व्यंग्य साहित्य सस्ता घुटना बदल August 18, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment भारत सरकार ने दिल के बाद अब घुटनों की सर्जरी भी सस्ती कर दी है। इससे उन लाखों बुजुर्गों को लाभ होगा, जो कई साल से घुटना बदलवाना चाहते थे; पर शर्मा जी को लग रहा है कि इसके पीछे सरकार का कोई छिपा एजेंडा जरूर है। कल जब मैं उनके साथ चाय पी रहा […] Read more » easy knee surgery Featured सस्ता घुटना बदल
व्यंग्य साहित्य वो दाल-दाल, ये साग-साग August 17, 2017 / August 18, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment मैं साहित्यप्रेमी तो हूं, पर साहित्यकार नहीं। इसलिए किसी कहावत में संशोधन या तोड़फोड़ करने का मुझे कोई हक नहीं है; पर हमारे प्रिय शर्मा जी परसों अखबार में छपी एक पुरानी कहावत ‘तुम डाल-डाल, हम पात-पात’के नये संस्करण ‘वो दाल-दाल, ये साग-साग’के बारे में मुझसे चर्चा करने लगे। – वर्मा, ये दाल और साग […] Read more » ये साग-साग वो दाल-दाल
व्यंग्य चोटी से नाक तक, वो काटा… August 13, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इन दिनों महिलाओं की चोटी काटने या कटने की चर्चा से अखबार भरे हैं। यह सच है या झूठ, अफवाह है या मानसिक रोग, घरेलू झगड़ा है या कुछ और, ये शायद कभी पता न लगे। कोई समय था जब मोटी और लम्बी चोटी फैशन में थी। तभी तो माता यशोदा बार-बार कान्हा को […] Read more » choti katwa चोटी महिलाओं की चोटी काटने या कटने
व्यंग्य माले मुफ्त दिले बेरहम August 8, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment इसे पढ़कर आप कोई गलतफहमी न पालें। मैं कोई मुफ्त चीज बांटने नहीं जा रहा हूं। इस कहावत का अर्थ है कि यदि कोई चीज मुफ्त में मिल रही हो, तो फिर उसके लिए हाथ, जेब और झोली के साथ ही दिल भी बेरहम हो जाता है। भले ही वो हमारे काम की हो या […] Read more » Featured माले मुफ्त दिले बेरहम मुफ्तखोरी
व्यंग्य पेशेवर कांग्रेस August 5, 2017 / August 5, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment पिछले रविवार को शर्मा जी मिले, तो बहुत खुश थे। खुशी ऐसे छलक रही थी, जैसे उबलने के बाद दूध बरतन से बाहर छलकने लगता है। उनके मुखारविन्द से बार-बार एक फिल्मी गीत प्रस्फुटित हो रहा था, ‘‘दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे..।’’ – शर्मा जी, क्या परिवार में कोई […] Read more » Congress Featured पेशेवर कांग्रेस
व्यंग्य कैसी – कैसी आजादी …!! August 5, 2017 / August 5, 2017 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा फिर आजादी … आजादी का वह डरावना शोर सचमुच हैरान करने वाला था। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसी आजादी की मांग है। अभी कुछ महीने पहले ही तो देश की राजधानी में स्थित शिक्षण संस्थान में भी ऐसा ही डरावना शोर उठा था। जिस पर खासा राजनैतिक […] Read more » आजादी
व्यंग्य साहित्य घुन और खत-पतवार August 2, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment एक बार विजयनगर साम्राज्य के प्रतापी राजा कृष्णदेव राय ने अपने दरबारी तेनालीराम से पूछा कि साल में कितने महीने होते हैं ? तेनाली ने कहा, “दो महाराज।” राजा हैरान हो गये। इस पर वह बोला, “महाराज, वैसे तो महीने बारह हैं; पर यदि उनमें से सावन और भादों निकाल दें, तो फिर बाकी सब […] Read more » Featured खत-पतवार
व्यंग्य साहित्य साहित्य का अग्निपथ July 31, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment अमित शर्मा चतुर्वेदी जी मंझे हुए साहित्यकार है। वे हमेशा साहित्यिक साधना में लीन रहते है,उनके चारो और हमेशा साहित्य भिनभिनाता रहता है। साहित्यिक तेवर को ही वे अपना ज़ेवर मानते है। अपनी रचनात्मक चेत “ना” पर सवार होकर वे काफी लंबी साहित्यिक दूरी तय कर चुके है। इतना दूर आने के बाद उन्हें समझ […] Read more » अग्निपथ साहित्य साहित्य का अग्निपथ
व्यंग्य चट तलाक –पट ब्याह July 29, 2017 by जगमोहन ठाकन | Leave a Comment जग मोहन ठाकन अबकी बार तो मुझे पक्का भरोसा है , निशा मौसी का नाम जरूर गिनीज बुक में दर्ज होगा . शाम को तलाक , रात होने से पहले सगाई और दिन निकलते ही फेरे . कमाल है मौसी का भी . शाम को तो लोग- बाग़ फूस –फूस कर रहे थे , अब […] Read more » Featured चट तलाक –पट ब्याह
व्यंग्य जा, तू टमाटर हो जा July 29, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार बात उन दिनों की है, जब मैं चौथी-पांचवी कक्षा में पढ़ता था। तब टी.वी. भारत में आया नहीं था। रेडियो और टेलिफोन अति दुर्लभ और विलासिता की चीज मानी जाती थी। अखबार भी पूरे मोहल्ले में एक-दो लोग ही मंगाते थे। दोपहर में बुजुर्ग लोग अखबार पढ़ने के लिए उनके घर पहुंच जाते […] Read more » Featured टमाटर
व्यंग्य साहित्य पारदर्शी चंदा, मुसीबत का धंधा July 24, 2017 by विजय कुमार | Leave a Comment जब से वित्त मंत्री अरुण जेतली ने राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाने की बात कही है, तब से कई दलों की नींद हराम है। यद्यपि जेतली ने अभी बस कहा ही है; पर सब जानते हैं कि जेतली ने कहा है, तो सरकार अंदरखाने जरूर कुछ तैयारी कर रही होगी। विपक्ष (और अधिकांश सत्तापक्ष) वालों […] Read more » पारदर्शी चंदा मुसीबत का धंधा
व्यंग्य साहित्य फेसबुक टैगिंग या फिर डिजिटल रैगिंग July 24, 2017 by अमित शर्मा (CA) | Leave a Comment डिजिटल आपाधापी के इस घोर कलयुग में भी इंसानियत समाप्त नहीं हुई है, अभी भी कई लोग टैग की गई सभी पोस्ट अपनी वाल पर दिखने के लिए allow कर देते है। दया और करुणा का एक्स्ट्रा रिचार्ज करवा कर धरती पर डिलीवर किये गए लोग तो टैग किए जाने पर इतने भावविभोर हो जाते है कि टैग किये जाने को ही अपना सम्मान समारोह समझ लेते है और कमेंट बॉक्स में "थैंक्स फॉर द टैग" लिखकर टैगीत होने के ऋण से उऋण होते है। Read more » Featured डिजिटल रैगिंग फेसबुक टैगिंग