लेख साहित्य साहित्यकार पुरस्कार वापसी के अलावा और क्या क्या कर सकते हैं October 26, 2015 by इक़बाल हिंदुस्तानी | Leave a Comment इक़बाल हिंदुस्तानी सबकी कट्टरता का विरोध व समाज की स्वस्थ मानसिकता बनायें ! देश में बढ़ रही असहिष्णुता कट्टरता और तीन साहित्यकारों की उनके विचारों के कारण एवं यूपी के दादरी में एक मुस्लिम की गोमांस खाने की अफवाह पर हत्या होने के बाद विरोध के तौर पर लगभग तीन दर्जन से अधिक साहित्यकार अपने […] Read more » Featured पुरस्कार वापसी साहित्यकार
लेख साहित्य ऐसी पुरस्कार वापसी से सवाल तो उठेंगे ही.. October 26, 2015 / October 26, 2015 by सिद्धार्थ शंकर गौतम | Leave a Comment इन दिनों देश में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले के खिलाफ विरोधस्वरूप साहित्यकारों द्वारा पुरस्कार वापसी का दौर सा चल पड़ा है। हालांकि जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहिष्णुता की साहित्यकार दुहाई दे रहे हैं; उसमें एक ख़ास विचारधारा वाली पार्टी के खिलाफ षड़यंत्र की बू आती है। जनसामान्य […] Read more » Featured पुरस्कार वापसी
व्यंग्य साहित्य न्यूज करे कन्फयूज…!! October 26, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज चल रही है… टीम इंडिया मैच हारी…। कुछ देर बाद पर्दे पर सुटेड – बुटेड कुछ जाने – पहचाने चेहरे उभरे। एक ने कहा … आफ कोर्स … कैप्टन किंग को समझना होगा…. वे अपनी मनमर्जी टीम पर नहीं थोप सकते… । आखिर उन्होंने ऐसा फैसला किया ही […] Read more » न्यूज करे कन्फयूज...!!
व्यंग्य साहित्य धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले October 25, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 2 Comments on धीरे-धीरे बोल बाबा सुन ना ले दाल वो भी अरहर की दाल ,इसे लेकर बाबा रामदेव ने बड़े पते की बात कही है.बाबा ने जो कुछ कहा है उसके बारे में खुद योगाचार्य पतंजलि को कुछ पता नहीं था. बाबा बोले-दाल खाने से घुटनों का दर्द पैदा होता है.सचमुच हमें भी ये ब्रम्हज्ञान ब्राम्हण होने के बावजूद आज तक नहीं था.हमारे […] Read more » धीरे-धीरे बोल
शख्सियत साहित्य तस्लीमा नसरीन को १६ वीं सदी छोड़कर २१ वीं में आ जाना चाहिए ! October 23, 2015 by श्रीराम तिवारी | 3 Comments on तस्लीमा नसरीन को १६ वीं सदी छोड़कर २१ वीं में आ जाना चाहिए ! यद्द्पि तस्लीमा नसरीन अपने मादरे -वतन ‘बांग्ला देश ‘ में वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं -ईसाइयों के सामूहिक कत्लेआम की गवाह रहीं हैं।उन्होंने नस्लीय और मजहबी उन्मादियों के हिंसक हमलों को भी अनेक बार भुगता है।ऐंसा लगता है की उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दुओं की दुर्दशा को बहुत नजदीकी से देखा है। इसीलिये नियति ने उन्हें […] Read more » Featured Tasleema Nasrin तस्लीमा नसरीन
कला-संस्कृति कविता रामचरित October 23, 2015 / October 23, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment धरियो, रामचरित मन धरियो तजियो, जग की तृष्णा तजियो। परहित सरिस धर्म मन धरियो मरियो, मर्यादा पर मरियो।। धरियो, रामचरित…. भाई बने तो स्वारथ तजियो संगिनी बन दुख-सुख सम धरियोे। मात बने तो धीरज धरियो पुत्र बने तो पालन करियो।। धरियो, रामचरित… सेवक सखा समझ मन भजियो ़शरणागत की रक्षा करियो। शत्रु संग मत धोखा […] Read more » रामचरित
व्यंग्य साहित्य नेता जी कहिन, अबकी बार, गाय हमार, October 20, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment देश में एक मौसम सदाबहार रहता हैं. जाने का नाम ही नही लेता है. वो है चुनावी मौसम. कभी इस राज्य में तो कभी उस राज्य में. जहां भी ये मौसम शुरू होता है. वहां तो जैसे चार चांद लग जाते हैं.गली मोहल्लों में चहल-पहल बहुत बढ़ जाती है. चाय की दुकानों पर दो चुस्की […] Read more » अबकी बार गाय हमार नेता जी कहिन
कविता आरक्षण या भीख October 17, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment हमें भीख दे दो.. हम अपाहिज जो हो चले, अब तो हमारे भी हाथ पैर में जंग और दिमाग में अलीगढ़ के ताले पड़ गये | कुछ करना अब असंभव सा हो गया है अब तो हमको भी आरक्षण चाहिए | हम भी अब २०-३० नंबर से आई.आई.टी. , एम.बी.बी. एस.पास करेंगे, आरक्षण के फायदे […] Read more » आरक्षण या भीख
कविता हा! ये कैसे हुआ ? सोचो, क्यू हो गया ?? October 16, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment मकां बनते गांव झोपङी, शहर हो गई, जिंदगी, दोपहर हो गई, मकां बङे हो गये, फिर दिल क्यांे छोटे हुए ? हवेली अरमां हुई, फिर सूनसान हुई, अंत में जाकर झगङे का सामान हो गई। जेबें कुछ हैं बढी मेहमां की खातिर फिर भी टोटे हो गये, यूं हम कुछ छोटे हो गये। हा! ये […] Read more » क्यू हो गया ?? हा! ये कैसे हुआ ? सोचो
कविता विकृत होते प्रकृति संबंध October 16, 2015 by अरुण तिवारी | Leave a Comment ’हम’ को हटा पहले ’मैं’ आ डटा फिर तालाब लुटे औ जंगल कटे, नीलगायों के ठिकाने भी ’मैं’ खा गया। गलती मेरी रही मैं ही दोषी मगर फिर क्यूं हिकारत के निशाने पे वो आ गई ? हा! ये कैसे हुआ ? सोचो, क्यूं हो गया ?? घोसले घर से बाहर फिंके ही फिंके, धरती […] Read more » विकृत होते प्रकृति संबंध
व्यंग्य संघर्ष की शक्ल….!! October 14, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मैं जीवन में एक बार फिर अपमानित हुआ था। मुझे उसे फाइव स्टार होटल नुमा भवन से धक्के मार कर बाहर निकाल दिया गया था, जहां तथाकथित संघर्षशीलों पर धारावहिक तैयार किए जाने की घोषणा की गई थी। इसे किसी चैनल पर भी दिखाया जाना था। पहली बार सुन कर मुझे लगा […] Read more » संघर्ष की शक्ल....!!
समाज साहित्य रामराज्य – एक आदर्श राजविहीन राज्य October 12, 2015 by सुरेन्द्र नाथ गुप्ता | 2 Comments on रामराज्य – एक आदर्श राजविहीन राज्य सुरेन्द्र नाथ गुप्त राम राज्य की कल्पना सर्वप्रथम महाराज मनु ने की थी जब मनु-शतरूपा ने तप करके भगवान से वर मांगा था कि तुम्हारे समान पुत्र हो। मनु-शतरूपा निसंतान नहीं थे, उनके दो पुत्र उत्तानपाद व प्रियव्रत और एक पुत्री देवहूती थी, फिर भी भगवान से पुत्र मांगा और वह भी बिल्कुल उन्ही के […] Read more » Featured रामराज्य