लेख साहित्य मुझे भी सम्मान की दरकार, क्या सम्भव है? November 2, 2015 by डॉ. भूपेंद्र सिंह गर्गवंशी | Leave a Comment डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ पाठकों मैं वादा करता हूँ कि यदि मुझे कोई सम्मान मिला तो मैं उसे कभी भी किसी भी परिस्थिति में लौटाने की नहीं सोचूँगा। एक बात और बता दूँ वह यह कि मेरी कोई पहुँच नहीं और न ही मैंने राजनीति के शिखर पर बैठे लोगों, माननीयों का नवनीत लेपन ही […] Read more » मुझे भी सम्मान की दरकार सम्मान की दरकार
व्यंग्य साहित्य चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख! November 2, 2015 / December 7, 2015 by अशोक मिश्र | Leave a Comment अशोक मिश्र जब मैं उस्ताद गुनाहगार के घर पहुंचा, तो वे भागने की तैयारी में थे। हड़बड़ी में उन्होंने शरीर पर कुर्ता डाला और उल्टी चप्पल पहनकर बाहर आ गए। संयोग से तभी मैं पहुंच गया, अभिवादन किया। उन्होंने अभिवादन का उत्तर दिए बिना मेरी बांह पकड़ी और खींचते हुए कहा, ‘चलो..सामने वाले पार्क में […] Read more » चरित्र पर तो नहीं पुती कालिख!
कविता साहित्य माहौल देश का October 31, 2015 / October 31, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment देश का है माहौल गरमाया, कहकर लोगों ने सम्मान लौटाया. कभी बीफ का मुद्दा आया, कभी जातिवाद से, ध्यान भटकाया. क्या यही चुनावी मुद्दे है, क्या यही विकास की बातें हैं एक दूसरे को कोसने को, डिबेट में बैठ वो जाते हैं. क्या परिभाषा है विकास की, कहां रहे अब तक खोए, इतने दिन तक […] Read more » माहौल देश का
कहानी कहानी – वत्सला October 31, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment मंगलवार को साप्ताहिक बाजार बंदी के कारण कुछ फुर्सत रहती है। कल भी मंगलवार था। शाम को मैं अपनी पत्नी राधा के साथ चाय पी रहा था कि देहरादून से शिबू का फोन आ गया। – कैसे हो भाई.. ? – भगवान की दया है। – एक शुभ समाचार है। तुम्हारी सोनचिरैया के पर निकल […] Read more » Featured कहानी वत्सला
साहित्य पुरस्कार वापसी पर क्या कहते हैं बुद्धिजीवी October 30, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment अक्षय दुबे ‘साथी’ राहुल देव (वरिष्ठ पत्रकार) मैं ये मानता हूँ कि कोई भी राष्ट्रीय पुरस्कार कोई दल नहीं देता बल्कि एक चयन प्रक्रिया के बाद देश के द्वारा दिया जाता है,तो ऐसे में यह पुरस्कार लौटाना उचित नहीं है.लेकिन जो कुछ हो रहा है उसको सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता […] Read more » Featured पुरस्कार वापसी
लेख साहित्य ‘साजिश के तहत सम्मान वापसी का सिलसिला’ October 30, 2015 by दीपक शर्मा 'आज़ाद' | 3 Comments on ‘साजिश के तहत सम्मान वापसी का सिलसिला’ पश्चिम के किनारों पर बैठ कर जो लोग अपने ही मुल्क की ईबारत लिखने की कोशिशों में जुटे हैं, वे एक दिन इस राष्ट्र का सर्वनाश कर बैठेंगे। वैसे अब कोई कसर तो बची नहीं, वाममार्गियों ने भारतीय इतिहास के साथ जो तोड़फोड़ की है उसका आभार। उनके हिसाब से भारतीय स्वात़ंत्र्य समर 1857 महज […] Read more » Featured सम्मान वापसी सम्मान वापसी का सिलसिला
कविता साहित्य कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे October 29, 2015 by जावेद उस्मानी | Leave a Comment कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे दिल की बात बयाँ करूँ भी तो कैसे मांगते दुआएं अब तो दिल ये थका न पाया कभी जो भी तुझ से कहा मकसदे ज़िन्दगी की नेमत नहीं दी हौसले आजमाने की जहमत नहीं की कहते हैं पल पल पे हैं तेरी हुकुमरानी जैसी तू चाहे जिसे […] Read more » कभी मै दूर तो कभी तू दूर मुझसे
कला-संस्कृति लेख विविधा शातिर मैकाले का मोहरा – हिन्दू धर्म का महान शत्रु “मैक्स मूलर” October 29, 2015 by हरिहर शर्मा | Leave a Comment फ्रेडरिक मैक्समूलर एक ऐसा नाम है जिसे ब्रिटिश शासनकाल में ब्रिटिश राजनीतिज्ञों, प्रशासकों और कूटनीतिज्ञों ने एक सदी (१८४६-१९४७) तक लगातार हिन्दुओं का एक अभिन्न मित्र और वेदों के महान विद्वान के रूप में प्रस्तुत किया ! परन्तु क्या यह सत्य है ? जी नहीं सत्य ऐसे बिलकुल विपरीत है ! वास्तव में मैक्स मूलर […] Read more » Featured मैक्स मूलर शातिर मैकाले का मोहरा हिन्दू धर्म का महान शत्रु
व्यंग्य साहित्य सूट बूट का प्रस्ताव October 29, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment डॉ वेद व्यथित बच्चा जब थोड़ा सा बड़ा होने लगता है तो उस की माँ उसे स्कूल जाने से पहले थोड़ा सा अंग्रेज बनाने की तैयारी शुरू कर देती है। वह भारत के तथाकथित अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की अपेक्षा के अनुसार ‘पार्ट ऑफ़ बॉडी ‘,फाइव फ्रूटस नेम आदि रटवाना शुरू कर देती है। फिर […] Read more » सूट बूट का प्रस्ताव
लेख विविधा सर्व प्रथम, यह पाखण्ड नहीं है. October 27, 2015 / October 28, 2015 by आर. सिंह | 16 Comments on सर्व प्रथम, यह पाखण्ड नहीं है. संगोष्ठी (सम्मान वापसी -प्रतिरोध या पाखंड?) सर्व प्रथम, यह पाखण्ड नहीं है. आज यह प्रश्न उठ रहा है या उठाया जा रहा है कि अवार्ड इस समय ही क्यों लौटाए जा रहे हैं,पहले क्यों नहीं?आम लोगों को यह प्रश्न स्वाभाविक लग रहा है,पर मेरे विचार से यह प्रश्न एक सिरे से अस्वाभाविक है.यह प्रश्न उन […] Read more » Featured यह पाखण्ड नहीं है.
लेख विविधा लेखक के विरोध का तरीका केवल लेखन है October 27, 2015 / October 28, 2015 by राजीव रंजन प्रसाद | Leave a Comment राजीव रंजन प्रसाद व्यवस्था के विरुद्ध सभी लड़ाईयों में जो सर्वाधिक कारगर हथियार सिद्ध होता रहा है वह है – कलम। सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन हों अथवा साम्प्रदायिक असहिष्णुताओं को समरसताओं में कायांतरित किये जाने के प्रयास, यह अब तक लेखकों के कंधों का दायित्व रहा है। व्यवस्था कोई भी हो और सरकारें कैसी भी हों, लेखन […] Read more » Featured लेखक के विरोध का तरीका
कला-संस्कृति कविता ए नये भारत के दिन बता.. October 27, 2015 / October 28, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment ए नये भारत के दिन बता…… ए नदिया जी के कुंभ बता, उजरे-कारे सब मन बता, क्या गंगदीप जलाना याद हमें या कुंभ जगाना भूल गये ? या भूल गये कि कुंभ सिर्फ नहान नहीं, ग्ंागा यूं ही थी महान नहीं । नदी सभ्यतायें तो खूब जनी, पर संस्कृति गंग ही परवान चढी। नदियों में […] Read more » Featured ए नये भारत के दिन बता..