प्रमोद भार्गव

प्रमोद भार्गव

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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है ।

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लेखक - प्रमोद भार्गव - के पोस्ट :

आर्थिकी चुनाव राजनीति

राजनीतिक चंदे के लिए निर्वाचन बाॅन्ड का औचित्य

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एक मोटे अनुमान के अनुसार देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं। इस खर्च में बड़ी धनराशि कालाधन और आवारा पूंजी होती है। जो औद्योगिक घरानों और बड़े व्यापारियों से ली जाती है। आर्थिक उदारवाद के बाद यह बीमारी सभी दलों में पनपी है। इस कारण दलों में जनभागीदारी निरंतर घट रही है। अब किसी भी दल के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को पार्टी का सदस्य नहीं बनाती हैं। मसलन काॅरपोरेट फंडिंग ने ग्रास रूट फंडिंग का काम खत्म कर दिया है। इस कारण अब तक सभी दलों की कोशिश रही है कि चंदे में अपारदर्शिता बनी रहे।

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राजनीति

ट्रंप-मोदी मुलाकात ने चीन की बढ़ाई कुंठा

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  चीन की यह दोगली कूटनीति तमाम राजनीतिक मुद्दों पर साफ दिखाई देती है। चीन बार-बार जो आक्रामकता दिखा रहा है, इसकी पृष्ठभूमि में उसकी बढ़ती ताकत और बेलगाम महत्वाकांक्षा है। यह भारत के लिए ही नहीं दुनिया के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। दुनिया जनती है कि भारत-चीन की सीमा विवादित है। सीमा विवाद सुलझाने में चीन की कोई रुचि नहीं हैं। वह केवल घुसपैठ करके अपनी सीमाओं के विस्तार की मंशा पाले हुए है। चीन भारत से इसलिए नाराज है, क्योंकि उसने जब तिब्बत पर कब्जा किया था, तब भारत ने तिब्बत के धर्मगुरू दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बतियों को भारत में शरण दी थी। जबकि चीन की इच्छा है कि भारत दलाई लामा और तिब्बतियों द्वारा तिब्बत की आजादी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई की खिलाफत करे ? दरअसल भारत ने तिब्बत को लेकर शिथिल व असंमजस की नीति अपनाई है। जब हमने तिब्बतियों को शरणर्थियों के रूप में जगह दे ही दी थी, तो तिब्बत को स्व तंत्र देश मानते हुए अंतराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की घोषणा करने की जरुरत भी थी ? डाॅ राममनोहर लोहिया ने संसद में इस आशय का बयान भी दिया था। लेकिन ढुलमुल नीति के कारण नेहरु  ऐसा नहीं कर पाए ? इसके दुष्परिणाम भारत आज भी झेल रहा है?

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पर्यावरण विविधा

मौसम विभाग की चेतावनी : बादलों के बरसने की घट रही है क्षमता

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वायुमण्डल के इन क्षेत्रों में जब विपरीत परिस्थिति निर्मित होती है तो मानसून के रुख में परिवर्तन होता है और वह कम या ज्यादा बरसात के रूप में धरती पर गिरता है।  महासागरों की सतह पर प्रवाहित वायुमण्डल की हरेक हलचल पर मौसम विज्ञानियों को इनके भिन्न-भिन्न ऊंचाईयों पर निर्मित तापमान और हवा के दबाव, गति और दिशा पर निगाह रखनी होती है। इसके लिये कम्प्यूटरों, गुब्बारों, वायुयानों, समुद्री जहाजों और रडारों से लेकर उपग्रहों तक की सहायता ली जाती है। इनसे जो आंकड़ें इकट्ठे होते हैं उनका विश्लेषण कर मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

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विविधा

ताकत भी है बढ़ती आबादी

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प्राकृतिक संसाधनों और भौगोलिक विविधता, ऋतुओं कि विलक्षण्ता और अनुकूल जलवायु के चलते हम बेहद समृद्धशाली देश हैं। नतीजतन देश के हर क्षेत्र में खेती योग्य भूमि, पानी, वन संपदा और अनेक प्रकार के खनिज संसाधनो के विपुल भंडार हैं। खाद्यान्न के क्षेत्र में भी हम आत्मनिर्भर हैं। हालांकि जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में 2024 तक हम इस निर्भरता को खो भी सकते हैं। क्योंकि हमारी खाद्यान्न की आज जरूरतें 20 करोड़ टन हैं, वही 2020 में इसकी जरूरत 40 करोड़ टन होगी। लेकिन संसाधनों के बंटवारे में हम समानता का रुख अपनाने वाली नीतियों को अमल में लाएं तो इस समस्या से भी निजात पा सकते हैं। इसके लिए हमें प्राकृतिक संपदा को उधोगपतियों के हवाले करने की बजाए, विकेंदीकृत करके बहुसंख्यक आबादी के हवाले करने की जरूरत है।

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राजनीति

राष्ट्रपति चुनावः पसोपेश में विपक्ष

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कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद इस फैसले को इकतरफा मानकर चल रहे है। ऐसी ही राय सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी की है। दरअसल देरी से उम्मीदवारी की घोषणा करना भाजपा की रणनीति का हिस्सा है, ताकि अंतिम दिनों में विपक्ष अपना प्रत्याशी चुनने की हड़बड़ी में कमजोर प्रत्याशी उतार दें। इसीलिए जब राजनाथ सिंह और वेंकैया नायडू ने सोनिया गांधी और येचुरी से राष्ट्रपति चुनाव पर आम सहमति बनाने की कवायद की थी, तब किसी नाम पर कोई चर्चा नहीं हुई थी। इसलिए आम सहमति विपक्ष को भ्रम में रखने की महज एक रस्म-अदायगी थी।

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