व्यंग्य छुट्टी का हक तो बनता ही है.. February 25, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment शर्मा जी बहुत दिन से घूमने नहीं आ रहे थे। न सुबह, न शाम। बाकी मित्र तो ज्यादा चिन्ता नहीं करते; पर मेरा मन उनके बिना नहीं लगता। बहुत दिन हो जाएं, तो बेचैनी होने लगती है। सो मैं उनके घर चला जाता हूं। मिलना का मिलना, और साथ में भाभी जी के हाथ के […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी February 21, 2015 / February 23, 2015 by विजय कुमार | 2 Comments on व्यंग्य बाण : वी.वी.आई.पी. खांसी मुझे फिल्म देखने का कभी शौक नहीं रहा। हां, अच्छे गीत सुनने से मन-मस्तिष्क को आराम जरूर मिलता है। बालगीत भी बहुत अच्छे लगते हैं। ऐसे कुछ गीत और कविताएं मैंने भी लिखी हैं। कई बड़े अभिनेताओं ने बालगीत गाये हैं, यद्यपि वे स्थापित गायक नहीं है। इनमें अशोक कुमार द्वारा फिल्म ‘आशीर्वाद’ में गाया […] Read more » वी.वी.आई.पी. खांसी
व्यंग्य न्याय बिकता है February 19, 2015 by अनुज अग्रवाल | 4 Comments on न्याय बिकता है चरित्र जज साहब, कपिल सिब्बल, गरीब किसान दीना और उसका वकील सुरेश … (किसान दीना के खेत पर प्रधान ने कब्जा कर लिया है | सुनवाई हो ही रही थी कि सिब्बल साहब का फ़ोन आ जाता है) कपिल सिब्बल :- “हेल्लो हजूर, .. माईबाप हैं का ? जज साहब :- कहिये क्या हुआ […] Read more » न्याय बिकता है
व्यंग्य प्रेम दिवस : श्याम सिंह की अधूरी कहानी February 14, 2015 / February 14, 2015 by प्रवक्ता ब्यूरो | Leave a Comment तब तक बाबा वैलेंटाइन का आविर्भाव भारत की धरा पर नहीं हुआ था। ये कहना मुश्किल है कि उस दौर में देश, प्रेम के प्रभाव से मुक्त्त रहा होगा। प्रेम पर ग्रन्थ और महाकाव्य आदि काल से यहाँ लिखे जा चुके थे। वैलेंटाइन बाबा के दादा-परदादा की औकात नहीं थी कि हिंदुस्तानी प्रेम की ए-बी-सी भी समझ पाते। सोलह कला सम्पन्न भगवान यहाँ […] Read more » प्रेम दिवस
व्यंग्य ” बीबी ” वाले भी “वैलेंटाइन ” ढूँढ रहे हैं February 14, 2015 / February 14, 2015 by आलोक कुमार | Leave a Comment आज सभ्यता,संस्कृति की दुहाई देनेवाले हमारे देश में संस्कृति मखौल का विषय बन गई है , सभ्यता धुंधली पड़ रही है और संस्कारों का “अंतिम-संस्कार” किया जा चुका है l पहनावे में,बोलचाल में,रहन-सहन में , पर्व-त्यौहार , राजनीतिक-सामाजिक जीवन में हर गलत चीज को मान्यता मिल रही है l आज की मौजूदा पीढ़ी के पास “कॉकटेल” है पूरब और पश्चिम का और अनुभवी लोगों […] Read more » वैलेंटाइन
व्यंग्य व्यंग्य बाण : चमत्कारी अंगूठी February 12, 2015 / February 12, 2015 by विजय कुमार | Leave a Comment दिल्ली के चुनाव परिणाम आने के बाद परसों मैं शर्मा जी के घर गया, तो एक बाल पत्रिका उनके हाथ में थी। वे एक कहानी पढ़ रहे थे, जिसका शीर्षक था ‘चमत्कारी अंगूठी’। मैंने प्रश्नाकुल आंखों से बुढ़ापे में बाल पत्रिका पढ़ने का कारण पूछा, तो उन्होंने चुपचाप पत्रिका मुझे थमा दी और खुद अंदर […] Read more » चमत्कारी अंगूठी
व्यंग्य ई जो है पॉलिटिक्स…!! February 9, 2015 / February 9, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा राजनयिक और कूटनीतिक दांव – पेंच क्या केवल खादी वाले राजनीतिक जीव या सूट – टाई वाले एरिस्टोक्रेट लोगों के बीच ही खेले जाते हैं। बिल्कुल नहीं। भदेस गांव – देहातों में भी यह दांव खूब आजमाया जाता है। बचपन में हमें अभिभावकों के साथ अक्सर घुर देहात स्थित अपने ननिहाल […] Read more » पॉलिटिक्स
व्यंग्य चुनावी मौसम, देश भक्ति का आलम February 6, 2015 by रवि श्रीवास्तव | 1 Comment on चुनावी मौसम, देश भक्ति का आलम चुनावी मौसम आते ही राजनीतिक पार्टियों के नेताओं में जबरजस्त देश भक्ति का आलम जाग उठता है। जो 15 अगस्त और 26 जनवरी के दिन देखने को मिलता है। हर प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में गाने देश भक्ति के गाने बजते हैं। कार, आटो, से लेकर रिक्शा तक में हम जिएगें और मरेगें ए […] Read more » चुनावी मौसम देश भक्ति का आलम
व्यंग्य मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी February 5, 2015 by अनुज अग्रवाल | 2 Comments on मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी गतांक से आगे (पढ़े पिछला अंक “तोरई आदमी पार्टी ”) मित्रों तोरई आदमी पार्टी अपना पहला चुनाव लड़ने जा रही है | दिल्ली का चुनाव | और चुनाव बिना घोषणापत्र के नहीं लड़ा जा सकता | बाकी सभी पार्टियों के अपना अपना मैनिफेस्टो जारी कर दिया है | आज हम भी अपनी पार्टी का […] Read more » तोरई आदमी पार्टी मैनिफेस्टो मैनिफेस्टो: तोरई आदमी पार्टी
व्यंग्य प्रीतिभोज से पार्टी तक….!! February 4, 2015 by तारकेश कुमार ओझा | Leave a Comment तारकेश कुमार ओझा कोई भी एेसा मौका जिसके तहत दस लोगों को दरवाजे बुलाना पड़े, पता नहीं क्यों मुझमें अजीब सी घबराहट पैदा कर देती है। कुछ साल पहले छोटे भाई की शादी में न चाहते हुए भी हमें आयोजित भोज का अगुवा बनना पड़ा। अनुभवहीन होने के चलते डरते – डरते इष्ट – […] Read more » प्रीतिभोज से पार्टी तक
व्यंग्य वास्तव में उनके अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते January 22, 2015 by श्रीराम तिवारी | 1 Comment on वास्तव में उनके अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते मेरे देश में इन दिनों बहुतेरों को एक अदद ‘अवतार ‘ की शिद्द्त से दरकार है। पीलिया रोग से पीड़ित कुछ नर-मादाओं को तो नरेंद्र मोदी साक्षात विष्णु के अवतार ही नजर आ रहे हैं। महज कार्पोरेट लाबी या हिन्दुत्ववादियों को ही नहीं अब तो खांटी धर्मनिर्पेक्षतावादियों ,कांग्रेसियों और लोहियावादियों को भी मोदी जी ‘कितने अच्छे लगने लगे ‘ हैं। जब शांति भूषण […] Read more »
व्यंग्य मेरी भैंस को अंडा क्यों मारा ?? January 17, 2015 / January 17, 2015 by अनुज अग्रवाल | Leave a Comment आजकल चुनावो का मौसम है | हरियाणा झारखण्ड से लेकर जम्मू होते हुए चुनाव दिल्ली आ धमका है | वैसे हम भारतीय अपने आलस को लेकर विश्व प्रसिद्ध हैं | हमें कभी पता भी नहीं चलता कि कब चुनाव आये और कब हमारे प्रदेश में मुखिया चुन लिया गया | पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में […] Read more »