विविधा देश-विदेश में शिक्षक दिवस September 4, 2019 / September 4, 2019 by योगेश कुमार गोयल | Leave a Comment शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष – योगेश कुमार गोयल राष्ट्र निर्माता माने जाने वाले शिक्षकों को सम्मान देने के लिए देश में प्रतिवर्ष 5 सितम्बर को ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि शिक्षक दिवस हमारे यहां हर साल इसी दिन क्यों मनाया जाता है? दरअसल 5 सितम्बर भारत […] Read more »
विविधा जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु अवश्य होगी June 11, 2019 / June 11, 2019 by मनमोहन आर्य | Leave a Comment -मनमोहन कुमार आर्य हम शरीर नहीं अपितु एक चेतन आत्मा है जो अत्यन्त अल्प परिमाण वाला है। हमारा आत्मा अत्यन्त सूक्ष्म एवं अदृश्य है। मिलीमीटर वा इसके खण्डों में भी हम इसकी लम्बाई, चौड़ाई व ऊंचाई आदि को नहीं जान सकते। यह अभौतिक होने व स्थूल न होने के कारण आंखों से दिखाई नहीं […] Read more »
विविधा इस बस्ती को कोई गोद लेगा? June 3, 2019 / June 3, 2019 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment पीर अज़हर कुपवाड़ा, कश्मीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आम चुनाव में दुबारा अभूतपूर्व सफ़लता प्राप्त करने का श्रेय उनकी सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू की गई कई जनकल्याणकारी योजना को भी जाता है। इन्हीं में एक सांसद आदर्श ग्राम योजना भी शामिल है। इसके तहत सभी सांसदों को एक गांव गोद लेने और उसका […] Read more » सांसद आदर्श ग्राम योजना
विविधा हिंदी की अदद उम्मीद प्रधानमंत्री मोदी से… June 1, 2019 / June 1, 2019 by अर्पण जैन "अविचल" | 1 Comment on हिंदी की अदद उम्मीद प्रधानमंत्री मोदी से… डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ वैसे तो भारत का प्रधानमंत्री अपने क्षेत्र, ग्राम,नगर, प्रान्त, भाषा, जाति, समाज, कुल, गौत्र, राजनैतिक पार्टी और अन्य तमाम परिचायक बंधनों से मुक्त होता है, ऐसे सभी बंधन जो उसे अन्य से अलग करते करते है या फिरजमात में शामिल करते है। इसीलिए वो भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ लेते है। आम चुनाव २०१९ में प्राप्त जनादेश की स्वीकार्यता के साथ ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी पुन प्रधानमंत्री पदपर आरूढ़ होने जा रहे है। इसी बीच कुछ अपेक्षाएँ अपनी भाषा को भी है प्रधानमंत्री से, जो वादे, मुद्दे और सुधार पिछले चुनावों की विजय के बाद रह गए थे उन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। वर्ष २०१९ में भारतीय जनता पार्टी जिसके चुनाव चिन्ह परनरेंद्र मोदी चुनाव जीते है उसी पार्टी के द्वारा जारी चुनावी घोषणा पत्र या कहें संकल्प पत्र में भी पृष्ठ ४१ पर भारतीय भाषाओँ के संरक्षण का उल्लेख किया है। जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा है कि ‘हम भारत की लिखी और बोलीजाने वाली सभी भाषाओँ तथा बोलयों की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कार्यबल का गठन करेंगे। भारतीय भाषाओँ और बोलियों के पुनरुद्धार और संवर्धनके लिए हर संभव प्रयास करेंगे।’इसी के साथ भाजपा ने संस्कृत के उत्थान हेतु भी वादा तो किया है। इस लिए प्रधानमंत्री जी से अपेक्षाएँ और बढ़ जाती है कि भारतीय भाषाओँ में सबसे पहले स्थान पर सुशोभित और वर्तमान में भारत की राजभाषा के रूप मेंस्थापित ‘हिंदी’ भाषा की ओर भी अपना ध्यान देंगे। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को विशेष जनभाषा का दर्जा दिया था, उसके बाद कई आयोग बनें जिनमें दौलत सिंह कोठारी आयोग (१९६४-१९६८) की सिफारिशों में भी हिंदी भाषा की पैरवी की गई, मातृभाषाको अनिवार्य शिक्षा में शामिल करने की बात कही गई, फिर भी १९६७ में हिंदी को कतिपय राजनैतिक कारणों के चलते अंगेजी के प्रभाव में कमजोर सिद्ध करके राजभाषा बना दिया। आज देश में हिंदी समझने और बोलनेवालों की संख्या लगभग 70 करोड़ के आस-पास है। देश से बाहर भी करोड़ों लोग इसे जानते-समझते हैं, प्रयोग करने वालों की संख्या के लिहाज से यह चीन की मैंडेरिन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। पिछले पांच साल से देश की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का दबदबा बना हुआ है। केंद्र के अलावा देश के अन्य कई राज्यों में उसकी या उसके सहयोगियों की सरकार है। भाजपा और उसका पितृसंगठन राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ भी हिंदी समर्थक माने जाते हैं। जीवन के हर क्षेत्र खासकर भाषा और संस्कृति के क्षेत्र में स्वदेशीकरण को बढ़ाना इनका मूल एजेंडा है। ऐसे में हिंदी के तमाम समर्थकों को उम्मीद है कि ये हिंदी भाषा औरसाहित्य के विकास के लिए कुछ ऐसा करेंगे जो पिछले 70 सालों में नहीं हुआ। हिंदी भाषा अपने हिमकती संगठन और देश के ऐसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो हिंदी में हस्ताक्षर करते है, हिंदी में ही भाषण देते है, हिंदी में चुनाव अभियान का संचालन करवाते है और हिंदी के प्रचारक होने पर गर्व महसूसकरते है, उन्ही से कुछ उम्मीद करती है जैसे- १. सर्वप्रथम हिंदुस्तान की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है, और वर्तमान में संख्याबल के अनुसार भी हिंदी उन सभी भाषाओँ में अवल्ल है जो भारत में प्रचलित है, इसलिए भारतीय के परिचायक के रूप में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनायाजाए। एवं अन्य भारतीय भाषाओँ को भी हिंदी के साथ तालमेल स्थापित करने की दिशा अनुवाद आदि माध्यम से जोड़ने का प्रबंध किया जाएँ। क्योंकि यदि आज़ादी के ७ दशक बाद भी यदि राजभाषा का स्थान एक ऐसीविदेशी भाषा के साथ साझा करना पड़े जिसे भारत में बोलने समझने वाले लोग भी कुल ५ प्रतिशत नहीं तो यह हिंदी का दुर्भाग्य है। २. इसके बाद हिंदी पट्टी के सभी 10 राज्यों (दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश) को अपने यहां ‘त्रिभाषा सूत्र’ को सख्ती से लागू करना चाहिए।इसके लिए दौलत सिंह कोठारी के नेतृत्व में बने प्रथम शिक्षा आयोग द्वारा सुझाए गए इस सूत्र के अनुसार देश के विद्यालयों में तीन भाषाओं को पढ़ाया जाना था। इन तीन भाषाओं में मातृभाषा, अंग्रेजी और दूसरे राज्य की कोईएक भाषा पढ़ाने का सुझाव दिया गया था। लेकिन हिंदी पट्टी के इन राज्यों ने इस मामले में ‘राजनीति’ कर दी और इन राज्यों ने अपने यहां दूसरे राज्यों की भाषा पढ़ाने के बजाय संस्कृत को पढ़ाना शुरू कर दिया। इससेभारतीय भाषाओँ में आपसी सामंजस्य भी स्थापित होगा और हिंदी की अनिवार्यता से राष्ट्रीय अखंडता भी रक्षित रहेगी। ३. भारतीय जनता को भारतीय भाषाओँ में न्याय मिलना चाहिए। इसके साथ ही भारत के प्रत्येक न्यायालय से जारी प्रत्येक फैसले की प्रथम प्रति अनिवार्यत: हिन्दी या मातृभाषा में दी जाने की व्यवस्था सुनिश्चित की जानीचाहिए। भारत की अधिकांश जनता हिन्दी भाषा में अपना कार्य व्यवहार करती है, और कम पढ़े-लिखे लोग भी हिन्दी या मातृभाषा में लिखा पढ़ने में सक्षम होते है, और न्यायालयों में फैसले आदि अंग्रेजी में होने से असुविधाऔर भ्रम की स्थिति भी रहती है । इसी सन्दर्भ में भारत की उच्चतम न्यायलय ने एक आदेश भी दिया था कि प्रत्येक न्यायलय अपने फैसले की प्रथम प्रति अनिवार्य रूप से हिन्दी में प्रदान करें, परन्तु दुर्भाग्यवश कोई भी सक्षमन्यायलय प्रथम प्रति हिन्दी में नहीं देते है। यह सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना है। अत: उक्त आदेश का कढ़ाई से पालन करवाया जाना चाहिए। ४. पचास के दशक में गठित वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग का पुनर्गठन किया जाना चाहिए। साथ ही शब्द निर्माण के मामले में अब तक की नीति को छोड़ना चाहिए। सरकार की मौजूदा नीति ने संस्कृत से जुड़ीऐसी मशीनी भाषा ईजाद की है जो आम तो छोड़िए, हिंदी के जानकार लोगों को भी समझ में नहीं आती। जानकारों के मुताबिक सरकार को चाहिए कि वह जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष और महान भाषाविद् आचार्य रघुवीर की नीतिको छोड़ दे, वे भले ही महान भाषाविद थे जिन्होंने हिंदी के छह लाख शब्द गढ़े, पर यह भी सच है कि उन्होंने कई ऐसे शब्द भी बनाए जिसके चलते आज तक हिंदी का मजाक उड़ाया जाता है। इसलिए हिंदी के सरकारीशब्दकोशों और दस्तावेजों से कठिन शब्द को हटाए बिना हिंदी का विकास संभव ही नहीं। ५. हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र में कक्षा १२ तक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। हिन्दी भाषा जब भारत के ६० प्रतिशत से अधिक हिस्से में सर्वमान्य भाषा के तौर पर स्वीकार्य है, और केंद्र तथा राज्य सरकारोंको दसवीं के बजाय 12वीं कक्षा तक हिंदी भाषा और साहित्य को अनिवार्य भाषा बनाना चाहिए। केंद्र सरकार की मौजूदा नीति में कई झोल हैं जिसके चलते अनेक बच्चे अपनी मातृभाषा पढ़ने के बजाय विदेशी भाषा पढ़ने कोतवज्जो देते हैं। ऐसी प्रवृत्ति को दूर करना होगा, नहीं तो बच्चे अंग्रेजी, जर्मन तो सीख लेंगे पर हिंदी के बारे में ‘गर्व’ से कहेंगे कि हिंदी में उनका हाथ तंग है। इसलिए हिंदी का एक अनिवार्य विषय के रूप में प्रत्येक बोर्ड यामाध्यम सहित प्रत्येक राज्यों में अनिवार्य शिक्षा के रूप में स्वीकार किया जाना आवश्यक है। ६. प्रायोगिक रूप से देखा जाए तो आज ही केंद्र सरकार का मूल कामकाज हिंदी में होना कम संभव है, लेकिन यह तो हो ही सकता है कि सरकार अपने सभी दस्तावेजों और वेबसाइटों का सहज हिंदी में अनुवाद अनिवार्यरूप से कराए। इसके लिए संसाधनों की कमी का बहाना बनाते रहने से हमारी मातृभाषा लगातार पिछड़ती जाएगी और एक दिन हम अपने ही देश में अंग्रेजी के गुलाम बन जाएंगे. सरकार के इस फैसले से रोजगार के भी बड़ेअवसर पैदा होंगे। ७. गूगल की सर्वे रपट के अनुसार अंग्रेजी की तुलना में भारतीय भाषाओँ में उपलब्ध घटक (कंटेंट) केवल एक प्रतिशत है। यह काफी चिंता जनक तथ्य है। और हमारे देश में इंटरनेट पर करीब 20 प्रतिशत लोग हिंदी में सामग्रीखोजते हैं। लेकिन इंटरनेट पर इस भाषा में अच्छी सामग्री का काफी अभाव है। इसलिए भारत सरकार को चाहिए कि वह अपने संसाधनों और तमाम निजी प्रयासों से सभी विषयों की हिंदी में सामग्री तैयार करवाकर इंटरनेटपर सहज उपलब्ध करवाएं, ऐसा करके ही हिंदी पर लगने वाले उन लांछनों को दूर किया जा सकेगा कि यह ज्ञान और विज्ञान की भाषा नहीं है। ८. भारत में यदि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया जाता है तो उसके बाद एक राष्ट्रभाषा विभाग अलग से बनाना चाहिए। वर्तमान में चूँकि हिंदी राजभाषा है तो यहाँ केंद्र सरकार का राजभाषा विभाग अभी गृह मंत्रालय के तहत कामकरता है, जिसका जिम्मा कई बार अहिंदी-भाषी मंत्री के जिम्मे होता है। ऐसे मंत्री हिंदी के विकास में रुचि नहीं लेते, इसलिए सरकार को तय करना चाहिए कि यह विभाग या तो प्रधानमंत्री कार्यालय के तहत काम करे या इसेवैसे किसी मंत्री को सौंपा जाए जो हिंदी की अहमियत समझता हो. इसके अलावा राजभाषा विभाग को इसके अलावा पर्याप्त अधिकार और बजट भी सौंपने की जरूरत है। इसी के साथ हिन्दीभाषियों के साथ अहिन्दी प्रान्त मेंहो रहे दुर्व्यवहार पर राष्ट्र भाषा कानून के तहत सजा का प्रावधान होना चाहिए, भारत के कुछ राज्यों में हिन्दी भाषी होने पर या हिन्दी में व्यवहार करने पर उन्हें जनता द्वारा उस राज्य का विरोधी या उस भाषा का विरोधी मानाजाता है, ऐसी स्थिति में हिन्दी को राष्ट्रभाषा अवमानना कानून बनाकर उसके आलोक में सजा का प्रावधान सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ९. राष्ट्र के प्रत्येक राज्य में सड़कमार्ग पर लगे संकेतक, मिल के पत्थर, पथ प्रदर्शक पटल व दिशा सूचकों आदि की अनिवार्य भाषा हिन्दी होना चाहिए। अमूमन देश के अहिन्दीभाषी राज्यों में राजमार्गो, सड़कमार्गो आदि पर लगेसंकेतक, मिल के पत्थर, पथ प्रदर्शक पटल, व दिशा सूचक आदि स्थानीय भाषा में होते है, परन्तु देश की राजभाषा भी अभी तक हिन्दी ही है और उन राज्यों में जाने वाले हिन्दीभाषी लोगो की संख्या के आधार पर उन पटलोंपर अनिवार्यतः हिन्दी होना चाहिए साथ ही क्षेत्रीय या अंग्रेजी भाषा को भी स्थान दिया जाए। १०. हिंदी की मूल समस्या भी उसके बाज़ारमूलक न हो पाने यानि पेट और रोज़गार की भाषा न बन पाने की भी है। इसलिए भारत में हिन्दी भाषा को रोजगार और व्यवसाय की अनिवार्य भाषा बनाया जाना चाहिए, प्रत्येकभाषा के उत्थान और विकास के पीछे उस राष्ट्र के बाजार का बड़ा योगदान हैं, चाइनीज भाषा के व्यापक होने का कारण स्पष्ट रूप से चाइना के बाज़ार द्वारा चाइनीज का इस्तेमाल है। भारत भी विश्व का दूसरा बड़ा बाजार है,इस स्थिति में यदि हिन्दी को रोजगारमूलक और व्यवसाय की अनिवार्य भाषा के रूप में स्वीकार किया जाएगा और सरकार उस भाषा में रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रयत्न करेगी तो निश्चित तौर पर हिन्दी का विकासहोगा। इन निर्णयों से हिंदी के अच्छे दिन आएंगे और ये करना कठिन भी नहीं है, बस फर्क केवल करने की नियत का है। और हिंदी भाषा को अपने लाड़ले प्रधानमंत्री से उम्मीद क्यों न करें, जबकि वही प्रधानमंत्री हिंदी कोसंसद से विदेशी मंचों तक, चुनावी सभाओं से हर वक्तव्य तक उपयोग करके देश को यह सन्देश भी देते है कि हिंदी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में है। इसलिए आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हिंदी भाषा की कुछ उम्मीदे है,जिसे पूरी करके मोदी देश की लगभग आधी आबादी का दिल भी जीतेंगे और हिंदी के स्वाभिमान की भी स्थापना करेंगे। डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’, Read more » narendra modi to help for hindi
विविधा क्योंकि हर बच्चा क़ुदरत की अनूठी कृति है! May 9, 2019 / May 9, 2019 by डॉ अजय खेमरिया | Leave a Comment परीक्षा परिणामों की अंधी गली से बाहर है असली दुनिया अजय खेमरियारिजल्ट आ रहे है शत प्रतिशत नम्बरों से सजी मार्क शीट्स मीडिया और इस सोशल पटल पर साझा हो रही है। कई परिचित अभिभावकों के बच्चों ने वाकई गजब की मेहनत कर 90 प्लस के समूह में स्थान हासिल किया है वे सभी बच्चे […] Read more » exam result of 10th and 12th परीक्षा परिणाम
विविधा सवाल थोड़ा मुश्किल, मगर हकीकत है May 9, 2019 / May 9, 2019 by चरखा फिचर्स | Leave a Comment मो. रियाज़ मलिक पुंछ, जम्मू-कश्मीर धरती पर स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर में चुनावी गहमागहमी पूरी तरह से थम गई है। भौगोलिक और राजनीतिक रूप से देश के अन्य हिस्सों से भले ही यह राज्य अलग है, लेकिन चुनाव के समय यहां भी बिजली, पानी, सड़क, स्कूल, अस्पताल, रोज़गार और बुनियादी आवश्यकताएं मुख्य चुनावी मुद्दे रहे हैं। […] Read more » lack of basic amenities in Poonch lack of education in Poonch poonch पुंछ
विविधा विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर May 1, 2019 / May 1, 2019 by निर्भय कर्ण | Leave a Comment (1 मई- अंतर्राष्ट्रीय श्रम/मजदूर दिवस) निर्भय कर्ण मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य […] Read more » 1 मई- अंतर्राष्ट्रीय श्रम world labour day अंतर्राष्ट्रीय श्रम/मजदूर दिवस विश्व उन्नति
विविधा क्या है सुन्दरता का मापदण्ड? April 30, 2019 / April 30, 2019 by डॉ नीलम महेन्द्रा | 1 Comment on क्या है सुन्दरता का मापदण्ड? हाल ही में आइआइटी में पढने वाली एक लड़की के आत्महत्या करने की खबर आई कारण कि वो मोटी थी उसे अपने मोटा होना इतना शर्मिंदा करता था की वो अवसाद में चली गयी उसका अपनी परीक्षाओं में अव्वल आना भी उसे इस दुःख से बहार नहीं कर पाया यानी उसकी बौधिक क्षमता शारीरक आकर्षण से […] Read more » What is the criteria of beauty? सुन्दरता का मापदण्ड
विविधा होमोसैपिऐन्स का इतिहास April 26, 2019 / April 26, 2019 by गंगानन्द झा | Leave a Comment क्रम विकास के फलस्वरूप आज से लगभग पच्चीस लाख साल पहले मानव के विकास की शृंखला की शुरुआत अफ़्रीका में होमो(Homo) के उद्भव के साथ हुई। फिर काल क्रम में इसकी कई एक प्रजातियाँ विकसित हुई और अन्त में आधुनिक मनुष्य- (होमो सैपिएन्स) का विकास करीब दो लाख साल पूर्व पूर्वी अफ्रीका में हुआ। मनुष्य […] Read more » the history of homosapiens होमोसैपिऐन्स
विधि-कानून विविधा भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई द्वारा महिला का कथित यौन उत्पीड़न April 23, 2019 / April 23, 2019 by डॉ नीलम महेन्द्रा | Leave a Comment सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई के विरुद्ध एक ३५ वर्षीय महिला जो सुप्रीम कोर्ट में जूनियर कोर्ट सहायिका रह चुकी है, ने स्वयं के यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। महिला ने शपथ पत्र के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के सभी २२ जजों को अपनी शिकायत भेजी है। उसने आरोप लगाया है […] Read more » justice Gogoi sexual harassment by justice gogoi जस्टिस गोगोई
विविधा प्रकृति सम्मत् हमारा नववर्ष April 16, 2019 / April 16, 2019 by डॉ. हेमेंद्र कुमार राजपूत | Leave a Comment डॉ. हेमेन्द्र कुमार राजपूत प्रकृति ने भारतवर्ष की भौगोलिक संरचना इस प्रकार की है कि भारत की इस हिन्दू भूमि को प्रकृति के द्वारा प्रदत्त मौसमों का भरपूर आनंद प्राप्त होता है । दुनिया के किसी देश को छ: ऋतुओं का आनंद प्राप्त नहीं होता । मैक्समूलर से जब दुनिया के विद्वानों और भूगोलवेत्ताओं […] Read more »
महत्वपूर्ण लेख विविधा संस्कृत शब्द की असीम उडान March 24, 2019 / March 24, 2019 by डॉ. मधुसूदन | 8 Comments on संस्कृत शब्द की असीम उडान डॉ. मधुसूदन (एक)संस्कृत शब्द की उडान: संस्कृत शब्दों में वैचारिक आकाश छूने की क्षमता है, इसी गुण के कारण उसमें मैं सम्मोहन भी मानता हूँ। और इसी लिए संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भी मुझे प्रभावित ही नहीं, सम्मोहित भी करती है। भाषा अर्थात भाषा के शब्द ही चिन्तकों के विचारों को ऊँचा उठाते हैं, और सारी मर्यादाएँ लांघ कर मुक्त चिन्तन का […] Read more » संस्कृत शब्द संस्कृत शब्द की असीम उडान