कविता साहित्य ऐसा ही कुछ करना होगा December 31, 2016 by शालिनी तिवारी | Leave a Comment लम्बे अर्से बीत चले हैं, इनसे कुछ सबक लेना होगा, उम्मीदों की सतत् कड़ी में, इस बार नया कुछ बुनना होगा, अपने समाज के अन्तिम जन को, अब तो बेहतर करना होगा, शिक्षित और जागरूक बनाकर, इनके हक में लड़ना होगा, कुछ न कुछ पाने का सबका, अपना अपना सपना होगा, सूख चुके आँसुओं को […] Read more » ऐसा ही कुछ करना होगा
कविता साहित्य इस साल न हो पुर-नम आँखें December 28, 2016 by डॉ.कुमार विश्वास | Leave a Comment “इस साल न हो पुर-नम आँखें, इस साल न वो खामोशी हो इस साल न दिल को दहलाने वाली बेबस-बेहोशी हो इस साल मुहब्बत की दुनिया में, दिल-दिमाग की आँखें हों इस साल हमारे हाथों में आकाश चूमती पाँखें हों ये साल अगर इतनी मुहलत दिलवा जाए तो अच्छा है ये साल अगर हमसे हम […] Read more » इस साल न हो पुर-नम आँखें
कविता शख्सियत साहित्य शमशेर की कविता December 24, 2016 / December 24, 2016 by पिन्टू कुमार मीणा | Leave a Comment पिन्टू कुमार मीणा शमशेर बहादुर सिंह दूसरे सप्तक के कवि है । इनके 1956 और 1961 में दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए- ‘कुछ कविताएँ’ और ‘कुछ और कविताएँ’ । शमशेर आधुनिक दौर के सबसे जटिल कवि माने जाते हैं । इसका कारण कविता को समझने की पाठक / आलोचक की वह पारंपरिक धारणा रही है […] Read more » Featured Shamsher Bahadur Singh शमशेर बहादुर सिंह
कविता नन्हें बच्चे November 18, 2016 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment नन्हें बच्चे Read more » Featured नन्हें बच्चे
कविता साहित्य अधूरी दास्ताँ November 17, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment कुछ पुरानी यादें… और तुम्हारा साथ… वही पुराने प्रेम पत्र और अपनी बात… पलभर की गुस्ताख़ी, और अंधेरी रात… टूटें हुए मकान और सुना पड़ा खाट.. ‘अवि‘ के दिल के अरमान और आँसुओं की बरसात… सवेरे की लालिमा और घायल ज़ज्बात… सबकुछ सिर्फ़ तुम पर ही आकर ख़त्म हो जाता है… और तुमसे […] Read more » अधूरी दास्ताँ
कविता डरता है मन मेरा November 17, 2016 by लक्ष्मी अग्रवाल | Leave a Comment डरता है मन मेरा कहीं हो न जाए तेरे भी जीवन में अंधेरा नाजों से पली थी मैं अपनी बगिया की कली थी एक दिन उस बगिया को छोड़ चली थी मैं नए सपनों को देख मचली थी मैं जैसे बहारों के मौसम में खिली थी मैं पर अगले ही दिन मुस्कान खो चुकी थी […] Read more » डरता है मन मेरा
कविता बच्चों का पन्ना साहित्य बचपन की कैद November 14, 2016 by लक्ष्मी अग्रवाल | Leave a Comment नन्हें नन्हें कांधों पर वजन उठाये कौन सी जंग लड़ रहे हैं ये ज़िन्दगी के मासूम सिपाही। क्या यही है इनके लिये ज़िन्दगी की अनमोल सौगात? कब तक यूँ ही बोझा ढोयेंगे ये नन्हें-नन्हें कोमल हाथ? क्या यही है इनके लिये ज़िन्दगी के असली मायने? या देख पाएंगे ये भी कभी बचपन के सपने सुहाने? गुड्डे-गुड़ियों का घर सजाने […] Read more » बचपन की कैद
कविता साहित्य बेसहारा बाप की व्यथा November 4, 2016 by अमन कौशिक | 1 Comment on बेसहारा बाप की व्यथा उधर भूख से बिलख रही थी नवासी मेरी.. इधर दुनिया को छोड़ चुकी थी बिटिया मेरी.. क्या करूँ, क्या पूछूँ, कुछ नहीं था सूझ रहा.. क्या वज़ह थी इसके पीछे, कुछ नहीं था दिख रहा.. Read more » "बेसहारा बाप की व्यथा" Featured
कविता साहित्य मेरा इंतजार November 3, 2016 / November 3, 2016 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment इंतज़ार में हूं मैं कि कुछ वक़्त खुद के लिए तलाश पाऊंगी इंतज़ार में हूं मैं कि अपना हाल-ए-दिल उनसे कह पाऊंगी। इंतज़ार में हूं मैं कि उनके साथ एक हसीं शाम बिता पाऊंगी। इंतज़ार में हूं मैं कि शायद कभी अपनी पहचान जान पाऊंगी। इंतज़ार में हूं मैं कि अपने दिल के दर्द को […] Read more » मेरा इंतजार
कविता साहित्य मेरी मां की डायरी October 30, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment मेरी मां लिखा करती थी, रोज़ डायरी का इक पन्ना, ये सिलसिला कब शुरू हुआ, कैसे शुरू हुआ ये तो याद नहीं, पर तब तलक चलाता रहा.. जब तक होशो हवास थे। कितने साल तक लिखा ,क्या लिखा, ये तो पता नहीं, पर कुछ किस्से, कहानी और कविता सुना देतीं वो खुद ही कभी कभी। […] Read more » मेरी मां की डायरी
कविता साहित्य दिव्य आभा दिलों में ढाली है ! October 30, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment दिव्य आभा दिलों में ढाली है; प्रभा लेकर दिवाली आई है ! ख़ुशाली हर जगह पै छायी है; प्रमा में आत्म हर सुहायी है ! Read more » दिव्य आभा दिलों में ढाली है !
कविता साहित्य चलो, दिवाली आज मनायें October 28, 2016 by बलवन्त | Leave a Comment चलो, दिवाली आज मनायें Read more » चलो दिवाली आज मनायें