Category: समाज

जन-जागरण समाज

भारत के विरूद्ध सक्रिय संगठनों का वैश्विक तंत्र – ०२

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यह विडम्बना ही नहीं धूर्त्तता भी है कि जिन लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान का ककहरा-मात्रा भी नहीं मालूम है वे दलितों को आध्यात्मिक लाभ देने में लगे हुए हैं और इस तथाकथित लाभ के नाम पर उनके गले में गुलामी का फंदा डालने वाले वे लोग उस फंदे को ही मुक्ति का माध्यम व स्वयं को मुक्तिदाता भी बता रहे हैं । इतना ही नहीं, इसकी पूरी अनुकूलता नहीं मिल पाने के कारण वे भारत के कानून-व्यवस्था को धार्मिक स्वतंत्रता का उत्पीडक बताते हुए इसके विरूद्ध अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग भी कर रहे हैं ।

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विविधा समाज

सार्वभौमिक-समन्वित भारतीय हिन्दू संस्कृति

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दूसरों को दुख देना सबसे बड़ा अधर्म है एवं दूसरों को सुख देना सबसे बड़ा धर्म है । यही हिन्दू की भी परिभाषा है। कोई व्यक्ति किसी भी भगवान को मानते हुए एवं न मानते हुए हिन्दू बना रह सकता है। हिन्दू की परिभाषा को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि भारत में हिन्दू की परिभाषा में सिख, बौद्ध, जैन, आर्यसमाजी व सनातनी इत्यादि आते हैं। हिन्दू की संताने यदि इनमें से कोई भी अन्य पंथ अपना भी लेती हैं तो उसमें कोई बुराई नहीं समझी जाती एवं इनमें रोटी बेटी का व्यवहार सामान्य माना जाता है।

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