गजल गजल है कि दिल में सीधे उतरती October 14, 2020 / October 14, 2020 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायकतेरे मेरे सपनों की उड़ान है गजलकविता सुबह है तो शाम है गजल! गजल में शिकवा शिकायत होती हैये दर्द-ए-दिल की पहचान है गजल! गजल एक तन्हाई का सिलसिला हैवाहवाही ना मिले, बेजान है गजल! गजल गाने गुनगुनाने की विधा हैशायर के दिल-ए-अरमान है गजल! अरबी गजल में इश्क-ए-औरत होतीफारसी में इश्क-ए-खुदाई हुई […] Read more » Ghazal that descends directly into the heart गजल
गजल नज़्म June 23, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -राघवेन्द्र कुमार “राघव”- किसी की तासीर है तबस्सुम, किसी की तबस्सुम को हम तरसते हैं । है बड़ा असरार ये, आख़िर ऐसा क्या है इस तबस्सुम में ।। देखकर जज़्ब उनका, मन मचलता परस्तिश को उनकी । दिल-ए-इंतिख़ाब हैं वो, इश्क-ए-इब्तिदा हुआ । उफ़्क पर जो थी ख़ियाबां, उसकी रंगत कहां गयी । वो गवारा […] Read more » Featured गजल तबस्सुम नज़्म
गजल रहते हुए भी हो कहां June 22, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on रहते हुए भी हो कहां -गोपाल बघेल ‘मधु’- (मधुगीति १५०६२१) रहते हुए भी हो कहाँ, तुम जहान में दिखते कहाँ; देही यहाँ बातें यहाँ, पर सूक्ष्म मन रहते वहाँ । आधार इस संसार के, उद्धार करना जानते; बस यों ही आ के टहलते, जीवों से नाता जोड़ते । सब मुस्करा कर चल रहे, स्मित-मना चित तक रहे; जाने कहाँ तुम […] Read more » Featured गजल रहते हुए भी हो कहां
गजल खोया हूं मैं June 22, 2015 / June 22, 2015 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment –मनीष सिंह- खोया हूँ मैं हक़ीक़त में और फ़साने में , ना है तुम बिन कोई मेरा इस ज़माने में। तुम साथ थे तो रौशन था ये जहाँ मेरा , अब जल जाते हाथ अँधेरे में शमा जलाने में। यूँ तो मशरूफ कर रखा है बहुत खुद को , फिर भी आ […] Read more » Featured खोया हूँ मैं गजल
गजल इंसा खुद से ही हारा निकला July 28, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नवीन विश्वकर्मा- किसके गम का ये मारा निकला ये सागर ज्यादा खारा निकला दिन रात भटकता फिरता है क्यों सूरज भी तो बन्जारा निकला सारे जग से कहा फकीरों ने सुख दुःख में भाईचारा निकला हथियारों ने भी कहा गरजकर इंसा खुद से ही हारा निकला चांद नगर बैठी बुढ़िया का तो साथी कोई न […] Read more » इंसा खुद से ही हारा निकला गजल जीवन गजल
गजल क्या करूं की तू मेरा हो जाये June 24, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -नेहा राजोरा- क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, रोऊं तो मैं तब भी पर आंसू तुझे पाने की खुशी के हो, क्या करूं की तू मेरा हो जाये, काश एक दिन ऐसा भी आये, झूठ तो मुझसे तब भी बोलेगा, फितरत मुझे पता है तेरी, पर वो झूठ […] Read more » क्या करूं की तू मेरा हो जाये गजल जीवन ग़ज़ल हिन्दी
गजल व्यंग्य अब तो आंखें खोल May 31, 2014 / May 31, 2014 by पंडित सुरेश नीरव | 1 Comment on अब तो आंखें खोल -पंडित सुरेश नीरव- अमल से सिद्ध हुए हैवान जमूरे अब तो आंखें खोल। न जाने किसकी है संतान जमूरे अब तो आंखें खोल।। मिला है ठलुओं को सम्मान जमूरे अब तो आंखें खोल। हुआ है प्रतिभा का अपमान जमूरे अब तो आंखें खोल।। पराई थाली में पकवान जमूरे अब तो आंखें खोल। हमारे हिस्से में […] Read more » अब तो आंखें खोल गजल व्यंग्य
गजल मुझे समझ नहीं आता May 21, 2014 / May 22, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -आजाद दीपक- तुझसे क्या बातें करूं मुझे समझ नहीं आता, इश्क करूं या सवाल! मुझे समझ नहीं आता; मेरी कहानी जब लिखेगा वो ऊपर वाला, मिलन लिखेगा या जुदाई, मुझे समझ नहीं आता; सभी आशिकों के दिल पर इक नाम लिखा होता है, मेरे दिल पर क्या लिखा है, मुझे समझ नहीं आता; परिंदा होता […] Read more » गजल जीवन पर गजल
गजल गजल:नये पत्ते डाल पर आने लगे-सजीवन मयंक February 14, 2012 / February 14, 2012 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment सजीवन मयंक नये पत्ते डाल पर आने लगे । फिर परिंदे लौटकर गाने लगे ।। जो अंधेरे की तरह डसते रहे । अब उजाले की कसम खाने लगे ।। चंद मुर्दे बैठकर श्मशान में । जिंदगी का अर्थ समझाने लगे ।। उनकी ऐनक टूटकर नीचे गिरी । दूर तक के लोग पहिचाने लगे ।। जब […] Read more » gazal Gazals gazals by sanjeevan mayank गजल गजलें
गजल गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं December 15, 2011 / December 15, 2011 by सत्येन्द्र गुप्ता | 1 Comment on गजल:मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं। कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं। हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं। बात का खुलासा होता भी तो कैसे सब […] Read more » gazal Satyendra Gupta गजल सत्येंद्र गुप्ता