कविता साहित्य छोटी- सी आशा June 5, 2013 / June 5, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment जानता नहीं है कहाँ है उसका मुकाम । वह तो लगा रहता है बनाने में एक के बाद दूसरा बहुमंजिला मकान । छोटे-से गाँव का है वह एक कुशल कारीगर । आ गया है यहाँ अपना घर – द्वार छोड़कर । गाँव का वह झोपड़ीनुमा घर भी गिरवी रख आया था, जिसे कुछेक सालों में […] Read more » छोटी- सी आशा
कविता भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है June 3, 2013 / June 3, 2013 by ऋतु राय | 1 Comment on भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है बिकने लगा सब कुछ विदेशी हाथों का औज़ार बन गया है इंसान बिक गया, ईमान बिक गया घर में रखा साजों-सामान बिक गया विचार बिक गया समाचार बिक गया आदमी की भीतर से बाहर तक शिष्टाचार बिक गया अब खिलौनों की क्या बात करे ना रहा दम-ख़म खेल […] Read more » भारत एक बड़ा बाज़ार बन गया है
कविता साहित्य आज का मानव June 1, 2013 / June 1, 2013 by मिलन सिन्हा | 1 Comment on आज का मानव आज हरेक के जेब में मानव हरेक के पेट में मानव पेट से निकला है मानव पेट से परेशान है मानव अन्तरिक्ष में क्रीड़ा कर रहा है मानव सड़क पर लेटा है मानव जोड़ – घटाव में व्यस्त है मानव वैरागी बन रहा है मानव मशीन बन रहा है मानव समुद्र की लहरें गिन रहा […] Read more » आज का मानव
कविता कविता : संकल्प May 29, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा जो है खरा झंझावात में भी वही रह पायेगा खड़ा . नहीं दिखेगा वह कभी भी डरा-डरा . कोई भी उसे अपने संकल्प से नहीं डिगा पायेगा पर, जो खोटा है भले ही मोटा है देखने में चिकना चुपड़ा है सौन्दर्य प्रसाधनों का चलता-फिरता विज्ञापन है, मुखौटा हटते ही उसका असली चेहरा दिखेगा […] Read more » कविता : संकल्प
कविता मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी May 28, 2013 by पंकज त्रिवेदी | 1 Comment on मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी अब मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी कविताएँ ही पढ़ता हूँ कविता ही क्या ? तुम्हें भी तो पढता हूँ… महज़ एक कोशिश ! तुम्हारी मुस्कान के पीछे छुपा वो दर्द कचोटता है मेरे मन को तुम्हारी खिलखिलाती हँसी सुनकर लगता है जैसे किसी गहराई से एक दबी सी आवाज़ भी उसके पीछे से कराहती है […] Read more » मैं सिर्फ तुम्हारी लिखी
कविता कितने प्यार से May 28, 2013 by पंकज त्रिवेदी | 1 Comment on कितने प्यार से सींचा था मैंने उस रिश्ते को अपने ही हाथों मे संभाला था उसे किसी फूल की तरह समझदार तो था मगर हरबार हौसला बढाता रहा मैं वो आगे बढता रहा आगे बढते हुए वो इतना आगे निकल गया कि अब वो मुडकर भी नहीं देख पाता गिला वो नहीं कि वो आगे […] Read more »
कविता मेरे होने, न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये … May 27, 2013 by पंकज त्रिवेदी | Leave a Comment मेरे होने, न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये … कितना कुछ घुमड़ रहा है मेरे अंदर और बाहर से मेरे अंदर तक फैलता कोलाहल किसी धुएँ की तरह प्रदूषित कर देता है मेरे मन को… मैं हरपल – मेरे होने के साथ जीना चाहता हूँ मगर मेरे होने, न होने के […] Read more » न होने के बीच का अवकाश है तुम्हारे लिये ... मेरे होने
कविता हवाओं में बसी देहगंध May 25, 2013 by प्रवीण गुगनानी | 1 Comment on हवाओं में बसी देहगंध कहाँ से आ रही है हवा ? ये पता नहीं बस इसमें बसी देह गंध पहचान आती है. तभी तो पहचाना कि तुम बहती हवा की दिशा में हो. नहीं है इसमें वो सब कुछ जो एक पहाड़ पर होता है शिखर, गरिमा,संपदा, और थोड़ी जड़ता भी बस है तनिक सहजता जो सदा उँगलियों […] Read more » हवाओं में बसी देहगंध
कविता मैं सागर में एक बूँद सही May 25, 2013 by बीनू भटनागर | 2 Comments on मैं सागर में एक बूँद सही मैं सागर में एक बूँद सही, मैं पवन का एक कण ही सही, मैं भीड़ में इक चेहरा सही, जाना पहचाना भी न सही, मैं तृण हूँ धरा पर एक सही, अन्तर्मन की गहराई में कभी, मैंने जो उतर कर देखा है कभी, सीप में बन्द मोती की तरह, उन्माद निराला पाया है, उत्कर्ष शिखर का पाया है। जब भी कुछ मैंने लिखा है कभी, ख़ुद को ही ढ़ूंढ़ा पाया है । तब,लेखनी ने इक दिन मुझसे कहा, ‘’मैंने तुमसे तुम्हे मिलाया है।‘’ मैंने फिर उससे कुछ यों कहा, ‘’ओ मेरी लेखनी मेरी बहन! तूने मुझको तो मेरी नज़र में, कुछ ऊपर ही उठाया है।‘’ मैं सागर की एक बूंद सही, मैंने अपना वजूद यहाँ […] Read more » मैं सागर में एक बूँद सही
कविता हास्य व्यंग्य कविता : माडर्न पत्नी के माडर्न विचार May 24, 2013 / May 24, 2013 by मिलन सिन्हा | 2 Comments on हास्य व्यंग्य कविता : माडर्न पत्नी के माडर्न विचार मिलन सिन्हा सावन की सुहानी रात थी पति पत्नी की बात थी कहा, पति ने बड़े प्यार से देखो, प्रिये कल मुझे आफ़िस जल्दी है जाना वहां बहुत काम पड़ा है सब मुझे ही है निबटाना . प्लीज ,जाने मन कल, सिर्फ कल बना लेना अपना खाना इसके लिए मैं तुम्हारा ‘ग्रेटफूल’ रहूँगा आगे […] Read more » माडर्न पत्नी के माडर्न विचार हास्य व्यंग्य कविता
कविता कविता : देश का बजट May 21, 2013 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment मिलन सिन्हा फिर पेश हुआ देश का बजट । चल भाई हट मत कर खटपट करें काम झटपट क्यों करें हम अपना समय नष्ट फिर पेश हुआ देश का बजट । किसको मिला लाभ हमें न बता किसको होगी हानि हमें है पता गरीबों की नहीं कोई खता फिर भी बढ़ेगा उनका […] Read more » कविता : देश का बजट
कविता घाव समय के May 21, 2013 by विजय निकोर | Leave a Comment अस्तित्व की शाखाओं पर बैठे अनगिन घाव जो वास्तव में भरे नहीं समय को बहकाते रहे पपड़ी के पीछे थे हरे आए-गए रिसते रहे । कोई बात, कोई गीत, कोई मीत या केवल नाम किसी का उन्हें छिल देता है, या यूँ ही मनाने चला आता है — मैं तो कभी रूठा नहीं था […] Read more »