राजनीति कांग्रेस मुक्त भारत के लिए दो कदम और December 26, 2017 | Leave a Comment गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनावी धूल बैठ चुकी है। मैदान में पहाड़ की अपेक्षा धूल और गुबार कुछ अधिक ही उठता है। चुनाव तो दोनों राज्यों में थे; पर शोर गुजरात का अधिक हुआ। इस चक्कर में लोग हिमाचल प्रदेश को भूल ही गये। असल में कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही मान लिया […] Read more » Congress free India Featured Two more steps towards Congress free India अर्जुन मोधवाडिया कांग्रेसमुक्ति गुजरात जयराम ठाकुर तुषार चौधरी भारत भारत कांग्रेसमुक्ति की दिशा शक्ति सिंह गोहिल सिद्धार्थ पटेल
व्यंग्य साहित्य राजतंत्र का तबेला December 6, 2017 | Leave a Comment शर्मा जी की खुशी का पारावार नहीं था। जैसे पक्षी नहाने के बाद पंख झड़झड़कार आसपास वालों को भी गीला कर देते हैं, ऐसे ही शर्मा जी अपने घर से सामने से निकलने वालों को मिठाई खिलाकर गरम चाय भी पिला रहे थे। ठंड के कारण कई लोग तो तीन-चार बार आ गये; पर शर्मा […] Read more » Featured राजतंत्र का तबेला
व्यंग्य दिन में तोड़ो, रात में जोड़ो November 10, 2017 | Leave a Comment परसों शर्मा जी के घर गया, तो चाय के साथ बढ़िया मिठाई और नमकीन भी खाने को मिली। पता लगा कि उनका दूर का एक भतीजा राजुल विवाह के बाद यहां आया हुआ है। मैंने उसके कामधाम के बारे में पूछा, तो शर्मा जी ने उसे बुलवाकर मेरा परिचय करा दिया। – क्यों बेटा राजुल, […] Read more » Featured दिन में तोड़ो रात में जोड़ो
विविधा बुलेट रेलगाड़ी योजना September 29, 2017 | Leave a Comment पिछले दिनों नरेन्द्र मोदी ने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ मिलकर अमदाबाद में ‘बुलेट रेलगाड़ी योजना’ का शिलान्यास किया। कहा गया है कि पांच साल में ये पटरियों पर चलने लगेगी। अमदाबाद से मुंबई जाने वाले यात्रियों को इससे बहुत सुविधा होगी। इस प्रकल्प में लगने वाला खरबों रुपया जापान बहुत कम ब्याज […] Read more » Bullet train Featured बुलेट रेलगाड़ी बुलेट रेलगाड़ी का विरोध बुलेट रेलगाड़ी योजना
व्यंग्य शपथ ग्रहण समारोह September 7, 2017 / September 7, 2017 | Leave a Comment इस शीर्षक से आप भ्रमित न हों। मेरा मतलब पिछले दिनों दिल्ली में हुए शपथ ग्रहण से नहीं है। उसमें कुछ मंत्रियों की कुर्सी ऊंची हुई, तो कुछ की नीची। कुछ की बदली, तो कुछ किस्मत के मारे उससे बेदखल ही कर दिये गये। एक पुरानी और प्रखर वक्ता ने जब अपने शरीर का भार […] Read more » शपथ ग्रहण समारोह
व्यंग्य दो रोगों की एक दवाई August 30, 2017 | Leave a Comment बचपन में स्कूल में हमें गुरुजी ने एक सूत्र रटाया था, ‘‘सौ रोगों की एक दवाई, सफाई सफाई सफाई।’’ कुछ बड़े हुए, तो संसार और कारोबार में फंस गये। इससे परिवार और बैंक बैलेंस के साथ ही थोंद और तनाव भी बढ़ने लगा। फिर शुगर, रक्तचाप और नींद पर असर पड़ा। डॉक्टर के पास गये, […] Read more » bjp Congress Featured Indian political parties political parties unite political parties united in India अन्ना द्रमुक दवाई
व्यंग्य चुनाव की तैयारी August 25, 2017 | Leave a Comment चुनाव लड़ना या लड़ाना कोई बुरी बात नहीं है। राजनीतिक दल यदि चुनाव न लड़ें, तो उनका दाना-पानी ही बंद हो जाए। चुनाव से चंदा मिलता है। अखबारों में फोटो छपता है। हींग लगे न फिटकरी, और रंग चोखा। बिना किसी खर्च के ऐसी प्रसिद्धि किसे बुरी लगती है ? इसलिए हारें या जीतें, पर […] Read more » Featured preparation for election चुनाव चुनाव की तैयारी
व्यंग्य साहित्य वो दाल-दाल, ये साग-साग August 17, 2017 / August 18, 2017 | Leave a Comment मैं साहित्यप्रेमी तो हूं, पर साहित्यकार नहीं। इसलिए किसी कहावत में संशोधन या तोड़फोड़ करने का मुझे कोई हक नहीं है; पर हमारे प्रिय शर्मा जी परसों अखबार में छपी एक पुरानी कहावत ‘तुम डाल-डाल, हम पात-पात’के नये संस्करण ‘वो दाल-दाल, ये साग-साग’के बारे में मुझसे चर्चा करने लगे। – वर्मा, ये दाल और साग […] Read more » ये साग-साग वो दाल-दाल
व्यंग्य चोटी से नाक तक, वो काटा… August 13, 2017 | Leave a Comment इन दिनों महिलाओं की चोटी काटने या कटने की चर्चा से अखबार भरे हैं। यह सच है या झूठ, अफवाह है या मानसिक रोग, घरेलू झगड़ा है या कुछ और, ये शायद कभी पता न लगे। कोई समय था जब मोटी और लम्बी चोटी फैशन में थी। तभी तो माता यशोदा बार-बार कान्हा को […] Read more » choti katwa चोटी महिलाओं की चोटी काटने या कटने
व्यंग्य माले मुफ्त दिले बेरहम August 8, 2017 | Leave a Comment इसे पढ़कर आप कोई गलतफहमी न पालें। मैं कोई मुफ्त चीज बांटने नहीं जा रहा हूं। इस कहावत का अर्थ है कि यदि कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो, तो फिर उसके लिए हाथ, जेब और झोली के साथ ही दिल भी बेरहम हो जाता है। भले ही वो हमारे काम की हो या […] Read more » Featured माले मुफ्त दिले बेरहम मुफ्तखोरी
व्यंग्य साहित्य घुन और खत-पतवार August 2, 2017 | Leave a Comment एक बार विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारी तेनालीराम से पूछा कि साल में कितने महीने होते हैं ? तेनाली ने कहा, “दो महाराज।” राजा हैरान हो गये। इस पर वह बोला, “महाराज, वैसे तो महीने बारह हैं; पर यदि उनमें से सावन और भादों निकाल दें, तो फिर बाकी सब […] Read more » Featured खत-पतवार
व्यंग्य जा, तू टमाटर हो जा July 29, 2017 | Leave a Comment विजय कुमार बात उन दिनों की है, जब मैं चौथी-पांचवी कक्षा में पढ़ता था। तब टी.वी. भारत में आया नहीं था। रेडियो और टेलिफोन अति दुर्लभ और विलासिता की चीज मानी जाती थी। अखबार भी पूरे मोहल्ले में एक-दो लोग ही मंगाते थे। दोपहर में बुजुर्ग लोग अखबार पढ़ने के लिए उनके घर पहुंच जाते […] Read more » Featured टमाटर