कविता साहित्य रहस्यमयी सूर्य October 12, 2015 / October 12, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment पवन प्रजापति उदय प्रताप इंटर कालेज, वाराणसी तीक्ष्ण किरण के आदि अंत में हे दिनकर! तुम हो अन्नत में सौर कुटुम्ब के तुम आधार शून्य जगत में निराकार ।। अमिट अथाह उर्जाओं का श्रोत अति उष्मा से ओत प्रोत दुग्घ्ध मेखला के परितः चलायमान अन्नत आकाश में उदियमान ।। अंधकार है शत्रु तुम्हारा संपूर्ण विश्व […] Read more » रहस्यमयी सूर्य
कहानी बच्चों का पन्ना यह कैसी मित्रता October 12, 2015 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment गणेशी के खेत में बने तीन कमरों के घर में चिंकू चूहे ने अपना निवास बना लिया था |घर के ठीक सामने दो ढाई सौ फुट की दूरी पर एक नीली नदी बहती थी |नदी थी तो पहाड़ी परन्तु मार्च महीने तक उसमें भरपूर पानी रहता था |बरसात में तो पानी खेत की मेढ तक […] Read more » Featured
कविता साहित्य मैं हूँ एक इंसान October 11, 2015 / October 11, 2015 by वैदिका गुप्ता | Leave a Comment ना नाम है मेरा ना पहचान है मेरी ना कोई धर्म है मेरा मैं हूँ एक इंसान।। ना जोड़ो मुझे किसी धर्म से, मेरा धर्म भी इंसानियत है। मेरा कर्म भी इंसानियत है।। दूर रहो मुझसे, ऐ धर्म के पेहरेदारों, तू जितने पास आया है! उतनी इंसानियत खो दी मैंने। तुझे सत्ता में आना है, […] Read more » Featured मैं हूँ एक इंसान
लेख साहित्य क्योंकि मैं नेता नहीं हूँ… October 11, 2015 / December 2, 2015 by अश्वनी कुमार, पटना | 1 Comment on क्योंकि मैं नेता नहीं हूँ… “(मेरी शिकायत न तो सिस्टम से है और न ही इस बनाने वालों से. शिकायत है तो सिर्फ इस चलानेवालों से। मैंने अबतक अपनी छोटी सी ज़िंदगी में नेता न होने की बहुत कमी महसूस की और मुझे उम्मीद है की आपने भी कभी न कभी महसूस की होगी)” सड़कों पर कचड़े को देखकर इसके […] Read more » क्योंकि मैं नेता नहीं हूँ…
व्यंग्य साहित्य गधे ने जब मुंह खोला October 10, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment मैंने रोज की तरह लाला दयाराम की बरसों से बन रही हवेली के लिए सूरज निकलने से पहले अपने पुश्तैनी गधे के पोते के पड़पोते पर रेत ढोना शुरू कर दिया था। जहां तक मेरी नालिज है न गधे के पुरखों ने मेरे पुरखों से इस रिश्ते के बाबत कोई शिकायत की थी और न […] Read more » गधे ने जब मुंह खोला
कहानी कहानी- कर्ज़ा October 10, 2015 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment रवि श्रीवास्तव लहराती फसल कितना सुकून देती है। रमेश अपने बेटे से कहता हुआ खेत को देख रहा था। हर तरफ से घूम कर अपनी फसल को देखा। मन में सोच रहा कि भगवान तेरा शुक्रिया कैसे अदा करूं। तभी पीछे से एक आवाज आती है। अरे रमेश क्या बात है, आज अपने बेटे को […] Read more » कहानी- कर्ज़ा
कहानी कहानी – प्रेम गली अति सांकरी…. October 10, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment विश्व साहित्य में प्रेमकथाओं का सदा से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इनमें भी वे कथाएं अधिक लोकप्रिय हुई हैं, जिनका अंत सुखद नहीं रहा। ऐसा क्यों है, कहना कठिन है। शायद विरह और दुख के अंगारों पर धीमे-धीमे सुलगता हुआ प्रेम ही अन्य प्रेमीजनों के दिल को शांति देता है। हीर-रांझा, लैला-मजनू, शीरी-फरहाद आदि […] Read more » Featured कहानी - प्रेम गली अति सांकरी....
कविता साहित्य कौसानी तक October 6, 2015 by बीनू भटनागर | Leave a Comment हलद्वानी के खुले जो द्वार, पंहुचे हम कुमाऊँ खण्ड, उत्तराखण्ड का सुन्दर अंग, चढ़ाई हुई अब आरंभ। नैनीताल के रस्ते मे, जब देखा विशाल भीमताल, भीमताल है इतना सुन्दर तो, कैसा होगा नैनीताल! नैनी झील के चारों ओर, बसा है नैनीताल। पर्यटकों का सर्वाधिक रुचिकर है, कुमाऊँ का ये स्थान। प्रत्यूषकाल मे, […] Read more » कौसानी तक
राजनीति व्यंग्य कानून अपना – अपना ..!! October 6, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा मुझे पुलिस ढूंढ रही थी। पता चला एक महिला ने मेरे खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज करा दी है। मुझे लगा जब मैने अपराध किया ही नही तो फिर डर किस बात का। लिहाजा मैने थानेदार को फोन लगाया। दूसरी ओर से कड़कते हुए जवाब मिला… तुम हो कहां … हम तुम्हारी खातिरदारी […] Read more » Featured
कविता विविधा मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा September 30, 2015 / September 30, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | 4 Comments on मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा क़ैस जौनपुरी मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा आज बक़रीद है सुबह सुबह किसी ने टोका ईद मुबारक़ हो ईद मुबारक़ हो नमाज़ पढ़ने नहीं गए लेकिन स्वीमिंग करने जा रहे हो हाँ मैं नहीं गया क्यूँकि मैं नाराज़ हूँ उस ख़ुदा से जो ये दुनिया बना के भूल गया है कहीं खो गया है या शायद […] Read more » Featured मैं नमाज़ नहीं पढ़ूँगा
कविता साहित्य पितृयज्ञ September 28, 2015 / September 29, 2015 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on पितृयज्ञ पितृयज्ञ हर घर में होवे, चरण आचरण सायं प्रात| सेवा शुश्रूषा कर श्रद्धा, पायें उनका आशीर्वाद|| 1. चले गए जो इस दुनियाँ से, वंशावली वट वृक्ष बनायें| उनके सुन्दर कार्यों से, बच्चों को अवगत करें सिखायें| पूर्ण करें उनके कामों को, बच्चों को लेकर के साथ|| सेवा शुश्रूषा …….. 2. पूर्णिमा से अमावस्या तक, कोई […] Read more »
व्यंग्य साहित्य पी ले, पी ले, ओ मोरी जनता September 27, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 2 Comments on पी ले, पी ले, ओ मोरी जनता देश के युवाओं में नशा का दौर लगातार बढ़ता जा रहा है. किसी को शौक है तो कोई इसका आदी बन चुका है. छोटी खुशी हो या बड़ी बस बहाना चाहिए पार्टी करने का. चलो पार्टी करते है और जाम छलकाते है. गिलास को टकराकर चेयर्स करते हैं. और टल्ली होकर हंगामा. वाह क्या खूबी […] Read more » ओ मोरी जनता पी ले