कविता दंगा बना देश का नासूर June 25, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- क्यों होता है दंगा फसाद, कौन है इसका ज़िम्मेदार ? छोटी-छोटी हर बातों पर, निकल आते हैं क्यों हथियार। आक्रोश की आंधी में, लोग बहक जाते हैं क्यों ? एक दूसरे के आखिर हम, दुश्मन बन जाते हैं क्यों ? लड़कर एक दूसरे से देखो, करते हैं हम खुद का नुकसान। दंगा भड़काने […] Read more » एकता कविता दंगा दंगा बना देश का नासूर
कविता कैसी पलटी है समय की धार June 25, 2014 / June 25, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- कैसी पलटी है समय की धार। हमसे रूठी हमारी ही सरकार। उतर चुका सब चुनावी बुखार। नहीं अब कोई जन सरोकार। अनसुनी है अब सबकी पुकार। बहरा हो गया हमारा करतार। दमक रहा है बस शाही दरबार। झोपड़ों में पसरा और अंधकार। सुन लो अब भी एक अर्ज़ हमार। आपकी पालकी के हमीं […] Read more » कविता कैसी पलटी है समय की धार समय की धार हिन्दी कविता
कविता मेहनत किसान की June 23, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- आखिर हम कैसे भूल गये, मेहनत किसान की, दिन हो या रात उसने, परिश्रम तमाम की। जाड़े की मौसम वो ठंड से बड़े, तब जाके भरते, देश में फसल के घड़े। गर्मी की तेज धूप से, पैर उसका जले, मेहनत से उनकी देश में, भुखमरी टले। बरसात के मौसम में, न है भीगने […] Read more » मेहनत किसान की हिन्दी कविता
कविता पूछ परख के चक्कर में घनचक्कर हुआ लोकतंत्र June 23, 2014 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment -जावेद उस्मानी- मर गए अनगिनत गरीब देखते सियासी तंत्र मंत्र महंगाई की ज्वाला से घिरा व्याकुल सारा प्रजातंत्र कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, जंगल बना जनतंत्र पूंजीधीश के गले लगते भजते विकास का महामंत्र हवा पानी तक हजम कर गए जिनके उन्नत सयंत्र अच्छा है यदि जपें न्याय सम्मत जनहित का जंत्र लोकहित के नारों […] Read more » लोकतंत्र लोकतंत्र कविता हिन्दी कविता
कविता युग देखा है June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 2 Comments on युग देखा है -बीनू भटनागर- एक ही जीवन में हमने, एक युग पूरा देखा है। बड़े बड़े आंगन चौबारों को, फ्लैटों मे सिमटते देखा है। घर के बग़ीचे सिमट गये हैं, बाल्कनी में अब तो, हमने तो पौधों को अब, छत पर उगते भी देखा है। खुले आंगन और छत पर, मूंज की खाटों पे बिस्तर, पलंग निवाड़ […] Read more » कविता जीवन कविता युग देखा है हिन्दी कविता
कविता दीप June 20, 2014 / June 21, 2014 by बीनू भटनागर | 1 Comment on दीप -बीनू भटनागर- वायु बिन वो जल न पाये, वायु से ही बुझ जाये है। दीप तेरी ये कहानी तो, कुछ भी समझ न आये है। तू जला जो मंदिरों में, पवित्र ज्योति कहलाये है। आंधियों में ठहरा रहा तो, संकल्प बन जाये है। मृत्यु शैया पर जले तो, पीर अपनो की बन जाये है। आरती […] Read more » दीप दीप कविता हिन्दी कविता
कविता प्रेम June 19, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- प्रेम इतना भी न करो किसी से, कि दम उसका ही घुटने लगे, फ़ासले तो हों कभी, जो मन मिलन को मचलने लगे। भले ही उपहार न दो, प्रेम को बंधन भी न दो, एक खुला आकाश दे दो, ऊंची उड़ान भरने का, सौभाग्य दे दो… लौट के आयेगा तुम्हारे पास ही, ये […] Read more » प्रेम प्रेम कविता हिन्दी कविता
कविता तितली सी चंचलता June 19, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -लक्ष्मी जायसवाल- तितली सी चंचलता तितली सा चंचल बन मन मेरा उड़ना चाहता है। नन्हीं सी तितली रानी देख तुम्हें मन मेरा हर्षाता है। उड़कर तेरी तरह मन मेरा फूलों पर मंडराना चाहता है। डाल-डाल पर बैठकर यौवन मेरा इठलाना चाहता है। रंग-बिरंगे पंख हों मेरे दिल यही मांगना चाहता है। कोमल सी काया चंचल […] Read more » कविता जीवन कविता तितली सी चंचलता हिन्दी कविता
कविता आज जब बादल छाएं June 18, 2014 / October 8, 2014 by प्रवीण गुगनानी | Leave a Comment -प्रवीण गुगनानी- (१) कैसे होगा बादल कभी और नीचे और बरस जायेगा, फुहारों और छोटी बड़ी बूंदों के बीच, मैं याद करूंगा तुम्हें और तुम भी बरस जाना (२) कुछ बूंदों पर लिखी थी तुम्हारी यादें, जो अब बरस रही है, सहेज कर रखी इन बूंदों पर से नहीं धुली तुम्हारी स्मृतियां न ही नमी […] Read more » बादल बादल पर कविता हिन्दी कविता
कविता अब प्यारी लगती बेटी है June 18, 2014 / October 8, 2014 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment -प्रभुदयाल श्रीवास्तव- अपनी प्यारी बहनों को अब, भैया कभी सताना मत| तिरस्कार करके उनका हर, पल उपहास उड़ाना मत| एक जमाना था लड़की को, बोझ बताया जाता था| दुनियां में उसके आते ही, शोक जताया जाता था| हुई यदि लड़की घर में तो, मातम जैसा छा जाता| हर पास पड़ोसी घर आकर, अपना दर्द जता […] Read more » बेटी बेटी कविता बेटी पर कविता
कविता गांव से शहर June 17, 2014 / October 8, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- नदिया के तीरे पर्वत की छांव, घाटी के आँचल मे मेरा वो गांव। बस्ती वहां एक भोली भाली, उसमे घर एक ख़ाली ख़ाली। बचपन बीता नदी किनारे, पेड़ों की छांव में खेले खिलौने। कुछ पेड़ कटे कुछ नदियां सूखीं, विकास की गति वहां न पहुंची। छूट चला इस गांव से नाता, कोलाहल से […] Read more » गांव गांव कविता गांव से शहर शहर शहर कविता हिन्दी कविता
कविता रोटी मिली पसीने की June 14, 2014 / June 16, 2014 by श्यामल सुमन | Leave a Comment -श्यामल सुमन- इक हिसाब है मेरी जिन्दगी सालों साल महीने की लेकिन वे दिन याद सभी जब रोटी मिली पसीने की लोग हजारों आसपास में कुछ अच्छे और बुरे अधिक इन लोगों में ही तलाश है नित नित नए नगीने की नेकी करने वाले अक्सर बैठे गुमशुम कोने में समाचार में तस्वीरों संग चर्चा आज […] Read more » कविता जीवन पर कविता हिन्दी कविता