कविता देखा मैंने राजधानी में February 5, 2014 by मिलन सिन्हा | Leave a Comment -मिलन सिन्हा – देखा मैंने राजधानी में आलीशान इमारतों का काफिला और बगल में झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती जैसे अमीरी-गरीबी रहते साथ-साथ दो अलग-अलग दुनिया में सुविधाएँ अनेक इमारतों में असुविधाएं अनेक झोपड़ियों में एक तरफ रातें रंगीन हैं तो दूसरी ओर सिर्फ कल्पनाएं रंगीन हैं, यथार्थ काला ऊपर मदिरा में डूबकर भी प्यासे हैं […] Read more » poem देखा मैंने राजधानी में
कविता कैसी पीड़ा February 5, 2014 by मोतीलाल | Leave a Comment उनके खुलने से जो पर्दा सरका था उनकी आंखों से सबसे पहले घुप्प अंधेरा डोल रहा था आंखों में और यहीं समझी थी जीवन का पाठ । इस बीच खुलते गये सांसों की डोर और उसने देखा अपने मम्मी-पापा को विडियो गेम्स के संग देखा उसने कमरे की आधुनिकता अलग-अलग खंबों मे बंटा कमरे सा […] Read more » poem कैसी पीड़ा
कविता मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं February 4, 2014 / February 5, 2014 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | Leave a Comment -विजय कुमार- स्वप्न मेरे, अब तक वो अधूरे हैं; जो मानव के रूप में मैंने देखे हैं ! मानवता के उन्हीं स्वप्नों की आहुति पर आज विश्व सारा; एक प्राणरहित खंडहर बन खड़ा है ! आज मानवता एक नए युग-मानव का आह्वान करती है; क्योंकि, आदिम-मानव के उन अधूरे स्वप्नों को, इस नए युग-मानव […] Read more » poem मानवता के स्वप्न अब तक अधूरे हैं
कविता जय हो वीर हकीकत राय February 3, 2014 / February 3, 2014 by विमलेश बंसल 'आर्या' | 1 Comment on जय हो वीर हकीकत राय -विमलेश बंसल आर्या- जय हो वीर हकीकत राय। सब जग तुमको शीश नवाय॥ जय हो… 1. सत्रह सौ सोलह का दिन था, पुत्र पिता से पूर्ण अभिन्न था। स्याल कोट भी देखकर सियाय॥ जय हो……… 2 वीर साहसी बालक न्यारा, व्रत पालक, बहु ज्ञानी प्यारा। कोई न जग में उसके सिवाय॥ जय हो……… 3 मुहम्मद शाह […] Read more » poem जय हो वीर हकीकत राय
व्यंग्य मुझको लाओ, देश बचाओ ! February 3, 2014 / February 4, 2014 by अशोक गौतम | Leave a Comment -अशोक गौतम- आजकल देश में प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए मारो मारी चली है। जिसे घर तक में कोई नहीं पूछता वह भी प्रधानमंत्री के पद के लिए दावेदारी सीना ठोंक कर ठोंक रहा है, भले बंदे के पास सीना हो या न! मित्रों! दावेदारी के इस दौर में मैं भी देश की सेवा […] Read more » satire on politics देश बचाओ ! मुझको लाओ
व्यंग्य दयालु सरकार : नथ्थू खुश February 2, 2014 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment -जगमोहन ठाकन- जब से नमो ने बचपन में चाय की दुकान पर काम करने की बात स्वीकारी है तभी से नथ्थू की दुकान पर छुटभैये राजनितिक आशान्वितों की गर्मागर्म बैठकें बढ़ गयी हैं. हाल में सरकार द्वारा गैस सिलेंडर के दाम साढ़े बारह सौ रुपये तक बढ़ाकर पुनः एक सौ सात रुपए की कमी […] Read more » satire on government दयालु सरकार : नथ्थू खुश
व्यंग्य दल बदलन के कारने नेता धरा शरीर February 1, 2014 / February 1, 2014 by एम. अफसर खां सागर | 1 Comment on दल बदलन के कारने नेता धरा शरीर -एम. अफसर खां सागर- सियासत क्या बला है और इसके दाव पेंच क्या हैं, इसका सतही इल्म न मुझे आज तक हुआ और न मैने कभी जानने की कोशिश की। अगर यूं समझें कि सियासी के हल्के में फिसड्डी हूं तो गलत न होगा। मगर सियासत ऐसी बला है कि आप इससे लाख पीछा छुड़ाएं मगर छूटने […] Read more » satire on politics दल बदलन के कारने नेता धरा शरीर
कविता चोर के घर चोरी January 31, 2014 / January 31, 2014 by बीनू भटनागर | Leave a Comment चोर की चोरी, चोरी की कार, कैसा लगा अनुप्रास अलंकार? होंडा सिटी में धन था अपार, सामने से आगई वैगनार। लूट के धन सब हुए फरार, कुछ दूर जाकर छोड़ी कार।… दिल्ली पोलिस बड़ी बेकार, शिंदे से जाकर करो तकरार। सट्टे का धन है या कालाबज़ार, कहां से आया धन का अंबार? संसद मे जाओ […] Read more » poem चोर के घर चोरी
व्यंग्य … जब नारद जी सम्मानित हुए January 31, 2014 / January 31, 2014 by सुधीर मौर्य | 1 Comment on … जब नारद जी सम्मानित हुए – सुधीर मौर्य- युग पर युग बदल गए, पर अपने नारद भाई जस के तस। रत्ती पर भी बदलाव नहीं। हाथ में तानपूरा, होठों पे नारायण – नारायण और वही खबरनवीसी का काम।जाने कहां से टहलते-घूमते आपके चरन भारत मैया की धरती पर आटिके। तनिक देर में हीनारायनी शक्ति केबल पर आपने खबरनवीसी के हायटेक टेक्नोलॉजी की महत्ता समझली। इस टेक्नोलॉजी की महत्तासे घबराकर बेचारे पतली गली ढूंढ़ ही रहे थे कि एक उपकरणों से लैस पत्रकार के हाथों धरे गये। देखते ही पत्रकार मुस्कराकर बोला, क्या हल है तानपुरा मास्टर ? बेचारे नारद जी पत्रकार की स्टाइल से सिटपिटा गए। संभल के बोले अरे बोलने की गरिमा रखो। गरिमा को बांधो, कंधे पर पड़े अंगोछे में मिस्टर जानते नहीं हमारे सर […] Read more » ... जब नारद जी सम्मानित हुए satire on indian politics
कविता कुछ बात है यार की हस्ती में … January 31, 2014 / January 31, 2014 by मनीष मंजुल | 1 Comment on कुछ बात है यार की हस्ती में … -मनीष मंजुल- इस छप्पन इंच के सीने में, कोई ऐसी लाट दहकती है, कुछ बात है यार की हस्ती में, यूं जनता जान छिड़कती है! कभी गौरी ने कभी गोरों ने, फिर लूटा घर के चोरों ने छोड़ों बुज़दिल गद्दारों को, ले आओ राणों, सरदारों को मुझे सम्हाल धरती के लाल, ये भारत मां सिसकती है, कुछ बात […] Read more » poem कुछ बात है यार की हस्ती में ...
व्यंग्य आम और खास January 30, 2014 / January 30, 2014 by बीनू भटनागर | 3 Comments on आम और खास -बीनू भटनागर- ‘आप’ के नेता आम से ख़ास होते जा रहे हैं… बिलकुल सही, ’आप’ के विरोधी और मीडिया लगातार उन्हें ख़ास बनाने मे लगे हुए हैं, बहुत मेहनत कर रहे हैं। वो आम बने रहना चाहें, तो भी ये उन्हें ख़ास बनाये बिना चैन की सांस नहीं लेंगे। अभी विरोधी दल का एक कार्यकर्ता […] Read more » AAP Arvind Kejrival आम और खास
व्यंग्य तुम आदमी हो या… January 29, 2014 / January 29, 2014 by विजय कुमार | Leave a Comment -विजय कुमार- शर्माजी को हम सबने मिलकर एक बार फिर ‘वरिष्ठ नागरिक संघ’ (वनास) का अध्यक्ष चुन लिया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच वर्मा जी ने उनकी झूठी-सच्ची प्रशंसा के पुल बांधे और बाबूलाल जी ने उन्हें माला पहनायी। शर्मा जी ने सबको धन्यवाद दिया और फिर परम्परा के अनुसार उनकी ओर से […] Read more » satite on politics तुम आदमी हो या...