कविता एससी एसटी एक्ट February 25, 2020 / February 25, 2020 by मुकेश चन्द्र मिश्र | Leave a Comment राष्ट्रवाद का झोला टांगे मैं सवर्ण आवारा हूँ। मुसलमान से यदि बच जाऊं तो दलितों का चारा हूँ॥ कांग्रेस ने दर्द दिए तब हमने कमल का फूल चुना। किंतु जेल में डाल रहे ये हमे कोई पड़ताल बिना॥ पशुवों की भी चिंता होती उनके हित सरकार खड़ी। हम उनसे भी बदतर हमपर लोकतन्त्र की मार […] Read more » एससी/एसटी एक्ट कविता
समाज काम ने मुझे जीते जी अमर बना दिया September 11, 2018 by अनिल अनूप | Leave a Comment अनिल अनूप कृष्णा न्यूड मॉडल हैं. बिना कपड़ों के मॉडलिंग करती हैं. या फिर महीने के चंद रोज़ निचले हिस्से में बित्ताभर कपड़े के साथ. दिल्ली यूनिवर्सिटी के लिए पिछले 18 सालों से काम कर रही हैं. जिस समाज में दूध पिलाती मां भी सेक्स ऑब्जेक्ट होती है, वहां इस पेशे के लिए मजबूती नहीं, […] Read more » कविता कृष्णा गाने फिल्मों बदायूं
कहानी मित्र के नाम पत्र 2 August 18, 2018 / August 18, 2018 by गंगानन्द झा | Leave a Comment गंगानन्द झा तुम्हारे पास से पत्र का पाना मेरे लिए दुर्लभ कोटि का हुआ करता है। कल की डाक से जब मिला तो तुम्हारे द्वारा दी गई जानकारी के बावजूद उपलब्धि का एहसास हुआ। तुम्हें तो पता ही होगा कि स्थिरता नहीं रह जाने के कारण मेरी लिखावट अपाठ्य रही है अब उम्र के साथ […] Read more » Featured कविता माँ-बाप मित्र के नाम पत्र 2 सोशल नेटवर्किंग साइट्स
राजनीति लौट कर आयूंगा कूच से क्यों डरूं August 17, 2018 / August 17, 2018 by अतुल गौड़ | 1 Comment on लौट कर आयूंगा कूच से क्यों डरूं अतुल गौड अटल थे तो कहाँ जायेंगे यहीं तो है आप उन्हें जहाँ पाएंगे अटल जी जैसी शक्शियतें कभी मरा नहीं करती ये बात और है की मौत से उनकी ठनी थी एवो प्रकर्ति का नियम है उसे हर हाल में सूरते अंजाम होना ही था हुआ भी वही जो होना था रार नहीं ठानने […] Read more » Featured कविता गंगा जमुना संस्कृति भारत लौट कर आयूंगा कूच से क्यों डरूं
कविता आज भी न बरसे कारे कारे बदरा June 13, 2015 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment -श्रीराम तिवारी- आज भी न बरसे कारे कारे बदरा, आषाढ़ के दिन सब सूखे बीते जावे हैं । अरब की खाड़ी से न आगे बढ़ा मानसून , बनिया बक्काल दाम दुगने बढ़ावे है। वक्त पै बरस जाएँ कारे–कारे बदरा , दादुरों की धुनि पै धरनि हरषावे है।। कारी घटा घिर आये ,खेतों में बरस जाए , सारंग की धुनि संग सारंग भी गावै है। बोनी की बेला में जो देर करे […] Read more » Featured आज भी न बरसे कारे कारे बदरा कविता बारिश कविता
कविता परिंदे June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनोज चौहान- 1) कविता / परिंदे मैं करता रहा, हर बार वफा, दिल के कहने पर, मुद्रतों के बाद, ये हुआ महसूस कि नादां था मैं भी, और मेरा दिल भी, परखता रहा, हर बार जमाना, हम दोनों को, दिमाग की कसौटी पर । ता उम्र जो चलते रहे, थाम कर उंगली, वो ही […] Read more » Featured कविता परिंदे
कविता मौत एक गरीब की June 10, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 3 Comments on मौत एक गरीब की -मीना गोयल ‘प्रकाश’- कुछ वर्ष पहले हुई थी एक मौत… नसीब में थी धरती माँ की गोद … माँ का आँचल हुआ था रक्त-रंजित… मिली थी आत्मा को मुक्ति… सुना है आज अदालत में भी… हुई हैं कुछ मौतें… है हैरत की बात… नहीं हुई कोई भी आत्मा मुक्त… होती है मुक्त आत्मा… मर […] Read more » Featured कविता मौत एक गरीब की
कविता मां June 8, 2015 by विजय कुमार सप्पाती | Leave a Comment -विजय कुमार सप्पाती- “माँ / तलाश” माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा; वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी .. ! लेकिन अपने गाँव/छोटे शहर की गलियों में , मैं अक्सर छुप जाया करता था ; और माँ ही हमेशा मुझे ढूंढ़ती थी ..! और मैं छुपता भी इसलिए था […] Read more » Featured कविता मां मां कविता मां पर कविता
कविता सबसे खूबसूरत हो तुम June 8, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -मनीष सिंह- बाहर से जितनी मासूम , मन से भी उतनी खूबसूरत हो तुम , एक कलाकार की पूरी मेहनत से तराशी गयी जैसे मूरत हो तुम। एक कवि की सबसे प्यारी कल्पना , चित्रकार की सबसे बड़ी रचना , कभी सबसे अच्छा ख़्वाब और कभी सबसे प्यारी हकीकत हो तुम। जैसे खिलता […] Read more » Featured कविता सबसे खूबसूरत हो तुम
कविता बस, मैं और चाँद June 5, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- थोड़ी सी बूँदे गिरने से, धूल बूँदों मे घुलने से, हर नज़ारा ही साफ़ दिखता है। रात सोई थी मैं, करवटें बदल बदल कर, शरीर भी कुछ दुखा दुखा सा था, पैर भी थके थके से थे, मन अतीत मे कहीं उलझा था। खिड़की की ओर करवट लिये, रात सोई थी मैं। […] Read more » Featured कविता चांद कविता बस मैं और चाँद
कविता जादूगरी जो जानते June 2, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०५२६-५) जादूगरी जो जानते, स्मित नयन बस ताकते; जग की हक़ीक़त जानते, बिन बोलते से डोलते। सब कर्म अपने कर रहे, जादू किए जैसे रहे; अज्ञान में जो फिर रहे, उनको अनौखे लग रहे । हैं नित्य प्रति आते यहाँ, वे जानते क्या है कहाँ; बतला रहे बस वही तो, आते […] Read more » Featured कविता जादूगरी जो जानते
कविता झकझोरता चित चोरता (मधुगीति १५०५०५-३) May 29, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment -गोपाल बघेल ‘मधु’- झकझोरता चित चोरता, प्रति प्राण प्रण को तोलता; रख तटस्थित थिरकित चकित, सृष्टि सरोवर सरसता । संयम रखे यम के चखे, उत्तिष्ठ सुर उर में रखे; आभा अमित सुषमा क्षरित, षड चक्र भेदन गति त्वरित । वह थिरकता रस घोलता, स्वयमेव सबको देखता; आत्मा अलोड़ित छन्द कर, आनन्द हर उर फुरकता । […] Read more » Featured कविता झकझोरता चित चोरता