कविता साहित्य प्रकृति March 28, 2020 / March 28, 2020 by आलोक कौशिक | Leave a Comment विध्वंसक धुंध से आच्छादित दिख रहा सृष्टि सर्वत्र किंतु होता नहीं मानव सचेत कभी प्रहार से पूर्वत्र सदियों तक रहकर मौन प्रकृति सहती अत्याचार करके क्षमा अपकर्मों को मानुष से करती प्यार आती जब भी पराकाष्ठा पर मनुज का अभिमान दंडित करती प्रकृति तब अपराध होता दंडमान पशु व पादप को धरा पर देना ही […] Read more » Nature प्रकृति
साहित्य सूरज है रूठा: नवगीत July 2, 2019 / July 2, 2019 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अविनाश ब्यौहार वर्षा की पहली फुहार है। और हवा के आर पार है।। डाली में कोंपल फूटी है। आज तपन लगती झूठी है।। हरितिमा की साज सँवार है। नहा रहा है बूटा बूटा। बादल से सूरज है रूठा।। घूंघट काढ़ेगी बयार है। मंजर दिखता रहा बाढ़ का। स्वागत बारिश में अषाढ़ का।। मेह बरसते धुन […] Read more » hindi literature Nature newsong poem poem on nature
समाज मानव और प्रकृति में संतुलन November 27, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इन दिनों प्रायः देश के किसी ने किसी भाग से गांव में घुस आये बाघ, हाथी आदि जंगली जानवरों की चर्चा होती रहती है। बस्ती के आसपास मित्र की तरह रहने वाले कुत्ते और बंदरों का आतंक भी यदा-कदा सुनने को मिलता रहता है। कुछ राज्य सरकारें इनकी नसबंदी करा रही हैं। इससे लाभ होगा […] Read more » balance between human and nature Featured Nature प्रकृति
विविधा ‘हमारा पर्यावरण व प्राणी जगत’ April 22, 2014 / April 22, 2014 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य- सारी दुनिया में पर्यावरण एक ऐसा ज्वलन्त विषय है जिसको लेकर बुद्धिजीवी वर्ग अत्यन्त चिन्तित व आन्दोलित है। ऐसा इस कारण से है कि पर्यावरण कोई साधारण समस्या नहीं है अपितु यह मनुष्य जाति व समस्त प्राणी जगत के जीवन मरण का प्रष्न है। यदि पर्यावरण को सुरक्षित व नियंत्रित न किया […] Read more » ‘हमारा पर्यावरण Environment Nature प्राणी जगत’
पर्यावरण प्रकृति : भारतीय चिंतन July 22, 2011 / December 8, 2011 by राजीव गुप्ता | 5 Comments on प्रकृति : भारतीय चिंतन राजीव गुप्ता यत्र वेत्थ वनस्पते देवानां गृह्य नामानि! तत्र हव्यानि गामय!! ( हे वनस्पते! हे आनंद के स्वामी! जहां तुम दोनों के गुह्य नामों को जानते हो, वहां, उस लक्ष्य तक हमारी भेटों को ले जाओ!) या आपो दिव्या उत वा स्रवंति खनित्रिमा उत वा याः स्वयंजाः ! समुदार्था याः शुचयः पवाकस्ता आपो देवीरिः मामवन्तु! […] Read more » Nature प्रकृति
आर्थिकी पर्यावरण आर्थिक विकास मॉडल बदलने से बचेगा पर्यावरण June 20, 2011 / December 11, 2011 by कुन्दन पाण्डेय | 1 Comment on आर्थिक विकास मॉडल बदलने से बचेगा पर्यावरण कुन्दन पाण्डेय दुनिया भर के मानव सम्मिलित रुप से एक वर्ष में करीब 8 अरब मीट्रिक टन कार्बन पर्यावरण में उत्सर्जित करते हैं, जबकि बदले में पर्यावरण का पारिस्थितिकी तंत्र, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ताजा रिपोर्ट के अनुसार विश्व मानवता को लगभग 3258 खरब रुपये से भी कही अधिक मूल्य की सेवाएं प्रदान करता […] Read more » Nature आर्थिक विकास मॉडल पर्यावरण