कविता क्षितिज के पार January 18, 2024 / January 18, 2024 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment आत्माराम यादव पीव दूर क्षितिज के पार शून्य मेंऑखें भेदना चाहती है व्योम कोपुच्छल छल्लों का बनता बिगड़ता गुच्छाऑखों की परिधि में आवद्घ रहकरथिरकता हुआ ओझल हो जाता हैऑखें कितनी बेबश होती हैअपनी पूर्ण क्षमता केउन गुच्छों के स्वरूप कोथिर देखने को उत्सुक ।अनवरत चल पडता हैउन छल्लों का शक्तिस्त्रोतऑखों से फूटताअज्ञात यात्रा की ओरयह क्रमवार […] Read more » क्षितिज के पार
कविता प्रेयसी – मिलन January 11, 2024 / January 11, 2024 by अजय एहसास | Leave a Comment पता नहीं कुछ वर्षों की या जन्मों का है सहारा ना तेरा ना मेरा कहता, कहता सब है हमारा उसे प्रेयसी ने जब प्रथम मिलन को पुकारा मन में खुशी लिए तुरत ही हो गया नौ दो ग्यारा मन में था डर, क्या करता पर यह ना सोचा क्या होगा तब जान जाये जब सबके […] Read more » beloved - union
कविता अनुबाद January 8, 2024 / January 8, 2024 by माधब चंद्र जेना | Leave a Comment जीवन मृत्यु में अनुबाद होता है धीरे-धीरे, बेहद धीरे-धीरे l पिता से पुत्र का अनुवाद पुत्र से पिता का, माँ से बेटी का अनुवाद पुनः बेटी से मां का बादल से वर्षा और बरसा से बादल जल का सटिक अनुवाद असंभव है जब तक प्यास का अनुवाद न हो जाए सभी अनुवाद पूरा पूरा असंभव […] Read more »
कविता पेड़ की हत्या January 8, 2024 / January 8, 2024 by माधब चंद्र जेना | Leave a Comment जब में पेड़ बनके मरता हूँ मेरे हत्यारे कहीं फरार नहीं होता वल्कि वह अस्त्र उठाके ऐसे चलता है जैसे कोई युद्ध जीतके लौटा है l मेरा जब हत्या होता है वहां कोई अपराध नहीं होता क्योंकि पेड़ का इनसान जैसा कोई प्राण नहीं होता पेड़ का माँ बाप नहीं होते, कोई अपने नहीं होते […] Read more »
कविता कितना अच्छा होता January 8, 2024 / January 8, 2024 by माधब चंद्र जेना | Leave a Comment कितना अच्छा होता अगर दुनिआ में इनसान नहीं होते चारो तरफ जंगल ही जंगल होता पानी ही पानी होता चिड़िया अपने सुर में गाते सारे अपने धुन में जीते हवा अपने मन से बहता पानी अपने मन से बहता कभी कहीं पे कान फटने वाला डी जे नहीं होता बारात नहीं होता की बारदात भी […] Read more »
कविता रामलला का दर्शन कर ले बंदे January 3, 2024 / January 3, 2024 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायक रामलला का दर्शन कर ले बंदे राम मर्यादित चरित्र जीनेवाला राम ही भव बंधन मिटानेवाला राम से मानव जाति का भला! रामलला का मासूम सा मुखड़ा राम ही सुनते हैं सबकी दुखड़ा राम से बड़ा न भला करनेवाला राम ही जग में है सबसे भला! रामलला का पूजन कर ले बंदे रामलला […] Read more » रामलला का दर्शन कर ले बंदे
कविता नया साल आया है, नया सवेरा लाया है January 2, 2024 / January 2, 2024 by ब्रह्मानंद राजपूत | Leave a Comment नया साल आया है, नया सवेरा लाया है, हर घर में खुशियों का मौसम छाया है। पड़ रही है कड़ाके की ठंड फिर भी जोश है नए साल का, आओ सब नए साल का जश्न मनाएं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को न भूल जाएँ, नया साल है नयी जिम्मेदारी, नया लक्ष्य हमको बनाना है, लक्ष्य को साकार करके […] Read more »
कविता समय तू चलता चल December 26, 2023 / December 26, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment किसने देखा आता है तू, किसने देखा जाता है तू समा सके न इन आँखों में, यूं दबे पांव आता है तू।। उतर रहा सूरज नभ से, समय को अपलक देखें सागर तेरे पांव पखारे, धरती लिखती लेखें ।। तेरी सूरत तेरी मूरत,दुनिया वाले न जान सके जिन आँखों ने देखा नहीं, वे ही तेरी पहचान करें। समय तू चलता […] Read more » समय तू चलता चल
कविता तब तुमने कविता लिखी बाबूजी December 23, 2023 / December 26, 2023 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment जब फांसी पर था झूल गया किसान, जब गिरवी हुआ था उसका खेत और मकान, जब बेचा था उसने बीवी का अन्तिम गहना, तब भी दूभर था उसका ज़िंदा रहना, वो हार गया आखिर जीवन की बाजी, तब तुमने लिखी कविता बाबूजी जब लड़की का खींचा गया दुपट्टा, करते रहे मनचले रोज ही उसका पीछा, […] Read more » Then you wrote the poem Babuji तब तुमने कविता लिखी बाबूजी
कविता दाता खुद बना भिखारी है December 15, 2023 / December 15, 2023 by आत्माराम यादव पीव | Leave a Comment दाता खुद बना भिखारी है हाथ पसारे आने वाले हाथ पसारे जाते है इस दुनिया में आते ही , सभी भिखारी बन जाते है।गली गली में झोला टांगे , कुछ तो आटा मांग रहे कुछ सम्राटों के घर पैदा हो, खाने को मोहताज रहे ।।आगे बढ़ो माफ़ करो बाबा, कहा जाता है भिखारी को जिनके घर अम्बार लगा हो, उनको पल में मिल जाता है । भिक्षुक बनकर जो हाथ पसारे, वह उतना ही पा जाता है रुखा सुखा भाग्य है जिनका, वह चाह छोटी ही रख पाता है ।। जो आदत छोड़े मांगने की और प्रेम को हृदय मैं उमगायेजरूरत नही फिर उस प्रेमी की, वह सारा साम्राज्य पा जाए ।जीवन से चूके कई मांगने वाले, जो भिखारियों के आगे हाथ पसारे छीने उनसे जिनकी झोली खाली। भरी तिजोरी वालो की करता न्यारे–ब्यारे आनन्द बरसे करुणा उपजे, जहा अस्तित्व सदा से नाच रहा ‘पीव ‘ उस वीतरागी की मुठ्ठी में आने को।। आनन्द स्नेह से है भरा पसारने के इस आनंद को पाने, जिसने भी हाथ पसारा हैब्रह्मांड हथेली में देनेवाला , दाता खुद बने पसारने वाला है।। Read more »
कविता पता नहीं कब मानव मत मजहब में मानवता का धर्म निभाएगा? December 11, 2023 / December 11, 2023 by विनय कुमार'विनायक' | Leave a Comment —विनय कुमार विनायक शब्द बड़ा या प्रस्तोता निश्चय ही प्रस्तोता, जिसने शब्द को जन्म दिया, प्रस्तुत किया, ये शब्द बना है वर्ण या अक्षर के मिलन से अक्षर या वर्ण शब्दनाद कहाँ से जन्म लेता? निश्चय ही किसी व्यक्ति वस्तु स्थिति से, क ख ग घ ङ कवर्ग (अ आ ह 🙂 कंठ से च […] Read more » Don't know when human opinion will play the role of humanity in religion पता नहीं कब मानव मत मजहब में मानवता का धर्म निभाएगा
कविता मेरे प्रियतम December 4, 2023 / December 4, 2023 by दिलीप कुमार सिंह | Leave a Comment तुम अगले जन्म में मिलना तब शायद पांव में न बंधी होगी रूढ़ियों की जंजीर, परम्पराओं के बोझ तले न सिसके तब यूँ मेरी पीर, तब आदर्श नारी बनने की अपेक्षाओं से पहले समझी जाऊंगी शायद एक सुकुमार सी लड़की, तब फर्ज की बलिवेदी पर नहीं चुनी जाएगी केवल स्त्री, मादा है तो इसकी क्या […] Read more » मेरे प्रियतम