हिंदी गजल

अविनाश ब्यौहार

देश का नहीं उनका विकास है।
जिनके तन पर महँगा लिबास है।।

रहजनी रात के अंधेरे में,
दिन में उनकी इज्जत झकास है।

वे बैठे मिले तनहाईयों में,
क्यों लगा कि कोई आस पास है।

दफ्तर ज्यों पीपल का पेड़ हुआ,
देव नहीं बल्कि जिन का वास है।

आज वक्त इस तरह बदला हुआ,
उजाला अंधेरों का दास है।

दिख रहीं सपनों में चमगादड़ें,
खुशियों का खंडहर आवास है।

अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर

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