लेख साहित्य और मनोविज्ञान October 3, 2019 / October 3, 2019 by बीनू भटनागर | Leave a Comment साहित्य मानव अनुभूतयों और सामाजिक व्यवहार का दर्पण होता है। साहित्यकार अपनी व्यक्तिगत कल्पनाओं और प्रतीकों के आधार पर, यथार्थ के धरातल पर, मानवीय संवेगों को संजोकर कोई रचना लिखता है। दूसरी ओर मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है, जो मन मे उठते अंतर्द्वन्दों, ,संवेगों और उद्वेगों के प्रभावों का अध्ययन करता है। साहित्य का क्षेत्र […] Read more » मनोविज्ञान साहित्य साहित्य और मनोविज्ञान
न्यूज़ “आर्यसमाज से जुड़े श्री ओम् प्रकाश गैरोला को सभी बैंको की राष्ट्रीय स्तर की संयुक्त हिन्दी निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार” September 20, 2018 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनमोहन कुमार आर्य, श्री ओम् प्रकाश गैरोला हमारे 40 वर्षों से अधिक समय से एक घनिष्ठ एवं प्रिय मित्र हैं। हम दोनों एक साथ जनवरी, 1978 में भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून (आईआईपी) में लिपिक के पद पर नियुक्त हुए थे। मैं तब से इसी कार्यालय में कार्य करता रहा और कुछ समय बाद मेरी तकनीकी […] Read more » आर्यसमाज ऋषि दयानन्द टिहरी गढ़वाल पीएनबी की राष्ट्रीय स्तर श्री गैरोला जी साहित्य
कला-संस्कृति साहित्य नाटक पर मंडराता खतरा March 26, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 1 Comment on नाटक पर मंडराता खतरा रंगमंच की जब भी हम बात करते हैं तो हमारे जेहन में नाटक, संगीत, तमाशा आदि घूमने लगती है। वास्तव में रंगमंच ‘रंग’ और ‘मंच’ शब्द से मिलकर बना है यानि कि किसी मंच/फर्श से अपनी कला, साज-सज्जा, संगीत आदि को दृश्य के रूप में प्रस्तुत करना। जहां इसे नेपाल, भारत सहित पूरे एशिया में […] Read more » ओपेरा नाटक पर खतरा साहित्य
जन-जागरण हम उस देश के वासी हैं… September 5, 2014 by राकेश कुमार आर्य | 4 Comments on हम उस देश के वासी हैं… -राकेश कुमार आर्य- भारत के गौरव पर प्रकाश डालते हुए मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘इंडिया: व्हाट कैन इज टीच अस’ में लिखा है-‘‘यदि मैं विश्वभर में से उस देश को ढूंढने के लिए चारों दिशाओं में आंखें उठाकर देखूं जिस पर प्रकृति देवी ने अपना संपूर्ण वैभव, पराक्रम तथा सौंदर्य खुले हाथों लुटाकर उसे पृथ्वी का स्वर्ग बना […] Read more » भारत भारतीय इतिहास साहित्य हिन्दुस्तान
राजनीति साहित्य साहित्य में राजनीति एजेंडा July 13, 2011 / December 9, 2011 by प्रमोद भार्गव | 1 Comment on साहित्य में राजनीति एजेंडा सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता झांसी की रानी में बदलाव प्रमोद भार्गव राजनीति के स्तर पर अब तक पाठ्य पुस्तकों में इतिहास के पन्नों को तोड़मरोड़ कर प्रस्तुत करने की कोशिशें होती रही हैं। नए तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर ऐसा संभव भी है। लेकिन इधर राष्ट्रवाद और राष्ट्रबोध का दंभ भरने वाली मध्यप्रदेश […] Read more » Rani of Jhansi झांसी की रानी राजनीति एजेंडा साहित्य सुभद्रा कुमारी चौहान
आलोचना साहित्य साहित्य में नव्य उदारतावादी ग्लोबल दबाव December 13, 2010 / December 18, 2011 by जगदीश्वर चतुर्वेदी | Leave a Comment जगदीश्वर चतुर्वेदी हमारे साहित्यकार यह मानकर चल रहे हैं अमरीकी नव्य उदार आर्थिक नीतियां बाजार,अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि को प्रभावित कर रही हैं लेकिन हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार उनसे अछूता है। असल में यह उनका भ्रम है। इन दिनों हिन्दीसाहित्य और साहित्यकार पूरी तरह नव्य उदार नीतियों की चपेट में आ गया है। इन दिनों विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं,टीवी […] Read more » Sahitya साहित्य