विविधा व्यंग्य भावनाओं का ज्वार, रोए जार- जार… August 3, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | 1 Comment on भावनाओं का ज्वार, रोए जार- जार… तारकेश कुमार ओझा मेरे मोहल्ले के एक बिगड़ैल युवक को अचानक जाने क्या सूझी कि उसने साधु बनने का फैसला कर लिया। विधिवत रूप से संन्यास लेकर वह मोहल्ले से निकल गया। बषों बाद लौटा तो उसके गले में कई चेन तो अंगलियों में सोने की एक से बढ़ कर अंगूठी देख लोग दंग रह […] Read more »
कविता गन्दी बस्ती July 31, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार अन्त:विचारों में उलझा न जाने कब मैं एक अजीब सी बस्ती में आ गया । बस्ती बड़ी ही खुशनुमा और रंगीन थी । किन्तु वहां की हवा में अनजान सी उदासी थी । खुशबुएं वहां की मदहोश कर रहीं थीं । पर एहसास होता था घोर बेचारगी का टूटती सांसे जैसे फ़साने बना […] Read more » गन्दी बस्ती
विविधा व्यंग्य व्यंग्य बाण : जय बोलो बेइमान की July 30, 2015 by विजय कुमार | 1 Comment on व्यंग्य बाण : जय बोलो बेइमान की शर्मा जी ने तय कर लिया है कि चाहे जो भी हो और जैसे भी हो; पर अपने प्रिय देश भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त करके ही रहेंगे। शर्मा जी छात्र जीवन में भी बड़े उग्र विचारों के थे। भाषण और निबन्ध प्रतियोगिताओं में वे भ्रष्टाचार के विरुद्ध बहुत मुखर रहते थे। कई पुरस्कार भी […] Read more » बेइमान
दोहे विविधा दम्भ -पाखंड की जद में क्यों आ गए हम ? July 25, 2015 by श्रीराम तिवारी | 2 Comments on दम्भ -पाखंड की जद में क्यों आ गए हम ? निकले थे घर से जिसकी बारात लेकर , उसी के जनाजे में क्यों आ गए हम ? चढ़े थे शिखर पर जो विश्वास् लेकर , निराशा की खाई में क्यों आ गिरे हम ? गाज जो गिराते हैं नाजुक दरख्तों पै , उन्ही की पनाहों में क्यों आ गए हम ? फर्क ही नहीं जहाँ नीति -अनीति का , उस संगदिल महफ़िल में क्यों आ गए हम ? खींचते है चीर गंगा जमुनी […] Read more »
खेल जगत विविधा व्यंग्य क्रिकेट का ‘ विकास’ …!! July 21, 2015 / July 21, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा नो डाउट अबाउट दिस … की तर्ज पर दावे के साथ कह सकता हूं कि अपना देश विडंबनाओं से घिरा है। हम भारतवंशी एक ओर तो विकास – विकास का राग अलाप कर राजनेता से लेकर अफसरशाही तक की नींद हराम करते हैं लेकिन जब सचमुच किसी क्षेत्र का विकास होने लगता […] Read more » क्रिकेट
गजल विविधा तरोताज़ा सुघड़ साजा July 19, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment तरोताज़ा सुघड़ साजा, सफ़र नित ज़िन्दगी होगा; जगत ना कभी गत होगा, बदलता रूप बस होगा ! जीव नव जन्म नित लेंगे, सीखते चल रहे होंगे; समझ कुछ जग चले होंगे, समझ कुछ जग गये होंगे ! चन्द्र तारे ज्योति धारे, धरा से लख रहे होंगे; अचेतन चेतना भर के, निहारे सृष्टि गण होंगे ! […] Read more » तरोताज़ा सुघड़ साजा
राजनीति व्यंग्य व्यापक… व्यापमं….!! July 15, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा व्यापमं….। पहली बार जब यह शब्द सुना तो न मुझे इसका मतलब समझ में आया और न मैने इसकी कोई जरूरत ही समझी। लेकिन मुझे यह अंदाजा बखूबी लग गया कि इसका ताल्लुक जरूर किसी व्यापक दायरे वाली चीज से होगा। मौत पर मौतें होती रही, लेकिन तब भी मैं उदासीन बना […] Read more » व्यापमं
दोहे विविधा स्मित नयन विस्मृत बदन ! July 14, 2015 / July 14, 2015 by गोपाल बघेल 'मधु' | Leave a Comment स्मित नयन विस्मृत बदन, हैं तरंगित जसुमति-सुवन; हिय स्फुरण हलकी चुभन, हैं गोपियां गति में गहन । हुलसित हृदय मन स्मरत, राधा रहति प्रिय विस्मरित; आकुल अमित झंकृत सतत, वन वेणुका खोजत रहत । सुर पाति संवित गति लभति, हर पुष्प केशव कूँ लखति; हर लता तन्तुन बात करि, पूछत कुशल हर पल रहति । […] Read more » स्मित नयन विस्मृत बदन !
विविधा व्यंग्य औरतों का प्रवेश वर्जित है July 14, 2015 by अशोक गौतम | Leave a Comment यूनान के आर्थिक तौर पर दिवालिया होने की खबर ज्यों ही स्वर्गलोक तक पहुंची तो धन की देवी लक्ष्मी और कुबेर के हाथ पावं फूल गए। उन्हें जंबूद्वीप में चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा ही दिखाई देने लगा। तब उन्होंने स्वर्गलोक में एकदम आपातकालीन बैठक बुलाई । बैठक की अध्यक्षता करते कुबेर ने कहा कि […] Read more » औरतों का प्रवेश वर्जित है
कविता आने दो दुनिया में July 13, 2015 / July 13, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो प्रतिमा शुक्ला बन रहा हैं एक जीवन आने को तैयार है एक जीवन सोच रहीं है उस पल को जब लेगी मां हाथों में जाग्रत होगा उसका मातृत्व बन जायेगी वह ममता की मूरत अचानक हुई कुछ हलचल शायद थी मशीनों की ध्वनि सहम गयी वह टूट गया उसका सपना पूछ रही है वह मां […] Read more »
विविधा व्यंग्य व्यंग्य बाण : गाड़ी नंबर ग्यारह July 11, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले दिनों 21 जून को पूरी दुनिया में ‘योग दिवस’ मनाया गया। इससे बाकी लोगों को कितना लाभ हुआ, ये तो वही जानें; पर हमारे शर्मा जी में एक चमत्कारी परिवर्तन हुआ। उनके पड़ोसी गुप्ता जी ने उन्हें रोज कुछ देर ‘शीर्षासन’ करने की सलाह दी थी। पहले तो शर्मा जी ने सिर नीचे और […] Read more » गाड़ी नंबर ग्यारह
खेल जगत व्यंग्य गरीबी का ‘ नशा ‘ ….!! July 8, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment हास्य – व्यंग्य तारकेश कुमार ओझा अल्टीमेटली आप कह सकते हो कि वह दौर ही गरीब ओरिएटेंड था।गरीबी हटाओ का नारा तो अपनी जगह था ही हर तरफ गरीबी की ही बातें हुआ करती थी। राजनीति हो या कोई दूसरा क्षेत्र । गरीबी के महिमामंडन से कोई जगह अछूता नहीं था। लिटरेचर उठाइए तो उसमें […] Read more »