कविता अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आयेगा September 20, 2018 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आयेगा बंद कर दिया है सांपों को सपेरे ने यह कह कर अब इंसान ही इंसान को डसने के काम आयेगा पल्ला झाड़ लेती है पुलिस जनता को यह कह कर अब गुंडा ही गुंडों को पकड़ने के काम आयेगा तोड़ लिये जाते है कच्चे फ्लो को यह कह कर कोई केमिकल ही उनके पकने के […] Read more » अब इंसान ही इंसान डसने के काम आयेगा
कविता एक गजल कशिश ए मोहब्बत पर September 19, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी कशिश ए मोहब्बत में हर एक चोट खाई हमने हुए जो तुमसे दूर तो सब दूरियां मिटाई हमने करीब थे इतने कि निकाल लें जान भी हंसकर एक बेरहम के लिए अपनी जान गवाई हमने मीठी यादो से हमारी भीग जाती पलकें हर रोज़ जलते चिरागों तले हर रात तनहा बिताई हमने […] Read more » कशिश दुआ मीठी यादो मोहब्बत
कविता अखिलता की विकल उड़ानों में ! September 19, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ अखिलता की विकल उड़ानों में, तटस्थित होने की तरन्नुम में; उपस्थित सृष्टा सामने होता, दृष्टि आ जाता कभी ना आता ! किसी आयाम वह रहा होता, झिलमिला द्रश्य को कभी देता; ख़ुमारी में कभी वो मन रखता, चेतना चित्त दे कभी चलता ! कभी चितवन में प्रकट लख जाता, घुले सुर […] Read more » अखिलता की विकल उड़ानों में ! झिलमिला द्रश्य पंखुड़ी
कविता जिन्दगी की कुछ सच्चाईयां September 18, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आर के रस्तोगी जो चाहा कभी पाया नहीं जो पाया कभी चाहा नहीं जो सोचा कभी मिला नहीं जो मिला कभी पाया नहीं जो मिला कभी रास आया नहीं जो रास आया कभी मिला नहीं जो पाया कभी वो सभाला नहीं जो संभाला कभी वो खोया नहीं अजीब सी पहेली ये जिन्दगी काटने से […] Read more » खुशी ग़म जिन्दगी की कुछ सच्चाईयां
कविता हवेली को दुख है September 17, 2018 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment विनोद सिल्ला मेरे पङौस की हवेली खाली पङी है अब तो शायद चूहों ने भी ठिकाना बदल लिया कभी यहाँ चहल-पहल रहती थी उत्सव सा रहता था लेकिन आज इसके वारिश कई हैं जो आपस में लङते रहते हैं संयुक्त परिवार टूटने का दुख इस हवेली को भी है Read more » हवेली को दुख है
कविता मोदी जी को जन्म दिवस की बधाई September 17, 2018 by आर के रस्तोगी | 1 Comment on मोदी जी को जन्म दिवस की बधाई ते है बधाई हम सब भारतवासी मोदी जी जन्म दिवस की तुमको उन्नीस में जीत मिलेगी तुमको तब ख़ुशी मिलेगी हम सब को करते दुआ तुम जियो ह्जारो साल लिखे भारत का एक नया इतिहास जिससे जन जन हो अब विकास विश्व में भारत का फैले प्रकाश कैसे दे जन्म दिवस की बधाई ये भारत […] Read more » जाति धर्म मोदी जी को जन्म दिवस की बधाई
कविता नाज़ है हिंद पर September 15, 2018 by भारत भूषण | Leave a Comment भारत भूषण नाज़ है हिंद पर साज़ लोकतंत्र है ये चित्र चंचला बहुत धरा का प्रतिबिम्ब है नील नभ नई किरण आशा सी भोर ये शक्ति सी भर रही कुछ कह रही सुनो इसे खेत है हरा भरा हरियाली चहुंओर है उम्मीद से भरी बंधी ऐसे राजा का देश है बालिका इतरा रहीं लेगी जन्म […] Read more » नाज़ है हिंद पर प्रधान सेवक युगपुरूष लोकतंत्र
कविता भव्य भव की गुहा में खेला किए, September 15, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८०८०८ अ) भव्य भव की गुहा में खेला किए, दिव्य संदेश सतत पाया किए; व्याप्ति विस्तार हृदय देखा किए, तृप्ति की तरंगों में विभु भाए ! शरीर मन के परे जब धाए, आत्म आयाम सामने आए; समर्पण परम आत्म जब कीन्हे, मुरारी मुग्ध भाव लखि लीन्हे ! झाँकना परा मन से जब आया, जगत […] Read more » झरने भव्य भव मुरारी मुग्ध संस्कार
कविता हिन्दी की व्यथा September 14, 2018 by डॉ छन्दा बैनर्जी | 6 Comments on हिन्दी की व्यथा डॉ. छन्दा बैनर्जी हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर जहाँ एक ओर हम हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की बात करते हैं, वहीं दबे स्वर यह भी स्वीकार करते हैं कि अंग्रेजी अभी भी हमारे व्यवसाय का प्रमुख भाषा है । अपने ही देश में खुद के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार से व्यथित […] Read more » आज़ाद हिन्दुस्तान भजन राष्ट्रभाषा संगीत हिन्दी पढ़ो
कविता हिंदी भाषा पर कुछ दोहे September 14, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है,इसका करो विकास हिन्दी में सब काम करो,ऐसा करो सब प्रयास हिन्दी बोलोगे तो होगा देश का तभी विकास दूसरी भाषा बोलोगे, होगा हिंदी का परिहास अगर छोड़ते अपनी भाषा,ये हिंदी का अपमान है लिखे और बोले अपनी भाषा,ये हिंदी की शान है भारत माँ के भाल पर, जो सजी हुई […] Read more » भारत माँ राष्ट्र भाषा हिंदी भाषा पर कुछ दोहे
कविता उम्र के साथ जिन्दगी के ढंग को बदलते देखा है September 13, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment हमने हर रोज जमाने को नया रंग बदलते देखा है उम्र के साथ जिन्दगी के ढंग को बदलते देखा है वो जो चलते थे,तो शेर के चलने का होता था गुमान उनको भी पैर उठाने के लिये सहारे को तरसते देखा है जिनकी नजरों की चमक देख सहम जाते थे लोग उन्ही नजरों को बरसात […] Read more » कुदरत पत्थर बिजली रंग
कविता ब्रज की सुधि हौं ना विसरावहुँ ! September 12, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on ब्रज की सुधि हौं ना विसरावहुँ ! (मधुगीति १८०८१४ अ) ब्रज की सुधि हौं ना विसरावहुँ, जावहुँ आवहुँ कान्हा भावहुँ; वाल सखा संग प्रीति लगावहुँ, साखन सुरति करहुँ विचलावहुँ ! सावन मन भावन जब आवतु, पावन जल जब वो वरसावत; वँशी की धुनि हौं तव सुनवत, हिय हुलसत जिय धीर न पावत ! झोटा लेवत सखि जब गावत, ब्रह्मानन्द उमगि उर आवत; शीरी वायु गगन ते धावत, ध्यानावस्थित मोहि करि जावत ! श्याम- शाम शीतल सुर करवत, गान बहाय श्याम पहुँचावत; तानन तिरिया पियहिं बुलावत, मात पिता ग्रह अमृत घोलत ! पूछत कुशल भाव बहु भीने, चीन्हे अनचीन्हे सुर दीन्हे; ‘मधु’ माखन गोकुल कौ खावहुँ, मधुवन में मुरली सुनि जावहुँ ! रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ Read more » ब्रज ब्रह्मानन्द वँशी श्याम