Category: राजनीति

राजनीति

वोट के नाम पर धर्म और जाति के उलझे धागे

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सभी राजनीतिक दल भले ही जातिवाद एवं धार्मिक राजनीति के खिलाफ बयानबाजी करते रहें, लेकिन चुनावी तैयारी जाति एवं धर्म के कार्ड को आधार बनाने के अलावा कोई रास्ता उन्हें दिखाई ही नहीं देता है। सच यह भी है कि यदि कोई भी दल परोक्ष रूप से जातिगत निर्णयों से बचना चाहे तो भी वह कुछ जातियों को नजरंदाज करने के आरोप से बच नहीं सकते, जैसे भाजपा में केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर यह कहा गया कि वहां पिछड़ी जातियों को आकर्षित करने के लिये यह कदम उठाया गया है और कांग्रेस द्वारा शीला दीक्षित को चुनावी चेहरा बनाने पर पार्टी के ऊपर ब्राह्मणों को रिझाने का आरोप लगा।

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बिहार से यूपी तक पिछलग्गू बनती कांगे्रस

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दरअसल, 2009 के बाद से कांग्रेस का ग्राफ लगातार गिर रहा है। कांग्रेस के हाथ से राज्यों की सत्ता छिटक रही है। लिहाजा यूपी में सत्ता में होना कांग्रेस की राजनीतिक मजबूरी माना जा रहा है। कांग्रेस सत्ता में तो आना चाहती है। इसके अलावा एक मकसद बीजेपी को यूपी की सत्ता से दूर रखना भी है। कांगे्रस की दुर्दशा के कारणों पर नजर डाली जाये तो जटिल जातीय समीकरण वाले इस सूबे में कांग्रेस के पास अपना परंपरागत वोट बैंक नही बचा है। ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम अब कांग्रेस के वोटर नहीं रह गये हैं।

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