कविता सीता की व्यथा April 23, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -महेश कुमार शर्मा- जो अतीत की भूलों से कुछ सीख न ले पाते हैं। उनके मालिक राम, नहीं किंचित सुख दे पाते हैं। निर्वासित कर मुझे राम ने, कितना सुख पाया है। पूछो धोबी से उसने क्यों अपयश लाभ कमाया है। किन्तु न मैंने रेख लांघकर अवसर अगर दिया होता। उपजी ही होती क्यों शंका […] Read more » poem seeta कविता सीता सीता की व्यथा
कविता तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा… April 23, 2014 / April 23, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- तुमने जो भी कहा, क्या खूब कहा उसने जो भी कहा, क्या खूब कहा तुमको उसको मैं ही तो चुनने वाला था आखिर को इक मैं ही तो सुनने वाला था! तुम ठहरे सपनों के सौदागर वह ठहरा बातों का जादूगर सच झूठ के बीच इक बारीक़ सा जाला था आखिर को इक […] Read more » poem कविता क्या खूब कहा... तुमने जो भी कहा
कविता प्रेम और केवल प्रेम … February 15, 2014 by लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर पत्रकार | Leave a Comment आज कुछ बात मन को हिलाकर रख दिया बीते लम्हों को उमंगित कर मजबूर कर दिया सोचा नहीं था मुलाकात होगी तुमसे आज ” गांवली ” पास जाकर यकीन हुआ … मेरा तुमसे मुलाक़ात होना प्यार भरा वो पल केवल प्रेम और केवल प्रेम था Read more » poem प्रेम और केवल प्रेम ...
कविता देखा मैंने राजधानी में February 5, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा – देखा मैंने राजधानी में आलीशान इमारतों का काफिला और बगल में झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती जैसे अमीरी-गरीबी रहते साथ-साथ दो अलग-अलग दुनिया में सुविधाएँ अनेक इमारतों में असुविधाएं अनेक झोपड़ियों में एक तरफ रातें रंगीन हैं तो दूसरी ओर सिर्फ कल्पनाएं रंगीन हैं, यथार्थ काला ऊपर मदिरा में डूबकर भी प्यासे हैं […] Read more » poem देखा मैंने राजधानी में
कविता कैसी पीड़ा February 5, 2014 by मोतीलाल | Leave a Comment उनके खुलने से जो पर्दा सरका था उनकी आंखों से सबसे पहले घुप्प अंधेरा डोल रहा था आंखों में और यहीं समझी थी जीवन का पाठ । इस बीच खुलते गये सांसों की डोर और उसने देखा अपने मम्मी-पापा को विडियो गेम्स के संग देखा उसने कमरे की आधुनिकता अलग-अलग खंबों मे बंटा कमरे सा […] Read more » poem कैसी पीड़ा
कविता मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं February 4, 2014 / February 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- स्वप्न मेरे, अब तक वो अधूरे हैं; जो मानव के रूप में मैंने देखे हैं ! मानवता के उन्हीं स्वप्नों की आहुति पर आज विश्व सारा; एक प्राणरहित खंडहर बन खड़ा है ! आज मानवता एक नए युग-मानव का आह्वान करती है; क्योंकि, आदिम-मानव के उन अधूरे स्वप्नों को, इस नए युग-मानव […] Read more » poem मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं
कविता जय हो वीर हकीकत राय February 3, 2014 / February 3, 2014 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on जय हो वीर हकीकत राय -विमलेश बंसल आर्या- जय हो वीर हकीकत राय। सब जग तुमको शीश नवाय॥ जय हो… 1. सत्रह सौ सोलह का दिन था, पुत्र पिता से पूर्ण अभिन्न था। स्याल कोट भी देखकर सियाय॥ जय हो……… 2 वीर साहसी बालक न्यारा, व्रत पालक, बहु ज्ञानी प्यारा। कोई न जग में उसके सिवाय॥ जय हो……… 3 मुहम्मद शाह […] Read more » poem जय हो वीर हकीकत राय
कविता चोर के घर चोरी January 31, 2014 / January 31, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment चोर की चोरी, चोरी की कार, कैसा लगा अनुप्रास अलंकार? होंडा सिटी में धन था अपार, सामने से आगई वैगनार। लूट के धन सब हुए फरार, कुछ दूर जाकर छोड़ी कार।… दिल्ली पोलिस बड़ी बेकार, शिंदे से जाकर करो तकरार। सट्टे का धन है या कालाबज़ार, कहां से आया धन का अंबार? संसद मे जाओ […] Read more » poem चोर के घर चोरी
कविता कुछ बात है यार की हस्ती में … January 31, 2014 / January 31, 2014 by मनीष मंजुल | 1 Comment on कुछ बात है यार की हस्ती में … -मनीष मंजुल- इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है, कुछ बात है यार की हस्ती में, यूं जनता जान छिड़कती है! कभी गौरी ने कभी गोरों ने, फिर लूटा घर के चोरों ने छोड़ों बुज़दिल गद्दारों को, ले आओ राणों, सरदारों को मुझे सम्हाल धरती के लाल, ये भारत मां सिसकती है, कुछ बात […] Read more » poem कुछ बात है यार की हस्ती में ...
कविता बड़े घरों में पड़ा ताला January 29, 2014 / January 29, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा- खस्ता हाल साल दर साल क्या करे मजदूर -किसान हैं सब बहुत परेशान या तो बाढ़ या फिर सूखा आधी उम्र गरीब रहता है भूखा हर गांव में महाजन देते ऊंचे ब्याज पर रकम पर कैसे चुकाए उधार कहां मिले रोजगार बेचना पड़े घर – द्वार शहर भी कहां खुशहाल गरीब यहां […] Read more » poem बड़े घरों में पड़ा ताला
कविता बेटी को प्रणाम January 29, 2014 / January 29, 2014 by विपिन किशोर सिन्हा | 2 Comments on बेटी को प्रणाम हे दिव्य प्रेम की शिखर मूर्ति तुम ही हो जननी भगिनी तुम्हीं तुम्हीं हो पत्नी पुत्री तुम्हीं। हे कोटि कंठों का दिव्य गान तुम ही हो भक्ति शक्ति तुम्हीं तुम ही हो रिद्धि सिद्धि तुम्हीं तुम ही हो शान्ति क्रान्ति तुम्हीं तुम ही हो धृति कृति तुम्हीं तुम ही हो मृत्यु सृष्टि तुम्हीं तुम ही […] Read more » poem बेटी को प्रणाम
कविता राजनीति के गलियारे में January 27, 2014 / January 27, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment राजनीति के गलियारे में, तीन व्यक्ति चर्चा में हैं ‘पप्पू’ तो हम सबका ही, राज दुलारा है, उसके गाल का डिंपल देखो, कितना प्यारा प्यारा है! देश संभालने की ख़ातिर वो, नींद से उठकर आया है। ‘पप्पू’ पास ज़रूर होगा, जापानी ट्यूटर का वादा है। फेंकू की हुंकार से, जनता को जोश आया है। मन्दिर […] Read more » poem politics poem राजनीति के गलियारे में