व्यंग्य टांगें और कामयाबी October 24, 2012 / October 24, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment पंडित सुरेश नीरव पांव छूना हमारी संस्कृति के प्राण हैं। और पांव छूना और छुलवाना हमारी सनातन-शाश्वत सांस्कृतिक गतिविधि है। पद,प्रमोशन, पुरस्कार,प्रतिष्ठा नाना प्रकार की उपलब्धियां हमें पांव छूने से ही प्राप्त होती हैं। सैंकड़ों टाटा और बाय-बाय पर एक अदद पांव छूना हज़ार गुना भारी पड़ता है। आज के जीवन-संग्राम में जो चरण स्पर्श […] Read more »
व्यंग्य उल्लुं शरणं गच्छामि.. October 19, 2012 / October 19, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | 2 Comments on उल्लुं शरणं गच्छामि.. सुरेश नीरव दिवाली फटाफट अमीर होने का तत्काल-सेवा रिजर्वेशन काउंटर है। जो हर साल खुलता है। और जहां हर साल धन की धनक और खनक पर भांगड़ा करने की अदम्य लालसा लिए नोटाभिलाषी भक्तगण चीन में बनी लक्ष्मी मैया की मूर्ति के आगे अपनी स्वदेशी श्रद्धा की आउटसोर्सिंग के जरिए मनुष्य से धनपशु होने का […] Read more »
व्यंग्य कब पिलाओगे October 19, 2012 / October 19, 2012 by राघवेन्द्र कुमार 'राघव' | Leave a Comment राघवेन्द्र कुमार ”राघव” ” सैयाँ भए कोतवाल अब डर कहे का” ऐसी कहावते अब पुरानी हो गयी हैं इसी को ध्यान में रखकर शीर्षस्थ लोग नई कहावते गढ़ने लगे हैं | ” सैयाँ जब सरकार मतलब पूरा भ्रष्टाचार ” कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की धर्म पत्नी ने इसे चरितार्थ किया है | करें भी क्यों […] Read more »
व्यंग्य व्यंग्य बाण : हाथ मिलाएं, पर ध्यान से October 19, 2012 by विजय कुमार | Leave a Comment विजय कुमार लगता है कि अखबार वालों के पास छापने के लिए विषयों की कमी हो गयी है, इसलिए वे न जाने कहां-कहां से लाकर ऊल जलूल बातें त्यौहार के मौसम में पाठकों को परोस देते हैं। शर्मा जी कल बहुत दिन बाद मिले, तो मैंने उत्साहपूर्वक हाथ आगे बढ़ाते हुए उन्हें दीपावली की बधाई […] Read more »
व्यंग्य न्यू तोता-मेना लव स्टोरी October 19, 2012 / October 19, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment शहरीकरण के सीमेंटवन में बेवक्त चल बसे संबंधों का सांय-सांय करता श्मशानी सन्नाटा और इस सन्नाटे में मुद्रास्फीति के नाखूनों पर विदेशी-निवेश की नेलपॉलिश लगाए बैठी मिस मंहगाई अपने प्रेमी के इंतजार में बैठी समय काटने के लिए अपने ही नाथून चबा रही है। अचानक ट्रेफिक जाम के चक्रब्यूह को पार कर के छलांग लगाता […] Read more »
व्यंग्य रामलीलाएं और भव्य कवि सम्मेलन October 17, 2012 / October 17, 2012 by पंडित सुरेश नीरव | Leave a Comment सुरेश नीरव भारत एक लीला प्रधान देश है। वर्षभर यहां किसिम-किसिम के विविधभारती जलसे होते ही रहते हैं। इसलिए ही इसे भारतवर्ष भी कहा जाता है। जलसे… राजनैतिक आंदोलनों से लेकर भगवती जागरण तक। देश एक लीलाएं अनेक। भक्तजनों ने अभी-अभी गणपति बब्बा मोरिया को सीऑफ किया है कि रामलीला के तंबू-बंबू गढ़ने शुरु हो […] Read more » भव्य कवि सम्मेलन रामलीलाएं
व्यंग्य कल आ जाइये October 6, 2012 / October 6, 2012 by बीनू भटनागर | 5 Comments on कल आ जाइये एक सौ बीस करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश मे अगर कमी है तो बस आदमी की। विचित्र विडम्बना है, कि जिस देश की जनसंख्या इतनी अधिक है, लाखों लोग बेरोज़गार इधर उधर भटक रहे है वहाँ हर जगह यही सुनने को मिलता है आदमी नहीं हैं.. आपका काम हो जायेगा..बस कल आ जाइये या […] Read more » कल आ जाइये
व्यंग्य सरकार आपकी शक्कर खाई है September 29, 2012 / September 29, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment प्रभुदयाल श्रीवास्तव सरकार ने अपने चमचे की तरफ बंदूक तान दी और शूट करने का मन बना लिया|चमचा बेचारा घबरा गया,सरकार के हाथ पैर जोड़ने लगा,गिड़गिड़ा कर् कहने लगा”सरकार मैँने आपकी शक्कर खाई है, मुझ पर रहम करो|”शक्कर का नाम सुनकर सरकार की जीभ में पानी आ गया|नमक हलाल यदि नमक हरामी करे तो उसे […] Read more »
व्यंग्य हिन्दी बेचारी और मेरी लाचारी September 29, 2012 / September 29, 2012 by अशोक बजाज | 1 Comment on हिन्दी बेचारी और मेरी लाचारी अशोक बजाज लेडीज़ एंड जेंटलमेन, गुड मार्निंग पूरे इण्डिया में 14 सितंबर को औपचारिक रूप से हिंदी दिवस मनाया गया. मेरा स्कूल मीडियम इंगलिश है तो क्या हुआ यहाँ भी हिंदी दिवस पर गोष्ठी का प्रोग्राम रखा गया. हमारे प्रिंसिपल मि. के. पी. नाथ ने हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डाला तथा हिंदी की […] Read more »
बच्चों का पन्ना व्यंग्य थोड़ा सा फर्क September 28, 2012 / September 27, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 13 Comments on थोड़ा सा फर्क “दादाजी दादाजी ‘बनाना’ को हिंदी में क्या बोलते हैं?” “बेटे ‘बनाना’ को हिंदी में केला कहते हैं|” “और दादाजी वो जो राउंड ,राउंड, ऱेड, रेड एप्पिल होता है न उसको हिंदी में क्या बोलते हैं?” “बेटे उसको सेब बोलते हैं|” मेरा नाती मुझसे सवाल पूँछ रहा था और मैं जबाब दे रहा था| “आच्छा..आपको तो […] Read more » story for kids थोड़ा सा फर्क
व्यंग्य छंगाजी की नाक September 27, 2012 / September 27, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | Leave a Comment वैसे तो मुझे कटिंग कराने का कतई शौक नहीं है किंतु अच्छे खासे पुरुष को बेदर्द जमाने के लोग नारी की उपाधि से विभूषित न कर दें मैं साल में दो बार कटिंग करा ही लेता हूँ|मतलब छः महिने व्यतीत होते ही मुझे अपने केश कतरवाने जाना ही पड़ता है|मजबूरी यह है कि जैसे ही […] Read more » छंगाजी की नाक
कविता व्यंग्य गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव September 25, 2012 / September 25, 2012 by प्रभुदयाल श्रीवास्तव | 1 Comment on गिरगिट दादा-प्रभुदयाल श्रीवास्तव मिले सड़क पर गिरगिट दादा लगे मुझे दुख दर्द बताने| बहुत देर तक रुके रहे वे अपने मन की व्यथा सुनाने| बोले ‘सदियों सदियों से मैं सदा बदलता रंग रहा हूं| दीवालों आलों खिड़की में, इंसानों के संग रहा हूं| रंग बदलने के इस गुण में , जगवाले मुझसे पीछे थे| रंग बदलने […] Read more » satire poem by prabhudayal गिरगिट दादा