घुसकर किया था। संयुक्त राश्ट्र द्वारा जारी सूची में बताया है कि पाक में 136 आतंकवादियों के ठिकाने हैं और यहां 22 आतंकवादी हथियारबंद संगठनों को पाक सेना संरक्षण दे रही है। वाइदवे इन आतंकियों के हाथ परमाणु हथियार लग जाते हैं तो ये मानवता के विरुद्ध कैसी तबाही मचाएंगे, यह कहना अनुमान से परे है। अतएव राजनाथ सिंह ने अभिलेख पर दस्तखत न करके दुनिया को यह संदश दे दिया है कि भारत आतंक के विरुद्ध लड़ाई लड़ता रहेगा।

प्रमोद भार्गव

अंतरिक्ष की नई उड़ान: एक्सिओम-4 और भारत की वैश्विक पहचान

एक्सिओम-4 मिशन भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण है। वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल की सहभागिता से यह मिशन सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की उपस्थिति का प्रतीक बन गया है। अमेरिका की एक्सिओम-4 स्पेस और नासा के सहयोग से हुआ यह अभियान भारत को मानव अंतरिक्ष यात्रा के क्षेत्र में नई ऊंचाईयों पर ले गया है। वैज्ञानिक प्रयोगों, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर यह मिशन आने वाले गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की नींव मजबूत करता है।

-प्रियंका सौरभ

41 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद जब भारत का कोई प्रतिनिधि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) की ओर रवाना हुआ, तो यह महज़ एक मिशन नहीं था, बल्कि भारत के अंतरिक्ष विज्ञान, वैश्विक कूटनीति और वैज्ञानिक प्रतिष्ठा का पुनर्जन्म था।एक्सिओम-4 मिशन में भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ल की भागीदारी ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब अंतरिक्ष की दौड़ में सिर्फ एक सहभागी नहीं, बल्कि एक संभावित नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा जा रहा है।

इस मिशन के माध्यम से भारत ने एक साथ कई स्तरों पर उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। सबसे पहले, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बात करें तो भारत ने इस मिशन के तहत सात प्रमुख वैज्ञानिक प्रयोग अंतरिक्ष में भेजे। ये सभी प्रयोग सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण पर आधारित थे और इनका उद्देश्य जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझना था। मेथी और मूंग जैसे बीजों पर किया गया अध्ययन भारतीय कृषि तकनीकों की विशिष्टता को अंतरिक्ष तक ले गया। इससे यह प्रमाणित होता है कि भारत की पारंपरिक खेती भी वैज्ञानिक शोध के लिए प्रासंगिक और आधुनिक है।

इसके अतिरिक्त, सूक्ष्मजीवों, माइक्रोएल्गी और मांसपेशियों के पुनरुत्पादन पर आधारित प्रयोगों ने दीर्घकालिक अंतरिक्ष यात्रा में जीवन समर्थन प्रणालियों के विकास में भारत की उपयोगिता को सिद्ध किया। इससे स्पष्ट है कि भारत केवल अंतरिक्ष में मौजूदगी दर्ज कराने नहीं बल्कि उसमें नवाचार और अनुसंधान के स्तर पर योगदान देने आया है।

शुभांशु शुक्ल का स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन यान को सफलतापूर्वक डॉक करना और अंतरिक्ष में आपातकालीन स्थितियों का प्रशिक्षण प्राप्त करना, आने वाले गगनयान मिशन के लिए अमूल्य अनुभव है। यह भारत के पहले मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए एक मजबूत बुनियाद का कार्य करेगा।

एक्सिओम-4 ने यह भी दिखा दिया कि भारत अब व्यावसायिक अंतरिक्ष उड़ानों में भी प्रवेश कर चुका है। एक्सिओम-4 स्पेस और भारतीय स्टार्टअप स्काईरूट एयरोस्पेस के बीच हुआ समझौता दर्शाता है कि भारत अब केवल सरकारी संसाधनों पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि निजी क्षेत्र के सहयोग से सस्ते और नवीन समाधान विकसित करने की दिशा में अग्रसर है। यह भारतीय अंतरिक्ष नीति की आत्मनिर्भरता और स्टार्टअप संस्कृति की सफलता की कहानी है।

रणनीतिक दृष्टि से देखें तो एक्सिओम-4 भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते सहयोग का प्रतीक है, विशेषकर आईसीईटी और आर्टेमिस समझौते जैसी व्यवस्थाओं के अंतर्गत। भारत ने इस मिशन के ज़रिए न केवल अमेरिका बल्कि वैश्विक दक्षिण-उत्तर सहयोग की भावना को भी मज़बूती दी। इस मिशन में भारत के साथ पोलैंड और हंगरी जैसे देशों के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल थे। यह वैश्विक समावेशिता और साझेदारी का प्रतीक था।

यह मिशन भारत की “सॉफ्ट पावर” को भी बढ़ावा देता है। जब दुनिया के समाचार चैनलों पर भारत का नाम मानव अंतरिक्ष यात्रा के साथ जोड़ा गया, तो यह सिर्फ तकनीकी नहीं, कूटनीतिक जीत भी थी। भारत ने यह दिखा दिया कि वह केवल उपग्रह भेजने वाला देश नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में मानव भेजने और सहयोग करने वाला देश बन चुका है।

एक्सिओम-4 मिशन से भारत के निजी अंतरिक्ष स्टार्टअप्स को भी नया आत्मविश्वास मिला है। स्काईरूट और अग्निकुल कॉसमॉस जैसी कंपनियाँ अब वैश्विक सहयोग की दिशा में अपने कदम बढ़ा रही हैं। यह भारत के लिए निवेश, तकनीकी सहयोग और वैज्ञानिक नवाचार के नए द्वार खोलने वाला साबित हो सकता है।

इसके अतिरिक्त, इस मिशन ने भारत को गगनयान के लिए आवश्यक अनुभव प्रदान किया है। एक्सिओम-४ को विशेषज्ञों ने “बीमा नीति” की संज्ञा दी है, जिसका तात्पर्य है कि इस मिशन से भारत को उन जोखिमों को समझने और नियंत्रित करने का अवसर मिला जो गगनयान जैसे जटिल मिशनों में सामने आ सकते हैं। साथ ही, यह अनुभव भारत के भविष्य के अंतरिक्ष स्टेशन “भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन” के निर्माण की दिशा में भी सहायक होगा।

यह भी महत्वपूर्ण है कि शुभांशु शुक्ल को नासा में आठ महीने का कठोर प्रशिक्षण मिला, जिससे भारत को अब अंतरिक्ष यात्रियों की प्रशिक्षण क्षमता को लेकर एक नया मानक मिल गया है। भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को इसी स्तर पर प्रशिक्षित किया जा सकता है।

एक्सिओम-4 मिशन ने भारत को संयुक्त राष्ट्र के “संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति” जैसे वैश्विक मंचों पर अधिक प्रभावी आवाज़ प्रदान की है। जब कोई देश मानव अंतरिक्ष उड़ान करता है, तो वह न केवल विज्ञान में बल्कि वैश्विक नीति निर्माण में भी एक नई भूमिका निभाने लगता है।

इस पूरे अभियान ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत अब केवल प्रेक्षक नहीं, बल्कि भागीदार है। यह मिशन भारत के लिए एक ‘लिफ्ट-ऑफ मोमेंट’ साबित हुआ है — एक ऐसा क्षण जब एक राष्ट्र केवल तकनीकी क्षेत्र में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, रणनीति और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में भी उड़ान भरता है।

अब यह आवश्यक है कि भारत इस उपलब्धि को गगनयान जैसे आगामी मिशनों और अंतरिक्ष क्षेत्र में दीर्घकालिक रणनीतियों के साथ जोड़कर आगे बढ़े। नीति निर्माण से लेकर बजट आवंटन तक और अंतरिक्ष शिक्षा से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तक —एक्सिओम-4 जैसे मिशनों को भारत की दीर्घकालिक अंतरिक्ष रणनीति का हिस्सा बनाना होगा।

अंततः एक्सिओम-४ केवल एक उड़ान नहीं थी, यह भारत की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा, वैश्विक सहभागिता और भविष्य की अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की संभावनाओं की घोषणा थी। भारत अब अंतरिक्ष की दौड़ में पीछे नहीं, बल्कि अगली पंक्ति में खड़ा है।

-प्रियंका सौरभ

वैश्विक स्पेस एक्सप्लोरेश में बड़ा कदम है-मिशन एक्सिओम-4 

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत निरंतर अपने झंडे गाड़ रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित वाणिज्यिक मिशन एक्सिओम-4 के जरिये भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर पहुंचना भारत के ‘नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम’ के लिए संभावनाओं का एक नया द्वार है। कितनी बड़ी बात है कि शुभांशु दुनिया के 634वें अंतरिक्ष यात्री बनें हैं।सच तो यह है कि शुभांशु शुक्ला की यह उपलब्धि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए मील का पत्थर है। वास्तव में, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि भारत निरंतर अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी तकनीकी प्रगति, मेहनत और लगन का प्रमाण पूरे विश्व को दे रहा है और भारत ने विश्व के समक्ष यह साबित कर दिया है कि भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में धीरे- धीरे सिरमौर बनने के कगार पर है। सच तो यह है कि आने वाले समय में भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नई शक्ति बनकर उभरेगा जहां वह विश्व के अन्य देशों का नेतृत्व करता दिखेगा। पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में एक्सिओम-4 के जरिए भारत ने संपूर्ण विश्व को एक नया संदेश दिया है। गौरतलब है कि शुभांशु शुक्ला और चालक दल को लेकर एक्सिओम-4 मिशन 25 जून को कैनेडी स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।  गौरतलब है कि इस मिशन में एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट का उपयोग किया गया है। इसरो, निजी क्षेत्र और वैश्विक सहयोग के समन्वय से भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं को साबित करते हुए भारत को एक नई पहचान दिलाई है। गौरतलब है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारत के इसरो के बीच हुए समझौते के तहत भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इस मिशन के लिए चुना गया, जो अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो शुभांशु आइएसएस की यात्रा करने वाले पहले भारतीय है। पाठक जानते होंगे कि 41 साल पहले वर्ष 1984 में राकेश शर्मा ने तत्कालीन सोवियत संघ के यान(सोयूज) से अंतरिक्ष की यात्रा की थी। ग्रुप कैप्टन शुभांशु ने अंतरिक्ष से नमस्कार किया और इस प्रकार से उन्होंने नया इतिहास रच दिया।शुभ्रांशु अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन में कदम रखने वाले पहले भारतीय हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार अंतरिक्ष में 60 प्रयोग किए जाएंगे, जिनमें से 12 में कैप्टन शुभांशु शामिल होंगे, निश्चित ही यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। वैसे शुक्ला भारत द्वारा संचालित सात प्रयोग करेंगे, जिनमें बीज, शैवाल और सूक्ष्मगुरुत्व में मानव शरीरक्रिया विज्ञान पर कार्य शामिल है। गौरतलब है कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य साथियों को लेकर रवाना हुआ अंतरिक्ष यान(एक्सिओम-4) 28 घंटे के सफर के बाद 4.02 बजे आइएसएस से जुड़ा। डॉकिंग की प्रक्रिया 4.16 बजे तक पूरी हुई। आइएसएस का हैच खोलने की प्रक्रिया में पौने 2 घंटे लगे और गुरूवार 26 जून 2025 को 6 बजे चारों अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में पहुंच गए। मीडिया रिपोर्ट्स बतातीं हैं कि कैप्टन शुक्ला के साथ मिशन कमांडर पेगी व्हिटसन (अमरीका), मिशन विशेषज्ञ तिबोर कापू (हंगरी) और पोलैंड के स्लावोज उज्नानस्की विज्मिव्सकी भी आइएसएस पहुंचे हैं। इन चारों एस्ट्रोनॉट के स्पेस स्टेशन पर पहुंचते ही वहां मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों ने उनका गले लगाकर स्वागत किया और वेलकम ड्रिंक दिया। शुभांशु ने जब अंतरिक्ष से संदेश दिया कि-‘ बच्चे की तरह स्टेप लेना सीख रहा हूं…।’ उन्होंने अपने संदेश में कहा-‘ नमस्ते… फ्रॉम स्पेस ! मैं अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ यहां आकर बहुत उत्साहित हूं। सच कहूं तो, जब में कल लॉन्चपैड पर कैप्सूल में बैठा था। 30 दिन के क्वारंटाइन के बाद, मैं बस यही चाहता था कि अब चल पड़े। लेकिन जब यात्रा शुरू हुई, तो ऐसा लगा जैसे आपको सीट में पीछे धकेला जा रहा हो। यह एक अद्भुत राइड थी.. और फिर सब कुछ शांत हो गया। आपने बेल्ट खोली और आप वैक्यूम की शांति में तैर रहे थे।’ कहना ग़लत नहीं होगा कि उनका यह संदेश जानकर 140 करोड़ से अधिक देशवासियों की बांछें खिल उठी। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वे 14 दिनों तक अंतरिक्ष में रहेंगे, जैसा कि उन्होंने यह बात कही है कि , ‘अगले 14 दिन विज्ञान और अनुसंधान को आगे बढ़ाने में अद्भुत होंगे।’ बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि राकेश शर्मा के अलावा अभी तक भारतीय मूल के अंतरिक्ष यात्रियों की यदि हम बात करें तो इनमें कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स शामिल रहीं हैं। पाठकों को बताता चलूं कि कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय अमरीकी महिला (वर्ष 1997 और वर्ष 2003 में की अंतरिक्ष यात्रा) तथा सुनीता विलियम्स आइएसएस अभियान में हिस्सा लेने वाली भारतीय मूल की यात्री (वर्ष 2006, 2012 और वर्ष 2024 में यात्रा) रहीं हैं। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित इस चौथे मिशन में भारत की भागीदारी यह दर्शाती है कि भारत अब केवल लॉन्च वाहन या सैटेलाइट निर्माण तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियानों(इंटरनेशनल मेन्ड स्पेस मिशन्स) में सक्रिय भागीदार बनने की ओर भी बढ़ चुका है। पाठकों को बताता चलूं कि एक्सिओम-4 मिशन का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) पर वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन करना है। इसमें मानव स्वास्थ्य, माइक्रोग्रैविटी और जैविक प्रणालियों पर शोध, साथ ही जीवन के लिए जरूरी प्रणालियों का परीक्षण और मेडिकल स्टडी करना शामिल है। वास्तव में इस मिशन का उद्देश्य व्यवसाय और अनुसंधान के लिए प्लेटफॉर्म के रूप में कमर्शियल अंतरिक्ष स्टेशनों की व्यवहार्यता का प्रदर्शन करना भी है। इसके अलावा, एक्स-4 का उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है। जैसा कि ऊपर जानकारी दे चुका हूं कि इस मिशन में कई देशों के अंतरराष्ट्रीय क्रू मेंबर शामिल किया गया है। यह कमर्शियल और वैश्विक अंतरिक्ष(स्पेस) एक्सप्लोरेशन(अन्वेषण)में एक बड़ा कदम है। इससे कमर्शियल अंतरिक्ष मिशनों और साझेदारियों को बढ़ावा मिलेगा। वास्तव में, कैप्टन शुभांशु की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के गगनयान मिशन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो संभवतया: साल 2027 में भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष मिशन( ह्यूमन स्पेस मिशन) होगा। निश्चित ही इस मिशन से देश के युवाओं और वैज्ञानिकों को नवीन प्रेरणा और प्रोत्साहन मिल सकेगा। कहना ग़लत नहीं होगा कि पृथ्वी की कक्षा में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आइएसएस) में शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष प्रवास ऐसी रिसर्च स्टडीज से जुड़ा है, जो पूरी मानवता के लिए उपयोगी होंगे। वास्तव में इस मिशन से अंतरिक्ष स्टार्टअप परिदृश्य को नई ऊर्जा मिल सकेगी। भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में निरंतर उत्तरोत्तर विकास और प्रगति के आयामों को छू रहा है और भारत का अपने पहले प्रयास में ही मंगल ग्रह पर पहुंचना, एक ही मिशन में सौ से ज्यादा उपग्रहों को लॉन्च करना, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बनना, सूर्य के अध्ययन के लिए देश का पहला ऑब्जर्वेशन मिशन आदित्य एल-1में कामयाबी हासिल करना इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि पिछले दस सालों में करीब 400 उपग्रहों को लॉन्च करने के बाद भारत वर्ष 2035 तक अंतरिक्ष में अपने स्टेशन की स्थापना के साथ ही साथ वर्ष 2040 तक चंद्रमा पर अपना पहला अंतरिक्ष यात्री भेजने की योजना बना रहा है, यह भारत की अंतरिक्ष ऊंचाइयों को दिखाता है। इतना ही नहीं, इसरो के विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों और अंतरिक्ष क्षेत्र में निवेश से समाज और देश को अभूतपूर्व लाभ हुए हैं।नोवास्पेस की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2014 और 2024 के बीच भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र ने राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये 60 बिलियन अमरीकी डॉलर उत्पन्न किये हैं, 4.7 मिलियन रोज़गार उत्पन्न किये और कर राजस्व में 24 बिलियन अमरीकी डॉलर का योगदान दिया है। पाठकों को बताता चलूं कि इसरो विश्व की छठी सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसी है और इसके लॉन्च मिशनों की सफलता दर बहुत अधिक रही है, यह हमारे वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और प्रयासों का फल है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 2024 तक भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 6,700 करोड़ रुपए (8.4 बिलियन अमरीकी डॉलर) हो गया है, जो वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2%-3% का योगदान देता है, जिसके वर्ष 2025 तक 6% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि (सीएजीआर) के साथ 13 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। इतना ही नहीं, देश की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के अगले कुछ वर्षों में पांच गुना बढ़कर 44 अरब डॉलर तक पहुंचने के अनुमान हैं।अंत में यही कहूंगा कि वाणिज्यिक मिशन एक्सिओम-4 निश्चित ही भारत के अंतरिक्ष महाशक्ति बनने की दिशा में एक सशक्त, शानदार कदम है।

सुनील कुमार महला

टीएमसी नेताओं की निर्लज्ज टिप्पणियों से उठा विवाद

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ललित गर्ग

कोलकत्ता में कानून की एक छात्रा से सामूहिक दुराचार-गैंगरेप का मुद्दा एक बार फिर पश्चिम बंगाल में जितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनने लगा है उतना ही बड़ा नारी उत्पीड़न का मुद्दा बनकर उभर रहा है। इस मामले में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं की अनर्गल एवं निर्लज्ज टिप्पणी स्त्री की मर्यादा, सम्मान एवं अस्मिता के खिलाफ शर्मनाक, दुर्भाग्यपूर्ण व संवेदनहीन प्रतिक्रिया है। इन नेताओं ने गैंगरेप मामले पर विवादित बयान से राज्य एवं देश में भारी जनाक्रोश पैदा हो गया था। विशेषतः राजनेताओं के बयानों एवं सोच में एक बार फिर शर्मनाक ढंग से पीड़िता पर दोष मढ़ने की बेशर्म कोशिश की गई है। इस मामले में सत्तारूढ़ टीएमसी पार्टी अन्दर एवं बाहर दोनों मोर्चों पर घिरती हुई नजर आ रही है। जहां इस मामले में पार्टी के अन्दर गुटबाजी एक बार फिर सामने आयी है, वहीं भाजपा आक्रामक रूप से ममता सरकार को घेर रही है। टीएमसी की महिला नेत्री महुआ मोइत्रा टीएमसी नेताओं कल्याण बनर्जी और मदन मित्रा के उन बयानों पर निराशा व्यक्त करते हुए स्पष्ट किया है कि इन राजनेताओं के बयान में स्त्री-द्वेष पार्टी लाइन से परे है।
यह एक बदतर स्थिति है कि जिस पार्टी के नेताओं ने ये दुर्भाग्यपूर्ण बयान दिए हैं, उस पार्टी की सुप्रीमो एक महिला ही है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि ममता बनर्जी जैसी तेजतर्रार मुख्यमंत्री के शासन और नेतृत्व के वर्षों के दौरान टीएमसी के भीतर नारी सम्मान एवं अस्मिता को लेकर संवेदनशीलता लाने और मानसिकता में बदलाव लाने के प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं। अकसर महिलाएं और महिला राजनेता पुरुष नेताओं के हाथों अश्लील, अभद्र और तौहीन भरी टिप्पणओं की शिकार होती रही हैं। ऐसे बयानों के बावजूद अकसर ये राजनेता किसी कठोर कार्रवाई की बजाय हल्की फुल्की फ़टकार के बाद बच निकलते हैं। ये बयान कभी महिलाओं की बॉडी शेमिंग करते नज़र आते हैं तो कभी बलात्कार जैसे गंभीर अपराध को मामूली बताने की कोशिश करते हुए नजर आते हैं। इसके साथ ही ये चिन्ताजनक संदेश भी जाता है कि महिलाओं के बारे में हल्के और आपत्तिजनक बयान देना विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के लिये सामान्य बात है।
जब किसी देश की बेटियां न्याय का अध्ययन कर रही हों और वहीं उनके साथ अन्याय की पराकाष्ठा हो  तो यह केवल एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि पूरे समाज, व्यवस्था और सोच के लिए एक जघन्य आइना बन जाती है। प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना ने न केवल राजनीतिक सोच एवं कानून के मंदिरों को शर्मसार किया है, बल्कि हर संवेदनशील मन को झकझोर दिया है। पीड़िता एक लॉ कॉलेज में अध्ययनरत छात्रा थी, जो अपने उज्ज्वल भविष्य के सपनों के साथ शिक्षा के पथ पर अग्रसर थी। घटना की रात वह अपने कुछ परिचितों के साथ बाहर थी, जिनमें से ही कुछ ने उसकी अस्मिता को रौंद डाला। उसे नशा दिया गया और फिर सुनसान स्थान पर ले जाकर कई लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए कुछ आरोपियों को हिरासत में लिया है, लेकिन सवाल यह है कि जब कानून पढ़ने वाली लड़की खुद असुरक्षित है, तो आम महिलाएं कैसे सुरक्षित होंगी? क्या यह कानून की शिक्षा देने वाली संस्थाओं एवं शासन करने वाली सत्ताओं के लिए आत्ममंथन का समय नहीं है? ऐसी घटनाओं पर निर्भया कांड के बाद बने कानूनों का सख्ती से पालन हो। रेप को सिर्फ एक ‘जुर्म’ नहीं, ‘राष्ट्रीय आपदा’ माना जाए, और उसकी रोकथाम के लिए शिक्षा, संस्कार और तकनीकी सुरक्षा साधनों को प्राथमिकता दी जाए। कोलकाता की लॉ छात्रा की यह दर्दनाक घटना हमें चेताती है कि केवल कानून बना लेना काफी नहीं, जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक बेटियां असुरक्षित रहेंगी। यह केवल एक छात्रा की लड़ाई नहीं, बल्कि हर बेटी की सुरक्षा की लड़ाई है। न्याय तब होगा जब ऐसी घटनाएं रुकेंगी और उसके लिए हमें मिलकर लड़ना होगा।
सबसे दुखद पहलू यह है कि अनेक बार ऐसी घटनाओं में समाज चुप रहता है, पीड़िता को दोषी ठहराने की कोशिश की जाती है। सोशल मीडिया पर तंज, मीडिया ट्रायल और व्यक्तिगत चरित्रहनन जैसी बातें पीड़िता को न्याय से अधिक पीड़ा देती हैं। पीड़िता के लिये यह पीड़ा तब और बढ़ जाती है जब उनके जन-प्रतिनिधि निर्लज्ज बयानबाजी करते हैं। विडंबना यह है कि पीड़िता के प्रति निर्लज्ज बयानबाजी अकेले पश्चिम बंगाल का ही मामला नहीं है, देश के अन्य राज्यों में भी ऐसी संवेदनहीन टिप्पणियां सामने आती रही हैं। यदि इक्कीसवीं सदी के खुले समाज में हम महिलाओं के प्रति संकीर्णता की दृष्टि से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, तो इसे विडंबना ही कहा जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही कि ये वे लोग हैं जिन्हें जनता अपना नेता मानती है और लाखों लोग उन्हें चुनकर जनप्रतिनिधि संस्थाओं में कानून बनाने व व्यवस्था चलाने भेजते हैं। देश में बढ़ रही यौन-शोषण, रेप एवं नारी दुराचार की घटनाओं को देखते हुए जन-प्रतिनिधियों को ज्यादा संवेदनशील होने की अपेक्षा की जाती है। बड़ा प्रश्न है कि आखिर किसी राजनेता को हर महिला के साथ हुए दुर्व्यवहार और यौन शोषण को असंवेदनशील तरीके से देखने की छूट क्यों एवं कैसे मिल जाती है।
भारत ही ऐसा देश है, जहां महिलाओं की अस्मिता एवं अस्तित्व को तार-तार करने वाले नेताओं के निर्लज्ज बयानों के बावजूद उन पर कोई ठोस, सख्त एवं अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होती। जबकि विश्व के अन्य देशों में ऐसा नहीं है। जैसे 2017 में ब्रिटेन के एक पार्षद के सामान्य से बयान पर अच्छा खासा बवाल मचा था। पार्षद ने सांसद का चुनाव लड़ रही एक गर्भवती महिला राजनेता के बारे में कह दिया था, ‘वो गर्भवती हैं और उनका समय तो नैपी बदलने में ही बीत जाएगा, वो आम लोगों की आवाज़ क्या उठाएंगी?’ इसके लिए पार्षद को माफ़ी मांगनी पड़ी। ब्रिटेन जैसे कई देशों में अकसर ऐसे बयानों पर कार्रवाई होती है। मिसाल के तौर पर 2017 में ही यूरोपियन संसद के एक सांसद ने बयान दिया था कि महिलाओं को कम पैसा मिलना चाहिए क्योंकि वो कमज़ोर, छोटी और कम बुद्धिमान होती हैं।’ इसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था और उन्हें मिलने वाला भत्ता भी बंद हो गया था।
कोलकाता की लॉ छात्रा मामले में टीएमसी नेताओं की टिप्पणियां निस्संदेह निंदनीय हैं, लेकिन पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं द्वारा भी कड़े शब्दों में इसकी निंदा की जानी चाहिए। ममता बनर्जी के सामने एक और चुनौती है। आरजी कर मेडिकल कॉलेज बलात्कार- हत्याकांड और उसके बाद देश भर में उपजा आक्रोश अभी भी यादों में ताजा है। निस्संदेह, केवल टिप्पणियों से पार्टी को अलग कर देना ही पर्याप्त नहीं है। सार्वजनिक जीवन में नारी सम्मान एवं जीवन-मूल्यों के खिलाफ जाने वाले लोगों के लिये परिणाम तय होने चाहिए। अन्यथा समाज में ये संदेश जाएगा कि ऐसे कुत्सित प्रयासों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं होती है। किसी अपराध की रोकथाम अच्छे शासन की अनिवार्य शर्त बनना चाहिए लेकिन जब कोई अपराध होता है तो प्रभावी प्रतिक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। टीएमसी दोनों ही मामलों में विफल प्रतीत होती है। ऐसे मामलों में अत्याचार करने वालों की ही भांति अत्याचार का समर्थन करने वाले दोषी है। अत्याचारियों के लिये ही त्वरित न्याय और सख्त सजा जरूरी है लेकिन जन-प्रतिनिधि की निर्लज्ज बयानबाजी भी अपराध के दायरे में होनी चाहिए। आजीवन शोषण, दमन, अत्याचार, अवांछित बर्ताव और अपमान की शिकार रही भारतीय नारी को अब ऐसे और नये-नये तरीकों से कब तक जहर के घूंट पीने को विवश होना होगा। अत्यंत विवशता और निरीहता से देख रही है वह यह क्रूर अपमान, यह वीभत्स अनादर, यह दूषित व्यवहार एवं संकुचित न्याय। न्याय एवं राजनीति की चौखट पर भी उसके साथ दोयम दर्जा एवं दुराग्रहपूर्ण सोच बदलना सर्वोच्च प्राथमिकता हो। यदि हम सच में नारी के अस्तित्व एवं अस्मिता को सम्मान देना चाहते हैं तो ईमानदार स्वीकारोक्ति, पड़ताल एवं निष्पक्ष न्याय से ही यह संभव होगा।प्रेषकः

(ललित गर्ग

रोगी के लिये स्वस्थ जीवन की मुस्कान देते हैं डॉक्टर्स 

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राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस- 1 जुलाई, 2025

 ललित गर्ग 

स्वस्थ जीवन हर किसी की सर्वोच्च जीवन प्राथमिकता होता है। कहा भी गया है कि, ‘सेहत सबसे बड़ी पूंजी’ है। स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन को सही तरह से एन्जॉय करते हुए उसे सफल एवं सार्थक बना सकता है और इसमें डॉक्टर्स की भूमिका बहुत अहम होती है। छोटी-बड़ी हर तरह की बीमारियों को डॉक्टर्स की मदद से ठीक किया जा सकता है। शायद इसलिए ही इन्हें भगवान का दर्जा मिला हुआ है। राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस प्रसिद्ध डॉक्टर और बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र राय के सम्मान में मनाया जाता है।  वैसे तो दुनियाभर के अलग-अलग देशों में डॉक्टर्स डे को अलग-अलग दिन मनाया जाता है, लेकिन भारत में इस दिन को 1 जुलाई को इसलिये मनाया जाता है  क्योंकि 1 जुलाई 1882 में भारत के प्रसिद्ध फिजीशियन डॉ. राय का जन्म हुआ था और उनका निधन भी 1 जुलाई को ही साल 1962 में हुआ था। चिकित्सा क्षेत्र में उनके योगदान को सम्मान देने के मकसद से डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत की गई थी। यह दिन उन डॉक्टरों को समर्पित होता है जो हमारी सेहत का ध्यान रखते हुए हमें नया जीवनदान देते हैं। साथ ही हमें बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। हल्का सा भी हम अगर बीमार पड़ते हैं तो तुरंत ही डॉक्टर के पास भागते हैं।
2025 की थीम है ‘मास्क के पीछेः देखभाल करने वालों की देखभाल’ उन लोगों की देखभाल की आवश्यकता को उजागर करती है जो हमारी देखभाल करते हैं। यह थीम इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित करती है कि दूसरों की सेवा करते समय, डॉक्टर अक्सर अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की उपेक्षा करते हैं। इस थीम का उद्देश्य बेहतर कार्य परिस्थितियां, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और समाज से उनके लिए उचित सम्मान सुनिश्चित करना है। बहुत से लोग इस दिन का उपयोग अपने देश में डॉक्टर्स द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों का सम्मान करने के लिए करते हैं। एक डॉक्टर मरीज को स्वस्थ करते हुए आशा नहीं खोता-वह हर चुनौती का जोरदार मुस्कान के साथ सामना करता है, चाहे परेशानी एवं बीमारी कितनी भी गंभीर क्यों न हो।
वास्तव में डॉक्टर्स की निःस्वार्थता एवं सेवाभावना उन्हें रोगियों के लिए स्वर्गदूत बनाती है, एक फरिश्ते के रूप में वे जीवन का आश्वासन बनते हैं और उनका बलिदान-योगदान उन्हें मानवीय सेवा का योद्धा बनाता है। डॉक्टर्स डे डॉक्टरों द्वारा समुदायों के उपचार, सुरक्षा और समर्थन में अक्सर बड़ी व्यक्तिगत कीमत पर निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका का सम्मान करता है। डॉक्टर्स न केवल महामारी या संकट के दौरान बल्कि हर दिन, गांवों, कस्बों और शहरों में मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की सार्वजनिक स्वीकृति के रूप में कार्य करता है। सामान्य चिकित्सकों से लेकर विशेषज्ञों और सर्जनों तक, यह दिन उन सभी का सम्मान करता है जिन्होंने उपचार और सेवा करने की शपथ ली है। इस दिवस पर मरीज और समुदाय भी कृतज्ञता और आशा की कहानियां साझा करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। जैसाकि भारत नई सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना कर रहा है, राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस  एक उत्सव और एक ऐसी प्रणाली बनाने के लिए कार्रवाई का आह्वान है, जहां डॉक्टरों को न केवल देखभाल करने वाले के रूप में सम्मानित किया जाता है, बल्कि बदले में उनकी सुरक्षा, सम्मान और देखभाल भी की जाती है। डॉक्टर कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हैं जो सिर्फ बीमारी का निदान और उपचार करने से कहीं आगे तक फैली हुई हैं। उनके काम में चिकित्सा ज्ञान, चिकित्सा नवाचार, संचार और करुणा का संयोजन शामिल है ताकि रोगियों को पूरी तरह से सहायता मिल सके, नये भारत-सशक्त भारत के निर्माण में उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका है।

डॉक्टरों की भूमिकाएं उनके काम करने के स्थान के आधार पर अलग-अलग होती हैं। अस्पतालों में, वे विशेष उपचार या आपातकालीन देखभाल पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। क्लीनिकों और ग्रामीण केंद्रों में, वे अक्सर सामान्य स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि चिकित्सा सहायता दूरदराज के क्षेत्रों में लोगों तक पहुँचे। इन विविध जिम्मेदारियों के माध्यम से, डॉक्टर व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, तथा हर दिन सकारात्मक बदलाव लाते हैं। भारत चिकित्सा नवाचार और प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता है। भारत देश केवल एक विशाल आबादी वाला देश नहीं है, बल्कि इसने चिकित्सा-क्रांति को घटित करते हुए दुनिया में चिकित्सा-सेवा के नये दीप प्रज्ज्वलित किये हैं। डॉक्टर बनना आसान नहीं है, फिर भी आप इसे बड़ी सहजता से और हमेशा मुस्कुराते हुए करते हैं। हर कोई डॉक्टर नहीं बन सकता क्योंकि हर किसी के पास मरीजों को निस्वार्थ भाव से अपनी सेवाएं देने के लिए ज्ञान, कौशल और धैर्य नहीं होता।
हर बीमारी के लिये एक एक्सपर्ट होता है। अगर आपको सर्दी-जुकाम, खांसी, बुखार या फिर मौसमी बीमारी ने जकड़ लिया है तो आपको फिजिशिनय या जनरल फिजिशियन से मिलना चाहिए। वहीं आंख, कान, नाक, टॉन्सिल, सिर या गर्दन की समस्या के लिये ईएनटी स्पेशलिस्ट होते हैं। ये साइनस का भी इलाज करते हैं। अगर आपको दिल से जुड़ी कोई दिक्कत है तो कार्डियोलॉजिस्ट के पास जाना बेहतर होता है। कोलेस्ट्रॉल लेवल के बढ़ने पर आप इन डॉक्टर के पास जाएं। इसके अलावा अगर आप तनाव में रहते हैं तो साइकोलॉजिस्ट से मिलना होता है। कैंसर की बीमारी के लिये आपको ओन्कोनोजिस्ट के पास जाना चाहिए। अगर आपको आंखों में कोई समस्या है, जलन, खुजली, रेडनेस या इन्फेक्शन से जूझ रहे हैं तो इसके लिए नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास जाएं। प्रेग्नेंसी से लेकर डिलीवरी, या फिर ब्रेस्ट, यूटीआई, पीरयड्स, की समस्या हो रही है तो गायनोकोलॉजिस्ट की मदद लें। दिमागी बीमारी के लिये न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाने की सलाह दी जाती है। कई बार सही डॉक्टर से समय पर इलाज न मिलने की वजह से भी बीमारी और बढ़ जाती है। शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं मानवीयता जैसे सभी पहलुओं के माध्यम से रोगी की देखभाल करने एवं उनको स्वस्थ बनाने के लिए अनुभवी एवं विशेषज्ञ डाक्टरों की सेवाएं वरदान है। डॉक्टर्स भगवान का रूप होते है, वे ही इंसान के जन्म के पहले साक्षी बनते हैं और उनमें करुणा एवं स्वस्थता का बीज बोते है। एक रोगी को स्वस्थ करने में वे अपना सब कुछ हंसते हुए दे देते हैं, चाहे उनका अपना पारिवारिक सुख हो, करियर हो, जीवन की खुशियां हो या सपने हों, सबकुछ झांेक देते है।
डॉक्टर्स अपने सुख-दुख को त्याग कर मरीजों के लिए जीते हैं, समाज को रोगमुक्त रखने में अहम भूमिका निभाते हैं, कोविड संक्रमण के दौरान डॉक्टर्स ही थे, जो एक योद्धा की तरह हर मुश्किल घड़ी में अपनी जान की परवाह किये बिना मरीजों के साथ घंटों लगातार ड्यूटी कर रहे थे। कई डॉक्टर्स ने अपनी जान भी गंवा दी। इन डॉक्टर्स के बलिदान को भी आज के दिन याद किया जाता है। डॉक्टरों की सेवाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बीमारियों का निदान, उपचार और रोकथाम करते हैं, जिससे लोगों का स्वास्थ्य और कल्याण सुनिश्चित होता है। वे आपातकालीन स्थितियों में जीवन रक्षक सहायता प्रदान करते हैं और बीमारियों के बारे में जागरूकता फैलाते हैं। डॉक्टर लोगों को स्वस्थ जीवनशैली के बारे में शिक्षित करते हैं, जिससे वे अपनी बीमारियों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उनका प्रबंधन कर सकते हैं। डॉक्टर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को सहायता और उपचार प्रदान करते हैं। डॉक्टर स्वास्थ्य अभियानों और कार्यक्रमों में भाग लेकर समुदायों में स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डॉक्टर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का एक अभिन्न अंग हैं और समाज के समग्र कल्याण में योगदान करते हैं। आम दिन हो या महामारियांे के खिलाफ जंग, ये डॉक्टर्स बिना किसी डर के सहजता और उत्साह से अपने कर्तव्य का पालन करते हैं। इसलिए नहीं कि यह उनका काम है और उसके लिए उन्हें पैसे मिलते हैं। इसलिए कि वे सबसे पहले दूसरों के स्वस्थ होने और उनकी जान की फिक्र करते हैं, ऐसी मानवीय सेवाएं देने वाले इन डॉक्टर्स रूपी अद्भूत फरिश्तों के सम्मान, कल्याण एवं प्रोत्साहन का चिन्तन अपेक्षित है। उससे निश्चित ही डॉक्टर्स की सेवाएं अधिक सक्षम, प्रभावी एवं मानवीय होकर सामने आयेगी।

भजन: राम राज्य महिमा

ब्रज लोक गीत

मु: राजा राम की आई सरकार -२
अब घर घर आनंद छाय रहे -२
झूमे सब नर और नार,
सब प्राणी मंगल गाय रहे -२
राजा राम की आई सरकार__

अंत १: राजा राम जानकी हैं रानी,
आनंद कंद अवध रजधानी।
लक्ष्मण भारत शस्त्रुघन भैया,
चरणों में इनके अंजनी छैया।।
मि: ये ब्रम्ह का लगा दरबार,
हर्षित हैं अवध अपार।
सब प्राणी मंगल गाय रहे,
राजा राम की आई सरकार__

अंत २: राम राज्य बैठे हैं त्रिलोका,
हर्षित हैं सब, नहीं कही शोका।
गयी विषमता है, शमता आई ,
वैर भाव सब मिट गया भाई।।
मि: देवी देव करें मनोहार,
सब प्राणी मंगल गाय रहे,
राजा राम की आई सरकार__

अंत ३: अचरज हैं देखो, शेर और चीता,
भेड़ और बकरी संग पानी है पीता।।
कही नहीं धोखा धड़ी बेईमानी,
ईमानदार हो गए सब प्राणी।।
मि: करते हैं आपस में प्यार,
(नहीं रही है अब तकरार)
सब प्राणी मंगल गाय रहे,
राजा राम की आई सरकार__

अंत ४: न कोई शिकवा न है शिकायत ,
सभी पावैं मनवांछित राहत।
धर्म कर्म फल फूल रहा है
धरती अम्बर झूम रहा है।
मि: वैभव है अपरम्पार,
सब प्राणी मंगल गाय रहे,
राजा राम की आई सरकार__

अंत ५: नन्दो राकेश भी हर्षाय रहे,
राम राज्य की महिमा गाय रहे।
राम जी कृपा दृष्टि बरसाना,
हमको अपनी शरण लगाना।
मि: सब अवगुण देऊ विषार
सब प्राणी मंगल गाय रहे,
राजा राम की आई सरकार_ अब घर घर आनंद छाये रहे -२ झूमे सब नर और नारी, सब प्राणी मंगल गाय रहे -२ राजा राम की आई सरकार_

इसराइल के प्रधानमंत्री के ओजस्वी भाषण के प्रेरक अंश

इसराइल अपनी जिजीविषा के लिए जाना जाता है। इसने अपनी जीवंतता का एक इतिहास बनाया है। 1948 से पहले यहूदियों का कोई देश नहीं था। ये दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे। जब इस्लाम और ईसाइयत संसार के एकमात्र यहूदी देश को मिटाने पर सदियों से संघर्ष करती रही हो, तब अपने लिए एक स्थान निश्चित करवा लेना और उसे अपना देश बनाकर संसार के शक्तिशाली देश में उसकी गिनती करवाना इसराइल के द्वारा ही संभव है। इसराइल को 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने जो भूभाग रहने के लिए दिया था, उसका 65% भाग रेगिस्तान था। उसे अपने पुरुषार्थ और परिश्रम से इसराइलवासियों ने रेगिस्तान के बीच उसे हराभरा बनाने का कार्य करके दिखाया। मात्र 95 लाख की आबादी का यह देश संसार के लोगों को बता रहा है कि यदि जीने की इच्छा प्रबल है और संघर्ष करने की भावना आपके भीतर है तो आपके अस्तित्व को कोई मिटा नहीं सकता।
बेंजामिन नेतन्याहू इस देश के प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अभी ईरान के साथ हुए इजरायल के संघर्ष में देश का बहुत ही साहस के साथ नेतृत्व किया है। इस समय बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों को जिन ओजपूर्ण शब्दों में संबोधित किया है ,वह किसी भी देश के लोगों के लिए बहुत प्रेरक हो सकते हैं। उन्होंने देश के लोगों को जिस प्रकार वीरता के भावों से भरने का प्रयास किया वह उनके देश के प्रेरक इतिहास का एक प्रेरक उद्बोधन भी कहा जा सकता है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि :-
” 75 साल पहले हमें मरने के लिए यहां लाया गया था। हमारे पास न कोई देश था, न कोई सेना थी। सात देशों ने हमारे विरुद्ध जंग छेड़ दी। हम सिर्फ 65000 थें। हमें बचाने के लिए कोई नहीं था। हम पर हमलें होते रहे, होते रहे। लेबनान, सीरिया, इराक़, जॉर्डन,मिश्र, लीबिया, सऊदी , अरब जैसे कई देशों ने हमारे उपर कोई दया नहीं दिखाई। सभी लोग हमें मारना चाहते थे, किंतु हम बच गए।”
इसराइल के प्रधानमंत्री ने अपने देश के लोगों को समझाया कि प्रत्येक पड़ोसी देश ने हमारे देश को समाप्त करने का हरसंभव प्रयास किया, परंतु हमने संघर्ष से मुंह नहीं फेरा और हम निरंतर अपने अस्तित्व के लिए लड़ते रहे। उन्होंने आगे कहा कि :-
” संयुक्त राष्ट्र संघ ने हमें धरती दी, वह धरती जो 65 प्रतिशत रेगिस्तान थी। हमने उसको भी अपने खून से सींचा। हमने उसे ही अपना देश माना , क्योंकि हमारे लिए वही सब कुछ था। हम कुछ नहीं भूलें। हम फिर उन से बच गए। हम स्पेन से बच गए। हम हिटलर से बच गए। हम अरब से बच गए। हम सद्दाम हुसैन से बच गए। हम गद्दाफी से बच गए। हम हमास से भी बचेंगे, हम हिज्बुल्लाह से भी बचेंगे और हम ईरान से भी बचेंगे।”
प्रधानमंत्री श्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने देशवासियों को आशावादी दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि जब पहले बड़े से बड़ा तूफान हमारे मनोबल को नहीं तोड़ सका तो इस बार का तूफान भी हमें मिटा नहीं पाएगा। हमें अपने इतिहास से शिक्षा लेनी चाहिए और अपने पूर्वजों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस नए तूफान से भी जूझने की तैयारी करनी चाहिए। अपनी मातृभूमि और धर्मस्थल जेरूसलम के प्रति अपने देश के लोगों को उत्प्रेरित करते हुए इसराइल के प्रधानमंत्री ने कहा कि :-
” हमारे जेरुसलम पर अब तक 52 बार आक्रमण किया गया, 23 बार घेरा गया, 39 बार तोड़ा गया, तीन बार बर्बाद किया गया, 44 बार कब्जा किया गया लेकिन हम अपने जेरुसलम को कभी नहीं भूले वह हमारे हृदय में है,वह हमारे मस्तिष्क में हैं और जब तक हम रहेंगे जेरुसलम हमारी आत्मा में रहेगा। संसार यें याद रखें कि जिन्होंने हमें बर्बाद करना चाहा वह आज स्वयं नहीं है। मिश्र, लेबनान, वेवीलोन, यूनान, सिकंदर, रोमन सब खत्म हो गयें है। हम फिर भी बचे रहे।”
“हमें वे (इस्लाम) खत्म करना चाहते हैं। उन्होंने हमारे रस्म रिवाज को कब्जाया। उन्होंने हमारे उपदेशों को कब्जाया। उन्होंने हमारी परंपरा को कब्जाया। उन्होंने हमारे पैगंबर को कब्जाया। कुछ समय पश्चात अब्राहम इब्राहिम कर दिया गया, सोलोमन, सुलेमान हो गया, डेविड, दाऊद बना दिया गया। मोजेज मूसा कर दिया गया। फिर एक दिन उन्होंने कहा – तुम्हारा पैगंबर ( मुहम्मद) आ गया है। हमने इसे नहीं स्वीकार किया। करते भी कैसे ? उनके आने का समय नहीं आया था। उन्होंने कहा स्वीकार करो़, कबूल लो। हमने नहीं कबूला। फिर हमें मारा गया। हमारे शहर को कब्जाया गया। हमारे शहर यसरब को मदीना बना दिया गया। हम क़’त्ल हुए,भगा दिए गए।”
इतिहास की दीर्घकालीन परंपरा को इसराइल के प्रधानमंत्री ने अपने देशवासियों के समक्ष इस प्रकार से खोल कर रख दिया कि उनके भीतर क्रांति के भाव मचलने लगे । वास्तव में इसी प्रकार के संबोधन देशवासियों को आपत्ति काल में एक सक्षम नेतृत्व प्रदान करने में सफल होते हैं। बेंजामिन नेतन्याहू ने अपने आप को सिद्ध किया कि वह आपातकाल में देश का नेतृत्व करने में पूर्णतया सक्षम हैं।
” मक्का के काबा में हम दो लाख थे, मार दिए गए। हमें दुश्मन बता कर क़’त्ल किया गया। फिर सीरिया में, ओमान में यही हुआ। हम तीन लाख थे मा’र दिए गए इराक़ में हम दो लाख थे, तुर्की में चार लाख हमें मा’रा जाता रहा, मारा जाता रहा। वे हमें मार रहे हैं, मारते जा रहें हैं। हमारे शहर,धन, दौलत, घर,पशु,मान सम्मान सब कुछ कब्जाये़ जाते रहे, फिर भी हम बचे रहे। 1300 सालों में करोड़ों यहूदियों को मारा गया, फिर भी हम बचे रहे। 75 साल पहले वे हम पर थूकते थे, ज़लील करतें थे, मारते थे। हमारी नियति यही थी किंतु हम स्वयं पर, अपने नेतृत्व पर, अपने विश्वास पर टिके रहे हैं।”
इसराइल के प्रधानमंत्री ने यहां न केवल अपने देशवासियों के निरंतर होने वाले उत्पीड़न और उनकी हत्याओं के न रुकने वाले क्रम की ओर संकेत किया है बल्कि देश से बाहर भी संसार के अन्य देशों में जहां-जहां यहूदी रहते हैं, उन पर होने वाले अत्याचारों को भी स्पष्ट किया है । जब संसार की बड़ी आबादी यहूदियों की मुट्ठी भर आबादी को समाप्त करने पर तुली हो , तब मरने और मारने का ही एकमात्र रास्ता रह जाता है। इसी ओर इसराइल के प्रधानमंत्री अपने मजहबी भाइयों को प्रेरित कर रहे हैं।
“आज हमारे पास एक अपना देश है। एक स्वयं की सेना है, एक छोटी अर्थ व्यवस्था है। इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट, आईबीएम, फेसबुक जैसी कई संस्थाएं हमने इस दौर में बनाई।आज हमारे चिकित्सक दवा बना रहे हैं, लेखक किताबें लिख रहें हैं। ये सबके लिए है,यह मानवता के कल्याण के लिए है।
हमने रेगिस्तान को हरियाली में बदला, हमारे फल, दवाएं, उपकरण, उपग्रह सभी के लिए है।हम किसी के दु’श्मन नहीं है, हमने किसी को खत्म करने की क़सम नहीं खाई है। हमें किसी को बर्बाद नहीं करना, हम साजिश भी नहीं करते, हम जीना चाहते हैं सिर्फ सम्मान से, अपने देश में, अपनी जमीन पर, अपने घर में।”
अपने उज्जवल भविष्य की ओर संकेत करते हुए उन्होंने अपने देशवासियों का आवाहन किया कि ” पिछले हजार सालों से हमें मिटाया गया, खदेड़ा गया, कब्जाया जाता रहा,हम मिटे नहीं,हारे नहीं और न आगे कभी हारेंगे। हम जीतेंगे, हम जीत कर रहेंगे। हम 3000 सालों से यरुसलम में ही थे। आज़ हम अपने पहले देश इजरायल में है। यह हमारा ही था, हमारा ही है और हमारा ही रहेगा। यरुसलम हमसे है और हम यरुसलम से है।”
पता नहीं हम हिंदुओं को अपने अस्तित्व को बचाए रखने की बुद्धि कब आएगी ?

डॉ राकेश कुमार आर्य

जब देवकांत बरूआ ने इन्दिरा से कहा था – आप मुझे प्रधानमंत्री बना दो..

बात उस समय की है जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अपना निर्णय सुना दिया गया था। यह निर्णय 1971 में श्रीमती गांधी द्वारा रायबरेली से लड़े गए लोकसभा के चुनाव के दौरान उनके द्वारा बरती गई अनियमितताओं को लेकर सुनाया गया था। श्रीमती गांधी के विरुद्ध लोकसभा के उस समय के चुनाव में राजनारायण एक मजबूत प्रत्याशी के रूप में खड़े हुए थे। जिन्होंने अपनी चुनावी याचिका में आरोप लगाया था कि श्रीमती गांधी ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एक व्यक्ति को चुनाव लड़ाया और उसे ₹50000 की रिश्वत भी दी। श्रीमती गांधी ने ऐसा इसलिए किया था कि वह व्यक्ति जीतते हुए उम्मीदवार के वोट काट सकता था। राजनारायण का दूसरा आरोप था कि श्रीमती गांधी ने सेना के विमान का दुरुपयोग किया है और लोगों को गलत ढंग से अपने पक्ष में मोड़ने का प्रयास किया है।
श्रीमती गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के संबंधित जज श्री जगमोहन सिन्हा पर अनुचित प्रभाव डालने का प्रयास किया । कांग्रेस के एक सांसद की इस बात के लिए विशेष रूप से ड्यूटी लगा दी गई कि वह उपरोक्त जज महोदय के घर जाकर प्रतिदिन उनसे इस बात का दबाव बनाता था कि वह श्रीमती गांधी के पक्ष में ही फैसला सुनाएं। परंतु जज महोदय किसी भी स्थिति में अपने निर्णय को बदलना नहीं चाहते थे। एक दिन तो ऐसी भी स्थिति आई थी कि जज महोदय ने जब देखा कि वह सांसद आज भी उनके घर के बाहर आकर बैठ गए हैं तो उन्होंने भीतर से यह कहलवा दिया था कि आज वे यहां नहीं हैं और वह अपने भाई से मिलने के लिए गए हैं।
इंदिरा गांधी ने उपरोक्त न्यायाधीश पर यह संदेश भी भिजवाया था कि उन्हें प्रोन्नत करते हुए सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया जाएगा। 12 जून 1975 को दिए गए अपने आदेश में सिन्हा महोदय ने यह स्पष्ट कर दिया कि श्रीमती गांधी का चुनाव अवैधानिक था और उन्होंने अनुचित साधनों का प्रयोग करते हुए जीत प्राप्त की थी। उपरोक्त निर्णय के आने के उपरांत देश का तत्कालीन विपक्ष जयप्रकाश नारायण जैसे नेता के नेतृत्व में एकजुट हो गया। उनके नेतृत्व से इंदिरा गांधी भयभीत हो गई थीं। जयप्रकाश नारायण की वक्तृत्व शैली चमत्कारिक थी। उन्होंने जोशीले अंदाज में कहा कि सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जिस प्रकार जनमत तेजी से जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में एकत्र हो रहा था, उसके दृष्टिगत इंदिरा गांधी के पैर उखड़ गए थे।
12जून के दिन इंदिरा गांधी के आवास पर एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया था । जिसमें कांग्रेस के सभी बड़े नेता उपस्थित हुए थे। संगठन के भी बड़े नेता वहां पर उपस्थित थे। कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष देवकांत बरूआ विशेष रूप से सक्रिय दिखाई दे रहे थे। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे और हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल भी वहां पर उपस्थित थे । सभी नेता इंदिरा गांधी को ध्यान से सुन रहे थे। इंदिरा गांधी ने अपने पद से त्यागपत्र देने का मन बना लिया था।
सिद्धार्थ शंकर रे इंदिरा गांधी को 6 महीने पहले से यह कहते आ रहे थे कि आपको देश में आपातकाल लगा देना चाहिए और देश के सभी विपक्षी नेताओं को उठाकर जेल में डाल देना चाहिए। जिससे उनकी बुद्धि में सुधार किया जा सके और आपको देश पर शासन करने का अच्छा अवसर प्राप्त हो सके । इंदिरा गांधी के चमचा उस समय उन्हें देश में राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने की सलाह दे रहे थे। एक अधिकारी पी एन हक्सर इंदिरा जी को अक्सर समझाते थे कि आपको इस समय देश में प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से शासन चलाना चाहिए। देश में जनप्रतिनिधियों का चुनाव कराया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इंदिरा गांधी को इस प्रकार की चमचागिरी अच्छी लगती थी।
देवकांत बरुआ ने 12 जून की बैठक में इंदिरा गांधी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि उन्हें अपने पद से त्यागपत्र देकर कुछ देर के लिए मुझे देश का प्रधानमंत्री बना देना चाहिए । जिस समय देवकांत बरुआ इंदिरा जी से इस प्रकार का विचार विमर्श कर रहे थे , तभी वहां पर अपने मारुति उद्योग में व्यस्त रहने वाले इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी का प्रवेश होता है। वह नेताओं के चेहरों की उदासी को देखकर यह अनुमान लगा गए थे कि निश्चय ही निर्णय इंदिरा जी के विरुद्ध आया है । देवकांत बरुआ की बात को सुनकर उन्होंने इंदिरा गांधी को संकेत से अलग कमरे में बुलाया और वहां ले जाकर उन्होंने इंदिरा गांधी को डपटते हुए कहा कि किसी भी स्थिति में आपको त्यागपत्र देने की आवश्यकता नहीं है । यह सारे चमचों की जमात आपके पास बैठी है। देवकांत बरुआ के कथन पर विश्वास करने की आवश्यकता नहीं है। यदि यह एक बार प्रधानमंत्री बन गया तो फिर तुम्हें कभी सत्ता में लौटने नहीं देगा।
इंदिरा गांधी बात को समझ चुकी थीं। उधर देवकांत बरुआ भी समझ गए कि संजय गांधी ने इंदिरा जी से क्या कहा होगा ? तब उस व्यक्ति ने अपनी चमचागिरी का और भी पुख्ता प्रमाण देने का प्रयास करते हुए अपने भाषण में “इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा” का नारा दिया। जिसे उस समय के सभी कांग्रेसी नेताओं ने पकड़ लिया। बाद में इसी देवकांत बरुआ को अटल बिहारी वाजपेई ने अपनी एक कविता में “चमचों का सरताज” कहा था। समय आने पर यह नेता इंदिरा का साथ छोड़कर देवराज अर्स के साथ कांग्रेस ( अर्स ) में चला गया था।
सिद्धार्थ शंकर रे पहले से ही इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लगाने की प्रेरणा देते आ रहे थे। समय की नजाकत को पहचानते हुए बंसीलाल ने भी लंगर लंगोट खींचा और मैदान में उतरकर कड़कते हुए इन्दिरा जी से बोले कि आपको देश में आपातकाल लगाना चाहिए और सारे नेताओं को हरियाणा की जेलों में भेज देना चाहिए । मैं सब की अकल सुधार दूंगा। बाद में इंदिरा गांधी ने यही किया। जितने भर भी नेता उस समय हरियाणा की जेलों में डाले गए थे, उनके साथ अत्यंत क्रूरता का अपमानजनक व्यवहार बंसीलाल ने किया था। लगभग 1 लाख विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, लेखकों आदि को उठाकर जेलों में डाल दिया गया था। उनके साथ जेल में जो कुछ हुआ था वह रोंगटे खड़े कर देने वाला था। ऐसी भी घटनाएं हुई थीं कि जब किसी नेता ने पानी मांगा तो उसे पेशाब दे दिया गया था।

डॉ राकेश कुमार आर्य

मन को तृप्त करने वाली पुस्तक; भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप

समीक्षक – सचित्र मिश्रा

विगत दिनों डॉ. सौरभ मालवीय जी की पुस्तक ‘भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप’ पढ़ने का सुअवसर मिला। इस पुस्तक को दिल्ली के शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशित किया है।

पुस्तक पढ़कर मन तृप्त हो गया। भागदौड़ के समय में संतों के विषय में पढ़कर चित्त को शांति प्राप्त हुई। इस पुस्तक ने विचारने पर विवश कर दिया कि हमारे पास संतों की शिक्षाओं एवं उनके उपदेशों के रूप में ज्ञान का अपार भंडार है, किन्तु हम भौतिक वस्तुओं एवं सुख-साधन एकत्रित करने में अपने संपूर्ण जीवन को समाप्त कर रहे हैं। दीन-दुखियों की सेवा के लिए हम क्या कार्य कर रहे हैं? क्या हम ईश्वर के मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम जो कार्य कर रहे हैं, उससे किसी का अहित तो नहीं हो रहा है? क्या हम केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए असत्य के साथ खड़े हैं? क्या यही जीवन का उद्देश्य है? प्रश्न अनेक हैं, परन्तु इनका उत्तर हमें स्वयं खोजना होगा।

मालवीय जी का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि “भारत में अनेक संत हुए हैं, जिन्होंने विश्व को मानवता का संदेश दिया। संतों की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी उस समय थीं जब उन्होंने उपदेश दिए थे। आज जब लोग पश्चिमी सभ्यता के पीछे भाग रहे हैं तथा जीवन मूल्यों को भूल रहे हैं, ऐसी परिस्थिति में संतों की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मैंने यह पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में 15 संतों के जीवन एवं उनके उपदेशों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जिनमें रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास, महान कृष्ण भक्त सूरदास, महान भक्त कवि रसखान, कबीर, रैदास, मीराबाई, नामदेव, गोरखनाथ, तुकाराम, मलूकदास, धनी धरमदास, धरनीदास, दूलनदास, भीखा साहब एवं चरणदास सम्मिलित हैं। इन सभी संतों ने देश में भक्ति की गंगा प्रवाहित की। इनकी रचनाओं ने लोगों में भक्ति का संचार किया। इसमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने गृहस्थ जीवन में रहकर ईश्वर की भक्ति की। उन्होंने अपने परिवार एवं परिवारजनों के प्रति अपने सभी दायित्वों का निर्वाह किया। इनमें ऐसे भी संत हैं, जिन्होंने सांसारिक संबंधों से नाता तोड़कर अपना संपूर्ण जीवन प्रभु की भक्ति में व्यतीत कर दिया।“ संतों ने कभी किसी को अपने पारिवारिक कर्तव्यों से विमुख होने के लिए नहीं कहा, अपितु अपने संपूर्ण कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की साधना करने का संदेश दिया।

मालवीयजी ने अपनी पुस्तक में संतों के विषय में अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी संकलित की है। वह लिखते हैं कि प्रश्न यह है कि संत कौन है? जो सहज भाव से विचार करे तथा सहज आचरण करे, वही संत कहलाने के योग्य है। संत वह होता है, जो मान मिलने पर अभिमान नहीं करता। वह अहंकार नहीं करता। वह अहंकार से दूर रहता है। यदि कोई उसका अपमान करे, तो वह क्रोधित नहीं होता। उसके बुरे की कामना नहीं करता। उसे अपशब्द नहीं कहता। संतों की वाणी मधुर होती है। वह सबका कल्याण चाहते हैं। उनका व्यवहार संयमशील होता है। वे धैर्यवान होते हैं। उनका चरित्र इतना प्रभावशाली होता है कि जो भी उनके समीप आता है, उनसे प्रभावित हो जाता है। संतों की वाणी ईश्वर की वाणी है। उनकी वाणी में ईश्वर का संदेश होता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने संतों की चर्चा करते हुए कहा है-

समदुःख सुखः स्वस्थः समलोष्टाश्मकाञ्चनः।

तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्य निन्दात्म संस्तुतिः।।

अर्थात जो सुख एवं दुख दोनों को ही समान मानता है, जिसे अपने मान अथवा अपमान, अपनी स्तुति एवं निन्दा की चिंता नहीं होती, जो धैर्यवान होता है, वही संत है।

महात्मा कबीर ने संत की परिभाषा इस प्रकार व्यक्त की है-

निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह।

विषया सून्यारा रहै, संतन के अंग एह।।
अर्थात जिसका कोई शत्रु नहीं है, जो निष्काम है, जो ईश्वर से प्रेम करता है तथा विषयों से दूर रहता है, वही संत है।

प्रेम से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। मीराबाई का उदाहरण कालजयी है। विक्रमादित्य ने मीराबाई को विष देकर मारने का प्रयास किया। मीराबाई के लिए कांटों की सेज बिछाई गई। पूजा के पुष्पों की डलिया में पुष्पों में छिपाकर सर्प भेजा गया, ताकि वह मीराबाई के प्राण हर ले। उन्हें विष का प्याला दिया गया, परन्तु मीराबाई को कोई हानि नहीं पहुंची। मान्यता है कि विक्रमादित्य द्वारा भेजा गया विष अमृत तथा सर्प पुष्पों की माला बन गया। कांटों की सेज पुष्पों की सेज बन गई। गिरधर गोपाल के भक्तों का मानना था कि यह सब गिरधर गोपाल की भक्ति का ही फल था कि कोई भी मीराबाई का बाल बांका तक न कर सका। मीराबाई कहती हैं-

मीरा मगन भई, हरि के गुण गाय।
सांप पेटारा राणा भेज्या, मीरा हाथ दीयों जाय।
न्हाय धोय देखण लागीं, सालिगराम गई पाय।
जहर का प्याला राणा भेज्या, अमरित दीन्ह बनाय।
न्हाय धोय जब पीवण लागी, हो गई अमर अंचाय।
सूल सेज राणा ने भेजी, दीज्यो मीरा सुवाय।
सांझ भई मीरा सोवण लागी, मानो फूल बिछाय।
मीरा के प्रभु सदा सहाई, राखे बिघन हटाय।
भजन भाव में मस्त डोलती, गिरधर पै बलिजाय।
वास्तव में इन संतों ने समाज में व्याप्त बुराइयों पर प्रहार किया तथा लोगों को आपस में प्रेमभाव से रहने का संदेश दिया। अन्य संतों की भांति संत तुकाराम ने भी समाज में व्याप्त कुरीतियों आदि का विरोध किया। वह जाति-पांत तथा ऊंच-नीच का भेद नहीं मानते थे वह कहते थे कि सभी मनुष्य परमपिता ईश्वर की संतान हैं, इसलिए सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति एवं भक्ति-प्रचार के लिए समर्पित कर दिया था। उन्होंने गृहस्थ में रहकर ईश्वर की भक्ति का संदेश दिया। वह कहते थे कि मनुष्य के अपने परिवारजनों के प्रति सभी कर्त्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। वह कहते थे की संसार का सुख तो क्षणिक है, वास्तविक सुख तो ईश्वर की भक्ति में है।

उनका कहना था कि लोग अपने वस्त्र तो धोकर स्वच्छ कर लेते हैं, परंतु मन में विकारों की जो गंदगी भरी पड़ी है, उसे साफ नहीं करते। वह कहते हैं-
तुका बस्तर बिचारा क्या करे रे,
अन्तर भगवान होय।
भीतर मैला केंव मिटे रे,
मरे उपर धोय।।

अर्थात बेचारे वस्त्र को बार-बार धोने से क्या होगा? भगवान बाहरी वस्त्र में नहीं, अपितु हृदय में निवास करते हैं। आन्तरिक मैल को कब मिटाओगे? केवल बाहरी स्वच्छता से तो हम मर जाएंगे।
आज के समय में संतों की इन शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार की नितांत आवश्यकता है। पुस्तक की भाषा सरल एवं प्रभावशाली है। नि:संदेह यह पुस्तक समाज को एक नई दिशा देने का कार्य करेगी। आशा है कि मालवीयजी अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेंगे। यह पुस्तक उपयोगी एवं संग्रहणीय है।
पुस्तक का नाम : भारतीय संत परम्परा : धर्मदीप से राष्ट्रदीप

लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशक : शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स, दिल्ली

पृष्ठ : 239
मूल्य : 400

एससीओ में रक्षामंत्री का चीन-पाक को कड़ा संदेश

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– ललित गर्ग  –

भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के पोर्टे सिटी किंगदाओ में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब करते हुए संयुक्त घोषणापत्र में हस्ताक्षर करने से मना कर न केवल पाकिस्तान और चीन को नये भारत का कड़ा संदेश दिया, बल्कि दुनिया को भी जता दिया कि भारत आतंकवाद को पोषित एवं पल्लवित करने वाले देशों के खिलाफ अपनी लड़ाई निरन्तर जारी रखेगा। घोषणापत्र में बलोचिस्तान की चर्चा की गई थी किन्तु पहलगाम के क्रूर आतंकवादी हमले जिनमें धर्म पूछकर 26 लोगों को मारे जाने का कोई विवरण नहीं था। भारत की आतंकवाद को लेकर दोहरे मापदंड के विरुद्ध इस दृढ़ता एवं साहसिकता की चर्चा विश्वव्यापी हो रही है। भारत ने विश्व को आगाह कर दिया है कि अब आतंकवाद के मुद्दे पर दोहरे मापदंड नहीं चलेंगे। राजनाथ सिंह के अडिगता एवं असहमति के इस कदम से एससीओ के रक्षामंत्रियों का सम्मेलन बिना संयुक्त वक्तव्य जारी किये ही समाप्त हो गया, जो पाकिस्तान एवं चीन के मुंह पर करारा तमाचा है। ऐसा होना भारत की ही जीत है और चीन-पाकिस्तान के लिये शर्मसार होने की घटना है। विशेषतः इस घटनाक्रम से चीन की बदनीयत एक बार फिर से उजागर हो गई है।
  भारत विश्व स्तर पर इस कोशिश में लगा रहता है कि आतंकवाद का दबाव कम हो, दुनिया आतंकमुक्त बने, निर्दोष लोगों की क्रूर आतंकी हत्याओं पर विराम लगे, पर दुर्भाग्य से दुनिया में अनेक देश अपना राजनीतिक नफा-नुकसान देखकर ही इस पर अपना रुख तय करते हैं। वास्तव में एससीओ की बैठक में भी यही हुआ है। त्रासद विडंबना है कि एससीओ में शामिल देशों ने भारत में पडोसी देश पाक की आतंक घटनाओं पर विसंगतिपूर्ण एवं दुर्भाग्यपूर्ण रवैया अपनाया। वास्तव में, यह एक और प्रमाण है कि पाक पोषित आतंकवाद संबंधी भारतीय शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। इस बीच, अमरनाथ यात्रा से ठीक एक सप्ताह पहले गुरुवार को उधमपुर जिले में सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ सोचने पर मजबूर करती है। पाक की आतंकी हरकतें रूक नहीं रही है, अमरनाथ यात्रा पहले ही आतंकियों के निशाने पर रही है और इस बार भी आतंकियों के निशाने पर है, विगत तीन दशक से तनाव की स्थिति में ही अमरनाथ यात्रा हो रही है। सुरक्षा बल शांतिपूर्ण यात्रा के लिए प्रयासरत हैं लेकिन एससीओ जैसे संगठनों को पाक को सख्त हिदायत देते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत में पाक समर्थित आतंकवाद रूकना चाहिए।
निश्चित ही एससीओ सम्मेलन में भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह एक निडर एवं साहसिक नेता के रूप में उभरे। उन्होंने आतंकवाद की जड़ों पर प्रहार करने की भारत की नई नीति की रूपरेखा सम्मेलन में रखी। उनका कहना था कि संगठन के सदस्य देशों को आतंकवाद जैसी सामूहिक सुरक्षा से उत्पन्न चुनौती के मुकाबले के लिये एकजुट होना चाहिए। उनका मानना था कि कट्टरता, उग्रवाद और आतंकवाद दुनिया में शांति, सुरक्षा और विश्वास को कम कर रहे हैं। यह भी कि आतंकवाद पर तार्किक प्रहार किए बिना सदस्य देशों में शांति व समृद्धि संभव नहीं है। उन्होंने उन तत्वों को बेनकाब करने का प्रयास किया जो आतंकवाद को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के लिये उसे प्रश्रय देते हैं। उनका मानना था कि एससीओ आतंकवाद पर दोहरे मापदंड अपनाने के बजाय इसको प्रश्रय देने वाले देशों की आलोचना करे, आतंकवाद को समाप्त करने की मुहिम में निष्पक्ष बने। यह भी अच्छा हुआ कि रक्षामंत्री इस पर भी अड़े रहे कि एससीओ में आतंक का समर्थन करने वाले देशों की निंदा एवं भर्त्सना होनी चाहिए। इसका अर्थ था कि पाकिस्तान को बख्शा न जाए, लेकिन चीन ने आशंका के अनुरूप ढिठाई एवं बदनियत ही दिखाई।
चीन लगातार पाक के आतंकवाद पर सहयोगी दृष्टिकोण अपनाये हुए है। उसे आतंकवाद के खिलाफ सख्त होना चाहिए लेकिन वह पहले भी आतंकवाद के प्रति नरमी दिखा चुका है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में वह पाक के आतंकी सरगनाओं का बचाव कर चुका है। इससे उसकी बदनामी भी हुई थी, लेकिन उस पर कोई असर नहीं पड़ा। चीन आतंक को लेकर जितना संवेदनशील होना चाहिए, पाक के कारण वह उतना नहीं हो पा रहा है। इससे उनकी अन्तर्राष्ट्रीय छवि आहत हो रही है, लेकिन वह सुधरने को तैयार नहीं है। यह स्पष्ट है कि एससीओ में चीन-पाक के बीच बढ़ते शरारत भरे तालमेल पर भारत को इस संगठन में अपनी भूमिका को लेकर सतर्क एवं सावधान होना होगा। भारत को यह भी देखना होगा कि विस्तार ले रहे इस संगठन में अपनी महत्ता कैसे स्थापित करे। यह ठीक है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के मनमाने रवैये के कारण चीन भारत से संबध सुधारना चाहता है और कुछ मामलों में अपना रुख बदलने के लिए विवश भी हुआ है, पर इसका यह मतलब नहीं कि वह भारत के हितों की अनदेखी करे या फिर अमेरिका एवं पश्चिम के अन्य देशों की तरह आतंकवाद पर दोहरा रवैया अपनाए और आतंक के समर्थक पाक का सहयोग एवं समर्थन जारी रखे। भारतीय नजरिये से देखें, तो अमेरिका और चीन, दोनों ही भारत में आतंकवाद के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। भूलना नहीं चाहिए, पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाक सैन्य जनरल का अपने भवन में भोज के साथ स्वागत किया है। ऐसे घटनाक्रमों से भारत के लिए संदेश साफ है कि वह आंतरिक स्तर पर आतंकियों के लिये अपने संघर्ष को तीखी धार दे। भारत को अपनी आर्थिक एवं सैन्य ताकत बढ़ानी होगी, तभी आतंकवाद को कुचला जा सकता है। आतंकवाद के खिलाफ उसे अकेले की संघर्षरत रहना होगा।
दरअसल, एससीओ सम्मेलन में भारत चाहता था कि अंतिम दस्तावेज में आतंकवाद को लेकर भारतीय चिंताओं को जगह दी जाए। इसीलिये सम्मेलन में रक्षामंत्री ने ऑपेरशन सिंदूर की तार्किकता को बताया और पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पहलगाम की घटना दुनिया के सामने स्पष्ट थी और दुनिया के तमाम देशों ने इसकी निंदा भी की। इसी से दो देशों के बीच युद्ध की नौबत आ गई, एससीओ सम्मेलन में उस हमले को तवज्जो न देने की रणनीति दरअसल हकीकत के साथ मखौल एवं दौगलापन है। लेकिन सम्मेलन में रक्षामंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जी-7 शिखर सम्मेलन में कही उन बातों को ही विस्तार दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को कभी पुरस्कृत नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने यह आश्चर्य जताया था कि आतंक के अपराधियों और इसके पीड़ितों को एक तराजू में कैसे तोला जा सकता है? यह कड़ा संदेश प्रधानमंत्री ने अमेरिका को दिया था।
  पाक और उसके करीबी सहयोगियों के नापाक इरादों को दुनिया को बताने तथा भारत की बात हर देश तक पहुंचाने के लिए भारत ने बहु-पक्षीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया भर में भेजे। लेकिन पाक के सदाबहार दोस्त चीन के दबदबे वाले एससीओ सम्मेलन में पाक के आतंकी मनसूंबों को लेकर स्पष्ट नजरिया बनना जरूरी है। एससीओ की घोषणा में अगर यह आरोप लगाया गया है कि बलूचिस्तान की गड़बड़ी में भारत शामिल है, तो फिर भारत को ज्यादा कड़ा रुख अख्तियार करने की जरूरत है। ऐसे झूठे एवं भ्रामक तथ्यों का प्रतिकार जरूरी है। ऐसे झूठ को फैलाकर ही पाक दुनिया से सहानुभूमि जुटाता रहा है। इसलिये किसी भी ऐसे विश्व स्तरीय सम्मेलन में अपनी बात भी पुरजोर ढंग से तथ्यपरक तरीके से रखनी चाहिए। वहां पारित होने वाले प्रस्तावों के प्रति रक्षामंत्री की भांति ज्यादा संवेदनशील एवं सख्त होने की जरूरत है। भारत अपनी इसी नीति को दोहरा कर शत्रु मानसिकता वाले देशों को सबक दे सकेगा। पाक के प्रति भारत की सख्ती हर मोर्चें पर दिखाई दे। भले ही पाक हकीकत न देखने की गलती दोहराता रहे। अपने संकीर्ण एवं स्वार्थी उद्देश्यों के लिए आतंकवाद को प्रायोजित, पोषित तथा प्रयोग करने वालों को इसके परिणाम भुगतने ही होंगे। ऐसा करते हुए वह कंगाल होने की कगार पर पहुंच चुका है, वह लगातार गरीबी और कमजोरी का शिकार हो रहा है। आतंकवाद को पोषित करते हुए यह देश अन्य देशों की दया पर आश्रित होता जा रहा है। लेकिन भीख में मिली दया या अनुदान से कब तक खुद को कायम रख पायेगा?