कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म माता बगलामुखी जयंती May 4, 2017 by पंडित दयानंद शास्त्री | Leave a Comment आज माता बगलामुखी व्रत 3 मई 2017 को है। बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है। देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है. तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले […] Read more » माता बगलामुखी जयंती
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-11 May 3, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. वास्तव में जब हम व्यक्ति को मानसिक बल की प्रार्थना में लीन पाते हैं या स्वयं ईश्वर से अपने लिए मानसिक बल मांगते हैं तो इसका अभिप्राय होता है दृढ़ इच्छाशक्ति की प्रार्थना करना या विचारशक्ति को प्रबल करने की ईश्वर […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म शिव अवतार में महायोगी गोरखनाथ May 3, 2017 / May 3, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment गुरु गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ जी का मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर मे स्थित है। गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गुरु गोरखनाथ जी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया। नेपाल में एक जिला है गोरखा, का नाम गोरखा भी इन्हीं के नाम से पड़ा। माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यही दिखे थें। गोरखा जिला में एक गुफा है जहाँ गोरखनाथ का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे रोट महोत्सव कहते है और यहाँ मेला भी लगता है। Read more » Featured गुरु गोरक्षनाथ गुरु गोरक्षनाथ भैरव प्रसंग गोरखनाथ ज्वाला देवी
धर्म-अध्यात्म ईश्वर-जीवात्मा का परस्पर संबंध और ईश्वर के प्रति मनुष्य का कर्तव्य May 2, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मनुष्य को शुभ कर्म करने के लिए शिक्षा व ज्ञान चाहिये। यह उसे ईश्वर ने प्रदान किया हुआ है। वह ज्ञान वेद है जो सृष्टि के आदि में दिया गया था। इस ज्ञान का प्रचार व प्रसार एवं रक्षा सृष्टि की आदि से सभी ऋषि मुनि व सच्चे ब्राह्मण करते आये हैं। आज भी हमारे कर्तव्याकर्तव्य का द्योतक वा मार्गदर्शक वेद व वैदिक साहित्य ही है। मनुष्य व अन्य प्राणधारी जो भोजन आदि करते हैं वह सब भी सृष्टि में ईश्वर द्वारा प्रदान करायें गये हैं। इसी प्रकार अन्य सभी पदार्थों पर विचार कर भी निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इससे ज्ञात होता है कि सभी मनुष्य व प्राणी ईश्वर के ऋणी हैं। जीव ईश्वर का ऋण चुकायंे, इसका ईश्वर से कोई आदेश नहीं है। इतना अवश्य है कि प्रत्येक मनुष्य सच्चा मनुष्य बने। वह ईश्वर भक्त हो, देश भक्त, मातृ-पितृ भक्त हो, गुरु व आचार्य भक्त हो, ज्ञान अर्जित कर शुभ कर्म करने वाला हो, शाकाहारी हो, सभी प्राणियों से प्रेम करने वाला व उनका रक्षक हो आदि। ईश्वर सभी मनुष्यों को ऐसा ही देखना चाहता है। यह वेदों में मनुष्यों के लिए ईश्वर प्रदत्त शिक्षा है। यदि मनुष्य ऐसा नहीं करेगा तो वह उसका अशुभ कर्म होने के कारण ईश्वरीय व्यवस्था से दण्डनीय हो सकता है। Read more » ईश्वर ईश्वर-जीवात्मा का परस्पर संबंध
धर्म-अध्यात्म श्रेय मार्ग में प्रवृत्ति व प्रेय मार्ग में निवृत्ति ही मनुष्य का कर्तव्य May 2, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment बहुत कम लोगों की प्रवृत्ति श्रेय मार्ग में होती है जबकि प्रेय व सांसारिक मार्ग, धन व सम्पत्ति प्रधान जीवन में सभी मनुष्यों की प्रवृत्ति होती है। जहां प्रवृत्ति होनी चाहिये वहां नहीं है ओर जहा नहीं होनी चाहिये, वहां प्रवृत्ति होती है। यही मनुष्य जीवन में दुःख का प्रमुख कारण है। श्रेय मार्ग ईश्वर की प्राप्ति सहित जीवात्मा को शुद्ध व पवित्र बनाने व उसे सदैव वैसा ही रखने को कहते हैं। जीवात्मा शुद्ध और पवित्र कैसे बनता है और ईश्वर को कैसे प्राप्त किया जाता है इसके लिए सरल भाषा में पढ़ना हो तो सत्यार्थ प्रकाश को पढ़कर जाना जा सकता है। योग दर्शन को या इसके विद्वानों द्वारा किये गये सरल सुबोध भाष्यों को भी पढ़कर जीवात्मा की उन्नति के साधनों को जाना व समझा जा सकता है। Read more » प्रवृत्ति प्रेय मार्ग श्रेय मार्ग
धर्म-अध्यात्म स्वामी शंकराचार्य जी के महान कार्य May 1, 2017 / May 1, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment आदि शंकराचार्य जी का जन्म केरल प्रदेश के कलाडी गांव में आज से लगभग 2526 वर्ष पूर्व सन् 509 (बीसीई) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अल्पायु में ही आपके पिता का देहान्त हो गया था। आपका पालन पोषण आपकी माता जी ने किया। हमें लगता है कि उन दिनों ब्राह्मणों का एकमात्र कार्य वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन करना ही होता था। गुरु से अध्ययन करते हुए संवाद, वार्तालाप व विवेच्य विषयों पर परस्पर व दूसरों से शास्त्रार्थ हुआ करते थे। इससे बौद्धिक योग्यता बढ़ने के कारण सत्य के ज्ञान वा निर्णय में सहायता मिलती थी। स्वामी शंकराचार्य जी की मृत्यु 32 वर्ष की आयु में सन् 477 (बीसीई) में हुई। तीव्र बुद्धि के धनी स्वामी शंकराचार्य जी ने अपना शास्त्रीय अध्ययन अल्प समय में ही पूरा कर लिया था। स्वामी जी के समय देश में बौद्धमत व जैनमत का विशेष प्रभाव था। इन मतों व इनके आचार्यों ने वैदिक धर्म का त्याग कर दिया था। Read more » Featured स्वामी शंकराचार्य जी
धर्म-अध्यात्म मनुष्य जीवन का उद्देश्य May 1, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment क्या मनुष्य जीवन का उद्देश्य आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर धनोपार्जन कर सुख व सुविधाओं से युक्त जीवन जीना मात्र ही है?’ –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। आज का हमारा उपर्युक्त विषय पाठकों को कुछ अटपटा सा लग सकता है। हमें लगता है कि यह विषय विचारणीय है और आज देश व संसार में जो आपाधापी मची […] Read more » मनुष्य जीवन का उद्देश्य
धर्म-अध्यात्म वेद ज्ञान का अप्रचार और लोगों की उसके प्रति अनभिज्ञता April 30, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment मत-मतान्तरों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण वेद ज्ञान का अप्रचार और लोगों की उसके प्रति अनभिज्ञता मनमोहन कुमार आर्य संसार के सभी देशों के लोग किसी न किसी मत, पन्थ व सम्प्रदाय को मानते हैं। अंग्रेजी में इन्हें religion कहते हैं। धर्म संस्कृत का शब्द है जो केवल वैदिक मान्यताओं व सिद्धान्तों तथा उसके पालन […] Read more » वेद ज्ञान वेद ज्ञान का अप्रचार और लोगों की उसके प्रति अनभिज्ञता
धर्म-अध्यात्म वेदालोचन (वेदों के अध्ययन) से रहित संस्कृत शिक्षा पूर्ण लाभ न देने वाली व हानिकारक April 29, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment संस्कृत भाषा का अध्ययन, उसके द्वारा वेदालोचन और वेद विहित योगाभ्यास को करके ही बालक मूलशंकर ऋषि दयानन्द बने। आज भी ऋषि दयानन्द का यशोगान चहुं दिशाओं में हो रहा है। यदि वह ऐसा न करते तो अपने टंकारा गांव के अन्य लोगों की भांति आज उन्हें कोई जानता भी नहीं। अतः अपना परम कर्तव्य मानकर संस्कृत भाषा का अध्ययन करते हुए वेदों का स्वाध्याय वा वेदालोचन मनुष्य का आवश्यक कर्तव्य है। महर्षि दयानन्द के बाद उनके संस्कृताध्ययन व वेदालोचन के उद्देश्य से ही उनके अनुयायी स्वामी श्रद्धानन्द ने गुरुकुल कागड़ी खोला था। उनसे भी पूर्व पं. गुरुदत्त विद्यार्थी जी ने लाहौर में अष्टाध्यायी का अध्ययम कराने के लिए पाठशाला खोली थी जहां अधिक आयु के लोग पढ़ते थे। Read more » संस्कृत शिक्षा
धर्म-अध्यात्म पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-10 April 29, 2017 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment राकेश कुमार आर्य  छोड़ देवें छल-कपट को मानसिक बल दीजिए गतांक से आगे…. ओ३म्! येनेदम् भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतम मृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मन: शिवसंकल्पमस्तु।। (यजु. 34-4) अर्थ-‘जिस अमर मन ने ये तीनों काल भूत, वर्तमान और भविष्यत अपने वश में किये हुए हैं, जिसके द्वारा सात होताओं (यज्ञकत्र्ताओं) वाला यज्ञ किया […] Read more » पूजनीय प्रभो हमारे
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं आपकी मनोकामना/विश— April 28, 2017 / April 28, 2017 by पंडित दयानंद शास्त्री | Leave a Comment आखिर क्यों भारतीय संस्कृति की परम्पराओं में दीपक का इतना महत्व हैं ? किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी परम्पराएँ चली आ रही हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्त्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ […] Read more » दीपक दीपक का महत्व
धर्म-अध्यात्म सर्वोपरि महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश April 26, 2017 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment विद्या अविद्या सहित मनुष्यों के यथार्थ धर्म का प्रकाशक सर्वोपरि महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश मनमोहन कुमार आर्य चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद सृष्टि की आदि में उत्पन्न ईश्वर प्रदत्त ज्ञान है जो ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य व अंगिरा की आत्माओं में प्रेरणा द्वारा प्रकट वा स्थापित किया था। इन चार ऋषियों ने […] Read more » सर्वोपरि महान ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश