व्यंग्य साहित्य क्यों पनपते हैं बाबाओं के डेरे ? August 30, 2017 / August 30, 2017 by जगमोहन ठाकन | 4 Comments on क्यों पनपते हैं बाबाओं के डेरे ? कार्ल मार्क्स ने कहा था- धर्म अफीम के समान है . पर कोई व्यक्ति क्यों अफीम का प्रयोग करता है , कब शुरू करता है इसका सेवन और कब तक रहता है इसके नशे का आदि ? यदि यही प्रश्न हम धर्म , सम्प्रदाय , पंथ या डेरे से जोड़कर देखें , सोचें ; तो कहीं ना […] Read more » बाबाओं के डेरे
व्यंग्य दो रोगों की एक दवाई August 30, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment बचपन में स्कूल में हमें गुरुजी ने एक सूत्र रटाया था, ‘‘सौ रोगों की एक दवाई, सफाई सफाई सफाई।’’ कुछ बड़े हुए, तो संसार और कारोबार में फंस गये। इससे परिवार और बैंक बैलेंस के साथ ही थोंद और तनाव भी बढ़ने लगा। फिर शुगर, रक्तचाप और नींद पर असर पड़ा। डॉक्टर के पास गये, […] Read more » bjp Congress Featured Indian political parties political parties unite political parties united in India अन्ना द्रमुक दवाई
व्यंग्य चुनाव की तैयारी August 25, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment चुनाव लड़ना या लड़ाना कोई बुरी बात नहीं है। राजनीतिक दल यदि चुनाव न लड़ें, तो उनका दाना-पानी ही बंद हो जाए। चुनाव से चंदा मिलता है। अखबारों में फोटो छपता है। हींग लगे न फिटकरी, और रंग चोखा। बिना किसी खर्च के ऐसी प्रसिद्धि किसे बुरी लगती है ? इसलिए हारें या जीतें, पर […] Read more » Featured preparation for election चुनाव चुनाव की तैयारी
व्यंग्य हम सीख रहे हैं….. August 25, 2017 by बीनू भटनागर | Leave a Comment कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती।अब 70 हमारे पास मंडरा रहा है और हम सीखे जा रहे है, शायद कब्र तक पंहुचते पंहुचते भी सीखते रहे, सीखने से छुट्टी नहीं मिलने वाली, सीखे जाओ किये जाओ यही हमारी नियति है। पचास साल हो गये पढ़ाई पूरी किये पर सीखना बन्द नहीं हुआ। हिन्दी […] Read more » Featured ईमोजी हम सीख रहे हैं
व्यंग्य साहित्य नमक का ढेला और गुड़ की लेप August 23, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन लगातार छह माह से इन्तजार करके आँखें थक चुकी थी कि शायद आज ही कोई लाइक आया जाए , कोई कमेंट आ जाए और तो और कोई पोक ही जाए तो भी सब्र कर लूँ . पर सब के सब कंजूस हैं . सैंकड़ों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी , ज्यादातर ने तो […] Read more » गुड़ की लेप नमक का ढेला
व्यंग्य साहित्य सस्ता घुटना बदल August 18, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत सरकार ने दिल के बाद अब घुटनों की सर्जरी भी सस्ती कर दी है। इससे उन लाखों बुजुर्गों को लाभ होगा, जो कई साल से घुटना बदलवाना चाहते थे; पर शर्मा जी को लग रहा है कि इसके पीछे सरकार का कोई छिपा एजेंडा जरूर है। कल जब मैं उनके साथ चाय पी रहा […] Read more » easy knee surgery Featured सस्ता घुटना बदल
व्यंग्य साहित्य वो दाल-दाल, ये साग-साग August 17, 2017 / August 18, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment मैं साहित्यप्रेमी तो हूं, पर साहित्यकार नहीं। इसलिए किसी कहावत में संशोधन या तोड़फोड़ करने का मुझे कोई हक नहीं है; पर हमारे प्रिय शर्मा जी परसों अखबार में छपी एक पुरानी कहावत ‘तुम डाल-डाल, हम पात-पात’के नये संस्करण ‘वो दाल-दाल, ये साग-साग’के बारे में मुझसे चर्चा करने लगे। – वर्मा, ये दाल और साग […] Read more » ये साग-साग वो दाल-दाल
व्यंग्य चोटी से नाक तक, वो काटा… August 13, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इन दिनों महिलाओं की चोटी काटने या कटने की चर्चा से अखबार भरे हैं। यह सच है या झूठ, अफवाह है या मानसिक रोग, घरेलू झगड़ा है या कुछ और, ये शायद कभी पता न लगे। कोई समय था जब मोटी और लम्बी चोटी फैशन में थी। तभी तो माता यशोदा बार-बार कान्हा को […] Read more » choti katwa चोटी महिलाओं की चोटी काटने या कटने
व्यंग्य माले मुफ्त दिले बेरहम August 8, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इसे पढ़कर आप कोई गलतफहमी न पालें। मैं कोई मुफ्त चीज बांटने नहीं जा रहा हूं। इस कहावत का अर्थ है कि यदि कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो, तो फिर उसके लिए हाथ, जेब और झोली के साथ ही दिल भी बेरहम हो जाता है। भले ही वो हमारे काम की हो या […] Read more » Featured माले मुफ्त दिले बेरहम मुफ्तखोरी
व्यंग्य पेशेवर कांग्रेस August 5, 2017 / August 5, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले रविवार को शर्मा जी मिले, तो बहुत खुश थे। खुशी ऐसे छलक रही थी, जैसे उबलने के बाद दूध बरतन से बाहर छलकने लगता है। उनके मुखारविन्द से बार-बार एक फिल्मी गीत प्रस्फुटित हो रहा था, ‘‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे..।’’ – शर्मा जी, क्या परिवार में कोई […] Read more » Congress Featured पेशेवर कांग्रेस
व्यंग्य कैसी – कैसी आजादी …!! August 5, 2017 / August 5, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा फिर आजादी … आजादी का वह डरावना शोर सचमुच हैरान करने वाला था। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसी आजादी की मांग है। अभी कुछ महीने पहले ही तो देश की राजधानी में स्थित शिक्षण संस्थान में भी ऐसा ही डरावना शोर उठा था। जिस पर खासा राजनैतिक […] Read more » आजादी
व्यंग्य साहित्य घुन और खत-पतवार August 2, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment एक बार विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारी तेनालीराम से पूछा कि साल में कितने महीने होते हैं ? तेनाली ने कहा, “दो महाराज।” राजा हैरान हो गये। इस पर वह बोला, “महाराज, वैसे तो महीने बारह हैं; पर यदि उनमें से सावन और भादों निकाल दें, तो फिर बाकी सब […] Read more » Featured खत-पतवार