ईश्वर’ शब्द के शासक से शिव होने की यात्रा !
Updated: January 23, 2025
‘ आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार ईश्वर…
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कृषि और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है मोटे अनाज की खेती
Updated: January 23, 2025
अमृत राजमुजफ्फरपुर, बिहार कृषि के क्षेत्र में विशेषकर मोटे अनाज के उत्पादन के मामले में केंद्र सरकार के प्रयास ने जहां भारत को इस क्षेत्र…
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सुभाषचन्द्र बोसः आजादी की सबसे उजली उम्मीद बने
Updated: January 27, 2025
सुभाषचन्द्र बोस जन्म जयन्ती 23 जनवरी, 2025-ललित गर्ग- खून के बदले आजादी देने का वादा करने वाले भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के करिश्माई नेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और…
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नये भारत के लिये बालिकाओं की बंद खिड़कियां खुलें
Updated: January 23, 2025
राष्ट्रीय बालिका दिवस- 24 जनवरी, 2025-ललित गर्ग – जहां पांव में पायल, हाथ में कंगन, हो माथे पे बिंदिया, इट हैपन्स ओनली इन इंडिया- जब…
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जीवन-मृत्यु का प्रश्न बनती कोचिंग के बोझ तले पढाई
Updated: January 23, 2025
प्रतिस्पर्धा के बीच जीवित रहने का संघर्ष करते बच्चे। स्कूली पढाई के बजाय कोचिंग के भयावह दौर में, छात्रों में आत्महत्या की प्रकृति और प्रवृत्ति…
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आत्मनिर्भरता को मज़बूत करते हुए चीन के साथ भारत के सम्बंध
Updated: January 23, 2025
-प्रियंका सौरभ भारत गैर-प्रतिस्थापनीय आयातों के लिए चुनिंदा व्यापार सम्बंधों को बनाए रखते हुए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दे सकता है। उदाहरण…
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भारत के भविष्य को लेकर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की दृष्टि
Updated: January 23, 2025
23 जनवरी : नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जन्मतिथि पर लेख जब नेताजी सुभाषचंद्र बोस के विचारों को भारत के तात्कालीन समकक्ष राजनैतिक नेताओं ने स्वीकार नहीं किया तब नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भारत के भविष्य को लेकर अपनी दूरदृष्टि को धरातल पर लाने के उद्देश्य से अपने कार्य को न केवल भारत बल्कि अन्य देशों में निवास कर रहे भारतीयों के बीच में फैलाने का प्रयास किया। उन्होंने इन देशों में निवासरत भारतीयों को एकत्रित कर उन्हें सैनिक प्रशिक्षण देना प्रारम्भ किया और इस कार्य में उन्हें अपार सफलता भी मिली क्योंकि 29 दिसम्बर 1943 को अंडमान द्वीप की राजधानी पोर्टब्लेयर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहरा दिया था। भारतीय इतिहास में भारत भूमि का यह हिस्सा प्रथम आजाद भूभाग माना जाता है। हालांकि, भारत को आजादी मिलने की घोषणा 15 अगस्त 1947 को हुई थी। नेताजी के रूप में लोकप्रिय सुभाष चंद्र बोस एक प्रखर राष्ट्रवादी, एक प्रभावी वक्ता, एक कुशल संगठनकर्ता, एक विद्रोही देशभक्त और भारतीय इतिहास के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ निर्णायक युद्ध लड़ने और 21 अक्तूबर 1943 को एक स्वतंत्र सरकार बनाने का श्रेय दिया जाता है। वर्ष 1927 में नेताजी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए कांग्रेस के साथ काम किया, लेकिन समय के साथ कांग्रेस में उपजी गुटबाजी और गांधी जी के साथ वैचारिक मतभेदों के कारण वह कांग्रेस से अलग हो गए और एक स्वतंत्र संगठन के माध्यम से ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम लड़ा। नेताजी भारतीय इतिहास में अपने समय के सबसे सम्मानित नेताओं में से एक थे। वह असीम देशभक्त और भारत के विकास और भविष्य के बारे में अत्यंत कृतसंकल्प थे। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को बंगाल प्रांत के कटक, उड़ीसा संभाग में प्रभावती दत्त बोस और अधिवक्ता जानकीनाथ बोस के एक बंगाली कायस्थ परिवार हुआ था। उनके प्रारंभिक प्रभावों में उनके हेडमास्टर, बेनी माधव दास और स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाएं शामिल थीं। बाद में 15 वर्षीय बोस में आध्यात्मिक चेतना जग गई थी। नेताजी की विचारधारा और व्यक्तित्व के बारे में कई व्याख्याएं उपलब्ध हैं लेकिन अधिकांश विद्वानों का मानना है कि हिंदू आध्यात्मिकता ने उनके व्यस्क जीवन के दौरान उनके राजनीतिक और सामाजिक विचारों का आवश्यक हिस्सा बनाया, हालांकि इसमें कट्टरता या रूढ़िवाद की भावना नहीं थी। खुद को समाजवादी कहने वाले नेताजी का मानना था कि भारत में समाजवाद का मूल स्वामी विवेकानंद के विचार है। आपका मानना था कि ‘भगवदगीता’ अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत है। सार्वभौमिकता पर स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं, उनके राष्ट्रवादी विचारों और सामाजिक सेवा और सुधार पर उनके जोर ने नेताजी को उनके बहुत छोटे दिनों से प्रेरित किया था। इस संदर्भ में नेताजी के कई उद्धरण आज भी याद किए जाते हैं। “मात्र अडिग राष्ट्रवाद और पूर्ण न्याय और निष्पक्षता के आधार पर ही भारतीय स्वतंत्र सेना का निर्माण किया जा सकता है।“; “यह अकेला रक्त है जो स्वतंत्रता की कीमत चुका सकता है। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा!”; वर्ष 1939 की शुरुआत में उनके द्वारा गढ़ा गया नारा था – “ब्रिटेन की कठिनाई भारत का अवसर है।“ नेताजी ने अपने प्रारम्भिक जीवनकाल से ही अपने चिंतन और अपनी कार्यशैली से भारत को स्वाधीन और सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा मे कदम बढाया था। भविष्य दृष्टा और राजनीतिज्ञ होने के नाते नेताजी का विश्वास था कि राष्ट्र जागरण और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओ को साथ लेकर ही आगे बढ़ना चाहिए। नेताजी की स्पष्ट सोच थी कि स्वतंत्र भारत, सार्वभौम संप्रभुता युक्त शक्तिशाली और विश्ववंद्य होना चाहिये तथा सदियो तक पुनःपरतंत्रता न आये, ऐसे प्रयास राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त होने के साथ ही प्रारम्भ होने चाहिए और इसीलिए भारत के नागरिकों में राष्ट्रीयता का भाव जगाना चाहिए। स्वाधीन भारत की सुरक्षा के लिये नेताजी सेना के तीनो अंगों, थल सेना, जल सेना और नभ सेना का आधुनिक ढंग से निर्माण और विकास करना चाहते थे। जब वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दूसरी बार जर्मनी गये थे तब नेताजी ने यूरोप के कई देशों का दौरा करके आधुनिक युद्ध प्रणाली का गहराई के साथ अध्ययन किया, इतना ही नही उन्होने जर्मनी मे युद्ध बंदियों और स्वतंत्र नागरिको की जो आजाद हिंद फौज बनाई, उसे पूर्ण रूप से आधुनिक अस्त्र-शस्त्रो से सुसज्जित किया और उसे इस प्रकार का प्रशिक्षण दिलाया कि वह संसार की सर्व शक्तिमान सेनाओं के समकक्ष मानी जाने लगी। आजाद हिंद फौज दुनिया के फौजी इतिहास का एक सफल अध्याय बन गया। ब्रिटिश शासन काल मे भारत के तात्कालिक राजनैतिक नेतृत्व के पास भारत के आर्थिक विकास, सामाजिक एवं सांस्कृतिक ताने बाने के सम्बंध में अपनी कोई दूरदृष्टि नहीं थी। येन केन प्रकारेण केवल राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त करना एकमेव लक्ष्य था। ऐसे समय में भारत में देश का शासनतंत्र ब्रिटिशों के हाथों में था। अंग्रेजी शासकों की इच्छा अनुसार ही भारत में शासन चलता था। इसलिये, तत्कालीन ब्रिटिश शासकों की राजनीति की पृष्ठभूमि का उद्देश्य एक ही था कि भारत का अधिक से अधिक शोषण किया जाये एवं भारत की जनता को गुलाम बनाकर, अज्ञानता के अंधेरे मे रखकर, अधिक से अधिक समय तक अपना अधिकार जमाकर रखा जाए। ताकि, भारत सदा सदा के लिये गुलामी की जंजीरो मे जकडा रहे, स्वतंत्र होने का विचार भी न कर सके। परंतु, ऐसी मनोवृत्ती होने के उपरांत भी ब्रिटिशों को भारत से खदेड़ दिया गया। परंतु ब्रिटिश शासकों ने कूटनीतिक चाल चलते हुए भारत का विभाजन हिंदुस्तान एवं पाकिस्तान के रूप में कर दिया। पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के हाथों मे राजनीति की डोर आ गई। नेताजी के क्रांतिकारी विचारों एवं दूरदृष्टि का उपयोग लगभग नहीं के बराबर ही हो पाया था। जबकि नेताजी के विचारों में दूरदर्शिता थी एवं उनकी भारत के बारे में सोच बहुत ऊंची थी। नेताजी ने भारत के भविष्य के बारे में बहुत उल्लेखनीय योजनाओं पर अपने विचार विकसित कर लिए थे एवं आगे आने वाले समय के लिए इस संदर्भ में योजनाएं भी बना ली थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भारत मे जगह-जगह पर अनेक छोटी छोटी रियासतें थी। सभी राजे महाराजे अपनी राज्य सीमा के अंदर राज्य चलाना और कमजोर राज्यों पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में मिला लेना ही श्रेयस्कर कार्य मानते थे। राज्य का विस्तार करना, यही राजतंत्र की शासन प्रणाली थी, पूरा भारत इसी प्रणाली का अभ्यस्त था, प्रजातंत्र की जानकारी भारतीयों के पास नहीं थी। अतः प्रजातंत्र का विषय भारतीयों के लिए नया था। अंग्रेजों के शासन काल में ऐसा आभास दिया गया था कि भारत में प्रजातंत्र अंग्रेजों की देन है। अंग्रेज ठहरे कूटनीतिज्ञ और स्वार्थी वे भारत को स्वतंत्र करना चाहते ही नही थे। इसीलिये भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति पर, ब्रिटिश, भारतीय सत्ताधारियो को प्रजातंत्र में कूटनीति से कैसे राज्य करना, लोभ, छलावा और स्वार्थ का पाठ पढ़ाकर, भारत का विभाजन कर, प्रजातंत्र की राजनीति सिखाकर ही भारत से गये थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात दुर्भाग्य से भारत का राजनैतिक नेतृत्व नेताजी जैसे राष्ट्रवादी ताकतों के स्थान पर ऐसे लोगों के हाथों में आया जिन्होंने अंग्रेजों द्वारा चलायी जा रही नीतियों का अनुसरण करना ही उचित समझा। भारतीय सनातन संस्कृति के अनुपालन को बढ़ावा ही नहीं दिया गया जबकि उस समय भी भारत में हिंदू बहुसंख्यक थे। प्रजातंत्र के नाम पर अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षित रखने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई। अंडमान एक स्वतंत्र द्वीप समूह था इसका इतिहास भी बहुत लंबा है। अभी अभी मोदी सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह का नाम बदलकर श्री विजय पुरम रख दिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय अंडमान द्वीप भारत के ही हिस्से मे आये थे और अंडमान द्वीप पर भारत का अधिपत्य हो यह स्वीकार करने की नेहरू की बिलकुल इच्छा नही थी। परन्तु, सरदार वल्लभभाई पटेल ने जिद ठान ली थी कि अंडमान चूंकि भारतीय शहीदों पर हुए जुल्मो का प्रतीक है इसलिये स्वाधीनता सेनानियों को, हिंदू राष्ट् को ही अंडमान मिलना चाहिये। पटेल की जिद के कारण ही अंडमान भारत के हिस्से मे आया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये जितने भी स्वाधीनता संग्राम सेनानी अंग्रेजों के हाथ लगते थे उन सबको भारत की पावन भूमि से कोसों दूर समुद्र के बीच टापू पर स्थित अंडमान मे अंग्रेजो द्वारा सेल्यूलर जेल का निर्माण करके हजारो क्रांतीवीरो को कालकोठरी मे रखा जाता था। इस पुण्य भूमि को सर्वप्रथम नेताजी ने मुक्त कराया था। वर्ष 1938 में ही भारत मे योजना समिति का गठन कर पुनर्निमाण सम्बंधी योजनाओं को क्रियान्वित करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया था। केवल भारत मे ही नही बल्कि भारत से बाहर, जर्मनी मे भी योजना आयोग की स्थापना करके भारत के पुनर्निर्माण के लिये योग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया गया था। प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये एक विद्यालय की स्थापना भी की गई थी। इस प्रकार, नेताजी ने परिश्रमी, कर्मठ, ईमानदार तथा अनुभवी व्यक्तियों का एक अच्छा खासा दल तैयार कर लिया था, लेकिन तत्कालीन भारतीय प्रशासन द्वारा स्वाधीन भारत में प्रशासन के लिये इन प्रशिक्षित व्यक्तियों का कोई उपयोग नही किया गया। भारत के नागरिक प्रशासन की जो तस्वीर नेताजी ने बनाई थी, यदि उसमे रंग भर दिए जाते तो आज भारत की तस्वीर ही कुछ और होती। प्रहलाद सबनानी
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वैश्विक स्तर पर भारतीय रुपए के मान को गिरने से बचाने हेतु कम करना होगा आयात
Updated: January 23, 2025
एक अमेरिकी डॉलर की तुलना में भारतीय रुपया 86.62 रुपए तक के रिकार्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है, बहुत सम्भव है कि आगे आने वाले समय में यह 87 रुपए अथवा 90 रुपए के स्तर को भी पार कर जाय। हालांकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की गिरावट के लिए वैश्विक स्तर पर कई कारक जिम्मेदार है परंतु मुख्य रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लगातार मजबूत होने के संकेत मिल रहे हैं, जैसे, रोजगार हेतु नई नौकरियों की तो जैसे बहार ही आई हुई है। जनवरी 2025 माह में दिसम्बर 2024 माह के जारी किए के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 256,000 से अधिक नई नौकरियां पैदा हुई हैं जबकि अनुमान लगभग 200,000 नौकरियों का ही था, नवम्बर 2024 माह में 212,000 नौकरियां पैदा हो सकी थीं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती के चलते फेडरल रिजर्व, यूएस फेड रेट में कमी की घोषणा को रोक सकता है एवं अब अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का मत है कि केलेंडर वर्ष 2025 में केवल एक अथवा दो बार ही फेड रेट में कमी की घोषणा हो, क्योंकि, रोजगार के क्षेत्र में मजबूती के चलते बहुत सम्भव है कि मुद्रा स्फीति में कमी लाने में अधिक समय लग सकता है। अमेरिका में बढ़ी हुई ब्याज दर के चलते अमेरिकी डॉलर इंडेक्स एवं अमेरिकी ट्रेजरी बिल पर यील्ड भी मजबूत बनी हुई है इससे अमेरिकी डॉलर लगातार और अधिक मजबूत हो रहा है एवं पूरे विश्व से डॉलर अमेरिका की ओर आकर्षित हो रहा है जबकि इसके विरुद्ध अन्य देशों की मुद्राओं पर स्पष्टत: दबाव दिखाई दे रहा है। दिनांक 20 जनवरी 2025 को श्री डानल्ड ट्रम्प के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद बहुत सम्भव है कि अमेरिका में आयात किए जाने वाले कई उत्पादों पर आयात कर की दर बढ़ा दी जाय क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान बार बार इसका जिक्र किया गया है। यदि ऐसे निर्णय अमेरिका में लागू किए जाते हैं तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति फैलेगी और यदि ऐसा होता दिखाई देता है तो यू एस फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कमी के स्थान पर वृद्धि की घोषणा भी कर सकता है। इससे अमेरिकी डॉलर में और अधिक मजबूती आएगी और अन्य देशों की मुद्राओं का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अधिक अवमूल्यन होने लगेगा। दूसरे, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतें भी एक बार पुनः बढ़ती हुई दिखाई दे रही है जो 81 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर गई हैं। इससे भी भारतीय रुपए पर दबाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत आज भी अपने कच्चे तेल की कुल खपत का 87 प्रतिशत से अधिक तेल का आयात करता है और इस आयातित कच्चे तेल का भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना होता है, जिससे भारत के लिए अमेरिकी डॉलर की मांग भी लगातार बढ़ रही है। बल्कि इससे तो भारत में भी मुद्रा स्फीति के बढ़ने का खतरा उत्पन्न हो रहा है। पिछले वर्ष भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 13,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि खर्च की है। तीसरे, विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकालने में लगे हुए हैं क्योंकि उन्हें अमेरिका में ब्याज दरों के अच्छे स्तर को देखते हुए अपने निवेश पर अधिक आय की सम्भावना दिखाई दे रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा 27 सितम्बर 2024 से भारतीय शेयर बाजार में लगातार बिकवाली की जा रही है और दिनांक 17 जनवरी 2025 तक 232,317 करोड़ रुपए की बिकवाली शेयर बाजार में उनके द्वारा की जा चुकी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक देश की मुद्रा की तुलना में दूसरे देश की मुद्रा की कीमत यदि गिरने लगे तो इसके पीछे सामान्यतः दोनों देशों में मुद्रा स्फीति की दर को जिम्मेदार माना जाता है। जैसे यदि अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर 3 प्रतिशत प्रतिवर्ष है और भारत में मुद्रा स्फीति की दर 5.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष है तो भारतीय रुपए की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2.5 प्रतिशत से गिरनी चाहिए। इस दृष्टि से अर्थशास्त्र में यह एक सैद्धांतिक कारण माना जाता है और इस सिद्धांत को अपनाकर विदेशी निवेशक उन्हीं देशों में अधिक निवेश करते हैं जहां मुद्रा स्फीति की दर नियंत्रण में रहती है। पूरे विश्व का 88 प्रतिशत विदेशी व्यापार अमेरिकी डॉलर में होता है। जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिकी डॉलर की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। बाजार में जिस भी उत्पाद की मांग बढ़ेगी और यदि उस उत्पाद की आपूर्ति बाजार में नियंत्रित है तो उस उत्पाद की कीमत भी बाजार में बढ़ेगी। यही हाल अमेरिकी डॉलर का अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज हो रहा है। अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ रही है तो अन्य देशों की मुद्राओं की कीमत स्वाभाविक रूप से गिर रही है। साथ ही, 17 जनवरी 2025 को अमेरिकी डॉलर इंडेक्स 109.35 के स्तर पर पहुंच गया है। अमेरिकी डॉलर इंडेक्स का बढ़ना यानी दुनिया भर में डॉलर की मांग बढ़ रही है। अमेरिका में 10 वर्षीय बांड पर यील्ड भी 4.65 प्रतिशत प्रतिवर्ष से भी आगे निकल गई है। अन्य देशों की मुद्राओं की बाजार कीमत भारतीय रुपए की तुलना में अधिक तेजी से गिरी है। जनवरी 2024 से लेकर जनवरी 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 10 प्रतिशत मजबूत हुआ है। जबकि गिरने वाली मुद्राओं में भारतीय रुपया 3.5 प्रतिशत, ब्रिटिश पाउंड 3.8 प्रतिशत, यूरो 6.59 प्रतिशत, स्विस फ्रैंक 7.07 प्रतिशत, आस्ट्रेलियन डॉलर 8.09 प्रतिशत, स्वीडिश क्रान 9.5 प्रतिशत, न्यूजीलैंड डॉलर 12.5 प्रतिशत, टरकिश लीरा 18.5 प्रतिशत एवं ब्राजीलियन रीयल 24.74 प्रतिशत तक गिरा है। अब यदि भारतीय रुपए की तुलना अमेरिकी डॉलर को छोड़कर अन्य देशों की मुद्राओं से करें तो भारत की स्थिति मजबूत दिखाई देती है परंतु अंतरराष्ट्रीय बाजार में अधिकतम उपयोग तो अमेरिकी डॉलर का करना होता है। अतः अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर की तुलना में कितना गिरा है, यह तथ्य अधिक महत्वपूर्ण है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव प्रचार के दौरान श्री डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान लगातार यह घोषणा की जाती रही है कि उनके राष्ट्रपति चुने जाने के बाद वे अमेरिका में आयात की जाने वाली अनेक वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर लागू कर देंगे जिससे अमेरिका में इन देशों से वस्तुओं के आयात को कम किया जा सके एवं इन वस्तुओं का उत्पादन अमेरिका में ही प्रारम्भ किया जा सके। विशेष रूप से अमेरिका में चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर तो 60 से 100 प्रतिशत तक का आयात शुल्क लगाये जाने की बात की जा रही है। श्री ट्रम्प की इन घोषणाओं का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुआ है एवं विदेशी निवेशक अपनी पूंजी अन्य विकासशील देशों के पूंजी बाजार से निकालकर इस उम्मीद में अमेरिकी पूंजी बाजार में निवेश करने लगे हैं कि आगे आने वाले समय में अमेरिका एक बार पुनः विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित होगा और उनके निवेश पर अमेरिका में ही उन्हें अधिक आय की प्राप्ति होगी। हालांकि, ट्रम्प प्रशासन यदि अमेरिका में आयात की जाने वाली वस्तुओं पर भारी मात्रा में आयात कर बढ़ाता है तो शुरुआती दौर में तो इससे अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर और अधिक तेज होगी क्योंकि अमेरिका में इन वस्तुओं की आयातित लागत बढ़ेगी। आज पूरे विश्व में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कार्य करने वाली सबसे बड़ी कम्पनियों में 73 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं, इसी प्रकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य कर रही सबसे बड़ी कम्पनियों में 65 प्रतिशत अमेरिकन कम्पनियां हैं। और, इन कम्पनियों द्वारा अन्य विकासशील देशों में अपनी विनिर्माण इकाईयां स्थापित की हुई हैं। यदि ट्रम्प प्रशासन द्वारा अन्य देशों में इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों के आयात पर भारी मात्रा में आयात कर लगाया जाता है तो ये कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को अमेरिका में स्थापित करेंगी, इससे अन्य देशों के निर्यात प्रभावित होंगे और अमेरिका में अन्य देशों से आयात कम होंगे। अतः अब भारत को भी विभिन्न क्षेत्रों में अपने आप को आत्म निर्भर बनाना होगा ताकि अन्य देशों से विभिन्न उत्पादों के आयात पर निर्भरता कम की जा सके। आज भारत में विभिन्न वस्तुओं का भारी मात्रा में आयात हो रहा है, विशेष रूप कच्चे तेल एवं स्वर्ण जैसे पदार्थों का। जबकि, भारत से वस्तुओं के निर्यात की वृद्धि दर अपेक्षाकृत कम है जिससे चालू खाता घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है और अंततः इससे अमेरिकी डॉलर की मांग हमारे देश में बढ़ रही है और रुपए पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। अतः भारत को कच्चे तेल एवं स्वर्ण के आयात में कमी लानी ही होगी ताकि चालू खाता घाटे को कम किया जा सके। साथ ही, अब भारत को अपने यहां मुद्रा स्फीति को भी नियंत्रण में रखना अति आवश्यक है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय बजट में सरकारी घाटे को नियंत्रण में रखना होगा। क्योंकि, अधिक ऋण लेने से सरकार को अपनी आय का एक बड़ा भाग ब्याज के भुगतान के लिए उपयोग करना होता है और इससे देश की विकास दर प्रभावित होती है एवं विदेशी निवेशक अपने निवेश को नियंत्रित करने लगते हैं। भारत में हालांकि केंद्र सरकार द्वारा अपने बजटीय घाटे को लगातार कम करने में सफलता अर्जित की जा रही है। कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार के बजट में यह घाटा 9 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया था परंतु अब यह घटकर 5 प्रतिशत के आसपास आ गया है। परंतु, अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार अभी भी यह अधिक है। बजटीय घाटे को कम करने से भारत सरकार को ऋण पर ब्याज के रूप में कम राशि खर्च करनी होगी एवं देश के विकास कार्यों के लिए अधिक राशि उपलब्ध होगी, इससे विदेशी निवेश भी अधिक मात्रा में आकर्षित होगा। प्रहलाद सबनानी
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तैमूरलंग का आतंकी अभियान
Updated: January 21, 2025
डॉ राकेश कुमार आर्य सिकन्दर बुतशिकन ऐसा नहीं था कि उसने केवल हिन्दुओं के साथ ही अत्याचार किए, उनके अतिरिक्त उसने बौद्ध धर्म के धार्मिक…
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बांग्लादेश- पाकिस्तान बनाम भारत
Updated: January 21, 2025
बांग्लादेश के निर्माण में भारत की भूमिका पर अपनी पीठ थपथपाते हुए कांग्रेस इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की महान उपलब्धि के रूप में…
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राहुल गांधी के देश विरोधी खतरनाक बोल
Updated: January 21, 2025
राहुल गांधी अब अपनी पप्पू वाली छाप को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। जहां लोग उनकी ‘ पप्पू मानसिकता ‘ पर अपने राजनीति में बच्चा…
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