कविता सुहाना सपना August 9, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- सपनों ने दिखाये अरमान, देश में बनाओ अपनी पहचान, हक़ीक़त से मैं था अंजान, सपनों में था जो बहुत असान। चल दिये उसी मंजिल पर, जिसको पूरा करना था, हुआ वही जो सपना देखा, पर मेरा ख्बाव अधूरा था। हर रास्ते पर मिली ठोकरें, मंजिल तक न पहुंच पाने को, हिम्मत नहीं हारी […] Read more » कविता सुहाना सपना हिन्दी कविता
कविता जिंदगी August 8, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- हो गया हूं मैं थोड़ा इस जिंदगी से निराश, पर कही जगी हुई है, मेरे अंदर थोड़ी आस। लाख कोशिशें कर ली मैंने, वक्त पर किसका जोर है, हाय तौबा मची जहां में, हर तरफ तो शोर है। वक्त का आलम है ऐसा, कर दिया जिसने मजबूर, खेला ऐसा खेल मुझसे, […] Read more » कविता जिंदगी जिंदगी कविता हिन्दी कविता
कविता मम्मी ने आकर… August 7, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment -बीनू भटनागर- मम्मी ने आकर, बेटे को जगाया, ‘नींद से जागो, राहुल बाबा! कुछ (प्रधानमंत्री) बनना है तुमको जो, थोड़ी तो महनत करनी ही पड़ेगी।‘ ‘’क्या करना होगा मम्मी? पहले भी बहुत महनत की थी फिर भी…’ ‘’जो हो गया सो हो गया, अब आगे की […] Read more » कविता मम्मी ने आकर राहुल हिन्दी कविता
कविता खूबसूरत हो तुम August 6, 2014 / August 6, 2014 by लक्ष्मी जायसवाल | 1 Comment on खूबसूरत हो तुम -लक्ष्मी जायसवाल- खूबसूरती एक मुस्कुराहट है, और इस मुस्कुराहट में, अपनी हंसी से, चांदनी बिखेरती हो तुम। खूबसूरती एक सपना है, और उन सपनों में, अपनी उम्मीदों के, रंग भर जाती हो तुम। खूबसूरती एक जगमगाहट है, और उस जगमगाहट में, अपनी बातों से, रोशनी भर जाती हो तुम। खूबसूरती एक प्यारी अदा है, और उस अदा को, अपने […] Read more » कविता खूबसूरत हो तुम हिन्दी कविता
कविता लहू तो एक रंग है August 4, 2014 / October 8, 2014 by रवि श्रीवास्तव | Leave a Comment -रवि श्रीवास्तव- लहू तो एक रंग है, आपस में एक दूसरे से, हो रही क्यों जंग है ? लहू तो एक रंग है, लहू तो एक रंग है। हर तरफ तो शोर है, किस पर किसका जोर है? ढ़ल रही है चांदनी, आने वाली भोर है। रक्त का ही खेल है, रक्त का ही मेल […] Read more » एकता कविता भाईचारा भाईचारा कविता लहू तो एक रंग है
व्यंग्य किसकी आवाज़ बिकाऊ नहीं यहां August 4, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -अंशु शरण- 1. अवसरवाद लोकतन्त्र स्थापना के लिए वो हमेशा से ऐसे लड़ें, कि उखड़े न पाये सामंतवाद की जड़ें, इसलिए तो लोकतंत्र के हर स्तम्भ पर पूंजी के आदमी किये हैं खड़े। किसकी आवाज़ बिकाऊ नहीं यहाँ, संसद से लेकर अख़बार तक, हर जगह दलाल हैं भरे पड़े। तो हम क्यों ना जाये बाहर, […] Read more » किसकी आवाज़ बिकाऊ नहीं यहां व्यंग्य हिन्दी व्यंग्य
लेख साहित्य हिन्दी को न्याय और भारत को स्वत्व की पहचान मिले August 2, 2014 / October 8, 2014 by नरेश भारतीय | Leave a Comment -नरेश भारतीय- हाल में भारत के गृह मंत्रालय ने सरकार और समाज के बीच दूरी को पाटने की क्षमता रखने वाले सामाजिक माध्यम या कथित ‘सोशल मीडिया’ के उपयोग और भारत की राजभाषा हिन्दी के महत्व को रेखांकित करते हुए शासकीय कामकाज में हिन्दी का उपयोग करने के निर्देश जारी किए थे. मेरे जैसे विदेशस्थ […] Read more » भारत की स्वत्व पहचान हिन्दी हिन्दी का न्याय
व्यंग्य वोट देवता जिन्दाबाद August 2, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- दिल्ली में ‘नमो सरकार’ बनने से सामाजिक संस्थाओं का रुख भी बदला है। जिस संस्था ने मुझे कभी श्रोता के रूप में बुलाने लायक नहीं समझा, पिछले दिनों उसके सचिव का फोन आया कि स्वाधीनता दिवस पर ‘संभ्रांत’ लोगों की सभा में मुझे भाषण देना है। यह सुनकर मैं डर गया। सम्भ्रान्त (सम्यक […] Read more » वोट वोट देवता वोट देवता जिन्दाबाद वोट व्यंग्य
कविता दूध पीकर, नाग देव प्रसन्न August 2, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -पीयूष कुमार द्विवेदी ‘पूतू’- 1.दूध पीकर, नाग देव प्रसन्न, नाग पंचमी। 2.आओ झूलेँगे, द्वारे नीम सखियां, झूला पड़ा है। 3.बहनें सजीँ, गुड़िया जैसी लगें, गुड़िया पर्व। 4.दंगल लगें, मल्लयुद्ध के लिए, योद्धा तैयार। 5.सजी दुकानें, घूम रहे हैं बच्चे, लगा है मेला। 6.घुघुरी पकी, भर-भरके दोना, सभी चबाएँ। 7.रंग-बिरंगी, धरा पोशाक धारे, गुड़िया पर्व। 8.ऊँची […] Read more » दूध पीकर नाग देव प्रसन्न नाग पंचमी
कविता मेरी नानी का घर August 2, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment –बीनू भटनागर- बहुत याद आता है कभी, मुझे मेरी नानी का घर, वो बड़ा सा आंगन, वो चौड़े दालान, वो मिट्टी की जालियां, झरोखे और छज़्जे। लकड़ी के तख्त पर बैठी नानी, चेहरे की झुर्रियाँ, और आँखों की चमक, किनारी वाली सूती साड़ी, और हाथ से पंखा झलना। नानी की रसोई, लकड़ी चूल्हा और फुंकनी, रसोई में गरम गरम रोटी खाना, वो पीतल के बर्तन , वो काँसे की थाली, उड़द की दाल अदरक वाली, देसी घी हींग, ज़ीरे का छौंक, पोदीने की चटनी हरी मिर्च वाली। खेतों से आई ताज़ी सब्ज़ियां, बहुत स्वादिष्ट होता था वो भोजन। आम के बाग़ और खेती ही खेती। नानी कहती कि, ‘’बाज़ार से आता है, बस नमक वो खेत मे ना जो उगता है।‘’ कुएँ का मीठा साफ़ पानी। और अब पानी के लिये इतने झंझट, फिल्टर और आर. ओ. की ज़रूरत। तीन बैडरूम का फ्लैट, छज्जे की जगह बाल्कनी, न आंगन न छत बरामदे की न कोई निशानी, और रसोई मे गैस,कुकर, फ्रिज और माइक्रोवेव, फिर भी खाने मे वो बात नहीं, ना सब्ज़ी है ताज़ी, किटाणुनाशक मिले हैं, फिर उस पर ,अस्सी नब्बे का भाव। क्या कोई खाये क्या कोई खिलाये। आज नजाने क्यों , नानी का वो घर याद आये। Read more » कविता मेरी नानी का घर हिन्दी कविता
कहानी उतर जा…! August 2, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -क़ैस जौनपुरी- मुंबई की लोकल ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पे रूकी. फ़र्स्ट क्लास के डिब्बे में फ़र्स्ट क्लास वाले आदमी चढ़ गए. फ़र्स्ट क्लास वाली औरतें अपने डिब्बे में चढ़ गईं. तभी एक नंग-धड़ंग आदमी फ़र्स्ट क्लास लेडीज़ डिब्बे में चढ़ गया. वो शकल से खुश दिख रहा है. उसके दांत और आंखें अन्धेरे में चमक रही […] Read more » उतर जा लघु कथा
कहानी हर कदम पर बंदिशें August 2, 2014 by अश्वनी कुमार | Leave a Comment -अश्वनी कुमार- जाड़ों का समय है सूरज के किरणों ने समुद्र की कोख में जाने का मन बना लिया है. धीरे-धीरे वह अगले दिन फिर से आने का संकेत करती हुई चमक (रोशनी) निरंतर कम होती हुई, संतरी और नीले आसमान से गायब हो रही है. हरियाणा के गांव सुकना के प्रधान के घर आज […] Read more » हर कदम पर बंदिशें हिन्दी कहानी