कविता साहित्य कोई मिल पल में चल देता ! April 16, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment कोई मिल पल में चल देता, कोई कुछ वर्ष संग देता; जाना सबको ही है होता, मिलन संस्कार वश होता ! विदा क्षण क्षण दिये चलना, अलविदा कभी कह देना; यही कर्त्तव्य रह जाता, मुस्करा भाव भव देना ! चले सब जाते अपनी धुन, झाँकते चलते दे चितवन; नज़र में रखे निज मंज़िल, कभी उर्मिल […] Read more » कोई मिल पल में चल देता !
कविता बच्चों का पन्ना साहित्य सुबह सुबह से ही रोजाना April 13, 2017 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment सुबह सुबह से ही रोजाना Read more » Featured सुबह सुबह से ही रोजाना
कविता साहित्य रामचरित April 4, 2017 by अरुण तिवारी | Leave a Comment अरुण तिवारी भजियो रामचरित मन धरियो तजियो, जग की तृष्णा तजियो। परहित सदा धर्म सम धरियो, मरियो, मर्यादा पर मरियो।। भजियो, रामचरित…. भाई संग सब स्वारथ तजियो संगिनी बन दुख-सुख सम रहियोे। मातु-पिता कुछ धीरज धरियो सुत सदा आज्ञा-पालन करियो।। भजियो रामचरित… सेवक सखा समझ मन भजियो शरणागत की रक्षा करियो। धोखा काहू संग मत […] Read more » रामचरित
कविता वरूण ने बिछाया श्वेत जाल April 2, 2017 by डॉ. मधुसूदन | 7 Comments on वरूण ने बिछाया श्वेत जाल डॉ. मधुसूदन बाहर था हिमपात निरंतर, उदास मन,बैठा था घरपर, पढी आप की काव्य पंक्तियाँ। उडा ले गयींं कहीं पंखों पर। अचरज अचरज अपलक अपलक पल में हिम भी रुई बन गया। और रुई का फूल हो गया। श्वेत पँखुडियाँ होती झर-झर॥ अब,श्वेत पँखुडियाँ झरती बाहर। शीतकाल,बसंत बन गया॥ “आ गया ऋतुराज बसन्त मधुऋतु लाई […] Read more » वरूण ने बिछाया श्वेत जाल
कविता साहित्य ऋतुराज बसन्त April 2, 2017 by शकुन्तला बहादुर | 4 Comments on ऋतुराज बसन्त शकुन्तला बहादुर आ गया ऋतुराज बसन्त। छा गया ऋतुराज बसन्त ।। * हरित घेंघरी पीत चुनरिया , पहिन प्रकृति ने ली अँगड़ाई नव- समृद्धि पा विनत हुए तरु, झूम उठी देखो अमराई । आज सुखद सुरभित सा क्यों ये मादक पवन बहा अति मन्द ।। आ गया …. * फूल उठी खेतों में सरसों महक […] Read more » ऋतुराज बसन्त
कविता साहित्य भगवा और हरा March 23, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment राष्ट्रीय ध्वज के शीर्ष में लगा, भगवा को आदर हमने दिया। विदेशी हमले से ही आकरके, हरा रंग यहां फहराती है ।। भारत का मूल स्वरूप चेतना, औ गरिमा को गिरा दिया। हरा को बढ़ाचढ़ा करके, सभ्यता संस्कार धुलवाती है ।।4।। Read more »
कविता साहित्य मोदी विश्व का नेता बन, योगी गुरु जगत कहायेगा।। March 23, 2017 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment यूपी में ना शासन था, सब हाथ पर हाथ धरे रहे। योगीजी के आते ही, सब द्रुत गति से बदल रहे।। वह वक्त एक दिन आयेगा, योगी मोदी बन जाएगा। मोदी विश्व का नेता बन, योगी गुरु जगत कहायेगा।। Read more » उत्तम प्रदेश मोदी विश्व का नेता योगी गुरु जगत
कविता आवा हो भइया होली मनाई March 14, 2017 / March 14, 2017 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment अब तो गावन कै लड़िका भी पप्पू टीपू जानि गएन, 'यूपी को ये साथ पसन्द है' ऐह जुम्ला का वो नकार दहेन, Read more » आवा हो भइया होली मनाई
कविता साहित्य इन रंगन से अब का डरनो, अब तो आ गई होरी March 12, 2017 by अरुण तिवारी | Leave a Comment कुछ रंगन में भंग परी है, कुछ रंगन में हाला, कुछ रंगन में गोरी, कुछ रंग गड़बड़ झाला। वीरू-जय औ पप्पू-टीपू ले रंगन को प्याला, हाथी, झाडू़, सीटी, नारियल हर रंग शतरंज वाला। कौन रंग वोटर मन भावे, जो रंगरेज़, सोई जाने ईवीएम को तो कमीशन जाने, हम तो जाने रंग तिरंगो वाला। इन रंगन […] Read more » अब तो आ गई होरी इन रंगन से अब का डरनो
कविता साहित्य आओ खेलें वैदिक होली March 8, 2017 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment विमलेश बंसल ‘आर्या’ होली को पावन त्यौहार आज कछु ऐसे मनाऊँगी। लगाकर सबके चंदन माथे, सौम्य हो जाऊंगी। बड़ों को करके ॐ नमस्ते, छोटों को हृदय लगाऊंगी। नवान्न आटे की गुजिया बना, प्रसाद बनाऊंगी। वृहद यज्ञ सामूहिक कर के नौत खिलाऊंगी। उंच नीच का भेद भुलाकर, प्रीति निभाऊंगी उत्तम पेय पिला ठंडाई, फाग गवाऊँगी। पूरे […] Read more »
कविता सत्य पथ का मुसाफिर February 25, 2017 by कुमार विमल | 1 Comment on सत्य पथ का मुसाफिर कुमार विमल कोई पथ जाती है धन को, कोई सुख साधन को, और कोई प्रेमिका के मधुर चितवन को। पर छोड़ ये सारे सुलभ पथ को तूने चुना है सत्य को नमन है तेरे त्याग और तप को। पग-पग है संग्राम जिस पथ का, मापदंड साहस जिस पथ का , इंतिहान तप,तेज और बल […] Read more » Featured सत्य पथ का मुसाफिर
कविता साहित्य उर में आता कोई चला जाता ! February 10, 2017 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment उर में आता कोई चला जाता, सुर में गाता कभी है विचलाता; सुनहरी आभा कभी दिखलाता, कभी बे-रंग कर चला जाता ! वश भी उनका स्वयं पे कब रहता, भाव भव की तरंगें मन बहता; नियंत्रण साधना किये होता, साध्य पर पा के वो कहाँ रहता ! जीव जग योजना विविध रहता, विधि वह उचित […] Read more » उर में आता कोई चला जाता !