Tag: कांग्रेस

राजनीति

कहीं अपने होने का अर्थ ही न खो दें राहुल गांधी !

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राहुल गांधी शुरू से ही राजनीति को लेकर दुविधा में दिखते रहे हैं। वे सार्वजनिक रूप से यहां तक कह चुके हैं कि सत्ता तो जहर है। लेकिन फिर भी मनमोहन सिंह की पहली सरकार में ही मंत्री बन गए होते, तो देश चलाना सीख जाते और सत्ता का जहर पीना भी। कांग्रेस ने अगली बार फिर जब मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया था, तब भी उनको न बनाकर, राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया जाता, तो कोई कांग्रेस का क्या बिगाड़ लेता ?

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राजनीति

गुजरात की आंधी में मारवाड़ का ‘गांधी’

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दिसंबर से पहले गुजरात में चुनाव होने हैं। लेकिन समय बहुत कम है। थोड़ा सा जमीनी स्तर पर जाकर देखें, तो गहलोत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि गुजरात के कई कई गांवों में न तो कांग्रेस का कोई नाम लेनेवाला है और न ही कोई शुभचिंतक। फिर, प्रदेश में कांग्रेस का कोई भी ऐसा नेता नहीं है, जिसके नाम से कहीं पर भी एक हजार लोग भी इकट्ठे किए जा सकें। गुजरात मं तो राहुल गांधी को भी रोड़ शो के जरिए लोगों की संख्या ज्यादा दिखाने का नुस्खा अपनाना पड़ता है। हालांकि गुजरात के सारे कांग्रेसी नेता थोड़े बहुत जनाधारवाले जरूर हैं, लेकिन पूरे प्रदेश में कांग्रेस के पक्ष में माहौल खड़ा कर दे, यह क्षमता किसी में नहीं है। जिस गुजरात में कांग्रेस मरणासन्न अवस्था में हैं, वहां गहलोत के लिए अपनी पार्टी को चुनाव जितवाना तो दूर बल्कि कांग्रेस संगठन को फिर से खड़ा करना भी जिस एक अलग किस्म की चुनौती है, उस पर विस्तार से बात कभी और करेंगे।

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राजनीति

असाधारण जनादेश के नैतिक दायित्व

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प्रश्न उठता है कि ऐसा क्या है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में। उत्तर है देश को लंबे समय बाद ऐसा नेतृत्व मिला है जिसकी प्रामाणिकता, परिश्रम एवं निष्ठा पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं है। उत्तर है कि प्रधानमंत्री मोदी उस पार्टी के कार्यकर्ता हैं जिसका अधिष्ठान राष्ट सर्वोपरि है। उत्तर है, भाजपा के पीछे उन हजारों, लाखों, करोड़ों कार्यकर्ताओं एवं जन सामान्य का विश्वास है जो भाजपा के सदस्य नहीं हैं पर यह मानते हैं कि देश के लिए आज भाजपा आवश्यक है। उत्तर है, कि आज भाजपा को उनका भी समर्थन प्राप्त है जो परंपरागत रूप से भाजपा के साथ नहीं रहे हैं।

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राजनीति

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनाम राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयं सेवक संघ

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संघ के स्वयंसेवक समाज - सेवा एवं राष्ट्र-निर्माण के लिये कठोर जीवन जीते हैं। उनका लक्ष्य राजनींति एवं सत्ता के माध्यम से सुविधायें न जुटाकर, पूरे देष मे सुदूर वनवासी क्षेत्रों तक में- पैदल तक चलकर, अनवरत काम करते हैं। हिन्दू समाज मे सामाजिक समरसता का भाव भरते हुये उसे एकता के सूत्र में पिरोते हैं। संघ मे लाखों-लाख ऐसे स्वयं सेवक हैं, जो आजीवन अविवाहित रहकर एकाकी जीवन जीकर अपने रक्त की एक-एक बूंद राष्ट्र के लिये समर्पित कर देते हैं। राष्ट्र-जीवन की भयावह समस्याओं के समक्ष अपने परिजनो के दुःख-दैन्य उनके लिये गौण हो जाते हैं।

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विविधा

सपा को विपक्ष में बैठकर काम करने का सबक

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वस्‍तुत: पिछले कई चुनावों से सभी ने देखा है कि किस तरह यूपी में चुनाव आते ही मुस्‍लिम वोट बैंक की राजनीति शुरू हो जाती थी। लगता था कि सपा-बसपा, कांग्रेस में होड़ मची है यह बताने की कि कौन कितना बड़ा मुस्‍लिमों का पेरोकार है। भाजपा को छोड़कर इस बार भी हर बार की तरह ही यहां मुसलमानों को थोक में पार्टियों ने अपना प्रत्‍याशी बनाया, इस आशा में कि वह कमाल कर देंगे, जीतकर आएंगे और सरकार बनाने में अपना अहम रोल अदा करेंगे।

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राजनीति

राहुल गांधी में दम है, तो कांग्रेस का दम क्यों निकल रहा है ?

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ताजा परिदृश्य में देखे, तो पंद्रह सालों से लगातार कोशिशें करने के बावजूद राहुल गांधी देश के राजनैतिक परिदृश्य में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और जगह बना पाने में शाश्वत रूप से असफल रहे हैं। राहुल गांधी के पार्टी की कमान पूरी तरह से संभालने में लगातार देरी भी उनकी काबिलियत पर सवाल खड़े कर रही है। राज्यों में पार्टी की कमान सौंपने के मामले में भी गलतियां हो रही हैं।

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राजनीति

अवमानना के लिए विशेषाधिकार का प्रयोग क्यूँ नहीं ?

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का कितना बड़ामखौल है इस देश में कि वर्तमान प्रधानमंत्री के लिये अभद्रशब्दों और गालियों का प्रयोग अधिकतर विपक्ष के नेता और छुटभइये कर सकते हैं परंतु वर्तमान प्रधानमंत्री किसी पूर्व प्रधानमंत्री को रेनकोट पहनकर स्नान करने की बात नहीं कह सकता। वर्तमान सरकार के नोटबंदी के निर्णय को पूर्व प्रधानमंत्री संगठित लूट और कानूनी लूट की संज्ञा तो दे सकता है परंतु पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुए अरबों के बहुचर्चित घोटालों जिनके लिये सर्वोच्च न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था, की ओर इशारा तक वर्तमान प्रधानमंत्री नहीं कर सकता।

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