कहानी साहित्य मजबूरी February 26, 2016 by विजय कुमार | 1 Comment on मजबूरी चंदन मेरा बचपन का दोस्त है। हम दोनों हमउम्र हैं। घर भी एक ही गली में है। वह मुझसे दो महीने बड़ा है; पर पढ़ना हम दोनों ने एक ही स्कूल और कक्षा में साथ-साथ शुरू किया। स्कूल जाते समय मेरे पिताजी अपनी साइकिल पर हम दोनों को ले जाते थे, तो वापसी पर यही […] Read more » Featured मजबूरी
कहानी साहित्य विश्वनाथ February 25, 2016 by बलवन्त | Leave a Comment ‘विश्वनाथ! अरे ओ हमार लाल, कहाँ चला गवा रे तू! तोरे बिना हमार मन नाहीं लागत है रे! हे भगवान! हमार बिटवा के हमरे पास वापस भेज दे, ना त हमरा के उके पास भेज दे भगवान!’ गुलेटन दास अपने प्यारे बेटे को याद कर रोये जा रहा था, तभी उसके छोटे बेटे की पत्नी […] Read more » विश्वनाथ
कहानी साहित्य नया विश्वास February 23, 2016 by विजय कुमार | 1 Comment on नया विश्वास मोहन के पांव आज धरती पर नहीं पड़ रहे थे। दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक प्रतिष्ठित पत्रिका में उसकी कहानी छपी थी। पत्रिका की ओर से स्वीकृति का पत्र तो दो माह पहले ही आ गया था; पर तब उसने किसी से इसकी चर्चा नहीं की। वस्तुतः वह सबको ‘सरप्राइज’ देना चाहता था। कई […] Read more » नया विश्वास
कहानी साहित्य न इधर के रहे न उधर के रहे.. February 20, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment मैं जिस सरकारी विभाग में काम करता था, वहां से पिछले दिनों मेरा स्थानांतरण कर दिया गया। नये स्थान पर सरकारी आवास में मरम्मत और रंगाई-पुताई का कुछ काम बाकी था। अतः कुछ समय के लिए एक कमरा किराये पर ले लिया। मकान मालिक एक वकील साहब थे। उनकी वकालत तो कोई खास नहीं चलती […] Read more » न इधर के रहे न उधर के रहे..
कहानी साहित्य दृष्टिकोण February 18, 2016 / February 18, 2016 by विजय कुमार | 3 Comments on दृष्टिकोण चंदन मेरा बचपन का मित्र है। उसके लिए सबसे उचित संबोधन ‘लंगोटिया यार’ है। यानि जब हमें लंगोट पहनने की भी तमीज नहीं थी, तब से हम लोग मित्र हैं। खेलकूद हो या पढ़ाई, खानपान हो या लड़ाई, हम हर जगह साथ-साथ पाये जाते थे। पढ़ाई के बाद दोनों की राहें अलग-अलग हो गयीं। वह […] Read more » दृष्टिकोण
कहानी साहित्य पांच रुपये February 16, 2016 by विजय कुमार | 3 Comments on पांच रुपये नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार सर विद्यासागर नयपाल के बारे में मैंने सुना है कि वे जहां भी जाते हैं, वहां के आंतरिक भागों की यात्रा प्रायः रेलगाड़ी में एक सामान्य व्यक्ति की तरह करते हैं। उनका मानना है कि आम जनजीवन को जानने और समझने का यह सबसे अच्छा तरीका है। मैं भी इसका समर्थक […] Read more » Featured story by vijay kumar पांच रुपये
कहानी सत्संग February 15, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment सोहन ने कक्षा दस तक की पढ़ाई तो अपने गांव में ही की; पर फिर पढ़ने के लिए वह मेरठ आ गया। वहां उसने एक कमरा किराये पर ले लिया। श्याम भी उसकी कक्षा में ही पढ़ता था। अतः दोनों में मित्रता हो गयी। कुछ ही दिन में यह मित्रता इतनी बढ़ी कि दोनों ने […] Read more » सत्संग
कहानी साहित्य उलझन February 4, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment शोभा का मन न जाने कैसा हो रहा था। जब से उसे अपनी जेठानी पूर्णिमा की मृत्यु का समाचार मिला था, उसका मन बार-बार चिन्तित और व्याकुल हो उठता था। क्या होगा अब पांच साल के मोहन और नवजात राधिका का ? पूर्णिमा और शोभा क्रमशः पांच साल के अन्तर से इस घर […] Read more » उलझन
कहानी साहित्य बरकत February 2, 2016 by विजय कुमार | 1 Comment on बरकत कल शाम देहरादून से जितेन्द्र का फोन आया, ‘‘20 अक्तूबर को तुम्हारे भतीजे का विवाह है। कार्ड तो जब छपेगा, तब भेज दूंगा; पर तारीख लिख लो। भाभी जी और बच्चों को भी आना है।’’ मैंने कहा, ‘‘हां भाई, ऐसे खुशी के मौके बार-बार थोड़े ही आते हैं। हम सब जरूर आएंगे। कोई चीज […] Read more » Featured बरकत
कहानी साहित्य सौन्दर्या February 2, 2016 by अनुप्रिया अंशुमान | Leave a Comment एक बहुत ही मीठी ,मधुर ध्वनि या स्वर सुनायी दे रही है ।आज सुबह मैं होटल की बालकनी मे खड़े होकर मनाली की रहस्यात्मक खूबसूरती के राज का आनंद ले रहा था। पर ये ध्वनि कहाँ से आ रही है –एकदम मन को मोह लेनी वाली अब तो आवाज भी आने लगी थी वो आवाज […] Read more » सौन्दर्या
कहानी साहित्य ओक्साना कुत्ते द्वारा पालित लड़की January 27, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment अविकसित मानव बच्चों की सच्ची कहानियां ( 10 ) डा. राधेश्याम द्विवेदी ओक्साना की कहानी ना तो डरी सहमी लड़की का है और ना तो किसी दोषी लड़की की है, अपितु एक उपेक्षित अथवा निष्कासित लड़की की कहानी है। वह यूक्रेन के नोवाया बलागोवेसचेनका के अपने पारिवारिक घर में रहती थी। उसके घर के पीछे […] Read more » ओक्साना कुत्ते द्वारा पालित लड़की
कहानी साहित्य जनम January 8, 2016 by विजय कुमार सप्पाती | 1 Comment on जनम ||| | गोपाला ने अपना एक झोला और बैग लिया और ट्रेन में बैठ गया, ये ट्रेन दुर्ग से जगदलपुर जा रही थी। गर्मी के दिन थे, उसे खिड़की के पास वाली सीट मिली । ट्रेन चलने लगी तो भागते हुए तीन युवक आये और ठीक उसके सामने वाली सीट पर बैठ गए । […] Read more » Featured story based on maowadis story on naxalwad जनम