कविता जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! November 30, 2018 / November 30, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | 1 Comment on जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! (मधुगीति १८११२८ ब) जब तक पूर्ण नहीं हो पाते, सृष्टि समझ कहाँ हम पाते; अपना बोध मात्र छितराते, उनका भाव कहाँ लख पाते ! हर कण सुन्दरता ना लखते, उनके गुण पर ग़ौर न करते; संग आनन्द लिए ना नचते, उनको उनका कहाँ समझते ! हैं गण शिव के गौण लखाते, शून्य हिये बिन ब्रह्म […] Read more » जब तक पूर्ण नहीं हो पाते ! दोष द्रष्टि शिव
कविता आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए ! November 28, 2018 / November 28, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment (मधुगीति १८११२८ अ) आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए, अपने मन की बात औरों को बिना पूछे यों ही न बताइए; अपनी अधिक सलाह देकर और आत्माओं को कम मत आँकिए, स्वयं के ईशत्व में समा संसार को अपना स्वरूप समझ देखिए! अपनी सामाजिक संतति को बेबकूफ़ी करते हुए भी पकने दीजिए, आदर्श […] Read more » आत्म मंथन कर आपने जो करना है कीजिए !
कविता आग की लपटें November 28, 2018 by अभिलेख यादव | Leave a Comment मैं आज सुबह उठा और देखा रात की बूंदाबांदी से जम गई थी धूल वायुमंडल में व्याप्त रहने वाले धूलकण भी थे नदारद मन हुआ खुश देखकर यह सब कुछ देर बाद उठाकर देखा अख़बार तो जल रहा था वतन साम्प्रदायिकता व जातिवाद की आग में यह बरसात नहीं कर पाई कम इस आग को […] Read more » आग की लपटें जातिवाद वायुमंडल
साहित्य ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी November 28, 2018 / November 28, 2018 by अर्पण जैन "अविचल" | Leave a Comment – डॉ अर्पण जैन ‘अविचल‘ जैसा नाम वैसा ही स्वभाव, वैसी ही आत्मीयता, वैसा ही निश्छल स्नेह, वैसी ही शांति और सरलता की प्रतिमूर्ति और सबसे बड़ी बात तो यह की ग़ज़ल के मायने जब तो समझाते है तो लगता है खुद ग़ज़ल बोल रही है कि मुझे इस मीटर में, इस बहर में, इस रदीफ़ और इस काफिये के साथ लिखो। हम बात कर रहे है इंदौर के खान बहादूर कम्पाउंड में रहने वाले अज़ीज़ अंसारी साहब की जो वर्ष २००२ की मार्च में आकाशवाणी इंदौर से केंद्र निदेशक के दायित्व से सेवानिवृत हुए हैं पर उसके बाद भी अनथक, अनवरत और अबाध गति से साहित्य साधना में रत हैं। हिंदी-उर्दू की महफ़िल और अदब की एक शाम कहूँ यदि अंसारी जी को तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लगभग १० से अधिक किताब और सैकड़ों सम्मान जिनके खाते में हो, कई वामन तो कई विराट कद को सहज स्वीकार करते, नवाचार के पक्षधर, अनम्य को सिरे से ख़ारिज करने के उपरांत हर दिन होते नव प्रयोगों को सार्थकता से अपनी ग़ज़ल, अपनी जबान और अपने लहजे में उसी तरह शामिल करते हैं जैसे पानी में नमक या शक्कर। ७ मार्च १९४२ को मालवा की धरती इंदौर में पिता श्री ईदू अंसारी जी के घर जन्मे अज़ीज़ अंसारी जी वैसे तो एमएससी (कृषि), डिप्लोमा इन मास कम्युनिकेशन एन्ड रूरल जर्नलिस्म तक अध्ययन कर चुके हैं और बचपन से उर्दू-हिन्दी साहित्य में रूचि रखते हैं। सन १९६४ से साहित्य की जमीन पर गोष्ठियों के माध्यम से सक्रियता की इबारत रच रहे हैं। जहाँ साहित्य के झंडाबरदार साहित्य के गलीचे को जनता के पांव के नीचे से खसकाने वाले बन रहे है और अस्ताचल की तरफ बढ़वाना चाह रहे है पर ऐसे ही दौर में अंसारी जी नए जोश और उमंग के साथ नवाचार का स्वागत करते हैं। साफगोई और किस्सों की एक किताब जो बच्चों को भी उसी ढंग से हौसला देते हैं जैसे तजुर्बेदारों या कहूँ विधा के झंडाबरदारों को टोकते हैं उनकी गलती पर। बात जब हाइकु की हुई तो अंसारी जी कहते है कि ‘सलासी’ जानते हो? उर्दू में सलासी भी तीन लाइन में लिखे शेर हैं जिसमें रदीफ़ भी होता है और काफिया भी मिलता है। बहुत से किस्से और कहानियों के बीच हिन्दी के उत्थान की बात आई तो पेट की भाषा बनाने के लिए उनकी भी चिंता साथ मिल गई। और यही कहा की साथ हूँ, जब चाहो, जैसे चाहो बताना जरूर। एक स्कूल में जगह है अपने पास चाहो तो यहाँ भी कुछ संचालित कर सकते हो। शहर की साहित्यिक जमात में अदावत का एक नाम जो इसलिए भी मशहूर है क्योंकि आकाशवाणी पर कई रचनाकारों को मंच देकर तराशा भी और हीरा भी बनाया। आपके सुपुत्र सईद अंसारी जी जो वर्तमान में आजतक के मशहूर न्यूज एंकर है। इन सब के अतिरिक्त अंसारी जी के पास सैकड़ों किस्से हैं, जिनमे शामिल है शहर की विरासत और ग़ज़ल की बज्म। बहर और मीटर में अपनी बात कहने वाले अज़ीज़ अंसारी जी जीवन में भी मीटर में ही रहते हुए मुकम्मल शेर बनकर जिंदगी की ग़ज़ल गुनगुना रहे हैं। Read more » ग़ज़ल की दुनिया का मुकम्मल शेर है अज़ीज़ अंसारी
कहानी नाम गुम जाएगा November 23, 2018 / November 26, 2018 by डॉ कविता कपूर | Leave a Comment डॉ. कविता कपूर अक्तूबर का महिना था, दिल्ली में अभी ठण्ड ने दस्तक दी ही थी, पर पठानकोट से जब मैं ट्रेन में चढ़ी, पठानकोट की ठण्ड ने मुझे कोट की याद दिला दी | सुबह के पाँच बज रहे थे, समय बिताने के लिए मैं खिड़की से बहार देखने लगी | मेरे डिब्बे में […] Read more » शिवदास सिंह नाम गुम जाएगा फौजी दिल्ली राजस्थान
कहानी चौर्यकला का नूतन अध्याय November 19, 2018 / November 19, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार भारत एक कलाधर्मी देश है। कला के गाना, बजाना, चित्रकला, मूर्तिकला, लेखन आदि 64 प्रकार हैं। इनमें एक ‘चौर्यकला’ भी है। इसका प्राथमिक ज्ञान तो हमें बचपन में ही हो जाता है। मां जब पिताजी से छिपाकर कुछ पैसे रख लेती है। बच्चे बाजार से सामान लाते समय दो-चार रु. बचा लेते हैं। […] Read more » चौर्यकला का नूतन अध्याय तकिये तौलिये
कविता मग रहे कितने सुगम जगती में ! November 15, 2018 / November 15, 2018 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु’ मग रहे कितने सुगम जगती में, पंचभूतों की प्रत्येक व्याप्ति में; सुषुप्ति जागृति विरक्ति में, मुक्ति अभिव्यक्ति और भुक्ति में ! काया हर क्या न क्या है कर चहती, माया में कहाँ कहाँ है भ्रमती; करती मृगया तो कभी मृग होती, कभी सब छोड़ कहीं चल देती ! सोचते ही है […] Read more » अभिव्यक्ति गहराइयाँ त्रिलोक मग रहे कितने सुगम जगती में !
व्यंग्य मोलभाव के उस्ताद November 14, 2018 / November 14, 2018 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार, आप चाहे मानें या नहीं; पर हम भारत वालों को मोलभाव में बहुत मजा आता है। हमारे शर्मा जी की मैडम तो इसमें इतनी माहिर हैं कि पड़ोसिनें जिद करके उन्हें अपने साथ खरीदारी के लिए ले जाती हैं। वे भी इसके लिए हमेशा तैयार रहती हैं, क्योकि आॅटो और चाट-पकौड़ी का खर्च […] Read more » मोलभाव के उस्ताद
कविता दीप का दिवाली पर सन्देश November 8, 2018 / November 8, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment खुद जल जाओ,न जलाओ किसी को तुम दीप का सन्देश है जरा इसको सुनो तुम मेरे नीचे अँधेरा है,सबको उजाला देता हूँ खुद जल कर मै,सबको प्रकाश देता हूँ बना हूँ मिट्टी का,कुम्हार मुझको बनाता है तपा कर अग्नि में मुझको तुम्हे पहुचाता है बेच कर मुझे ,अपनी रोटी रोजी चलाता है मेरे बिकने पर […] Read more » खुद जल जाओ दीप का दिवाली पर सन्देश न जलाओ किसी को तुम
कविता दिवाली की दौलत November 5, 2018 / November 5, 2018 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on दिवाली की दौलत तारकेश कुमार ओझा ———— चंद फुलझड़ियां , कुछ अनार जान पड़ते दौलत अपार … क्या जलाए , क्या बचाएं धुन यही दिवाली यादगार बनाएं दीपावली की खुशियां सब पर भारी लेकिन छठ, एकदशी के लिए पटाखे बचाना भी तो है जरूरी आई रोशनाई, छू मंतर हुई उदासी पूरी रात भागमभाग , लेकिन गायब उबासी जमीन […] Read more » क्या जलाए क्या बचाएं दिवाली की दौलत
कविता बेटी बचाओ -बेटी पढाओ November 2, 2018 / November 2, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment अभी अभी एक घटना घटी बात बिलकुल सच्ची है पर अटपटी अभी अभी एक व्यक्ति का फोन आया उसने मझे डॉक्टर कह कर बुलाया क्या आप डॉक्टर अनिता बोल रही है ? हाँ,मै डॉक्टर अनिता ही बोल रही हूँ कहिये,मै आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ ? क्या बीमारी है,क्या समझ सकती हूँ ? दूसरी […] Read more »
कहानी क्या भगवान है ? November 1, 2018 / November 1, 2018 by आर के रस्तोगी | Leave a Comment आरके रस्तोगी एक मेजर के नेतृत्व में 15 जवानो की एक टुकड़ी हिमालय पर्वत में अपने रास्ते पर थी उन्हें ऊपर कही तीन महीने के लिए दूसरी टुकड़ी के लिए तैनात होना था . दुर्गम स्थान,ठण्ड और बर्फवारी ने चढ़ाई की कठिनाई और बढ़ा थी|बेतहासा ठण्ड में मेजर ने सोचा कि अगर उन्हें यहाँ एक […] Read more » अंगीठी क्या भगवान है ? मेजर साहब