व्यंग्य संस्कारो की पिच पर टीम इंडिया की बैटिंग November 10, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा अनादिकाल से संयममार्गी और बॉलीवुड तपस्वी श्री आलोकनाथ जी को संस्कार और संस्कारिता का प्रतीक बताया जाता रहा है, जिसे निर्विवाद रूप से तीनो लोको में स्वीकार और अंगीकार दोनों किया गया है। आलोकनाथ जी भले ही संस्कारो के अधिकृत धारक और वाहक हो किंतु संस्कारो की उत्पत्ति धर्म के गर्भ से हुई […] Read more » टीम इंडिया
व्यंग्य साहित्य पधारो म्हारे देस जी… October 27, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले हफ्ते मैं शर्मा जी के घर गया, तो वे दोनों आंखें बंद किये, एक हाथ कान पर रखे और दूसरा ऊपर वाले की तरफ उठाये गा रहे थे, ‘‘पधारो म्हारे देस जी…।’’ कभी वे दाहिना हाथ कान पर रखते तो कभी बायां। कभी स्वर ऊंचा हो जाता, तो कभी अचानक नीचा। मेरी गाने-बजाने से […] Read more » Featured पधारो म्हारे देस जी
व्यंग्य साहित्य मुख्य अतिथि बनने का सुख October 21, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment मेहता जी एक सम्मानित व्यक्तित्व है जिसका एक मात्र उपयोग वे मुख्य अतिथि बनने में करते है। यह अनुमान लगाना कठिन है कि वे पहले से सम्मानित थे या फिर विभिन्न समारोह में मुख्य अतिथि बनने के बाद वे सम्मान-गति को प्राप्त हुए है। मेहता जी तन मन और आदतन मुख्य अतिथि है। मुख्य […] Read more » मुख्य अतिथि
व्यंग्य वाह ताज October 20, 2017 by एल. आर गान्धी | Leave a Comment वाह ताज ….. एक शहंशाह का श्वान प्रेम ! …. ताज पर तकरार जारी। .. इक शहंशाह ने बनवा के हसीन ताज महल हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक ….. प्यार की निशानी ! ….. कैसा प्यार ! …… जिसे पाने के लिए , उसके शौहर को क़त्ल करवाया ? फिर जा के […] Read more » ताज
व्यंग्य हम काम से नहीं डरते October 11, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी बहुत दुखी हैं। बेटे का विवाह सिर पर है और मोहल्ले की सड़क है कि ठीक ही नहीं हो रही। छह महीने पहले पानी की लाइन टूट गयी। सारा पानी सड़क पर बहने लगा। भीषण गरमी के मौसम में पूरे मोहल्ले में तीन दिन तक हाहाकार मचा रहा। छुट्टियों के कारण अधिकांश लोगों […] Read more » Featured काम काम से नहीं डरते
व्यंग्य साहित्य गुरुगिरी मिटती नहीं हमारी October 7, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment हमारा देश हमेशा से ज्ञान का उपासक रहा है और इस पर कभी किसी को कोई शक नहीं रहा है। ज्ञान के मामले में हम शुरू से उदार रहे है,केवल बाँटने में यकीन रखते है। ज्ञान की आउटगोइंग कॉल्स को हमने सदा बैलेंस और रोमिंग के बंधनो से मुक्त रखा है। हमने विश्व को शून्य […] Read more » Featured गुरुगिरी
व्यंग्य साहित्य तो क्या हाथी निकलेगा ? October 6, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment दुनिया में शाकाहारी अधिक हैं या मांसाहारी; शाकाहार अच्छा है या मांसाहार; फार्म हाउस के अंडे और घरेलू तालाब की छोटी मछली शाकाहार है या मांसाहार; मांस में भी झटका ठीक है या हलाल; ताजा पका हुआ मांस अच्छा है या डिब्बाबंद; ये कुछ चिरंतन प्रश्न हैं, जिनके उत्तर मनुष्य सदियों से तलाश रहा है। […] Read more » adulterated food Featured rat in the food तो क्या हाथी निकलेगा
व्यंग्य साहित्य त्योहार और बाजार…!! September 26, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कहते हैं बाजार में वो ताकत हैं जिसकी दूरदर्शी आंखे हर अवसर को भुना कर मोटा मुनाफा कमाने में सक्षम हैं। महंगे प्राइवेट स्कूल, क्रिकेट , शीतल पेयजल व मॉल से लेकर फ्लैट संस्कृति तक इसी बाजार की उपज है। बाजार ने इनकी उपयोगिता व संभावनाओं को बहुत पहले पहचान लिया और […] Read more » त्योहार त्योहार और बाजार बाजार
व्यंग्य साहित्य डिजीटल शौचालय, सुविधा से मुसीबत तक September 22, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत की हमारी महान सरकार ने तय कर लिया है कि वो हर चीज को डिजीटल करके रहेगी। वैसे तो ये जमाना ही कम्प्यूटर का है। राशन हो या दूध, रुपये पैसे हों या कोई प्रमाण पत्र। हर चीज कम्प्यूटर के बटन दबाने से ही मिलती है। जब से मोबाइल फोन स्मार्ट हुआ है, तब […] Read more » डिजीटल शौचालय
व्यंग्य साहित्य राजनीति का कोढ़ : वंशवाद September 21, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment कल शर्मा जी मेरे घर आये, तो हाथ में मिठाई का डिब्बा था। उसका लेबल बता रहा था कि ये ‘नेहरू चौक’ वाले खानदानी ‘जवाहर हलवाई’ की दुकान से ली गयी है। डिब्बे में बस एक ही बरफी बची थी। उन्होंने वह मुझे देकर डिब्बा मेज पर रख दिया। – लो वर्मा, मुंह मीठा करो। […] Read more » Featured वंशवाद
व्यंग्य साहित्य परबुद्ध सम्मेलन September 18, 2017 by विजय कुमार | 1 Comment on परबुद्ध सम्मेलन मैं दोपहर बाद की चाय जरा फुरसत से पीता हूं। कल जब मैंने यह नेक काम शुरू किया ही था कि शर्मा जी का फोन आ गया। – वर्मा, पांच बजे जरा ठीक-ठाक कपड़े पहन कर तैयार रहना। दाढ़ी भी बना लेना। एक खास जगह चलना है। वहां से रात को खाना खाकर ही लौटेंगे। […] Read more » Featured परबुद्ध सम्मेलन
व्यंग्य शपथ ग्रहण समारोह September 7, 2017 / September 7, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इस शीर्षक से आप भ्रमित न हों। मेरा मतलब पिछले दिनों दिल्ली में हुए शपथ ग्रहण से नहीं है। उसमें कुछ मंत्रियों की कुर्सी ऊंची हुई, तो कुछ की नीची। कुछ की बदली, तो कुछ किस्मत के मारे उससे बेदखल ही कर दिये गये। एक पुरानी और प्रखर वक्ता ने जब अपने शरीर का भार […] Read more » शपथ ग्रहण समारोह