व्यंग्य मार्किट ददाति मोटिवेशन April 4, 2018 by अमित शर्मा | Leave a Comment अमित शर्मा (CA) इस मीन (स्वार्थी) दुनिया में विटामिन की बहुत कमी पाई जाती है जिसके कारण बहुत सी बीमारियां बिना किसी क्लिक और एंटर के स्वतः ही डाऊनलोड हो जाती है। विटामिन सी औऱ विटामिन डी के अलावा विटामिन एम अर्थात मोटिवेशन की कमी भी पिछले काफ़ी समय से सामाजिकता के रैंप पर कैटवॉक […] Read more » Featured बाजार मोटिवेशन मोटिवेशनल स्पीकर्स रिश्ते
व्यंग्य साहित्य त्योहार और बाजार…!! September 26, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कहते हैं बाजार में वो ताकत हैं जिसकी दूरदर्शी आंखे हर अवसर को भुना कर मोटा मुनाफा कमाने में सक्षम हैं। महंगे प्राइवेट स्कूल, क्रिकेट , शीतल पेयजल व मॉल से लेकर फ्लैट संस्कृति तक इसी बाजार की उपज है। बाजार ने इनकी उपयोगिता व संभावनाओं को बहुत पहले पहचान लिया और […] Read more » त्योहार त्योहार और बाजार बाजार
कला-संस्कृति विविधा जल परम्परा और बाजार April 23, 2016 by मनोज कुमार | Leave a Comment मनोज कुमार एक समय था जब आप सफर पर हैं तो पांच-दस गज की दूरी पर लाल कपड़े में लिपटा पानी का घड़ा आपकी खातिरदारी के लिए तैयार मिलेगा. पानी के घड़े के पास जाते हुए मन को वैसी ही शीतलता मिलती थी, जैसे उस घड़े का पानी लेकिन इस पाऊच की दुनिया में मन […] Read more » Featured Water Conservation जल परम्परा बाजार
राजनीति मंदिरों के सोने पर सरकार की नजर April 14, 2015 by प्रमोद भार्गव | 1 Comment on मंदिरों के सोने पर सरकार की नजर भारत प्राचीन समय से सोने के भंडारण में अग्रणी देश रहा है। इसलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता है। इस समय भारतीय रिर्जब बैंक के पास करीब 18 हजार टन सोना है। इसके अलावा एक अनुमान के मुताबिक देश के मंदिरों में कुल मिलाकर करीब 3 हजार टन और भारतीय घरों में लगभग […] Read more » Featured आभूषण प्रमोद भार्गव बाजार मंदिर मंदिरों के सोने पर सरकार की नजर विश्व स्वर्ण परिषद सोना सोने की सबसे ज्यादा खपत स्वर्ण स्वर्ण आभूषण बाजार
लेख समाज बाजार, तकनीकी और नैतिक पतन February 12, 2012 / February 12, 2012 by राजीव गुप्ता | Leave a Comment राजीव गुप्ता जयप्रकाश नारायण ने अपनी एक पुस्तक “समाजवाद से सर्वोदय की ओर” में लिखा है कि “विज्ञानं ने अखिल विश्व को सिकोड़कर एक पड़ोस बना दिया है !” इस बात की सत्यता एवं प्रामाणिकता वर्तमान परिदृश्य की भौतिकता के आधुनिक दौर में हुए तकनीकी विकास को देखकर लगाया जा सकता है ! मसलन देश […] Read more » development in science and technology तकनीकी नैतिक पतन बाजार
विविधा संस्कार और बाज़ार October 28, 2011 / December 5, 2011 by राजीव गुप्ता | Leave a Comment राजीव गुप्ता अवधपुरी अति रुचिर बनाई ! देवन्ह सुमन बृष्टि झरी लाई !! प्रभु बिलोकि मुनि मन अनुरागा ! तुरत दिब्य सिंघासन माँगा !! (उत्तरकाण्ड, रामचरितमानस) बाय वन गेट टू फ्री….वॉव….देख-देख-उधर-देख….चल यार उधर ही चलते है….आज शॉपिंग करने में मज़ा आ जाएगा….कहते हुए गीतू ने अपनी तीन सहेलियों मीतू,नीतू और रीतू को इमोशनल ब्लैकमेल करते […] Read more » market बाजार संस्कार
महिला-जगत मीडिया बाजार में औरत और औरत का बाजार July 23, 2011 / December 8, 2011 by संजय द्विवेदी | Leave a Comment संजय द्विवेदी हिंदुस्तानी औरत इस समय बाजार के निशाने पर है। एक वह बाजार है जो परंपरा से सजा हुआ है और दूसरा वह बाजार है जिसने औरतों के लिए एक नया बाजार पैदा किया है। औरत की देह इस समय मीडिया के चौबीसों घंटे चलने वाले माध्यमों का सबसे लोकप्रिय विमर्श है। लेकिन परंपरा […] Read more » market देह नारीमुक्ति बाजार स्त्री विमर्श
धर्म-अध्यात्म धर्म का बाजार या बाजार का धर्म June 22, 2011 / December 11, 2011 by श्यामल सुमन | 3 Comments on धर्म का बाजार या बाजार का धर्म श्यामल सुमन कई वर्षों का अभ्यास है कि रोज सबेरे सबेरे उठकर कुछ पढ़ा लिखा जाय क्योंकि यह समय मुझे सबसे शांत और महफूज लगता है। लेकिन जब कुछ पढ़ने लिखने के लिए तत्पर होता हूँ तो अक्सर मुझे दो अलग अलग स्थितियों का सामना अनिवार्य रूप से करना पड़ता हैं। पहला – टी०वी० के […] Read more » Religion धर्म बाजार
राजनीति अखबार बेचने का तरीका January 6, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on अखबार बेचने का तरीका लक्ष्मण प्रसाद ‘नक्सलियों ने किया विस्फोट!’ ये आवाज चार बजे भोर की गहरी नींद को तोड़ने के लिए पर्याप्त थी। हम में से कुछ यात्री जबलपुर रेलवे स्टेशन के कुछ उन इक्के-दुक्के अखबार बेचने वाले हाकरों को ढूढ़ने ट्रेन से बाहर निकल पड़े। बाहर आया तो देखा कि सिकन्दराबाद से पटना आने वाले मेरे जैसे […] Read more » Naxalism नक्सलवाद बाजार
विविधा बाजार के हवाले ‘हम भारत के लोग’ June 28, 2010 / December 23, 2011 by संजय द्विवेदी | 1 Comment on बाजार के हवाले ‘हम भारत के लोग’ बढ़ती कीमतों ने जाहिर किया आम आदमी की चिंता किसी को नहीं – संजय द्विवेदी एक लोककल्याणकारी राज्य जब खुद को बाजार के हवाले कर दे तो कहने के लिए क्या बचता है। इसके मायने यही हैं कि राज्य ने बाजार की ताकतों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है और जनता को महंगाई की ऐसी […] Read more » Inflation बाजार महंगाई
मीडिया बाजार की चुनौतियों से बेजार हिन्दी पत्रकारिता April 23, 2010 / December 24, 2011 by संजय द्विवेदी | 1 Comment on बाजार की चुनौतियों से बेजार हिन्दी पत्रकारिता आज भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी पत्रकारिता की चुनौतियां न सिर्फ बढ़ गई हैं वरन उनके संदर्भ भी बदल गए हैं। पत्रकारिता के सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी बातों पर सवालिया निशान हैं तो उसकी नैसर्गिक सैद्धांतिकता भी कठघरे में है। वैश्वीकरण और नई प्रौद्योगिकी के घालमेल से एक ऐसा वातावरण बना है जिससे कई सवाल पैदा […] Read more » hindi journalism बाजार भूमंडलीकरण हिंदी पत्रकारिता
संगीत सिनेमा बाजार और बिकनी के चंगुल में गीतकार और संगीतकार July 31, 2009 / December 27, 2011 by जयराम 'विप्लव' | 8 Comments on बाजार और बिकनी के चंगुल में गीतकार और संगीतकार गीत-संगीत अर्थात सुरो का सागर, जो मन की गहराईयों में पहुचकर शरीर के अंदर छीपे सुक्ष्म कोशिकाओं को तरंगीत कर उसे उर्जान्वित करने का काम करती है। संगीत भारत के लिए कोई नई अवधरणा नहीं है Read more » Maket बाजार बिकनी