कविता साहित्य परिवारवाद October 25, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment परिवारवाद Read more » परिवारवाद
कविता साहित्य वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन ! October 24, 2016 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन, लूटि कें लै गए वे मेरौ मन; रह्यौ कोरौ सलौनौ सूने- पन, शून्य में झाँकतौ रह्यौ जोवन ! चेतना दैकें नचायौ जीवन, वेदना दैकें वेध्यौ आपन-पन; कलेवर क्वारे लखे कोमल-पन, कुहक भरि प्रकटे विपिन बृन्दावन ! मधुवन गागरी मेरी झटके, मोह की माधुरी तनिक फुरके; पुलक-पन दै गए पलक झपके, नियति […] Read more » वाँशुरी ऐसी बजाई मोहन !
कविता साहित्य ऊर्जा October 24, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment कुछ दिन के लिये, लेखनी कभी रुक सी जाती है। कोई कविता या कहानी, जब नहीं भीतर कसमसाती है, तब कोई बन्दिश पुरानी, याद आती है, कोई सुरीली तान मन में, गुनगुनाती है। कहीं से शब्द जुड़ते हैं, कहीं पर भाव मुड़ते हैं, कोई रचना तभी, काग़ज पर उतरके आती है। कोई पढ़े या न […] Read more » ऊर्जा
कविता साहित्य अब न चुप रह पाऊंगी October 19, 2016 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment अब न चुप रह पाऊंगी Read more » अब न चुप रह पाऊंगी
कविता साहित्य कुछ तो है हममें October 14, 2016 by लक्ष्मी जायसवाल | Leave a Comment कुछ तो है हममें जिससे यह दिल ही दिल में ख़ौफ़ खाते हैं। कुछ तो है हममें जिसे यह दुनिया वाले सदियों से झुठलाते हैं। Read more » कुछ तो है हममें
कविता साहित्य आओ वैदिक दीप जलाएं October 11, 2016 by विमलेश बंसल 'आर्या' | Leave a Comment गोवर्धन, संरक्षण, पोषण, गौ की सेवा, गौ का पालन| गौ माता के प्राण बचाएं|| Read more » आओ वैदिक दीप जलाएं
कविता साहित्य रावण क्या बन पावोगे October 9, 2016 by डा. राधेश्याम द्विवेदी | Leave a Comment कीट मकोड़े पशु जानवर, भी बन पाना आसान नहीं। सब के अपने लक्ष्य होते हैं,सब कर पाना आसान नहीं।। चारो वेद का ज्ञाता था वह, वीणा संगीत में सानी नहीं। राजनीतिज्ञ था पराक्रमी , ज्ञानी सम उसके कोई नहीं।। Read more » रावण क्या बन पावोगे
कविता साहित्य फल की इच्छा September 27, 2016 by बीनू भटनागर | Leave a Comment कर्म का उद्देश्य ही फल है, तो फल की इच्छा होना तो ज़रूरी है। थोड़ी व्याकुलता भी होगी ही, Read more » Featured फल की इच्छा
कविता साहित्य तलाश पूरी हुई September 22, 2016 by विजय कुमार | Leave a Comment राजेश बाबू देहरादून में रहते हैं। उनकी बेटी सुमन एम.ए. के अंतिम वर्ष में थी। हर पिता की तरह वे भी उसके विवाह के लिए चिंतित थे। उनकी इच्छा थी कि परीक्षा के बाद इस सर्दियों में उसके हाथ पीले कर दिये जाएं। उन्होंने अपने मित्रों और सम्बन्धियों को यह कह रखा था कि उनकी […] Read more » Featured तलाश पूरी हुई
कविता साहित्य नारी का दर्द September 17, 2016 by चारु शिखा | Leave a Comment क्यों दर्द हैं उसकी बातों में हमेशा मुस्कुराती है जो , इतना अकेली क्यों हैं वो जो मर्यादित है , जो संयमित है, जो नाजुक है , जो शांत है , आखिर एक अबला है वह उसकी की देह तो सबको दिखती है। उसकी आंतरिक सुंदरता क्यों नहीं दिखती.. कहाँ सुरक्षित है वो घर -बाहर […] Read more » नारी का दर्द
कविता साहित्य शहर मर भी रहा है September 16, 2016 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment हर शहर की सरहद के उस पार से कुछ ठंडी हवाएँ हर बार जरूर आती है अपने साथ सभ्यताओं का एक पुलिंदा भी साथ में गाहे-ब-गाहे जरूर ले आती हैं वही हवाएँ, शहरी हवाओं के साथ मिलकर एक रंग बना देती है रंग शहर के पुरातन के साथ भी अक्सर घुल-मिल जाया करता है जैसे […] Read more » शहर मर भी रहा है
कविता तुम से प्यार कितना है September 7, 2016 / September 7, 2016 by मनीषा गुप्ता | Leave a Comment मनीषा गुप्ता क्या कहूँ की तुम से प्यार कितना है तेरी चाहत पर एतबार कितना है !! की साँसे भी अब तो कर देती है बगावत की तुम बिन चलना अब उनका भी मुहाल कितना है !! की तेरी आने की आहट से ही महक जाता है श्रृंगार मेरा देखो मेरे वज़ूद में बसता तेरा […] Read more » तुम से प्यार कितना है