कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म भगवान राम की सीख November 18, 2024 / November 18, 2024 by शिवानंद मिश्रा | Leave a Comment शिवानंद मिश्रा वनवास के समय एक भीषण वन से गुजरते समय श्रीराम एक विकराल दैत्य को देखते हैं। इतना बड़ा कि वह सिंह, हाथियों, भैंसे आदि बड़े पशुओं को भी खाते हुए आगे बढ़ रहा है। संदेह न कीजिये, अधर्म का स्वरूप इतना ही विकराल होता है । उस गहन वन में दूर दूर तक […] Read more » Lord Ram's teachings
धर्म-अध्यात्म दूसरों से भिन्नता प्रकट करने के लिए सबसे प्रथम और सुगम उपाय नाम November 18, 2024 / November 18, 2024 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध” किसी भी समाज का बाहरी स्वरुप होना नितान्त आवश्यक है, और प्रत्येक समाज का यह स्वयं करणीय कर्म अर्थात कार्य है कि वह अपने लक्षण (स्वरूप) का निर्धारण स्वयं करे, जो देखने वालों को दिखाई दे। उदहारण के रूप में आर्य सनातन वैदिक धर्मावलम्बी हिन्दुओं में अत्यंत प्राचीन काल में सिर पर चोटी अर्थात […] Read more » दूसरों से भिन्नता
धर्म-अध्यात्म जीवात्मा हंस, वसु, होता और अतिथि कैसे हैं ? November 18, 2024 / November 18, 2024 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment (दिवंगत बड़े भाई को छोटे भाई की आदर्श श्रद्धांजलि) मेरा यह लेख अपने पूज्य भ्राता जी,उपनिषदों के ज्ञाता और वैदिक मूल्यों के प्रति समर्पित होकर जीवन जीने वाले प्रो0 विजेन्द्र सिंह आर्य जी के प्रति समर्पित है । जिनका विगत 1 नवंबर 2024 को देहांत हो गया था। मृत्यु से सही 2 दिन पूर्व जब […] Read more »
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म कार्तिक शुक्ल दशमी को श्रीकृष्ण ने किया था कंस का वध November 11, 2024 / November 11, 2024 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध” लंकेश रावण का वध अर्थात रावण दहन का प्रतीक रूप में आयोजन देश भर में आश्विन शुक्ल दशमी अर्थात विजयादशमी को जिस तरह किया जाता है, उसी प्रकार कार्तिक शुक्ल दशमी को मथुरा सहित देश के कई हिस्सों में कंस वध लीलाओं का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि यदुकुल के राजा […] Read more » Lord Krishna killed Kansa on Kartik Shukla Dashami. कार्तिक शुक्ल दशमी
धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार स्वच्छता, सुचिता,समरसता व सौहार्द का अनुपम उदाहरण है छठ पूजा November 6, 2024 / November 6, 2024 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी छठ पूजा यानि सूर्य की उपासना का अनूठा पर्व ,सामाजिक समरसता का अनुपम उदाहरण ,वर्ग ,धर्म एवं संप्रदाय को एकाकार करने का अद्भुत संयोग से संपन्न यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी तिथि को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बिहार , झारखंड और उत्तर प्रदेश में इसे लोक आस्था और […] Read more » Chhath Puja is a unique example of cleanliness harmony and amity. purity छठ पूजा
धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार सूर्योपासना का महापर्व ‘छठ’ November 5, 2024 / November 5, 2024 by संजय कुमार | Leave a Comment संजय कुमार सुमन भारतीय संस्कृति में हर ऋतु में कोई न कोई पर्व आता है। ऋतु परिवर्तन को मनाने के लिए व्रत, पर्व और त्योहारों की एक शृंखला लोक जीवन को निरंतर आबद्ध किए हुए हैं। भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता है ‘सर्वेभवंतु सुखिन:, अर्थात सभी सुखी हों। दूसरी विशेषता है ‘आनो भद्रा कतयो यंतु विश्वत:, […] Read more » छठ
धर्म-अध्यात्म कर्मफल भोगे बिना जीव को छुटकारा नहीं । November 4, 2024 / November 4, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव महाकवि कालिदासकृत के द्वारा रचित ’’कुमारसंभव’’ के पॉचवे सर्ग में भगवान शंकर की प्राप्ति के लिये पार्वती जी हिमालय पर तप कर रही है, तब शंकर जी उनके निश्चय की परीक्षा करने के लिये एक ब्रम्हचारी के वेश में आकर कुशल क्षेम पूछने के बाद कहते […] Read more » there is no salvation for the living being. Without suffering the consequences of karma
धर्म-अध्यात्म पर्व - त्यौहार वर्त-त्यौहार भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक रोशनी का पर्व है दीपावली November 2, 2024 / November 2, 2024 by ललित गर्ग | Leave a Comment -ललित गर्ग- दीपावली एक समृद्धि, खुशहाली एवं रोशनी का लौकिक पर्व है। यह जितना भौतिक पर्व है, उतना ही आध्यात्मिक पर्व भी है, इसलिये यह केवल बाहरी अंधकार को ही नहीं, बल्कि भीतरी अंधकार को मिटाने का पर्व भी बने। हम भीतर में धर्म का दीप जलाकर मोह और मूर्च्छा के अंधकार को दूर कर […] Read more » दीपावली
ज्योतिष धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार पुरूषार्थ चतुष्टय एवं समस्त अभीष्ट प्रदात्री श्रीलक्ष्मी October 28, 2024 / October 28, 2024 by अशोक “प्रवृद्ध” | Leave a Comment -अशोक “प्रवृद्ध” सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, अपने कर-कमलों में कमल युगल धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, समस्त सर्वांगींण कल्याण का विधान करने वाली, स्वर्णमयी देवी जगजननी लक्ष्मी की उपासना भारत और इसके बाहर के देशों में अति प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा है, तथा लक्ष्मी की दशांग उपासना की सम्पूर्ण विधि […] Read more » श्रीलक्ष्मी
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म वर्त-त्यौहार दीपावली का सांस्कृतिक, धार्मिक व आर्थिक महत्व October 28, 2024 / October 28, 2024 by डॉ. सौरभ मालवीय | Leave a Comment -डॉ. सौरभ मालवीय दीपावली अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है- दीपों की पंक्तियां। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों ‘दीप’ एवं ‘आवली’ से हुई है। यह त्यौहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। दीपावली एक दिवसीय त्यौहार नहीं है। इसमें कई त्यौहार सम्मिलित हैं, जो एक-दूसरे से संबद्ध हैं […] Read more » economic importance of Diwali religious and economic importance of Diwali दीपावली
कला-संस्कृति धर्म-अध्यात्म भारत के मूल में सनातन हिंदू संस्कृति का आधार है October 28, 2024 / October 28, 2024 by प्रह्लाद सबनानी | Leave a Comment किसी भी राष्ट्र के मूल में कुछ तत्व निहित होते हैं, जिनके बल पर वह देश आगे बढ़ता है और समाज के विभिन्न वर्गों को एकता के सूत्र में पिरोए रखता है। भारत के एक राष्ट्र के रूप में, इसके मूल में, सनातन हिंदू संस्कृति का आधार है जो हजारों वर्षों से भारत को आज भी भारत के मूल रूप में ही जीवित रखे हुए है। अन्यथा, पिछले लगभग 1000 वर्षों में भारत को तोड़ने के लिए अरब के आक्रांताओं और अंग्रेजो द्वारा अनेकानेक प्रयास किए गए हैं। अरब के आक्रांताओं एवं अंग्रेजों ने बहुत अधिक प्रयास किए कि किसी तरह भारतीय मूल संस्कृति को तहस नहस किया जाय, शिक्षा पद्धति को ध्वस्त किया जाय, बलात हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया जाय, आदि आदि। इन प्रयासों में उन्हें कुछ सफलता तो अवश्य मिली परंतु पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति को समाप्त नहीं कर पाए। जबकि कई अन्य देशों (ईरान, लेबनान, इंडोनेशिया, मिस्त्र, ग्रीक आदि) में इनके यही प्रयास पूर्ण रूप से सफल रहे एवं वहां के लगभग सम्पूर्ण नागरिकों को इस्लाम में परिवर्तित करने में वे सफल रहे। भारत में चूंकि सनातन हिंदू धर्म का बोलबाला है अतः यहां इन तत्वों को आज तक सफलता नहीं मिली है, हालांकि इनके प्रयास अभी भी जारी हैं। भारतीय सनातन संस्कृति ने न केवल भारत को एकता के सूत्र में पिरोया है बल्कि पूरे विश्व को ही भारत के साथ जोड़ा है। अब तो भारत में ‘एक भारत – श्रेष्ठ भारत’ के रूप में एक महत्वपूर्ण अध्याय लिखा जा रहा है। भारत में प्राचीन ऋषियों और मनीषियों की परंपरा एक गृहस्थ परंपरा रही है और उस गृहस्थ परंपरा में आध्यात्म के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक चिंतन भी जुड़ा रहा है। अपने राज्य के ऋषियों के जीवन यापन की चिंता जहां राजा की प्राथमिकता में रहता था वहीं राजा को राज्य चलाने के लिए उचित मार्गदर्शन देने का सांस्कृतिक कार्य उन ऋषि-मुनियों द्वारा किया जाता था। इसलिए उन मनीषियों का चिंतन आर्थिक दिशा में भी सदैव बना रहता था। राजा अपने राज्य का विस्तार करने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से और अधिक समृद्ध कैसे बनाएं इसके बारे में ऋषि-मुनियों के साथ बैठकर ही राज दरबार में चिंतन होता था और राज्य आर्थिक रूप से सशक्त बन जाते थे। इसलिए भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। भारत की कुटुंब व्यवस्था अपने आप में एक अनूठी कुटुंब व्यवस्था है। भारत के संयुक्त परिवार विश्व के लिए आश्चर्य का विषय रहे हैं। इन दिनों संयुक्त परिवार विघटित अवश्य होते जा रहे हैं, लेकिन बावजूद उसके आपातकाल में एक दूसरे के लिए सबके एकत्र होने की जो जिजीविषा उन सबके भीतर है वह भारत में कुटुंब व्यवस्था का अनूठा स्वरूप है, तथा यह स्वरूप देश की अर्थव्यवस्था को भी आगे बढ़ाने का काम करता है। एक परिवार में दो हाथ कमाने जाते हों और वहीं दस हाथ कमाने जाते हों, दोनों बातों का फर्क होता है। इसलिए कुटुंब व्यवस्था में एक दूसरे के लिए आपस में खड़े होने का जो व्यवहार होता है,वह व्यवहार आर्थिक चिंतन के साथ भी जुड़ कर परिवार को आगे बढ़ाने का काम करता है। भारत में प्राचीन काल से पर्यावरण को पर्याप्त महत्व दिया जाता रहा है। देश में नदियां शुद्ध रहती थी वृक्ष घने जंगलों के रूप में रहते थे और पूरा पर्यावरण शुद्ध रहता था। पूरे विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर नदियों को, पहाड़ों को, वृक्षों को एवं धरती को पूजा जाता है। पूरे पर्यावरण से परिवार का जुड़ाव धार्मिक रूप से रहता है। बहुत सारे व्रत और त्यौहार पर्यावरण से जुड़े हुए रहते हैं। इसलिए सनातन काल से भारत में पर्यावरण की चिंता रही है। जैविक विविधता ने भी भारत के सनातन काल को समृद्ध किया। पर्यावरण संरक्षण को उस समय में नैतिक कर्तव्य माना गया है। बाद में जब मुगलों ने भारत में शासन किया और हिंदुओं का धर्मांतरण किया तो बहुत सारी परंपराएं भी खंडित होने लगी। सनातन काल में जिस गौ माता को पूजा जाता था मुस्लिम उस गौ माता को खाने लगे। मुस्लिम शासन काल भारत के पतन और विखंडन का समय था। उनके बाद जब इस देश में अंग्रेज आ गए तो उनकी निगाह में भारतीय अपरिपक्व और मूर्ख रहे इन दोनों के समय में, मुगलों ने और अंग्रेजों ने भारत को दोनों हाथों से लूटकर खाली कर दिया। जो भारतीय अर्थव्यवस्था कभी विश्व की अर्थव्यवस्था का 33 प्रतिशत हिस्सा थी वह बहुत नीचे जा चुकी थी। पर्यावरण बिखरने लगा। नालंदा जैसे विश्वविद्यालय को नुकसान पहुंचाया गया। उसकी लाइब्रेरी को जला दिया गया। इस सब के पीछे भारत को ज्ञान के स्तर पर समाप्त करने की साजिश काम कर रही थी। मुस्लिम शासक हिंदुओं के धर्मांतरण पर, हिंदुओं को मारने पर और उनकी संपत्ति हड़पने पर काम कर रहे थे। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ब्राह्मणों को मारकर रोज सवा मन जनेऊ जलाता था। मंदिरों को नष्ट कर उन पर मस्जिदें बना दी गई। दक्षिण ने अपने आपको इस मुस्लिम आक्रमण से बहुत बचाया और इसीलिए भारत के दक्षिण भाग में आज भी समृद्ध मंदिर हैं, जो उस कालखंड के गौरव की प्रस्तुति के रूप में हमारे सामने खड़े हुए हैं। इसी कालखंड में भारत का भक्ति काल जरूर समृद्ध हुआ और उसने भारत के निवासियों को मानसिक ताकत प्रदान की। तुलसीदास की भक्ति के सामने अकबर जैसा आदमी डर गया और झुक गया। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों एवं धार्मिक पर्यटन का भारत के आर्थिक विकास पर पूर्ण प्रभाव रहा है। प्राचीन भारत में धार्मिक आयोजनों से अर्थव्यवस्था को बल मिलता रहा है इसलिए उस कालखंड में धार्मिक आयोजन निरंतर होते रहे हैं। भारत की ऋषि परंपरा ने जन सामान्य को उन सबके साथ जोड़ कर रखा था। त्यौहारों की निरंतरता और उन्हें मनाए जाने का उत्साह भारत की तत्कालीन अर्थव्यवस्था को गति देता रहा है। आज के वक्त में भी धार्मिक पर्यटन के चलते भारतीय पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसर निर्मित हो रहे हैं। वर्तमान केंद्र सरकार के द्वारा भी पिछले 10 वर्षों में भारत में विभिन्न तीर्थस्थलों को विकसित किया जा रहा है। अभी तक जो तीर्थस्थल विकसित हो चुके हैं,वहां का पर्यटन एकदम से कई गुना बढ़ गया है। वहां की आर्थिक समृद्धि बढ़ गई है। वहां के लोगों का जीवन स्तर बढ़ गया है। वहां संपत्तियों के दाम बढ़ गए हैं। इसलिए इस दिशा में सरकार अब आगे और कार्य करने जा रही है तथा कई नवीन धार्मिक कारीडोर बनाने जा रही है,क्योंकि इससे रोजगार के लाखों नए अवसर उत्पन्न होंगे। भारतीय संस्कृति के अनुसार, व्यक्ति के ऊपर परिवार, समाज, राष्ट्र, सृष्टि एवं परमेशटी को क्रमशः माना गया है। अतः भारतीय विचारधारा इस्लाम एवं चर्च की विचारधारा के ठीक विपरीत आचरण करना सिखाती है, विशेष रूप से सनातन संस्कृति में जो व्यक्ति जितना विशेष होगा वह उतना ही विनयपूर्ण होगा और इस नाते भारतीय सनातन संस्कृति अविभाजनकारी दर्शन पर चलकर सर्वसमावेशी है। इसमें ईश्वरीय भाव जाहिर होता है। जो मेरे अंदर है वही आपके अंदर भी है अर्थात मुझमें भी ईश्वर है और आपमें भी ईश्वर का वास है। इस प्रकार प्रत्येक भारतीय, चाहे वह किसी भी जाति का हो, किसी भी मत, पंथ को मानने वाला हो, अपने आप को भारत माता का सपूत कहने में गर्व का अनुभव करता है। और, इसलिए भारतीय सनातन संस्कृति अन्य संस्कृतियों को भी अपने आप में आत्मसात करने की क्षमता रखती है। इतिहास में इस प्रकार के कई उदाहरण दिखाई देते हैं। जैसे पारसी आज अपने मूल देश में नहीं बच पाए हैं लेकिन भारत में वे रच बस गए हैं। इसी प्रकार इस्लाम पंथ को मानने वाले लगभग सभी फिर्के भारत में निवास करते हैं जबकि विश्व के कई इस्लामी देशों में केवल एक विशेष प्रकार के फिर्के पाए जाते हैं। भारतीय संस्कृति में एकात्मता का सोच है। भारत पूरे विश्व की मंगल कामना करता है एवं “वसुधैव कुटुम्बकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, जैसे सिद्धांतो पर विश्वास करता है। चाहे किसी भी व्यक्ति की कोई भी पूजा पद्धति क्यों न हो, पूरे भारत में एक जैसा हिंदू दर्शन है। हिंदू दर्शन ही भारत में राष्ट्र तत्व है जो पश्चिम की सोच से अलग है। हिंदू दर्शन एक मौलिक दर्शन है। भारतीय सनातन संस्कृति का पालन करते हुए भारत के आर्थिक विकास को देखकर अब विकसित देश भी भारतीय संस्कृति को श्रेष्ठ मानते हुए इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं ताकि वे अपनी आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को हल कर सकें। कुल मिलाकर अब भारतीय आर्थिक दर्शन ही पूरे विश्व को बचा सकता है, क्योंकि वह कर्म आधारित है और एकात्म मानवता पर केंद्रित है। प्रहलाद सबनानी Read more » सनातन हिंदू संस्कृति
धर्म-अध्यात्म लेख विश्वरूप धरती ओर मिट्टी के दीये October 21, 2024 / October 21, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव मिट्टी तो मिट्टी है, हमें इसी तात्विक ज्ञान का परिचय है लेकिन परमात्म विषयक चिंतन की मान्यता है कि मिट्टी के कण-कण में परमतत्व प्राण व्याप्त है। मिट्टी जो पृथ्वी तत्व है ओर पृथ्वी में स्थित सर्वन्त्यामी है। पृथ्वी अखिल विश्व की सृष्टि को धारण करती है अर्थात अपने वक्षस्थल […] Read more » मिट्टी के दीये