कविता अन्ना जी अनशन तोड़ो August 27, 2011 / December 7, 2011 by मुकेश चन्द्र मिश्र | 1 Comment on अन्ना जी अनशन तोड़ो अन्ना जी अनशन तोड़ो अब नहीं देर हो जाएगी । अगर हुआ कुछ तुम्हे तो भारत में बर्बादी आएगी ।। अलख जगाई है जो तुमने आगे उसे बढाना है । मर जाएँ या मिट जाएँ जन लोकपाल बिल लाना है ।। चमड़ी मोटी बहुत हो गयी है काले अंग्रेजों की । इनको दिखलानी है ताकत […] Read more » Anna Hazare अन्ना हजारे कविता
कविता कविता-सुदर्शन प्रियदर्शिनी June 29, 2011 / December 9, 2011 by सुदर्शन प्रियदर्शनी | Leave a Comment सुदर्शन प्रियदर्शिनी चेहरा इस धुन्धिआये खंडित सहस्त्र दरारों वाले दर्पण में मुझे अपना चेहरा साफ़ नही दीखता . . . जब कभी अखंडित कोने से दीख जाता है तो ….. कहीं अहम तो कहीं स्वार्थ की बेतरतीब लकीरों से कटा- पिटा होता है . . . चलचित्र चलचित्र तेरे हवा में छल्लेदार धुएं […] Read more » poem कविता
कविता कविता/ पुष्प और इंसान June 22, 2011 / December 11, 2011 by आर. सिंह | Leave a Comment पुष्प शोभा है उपवन का. कली का जीवन है प्रस्फुटित होकर, पुष्प बनने में. खिल कर अपनी बहार लुटाने में. तुम बनने कहाँ देते हो पुष्प को, बहार उपवन का. खिलने कहाँ देते हो कली को? तुम तो तोड़ डालते हो पुष्प को शोभा बनने से पहले. मसल डालते हो कली को असमय ही. मत […] Read more » poem कविता
प्रवक्ता न्यूज़ आदेश समझ लो ! March 5, 2011 / December 15, 2011 by राजीव दुबे | 6 Comments on आदेश समझ लो ! सुनो थोड़ी मेरे मन की भी ओ सरकार मेरे … भटक रहे हैं हम कबसे गुहार लिए । थोड़ी हमारी जरूरत है फिर भी इतनी तकलीफ ! बड़ा बहुत प्रताप तुम्हारा तुम सरकार बड़े । हमको थोड़ी रोटी दे दो मेहनत हम कर लेंगे थोड़ा हमको पानी दे दो हम खुद भर लेंगे । […] Read more » poem कविता
साहित्य जनता के ज्यादा निकट होती है मंचीय कविता February 22, 2011 / December 15, 2011 by आशीष कुमार ‘अंशु’ | Leave a Comment आशीष कुमार ‘अंशु’ बात अधिक पुरानी नहीं है, मंचीय कवि अशोक चक्रधर जब हिन्दी अकादमी दिल्ली के उपाध्यक्ष तय हुए, उस वक्त हिन्दी साहित्य समाज इसलिए उन्हें गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हुआ क्योंकि वे एक मंचीय कवि थे। उस वक्त की मंचीय कवियों की एकता उल्लेखनीय है। कवि जो मंच के गणित में […] Read more » poem कविता
कविता कविता / गुस्सा गधे को आ गया February 20, 2011 / December 15, 2011 by पंडित सुरेश नीरव | 3 Comments on कविता / गुस्सा गधे को आ गया कौन है जो फस्ल सारी इस चमन की खा गया बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया प्यार कहते हैं किसे है कौन से जादू का नाम आंख करती है इशारे दिल का हो जाता है काम बारहवें बच्चे से अपनी तेरहवीं करवा गया बात उल्लू ने कही गुस्सा गधे को आ गया […] Read more » poem कविता
कविता कविता / भ्रांति January 26, 2011 / December 15, 2011 by डॉ. मधुसूदन | 5 Comments on कविता / भ्रांति चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। सुनता हमारी कौन है? (सारे बोलने में व्यस्त है।) इसी के अभ्यस्त है। लिखो लिखो झूठा इतिहास। हमारा भी नहीं विश्वास। पढ़ता उसे कौन है ? चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ। करना धरना कुछ, नहीं। नारा लगाना कार्य है। नारा लगाना क्रांति है। यही तो भ्रांति है। हिंदू संस्कृति मुर्दाबाद। वेद वेदांत, […] Read more » poem by Pr.Madhusudan कविता भ्रांति
कविता कविता/याचना January 26, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on कविता/याचना मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नहीं कि तुम सताओगी तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी वो तो मैं था कि जब तुम थी खड़ी मेरे ही आंगन में मैं पहचाना नहीं कि तुम ही जो आती हो सपनों में खता मेरी बस इतनी थी कि रोका था नहीं तुमको समझ मेरी न […] Read more » poem कविता
कविता कविता/अपनी जमीं पर… January 26, 2011 / December 16, 2011 by डॉ. सीमा अग्रवाल | 2 Comments on कविता/अपनी जमीं पर… आसमाँ सा ऊँचा उठकर, झिलमिल सपनों में खो जाऊँ। दीन-हीन की पीन पुकार, एक बधिरवत् सुन न पाऊँ। सागर-सी गहराई पाकर, अपने सुख मेँ डूबूँ-उतराऊँ, गम मेँ किसी के गमगीँ होकर, आँसू भी दो बहा न पाऊँ। तो, नहीं चाहिए ऐसी उच्चता, और न ऐसी गहराई। इससे तो मैं अच्छा हूँ, अपनी जमीं पर ठहरा […] Read more » poem कविता
कविता कविता/की जब मैंने दुख से प्रीत January 21, 2011 / December 16, 2011 by डॉ. सीमा अग्रवाल | 5 Comments on कविता/की जब मैंने दुख से प्रीत कल क्या होगा, इस चिंता में रात गई आँखों में बीत। होठों पर आने से पहले, सुख का प्याला गया रीत। आशाओं का दीप जला ढूँढा, न मिला जीवन संगीत। किस्मत भी जब हुई पराई, फूट पडा अधरों से गीत। साथी सुख तन्हा छोड़ गया जब, दर्द मिला बन मन का मीत। हर सुख से […] Read more » poem कविता
कविता कविता/ “मगंल पाण्डेय” January 17, 2011 / December 16, 2011 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on कविता/ “मगंल पाण्डेय” जो मरा नहीं अमर है, किताबों में उसका घर है, उसके लिये हमारी आखें नम हैं। जो करा काम कल, शुक्रिया भी कहना कम हैं। क्या हमारे अन्दर इतना दम हैं, दम नहीं तो क्या हम- हम हैं, जो दूसरों के लिये क्या वही कर्म हैं। कोई है जो कहे मगंल पाण्डेय हम हैं, बस […] Read more » poem कविता
कविता कविता / मन का शृंगार January 11, 2011 / December 16, 2011 by अंकुर विजयवर्गीय | 2 Comments on कविता / मन का शृंगार काश। एक कोरा केनवास ही रहता मन…। न होती कामनाओं की पौध न होते रिश्तों के फूल सिर्फ सफेद कोरा केनवास होता मन…। न होती भावनाओं के वेग में ले जाती उन्मुक्त हवा न होती अनुभूतियों की गहराईयों में ले जाती निशा। सोचता हूं, अगर वाकई ऐसा होता मन तो मन मन नहीं होता तन […] Read more » poem कविता