विविधा अब खामोश क्यों हैं मानवाधिकारों के पैरोकार May 3, 2013 / May 3, 2013 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | 2 Comments on अब खामोश क्यों हैं मानवाधिकारों के पैरोकार सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” मानवाधिकार वास्तव में एक जटिल विषय है । जटिल इसलिए क्योंकि इन्ही का लाभ लेकर ही अक्सर तथाकथित सेक्यूलर लोग आतंकियों के हित संवर्धन का रोना रोते हैं । हांलाकि भारत के अलावा अन्य देशों में हालात दूसरे हैं । जहां तक भारत का प्रश्न है तो हमारे यहां सदैव से आतंकियों […] Read more » मानवाधिकारों के पैरोकार
विविधा हवाईयन-अंग्रेज़ी-हिंदी शब्द सीमा May 2, 2013 / May 14, 2013 by डॉ. मधुसूदन | 14 Comments on हवाईयन-अंग्रेज़ी-हिंदी शब्द सीमा डॉ. मधुसूदन ॐ –शब्द किस सामग्री से, और कैसे बनता है? ॐ–शब्द समृद्धि की चरम सीमा। ॐ–अंग्रेज़ी की अपेक्षा हिंदी २१ गुणा समृद्ध? एक: शब्दों की सामग्री। शब्द किस सामग्री से, और कैसे बनता है? उत्तर: शब्द बनता है, भाषा में उपलब्ध उच्चारों की विविध रचना ओं से। कुल उच्चार उसकी सामग्री है, और अलग […] Read more » हवाईयन-अंग्रेज़ी-हिंदी
जन-जागरण विविधा हक़ हनन और मजदूर दिवस May 2, 2013 / May 2, 2013 by अब्दुल रशीद | Leave a Comment अबदुल रशीद मजदूरों की एकता को भंग कर तथाकथित मजदूर यूनियन अपनी-अपनी दुकान चलाने के सिवा करते ही क्या है? 1 मई मजदूर दिवस, आखिर क्यों मनाया जाता है,शायद मजदूरों के हक़ के लिए मनाया जाता है। लेकिन क्या यह वाकई मजदूरों के हक़ के लिए मनाया जाता है। शायद नहीं कम से कम भारत […] Read more » मजदूर दिवस
विविधा भाषा परिवर्तन कैसे आता है April 29, 2013 by राकेश कुमार आर्य | Leave a Comment वाक भेद के विकार को समझना भी आवश्यक है। तनिक निम्नलिखित शब्दों पर दृष्टिपात करें कि ये किस प्रकार वाक भेद के कारण विकार ग्रस्त हो गये हैं :- शुद्घ शब्द अशुद्घ शब्द विभीत्सा […] Read more » भाषा परिवर्तन भाषा परिवर्तन कैसे आता है
विविधा दर्द खरोचती दंगे की सियासत April 26, 2013 / April 26, 2013 by संजय स्वदेश | 1 Comment on दर्द खरोचती दंगे की सियासत संजय स्वदेश किसी न किसी बहाने देश में हुए दंगों को लेकर आए दिन राजनीति गर्म होती है। गत एक सप्ताह में गुजरात दंगों को लेकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर कांग्रेस ने सबसे तीखा हमला बोलते हुए देश के बाकी हिस्सों में 2002 के दंगे दोहराने की मंशा रखने का आरोप लगाया। इस बयान की […] Read more » दंगे की सियासत
विविधा बम धमाकों के नीहितार्थ April 23, 2013 / April 23, 2013 by सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र” | Leave a Comment सिद्धार्थ मिश्र”स्वतंत्र” बेंगलूर में हुए बम धमाकों ने एक बार दोबारा भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है । वैसे भी भारतीय लोकतंत्र में ये कोई नयी बात नहीं है । अभी हैदराबाद में हुए सिलसिलेवार धमाकों को ज्यादा समय भी नहीं बीता था कि ऐसे में हुए इन धमाकों ने गृह मंत्री के […] Read more » बम धमाकों के नीहितार्थ
विविधा संजय दत्त और छद्म धर्मनिरपेक्षता April 22, 2013 by विपिन किशोर सिन्हा | Leave a Comment बिपिन किशोर सिन्हा कल्पना कीजिए कि संजय दत्त का नाम यदि शमीम हुसेन होता, पिता का नाम शाकिर हुसेन होता बहन का नाम परवीन बेगम होता और ये सभी सत्ताधारी कांग्रेस के पूर्व सांसद या वर्तमान सांसद नहीं होते, तो क्या होता? आप स्वयं अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि तब न्यायालय, सरकार […] Read more » संजय दत्त और छद्म धर्मनिरपेक्षता
विविधा सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में किसी एक भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक दो! April 20, 2013 by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो | 1 Comment on सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में किसी एक भारतीय भाषा में न्याय पाने का हक दो! हिंदी को व्यवहार में लाने की सरकारी अपील आपने रेलवे स्टेशनों तथा अन्य सरकारी कार्यालयों में पढ़ी होगी; परन्तु क्या आपको पता है कि विश्व के इस सबसे बड़े प्रजातंत्र में आजादी के पैंसठ वर्षों के पश्चात् भी सर्वोच्च न्यायालय की किसी भी कार्यवाही में हिंदी का प्रयोग पूर्णतः प्रतिबंधित है? और यह प्रतिबंध किसी […] Read more » श्याम रुद्र पाठक
विविधा लुप्त होती राष्ट्रीय पंचांग की पहचान April 14, 2013 / April 14, 2013 by प्रमोद भार्गव | 4 Comments on लुप्त होती राष्ट्रीय पंचांग की पहचान प्रमोद भार्गव कालमान एवं तिथिगण्ना किसी भी देश की ऐतिहासिकता की आधारशीला होती है। किंतु जिस तरह से हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं को विदेशी भाषा अंग्रेजी का वर्चस्व धूमिल कर रहा है,कमोवेश यही हश्र हमारे राष्ट्रीय पंचांग,मसलन कैलेण्डर का भी है। किसी पंचांग की कालगण्ना का आधार कोर्इ न कोर्इ प्रचलित […] Read more » लुप्त होती राष्ट्रीय पंचांग की पहचान
विविधा अलविदा! April 12, 2013 / April 12, 2013 by मा. गो. वैद्य | 1 Comment on अलविदा! – मा. गो. वैद्य अलविदा! यह मेरा आखिरी साप्ताहिक भाष्य है. तरुण भारत के मुख्य संपादक का दायित्व १९८३ को छोडने के बाद, गत तीस वर्ष हर रविवार के अंक के लिए यह स्तंभ मैं लिखता रहा हूँ. अब यह लेखन रोक रहा हूँ. अंग्रेजी पंचांग के अनुसार, 90 वर्ष की आयु हो चुकी है […] Read more »
विविधा एक मुख्यमंत्री ऐसा भी April 12, 2013 by मा. गो. वैद्य | 1 Comment on एक मुख्यमंत्री ऐसा भी – मा. गो. वैद्य घटना १८ मार्च की होगी. एक मुख्यमंत्री अपने राज्य की राजधानी से विमान से दिल्ली आ रहे थे. लेकिन आश्चर्य यह कि, उनके साथ कोई नौकर-चाकर नहीं थे. सुरक्षा गार्ड भी नहीं थे. कोई चपरासी भी नहीं दिखा. वे स्वयं ही अपना सामान संभाल रहे थे. विमान में उनका टिकट सादा […] Read more »
विविधा भारतीय लोकतन्त्र में जातीवाद का घुन April 11, 2013 by श्रीराम तिवारी | Leave a Comment दुनिया के समाज शाश्त्रियों के लिए मध्ययुगीन -गैर इस्लामिक , गैर ईसाइयत और तथाकथित विशुद्ध भारतीय उत्तर वैदिक कालीन पृष्ठभूमि वाले भारत के सामाजिक -ताने-बाने को ऐतिहासिक और द्वंदात्मक – वैज्ञानिक क्रमिक विकाश के समग्र रूप में समझ पाना अत्यंत कठिन और जटिल रहा है. भारत के ’सनातन’ हिन्दू समाज – जिसे आजकल हिंदुत्व से […] Read more »