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चुनाव राजनीति

सवाल यह भी तो है कि अब उपराष्ट्रपति कौन होगा?

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निरंजन परिहार-  राष्ट्रपति तो रामनाथ कोविंद होंगे, लेकिन उपराष्ट्रपति कौन होगा। भैरोंसिंह शेखावत की तरह कोई तेजतर्रार राजनीतिक व्यक्ति उपराष्ट्रपति बना, तो वह राष्ट्रपति पद पर बैठे कोविंद के कद पर भारी पड़ जाएगा। क्योंकि कोविंद पद में भले ही बड़े साहित हो सकते हैं, कद से नहीं। और राजनीति की दिक्कत यही है कि […]

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आर्थिकी चुनाव राजनीति

राजनीतिक चंदे के लिए निर्वाचन बाॅन्ड का औचित्य

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एक मोटे अनुमान के अनुसार देश के लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं। इस खर्च में बड़ी धनराशि कालाधन और आवारा पूंजी होती है। जो औद्योगिक घरानों और बड़े व्यापारियों से ली जाती है। आर्थिक उदारवाद के बाद यह बीमारी सभी दलों में पनपी है। इस कारण दलों में जनभागीदारी निरंतर घट रही है। अब किसी भी दल के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को पार्टी का सदस्य नहीं बनाती हैं। मसलन काॅरपोरेट फंडिंग ने ग्रास रूट फंडिंग का काम खत्म कर दिया है। इस कारण अब तक सभी दलों की कोशिश रही है कि चंदे में अपारदर्शिता बनी रहे।

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जन-जागरण महिला-जगत समाज सार्थक पहल

कुछ कर गुजरने के जूनुन ने पहुंचाया जया को इस मुकाम तक

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जया देवी का सराधी गांव  हर साल सूखे के कारण फसलों के बर्बाद होने से परेशान रहता था। ऐसे में जया देवी ने इस समस्या का तोड़ निकालने का फैसला लिया और एक दिन वो एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी  के गवर्निंग सदस्य किशोर जायसवाल  से मिलीं। उन्होने जया को सूखे का कारण और बारिश के पानी को कैसे बचाया जाये? इसके बारे में बताया। किशोर जायसवाल ने उनको बंजर जमीन  पर पेड़ लगाने के लिए कहा।

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जन-जागरण समाज

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस

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पतंजलि और उसके संस्थापक श्री रामदेव की जीवनी आज के युवाओं को और प्रेरणास्पद तथा निर्विवाद लगती यदि वे स्टीव जॉब्स या मार्क जुकरबर्ग या रतन टाटा और मुकेश अंबानी जैसे कॉर्पोरेट लीडर होते। एक अतिसामान्य किसान परिवार के युवक का सामान्य आर्थिक-शैक्षिक पृष्ठभूमि को पीछे छोड़कर शिखर पर पहुंचना और उसका बहादुरी से स्वीकारना कि ब्रांडिंग और पैकेजिंग के इस युग में उसने योग की उपयुक्त ब्रांडिंग-पैकेजिंग द्वारा उक्त सफलताएँ प्राप्त की हैं, व्यक्तित्व विकास की पाठ्य पुस्तकों में स्थान पाने योग्य है।

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जन-जागरण समाज

मजदूरों के लिए विपरीत समय

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पिछले साल अगस्त में लोकसभा में मोदी सरकार ने कारखाना (संशोधन) बिल 2016 पास करा लिया है. यह अधिनियम कारखानों को मज़दूरों से दुगना ओवरटाइम करवाने की छूट देता है. इस संशोधन के मुताबिक पहले के तीन महीने में 50 घंटे के ओवरटाइम के कानून के मुकाबले मज़दूरों से 100 घंटे ओवरटाइम करवाया जा सकेगा, इस तरह से साल भर में मज़दूरों से 400 घंटे का ओवरटाइम करवाया जा सकेगा. इस विधेयक को पेश करते हुए केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय कहा था कि ‘मोदी सरकार की ‘मेक इन इण्डिया’, ‘स्किल इन्डिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी कार्यकर्मों को देखते हुए यह संशोधन बेहद ज़रूरी बन गया है.’ उन्होंने दावा किया था कि ‘कारखाना अधिनियम में यह संशोधन मज़दूरों को अधिक काम करने और अधिक पैसा कमाने का अवसर देगा और इससे व्यापार करने की प्रक्रिया भी आसान बनेगी’. गौरतलब है कि 2014 में मोदी सरकार ने आने कुछ महीनों के अन्दर ही कारखाना (संशोधन) विधेयक लोक सभा में पेश किया था जिसके बाद उसे स्थायी समिति के पास भेजा दिया गया था.

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