धर्म-अध्यात्म अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ October 3, 2024 / October 3, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों एवं भारतीय समाज के लिए संघ के अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष में प्रवेश करना एक गर्व का विषय हो सकता है। संघ के स्वयंसेवक समाज में अपना सेवा कार्य पूरी प्रामाणिकता से बहुत ही शांतिपूर्वक तरीके से करते रहते हैं। वरना, भारत सहित पूरे विश्व में आज ऐसा माहौल बन गया है कि कुछ संगठन जो समाज में सेवा कार्य करते तो बहुत थोड़ा है परंतु उस कार्य का बहुत अधिक प्रचार प्रसार करते हैं। इसके ठीक विपरीत संघ के स्वयंसेवक चुपचाप समाज में अपने ईश्वरीय कार्य को सम्पादित करते रहते हैं, कई बार तो संघ के पदाधिकारियों को भी इस बात का आभास नहीं हो पाता है कि हमारे संघ के स्वयंसेवकों ने समाज में कोई विशेष सेवा कार्य सम्पन्न किया है। दरअसल, संघ के स्वयंसेवकों को यह संस्कार संघ की शाखा में प्रदान किए जाते हैं। और, इसी प्रकार की कई अन्य विशेषताओं के चलते, आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे विश्व में सबसे बड़ा सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन कहा जाने लगा है। भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में शायद ही कोई ऐसा संगठन रहा होगा जो अपनी स्थापना के समय से ही निर्धारित किए गए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर लगातार सफलतापूर्वक आगे बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना उस समय हुई थी, जब अंग्रेजों की दासता में भारतीय संस्कृति का सर्वनाश हो रहा था। इससे व्यथित होकर डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना विजयादशमी के पावन अवसर पर वर्ष 1925 में की थी। मार्च 2024 में संघ की नागपुर में आयोजित प्रतिनिधि सभा में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 922 जिलों, 6597 खंडों एवं 27,720 मंडलों में 73,117 दैनिक शाखाएं हैं, प्रत्येक मंडल में 12 से 15 गांव शामिल हैं। समाज के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से 40 से अधिक विभिन्न संगठन अपना कार्य कर रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। देश में राजनैतिक कारणों के चलते संघ पर तीन बार प्रतिबंध भी लगाया गया है – वर्ष 1948, वर्ष 1975 एवं वर्ष 1992 में – परंतु तीनों ही बार संघ पहिले से भी अधिक सशक्त होकर भारतीय समाज के बीच उभरा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ “हिंदू” शब्द की व्याख्या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में करता है जो किसी भी तरह से (पश्चिमी) धार्मिक अवधारणा के समान नहीं है। इसकी विचारधारा और मिशन का जीवंत सम्बंध स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद, बाल गंगाधर तिलक और बी सी पाल जैसे हिंदू विचारकों के दर्शन से हैं। विवेकानंद ने यह महसूस किया था कि “एक सही अर्थों में हिंदू संगठन अत्यंत आवश्यक है जो हिंदुओं को परस्पर सहयोग और सराहना का भाव सिखाए”। स्वामी विवेकानंद के इस विचार को डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने व्यवहार में बदल दिया। उनका मानना था कि हिंदुओं को एक ऐसे कार्य दर्शन की आवश्यकता है जो इतिहास और संस्कृति पर आधारित हो, जो उनके अतीत का हिस्सा हो और जिसके बारे में उन्हें कुछ जानकारी हो। संघ की शाखाएं “स्व” के भाव को परिशुद्ध कर उसे एक बड़े सामाजिक और राष्ट्रीय हित की भावना में मिला देती हैं। वस्तुतः यह कह सकते हैं कि हिंदू राष्ट्र को स्वतंत्र करने व हिंदू समाज, हिंदू धर्म और हिंदू संस्कृति की रक्षा कर राष्ट्र को परम वैभव तक पहुंचाने के उद्देश्य से डॉक्टर साहब ने संघ की स्थापना की। आज संघ का केवल एक ही ध्येय है कि भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित करना। संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार जी की दृष्टि हिंदू संस्कृति के बारे में बहुत स्पष्ट थी एवं वे इसे भारत में पुनः प्रतिष्ठित कराना चाहते थे। डॉक्टर साहब के अनुसार, “हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान का प्राण है। अतएव हिंदुस्तान का संरक्षण करना हो तो हिंदू संस्कृति का संरक्षण करना हमारा पहला कर्त्तव्य हो जाता है। हिंदुस्तान की हिंदू संस्कृति ही नष्ट होने वाली हो तो, हिंदू समाज का नामोनिशान हिंदुस्तान से मिटने वाला हो, तो फिर शेष जमीन के टुकड़े को हिंदुस्तान या हिंदू राष्ट्र कैसे कहा जा सकता है? क्योंकि राष्ट्र जमीन के टुकड़े का नाम तो नहीं है …… यह बात एकदम सत्य है। फिर भी हिंदू धर्म तथा हिंदू संस्कृति की सुरक्षा एवं प्रतिदिन विधर्मियों द्वारा हिंदू समाज पर हो रहे विनाशकरी हमलों को कांग्रेस द्वारा दुरलक्षित किया जा रहा है, इसलिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आवश्यकता है।” जिस खंडकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी वह मुस्लिम तुष्टिकरण का काल था। वर्ष 1920 में देश में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ। मुसलमानों का नेतृत्व मुल्ला-मौलवियों के हाथों में था। इस खंडकाल में मुसलमानों ने देश में अनेक दंगे किए। केरल में मोपला मुसलमानों ने विद्रोह किया। उसमें हजारों हिंदू मारे गए। मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण के कारण हिंदुओं में अत्यंत असुरक्षिता की भावना फैली थी। हिंदू संगठित हुए बिना मुस्लिम आक्राताओं के सामने टिक नहीं सकेंगे, यह विचार अनेक लोगों ने प्रस्तुत किया और इस प्रकार हिंदू हितों के रक्षार्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। संघ के प्रयासों से भारत में विस्मृत राष्ट्रभाव का पुनर्जागरण प्रारम्भ हुआ। स्वामी विवेकानंद ने वेदांत के आधार पर सार्वभौम हिंदुत्व का प्रचार किया। आधुनिक भारत के अंतरराष्ट्रीय शंकराचार्य के रूप में उन्हें प्रतिष्ठित किया जा सकता है। उनके प्रयासों से हिंदू धर्म का न केवल उद्धार हुआ, अपती हिंदू समाज को उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित भी किया। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, राजनारायण बोस, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, योगी अरविंद, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार जैसे हिंदू हितचिंतकों ने विश्व के समक्ष यह संदेश दिया कि हिंदुस्तान में राष्ट्रीय एकता का आधार हिंदू धर्म है और स्वयं हिंदू एक धर्म प्रधान एवं प्रकृति के सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधार जीवन पद्धति है। पश्चिमी देशों में जीवन के लक्ष्य का सदैव अभाव रहा है। भौतिक सुख-समृद्धि ही जीवन का मानक बन गया था। इसलिए पश्चिमी देश असंवेदनशील हो गए थे। साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद जैसी वैचारिकी इस भौतिकवादी पृष्ठभूमि की उपज रही है। भौतिकता की अंधी दौड़ ने अंततः नाजीवादी, फासीवाद एवं साम्यवाद जैसे विचारों को जन्म देकर पश्चिमी देशों को महायुद्धों की विनाशलीला में झोंक दिया था। स्वामी विवेकानंद जैसे हिंदू चिंतकों द्वारा पश्चिमी देशों में हिंदुत्व के आदर्शों को प्रस्थापित कर उन्हें अंधकार से अलग करने का प्रयास किया गया था। हिंदू आदर्शों का यदि अनुपालन किया जाता तो सम्भवत: मानवीय विनाश के उन दृश्यों को रोका जा सकता था जो विश्व मानव की छाती पर एक भीषण घटित दुर्घटना के चोट के चिन्ह रूप में विद्यमान है। स्वामी विवेकानंद ने जीवन जीने के लक्ष्य एवं मानव संस्कृति के मूल रहस्यों को पश्चिमी समाज के समक्ष उद्घाटित किया था। स्वामी विवेकानंद के प्रयासों से पश्चिमी समाज में हिंदुत्व के प्रति एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ था और लोग हिंदू संस्कृति के मूल रहस्यों को जानने के लिए आकर्षित हुए। स्वामी विवेकानंद को हिंदू राष्ट्रीयता का विश्व में प्रथम उद्घोषक कहा जा सकता है। उन्होंने विश्व के समक्ष भारत की मूल्यवान आध्यात्मिक धरोहर को प्रतिष्ठित किया तथा हिंदू धर्म के मूल रहस्यों से विश्व को अवगत कराया। स्वामी रामतीर्थ, महर्षि दयानंद, डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार, महात्मा गांधी, डॉक्टर अम्बेडकर, एम एस गोलवलकर, दीनदयाल उपाध्याय, दत्तोपंत ठेंगढ़ी जैसे चिंतकों ने हिंदुओं को चिंतन की एक नयी शैली एवं विधा से सुसज्जित कर हिंदुत्व के पुनरुत्थान का सार्थक प्रयास किया। उक्त हिन्दू चिंतकों ने विश्व समुदाय में हिन्दुत्व के प्रति फैले भ्रम को न केवल दूर करने का प्रयास किया, अपितु हिन्दुस्तान में सनातन संस्कृति के प्रति जो वैषम्यतापूर्ण विचारधाराएं बलवती हो रही थीं उन्हें भी प्रतिबन्धित करने का प्रयास किया। इन विचारकों ने सामाजिक समरसता स्थापित करने के लिए उन समस्त कुरीतियों को दूर करने का आह्वान भी किया। मुगलकाल एवं ब्रिटिश शासन के अंतर्गत हिन्दू लोक जीवन विखंडित हो गया था। हिन्दू धर्म के मूल रहस्यों से अनभिज्ञ आक्रांताओं ने न केवल वैयक्तिक अधिकारों का हनन किया अपितु हिन्दू धर्म के मूल ग्रंथों को भी नष्ट कर दिया। 1000 वर्षो तक सनातन संस्कृति विधर्मियों के प्रहार को झेलती हुई लगभग मृतप्राय बना दी गई थी। अब आवश्यकता है कि मूल्य परक हिन्दू जीवन पद्धति जिससे न केवल मानव अपितु प्रकृति एवं जीव-जन्तु जगत का भी उत्थान सम्भव है, उसे पुनः प्रतिष्ठित किया जाए। वस्तुतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आज भी लक्ष्य हिंदुओं को जाति, क्षेत्र और भाषा के कृत्रिम विभाजन के चलते उत्पन्न सामाजिक सांस्कृतिक विरोधभासों से उबारना है। इसकी आकांक्षा है कि भारत को विश्व गुरु का स्थान अपने कर्तृत्व, दर्शन और सांस्कृतिक प्रभाव से पुनः मिले। भारतीय समाज को संघ के इन प्रयासों से अपने आप को जोड़ना चाहिए तभी भारत को पुनः विश्व गुरु के रूप में स्थापित किया जा सकेगा। प्रहलाद सबनानी Read more » राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
राजनीति रामभक्त मुसलमान घर वापसी करें August 2, 2020 / August 2, 2020 by विनोद कुमार सर्वोदय | Leave a Comment यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि लगभग पांच शतकों के अथक संघर्षों व लाखों हुतात्माओं के बलिदानों के पश्चात हिन्दू समाज अपने आराध्य प्रभू श्री राम की जन्मभूमि आयोध्या में पुन: एक विशाल मन्दिर के नव निर्माण अभियान में सफल हो रहा है।इस ऐतिहासिक भव्य मन्दिर का शिलान्यास पांच अगस्त को हमारे प्रखर राष्ट्रवादी […] Read more » प्रबल रामभक्त भक्ति जिहाद मुस्लिम राष्ट्रीय मंच राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
राजनीति सत्ता बदलो, संविधान बचाओ के मायने- June 25, 2018 / June 25, 2018 by वीरेंदर परिहार | Leave a Comment वीरेन्द्र परिहार अभी 15 जून को प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की ’’सत्ता बदलो, संविधान बचाओ’’ यात्रा का समापन हुआ। सच्चाई यह है जब से वर्ष 2014 से देश में मोदी सरकार आई है तभी से इस देश में बहुत लोगों का यह मानना रहा है कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई है, संविधान को खतरा […] Read more » Featured कांग्रेस पार्टी न्यायपालिका पण्डित जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रपति राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ लोकतांत्रिक सत्ता बदलो संविधान बचाओ के मायनेः-
राजनीति संघ के मोदी पर हाथ रखने से मचेगा भाजपा में घमासान April 18, 2012 / April 18, 2012 by तेजवानी गिरधर | 18 Comments on संघ के मोदी पर हाथ रखने से मचेगा भाजपा में घमासान तेजवानी गिरधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिल्ली की ओर कूच करने का इशारा करने से भाजपा में पहले से चल रहे घमासान के बढऩे की आशंका तेज हो गई है। हालांकि प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदारों ने फिलवक्त चुप्पी साध रखी है, मगर समझा जाता है […] Read more » rss and narendra modi मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
राजनीति अन्ना का अनशन और सरकार की कुटिलता August 27, 2011 / December 7, 2011 by मुकेश चन्द्र मिश्र | Leave a Comment अन्ना के अनशन का आज दसवां दिन है पर सरकार अब तानाशाही रवैया अपनाती हुई दिख रही है , लाखों करोड़ो लोग सड़कों पर है, हर गली मोहल्ले में प्रदर्शन हो रहे हैं पर हमारे नेतागण इतने बड़े आन्दोलन में आन्दोलनकारियों की जाति और उनका धर्म तलाशने में जुटे है, कहीं ये बताया जा रहा […] Read more » Anna Anna Hazare Corrupt Indian Politics Corruption RSS अन्ना अन्ना हजारे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ